ज्योतिष समाधान

Wednesday, 31 May 2017

तिथि, वार, नक्षत्र और योग की संख्या को जोड़ उसमें प्रश्नकर्ता के नामाक्षर संख्या को जोड़कर सात का भाग देने से सम शेष बचे तो कन्या और विषम शेष बचे तो पुत्र का जन्म कहना चाहिए|

रविंदुशुक्रावनिजैः स्वभागगैः गुरौ त्रिकोणोदयसंस्थितेपि वा|
भवत्यपत्यम् हि विबीजिमामिमे करा

हिमांशोर्वीदृशामिवाफलाः -

जातक पारिजात प्रश्न कुण्डली में सूर्य, शुक्र, चन्द्रमा और मंगल यदि अपने अपने नवमांश में स्थित हो अथवा वृहस्पति, लग्न या त्रिकोण (5/9) भावों में स्थित हो तो गर्भ सम्भव होता है|

ये योग नपुंसक व्यक्ति के विषय में अन्धों के लिए चन्द्र रश्मि की शोभा के समान निष्फल होता है|

चन्द्रमा और वृहस्पति यदि पापग्रह्युक्त हो और गुरु लग्न को न देखे चन्द्रमा क्षीण हो तो पर पुरुष द्धारा गर्भ होता है|

गर्भस्य कुशल प्रश्ने पञ्चमे पापखेचरः
स्वस्वामिदृष्टि रहिते तदा गर्भच्युतिर्भवेत्|

गर्भ की कुशलता है या नहीं इस प्रश्न में यदि प्रश्न लग्न से पंचम भाव से पापग्रह हो और उस पंचम भाव पर यदि निजस्वामी की दृष्टि न हो तो गर्भ का पतन होता है|

पंचमे शुभसंयुक्ते स्वमिना च युतेक्षिते|
गर्भस्य कुशलं ज्ञेयं मासपे सबले बुधैः|

यदि पंचम भाव शुभ ग्रह से युक्त हो अथवा पञ्चम भाव अपने स्वामी से युक्त या दृष्ट हो और मासेश (1 शुक्र, 2 मं. 3 बु. 4 र. 5 चं. 6 श. 7 बु. 8 लग्नेश, 9 चं. 10 र) अर्थात शुक्र आदि प्रथमादि मासेश ग्रह यदि बलयुक्त हो तो गर्भ की कुशलता होती है|

गर्भप्रश्ने क्षेपकस्तु षड् विंशत्कथितो बुधैः|
त्रिभिर्भागं समाहत्य गर्भो भूशेषके स्मृतः|

सन्देहस्तु द्धिशेषे स्याच्छून्ये नास्तीति निश्चयः|

गर्भ ज्ञान प्रश्न हो तो पिण्ड में 26 जोड़कर तीन का भाग देने से एक शेष बचे तो सन्देह और शून्य शेष बचे तो गर्भ नहीं है| ऐसा समझना चाहिए|

वारस्त्रिगुणितः कार्यस्थितिभिश्चैव संयुतः|
द्धाभ्यां भक्ते च यच्छेषंविषमेअस्ति समे न हि||

वार संख्या को 3 से गुणाकर तिथि संख्या को जोड़कर दो का भाग देने पर एक शेष बचे तो गर्भ नहीं है,कहना चाहिए|

तिथि-वारर्क्षयोगानां योगो नामअक्षरैर्युतः| सप्तभक्ताअवशेषेण समे कन्याअसमसुतः||

तिथि, वार, नक्षत्र और योग की संख्या को जोड़ उसमें प्रश्नकर्ता के नामाक्षर संख्या को जोड़कर सात का भाग देने से सम शेष बचे तो कन्या और विषम शेष बचे तो पुत्र का जन्म कहना चाहिए|

अथवा प्रश्न पिण्डांक में तीन का भाग देने से एक शेष में पुत्र, और दो शेष में कन्या तथा शून्य शेष में गर्भ का अभाव होता है|

