ज्योतिष समाधान

Saturday, 30 October 2021

लक्ष्मी पूजन सामग्री ऐब दीपावली पूजन मुहूर्त 9893946810


महा लक्ष्मीपूजन सामग्री लिस्ट 
अगर पण्डित जी से पूजन  करवांना  हो तो पण्डित जी से पूछ कर ही सामग्री आव्यशकतानुसार   कम या ज्यादा ला सकते है 
  
पाना लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां (बैठी हुई मूर्ति

१】हल्दी
२】चंदन
३】 कपूर 
४】केसर 
५】यज्ञोपवीत 5 
६】रोली (कुंकु)
७】चावल 
८】अबीर 
९】गुलाल, 
१०】बडी गोल सुपारी 
११】लौंग
१२】इलायची
१३】सिन्दूर
१४】यग्नोपवीत(जनेऊ)
१५】कलावा(मौली)
१६】माचिस
१७】इत्र
१८】रुई 
१९】बताशे
 २०】 बदाम 
२१】काजू
२२】पिस्ता
२३】चिरोंजी 
२४】मिश्री
२५】खीले 
२६】 परमल
२७ )गुलाव जल
२८】गंगाजल

पंचामृत के लिये
२९】शहद (मधु) 
३०】शकर
३१】 घृत (शुद्ध घी) 
३२】दही 
३३】दूध 

३४】ऋतुफल(गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि) 
३५】नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि)
 ३६】पूजा के लिये पैसे 
३७】फूल कमल के ऐबं अन्य फूल भी
३८】दूर्वा(दूवा या दरवा)
३९】शमी पत्र
४०】तुलसी दल 
४१】पंच पल्लव
४२】(बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते)  सम्भब हो तो

४३】 लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति) 
४४】गणेशजी की मूर्ति सरस्वती का चित्र 
४५】चाँदी का सिक्का  श्रद्धानुसार 
४६】लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र  श्र्द्धा अनुसार 
४७】सौभाग्य सामग्री 
48】दीपक  के लिये तेल और  घी 
४९】जल कलश (ताँबे और  मिट्टी के) 
५०】सफेद कपड़ा (आधा मीटर)
५१】लाल कपड़ा (आधा मीटर) 
५२】दीपक बड़े  2 और  छोटे दिपक परम्परा अनुसार
५३】 ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा) 
५४】ऐक लाल रंग की  कुबेर पोटली 
५५】सप्तधान्य
 (चावल, गेहूँ,मूँग, कन्ग्नी,मक्का, चना , उड़द,)

५६】लेखनी (कलम)  महाकाली पूजन के लिये
५७】बही-खाता, सरस्वती पूजन के लिये
५८】स्याही की दवात 
५९】तुला (तराजू)  अगर संभव हो तो अगर व्य्पारि है तो
६०】सरस्वती पूजा के लिये ऐक डायरी 

६१】 कुबेर पोटली (बसनी)मे रखने का सामान 
हल्दी की गाँठ, खड़ा धनिया , पीली कोडी,गोमती चक्र, रक्त गुंजा वीज, कमल गट्टा,  मजीठ , पीली सरसो, आवला फ़ल, काली हल्दी, सिन्दूर , श्रंगेरि, दूर्वा ,आदि


लक्ष्मी पूजा को 
प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिये, 
जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है 
और लगभग 2 घण्टे 24 मिनट तक रहता है।
कुछ स्त्रोत लक्ष्मी पूजा के लिए महानिशिता काल का सुझाव भी देते हैं। 
हमारे विचार में महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानते हैं, 
के लिए अधिक उपयुक्त होता है। 
सामान्य लोगों के लिए प्रदोष काल मुहूर्त ही उपयुक्त है।
लक्ष्मी पूजा को करने के लिए हम चौघड़िया मुहूर्त को देखने की सलाह नहीं देते हैं,
क्यूँकि वे मुहूर्त यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं। लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान ही होता है,
जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है। 
ऐसा माना जाता है, कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये 
तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है। 
इसीलिए लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। 
वृषभ लग्न को स्थिर माना जाता है
और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होते है 

लक्ष्मी पूजा के लिये स्थिर लग्न 

 प्रात:
वृश्चिक लग्न :07:29 से 09 :46 तक 
मंदिर, हॉस्पिटल, होटल्स, स्कूल, कॉलेज में पूजा होती है. राजनैतिक, टीवी फ़िल्मी कलाकार वृश्चिक लग्न में ही लक्ष्मी पूजा करते है.

व्यापारियों के लिए शुभ मुहूर्त

व्यापारिक प्रतिष्ठानों में व्यापार में प्रयोग किए जाने वाले कल, पुर्जे, गद्दी, लक्ष्मी कुबेरादि सरस्वती पूजन हेतु शुभ मुहूर्त 
प्रालेपन गादी स्थापना-स्याही भरना-कलम दवात सबारने के लिये  ब्र्श्चीक लग्न मे कर सकते है 
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कुम्भ लग्न :दोपहार 01:36 से 3:07 तक 

यह दिवाली के दिन दोपहर का समय होता है. जिन पर शनि की दशा ख़राब चल रही होती है, जिनको व्यापार में बड़ी हानि होती है. उनको इस लग्न मे पूजा करना चाहीए
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वृषभ लग्न  :शाम:06:15 से रात्रि 08:13 तक

दीपावली के दिन शाम का समय होता है. यह लक्ष्मी पूजा का सबसे अच्छा समय होता है.
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सिंह लग्न – मध्य रात्रि 12:44 से 2:44 तक 

दिवाली की मध्य रात्रि का समय होता है. 
संत, तांत्रिक लोग इस दौरान लक्ष्मी पूजा करते है.
महानिशिता काल में तांत्रिक और पंडित लोग पूजा करते है, 
ये वे लोग होते है, जिन्हें लक्ष्मी पूजा के बारे में अच्छे से जानकारी होती है.

 लक्ष्मी पूजा के लिए हम यथार्थ समय उपलब्ध कराते हैं।
 हमारे दर्शाये गए मुहूर्त के समय में
 अमावस्या, प्रदोष काल और स्थिर लग्न सम्मिलित होते हैं। 
हम स्थान के अनुसार मुहूर्त उपलब्ध कराते हैं, इसीलिए आपको लक्ष्मी पूजा का शुभ समय देखने से पहले अपने शहर का चयन कर लेना चाहिये।
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04 नबम्बर 2021

व्यापारियों के चोघड़िया मूहूर्त

दिन का चोघड़िया मुहूर्त 

शुभ=प्रात:        06:14 - 08:53=शुभ
चर =दोपहर       10:59 से- 12:21 =शुभ
अभिजित =दोपहर 11:59 से 12:43 
लाभ=दोपहार   12:21=से - 01:30 =शुभ
शुभ=शाम =4:28 से 05:50 =शुभ
गौ धूली बेला ऐबं प्रदोष बेला =05:50 से 08:27 तक 
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अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 
04 नवम्बर  20201को
प्रात:  06:03 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त -
 05 नवम्बर  2021 को 
रात्रि02:44  बजे

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यह मुहूर्त निर्णय सागर पंचांग द्वारा  तैयार किया गया है 
हमारे यहा दीपावली पूजन ऐबं लक्ष्मी जी के अर्चन के लिये  सम्पर्क करे 

सम्पर्क सूत्र 
Gurudev
 bhubneshwar 
Parnkuti guna 
9893946810/ 9893983084 

Friday, 29 October 2021

सन्तान प्राप्ति का अचूक उपाय शिवलिंगी का सेवन लाभदायक

सन्तान प्राप्ति मे शिवलिंगी का सेवन लाभदायक 

कई महात्मा लोग स्त्री या पुरुष को संतान की प्राप्ति के लिए मासिक धर्म के 4 दिन बाद से 1 माह तक सुबह-शाम शिवलिंगी के बीज एक ग्राम की मात्रा में खाली पेट दूध के साथ सेवन कराते हैं।

 पुत्र की कामना है, उन्हें बछड़ा वाली गाय के दूध के साथ सेवन करना अच्छा होता है। जिन्हें स्त्री संतान यानी लड़की प्राप्ति की कामना है उन्हें बछड़ी वाली गाय के दूध के साथ इसका सेवन करना होता है।

जिन महिलाओं को गर्भ न ठहरता हो अर्थात बार-बार गर्भ गिर जाता हो, वे मासिक धर्म के बाद शिवलिंगी के एक बीज से शुरुआत करके प्रत्येक दिन एक बीज बढ़ाते हुए 21 दिन तक सेवन करें। इससे गर्भ ठहर जाता है एवं गर्भ नहीं गिरता।

शिवलिंगी बीज आधा ग्राम तथा पुत्रजीवक बीज एक ग्राम दोनों को मिला लें। इसे पीसकर बराबर भाग में मिश्री मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से बांझपन की समस्या में लाभ होता है तथा स्त्री गर्भ-धारण के योग्य बन जाती है। (अनेक बार चिकित्सकीय परीक्षण सही होने पर भी गर्भ धारण नहीं हो पाता; उनके लिए यह एक सैंकड़ों बार परीक्षण किया गया प्रयोग है)।


Gurudev 

Bhubneshwar

Parnkuti guna

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नरकरुप चतुर्दशी अरुणोदय स्नान अभ्यंग स्नान मुहूर्त

नरक रुप चतुर्दशी ओर अरुणोदय  स्नान अभ्यंग स्नान मुहूर्त
 चतुर्दशी के दिन शाम के समय दीये जलाए जाते हैं। 
इस दिन इस दिन 6 देवी देवताओं
 यमराज, श्री कृष्ण, काली माता, भगवान शिव, हनुमान जी और वामन की पूजा का विधान है।
 कर अकाल मृत्यु से मुक्ति और बेहतर स्वास्थ्य की कामना की जाती है। 
इसके अलावा नरक चौदस के दिन प्रात: काल सूर्य उदय से पहले 
शरीर पर तिल्ली का तेल मलकर और अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियां पानी में डालकर स्नान करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है 
और मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

नरक चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम

1.  कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्र उदय या अरुणोदय (सूर्य उदय से सामान्यत: 1 घंटे 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।

 हालांकि अरुणोदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है।

2.  यदि दोनों दिन चतुर्दशी तिथि अरुणोदय अथवा चंद्र उदय का स्पर्श करती है तो

 नरक चतुर्दशी पहले दिन मनाने का विधान है। 

इसके अलावा अगर चतुर्दशी तिथि अरुणोदय या चंद्र उदय का स्पर्श नहीं करती है तो भी नरक चतुर्दशी पहले ही दिन मनानी चाहिए।


3.  नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले चंद्र उदय या फिर अरुणोदय होने पर तेल अभ्यंग( मालिश) और यम तर्पण करने की परंपरा है।

नरक चतुर्दशी पूजन विधि


1.  नरक चतुर्दशी के दिन प्रात:काल सूर्य उदय से पहले स्नान करने का महत्व है।

 इस दौरान तिल के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए, उसके बाद अपामार्ग यानि चिरचिरा (औधषीय पौधा) को सिर के ऊपर से चारों ओर 3 बार घुमाए।


