श्राद्ध---कई क्षेत्रोंमें देखा/सुना जाता है कि प्रायः लोग सौभाग्यवती स्त्रीके श्राद्धमें सौभाग्यवती स्त्रीको,
विधवा स्त्रीके श्राद्धमें विधवा स्त्री को,
तथा बालकोंके श्राद्धमें बालकोंको निमंत्रित करते हैं
परंतु यह परंपरा अशास्त्रीय है/ गलत है ऐसा नहीं करना चाहिए।
माता-पिता, सधवा, विधवा, बालकादिके सभी प्रकारके श्राद्धोंमें वेदज्ञ, श्रेष्ठ, सदाचारी, सत्कुलोत्पन्न, श्रोत्रिय, सन्ध्या गायत्रीसे युक्त, पुरुष ब्राह्मणोंको ही निमंत्रित करनेका शास्त्रोंमें विधान है।*
शास्त्रोंमें कहीं भी स्त्रियोंके लिए श्राद्धमें निमंत्रण करनेका विधान नहीं है इसलिए माता बहनोंका श्राद्धमें जाना, उन्हें निमंत्रित करना दोनों ही अपराध हैं।
हां शास्त्रोंमें इतना जरूर कहा गया है कि सौभाग्यवती स्त्रीके श्राद्धमें अथवा सती ( पतिके साथ जलने वाली स्त्री) के श्राद्धमें ब्राह्मणोंके साथमें ब्राह्मणीका भी (जोड़े से) निमंत्रण करे—
*#भर्तुरग्रे_मृता_नारी_सहदाहेन_वा_मृता।*
*#तस्याः_स्थाने_नियुञ्जीत_विप्रैः_सह_सुवासिनीम्।।*
(मार्कण्डेय)
*#श्राद्धमें_विहित_उत्तम_ब्राह्मण—*
*श्रोत्रियायैव देयानि हव्यकव्यानि दातृभिः।*
*अर्हत्तमाय विप्राय तस्मै दत्तं महाफलम्।।*
(#मनुस्मृति- 3/128)
*#अर्थ—* देवताओंसे संबंधित अन्नको और पितरों से संबंधित अन्नको श्रोत्रिय (वेदपाठी) कुलाचारसे भी योग्यतम ब्राह्मण को ही देना चाहिए, इस प्रकारके श्रेष्ठ ब्राह्मणको दिया गया हव्य तथा कव्य महाफलको देने वाला होता है।
*सहस्रं हि सहस्राणामनृचां यत्र भुञ्जते।*
*एकस्तान्मन्त्रवित्प्रीतः सर्वानर्हति धर्मः।।*
(#मनुस्मृति–3/ 131)
*#अर्थ—* जहां वेदोंको न जानने वाले 1000000 ब्राह्मण भोजन करें ,वहां वेद मन्त्रज्ञ एक ही ब्राह्मण धर्मफल देनेमें उन सबके तुल्य होता है इसलिए उन सबके स्थानमें एक ही वेदज्ञ योग्य होता है।
*#अश्रोत्रिय_ब्राह्मणोंको_श्राद्धादिमें_भोजन_नहीं_कराना_चाहिए—*
*यावतो ग्रसते ग्रासान् हव्यकव्येष्वमंत्रवित्।*
*तावतो ग्रसते प्रेत्य दीप्तशूलरष्ट्ययोगुडान्।।*
*#अर्थ—* वेदमंत्र न जाने वाला ब्राह्मण देवकार्यमें और पितृकार्यमें जितने ग्रास खाता है , तो उसको खिलाने वा ला मनुष्य उतने ही जलते हुए शूल और लोहे के पिण्डों को मरने कर नरकमें जाकर खाता है।
*#सुयोग्य_श्रोत्रिय_आदि_ब्राह्मणोंके_न_मिलने_पर_श्राद्धके_लिए_मध्यम_ब्राह्मण—*
मातामहादि संबंधियोंको ही श्राद्धमें निमंत्रित करना चाहिए—
#एतान्_मातामहादीन्_दश_मुख्यश्रोत्रियाऽऽद्यसम्भवे_भोजयेत्।
(#मन्वर्थमुक्तावल्याम्)
*मातामहं मातुलं च स्वस्रीयं श्वशुरं गुरुम्।*
*दौहित्रं विट्पतिं बन्धुमृत्विग्याज्यौ च भोजयेत्।।*
(#मनुस्मृति- 3/148)
*#अर्थ—* नाना, मामा, भांजे, ससुर, गुरु, दौहित्र (पुत्रीका पुत्र), दामाद, बंधु , ऋत्विक और अपने यजमानको भी देवकार्य एवं पितृ कार्यमें भोजनीय ब्राह्मणके रूपमें भोजन करावे।
श्राद्धमें भोजनके लिए यदि #भानजा मिले तो दस ब्राह्मणोंसे श्रेष्ठ है ।