अथवा ओष्ठ, कण्ठ, गला, कान, मस्तक और नख का स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो कन्या का जन्म समझना चाहिए|

यदि कोई प्रश्नकर्ता या गर्भिणी स्त्री पूछे कि क्या संतान होगी? तो पुरुष राशि (विषम राशि) का बलवान लग्न हो और उसके षडवर्ग निकालने से पुरुष राशि के वर्ग ज्यादा आवे और बली पुरुष (सूर्य, मंगल, गुरु) ग्रह उस लग्न को देखते हो तो उस गर्भवती स्त्री को पुत्र होगा और स्त्री राशि (समराशि) का लग्न हो और स्त्री राशि के वर्ग अधिक हो और बली स्त्री ग्रहों (चन्द्र, शुक्र) की दृष्टि उस लग्न में बुध हो तो स्त्री अभी तक गर्भवती है प्रसूति हुई नहीं ऐसा कहना चाहिए| विषम राशि (1, 3, 7, 9, 11) में या विषम राशि के नवमांशो में यदि शनि वर्तमान हो तो गर्भ में कन्या होती है|

सूर्य सोमो गुरश्चैव विषमे पुत्रकारकः| शुक्रमंगलचन्द्राणाम् यदि दृष्टिः सुते सुतः||

सूर्य चन्द्रमा और वृहस्पति यदि विषम राशि में वर्तमान रहे तो गर्भस्थित पुत्र होता है एवं यदि पंचम भाव में शुक्र, मंगल और चन्द्रमा, इन ग्रहों की दृष्टि हो तो भी गर्भ पुत्रोत्पत्ति होती है|

शुक्र चंद्रौ पञ्चमस्थौ कन्या जन्म कराविमौ|
पश्यतस्तौ सुतस्थानं पुत्रदौ-बलिना यदि||

शुक्र और चन्द्रमा यदि पंचम भाव में रहे तो कन्या की उत्पत्ति होती है| यदि बलवान शुक्र और चन्द्रमा पंचम भाव को देखे तो गर्भ से त्रोत्पत्ति होती है|

सन्तानभवनाधीशः प्रश्नलग्नाधिपस्तथा|
द्धावेव नरराशिस्थौ पुत्र स्त्री रशिगौ सुता||

पंचम भावेश और प्रश्नलग्नेश ये दोनों ग्रह यदि पुरुष राशि (1, 3, 5, 7, 9, 11) में गत हो तो गर्भस्थ पुत्र होता है| यदि वे दोनों स्त्री राशि (2, 4, 6, 8, 10, 12) में रहे तो गर्भस्थ कन्या होती है|

वह माना यदा नाड़ी दक्षिणा पुत्रसम्भवः|
वाम नाड़ी तदा पुत्री वहमाना विशेषतः||

प्रश्न समय में यदि दैवज्ञ का दक्षिणश्वास चले तो गर्भस्थ होता है|
यदि वाम श्वाम चले तो गर्भस्थ कन्या होती है|

लग्न में यदि पंचमेश हो, पञ्चम में यदि लग्नेश गत हो और बलवान चन्द्रमा से संयुत हो तो गर्भस्थ पुत्र होता है|

प्रश्न वर्णांक-मात्रांक स्थिति-वारर्क्ष-संयुतः| सप्तभक्ताअवशेषेण समे स्त्री विषमे पुमान्||

प्रश्न वर्णांक और मात्रावर्णांक में तिथि, नक्षत्र और वार की संख्या को जोड़कर सात का भाग देने से सम शेष बचे तो स्त्री और विषम शेष बचे तो पुरुष समझना चहिये|

लग्नात् विषमोपगतः श्नैश्चरः पुंजन्मकरो भवति|

प्रश्न लग्न से शनि यदि विषम स्थान में हो तो पुरुष (पुत्र) की प्राप्ति होती है और प्रश्न लग्न से यदि शनि सम स्थान में बैठा हो तो कन्या (स्त्री) की प्राप्ति होती है|

