ज्योतिष समाधान

Monday, 27 October 2025

दीपावली पर पांच दिन के मुहूर्त 2025

गुरुदेव भुवनेश्वर जी महाराज पर्णकुटी आश्रम गुना के अनुसार पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है और समापन भाई दूज पर। इन पांच दिनों में मुख्य आकर्षण माता महालक्ष्मी की पूजा होती है, जो कार्तिक अमावस्या की रात में की जाती है। इस दिन लोग घर-आंगन में दीप जलाकर अंधकार को दूर करते हैं और धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। आइए जानते हैं, इस साल धनतेरस, छोटी दिवाली, महालक्ष्मी पूजा, गोवर्धन पूजा और भाई दूज के शुभ मुहूर्त 
 इस साल धनतेरस शनिवार 18 अक्टूबर को है।

त्रयोदशी के दिन क्षीर सागर से प्रकट हुयीं थीं तथा उन्होंने दीवाली के दिन अपने पति के रूप में भगवान विष्णु का वरण किया था। इसीलिये दीवाली अमावस्या को धन और समृद्धि की देवी को प्रसन्न करने हेतु सर्वाधिक उपयुक्त दिन माना जाता है। इस दिन लोहे के सामान नहीं खरीदना चाहिए गुरुदेव भुवनेश्वर जी के अनुसार इस दिन धातु खरीदना चाहिए जैसे सोना, चांदी तांबा पीतल आदि लोहे के बरतन भी नहीं खरीदना चाहिए 

सभी प्रकार की खरीदारी का शुभ समयः दोपहर 12:00बजे से दोपहर 03:00 बजे तक
 एवं अभिजित मुहूर्त 11:43 से 12:43 तक
 विजय मुहूर्त के अनुसार 
अपरान्ह काल 02:01 बजे से 02:43 तक शुभ रहेगा
 धनतेरस पर सोना, चांदी, पीतल, तांबे के बर्तन, झाडू, गोमती चक्र, सूखा धनिया, नमक और लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, घर की सजावट की वस्तुएँ खरीदना बहुत शुभ माना जाता है।
 X क्या न खरीदेंः धनतेरस पर चाकू, कैंची, पिन या कोई भी धारदार वस्तु खरीदना अशुभ माना जाता है।



धनतेरस पर शाम के समय भगवान धन्वंतरि, कुबेर महाराज और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। 


त्रयोदश्यां तु या रात्रिः शनिवारे विशेषतः।
धन्वन्तरिप्रसादेन दरिद्र्यं तस्य नश्यति॥”

अर्थात —
जब त्रयोदशी तिथि (धनतेरस) शनिवार को आए,
तो उस दिन धन्वंतरि पूजन से दरिद्रता सदा के लिए नष्ट हो जाती है।


शनिवारे जगद्धात्रि कोट्यावृत्तिफलं ध्रुवम्॥” 


त्रयोदश्यां यमदीपं तु कुर्यादायुर्यमोदितम्।
दारिद्र्यनाशनं सर्वं सौभाग्यं तत् प्रयच्छति॥



अर्थ:
कार्तिक मास की त्रयोदशी (धनतेरस) के दिन यदि यमराज के लिए दीपदान किया जाए,
तो वह आयु और सौभाग्य प्रदान करता है तथा दारिद्र्य का नाश करता है।


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🌕 २. धर्मसिंधु (दीपमालिका विधिः)

> धनत्रयोदश्यां दीपदानं यमदीपं विशेषतः।
कृत्वा प्रातःस्नानसमये धनं धान्यं च वर्धते॥



अर्थ:
धनत्रयोदशी के दिन दीपदान (विशेषकर यमराज हेतु) करने से धन और धान्य की वृद्धि होती है।


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🌕 ३. कालिकापुराण (दीपदान फलवर्णन)

> यः कुर्याद् दीपदानं तु धनत्रयोदश्यां निशि।
तस्य धन्यं च आयुश्च भवेत् संततिवर्धनम्॥



अर्थ:
जो धनत्रयोदशी की रात्रि में दीपदान करता है,
उसका धन, आयु और संतति (वंश) तीनों बढ़ते हैं।





धनतेरस पर मृत्यु के देवता यमराज का सम्मान भी किया जाता है।
 शाम के समय घर के बाहर दक्षिण दिशा में चौमुखी दीपक जलाकर यमराज से लंबी आयु की कामना की जाती है।

त्रयोदशी तिथि आरंभ: 18 अक्टूबर दोपहर 12:18 बजे

त्रयोदशी तिथि समाप्त: 19 अक्टूबर दोपहर 1:51 बजे

दीपदान समय:::::::::::

