ज्योतिष समाधान

Tuesday, 9 September 2025

गया श्राद्ध के बाद श्राद्ध करें या नहीं करें

गया -----गया--- गया ,,गया पिण्ड दान पर शास्त्र सम्मत विचार <--------    ********    ---- >>>>>>>>

आजकल प्रचलन में.. ...
एक नया विषय जोरों से चलरहा है ----------------- प्रेत- विद्या या वैज्ञानिक अंग्रेजी कृत शव्द कहैं  प्रेतोलोजी,  बाजार वाद , मीडिया, एजेंटशिप सब शामिल है इसमें ----,
यद्यपि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है  कि प्रेत होते हैं मृत व्यक्ति को निःसंदेह शास्त्र प्रेत ही स्वीकार करते हैं क्यों कि किस के कर्म का क्या फल है  यह अवस्था न्याय संदिग्ध अवस्था रहती है।
 उत्तम षोडशी से, सपिण्डन से पूर्व नामरहित गोत्र रहित संस्कार किया जाना पद्धति कार संकलित करते हैं ,इस कर्म में वेदादि मंत्र व्यवहार से अधिक, लौकिक क्रिया  संकल्प प्रधानता रखी गई है  ,प्रेत यानि आपके मृत परिजन की द्वादश दिवसीय क्रिया हो जाने के वाद वह  अस्थिर पितर बनकर हमारे अन्य श्राद्ध के प्रति आशान्वित रहता है  जीव की मुक्ति के शास्त्र सम्मत दो  नियम बताये हैं------------- सद्यः मुक्ति  और क्रम मुक्ति  ,
सद्यः मुक्ति जीव के स्वप्रयत्न यानि कृत शुभ कर्म से मिल ही जाती है  क्रम मुक्ति में स्वकर्म के अलावा परिजन पुत्र आदि के सहयोग की अपेक्षा रहती है।  
ज्योतिष में व्यक्ति की जन्म कुण्ड ली का सविस्तार अवलोकन करने पर यह स्थिति अवश्य मालूम पड़ जाती है किन्तु  यह विषय इतना सरल नहीं है,  पीड़ित व्यक्ति पीड़ा से मुक्ति चाहता है  वह जिसे भी जानकार  समझता है पूछता है,  कुछ लोग  प्रेत या तुम्हारे पितर परेशान कर रहे हैं ऐसा कहकर सलाह दे देते हैं  
-गया जी में पिण्ड दान करो,
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गया कर आओ--------
 या गयाजी में छोड़ आओ, ------
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बात एक जैसी लगती है ----पर कुछ भेद  है
पैसे की ,साधन की, साथ जाने बालों की  ,सलाह कारों की  अब कोई कमी नहीं रही है सब व्यवस्था हो ही जाती है, कार्य बहुत महत्वपूर्ण है  श्राद्ध -ग्रंथ कहते हैं गया श्राद्ध सामर्थ्य वान पुत्र का प्रथम कर्तव्य है पितर उस के इस कार्य  को अधिकार पूर्वक ग्रहण कर प्रसन्न होते हैं, 
गया श्राद्ध करना ही चाहिये  एक वार नहीं अधिक वार भी यदि मौका मिले..,
गया विहार में है  ,वर्तमान में  शास्त्र नियमों की अवहेलना देखी सुनी जा ही रही है विषय विज्ञ जनों का मुंह बंद करने की कोशिश कानून या संविधान की आड़ लेकर विज्ञ जनों पर कतिपय धर्म वेत्ता हावी हो रहे हैं  वर्तमान में वेदार्थ का सदाशयी शुद्ध रूप छुपाकर मनमाना दुराशयी प्रयोग देखा जा रहा है  ऐसे में  वौद्धिक ग्लानि, मनो मालिन्य, धर्म ग्लानि  ,,सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा है  ।
मतलब की बात यह है  कि  कुछ लोग गया जाते हैं पंडों से मिलते हैं पितर कृपा से मुझे भी  दो वार जाने का सौभाग्य मिलाहै  पंडों से परिचय हुआ है आगे कुछ कहने योग्य बात लगती नहीं  है  विषय की बात करते हैं, ----बहां  केवल परंपरागत व्यवस्था अधिक  शास्त्र विहित  व्यवस्था  कम दिखाई देती है  ,ब्राह्मण के स्थान पर कार्यकर्ता प्रशिक्षित  तोता पाठी मिलते हैं " नंगे न रहना भूंखे न रहना  "हिन्दी में एक पाठ्यक्रम क्रम तैयार कराया जाता है वही श्राद्ध कर्ता से कहलवा कर कह देते हैं अब घर जाकर श्राद्ध, तर्पण ,ब्राह्मण भोजन कुछ मत करना  ।
जबकि  ऐसा  संबंधित शास्त्रों  में लिखा  ही  नहीं  है ,
श्राद्ध दो प्रकार से  किया जाता है  ------------पिण्डदान  युक्त श्राद्ध  और पिण्ड दान मुक्त श्राद्ध  ।