#दौहित्र सौ ब्राह्मणों से श्रेष्ठ है।
#जीजा हजार ब्राह्मणों से श्रेष्ठ बताया गया है।
और #जमाई सबसे श्रेष्ठ बताया गया है—
*भागिनेयो दशविप्रेण*
*दौहित्र शतमुच्यते।*
*भगिनीभर्ता सहस्रेषु*
*अनन्तं दुहितापति:।।*
(#व्याघ्रपाद_स्मृतिः)
उपर्युक्त संबंधियोंका श्राद्धादिमें भोजन कराना केवल ब्राह्मणोंके लिए ही विहित हैं।
क्षत्रिय आदि तो केवल ब्राह्मणोंका ही निमंत्रण करें, क्योंकि उनके संबंधी तो ब्राह्मण है नहीं इस दृष्टि से।
*#श्राद्धमें_वर्ज्य_ब्राह्मण*
*#धर्मसिंधुके_आधार_पर—*
क्षय आदि महारोगोंसे युक्त
विकलांग, काणा, बहरा, गूंगा, दुश्मन, जुआरी
द्रव्य लेकर पढ़ाने वाला
मित्रद्रोही, निंदक,
कुत्सित नखों वाला
काले दांतों वाला, हिजड़ा
माता, पिता, गुरुको त्यागने वाला
चोर, नास्तिक,
पाप कर्म करने वाला
स्नान संध्यादि कर्मोंको त्यागने वाला
नक्षत्रविद्यासे उपजीविका चलाने वाला
वैद्य, राजाका नौकर, गायक,
लिखने वाला (पैसा लेकर जो टाइपिंग करते हैं )
ब्याज लेने वाला
वेद बेचने वाला
कविता करके उपजीविका करने वाला
पुजारी,
कला प्रदर्शन करने वाला
समुद्र यात्रा करने वाला
शस्त्र बनाने वाला
पक्षियोंको पालने वाला
परिवेत्ता (बड़े भाईके अविवाहित रहते विवाह करने वाला)
शिल्प कर्म करनेवाला
शूद्र से होम करानेवाला
जटा वाला, दया से रहित
रजस्वला स्त्रीका पति
गर्भिणी स्त्री का पति
कूबड़ा, वोंना, व्यापारी
जिसकी स्त्री मर गई हो
शूद्रका गुरु
शूद्रका शिष्य
पाखंडी, गायोंको बेचने वाला
रस बेचने वाला
वेदकी निंदा करनेवाला
कृपण, पतित
मेंढा़ और भैंसा पालनेवाला
वेदको भूलनेवाला
ऐसे ब्राह्मणोंको देवकर्ममें और पितृकर्ममें वर्जित करना चाहिए।
*#विद्याशीलादिगुणत्वे_कुष्ठित्वकाणत्वादिशारीरदोषाणां_न_दूषकत्वम्।*
(#धर्मसिंधौ)
*#अर्थ—* विद्या, शीलादि गुणोंसे युक्त ब्राह्मण कुष्ठी और काणादि होने पर भी त्याज्य नहीं है।
श्राद्ध आदिमें यथोक्त गुण संपन्न ब्राह्मण न मिलने पर उपर्युक्त अवगुणों वाला तो नहीं ही लेना चाहिए ।
यथोचित गुणोंसे रहित तथा वर्ज्य अवगुणों से भी रहित ब्राह्मण मध्यम श्रेणी के कहे गए हैं।
श्राद्धमें कहीं भी स्त्री आदिको निमंत्रित करनेकी आज्ञा नहीं दी गई है। इससे सुस्पष्ट है कि श्राद्धमें ब्राह्मणी स्त्रियां भी वर्जित हैं।
• यदि सभी भाई इकट्ठे रहते हों तो मिलकर ज्येष्ठ भाईके हाथसे श्राद्धादि करें।
यदि अलग-अलग हों तो अलग-अलग ही श्राद्ध करें—
*भ्रातॄणामविभक्तानां*
*एक: धर्म प्रवर्तते।*
*विभागे सति धर्मोपि*
*भवेत्तेषां पृथक् पृथक्।।*
(#नारद०)
• कूष्मांड/कुमहडा़/पेठा, भैंसका दूध, बेलपत्र और मगद्विज(पर्वतीय ब्राह्मण विशेष)
इनके होने से पितर निराश होकर चले जाते हैं—
*कुष्मांडं महिषीक्षीरं*
*बिल्वपत्रमगद्विजा:।*
*श्राद्धकाले समुत्पन्ने*
*पितरो यान्ति निराश्रया:।।*
(#कृत्यसार)
गुरुदेव
Bhubneshwar
पर्णकुटी आश्रम
9893946810
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