इस के अलावा यदि प्रश्नकर्ता सू. मं. गु. वार को पुत्र सम्बन्धी प्रश्न पूछता है तो पुत्र होगा ऐसा कहना चाहिए और यदि पृच्छ्क च. बु. शु. को पुत्र सम्बन्धी प्रश्न करता है तो पुत्री की प्राप्ति होगी ऐसा दैवज्ञ को कहना चाहिए|

विवाह ज्ञान विवाह का कारक गुरुः होता है और विवाह- विवाह का कारक शुक्र भी होता है|

आदौ सम्पूज्य रत्नादिभिरथ गणकं वेदयेत् स्वस्थचित्तम् कन्योद् दिगीशानलहय विशिखे प्रश्नग्नाद् यदेन्दुः दृष्टो जीवने सद्दयः परिणय करो गोतुलाकर्कटाख्यः वा स्यात् प्रश्नस्य लग्नं शुभखचरयुतालोकितस्तद् विदध्यात्|

-मुहूर्त्तचिन्तामणि विवाहप्रकरण

प्रश्न लग्न से चन्द्रमा (10, 11, 3, 7, 5) मे हो तो विवाह क कारक होत है किन्तु अगर इन सभी स्थानों में यदि गुरु की दृष्टि पड़ती है तो सद्दयः शादि होती है|

यदि च. (3, 7, 11, 5, 6) स्थों में वर्तमान हो और बुध रवि, वृहस्पति से देखा जाय तो विवाह कारक होता है वा वृहस्पति, बुध, शुक्र और चन्द्रमा यदि लग्न से त्रिकोण (1/5) व केंद्र (1, 4, 7, 10) स्थानों में रहे तो विवाह्कारक होते हैं|

प्रश्न पिण्डांक में आठ का भाग देकर एक शेष बचे तो बिना प्रयास से विवाह हो, दो शेष बचे तो यत्न से विवाह होता है| तीन शेष बचे तो विवाह का अभाव, चार बचे तो कन्या मरण, पांच चाचा (पितृत्व) मरण, छः बचे तो राजभय, सात शेष बचे तो वर कन्या दोनों का मरण या श्वसुर का मरण तथा शून्य बचे तो संतान का मरण होता है| यदि कोई पूछे कि विवाह होगा या नहीं? वहाँ प्रश्न लग्न से 3, 5, 6, 7 वें अथवा ग्यारहवें स्थान में चन्द्रमा और उसके ऊपर गु. सु. और बुध की दृष्टि हो तो विवाह अवश्य होगा| अथवा 5, 9 और केंद्र स्थान में शुभ-ग्रह हो तो भी विवाह अवश्य ही होगा ऐसा कहना चहिये|

Tuesday, 30 May 2017

कुंडली में अगर मंगल और शुक्र एक साथ हो और किसी भी पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो कुंडली वाला इंसान निश्चित रुप से व्यभिचारी होता है और अगर माहौल या परिवेश पक्ष में रहता है (मसलन हॉस्टल में साथ साथ रहना) तो जातक समलैंगिकता का शिकार हो सकता है .

विशेष योग बनाता है समलैंगिक  आजकल समलैंगिकता को लेकर चारों तरफ जोर-शोर से चर्चा हो रही है .

कुछ देशों में इसे सामाजिक और कानूनी मान्यता है तो कुछ में इसकी मान्यता को लेकर लड़ाई चल रही है.

ऐसे में ज्योतिष शास्त्र में भी इसके विशेष योगों की तलाश जरुरी है . हमने ऐसे ही योग पर अध्ययन किया और पाया कि भारतीय ज्योतिष में जो योग व्यभिचार की श्रेणी में है और अलग से किसी भी तरह से पीड़ित है तो लोग समलैंगिकता की ओर आकर्षित होते हैं .