(1)धनतेरस पूजा मुहूर्त: शाम 7:16 से 8:20 बजे तक  शुभ रहेगा
(2)प्रदोष काल: सायंकाल 5:48  –रात्रि  8:20 तक शुभ रहेगा

(3)वृषभ लग्न :सायंकाल 7:16 – रात्रि 9:11 तक शुभ रहेगा 

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भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर पर विजय का प्रतीक। 
 2025 में छोटी दिवाली सोमवार 19 अक्टूबर को पड़ेगी।

अभ्यंग स्नान मुहूर्त - प्रात: 05:13 से प्रात: 06:25  

नरक चतुर्दशी के दिन चन्द्रोदय का समय - : प्रात:05:13 

अभ्यंग स्नान महत्व
शास्त्रों के अनुसार, नरक चतुर्दशी पर सूर्योदय के पूर्व शरीर पर उबटन लगाकर स्नाने करने की प्रक्रिया को अभ्यंग स्नान कहा जाता है. जिसमें हल्दी, दही, तिल का तेल, बेसन, चंदन, जड़ी-बूटियों का लेप किया जाता है. इस लेप से पूरे शरीर की मालिश की जाती है.

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दिवाली का आवश्यक अंग, श्राद्ध कर्म भी है जोकि 20 तारीख़ को कुतुप काल में संभव नहीं है इसलिए 20 में कर्म का लोप हो रहा है। इस स्थिति में 20 में  दिवाली मनाए और 21 में अभ्यंग स्नान, श्राद्ध और पूर्वजो को मशाल प्रज्वलित करके पितरों को मार्ग का दर्शन अवश्य करायें। जिससे शात्र विधि पूरी हो सके
दीपावली शाम को लक्ष्मी और गणेश पूजा होती है। 2025 में महालक्ष्मी पूजन सोमवार 20 अक्टूबर को होगा।

अमावस्या तिथि आरंभ:

 20 अक्टूबर दोपहर 3:44 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त:

 21 अक्टूबर शाम 5:54 बजे


गुरुदेव भुवनेश्वर जी महाराज पर्णकुटी वालो के अनुसार अमावस्या की रात स्थिर लग्न में महालक्ष्मी की पूजा करने से घर में मां लक्ष्मी की स्थिरता बनी रहती है। वैसे तो चार स्थिर लग्न है, 

वृष, सिंह, वृश्चिक, और कुंभ।

  1. वृश्चिक लग्न - दीवाली के दिन प्रातःकाल वृश्चिक लग्न प्रबल होता है। मन्दिरों, अस्पतालों, होटलों, विद्यालयों और महाविद्यालयों के लिये वृश्चिक लग्न के समय लक्ष्मी पूजा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। विभिन्न टीवी और फिल्म कलाकारों, शो एन्करों, बीमा अभिकर्ताओं तथा जो लोग सार्वजनिक मामलों एवं राजनीति से जुड़े हैं, उन्हें भी वृश्चिक लग्न के दौरान देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिये।
  2. कुम्भ लग्न - दीवाली के दिन मध्यान्ह के समय कुम्भ लग्न प्रबल होता है। जो रोगग्रस्त एवं ऋणग्रस्त हैं, भगवान शनि के दुष्प्रभाव से मुक्ति प्राप्त करने के इच्छुक हैं, जिनके व्यापार में धन हानि हो रही है तथा व्यापार में भारी ऋण में है, उनके लिये कुम्भ लग्न में लक्ष्मी पूजा करना उत्तम होता है।
  3. वृषभ लग्न - दीवाली के दिन सायाह्नकाल में वृषभ लग्न प्रबल होता है। गृहस्थ, विवाहित, सन्तानवान, मध्यम वर्गीय, निम्न वर्गीय, ग्रामीण, किसान, वेतनभोगी तथा जो सभी प्रकार के व्यवसायों में संलिप्त व्यापारी हैं, उनके लिये वृषभ लग्न लक्ष्मी पूजा का सर्वोत्तम समय है। वृषभ लग्न को दीवाली पर लक्ष्मी पूजा हेतु सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है।
  4. सिंह लग्न - दीवाली के दिन मध्य रात्रि के समय सिंह लग्न प्रबल होता है। सिंह लग्न का मुहूर्त, साधु-सन्तों, सन्यासियों, विरक्तों एवं तान्त्रिकों के लिये लक्ष्मी पूजा एवं देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम मुहूर्त होता है।
Settingलक्ष्मी पूजा मुहूर्त स्थिर लग्न पर आधारित गुना, मध्यप्रदेश, भारत के लिये

