Gurudev bhuvaneshvar
Par n kuti guna
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मुहूर्त के अनुसार कार्य करने से हानि की संभावना को तो कम किया ही जा सकता है।
तिथि फल - एक गुणा
नक्षत्र फल - चार गुणा
वार फल - आठ गुणा
करण फल - सोलह गुणा
योग फल - बत्तीस गुणा
तारा फल - एक सौ आठ गुणा
चंद्र फल - सौ गुणा
लग्न फल - एक हजार गुणा
—अथर्व वेद जैसे हमारे आदि ग्रंथों में भी शुभ काल के बारे में अनेक निर्देश प्राप्त होते हैं जो जीवन के समस्त पक्षों की शुभता सुनिश्चित करते हैं।
”वर्ष मासो दिनं लग्नं मुहूर्तश्चेति पञ्चकम्। कालस्यांगानि मुखयानि प्रबलान्युत्तरोतरम्॥
लग्नं दिनभवं हन्ति मुहूर्तः सर्वदूषणम्।
तस्मात् शुद्धि मुहूर्तस्य सर्व कार्येषु शस्यते॥”
”वर्ष का दोष श्रेष्ठ मास हर लेता है, मास का दोष श्रेष्ठ दिन हरता है, दिन का दोष श्रेष्ठ लग्न व लग्न का दोष श्रेष्ठ मुहूर्त हर लेता है, अर्थात मुहूर्त श्रेष्ठ होने पर वर्ष, मास, दिन व लग्न के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं।”
इस संसार में समय के अनुरूप प्रयत्न करने पर ही सफलता प्राप्त होती है और समय अनुकूल और शुभ होने पर सफलता शत-प्रतिशत प्राप्त होती है जबकि समय प्रतिकूल और अशुभ होने से सफलता प्राप्त होना असंभव होता है। कहते हैं किसी भी वस्तु या कार्य को प्रारंभ करने में मुहूर्त देखा जाता है, जिससे मन को बड़ा सुकून मिलता है।
हम कोई भी बंगला या भवन निर्मित करें या कोई व्यवसाय करने हेतु कोई सुंदर और भव्य इमारत बनाएं तो सर्वप्रथम हमें ‘मुहूर्त’ को प्राथमिकता देनी होगी।
शुभ तिथि, वार, माह व नक्षत्रों में कोई इमारत बनाना प्रारंभ करने से न केवल किसी भी परिवार को आर्थिक, सामाजिक, मानसिक व शारीरिक फायदे मिलते हैं वरन उस परिवार के सदस्यों में सुख-शांति व स्वास्थ्य की प्राप्ति भी होती है।
यहां शुभ वार, शुभ महीना, शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र भवन निर्मित करते समय इस प्रकार से देखे जाने चाहिए ताकि निर्विघ्न, कोई भी कार्य संपादित हो सके।
देव स्थापना के विशेष लग्न्: स्थाप्यों हिरिर्दिन करो मिथुने महैर्शो।
नारायणश्च युवतौ घटके विधाता।।
देव्यो द्विमृत्तं भवनेषु नि वेशंनीयाः।
क्षुद्राश्चरे स्थिरगृहै निलिखलाश्चः देवाः।।
मिथुन लग्न में विष्णु, महादेव तथा सूर्य की स्थापना करनी चाहिए। कन्या लग्न में कृष्ण की, कुंभ लग्न में ब्रह्मा की, द्विस्वभाव लग्नों में देवियों की स्थापना करनी चाहिए। चार लग्नों में योगिनियों की और स्थिर लग्नों में सर्व देवताओं की स्थापना करना शुभ है।
लिंग स्थापन तु कत्र्तव्यं शिशिरादावृतुत्रये। प्रावृषि स्थापित लिंग भवेद् वरयोगदम्।
हैमंते ज्ञानदं चैव शिशिरे सर्वभूतिदम्।
लक्ष्मीप्रदं वसंते च ग्रीष्मे च लिंगसयारोपणंमतम्।।
यतीनां सर्वकाले च लिंगसयारोपणंमतम्।। श्रेष्ठोत्तरे प्रतिष्ठा स्याउयनेमुक्ति मिच्छताम्।।
दक्षिणे तु मुमुक्षूणां मलमासे न सा द्वयोः।।
माघ, फाल्गुन-वैशाख-ज्येष्ठाषाढेषु पंचसु। प्रतिष्ठा शुभदाप्रोक्ता सर्वसिद्धिः प्रजायते।।
श्रावणे च नभस्ये च लिंग स्थापनमुत्तमम्।
देव्याः माघाश्विने मासेअव्युत्तमा सर्वकामदा।।
माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ तथा आषाढ़ महीनों में शिव जी की प्रतिष्ठा सब प्रकार से सिद्धि देने वाली कही गयी है।
श्रावण महीना भी शुभ है। ऋतुओं की दृष्टि से हेमंत ऋतु में शिव लिंग की स्थापना से यजमान और भक्तों को विशेष ज्ञान की प्राप्ति होती है। शिशिर में शुभ, किंतु बसंत ऋतु में शिव मंदिर की प्रतिष्ठा विशेष धनदायक साबित होती है, जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह प्रतिष्ठा शांति, शीतलता और विजयप्रदाता कही गयी है।
इस प्रकार भगवती जगदम्बा की प्रतिष्ठा माघ एवं अश्विन में सर्वश्रेष्ठ फल देने वाली उत्तम कही गयी है।
चैत्रे वा फाल्गुने मासे ज्येष्ठे वा माधवे तथा।
माघे वा सर्वदेवानां प्रतिष्ठा शुभदा सिते।
रिक्तान्य तिथिषु स्यात्सवारे भौमान्यके तथा।।
हेमाद्रि के कथनानुसार
: विष्णु प्रतिष्ठा माघे न भवति।
माघे कर्तुः विनाशः स्यात्।
फाल्गुने शुभदा सिता।।
देवी प्रतिष्ठा मुहूर्तः
सर्व देवताओं की प्रतिष्ठा चैत्र, फाल्गुन, ज्येष्ठ, वैशाख और माघ मास में करना शुभ है।
श्राविणे स्थापयेल्लिंग आश्विनै जगदंबिकाम्। मार्गशीर्ष हरि चैव, सर्वान् पौषेअपि केचन्।। -
मुहूर्तगणपति श्रावण में शंकर की स्थापना करना, आश्विन में जगदंबा की स्थापना करना, मार्गशीर्ष में विष्णु की स्थापना करना और पौष मास में किसी भी देवता की स्थापना करना शुभ है।
हस्त्र, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, रोहिणी एवं मार्गशीर्ष में सभी देवताओं की, खास कर देवी की, प्रतिष्ठा शुभ है।
यद्दिनं यस्य देवस्य तद्दिने संस्थितिः। -
वशिष्ठ संहिता जिस देव की जो तिथि हो, उस दिन उस देव की प्रतिष्ठा करनी चाहिए।
शुक्ल पक्ष की तृतीया, पंचमी, चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा
तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी एवं चतुर्दशी दैवी कार्य के लिए सब मनोरथों को देने वाली है।
शुक्ल पक्ष में और कृष्ण पक्ष की दसवीं तक प्रतिष्ठा शुभ रहती है।
इसी प्रकार, शनि, रवि और मंगल को छोड़ कर, अन्य सभी वारों में यज्ञ कार्य एवं देव प्रतिष्ठा शुभ कहे गये है।
मंदिर में प्रतिमा की प्रतिष्ठा के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-
शुभ वार- देव प्रतिष्ठा मुहूर्त के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शुभ हैं।
शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की 1, 2, 5,10, 13, 15 वीं तिथि शुभ हैं।
मतांतर से कृष्णपक्ष 1, 2, 5वीं तिथि भी शुभ मानी गई है।
शुभ नक्षत्र- पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, हस्त, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूला, श्रवण, धनिष्ठा व पुनर्वसु नक्षत्र शुभ हैं।
इसके अतिरिक्त उत्तरायण के सूर्य में गुरु, शुक्र और मंगल भी बली होना चाहिए।
लग्न शुद्धि- स्थिर व द्विस्वभाव लग्न हो केंद्र व त्रिकोण में शुभ ग्रह एवं 3,6,11वें पाप ग्रह हों।
अष्टम में कोई पाप ग्रह हो।
देवशयन, मलमास, गुरु-शुक्र अस्त व निर्बल चंद्र कदापि नहीं होना चाहिए।
शिवलिंग स्थापना के लिए शिववास भी देखना शुभ होता है।
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