ऐसे ही कुछ योग की चर्चा यहां की जारही है. समलैंगिकता के लिए कुछ विशेष योग ……

1 कुंडली में अगर मंगल और शुक्र एक साथ हो और किसी भी पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो कुंडली वाला इंसान निश्चित रुप से व्यभिचारी होता है और अगर माहौल या परिवेश पक्ष में रहता है (मसलन हॉस्टल में साथ साथ रहना) तो जातक समलैंगिकता का शिकार हो सकता है .

2 इसी तरह मंगल और शुक्र के साथ-साथ राहु भी हो तो यह योग जातक को समलैंगिक बना सकता है .

3 सप्तमेश अगर राहु के साथ हो और कोई अन्य नीच का ग्रह भी साथ में हो तो भी इंसान समलैंगिक हो सकता है.

4 सप्तमेश अगर नीच का होकर किसी पाप ग्रह के साथ अवस्थित हो तो भी इंसान समलैंगिक हो सकता है .

5 सप्तमेश अगर किसी नीच के पापी ग्रह के साथ हो तो समलैंगिकता की आशंका बनी रहती है.

6 सप्तमेश और पंचमेश का योग हो और इनमें से कोई एक नीच का हो ,साथ ही कोई पाप ग्रह युत या दृष्ट हो तो भी इंसान समलैंगिक हो सकता है. सप्तमेश दो या दो से अधिक पापग्रह के साथ कहीं भी खास कर पंचम भावगत हो तो भी समलैंगिकता की संभावना बनती है.

8 सप्तम भाव अगर दो या दो से अधिक पापग्रह से पीड़ित हो और सप्मेश भी कहीं पापाक्रांत हो तो भी इंसान समलैंगिक हो सकता है .

9 सप्तमेश पापाक्रांत हो कर या नीच का होकर अगर पंचम भाव में अवस्थित हो और पंचमेश भी कहीं पापग्रह से युत या दृष्ट हो तो भी समलैंगिक होने के आसार बढ़ जाते हैं

10 पंचमेश पापाक्रांत होकर सप्तम भाव में अगर अवस्थित हो और सप्तमेश भी कहीं पापाक्रांत होकर अवस्थित हो तो भी समलैंगिक होने की संभावना बढ़ जाती है. खासबात ये है कि समलैंगिकता के लिए जरुरी है कि आवश्यक योग वाले दो पुरुष या स्त्री साथ साथ हों अन्यथा यह योग कारगर या असरकारक नहीं हो पाते हैं.

जानिए कही आपकी जन्म कुंडली मे व्यभिचारी जीवनसाथी मिलने के योग तो नहीं?

जानिए कही आपकी जन्म कुंडली मे व्यभिचारी जीवनसाथी मिलने के योग तो नहीं?

हमारे हिन्दू शास्त्रो और समाज मे एक विवाह प्रथा प्रचलित है। अतः आप सभी से मेरा निवेदन है की गुण मिलान एवं कुंडली मिलान के उपरांत किसी योग्य, अनुभवी और विद्वान ज्योतिषी से यह भी अवश्य ज्ञात कर वाले कि कहीं लडका या लड़कीं कि कुंडली मे अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनने के योग तो नहीं है।

आजकल विवाहोपरांत पति-पत्नी के झगड़े तो आम बात बन गये है। पति-पत्नी मे सामान्य नोंक-झोंक से तो प्रेम और बढ़ता है।

लेकिन नाजायज संबंधों के कारण उत्पन्न होने वाले झगड़े दोनो के बिच मे गाली गलोच-मारपीट, अलगाव, कोर्ट कचेरी के चक्कर एवं तलाक, आत्महत्या, कत्ल तक पहुंच जाती है।

कई लडके-लड़की को ऐसा जीवन साथी मिलता है, जो अपने नाजायज संबंधों के कारण अपने पति-पत्नी को विभिन्न तरह कि यातनाएं देता है।

ऐसी समस्याओ को भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मूल सिद्धांतो से ज्ञात किया जा सकता है की लडका या लड़की को कैसा पति-पत्नी मिलेगी ?