इनमें से किसी भी  लग्न का उपयोग लक्ष्मी पूजा व्यापार पूजा में कर सकते है

(1)वृश्चिक लग्न मुहूर्त 
प्रात:- 08:28 से 10:45 तक

(2)कुम्भ लग्न मुहूर्त
 (अपराह्न) - 03:44 से 04:06 

(3)वृषभ लग्न मुहूर्त
 (सन्ध्या) - 07:14 से 09:12 

(4)निशिता मुहूर्त: रात 11 बजकर  41 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक

(5)सिंह लग्न मुहूर्त
 (मध्यरात्रि) - 01:43  से 03:56 21 अक्टूबर 



चोघडिया, मुहूर्त दुकान फैक्ट्री व्यापार के लिए उपयोग कर सकते हो

प्रात: काल अमृत 06:22 से 07:48 शुभ

प्रात: काल  शुभ 09:14 से 10:40 शुभ

मध्यान्ह काल चर 01:31 से 02:57 शुभ

दोपहर      लाभ 02:57 से- 04:23 शुभ

सायंकाल।  अमृत 04:23 से 05:48 शुभ

संध्याकाल लक्ष्मी पूजा के लिए विशेष मुहूर्त

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दिन ओर रात्रि के संक्रमण काल को गो धूली बेला कहते है

(1)गोधूली मुहूर्त सायंकाल 5:50से सायंकाल 06:15 तक

(2)लक्ष्मी पूजा मुहूर्त: शाम 7:08 से 8:18 बजे तक 

(3)प्रदोष काल: सायंकाल 5:46  –से  रात्रि 8:18  तक

4)वृषभ काल: सायंकाल 7:14से – रात्रि 9:012 अति शुभ मुहूर्त

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प्रदोष काल कब होता है

(1)प्रदोषोऽस्तसमयादूर्ध्वं घटिकाद्वयमिष्यते।त्र्यंशेन तस्य कालस्य यः पूज्यः स प्रदोषकः

अस्त (सूर्यास्त) के समय से ऊपर (बाद में) दो घटी का जो समय होता है, वही प्रदोषकाल कहलाता है। उस काल के तृतीयांश (एक तिहाई भाग) में जो लक्ष्मी की पूजा की जाती है, वही प्रदोषपूजा मानी जाती है।

(2)सूर्यास्तं यावत् कालं प्रदोषः संप्रकीर्तितः।

तस्य तृतीयभागस्थे पूजां कुर्यात् प्रदोषिकाम्॥

(3)अस्ताचलगतादर्कात् पूर्वं द्विघटिकापर्यन्तं च प्रदोषकालः।

अथास्तमितभानोरनन्तरं द्विघटीकान्तः स प्रदोषः परिकीर्तितः

जब सूर्य अस्ताचल (पश्चिम पर्वत) की ओर अग्रसर होता है, तो सूर्यास्त से दो घटी (लगभग 48 मिनट) पहले से लेकर सूर्यास्त के दो घटी बाद तक का जो काल होता है, वही प्रदोषकाल कहलाता है।

➡️ सूर्यास्त से 48 मिनट पूर्व आरंभ होकर

➡️ सूर्यास्त के 48 मिनट बाद तक

कुल चार घटी (लगभग 1 घंटा 36 मिनट) का काल प्रदोषकाल माना गया है।

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प्रतिपदा तिथि आरंभ: 21 अक्टूबर शाम 5:54 बजे

प्रतिपदा तिथि समाप्त: 22 अक्टूबर शाम 8:16 बजे

(1)गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त: 6:26 से प्रात:  09:14तक

(2)प्रात: काल 10:39से से 12:05 तक 

सायाह्नकाल मुहूर्त: 3:29 – से सायंकाल 5:44 

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भाई दूज:  भाई दूज गुरुवार 23 अक्टूबर को है।