2.  नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है।

 नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है।

 मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
3.  स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें।

 ऐसा करने से मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।


4.  इस दिन यमराज के निमित्त तेल का दीया घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर लगाएं।


5.  नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। 

मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं।


6.  नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं इसलिए रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए ऐसा करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है।


7.  इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। 

इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, 

इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए 

Gurudev 

Bhubneshwar 

Parnkuti guna 

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Tuesday, 28 September 2021

चोरी की दिशा जानना ऐबं नाम जानना 9893946810

आइये जानते हैं किस नक्षत्र का क्या परिणाम होता है:

1. रोहिणी, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और रेवती को ज्योतिष में अंध नक्षत्र माना गया है। इन नक्षत्रों में चोरी होने वाली वस्तु पूर्व दिशा में जाती है और जल्दी मिल जाती है। इन नक्षत्रों में यदि कोई वस्तु चोरी हुई है तो वह अधिक दूर नहीं जाती है उसे आसपास ही तलाशना चाहिए।

2. मृगशिरा, अश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा, अश्विनी ये मंद नक्षत्र कहे गए हैं। इन नक्षत्रों में यदि कोई वस्तु चोरी होती है तो वह तीन दिन में मिलने की संभावना रहती है। इन नक्षत्रों में गई वस्तु दक्षिण दिशा में प्राप्त होती है। साथ ही वह वस्तु रसोई, अग्नि या जल के स्थान पर छुपाई होती है।

3. आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजीत, पूर्वाभाद्रपद, भरणी ये मध्य लोचन नक्षत्र होते हैं। इन नक्षत्रों में चोरी गई वस्तुएं पश्चिम दिशा में मिल जाती हैं। वस्तु के संबंध में जानकारी 64 दिनों के भीतर मिलने की संभावना रहती है। यदि 64 दिनों में न मिले तो फिर कभी नहीं मिलती। इस स्थिति में वस्तु के अत्यधिक दूर होने की जानकारी भी मिल जाती है, लेकिन मिलने में संशय रहता है।

4. पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद, कृतिका को सुलोचन नक्षत्र कहा गया है। इनमें गई वस्तु कभी दोबारा नहीं मिलती। वस्तु उत्तर दिशा में जाती है, लेकिन पता नहीं लगा पाता कि कहां रखी गई है या आप कहां रखकर भूल गए हैं।

भद्रा, व्यतिपात और अमावस्या में गया धन प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न: लग्न के अनुसार भी चोरी गई वस्तु के संबंध में विचार किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति चोरी गई वस्तु के संबंध में जानने के लिए आए और प्रश्न करे तो जिस समय वह प्रश्न करे उस समय की लग्न कुंडली बना लेना चाहिए। या जिस समय वस्तु चोरी हुई है उस समय गोचर में जो लग्न चल रहा था उसके अनुसार फल कथन किया जाता है।

चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है

1. मेष लग्न मेष वस्तु चोरी हुई हो प्रश्नकाल में मेष लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में होती है। चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में दो या तीन अक्षर होते है2. वृषभ लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होती है और चोर क्षत्रिय वर्ण का होता है। उसके नाम में आदि अक्षर म रहता है तथा नाम चार अक्षरों वाला होता है।

2. वृषभ लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होती है और चोर क्षत्रिय वर्ण का होता है। उसके नाम में आदि अक्षर म रहता है तथा नाम चार अक्षरों वाला होता है।

3. मिथुन लग्न में चोरी गई वस्तु आग्नेय कोण में होती है। चोरी करने वाला व्यक्ति वैश्य वर्ण का होता है और उसका नाम क ककार से प्रारंभ होता है। नाम में तीन अक्षर होते हैं।


4. कर्क लग्न में वस्तु चोरी होने पर दक्षिण दिशा में मिलती है और चोरी करने वाला शूद्र होता है। उसका नाम त अक्षर से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं।

वस्तु नैऋत्य कोण में होती है

5. सिंह लग्न में चोरी हो तो वस्तु नैऋत्य कोण में होती है। चोरी करने वाला नौकर, सेवक होता है। चोर का नाम न से प्रारंभ होता है और नाम तीन या चार अक्षरों का होता है।

6. प्रश्नकाल या चोरी के समय कन्या लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम म से प्रारंभ होता है। नाम में कई वर्ण हो सकते हैं।

7. चोरी के समय तुला लग्न हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में जानना चाहिए। चोरी करने वाला पुत्र, मित्र, भाई या अन्य कोई संबंधी होता है। इसका नाम म से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं। तुला लग्न में गई वस्तु बड़ी कठिनाई से प्राप्त होती है।

वस्तु नैऋत्य कोण में होती है

8. वृश्चिक लग्न में चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोर घर का नौकर ही होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम चार अक्षरों वाला होता है। चोरी करने वाला उत्तम वर्ण का होता है।

9. प्रश्नकाल या चोरी के समय धनु लग्न हो तो चोरी गई वस्तु वायव्य कोण में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में चार वर्ण पाए जाते हैं।

10. चोरी के समय मकर लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर दिशा में समझनी चाहिए। चोरी करने वाला वैश्य जाति का होता है। नाम चार अक्षरों का होता है और वह स से प्रारंभ होता है।

11. प्रश्नकाल या चोरी के समय कुंभ लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में होती है। इस प्रश्न लग्न के अनुसार चोरी करने वाला व्यक्ति कोई मनुष्य नहीं होता बल्कि चूहों या अन्य जानवरों के द्वारा इधर-उधर कर दी जाती है।

12. मीन लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु ईशान कोण में होती है। चोरी करने वाला निम्न जाति का व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति चोरी करके वस्तु को जमीन में छुपा देता है। ऐसे चोर का नाम व अक्षर से प्रारंभ होता है और उसके नाम में तीन अक्षर रहते हैं। चोर कोई परिचित महिला या नौकरानी भी हो सकती है।

Monday, 20 September 2021

श्राध्द कैसे करे 9893946810



पितृ पक्ष श्राद्ध तर्पण नियम
गरुड़ पुराण के अनुसार,
पितृ पक्ष में जिनकी माता या पिता अथवा दोनों इस धरती से विदा हो चुके हैं उन्हें आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से आश्विन अमावस्या तक जल, तिल, फूल से पितरों का तर्पण करना चाहिए।
जिस तिथि को माता-पिता की मृत्यु हुई हो उस दिन उनके नाम से अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए।

तर्पण पिता को जल देने का मंत्र
अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें,

गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः

इस मंत्र को बोलकर गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को जलांजलि दें।

जल देते समय ध्यान करें कि वसु रूप में मेरे पिता जल ग्रहण करके तृप्त हों।
इसके बाद पितामह को जल जल दें। 

पितामह को जल जल दें।

तर्पण पितामह को जल देने का मंत्र

अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें,

गोत्रे अस्मत्पितामह (पितामह का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

इस मंत्र से पितामह को भी 3 बार जल दें।


तर्पण माता को जल देने का मंत्र

जिनकी माता इस संसार के विदा हो चुकी हैं उन्हें माता को भी जल देना चाहिए।

माता को जल देने का मंत्र पिता और पितामह से अलग होता है।

इन्हें जल देने का नियम भी अलग है।

चूंकि माता का ऋण सबसे बड़ा माना गया है इसलिए इन्हें पिता से अधिक बार जल दिया जाता है।

माता को जल देने का मंत्रः-

(गोत्र का नाम लें)
गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।

दादी के नाम पर तर्पण

(गोत्र का नाम लें)

गोत्रे पितामां (दादी का नाम)

देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।

इस मंत्र से जितनी बार माता को जल दिया है दादी को भी जल दें।

श्राद्ध में श्रद्धा का महत्व सबसे अधिक है इसलिए जल देते समय मन में माता-पिता और पितरों के प्रति श्रद्धा भाव जरूर रखें।

श्रद्धा पूर्वक दिया गया अन्न जल ही पितर ग्रहण करते हैं। अगर श्राद्ध भाव ना हो तो पितर उसे ग्रहण नहीं करते हैं।


इन पांच अंशों का अर्पण करने को पंचबली कहा जाता है.

इन पांच जीवों का ही चुनाव क्यों किया गया है

कुत्ता जल तत्व का प्रतीक है ,
चींटी अग्नि तत्व का,
कौवा वायु तत्व का,
गाय पृथ्वी तत्व का
और देवता आकाश तत्व का प्रतीक है.
इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं.
केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं. इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदाई होती है.
मात्र गाय को चारा खिलाने और सेवा करने से पितरों को तृप्ति मिलती है
साथ ही श्राद्ध कर्म संपूर्ण होता है


पंचबली

1- गौ बली अर्थात- पहला भोग पवित्रता की प्रतीक गाय माता को खिलाएं।
मंत्र
ॐ सौरभेयः सर्वहिताः, पवित्राः पुण्यराशयः।।
प्रतिगृह्णन्तु में ग्रासं, गावस्त्रैलोक्यमातरः॥
इदं गोभ्यः इदं न मम्।।

2- कुक्कुर बली अर्थात- दूसरा भोग कत्तर्व्यष्ठा के प्रतीक श्वान (कुत्ता) को खिलाएं।
मंत्र
ॐ द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ, वैवस्वतकुलोद्भवौ ।।
ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि, स्यातामेतावहिंसकौ ॥
इदं श्वभ्यां इदं न मम ॥


3- काक बली अर्थात- तीसरा भोग मलीनता निवारक काक (कौआ) को खिलाएं।
मंत्र
ॐ ऐन्द्रवारुणवायव्या, याम्या वै नैऋर्तास्तथा ।।
वायसाः प्रतिगृह्णन्तु, भुमौ पिण्डं मयोज्झतम् ।।
इदं वायसेभ्यः इदं न मम ॥

4- देव बली अर्थात- चौथा भोग देवत्व संवधर्क शक्तियों के निमित्त- (यह भोग किसी छोटी कन्या या गाय माता को खिलाया जा सकता है)
मंत्र
ॐ देवाः मनुष्याः पशवो वयांसि, सिद्धाः सयक्षोरगदैत्यसंघाः।।
प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता, ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम्॥
इदं अन्नं देवादिभ्यः इदं न मम्।।

5- पिपीलिकादि बली अर्थात- पांचवां भोग श्रमनिष्ठा एवं सामूहिकता की प्रतीक चींटियों को खिलाएं।
मंत्र
ॐ पिपीलिकाः कीटपतंगकाद्याः, बुभुक्षिताः कमर्निबन्धबद्धाः।।
तेषां हि तृप्त्यथर्मिदं मयान्नं, तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु॥
इदं अन्नं पिपीलिकादिभ्यः इदं न मम।।
 