यदि किसी जन्म कुंडली मे शुक्र उच्च का हो तो ऐसे व्यक्ति के कई प्रेम प्रसंग हो सकते है, जो कि विवाह के बाद भी जारी रहते है। मारपीट करने वाला कई स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध रखने वाला जीवनसाथी मिलने के योग होने पर उन्हे मंत्र-यंत्र-तंत्र, रत्न इत्यादि उपाय करके ऐसे योग का प्रभाव कम किया जा सकता है।

जन्म कुंडली के सप्तम भाव मे मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता है स्त्री-पुरुष के विवाहेत्तर संबंध भी बनाता है। संतान पक्ष के किये कष्टकारी होता है।

मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति-पत्नी मे दूरियां बढ़ती है। जन्म कुंडली के द्वादश भाव मे मंगल शैय्या सुख, भोग, मे बाधक होता है।

इस दोष के कारण पति पत्नी के सम्बन्ध मे प्रेम एवं सामंजस्य का अभाव रहता है।

यदि मंगल पर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो, तो व्यक्ति मे चारित्रिक दोष और गुप्त रोग उत्पन्न कर सकता है।

व्यक्ति जीवनसाथी को घातक नुकसान भी कर सकता है। ध्यान रखे, जन्म कुंडली मे सप्तम भाव मे शुक्र स्थित व्यक्ति को अत्याअधिक कामुक बनाता है,

जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध बनने कि संभावना प्रबल रहती है।

जिस्से वैवाहिक जीवन का सुख नष्ट होता है। यदि जन्म कुंड़ली के सप्तम भाव मे सूर्य हो, तो अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनाने वाला जीवनसाथी मिलता है।

यदि जन्म कुंड़ली मे शत्रु राशि मे मंगल या शनि हो, अथवा क्रूर राशि मे स्थित होकर सप्तम भाव मे स्थित हो, तो क्रूर, मारपीट करने वाले जीवनसाथी कि प्राप्ति होती है।

यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है।

यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला कई स्त्री-पुरुष से संबंध रखने वाला व्यभिचारी होता है व विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है।

उक्त ग्रह दोष के कारण ऐसा जीवनसाथी मिलता है जिसके कई स्त्री-पुरुष के साथ अवैध संबंध होते है।

जो अपने दांपत्य जीवन के प्रति अत्यंत लापरवाह होते है।

यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव मे हो, तो यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद पैदा होता है।

इस योग के कारणा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग भी हो सकते है।

इस योग के प्रभाव से पति-पत्नी दोंनो के विवाहेत्तर संबंध बन सकते है।

इस लिये जिन पुरुष और कन्या कि कुंडली मे इस तरह का योग बन रहा हो उन्हे एक दूसरे कि भावनाओ का सम्मान करते हुवे अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिए।

ज्योतिष :कुण्डली से जाने : अनैतिक संबंध :विवाहेतर संबंध :

ज्योतिष :कुण्डली से जाने : अनैतिक संबंध :विवाहेतर संबंध :

उपाय कुण्डली से जाने अनैतिक संबेधों के कारक :

ग्रह भाव :

चंद्र ,मंगल ,शुक्र ,राहु सप्तम भाव,पंचम ,द्वादश प्रमुख है।

मंगल :

कर्मठ ,शारीरिक शक्ति , विवाहेतर संबंधों का कारक।

शुक्र :

विपरीत लिंग से: रोमांस की दृष्टि से आकर्षित करने की क्षमता, कामेच्छा, के लिए प्रेरित । .