वारहमासी और कहीं कहीं  पटा करने के बाद  कोई भी  पिण्ड युक्त श्राद्ध करते  देखा पाया ही  नहीं  जाता  है  ,जब कि  प्रथम पक्ष है करना चाहिये  श्राद्ध अच्छे बुरे सभी अवसरों पर करने का विधान है  कहीं भी किसी भी अवसर पर पितरों की अवहेलना श्राद्ध का त्याग लिखा ही  नहीं  है  ,
गयाश्राद्धं अंतिम श्राद्धम्, गयान्तिंश्राद्धम्,,आदि वचन स्वयं द्वारा पिण्ड दान करने के विषय में है  ,
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गया में पिण्ड दान यानि दान किया जाना चाहिए पितरों को भार समझ कर पिण्ड छुड़ाना नहीं  ।
लोग समझ लेते हैं  चलो  अच्छा  रहेगा  पिण्ड छूट जायेगा , न पानी  देना  न ब्राह्मण भोजन कराना,  न अछूता  निकालना  सारे झंझट खतम  .----,जबकि ऐसा होता  नहीं  है  पिण्डदान एक  दान है  दान पवित्र कर्तव्य  है  जिसे  धर्म ग्रंथ कहते हैं जीवन रहते  बारबार  हजार वार करते रहना  चाहिये  वर्तमान मे दान की  परिभाषा ही  वदल ग ई है  दान सच्ची कमाई का  ह्रदय से, मन से,  मुक्त हस्त से, त्याग  दान है  ठेके पर भोजन तैयार करबाकर,भाढ़े पर  परोसगार भेजकर भंडार दे देना  शुचिता का विचार किये बिना लोक दिखावे के लिये, वीडियो बनाने केलिए अन्न, वस्त्र  ,फल का  त्याग दान  नहीं  बल्कि  हमारे द्वारा धनी बनने की होड़ में नैतिक- अनैतिक रीति से कमाये गये धन के बीच  भय की आशंका से  धन शुद्धि के विचार से  शास्त्र अनुशीलन का वहाना  है  यह दान नहीं कहा  जा  सकता  ।
यही बात पिण्ड दान में लागू होती है  ,
दान है तो एकबार  फंद क्यों  काटा  जाय  बारबार क्यों नहीं
,रही बात गया जी की  तो अच्छी उचित जगह पर की गई सहायता  उत्तम है  कहते हैं  भगवान गदाधर वहां नित्य विराजमान हैं  प्रथ्वी का ऐसा भौगोलिक केन्द्र है जहां बृह्माण्ड नायक का  पत्निरूप से  अति प्रेम पूर्ण समन्वित स्थान है  ,गदाधर ने  वाराह रूप लेकर ,लोभ अहंकार, रुपी हिरण्याक्ष से मुक्त कर वसुधा को वसु यानि हमारे पितरों को धारण करने योग्य बनाया  ,वसु जीवन रहते मनुष्य रूप से जीवन के बाद पितर रूप से  वसुधा से संवंध रखते हैं  ,जो वसु ओं को धारण करती है  वह वसुधा  है जो  धर्म को धारण कर वसुधा को धैर्य, बल, साहस, धारणा शक्ति प्रदान करते हैं वह  वसु हैं  ,यह विश्व ऐसा ही कुटुम्ब है  इसमें बिना किसी भेदभाव , शास्त्र धर्म का अनुपालन ही वसुधैव कुटुम्बकम् का पवित्र भाव है  ।

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