Gurudev 
Bhubneshwar 
Parnkuti  guna  
9893946810

Wednesday, 28 July 2021

महामृत्युन्जय अनुष्ठान पूजा सामग्री पर्णकुटी गुना 9893946810

(पूजन समग्री कम  और  ज्यादा कर  सकते है )
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1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------------100 ग्राम
३】अगरबत्ती-------------------     3पैकिट
४】कपूर-------------------------   50 ग्राम
५】केसर-------------------------   1डिव्वि
६】चंदन पेस्ट ------------------ 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत -----------------   1 मूठा
८】चावल------------------------ 10किलो
९】अबीर-------------------------50 ग्राम
१०】गुलाल, -----------------10 0ग्राम
११) कच्चा सूत =====2 गोले
१२】सिंदूर --------------------100 ग्राम
१३】रोली, --------------------100ग्राम
१४】सुपारी, ( बड़ी)--------  200 ग्राम
१५】नारियल -----------------  21 नग्
१६】सरसो----------------------50 ग्राम
१७】पंच मेवा------------------100 ग्राम 
१८】शहद (मधु)--------------- 50 ग्राम
१९】शकर-----------------------0 1किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)------------  02किलो
२१】इलायची (छोटी)-----------10ग्राम
२२】लौंग मौली-------------------10ग्राम
२३】इत्र की शीशी----------------1 नग्
२४】रंग लाल----------------------20ग्राम
२५】रंग काला --------------------20ग्राम
२६】रंग हरा -----------------------20ग्राम
२७】रंग पिला ---------------------20ग्राम
२८】चंदन मूठा--------------------
२९】धुप बत्ती ---------------------2 पैकिट
(30)आवला 50 ग्राम
(31)दाख 50 ग्राम
(32)मूँग बडी 100 ग्राम
(33)पापाड़थेली 1 नग
34)तेल तिली का =2 किलो
35)गुलाब जल 100 ग्राम
36)खड़ी हल्दी 100ग्राम 
 37) माचिस पेकिट 1
38)नारियल गोले 2
=======///=====
ब्राहाम्णो के लिये 
छोटे साबुन नहाने के =8
कपडा धोने के =8
सर्फ कपडे धोने के लिये =1 किलो
मंजन === 100 ग्राम 
तेल शीशी ====100 ग्राम




   बस्त्र
१】सफेद कपड़ा 2मीटर सूती
२】लाल कपड़ा 2मीटर सूती
(3)पीला कपड़ा 2मीटर सूती
४】हरा कपड़ा 1मीटर सूती
(5) काला कपडा 1मीटर सूती


दीपक 10 मिट्टी के
मिट्टी के कलश 5 नग
मिट्टी के खप्पर 4
नागफनी कीलें 4 नग
रुई मेडिकल वाली 200 ग्राम
भस्म
ध्वजा पच रँगा

सप्तमृत्तिका
1】 हाथी के स्थान की मिट्टि-----------50ग्राम
२】घोड़ा बांदने के स्थान की मिटटी--50ग्राम
३】बॉबी की मिटटी---------------------50ग्राम
४】दीमक की मिटटी-------------------50ग्राम
५】नदी संगम की मिटटी---------------50ग्राम
६】तालाब की मिटटी-------------------50ग्राम
७】गौ शाला की मिटटी-----------------50ग्राम
राज द्वार की मिटटी-----------------------50ग्राम
============================
पंचगव्य
१】 गाय का गोबर -----------------50 ग्राम
२】गौ मूत्र-----------------------------50ग्राम
३】गौ घृत------------------------------50ग्राम
4】गाय दूध----------------------------50ग्राम
५】गाय का दही ---------------------50ग्राम
=============================
सप्त धान्य-कुलबजन--------100ग्राम
१】 जौ-----------
२】गेहूँ-
३】चावल-
४】तिल-
५】काँगनी-
६】उड़द-
७】मूँग
=============================
प्रतिदिन की सामग्री
कुशा 
1】दूर्वा
2】पुष्प कई प्रकार के 
3】गंगाजल
4】पान के पत्ते
5) दूध
6) दही
7) फ़ल
8) माला
9) बिल्वपत्र
10) शमीपत्र
11)तुलसी दल
मिठाई 20नग रोज
दोना पे 5नग


पंच पल्लव(पत्तो के गुच्छ)
१】बड़, का 1 =गुच्छा
२】 गूलर,1=गुच्छा
३】पीपल,1=गुच्छा
४】आम 30= गुच्छा
५】पाकर के पत्ते)गुच्छा
=============================
अर्पित करने हेतु पुरुष बस्त्र
मता जी को अर्पित करने हेतु  
सौ भाग्यवस्त्र  2 जोड़

बर्तन
(1)जल कलश तांबे के 7
2) पूजा की थाली 1
3)कटोरी छोटी 11
4)ब्रह्मा पात्र के लिये छोटा कमण्डल
5) मिट्टी पार्थिव बनाने के लिये 7 कट्टे
7 कंडे का चूरा ज्वारे बोने के लिये

हवन सामग्री
जीतने सदस्य हवन पर बेठेगे उसी हिसाब से मात्रा डाली जायेगी
तिली से आधे चावल चावल से आधे जौ

हवन के लिये समिधा 30 किलो
खैर की अथवा छोले की

=========नवग्रह समिधा=======
१】आक
२】 छोला
३】खैर 
४】आंधी झाड़ा
५】पीपल
६】उमर(गूलर)
७】शमी
८】दूर्वा
९】कुशा

Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti guna
9893946810

Saturday, 22 May 2021

यज्ञ शाला के लिए

यज्ञ शाला बनाने के लिये 

(1)बल्ली 10 फिट की  40 नग
(2)बल्ली 12 फिट की 08
(3)सुतली  या नट  40 छ इन्च
(4)ईंटे  3500
(5) मिट्टी पुरने के लिये 10 ट्राली 
(6)मिट्टी छाबने  के लिये 1 ट्राली
(7) भूसा  25 बोरा 
(8)कलई  लाईन खीचने के लिये 
(9)  छाया करने के लिये 2 ट्राली घास
(10)बांस   20  =24 फिट का ऐक 
(11) तोरण के लिये पीपल पाकर गूलर

1)अन्नादी वास
(2)गन्धादिवास
(3)पुष्पादी वास
(4)धान्यादी वास
(5)फलादिवास
(6)ओषध्यादिवास
(7)घ्रतादि वास
(8)धुपादिवास
(9)बस्त्रादिवास
(10)फलादिवास
(11)मिष्टानादिवास
(12)श्य्यादिवास

महा स्नान
(1)मृतीका
(2)पंच पल्लव
(3)गौ मूत्र 
(4)गौमय 
(5)गन्धोदक
(6)दर्भोदक
(7)नारिकेलोदक
(8)क्षारोदक
(9)दूध
(11)स्वादुदक
(12)दधि 
(13)सुरोदक
(14)इक्षुरश
(15)घृत
(16)भस्म
(17)गौ घृत
(18)मधु
(19)शर्करल 
(20)पंचामृत 
(21)गन्ध
(22)पंच पल्लव
(23)सर्बोषधि 
(24)श्वेत पुष्प
(25)फलोदक
(26)अष्ट फ़ल
(27)स्वर्ण
(28)गौ श्र्ंगोदक
(29)सप्त धान्य 
(30)शह्स्त्र् छिद्र कलश 
(31)दिव्य औषधी 
(33)नवरत्न
(34)तीर्थोदक
(35)कदंब पत्र 
(36)शाल्मली पत्र
(37)जम्बू  पत्र 
(38)अशोकपत्र
(39)पीपलपत्र
(40)आम पत्र
(41)बट
(42)विल्व
(43)नाग पत्र
(44)पलाश पत्र

Monday, 10 May 2021

प्रेत बाधा निवारक मन्त्र


प्रेत बाधा निवारक मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच शाकिनी डाकिनी यक्षणी पूतना मारी महामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम् क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर हुं फट् स्वाहा। इस हनुमान मंत्र का पांच बार जाप करने से कभी भूत निकट नहीं आ सकते।

आप ऊपरी बाधा हटाने के उपाय के अंतर्गत ये उपाय करना न भूलें| काली सरसों, काले बकरे का दायाँ सींग, सर्प की केंचुली, गुग्गुल, नीम के पत्ते, अपामार्ग के पत्ते और बच को लेकर अच्छे से कूट पीस लें| इस चूर्ण को जलते कंडे पर डालकर धूनी करें और पीड़ित व्यक्ति को धूनी दें| ऐसा करने से प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है|

| आप 5 ग्राम कपूर, 5 ग्राम काली मिर्च और 5 ग्राम हींग ले लें| इसको पीसकर इसका पाउडर बनायें और फिर इसकी छोटी छोटी गोलियां बना लें| इन गोलियों को 2 बराबर भागों में बाँट दें और फिर एक हिस्से को सुबह और दूसरे को शाम को घर में जलाएं|

शनिवार के दिन इस प्रयोग को करें| इस दिन काले धतूरे की जड़ लेकर आयें और पीड़ित की भुजा पर बांध दें| ऐसा करने से भूत, प्रेत और पिशाच उसका पीछा करना छोड़ देंगे| यदि पीड़ित स्त्री है तो जड़ को उसकी बायीं भुजा में बांधना चाहिए, यदि वह पुरुष है तो उसे उसकी दाहिनी भुजा में बांधना चाहिए

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।

तू है वीर बड़ा हनुमान |
लाल लंगोटी मुख में पान |
ऐर भगावै |
बैर भगावै |
अमुक में शक्ति जगावै |
रहे इसकी काया दुर्बल |
तो माता अंजनी की आन |
दुहाई गौरा पार्वती की |
दुहाई राम की |
दुहाई सीता की |
ले इसके पिण्ड की खबर |
ना रहे इसमें कोई कसर |

यदि कोई अकारण ही दुर्बल होता जा रहा हो और कारण समझ में नहीं आये तो इस मंत्र का 7 बार जाप करते हुए प्रत्येक मंत्र के बाद रोगी पर फूँक लगाए और यही रोगी स्वयं करता है तो रोगी खुद को फूक लगाए इसके साथ ही रोगी को हनुमान जी के मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा से उनके चरणों का सिन्दूर लाकर तिलक भी करें | रोगी किसी भी रोग से पीड़ित हो उसे स्वास्थ्य लाभ अवश्य मिलेगा ||

Gurudev 
Bhubneshwar 
Parnkuti  guna 
9893946810

Thursday, 22 April 2021

भूमी पूजन सामग्री ऐबं शिलान्यास सामग्री पर्णकुटी गुना


1=रोली 

2=चावल=500 ग्राम
3=गोल सुपारी =50 ग्राम
4=आँटि(कलावा) 50 ग्राम अथवा 2 गोले
5=नारियल  =5 नग 
6=जनेऊ =5नग
7=लौंग=10ग्राम
8=इलायची=10 ग्राम
9=सिन्दूर= 50 ग्राम
10=इत्र= 1 शीशी चंदन
11=सरसो = 50 ग्राम
12=गाय का घी 100 ग्राम
13=रुई = 20 ग्राम
14=माचिस=1 नग 
15=शहद = 50 ग्राम
16=अगरवात्ती
17=धुप बत्ती
18=शकर =100 ग्राम
19=गाय का गोवर =2 किलो
20=गाय का मूत्र=50 ग्राम
21=गाय का दही =50
22=गाय का  दूध =100 ग्राम
23= मिठाई =अनुमानित
24=आम के पत्ते
25=पान के पत्ते =11 
26=दूर्वा 
27=ऋतु फ़ल=अनुमानित
28=दोना=1 गड्डी 
29=
30=
31=लाल कपडा  =आधा मीटर 
32=सफेद कपडा =आधा मीटर 

घर से ले जाने वाला समान 
चटाई बैठने को 
गेहू =500 ग्राम
दिपक
पूजा की थाली
लोटा पूजा के लिये 
गंगा जल
आटा  हल्दी चोक पुरने  के लिये 
गठ्जोडा   
आसन 
पेपर
पाटा लकड़ी का 

कलश के अंदर चांदी के सर्प का जोड़ा, 
लोहे की चार नाग फ़नि कील 
कछुआ 
पंच रत्न
हल्दी की पांच गांठे, 
पान के 11 पत्तें, 
तुलसी की 35 पत्तियों, 
मिट्टी के 11 दीपक, 
तगाडसि /2
फड़ुआ  /2
गेंती /1  
पांच ईंटे  शिलान्यास के लिये 
पांच  कलश छोटे  मिट्टी के  
अथवा ताबे के छोटे कलश 
 
Gurudev 
Bhubneshwar 
Parnkuti  gunaa 
9893946810

Sunday, 18 April 2021

किस उम्र मे होगा आपका भाग्य उदय

 यह प्रश्न अक्सर पूछा जाता है. 