शनि :

आलोचना। राहु-केतु :स्वामी के अनुरूप ही संबंध ।

मंगल तथा शुक्र :

कामुक संबंध । विवाह का कारक चंद्र, मंगल और शुक्र हैं।

भाव :

सप्तम भाव व सप्तमेश, पंचम भाव व पंचमेश तथा द्वादश भाव व द्वादशेश का किसी भी रूप में संबंध हो तो अनैतिक संबंध बनते है।

चंद्र की भी अहं भूमिका होती है।

मंगल ने शारीरिक शक्ति प्रदान की करता है।

विवाहेतर संबंधों का कारक का काम करता है।

सप्तम भाव में मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता है कुंड़ली मे सप्तम भाव में सूर्य हो, तो अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनाने वाला जीवनसाथी हो सकता है।

अनैतिक संबेधों का कारण,दृष्टि, युति आदि से होता हैं।

योगों में शनि का योगदान अनैतिक संबंध कारक माना जाता है।

जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव में चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर जातक किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है।

कुंड़ली मे सप्तम भाव में राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला और व्यभिचारी होता हैं व विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है।

कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव में हों,मतभेद पैदा करता हैं।

सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव का संबंध उपर्युक्त योगों के साथ हो तो अनैतिक संबंध बनते है।

कुंडली में शुक्र उच्च का होने पर व्यक्ति के कई प्रेम प्रसंगहो सकते हैं ।

निर्बल मंगल गोपनीय संबंध बनाकर विवाहोपरांत जीवन को कष्टमय बना सकता है।

लेकिन मंगल और शुक्र दोनों बलवान हों तो बहु संबंधों के साथ बहुविवाह भी होते हैं ।

चतुर्थ एवं सप्तम भाव मंगल और राहु से प्रभावित हों, तो कई स्त्रियों या पुरुषों से संबंध बनते हैं।

सप्तम भाव व सप्तमेश, पंचम भाव व पंचमेश तथा द्वादश भाव व द्वादशेश का किसी भी रूप में संबंध हो, विवाहेतर संबंध बनते हैं।

बहु संबंध एवं बहु विवाह का एक प्रमुख कारण देस ,काल , वातावरण होता है।

अनैतिक संबंध :

पुरुष सौंदर्यप्रिय तथा स्त्री धनप्रिय होने के कारण विवाह के कारण बनते हैं।

वास्तुदोषों के कारण होते हैं। साथ मै ग्रह योगों की भूमिका मुख्य होती है। एक दूसरे कि भावनाओं का सम्मान करते हुवे अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिए।

ऐसे अशुभ ग्रह योग का प्रभाव कम करने के लिए यह उपाय करें: •

प्रतिदिन शिव-पार्वतीजी का पूजन करें।

पूरे विधि-विधान से हरितालिकातीज का व्रत रखें। • सोमवार का व्रत रखें।

• मोती की अंगुठी धारण करें। •

माता-पिता का हृदय कभी ना दुखाएं और उनका या अन्य किसी बड़े व्यक्ति का अनादर बिल्कुल ना करें।

मंगल ,राहु व शनि के उपाय करना चाहिए। •

हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का पाठ करें। •

प्रतिदिन पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें।

मंत्र-यंत्र-, रत्न उपाय करके ऐसे योग का प्रभाव कम किया जा सकता हैं। विद्वान एवं जानकार ज्योतिषी से परामर्श लेना चाहिए।


ऐसे कोन-कोन से योग होते हैं जो जातक को ऐक से अधिक साथियो के प्रति आकर्षित करते हैं !

व्यभिचारी होने का योग :-

मनुष्य ओर पशु सभी जीव मे कामभाव को बड़ा प्रबल ओर प्राकृतिक माना गया हे | जीव सृष्टि के अस्तित्व ओर व्याप के लिए इसका होना अनिवार्य हे |

समान्यतः दैहिक क्रिया से ही नवसर्जन होता है | किंतु सुध्रढ़ सुसंस्कृत सामाजिक व्यवस्था मे अंकुशित संयमीत कामभाव को ही स्वीकृति मिली हे |

प्राचीन काल मे एक पुरुष की अनेकों पत्नी या एक स्त्री के अनेकों पति या पुरुषो से संबंध प्रचलित देखे जाते थे |

आज की इस आधुनिक जीवन शैली में कुछ व्यक्तिओ को ऐक से अधिक साथी की ( केवल शारीरिक संबंध – दैहिक सुख) के लिए अनुचित जरूरत लगती हैं !

