पितृ पक्ष (पूर्णिमा श्राद्ध)
❀ पितृ पक्ष जिसे श्राद्ध या कानागत भी कहा जाता है, श्राद्ध पूर्णिमा के साथ शुरू होकर सोलह दिनों के बाद सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होता है। हिंदू अपने पूर्वजों (अर्थात पितरों) को विशेष रूप से भोजन प्रसाद के माध्यम से सम्मान, धन्यवाद व श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
पितृ पक्ष का महाभारत से एक प्रसंग
❀ श्राद्ध का एक प्रसंग महाभारत महाकाव्य से इस प्रकार है, कौरव-पांडवों के बीच युद्ध समाप्ति के बाद, जब सब कुछ समाप्त हो गया, दानवीर कर्ण मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुंचे। उन्हें खाने मे सोना, चांदी और गहने भोजन के जगह परोसे गये। इस पर, उन्होंने स्वर्ग के स्वामी इंद्र से इसका कारण पूछा।
❀ इस पर, इंद्र ने कर्ण को बताया कि पूरे जीवन में उन्होंने सोने, चांदी और हीरों का ही दान किया, परंतु कभी भी अपने पूर्वजों के नाम पर कोई भोजन नहीं दान किया। कर्ण ने इसके उत्तर में कहा कि, उन्हें अपने पूर्वजों के बारे मैं कोई ज्ञान नही था, अतः वह ऐसा करने में असमर्थ रहे।
❀ तब, इंद्र ने कर्ण को पृथ्वी पर वापस जाने के सलाह दी, जहां उन्होंने इन्हीं सोलह दिनों के दौरान भोजन दान किया तथा अपने पूर्वजों का तर्पण किया। और इस प्रकार दानवीर कर्ण पित्र ऋण से मुक्त हुए।
पितृ पक्ष में पूर्वज़ों का श्राद्ध कैसे करें?
❀ जिस पूर्वज, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि अगर याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उसी तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिये। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जा सकता है, जिसे सर्वपितृ अमावस्या को महालय अमावस्या भी कहा जाता है। समय से पहले यानि कि किसी दुर्घटना अथवा आत्मदाह आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।
❀ श्राद्ध तीन पीढि़यों तक करने का विधान बताया गया है। यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं, जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। तीन पूर्वज में पिता को वसु के समान, रुद्र देवता को दादा के समान तथा आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
श्राद्ध अनुष्ठानों के लिए भारत के पवित्र स्थान
❀ हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भारत में कुछ महत्वपूर्ण जगहें हैं जो निर्वासित आत्माओं की शांति और खुश रहने के लिए श्रद्धा अनुष्ठान करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
❀ पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के रूप में जाना जाता है। महालया अमावस्या पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि की सही तारीख / दिन नहीं पता होता, वे लोग इस दिन उन्हें श्रद्धांजलि और भोजन समर्पित करके याद करते हैं।
भरणी श्राद्ध
❀ भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है और इसे 'महाभरणी श्राद्ध' के नाम से भी जाना जाता है। भरणी श्राद्ध में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है। जो लोग अपने पूरे जीवन में कोई तीर्थ यात्रा नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों की मृत्यु के बाद भरणी श्राद्ध किया जाता है ताकि उन्हें मातृगया, पितृ गया, पुष्कर तीर्थ और बद्री केदार आदि तीर्थों पर किए गए श्राद्ध का फल मिले।
❀ भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष के भरणी नक्षत्र में किया जाता है। किसी की मृत्यु के पहले वर्ष में भरणी श्राद्ध नहीं किया जाता क्योंकि प्रथम वार्षिक वर्ष श्राद्ध करने तक मृत व्यक्ति की आत्मा जीवित रहती है। लेकिन प्रथम वर्ष के बाद भरणी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
भरणी श्राद्ध के दौरान अनुष्ठान:
❀ पवित्र ग्रंथों के अनुसार, भरणी श्राद्ध को गया, काशी, प्रयाग, रामेश्वरम आदि पवित्र स्थानों पर करने का सुझाव दिया गया है।
❀ भरणी श्राद्ध करने का शुभ समय कुतप मुहूर्त और रोहिणा आदि मुहूर्त है, उसके बाद दोपहर का त्योहार समाप्त होने तक। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है।
❀ भरणी श्राद्ध के दिन कौओं को भी भोजन खिलाना चाहिए, क्योंकि उन्हें भगवान यमराज का दूत माना जाता है। कौवे के अलावा कुत्ते और गाय को भी भोजन कराया जाता है।
❀ ऐसा माना जाता है कि भरणी श्राद्ध अनुष्ठान को धार्मिक और पूरी श्रद्धा के साथ करने से मुक्त आत्मा को शांति मिलती है और वे बदले में अपने वंशजों को शांति, सुरक्षा और समृद्धि प्रदान करते हैं।
भरणी श्राद्ध का महत्व:
❀ कहा गया है कि भरणी श्राद्ध के गुण गया श्राद्ध के समान होते हैं इसलिए इसकी बिल्कुल भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यह दिन महालया अमावस्या के बाद पितृ श्राद्ध अनुष्ठान के दौरान सबसे अधिक मनाया जाता है।
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