ग्रह फल के अनुसार बृहस्पति सबसे जल्दी किस्मत का कनेक्शन बनाते हैं. 

देवगुरु बृहस्पति 16 से 22 वर्ष की उम्र तक कुंडली में अच्छे होने पर फल देने लग जाते हैं. 

उच्च का योगकारक गुरु व्यक्ति का नवयुवा अवस्था में ही भाग्योदय करा देता है. 

ऐसे लोग समाज में बड़ा नाम और दाम कमाते हैं. दांपत्य जीवन की शुरुआत भी ऐसे लोगों की जल्द हो जाती है यानी शादी जल्दी हो जाती है.


न्याय के देवता शनिदेव 

पूर्ण अनुभव प्राप्त होने पर भाग्योदय का मार्ग प्रशस्त करते हैं. 

शनिदेव 36 से 42 वर्ष की उम्र में भाग्य उदित करते हैं. 

शनिदेव की प्रबलता और शुभता रखने वाले लोग 36 वर्ष की उम्र के बाद सफलता की सीढ़ियां तेजी से चढ़ते हैं.

 महत्वपूर्ण बात यह है कि शनिदेव की कृपा से बनी भाग्यकारक स्थिति ताउम्र बनी रहती है. 

कई बार तो व्यक्ति के कार्याें की छाप उसके बाद भी बनी रहती है.


शनिदेव के बाद सबसे देरी भाग्योदय देने वाले ग्रह राहु और केतु हैं. 

राहु 42 के बाद भाग्य की राह बनाते हैं. 

केतु राहु से भी देरी से भाग्योदय करते हैं.

 केतु 48 से 54 वर्ष की उम्र में भाग्यफल देते हैं. 

गुरु के बाद सबसे जल्दी फल सूर्यदेव देते हैं. 

सूर्यदेव 22 से 24 वर्ष के बीच भाग्योदय करते हैं.


चंद्रमा 

24 से 25 वर्ष के बीच भाग्योदय कराते हैं. 

शुक्रदेव

 25 से 28 के बीच भाग्य को प्रशस्त करते हैं.

 28 से 32 वर्ष के मध्य मंगल भाग्यकारक होते हैं. 

बुधदेव 32 से 36 वर्ष की उम्र में भाग्योदय कराते हैं.

जिस जातक की कुंडली में जो ग्रह बलवान और योगकारक होता है उससे संबंधित वर्षाें में व्यक्ति अच्छी उन्नति करता है.


Sunday, 11 April 2021

नक्षत्रो के स्वामी ग्रह

 राशि की तरह 27 नक्षत्रों के भी स्वामी ग्रह होते हैं जो इस प्रकार है 
अश्वनी, मघा और मूल नक्षत्रों के स्वामी केतु है। भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा का शुक्र, 
कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी और उत्तराषाढ़ा का सूर्य, रोहिणी, हस्त और श्रवण का चंद्र,
 मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा का मंगल, 
आद्र्रा, स्वाती और शतभिषा का राहु, 
पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वा भाद्रपद का गुरु, 
पुष्य, अनुराधा और उत्तरा भाद्रपद का शनि 
और आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती का बुध
 स्वामी ग्रह होता है। 
इन सभी 27 नक्षत्रों को आगे फिर चार चरणों में विभक्त किया गया है

Saturday, 10 April 2021

किस भाव से क्या देखे कुंडली परिक्षण

कुंडली के सभी बारह भावों से जीवन के विभिन्न विषयों की जानकारी ली जा सकती है। इसका विस्तार में वर्णन निम्नलिखित हैं-

प्रथम भाव (लग्न भाव)


प्रथम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-

देह, तनु, शरीर रचना, व्यक्तित्व, चेहरा, स्वास्थ्य, चरित्र, स्वभाव, बुद्धि, आयु, सौभाग्य, सम्मान, प्रतिष्ठा और समृद्धि।

द्वितीय भाव (धन / कुतुम्ब भाव)


संपत्ति, परिवार, वाणी, दायीं आंख, नाखून, जिह्वा, नासिका, दांत, उद्देश्य, भोजन, कल्पना, अवलोकन, आभूषण, कीमती पत्थर, अप्राकृतिक मैथुन, ठगना और जीवनसाथियों के बीच हिंसा।

तृतीय भाव (पराक्रम / सहोदर भाव)


छोटे भाई और बहन, सहोदर भाई बहन, संबंधी, रिश्ते, पड़ोसी, साहस, निश्चितता, हमुरी, सीना, दाएं कान, हाथ, लघु यात्राएं, नाड़ी तंत्र, संचरण, संप्रेषण, लेखन, पुस्तक लेखन, समाचार पत्रों की सूचना, संवाद इत्यादि लिखें, शिक्षा, बुद्धि इत्यादि।

चतुर्थ भाव (सुख / मातृ भाव)


माता, संबंधी, वाहन, घरेलू वातावरण, सौन्दर्य, भूमि, आवास, शिक्षा, जमीन-जायदाद, वंशावली प्रकृति, जीवन का उत्तरार्ध भाग, छिपा हुआ, गुप्त प्रेम संबंध, सीना, वैवाहिक जीवन में ससुराल पक्ष और परिवार के हस्तक्षेप, गहने, कपड़े।

पंचम भाव (संतान / शिक्षा भाव)


संतान, बुद्धि, प्रसिद्धि, श्रेणी, उदर, प्रेम संबंध, आनंद, मनोरंजन, सट्टा, पूर्व जन्म, आत्मा, जीवन स्तर, पद, प्रतिष्ठा, कलात्मकता, हृदय, पीठ, खेल में निपुणता, प्रतियोगिता में सफलता।

षष्ठ भाव (रिपु भाव)


रोग, ऋण, विवाद, अभाव, अंक, मामा, मामी, शत्रु, सेवा, भोजन, कपड़े, चोरी, बदनामी, पालतू पशु, सरकारी कर्मचारी, मनोहर कर्मचारी, कमर

सप्तम भाव (कलत्र भाव)


पति / पत्नी का व्यक्तित्व, जीवनसाथी के साथ संबंध, इच्छाएं, काम शक्ति, साझेदारी, प्रत्यक्ष श्रतु, मुआवजा, यात्रा, कानून, जीवन के लिएone, विदेशों में प्रभाव और प्रतिष्ठा, जनता के साथ संबंध, यौन रोग, मूत्र रोग।

अष्टम भाव (आयु / मृत्यु भाव)


आयु, मृत्यु का प्रकार अर्थात मृत्यु कैसे होगी, जननांग, बाधाएं, दुर्घटना, आकस्मिक की संपत्ति, विरासत, बपति, पैतृक संपत्ति, वसीयत, पेंशन, परिधान, चोरी, डकैती, चिंता, रूकावट, युद्ध, शत्रु, विरासत में मिला धन, मानसिक वेदना, वैवाहिक जीवन।

नवम भाव (भाग्य / धर्म भाव)


सौभाग्य, धर्म, चरित्र, दादा-दादी, लंबी यात्राएं, पोता, बुजुर्गों और देवताओं के प्रति श्रद्धा व भक्ति, आध्यात्मिक उन्नति, स्वप्न, उच्च शिक्षा, पत्नी का छोटा भाई, भाई की पत्नी, तीर्थयात्रा, दर्शन, संपर्क से संपर्क करें।

दशम भाव (कर्म भाव)


व्यवसाय, कीर्ति, शक्ति, अधिकार, नेतृत्व, अधिकार, सम्मान, सफलता, रूतबा, स्नेह, चरित्र, कर्म, उद्देश्य, पिता, मालिक, नियोजक, अधिकारी, अधिकारियों से संबंध, व्यापार में सफलता, नौकरी में तरक्की, सरकार से सम्मान।

एकादश भाव (लाभ भाव)


लाभ, समृद्धि, कामनाओं की पूर्ति, मित्र, बड़ा भाई, तखने, बायां कान, परामर्शदाता, प्रिय, रोग मुक्ति, प्रत्याशा, पुत्रवधू, इच्छाएं, कार्यों में सफलता।

द्वादश भाव (व्यय भाव)


हानि, दण्ड, कारावास, व्यय, दान, विवाह, जलाश्रयों से संबंधित कार्य, वैदिक यज्ञ, अदा किया गया, विवाहेत्तर काम क्रीड़ा, काम क्रीड़ा और यौन संबंधों सेtyन्न रोग, काम क्रीड़ा, कमजोरी, शयन सुविधा, ऐय्याशी, भोग विलास , पत्नी की हानि, शादी में नुकसान, नौकरी छूटना, अपने लोगों से सिपाही, संबंध विद्या, लंबी यात्रा, विदेश में सुरक्षा।

Gurudev  bhubneshwar

Parnkuti guna

9893946810

Thursday, 8 April 2021

गर्भधारण विकार में शिवलिंगी का सेवन लाभदायक

गर्भधारण विकार में शिवलिंगी का सेवन लाभदायक (Shivlingi Seed Powder Helps in Pregnancy Disorder in Hindi)

प्रजनन का सीधा संबंध अंडाणुओं और शुक्राणुओं की संख्या और स्वास्थ्य से है। शिवलिंगी के बीज (Shivlingi Beej) ओवेरियन रिजर्व (Ovarian Reserve) जैसी समस्याओं को दूर करते हैं और मासिक धर्म को नियमित करते हैं। इसके बीज चूर्ण का प्रयोग (Shivlingi Beej Uses in Hindi) गर्भधारण हेतु किया जाता है।