परंतु ऐसे जातको के कुंडली के ग्रहयोग ही उनको ऐक से अधिक साथियो के प्रति उन्हे आकर्षित करते हैं ! सहज रूप गुण या सौंदर्य से मोहित या आकर्षित होते रहेना ये विजातीय आकर्षण अंशतः प्रकृतिक माना जाता है |

लेकिन व्यभिचार का सहज अर्थ समझे तो सामाजिक निर्देशित बाध्य आचारों की सीमाओ का उलंगन करना | अथवा सीमित ( केवल दैहिक संसर्ग ) जेसे हिन माने जाते उद्देशों की पूर्ति हेतु नीति विरुद्ध अनेकों व्यक्तिओ से शारीरिक सबंध बनाते रहेना |

ऐसे कोन-कोन से योग होते हैं जो जातक को ऐक से अधिक साथियो के प्रति आकर्षित करते हैं !

ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को प्रेम –

प्रणय काला साहित्य रसिकता लालित्य का कारक मानते हैं| और मंगल को उत्तेजना आक्रमण आक्रोश जुनून का कारक कहा जाता हैं| जब भी प्रेम और उत्तेजना कि युति होगी तो उपरोकर अनिष्ठ कृष्ण योग का निर्माण होगा |

अधिकतर कुंडलियो में शुक्र व् मंगल की युति या द्रष्टि संबंध बने तो व्यभिचारी योग / कृष्ण योग फलित होता हैं |

या जातक एक से अधिक साथियो की प्रति आकर्षित करते हैं !

परंतु सिर्फ शुक्र व् मंगल की युति या द्रष्टि सबंध होने से कोई भी ज्योतिषी किसी जातक के चरित्र का आंकलन नहीं कर सकता !

इस योग मे हमारी कुंडली के अन्य भावो का भी योगदान रहता हैं! जेसे कि यदि शुक्र व् मंगल की युति या द्रष्टि संबंध बने तो व्यभिचारी योग /

कृष्ण योग नजदीकी मित्र के साथ बनता हैं!

यदि शुक्र या मंगल दोनों में से कोई भी गृह नवम भाव का स्वामी हो तो जातक के संबंध अपने देवर ( पति को छोटा भाई ) या साली (पत्नी कि छोटी बहेन ) के साथ संबंध बनता हैं !

परंतु इस योग क मध्य में १२ भाव का संबंध होना आवश्यक हैं तभी इस योग को फल मिलता हैं!

क्यों कि ज्योतिष शास्त्र में १२ भाव को शय्या सुख का भाव बोला जाता हैं और बिना शय्या सुख के दो जातको के मध्य में संबंध नहीं बन सकता हैं!

यदि इस योग में शनि ग्रह कि युति या द्रष्टि संबंध हो तो जातक के संबंध अपने से बड़े जातक से बनते हैं और यदि राहू /केतु कि युति या संबंध बने तो नीच लोगो के साथ संबंध बनते हैं !

यदि इस योग क मध्य में सूर्य हो तो किसी बड़े पद के जातक/जातिका से परंतु बनाते हैं!

यदि शुक्र और मंगल के साथ बुध या शनि गृह कि भी युति हो जाये तो जातक सम्लेगिक होता हैं!

यह योग शुक्र ओर केतु कि युति होने से भी फलित होता हैं ऐसा कुछ एक कुंडलियो में देखा गया हैं |

इस योग के भंग होने का योग किसी एक ग्रह का वक्री होने पर होता हैं |

परंतु वो ग्रह वक्री होकर निर्बल होना चाहिए! अब बात आती हैं कि इस योग का खुलना और छुपा – गुप्त रहने का क्या योग होगा ?

उसके कुछ योग इस प्रकार से देखे गए हैं ....

जैसे के :-

यदि शुक्र व् मंगल की युति या योग पर गुरु कि द्रष्टि हो तो यह योग छुपा –गुप्त रहता हैं |

क्यों कि गुरु हमारे सभी नवग्रहों में सब से बड़ा हैं और वह सब कुछ छुपा लेता हैं या उस के निचे सब कुछ छिप जाता हैं !

परंतु गुरु कुंडली में जिस भाव का स्वामी होगा उस भाव से सम्बंधित जीव कि जानकारी में यह योग होगा परंतु सब से छुपा हुआ ही रहेगा और यदि यह योग ४ भाव में बने तो भी छुपा हुआ रहता हैं क्यों कि चतुर्थ भाव जमीन के नीचे के भाव को भी दर्शता हैं |

यह योग क्यों गुप्त छुपा हुआ रहता हैं इस कि सामाजिक चर्चा हम फिर कभी देखेंगे |

यदि नवमांश कुंडली में शुक्र और मंगल कि युति किसी भी एक राशी में बने तो भी कृष्ण योग बनता हैं! अब कई बार हमारे मन में आता हैं कि हम सिर्फ शुक्र और मंगल से ही कृष्ण योग का निर्माण क्यों मानते हैं|

या विद्वादजनो ने शुक्र और मंगल से ही कृष्ण योग को क्यों फलित माना हैं! ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को प्रेम – प्रणय का कारक मानते हैं|

और मंगल को उत्तेजना का कारक कहा जाता हैं| जब भी प्रेम और उत्तेजना कि युति योगी तो कृष्ण योग का निर्माण होगा| यदि कुंडली में शुक्र बलि हो तो जातक का प्रेम निश्छल सात्विक होता हैं!

यदि कुंडली में ५,७,११,१२ भाव कि युति या कोई भी एक संबंध बने तो कृष्ण योग का उपयोग व्यावसायिक कार्यो में होता हैं और यदि कुंडली में ५,८,१२ भावेशो कि युति या संबंध बने तो बदनामी या लांछन का योग भी बनता हैं!

क्यों कि अष्टम भाव बदनामी का भाव होता हैं और यदि इस योग में १,५,६,८,१२ व् शनी कि युति हो जाये तो जातक किसी कोर्ट केस में उलज जाता हैं! साथ ही राहू ओर शुक्र की युवती अन्य या अधिक विजातीय पात्र के प्रति तीव्र आकर्षण ओर गुप्त संबंधों का निर्देश देते हे | राहू के साथ शुक्र के जुड़े होने से जातक चरित्र को सैयमित बनाये राख्ने मे संघर्ष करता हे |

साथ ही अन्य भाव ओर ग्रह फल का अध्ययन भी अनिवार्य बन जाता हे | लेकिन ज़्यादातर उपरोक्त ग्रह स्थिति मे जातक का चरित्र ओर विजातीय के प्रति व्यवहार संकशील तो बना ही रहेता हे | ओर ऊपर से स्वगृही शुक्र हो तो ये शुक्र के साथ राहू अनेकों पापाचर के प्रति प्रेरित तो करता ही हे |

जबरन कामपूर्ति ,आसुरीक कृत्य , बलात्कार जेसी मानसिकता ओर काम भाव के साथ साथ शारीरिक हानी हिंसा या हत्या तक के परिणाम भी देखे जाते हे |

ओर भी अनेकों योग या प्रमाण के तथ्य मिल सकते हे | बस जातक की स्पष्ट जानकारी ओर उसका सटीक अध्ययन आवकार्य होता हे |

पंडित~ Bhubneshwar
Kasturwangar parnkuti guna
०9893946810