कई महात्मा लोग स्त्री या पुरुष को संतान की प्राप्ति के लिए मासिक धर्म के 4 दिन बाद से 1 माह तक सुबह-शाम शिवलिंगी के बीज एक ग्राम की मात्रा में खाली पेट दूध के साथ सेवन कराते हैं।

जिनको पुत्र प्राप्ति (Shivlingi Beej For Male Child In Hindi) की कामना है, उन्हें बछिया वाली गाय के दूध के साथ सेवन करना अच्छा होता है। जिन्हें स्त्री संतान यानी लड़की प्राप्ति की कामना है उन्हें बछड़ी वाली गाय के दूध के साथ इसका सेवन करना होता है।

जिन महिलाओं को गर्भ न ठहरता हो अर्थात बार-बार गर्भ गिर जाता हो, वे मासिक धर्म के बाद शिवलिंगी के एक बीज से शुरुआत करके प्रत्येक दिन एक बीज बढ़ाते हुए 21 दिन तक सेवन करें। इससे गर्भ ठहर जाता है एवं गर्भ नहीं गिरता।

शिवलिंगी बीज आधा ग्राम तथा पुत्रजीवक बीज एक ग्राम (Shivlingi Beej And Putrajeevak Benefits In Hindi) दोनों को मिला लें। इसे पीसकर बराबर भाग में मिश्री मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से बांझपन की समस्या में लाभ होता है तथा स्त्री गर्भ-धारण के योग्य बन जाती है। (अनेक बार चिकित्सकीय परीक्षण सही होने पर भी गर्भ धारण नहीं हो पाता; उनके लिए यह एक सैंकड़ों बार परीक्षण किया गया प्रयोग है)।

Gurudev 

Bhubneshwar

Parnkuti guna 

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Monday, 5 April 2021

प्रमादी नाम सम्बत्सर क्षय क्योकी प्रमादी नाम के वाद आनन्द सम्बत्सर होना चाहिये ३


क्रमांकनामवर्तमान चक्रपूर्व चक्र 1
1प्रभव1974-1975ई.1914-1915
2विभव1975-1976ई.1915-1916 ई.
3शुक्ल1976-1977 ई.1916-1917 ई.
4प्रमोद1977-1978 ई.1917-1918 ई.
5प्रजापति1978-1979 ई.1918-1919 ई.
6अंगिरा1979-1980 ई.1919-1920 ई.
7श्रीमुख1980-1981 ई.1920-1921 ई.
8भाव1981-1982 ई.1921-1922 ई.
9युवा1982-1983 ई.1922-1923 ई.
10धाता1983-1984 ई.1923-1924 ई.
11ईश्वर1984-1985ई.1924-1925 ई.
12बहुधान्य1985-1986 ई.1925-1926 ई.
13प्रमाथी1986-1987 ई.1926-1927 ई.
14विक्रम1987-1988ई.1927-1928 ई.
15वृषप्रजा1988-1989 ई.1928-1929 ई.
16चित्रभानु1989-1990 ई.1929-1930 ई.
17सुभानु1990-1991 ई.1930-1931 ई.
18तारण1991-1992 ई.1931-1932 ई.
19पार्थिव1992-1993 ई.1932-1933 ई.
20अव्यय1993-1994 ई.1933-1934 ई.
21सर्वजीत1994-1995 ई.1934-1935 ई.
22सर्वधारी1995-1996 ई.1935-1936 ई.
23विरोधी1996-1997 ई.1936-1937 ई.
24विकृति1997-1998 ई.1937-1938 ई.
25खर1998-1999 ई.1938-1939 ई.
26नंदन1999-2000 ई.1939-1940 ई.
27विजय2000-2001 ई.1940-1941 ई.
28जय2001-2002 ई.1941-1942 ई.
29मन्मथ2002-2003 ई.1942-1943 ई.
30दुर्मुख2003-2004 ई.1943-1944 ई.
31हेमलंबी2004-2005 ई.1944-1945 ई.
32विलंबी2005-2006 ई.1945-1946 ई.
33विकारी2006-2007 ई.1946-1947 ई.
34शार्वरी2007-2008 ई.1947-1948 ई.
35प्लव2008-2009 ई.1948-1949 ई.
36शुभकृत2009-2010 ई.1949-1950 ई.
37शोभकृत2010-2011 ई.1950-1951 ई.
38क्रोधी2011-2012 ई.1951-1952 ई.
39विश्वावसु2012-2013 ई.1952-1953 ई.
40पराभव2013-2014 ई.1953-1954 ई.
41प्ल्वंग2014-2015ई.1954-1955 ई.
42कीलक2015-2016 ई.1955-1956 ई.
43सौम्य2016-2017 ई.1956-1957 ई.
44साधारण2017-2018 ई.1957-1958 ई.
45विरोधकृत2018-2019 ई.1958-1959 ई.
46परिधावी2019-2020 ई.1959-1960 ई.
47प्रमादी2020-2021 ई.1960-1961 ई.
48आनंद2021-2022 ई.1961-1962 ई.
49राक्षस2022-2023 ई.1962-1963 ई.
50आनल2023-2024 ई.1963-1964 ई.
51पिंगल2024-2025 ई.1964-1965 ई.
52कालयुक्त2025-2026 ई.1965-1966 ई.
53सिद्धार्थी2026-2027 ई.1966-1967 ई.
54रौद्र2027-2028 ई.1967-1968 ई.
55दुर्मति2028-2029 ई.1968-1969 ई.
56दुन्दुभी2029-2030 ई.1969-1970 ई.
57रूधिरोद्गारी2030-2031 ई.1970-1971 ई.
58रक्ताक्षी2031-2032 ई.1971-1972 ई.
59क्रोधन2032-2033 ई.1972-1973 ई.
60क्षय2033-2034 ई.1973-1974 ई

Friday, 26 March 2021

कार्य सिध्द होगा या नही 9893946810

कार्य सिद्ध होगा या नही
प्रश्न कर्ता के मुख से निकाले शब्द
मे 6 से गुणा उसमे 8 जोडना
उसमे नो का भाग
1 मे नही होगा
2 मे होगा
3 मे मरण समान
4 मे आनन्द से होगा
5:6 मे होगा
7:8:9: मे नही होगा
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रोग प्रश्न
तिथी संख्याऔर
तिथी की घड़ी
को दुगनी करके उसमे चार जोडना तीन से भाग देना
1 बचे तो तुरंत ठीक
0 बचे तो तुरंत मरण
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 जन्म नक्षत्र से,
जिस नक्षत्र में कार्य का आरंभ होना हो,
वह नक्षत्र ले।
जन्म नक्षत्र से अमुक नक्षत्र को गिन ले।

जो संख्या आए,
उसमें 9 से भाग दें।
शेष के अनुसार फलकथन निम्न होगा।
यदि-
1 शेष आए तो शारीरिक कष्ट।
2 शेष आए तो उन्नति।
3 शेष आए तो नुकसान
4 शेष आए तो विशेष उन्नति।
5 शेष आए तो बाधा।
6 शेष आए तो कार्य सिद्धि।
7 शेष आए तो अत्यंत अशुभ।
8 शेष आए तो मिलन तथा
9 शेष आए तो अत्यंत शुभ होता है।
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प्रेत बाधा केसे दूर करे 9893946810


प्रेत बाधा निवारक मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच शाकिनी डाकिनी यक्षणी पूतना मारी महामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम् क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर हुं फट् स्वाहा। इस हनुमान मंत्र का पांच बार जाप करने से कभी भूत निकट नहीं आ सकते।

आप ऊपरी बाधा हटाने के उपाय के अंतर्गत ये उपाय करना न भूलें| काली सरसों, काले बकरे का दायाँ सींग, सर्प की केंचुली, गुग्गुल, नीम के पत्ते, अपामार्ग के पत्ते और बच को लेकर अच्छे से कूट पीस लें| इस चूर्ण को जलते कंडे पर डालकर धूनी करें और पीड़ित व्यक्ति को धूनी दें| ऐसा करने से प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है|

| आप 5 ग्राम कपूर, 5 ग्राम काली मिर्च और 5 ग्राम हींग ले लें| इसको पीसकर इसका पाउडर बनायें और फिर इसकी छोटी छोटी गोलियां बना लें| इन गोलियों को 2 बराबर भागों में बाँट दें और फिर एक हिस्से को सुबह और दूसरे को शाम को घर में जलाएं|

शनिवार के दिन इस प्रयोग को करें| इस दिन काले धतूरे की जड़ लेकर आयें और पीड़ित की भुजा पर बांध दें| ऐसा करने से भूत, प्रेत और पिशाच उसका पीछा करना छोड़ देंगे| यदि पीड़ित स्त्री है तो जड़ को उसकी बायीं भुजा में बांधना चाहिए, यदि वह पुरुष है तो उसे उसकी दाहिनी भुजा में बांधना चाहिए

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।

तू है वीर बड़ा हनुमान |
लाल लंगोटी मुख में पान |
ऐर भगावै |
बैर भगावै |
अमुक में शक्ति जगावै |
रहे इसकी काया दुर्बल |
तो माता अंजनी की आन |
दुहाई गौरा पार्वती की |
दुहाई राम की |
दुहाई सीता की |
ले इसके पिण्ड की खबर |
ना रहे इसमें कोई कसर |

यदि कोई अकारण ही दुर्बल होता जा रहा हो और कारण समझ में नहीं आये तो इस मंत्र का 7 बार जाप करते हुए प्रत्येक मंत्र के बाद रोगी पर फूँक लगाए और यही रोगी स्वयं करता है तो रोगी खुद को फूक लगाए इसके साथ ही रोगी को हनुमान जी के मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा से उनके चरणों का सिन्दूर लाकर तिलक भी करें | रोगी किसी भी रोग से पीड़ित हो उसे स्वास्थ्य लाभ अवश्य मिलेगा ||

चोरि की दिशा का ज्ञान केसे करे


1. मेष लग्न मेष वस्तु चोरी हुई हो प्रश्नकाल में मेष लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में होती है। चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में दो या तीन अक्षर होते हैं।

होता है
1. मेष लग्न मेष वस्तु चोरी हुई हो प्रश्नकाल में मेष लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में होती है। चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में दो या तीन अक्षर होते हैं।

2. वृषभ लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होती है और चोर क्षत्रिय वर्ण का होता है। उसके नाम में आदि अक्षर म रहता है तथा नाम चार अक्षरों वाला होता है।

3. मिथुन लग्न में चोरी गई वस्तु आग्नेय कोण में होती है। चोरी करने वाला व्यक्ति वैश्य वर्ण का होता है और उसका नाम क ककार से प्रारंभ होता है। नाम में तीन अक्षर होते हैं।


4. कर्क लग्न में वस्तु चोरी होने पर दक्षिण दिशा में मिलती है और चोरी करने वाला शूद्र होता है। उसका नाम त अक्षर से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं।


वस्तु नैऋत्य कोण में होती है
5. सिंह लग्न में चोरी हो तो वस्तु नैऋत्य कोण में होती है। चोरी करने वाला नौकर, सेवक होता है। चोर का नाम न से प्रारंभ होता है और नाम तीन या चार अक्षरों का होता है।

6. प्रश्नकाल या चोरी के समय कन्या लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम म से प्रारंभ होता है। नाम में कई वर्ण हो सकते हैं।

7. चोरी के समय तुला लग्न हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में जानना चाहिए। चोरी करने वाला पुत्र, मित्र, भाई या अन्य कोई संबंधी होता है। इसका नाम म से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं। तुला लग्न में गई वस्तु बड़ी कठिनाई से प्राप्त होती है।


वस्तु नैऋत्य कोण में होती है
8. वृश्चिक लग्न में चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोर घर का नौकर ही होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम चार अक्षरों वाला होता है। चोरी करने वाला उत्तम वर्ण का होता है।

9. प्रश्नकाल या चोरी के समय धनु लग्न हो तो चोरी गई वस्तु वायव्य कोण में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में चार वर्ण पाए जाते हैं।

10. चोरी के समय मकर लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर दिशा में समझनी चाहिए। चोरी करने वाला वैश्य जाति का होता है। नाम चार अक्षरों का होता है और वह स से प्रारंभ होता है।

11. प्रश्नकाल या चोरी के समय कुंभ लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में होती है। इस प्रश्न लग्न के अनुसार चोरी करने वाला व्यक्ति कोई मनुष्य नहीं होता बल्कि चूहों या अन्य जानवरों के द्वारा इधर-उधर कर दी जाती है।

12. मीन लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु ईशान कोण में होती है। चोरी करने वाला निम्न जाति का व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति चोरी करके वस्तु को जमीन में छुपा देता है। ऐसे चोर का नाम व अक्षर से प्रारंभ होता है और उसके नाम में तीन अक्षर रहते हैं। चोर कोई परिचित महिला या नौकरानी भी हो सकती है।

देवी ऋण

देवी ऋण
लालकिताब में
 देवी ऋण का विशेष उल्लेख मिलता है,
उसके अन्दर तो केवल इतना कहा गया है कि 

"बुरी नियत के कारण दूसरे के बेटे या कुत्ते को मारने का प्रयास किया जाय या मार दिया जाय तो देवी ऋण जातक के लिये अपना असर चालू कर देता है",

इस ऋण का खुलासा कुण्डली का छठा भाव कर देता है,

इस भाव में चन्द्र या मंगल अगर विराजमान हैं, 
तो समझ लीजिये कि पिछले जन्म की इसी करतूत के कारण देवी ऋण प्रभावी है,

इसके असर के लिये लिखा है कि अगर जातक के जीवन में देवी ऋण चल रहा है,तो जातक की नर संतान का नास होता है,

पहले तो उसके नर संतान पैदा ही नही होती है,अगर होती भी तो रहती नही,रहती भी है तो लूली लंगडी या अपंग बन कर किसी काम की नही होती है,

जीवन में केवल लडकियां पैदा हो जाती है,और वे स्वेच्छाचारी की तरह से जीवन को व्यतीत करती है और अपना हिसाब चुकाकर चली जाती हैं।

केतु की संसार में श्रेणियां
कहावत है जो पूंछ रखता है उसकी ही पूंछ होती है,सांप के शरीर में पूंछ का ही आकार होता है,हाथी की पूंछ तो छोटी होती है और मुंह लम्बी पूंछ का रूप होता है,

जानवर,कीडे मकोडे जिनके भी पूंछ होती है,वह केतु की श्रेणी में आजाते है,यह तो जीव जगत में माना जा सकता है,लेकिन मानव के अन्दर भी केतु की श्रेणी होती है,लेकिन वह बिना पूंछ का होता है,जब पूंछ ही नही होती है तो केतु की उपाधि किस प्रकार से दी जा सकती है,केतु का काम अपनी पहिचान सीधे रूप में नही देना होता है,वह अगर पूंछ के रूप में है तो किसी के अन्दर ही लगी होगी,अकेली पूंछ तो नही रह सकती है,छिपकली की पूंछ अगर टूट भी जाती है,तो कुछ समय के लिये तो फ़ुदकती है,लेकिन वह फ़िर से मर कर ठंडी हो जाती है,सांप की पूंछ की लम्बाई नापी ही नही जा सकती है,

फ़न के बाद पूंछ का ही नम्बर आजाता है,यानी नाम के पीछे ही पूंछ होती है,चिडिया की पूंछ,केवल कुछ पंख से ही जानी जाती है,पंख हटा दिये जाते है तो वह बंडी कहलाती है,इसी तरह से जिसके नाम का बखान प्रमुख हो उसी का नाम पहले चलता है,मानव केतु की उपाधि में जब आ जाता है जब वह किसी अन्य के नाम से जाना जावे,सर्व प्रथम संसार के सभी कामों और कारणों का कारक गणेशजी को माना जाता है,सभी काम उनके नाम से ही चलते है,सबसे पहले उनका ही नाम लिया जाता है,तो गणेशजी का काम है,तो वह गणेशजी के साथ जुडा है,यानी हर काम का कारक गणेशजी है,राहु से एक सौ अस्सी अंश की फ़िक्स दूरी पर केतु की स्थिति हमेशा मिलती है,यानी हर काम के आगे आने वाला ही राहु है अगर केतु पूंछ है तो,सही भी है,ज्योतिष भी कहती है,राहु अनन्त है,जिसका कहीं अन्त नही है,पूर्वज को राहु कहा जाता है,पूर्वज का कोई अन्त नही है,
किसी न किसी तरह से जब पीढियों को देखा जाता है,तो आखिर में जाकर कांटा एक ही जगह इकट्टा हो जाता है,और मानना पडता है कि सभी एक ही तराजू के चटरे बटरे है,सही भी है,देवी ऋण की बात कर रहे थे,एक संकुचित विचार का काम करना था,चल दिये एक बहुत बडे काम को करने के लिये,सीधे रूप से जाना जाता है कि बहिन का लडका अगर मामा के घर आ जाता है तो उसके बाप का नाम कोई नही लेती है,केवल बहिन का ही नाम लिया जाता है और कहा जाता है कि फ़लां की लडकी का लडका है,उसी तरह से जब भाई अपनी बहिन के घर जाता है तो वहां पर भी बहिन का नाम लेकर ही कहा जाता है कि अमुक की बहू का भाई है,और जब मामा के लिये कहा जाता है तो कहा जाता है कि अमुक का मामा है,पुत्र के लिये भी कहा जाता है कि अमुक का लडका है,इस प्रकार से जो किसी नाम के पीछे चले वह केतु कहा जाता है,फ़िर इस संसार में बचा ही कौन है जो केतु की श्रेणी में नही आता है,और जब हम किसी भी प्रकार से किसी भी जीव को परेशान करेंगे तो हम भी किसी केतु को ही परेशान कर रहे है,और हम पर देवी ऋण चालू हो गया, उसी प्रकार से अगर पिता को पुत्र परेशान करता है तो वह भी किसी के पुत्र को परेशान कर रहा है,किसी के पति को परेशान कर रहा है,किसी के भाई को परेशान कर रहा है,उसका पिता भी किसी का भांजा तो होगा ही,किसी का मामा तो होगा ही,इसलिये पुत्र भी परेशान होगा,और जब पुत्र परेशान होता है तो पिता को दुख भी होता है,यह सब लालकिताब की एक संकुचित कल्पना के अलावा और कुछ नही माना जा सकता है,देवी का रूप समझ कर ही किसी प्रकार का देवी ऋण बताने की कोशिश करनी चाहिये,केवल केतु को परेशान करने से देवी ऋण नही माना जा सकता है|

देवी ऋण को उतारने का वैदिक तरीका
रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत चण्डिका शाप विमोचन मन्त्र

श्रीदुर्गा-पाठ को करने से पहले अगर इन बीस श्लोकों को पढ लिया जावे तो किसी प्रकार से देवी की पूजा के प्रति की गयी भूल से मिला श्राप खत्म हो जाता है,अक्सर श्रीदुर्गा पूजा में किसी न किसी प्रकार का विघ्न तभी पडता है ,जब जानबूझ कर या किसी कारण वश पूजा में अशुद्धि या किसी कन्या को बेकार में परेशान किया जाता है।

शाप-विमोचन संकल्प
ऊँ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचन मन्त्रस्य वसिष्ठनारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषय: सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्रीं शक्ति: त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तो मम संकल्पितकार्यसिद्धयर्थे जपे विनियोग:।

शापविमोचन मन्त्र
ऊँ (ह्रीं) रीं रेत:स्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१॥
ऊँ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै,ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥२॥
ऊँ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥३॥
ऊँ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥४॥
ऊँ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥५॥
ऊँ तं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥६॥
ऊँ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥७॥
ऊँ जां जातिरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥८॥
ऊँ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥९॥
ऊँ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१०॥
ऊँ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफ़लदात्र्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥११॥
ऊँ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१२॥
ऊँ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१३॥
ऊँ माँ मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमासहितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१४॥
ऊँ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१५॥
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं नम: शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१६॥
ऊँ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फ़ट स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१७॥
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नम:॥१८॥
इत्येवं हि महामन्त्रान पठित्वा परमेश्वर,चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशय:॥१९॥
एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति य:,आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशय:॥२०॥

Tuesday, 16 March 2021

यज्ञादी कार्य के लिये बृक्ष काटने का मुहूर्त एबं हवन के लिए कौन सी लकड़ी का चयन करें

यज्ञादि कर्मोंमें आमकी समिधासे हवन नहीं करना चाहिए।

परंतु लोगोंको न जाने कहांसे यह भ्रम हो गया है कि हवनमें आमकी समिधा अत्यंत उपयोगी है।

*#प्रमाण*-

*#यज्ञीयवृक्ष*- 

*1 पलाशफल्गुन्यग्रोधाः प्लक्षाश्वत्थविकंकिताः।*
*उदुंबरस्तथा बिल्वश्चंदनो यज्ञियाश्च ये।।*

*सरलो देवदारुश्च शालश्च खदिरस्तथा।* 
*समिदर्थे प्रशस्ताः स्युरेते वृक्षा विशेषतः।।*
    (#आह्निकसूत्रावल्यां_वायुपुराणे)

*2 शमीपलाशन्यग्रोधप्लक्षवैकङ्कितोद्भवाः।*
*वैतसौदुंबरौ बिल्वश्चंदनः सरलस्तथा।।*
*शालश्च देवदारुश्च खदिरश्चेति याज्ञिकाः।।*
     (#संस्कारभास्करे_ब्रह्मपुराणे)

*#अर्थ*-
1पलाश /ढाक/छौला 
2फल्गु 
3वट 
4पाकर 
5पीपल 
6विकंकत /कठेर 
7गूलर 
8बेल
9चंदन 
10सरल 
11देवदारू 
12शाल 
13खैर 
14शमी
15बेंत

उपर्युक्त ये सभी वृक्ष यज्ञीय हैं, यज्ञोंमें इनका इद्ध्म (काष्ठ) तथा इनकी समिधाओंका उपयोग करना चाहिए। 

शमी व बेल आदि वृक्ष कांँटेदार होने पर भी वचनबलात् यज्ञमें ग्राह्य हैं।

*परंतु इन वृक्षोंमें आमका नाम नहीं है।*

*#यज्ञीयवृक्षोंके_न_मिलनेपर*-

यदि उपर्युक्त वृक्षोंकी समिधा संभव न होसके तो, शास्त्रोंमें बताया गया है कि, और सभी वृक्षोंसे भी हवन कर सकते हैं-

*एतेषामप्यलाभे तु सर्वेषामेव यज्ञियाः।।*
                (#यम:,#शौनकश्च) 

*तदलाभे सर्ववनस्पतीनाम्*
         (#आह्निकसूत्रावल्याम्) 

परंतु निषिद्ध वृक्षोंको छोड़ करके अन्य सभी वृक्ष ग्राह्य हैं।

 तो निषिद्ध वृक्ष कौन से हैं देखिए-

*#हवनमें_निषिद्धवृक्ष*-

*#तिन्दुकधवलाम्रनिम्बराजवृक्षशाल्मल्यरत्नकपित्थकोविदारबिभीतकश्लेष्मातकसर्वकण्टकवृक्षविवर्जितम्।।*
         (#आह्निकसूत्रावल्याम्) 

*#अर्थ*-
1 तेंदू 
2 धौ/धव
*3 #आम*
4 नीम 
5 राजवृक्ष 
6 सैमर 
7 रत्न 
8 कैंथ
9 कचनार
10बहेड़ा 
11लभेरा/लिसोडा़ और 
12सभी प्रकारके कांटेदार वृक्ष यज्ञमें वर्जित है।

*#विशेष*-

*1 #उत्तम_यज्ञीयवृक्ष*- शास्त्रोंमें जिन वृक्षोंका ग्रहण किया गया है, उन सभी वृक्षोंका प्रयोग सर्वश्रेष्ठ है। 

*2 #मध्यम_यज्ञीयवृक्ष*- शास्त्रोंमें जिन वृक्षोंका ग्रहण भी नहीं किया गया है, और ना ही जिनका निषेध किया गया है ऐसे सभी वृक्षोंका उपयोग मध्यम है।

*3 #अधम_यज्ञीयवृक्ष*-
जिन वृक्षोंका शास्त्रोंमें निषेध किया गया है, उन वृक्षोंको यज्ञमें कभी भी उपयोगमें नहीं लाना चाहिए,ये सभी वृक्ष यज्ञमें अधम/त्याज्य हैं।

#यज्ञीयवृक्षका_मतलब है— जिन वृक्षोंका यज्ञमें हवन/ पूजन संबंधित सभी कार्योंमें पत्र ,पुष्प ,समिधा आदिका ग्रहण करना शास्त्रोंमें विहित बताया गया है ।

और निषिद्ध वृक्षोंका ये सब त्यागना चाहिए।

*जहां यज्ञीयवृक्ष बताए गए हैं वहां आमके वृक्षका ग्रहण नहीं किया गया है*

*और जहां निषेध वृक्षोंकी गणना है वहां आमकी गणना है। इससे आप लोग विचार कर सकते हैं।*

आमकी समिधा तो यज्ञकर्ममें सर्वथा त्याज्य है, जिसका लोग जानबूझकरके संयोग करते हैं, कितनी दुखद और विचारणीय बात है। 

*#नोट*-  इस लेखमें शुद्ध वैदिक एवं स्मार्त यज्ञोंमें शान्तिक , पौष्टिक सात्विक हवनकी विधिका उल्लेख किया गया है।

 तांत्रिक विधिमें और उसमें भी षडभिचार - मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटनादिमें तो बहुत ऐसी चीजोंका हवन लिखा हुआ है जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते

#जैसे- मिर्चीसे, लोहेकी कीलोंसे, विषादिसे भी हवन करना लिखा हुआ है।
 तो वहां कई निषिद्ध वृक्षोंका भी ग्रहण हो सकता है, उसकी यहां चर्चा नहीं है।

*#होमीयसमिल्लक्षण*-

*प्रादेशमात्राः सशिखाः सवल्काश्च पलासिनीः।*
*समिधः कल्पयेत् प्राज्ञः सर्व्वकर्म्मसु सर्व्वदा॥* 

 *नाङ्गुष्ठादधिका न्यूना समित् स्थूलतया क्वचित्।*
*न निर्म्मुक्तत्वचा चैव न सकीटा न पाटिता॥*
 
*प्रादेशात् नाधिका नोना न तथा स्याद्विशाखिका।*
*न सपत्रा न निर्वीर्य्या होमेषु च विजानता ॥*
            (#छन्दोगपरिशिष्टम्)
 

#निषिद्ध_समिधा-

*विशीर्णा विदला ह्रस्वा वक्राः स्थूला द्विधाकृताः।*
*कृमिदष्टाश्च दीर्घाश्च समिधो नैव कारयेत्॥*
                 (#संस्कारतत्त्वम्)

#अशास्त्रीय_समिधाके_दुष्परिणाम- 

*विशीर्णायुःक्षयं कुर्य्याद्बिदला पुत्त्रनाशिनी।*
*ह्रस्वा नाशयते पत्नीं वक्रा बन्धुविनाशिनी॥*

*कृमिदष्टा रोगकरी विद्वेषकरणी द्विधा।* 
*पशून् मारयते दीर्घा स्थूला चार्थविनाशिनी॥*
                    (#इतितन्त्रम्)

#नवग्रहसमिधा -
*अर्कः पलाशः खदिरस्त्वपामार्गोऽथ पिप्पलः।* 
*उदुम्बरः शमी दूर्व्वाः कुशाश्च समिधः क्रमात्॥*
 (#संस्कारतत्त्वे_याज्ञवल्क्यवचनम्)

नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव। 
*राजेश राजौरिया वैदिक वृन्दावन*

प्रसंगवश अब काष्ठछेदन की बात करते हैं-

विश्वकर्मप्रकाश,
वास्तुरत्नाकर,
वृहत्संहिता 

आदि ग्रन्थों में पेड़ कब और कैसे काटा जाय- 
इस विषय की भी चर्चा है-

द्व्यङ्गराशिगते सूर्ये माघे भाद्रपदे तथा।
वृक्षाणां छेदनं कार्यं सञ्चयार्थं न कारयेत्।।
सिंहे नक्ते च दारुणां छेदनं नैव कारयेत्।
ये मोहाच्च प्रकुर्वन्ति तेषां गेहेऽग्नितो भयम्।।

अर्थात्
 द्विस्वभाव
(मिथुन,कन्या,धनु,मीन)राशियों में
 सूर्य के रहने पर 
(विशेषकर भाद्र और माघ मास में) वृक्ष काटना चाहिए,
किन्तु संचय के लिए काटना उचित  नहीं है।
यानी शीघ्र प्रयोग के लिए काटा जा सकता है।
पुनः कहते हैं कि
 सिंह और मकर के सूर्य रहने पर उक्त महीनों में भी गृहकार्यार्थ वृक्षछेदन नहीं करना चाहिए।
अज्ञान,या स्वार्थ वश यदि ऐसा करता है
 तो उसे अग्नि का कोपभाजन बनना पड़ता है।
यानी अग्निभय की आशंका रहती है।

सौम्यं पुनर्वसुं मैत्रं करं मूलोत्तरात्रये।
स्वाती च श्रवणं चैव वृक्षाणां छेदने शुभम्।।

अर्थात् मृगशिरा,पुनर्वसु,अनुराधा,हस्ता,मूल,
उत्तराफाल्गुनी,उत्तराषाढ़,उत्तरभाद्रपद, स्वाती,
और श्रवण- 
इन दस नक्षत्रों में पेड़ काटना उत्तम होता है।

  चन्द्रमा के दस नक्षत्रों की चर्चा करके अब अगले
 श्लोक में सूर्य के नक्षत्रों की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं-

 सूर्यभाद्वेदगोतर्कदिग्विश्वनखसम्मिते।
चन्द्रर्क्षे दारुकाष्ठानां छेदनं शुभदायकम्।।

अर्थात् 
सूर्य के नक्षत्र से
(जहाँ सूर्य हों)
चौथे,नौवें,छठे,दशवें,तेरहवें और बीसवेंनक्षत्र
पर चन्द्रमा के रहने पर वृक्षछेदन उत्तम होता है।

नोटः- यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि उक्त दिन चन्द्रमा का नक्षत्र,
 वृक्षछेदन हेतु ग्राह्य नक्षत्र-सूची में होना चाहिए।
अन्यथा ग्राह्य नहीं होगा।

अब एक अति विशिष्ट योग को इंगित करते हैं-

कृष्णपक्षे चतुर्दश्यां रेवतीरोहिणीयुते।
यदा तदा गुरौ लग्ने गृहार्थं तु हरेद्रुमान्।

अर्थात्
 कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को
 यदि रेवती या रोहिणी नक्षत्र पर चन्द्रमा का
 संक्रमण हो, 
तो वृहस्पति जहाँ बैठे हों उस लग्न का चयन करके वृक्षछेदन करना अति उत्तम होता है।

  इसी प्रसंग में तृणादि से 
गृहछादन का भी निर्देश कर रहे हैं।
(भले ही आजकल ज्यादातर कंकरीट-सरिया की ढ़लाई,पत्थर की पट्टिकाओं,या टीन और सीमेंट की चादरों का प्रयोग करके मकान का छादन(छावनी) करते है,
फिर भी ऐसे मकान भी काफी मात्रा में बन रहे हैं,
जिन्हें तृणादि से छावनी करनी पड़ती है।
उनके लिए इस मुहूर्त का औचित्य और महत्त्व जरुर है।)कहते हैं-

लग्ने शुक्रे गुरौ केन्द्रेष्वगराशौ गृहोपरि।
तृणादिभिः समाच्छाद्यो न चैवाग्निभयं भवेत्।।

 अर्थात् 
लग्न में 
शुक्र,केन्द्र(१,४,७,१०)में गुरु,
और स्थिर राशि का 
लग्न-वृष,सिंह,वृश्चिक,कुम्भ हो तो 
तृणादि से गृहछादन करने पर अग्नि-भय नहीं रहता।

अन्य प्रसंग में कहा गया है कि धनिष्ठा,शतभिष,पूर्वभाद्र,उत्तरभाद्र,एवं रेवती इन पांच नक्षत्रों की पंचक संज्ञा है।
इसमें काष्ठसंचय और गृहछादन वर्जित है।

(नोट- पंचक में सिर्फ पांच कर्म ही वर्जित हैं- काष्टसंचय,
गृहछादन,
खटिया बुनना,
शवदाह,
और दक्षिण दिशा की यात्रा।
कुछ विद्वान अन्यान्य शुभ कार्यों की भी वर्जना करते हैं।)

वृक्षछेदन मुहूर्त-चर्चा के बाद अब छेदन और रक्षण का विचार किया जा रहा है-

रात्रौ कृतबलिंपूजं प्रदक्षिणं छेदयेद्दिवा वृक्षम्।
धन्यमुदक्प्राग्वदनं न ग्राह्योऽन्यथापतितः

(वृहत्संहिता५२/११९)

अर्थात् 
रात्रि में वृक्ष के समीप 
बलि(दधिमाष)विधान करके,
अगले प्रातः
 पुनः प्रार्थना पूर्वक दक्षिणावर्त रीति से 
वृक्ष को काटे।
पूर्व-उत्तर में गिरे तो उत्तम अन्यथा अग्राह्य होता है।

अब अन्यत्र प्रसंग में
 (वृहत्संहिता५८/११९)
वृक्ष की प्रार्थना की विधि कहते हैं-

यानीह भूतानि वसन्ति तानि बलिं गृहीत्वा विधिवत्प्रयुक्तम्।
अन्यत्र वासं परिकल्पयन्तु क्षमन्तु ते चाऽद्य नमोऽस्तुतेभ्यः।।

वृक्षं प्रभाते सलिलेन सिक्त्वा मध्वाज्यलिप्तेन कुठारकेण
पूर्वोत्तरस्यां दिशि सन्ति कृत्य प्रदक्षिणं शेषमतो विहन्यात्।।

अर्थात् "हे भूतगण(प्राणीगण) जो इस वृक्ष पर निवास करते हों,उनको मैं प्रणाम करता हूँ।वे मेरे द्वारा विधिवत् दी गयी बलि को ग्रहण करके अन्यत्र अपना निवास स्थान बनावें,और मेरी इस धृष्टता को क्षमा करें।"- रात्रि में इस प्रार्थना और बलि के पश्चात् ,अगले प्रातः काल वृक्ष को जल से सिंचित करके,कुल्हाड़ी में मधु और घी का लेपन करके,पूरब या उत्तर की ओर से काटना प्रारम्भ करे, और दक्षिणावर्त ही कर्तन करे।

  वृक्ष को कैसे काटे और काटने के बाद वृक्ष किस दिशा में गिरता है,

इस पर विश्वकर्मप्रकाश(१०३५) का मत है-

छेदयेद्वर्तुलाकारं पतनञ्चोपकल्पयेत्।
प्राग्दिशि पतने कुर्याद्धनधान्यसमर्चितम्।।
आग्नेयामग्निदाहः स्याद्दक्षिणे मृत्युमादिशेत्।
नैऋत्यां कलहं कुर्यात्पश्चिमे पशुवृद्धिदम्।
वायव्ये चौरभीतिः स्यादुत्तरे च धनागमः।
ईशाने च महच्छ्रेष्ठं नानाश्रेष्ठं तथैव च।।

(वास्तुरत्नाकर ६/७०-७२)

अर्थात्
 वृक्ष को वर्तुलाकार(गोलाकार) काटे। 
काटने पर पूर्व दिशा में गिरे तो धनधान्य की वृद्धि,
अग्निकोण में गिरे तो अग्निभय,
दक्षिण में गिरे तो मृत्यु
 (अति अशुभ),
नैऋत्य में गिरे तो कलह,
पश्चिम में गिरे तो पशुवृद्धि,
वायव्य में गिरे तो चौरभय,
उत्तर में गिरे तो धनप्राप्ति,
और 
ईशान में गिरे तो 
अनेक प्रकार के उत्तम फल प्राप्त होते हैं।

    कटे हुए वृक्ष की लकड़ियों को तत्काल उपयोग में नहीं लाना चाहिए,
बल्कि कुछ दिनों(दो-तीन सप्ताह)तक जल और कीचड़ के संयोग में गाड़ देना चाहिए।
इससे लकड़ी में कीड़े नहीं लगते;
किन्तु ध्यान रहे 
महानिम्ब(बकाईन), 
सागवान,
गम्भारी 
जैसे कोमल लकड़ियों को सिर्फ जल में ही  
डुबोकर रखे,
और अपेक्षाकृत कम दिनों तक,अन्यथा काष्ठ की गुणवत्ता में कमी आजायेगी।
इस सम्बन्ध में 
विश्वकर्मप्रकाश-


और वास्तुरत्नाकर ६/७३ में कहा गया है-

काष्ठं नो भक्ष्यते कीटैर्यदि पक्षं धृतं जले ।
यहीं पुनः ध्यान दिलाते हैं –
कृष्णपक्षे छेदनश्च न शुक्ले कारयेद्बुधः –

 शुक्लपक्ष में वृक्ष काटने का काम कदापि न किया जाय।

गुरुदेव
Bhubneshwar 
Parnkuti 
9893946810

Wednesday, 3 March 2021

यज्ञ ऐबं प्रतिष्ठा मे आवश्यक मुहूर्त


Gurudev bhuvaneshvar
Par n kuti guna
9893946810

तिथि फल - एक गुणा 
नक्षत्र फल - चार गुणा
वार फल - आठ गुणा 
करण फल - सोलह गुणा 
योग फल - बत्तीस गुणा 
तारा फल - एक सौ आठ गुणा 
चंद्र फल - सौ गुणा 
लग्न फल - एक हजार गुणा

अथर्व वेद जैसे हमारे आदि ग्रंथों में भी शुभ काल के बारे में अनेक निर्देश प्राप्त होते हैं जो जीवन के समस्त पक्षों की शुभता सुनिश्चित करते हैं।

देव स्थापना के विशेष लग्न्: 

स्थाप्यों हिरिर्दिन करो मिथुने महैर्शो।
नारायणश्च युवतौ घटके विधाता।।
देव्यो द्विमृत्तं भवनेषु नि वेशंनीयाः।
क्षुद्राश्चरे स्थिरगृहै निलिखलाश्चः देवाः।।

मिथुन लग्न में विष्णु, महादेव 

तथा सूर्य की स्थापना करनी चाहिए। 

कन्या लग्न में कृष्ण की, 

कुंभ लग्न में ब्रह्मा की, 

द्विस्वभाव लग्नों में देवियों की स्थापना करनी चाहिए। 

चार लग्नों में योगिनियों की और स्थिर लग्नों में सर्व देवताओं की स्थापना करना शुभ है।

लिंग स्थापन तु कत्र्तव्यं शिशिरादावृतुत्रये।

 प्रावृषि स्थापित लिंग भवेद् वरयोगदम्।

हैमंते ज्ञानदं चैव शिशिरे सर्वभूतिदम्।
लक्ष्मीप्रदं वसंते च ग्रीष्मे च लिंगसयारोपणंमतम्।।

यतीनां सर्वकाले च लिंगसयारोपणंमतम्।। 

श्रेष्ठोत्तरे प्रतिष्ठा स्याउयनेमुक्ति मिच्छताम्।।
दक्षिणे तु मुमुक्षूणां मलमासे न सा द्वयोः।।

माघ, फाल्गुन-वैशाख-ज्येष्ठाषाढेषु पंचसु। 

प्रतिष्ठा शुभदाप्रोक्ता सर्वसिद्धिः प्रजायते।।

श्रावणे च नभस्ये च लिंग स्थापनमुत्तमम्।
देव्याः माघाश्विने मासेअव्युत्तमा सर्वकामदा।।


माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ तथा आषाढ़ 

महीनों में शिव जी की प्रतिष्ठा 

सब प्रकार से सिद्धि देने वाली कही गयी है।

श्रावण महीना भी शुभ है। 

ऋतुओं की दृष्टि से हेमंत ऋतु में शिव लिंग की स्थापना से यजमान और भक्तों को विशेष ज्ञान की प्राप्ति होती है। 

शिशिर में शुभ, किंतु बसंत ऋतु में शिव मंदिर की प्रतिष्ठा विशेष धनदायक साबित होती है,

 जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह प्रतिष्ठा शांति, शीतलता और विजयप्रदाता कही गयी है।
इस प्रकार भगवती जगदम्बा की प्रतिष्ठा माघ एवं अश्विन में सर्वश्रेष्ठ फल देने वाली उत्तम कही गयी है।

चैत्रे वा फाल्गुने मासे ज्येष्ठे वा माधवे तथा।
माघे वा सर्वदेवानां प्रतिष्ठा शुभदा सिते।
रिक्तान्य तिथिषु स्यात्सवारे भौमान्यके तथा।।

हेमाद्रि के कथनानुसार
: विष्णु प्रतिष्ठा माघे न भवति।
माघे कर्तुः विनाशः स्यात्।
फाल्गुने शुभदा सिता।।

देवी प्रतिष्ठा मुहूर्तः

सर्व देवताओं की प्रतिष्ठा चैत्र,

 फाल्गुन, ज्येष्ठ, वैशाख और माघ मास में करना शुभ है।


श्राविणे स्थापयेल्लिंग आश्विनै जगदंबिकाम्। मार्गशीर्ष हरि चैव, सर्वान् पौषेअपि केचन्।। -


मुहूर्तगणपति श्रावण में शंकर की स्थापना करना, आश्विन में जगदंबा की स्थापना करना, 

मार्गशीर्ष में विष्णु की स्थापना करना

हस्त्र, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, 

रोहिणी एवं मार्गशीर्ष में सभी देवताओं की, 

खास कर देवी की, प्रतिष्ठा शुभ है।

यद्दिनं यस्य देवस्य तद्दिने संस्थितिः। -


वशिष्ठ संहिता जिस देव की जो तिथि हो, 

उस दिन उस देव की प्रतिष्ठा करनी चाहिए।

शुक्ल पक्ष की तृतीया, पंचमी, चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा

तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी एवं चतुर्दशी दैवी कार्य के लिए सब मनोरथों को देने वाली है।

शुक्ल पक्ष में और कृष्ण पक्ष की दसवीं तक प्रतिष्ठा शुभ रहती है।

इसी प्रकार,

 शनि, रवि और मंगल को छोड़ कर, 

अन्य सभी वारों में यज्ञ कार्य एवं देव प्रतिष्ठा शुभ कहे गये है।

मंदिर में प्रतिमा की प्रतिष्ठा के लिए 

शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-


शुभ वार- देव प्रतिष्ठा मुहूर्त के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शुभ हैं।


शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की 1, 2, 5,10, 13, 15 वीं तिथि शुभ हैं।


मतांतर से कृष्णपक्ष 1, 2, 5वीं तिथि भी शुभ मानी गई है।


शुभ नक्षत्र- पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, हस्त, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूला, श्रवण, धनिष्ठा व पुनर्वसु नक्षत्र शुभ हैं।


इसके अतिरिक्त उत्तरायण के सूर्य में गुरु, शुक्र और मंगल भी बली होना चाहिए।


लग्न शुद्धि- स्थिर व द्विस्वभाव लग्न हो केंद्र व त्रिकोण में शुभ ग्रह एवं 3,6,11वें पाप ग्रह हों।

अष्टम में कोई पाप ग्रह हो।


देवशयन, मलमास, गुरु-शुक्र अस्त व निर्बल चंद्र कदापि नहीं होना चाहिए।


शिवलिंग स्थापना के लिए शिववास भी देखना शुभ होता है।