द्वितीया तिथि आरंभ: 22 अक्टूबर रात 8:16 बजे

द्वितीया तिथि समाप्त: 23 अक्टूबर रात 10:46 बजे

प्रात: काल 10;39से अपरान्ह 02:56 तक

+++++++++++++++++++++++++++++गुरुदेव 

भुवनेश्वर जी महाराज 
पर्णकुटी आश्रम गुना 
9893946810

एकादशी निर्णय 2025

कार्तिक शुक्ल (हरिप्रबोधिनी) एकादशी व्रत कब करें??
जानिए शास्त्रीय समाधान, 
इस वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वादशी का क्षय हुआ है। इस स्थिति में धर्मशास्त्र निर्णयानुसार स्मार्त्त (सभीगृहस्थी) लोगों को पहिली दशमीविद्धा एकादशी वाले दिन 1 नवम्बर, 2025 शनिवार को तथा वैष्णवों (संन्यासी, विधवा स्त्री, वानप्रस्थ और वैष्णव सम्प्रदाय वाले) को 2 नवम्बर, 2025 के दिन उपवास करना चाहिए। यहाँ आगे स्पष्टीकरण दे रहे हैं-'धर्मसिन्धुकार' अनुसार एकादशी तिथि मुख्यतः दो प्रकार की होती है- (i) विद्धा और (ii) शुद्धा। (i) सूर्योदयकाल में दशमी का वेध हो अथवा अरुणोदयकाल (सूर्योदय से लगभग 4 घड़ी पूर्व) में एकादशी तिथि दशमी द्वारा विद्वा हो, तो वह (एकादशी) विद्वा कहलाती है। (ii) अरुणोदयकाल में दशमी तिथि के वेध से रहित एकादशी शुद्धा मानी जाती है।
प्रायः सभी शास्त्रों में दशमी से युक्त एकादशी व्रत करने का निषेध माना गया है। परन्तु द्वादशी का क्षय हो जाने पर स्मार्तों (गृहस्थियों) को दशमीयुता एवं वैष्णव सम्प्रदाय वालों को द्वादशी-त्रयोदशीयुता एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। पद्मपुराण अनुसार भी-
एकादशी द्वादशी च रात्रिशेषे त्रयोदशी।
उपवासं न कुर्वीत पुत्रपौत्रसमन्वितः ।।' उपरोक्त प्रमाणानुसार 11, 12, 13 तिथियों से मिश्रित दिन में स्मार्तों (गृहस्थियों)
के व्रत का निषेध और वैष्णवों के व्रत का विधान है। 'वृद्धशातातप' का भी यहाँ वचन है-'दशम्यैकादशीविद्धा द्वादशी च क्षयं गता। क्षीणा सा द्वादशी ज्ञेया नक्तं तु गृहिणः स्मृतम् ।..... गृहिणः पूर्वत्रोपवासः ।।'
ध्यान दें-यहाँ धर्मशास्त्रों में सूर्योदयवेधवती दशमी के दिन स्मार्तों को व्रत करने की आज्ञा दी है, जोकि कण्वस्मृति के सामान्य नियम 'उदयोपरि विद्धा तु दशम्यैकादशी यदि। दानवेभ्यः प्रीणनार्थं दत्तवान् पाकशासनः ।।' के बिल्कुल विरुद्ध है। परन्तु शास्त्रों द्वारा स्मार्तों के लिए त्रयोदशी में पारणा भी सर्वथा वर्जित मानी गई है। यदि द्वादशी तिथि के क्षय की स्थिति में स्मार्तों (गृहस्थियों) तथा वैष्णवों का व्रत एक ही दिन कर दिया जाए तो स्मार्तों को भी व्रत की पारणा त्रयोदशी में करने की स्थिति आ पड़ेगी।
इसीलिए निर्णयसिन्ध में 'ऋष्यश्रृंग' ने अन्य विकल्प के अभाव में तथा जब स्मार्तों को त्रयोदशी में पारणा करने की नौबत आ पड़े तब दशमीमिश्रिता एकादशी में ही व्रत करने की अनुमति दी है-
'पारणाहे न लभ्येत द्वादशी कलयाऽपि चेत् ।
तदानीं दशमीविद्वाऽपि-उपोष्यै-एकादशी तिथिः ।।' 
इस प्रकार उपरोक्त शास्त्र-विवेचन से पाठक समझ गए होंगे कि इस वर्ष एकादशी-द्वादशी-त्रयोदशी-इन तिथियों का एकत्र (एक ही वार में संगम) होने के कारण स्मार्तों (गृहस्थियों) का 'देवप्रबोधिनी एकादशी व्रत' विशेष नियमानुसार 1 नवम्बर, 2025 ई. को सूर्योदय-वेधवती दशमी के दिन शनिवार को लिखा गया है, जो सर्वथा शास्त्रीय है, जबकि वैष्णवों का व्रत 2 नवम्बर, रविवार को होगा।
भीष्मपंचक प्रारम्भ/समाप्त (1 से 5 नवम्बर)
कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक का काल (अवधि) 'भीष्मपंचक' कहलाता है। शास्त्रों में भीष्मपंचक व्रत का अनुष्ठान केवल पाँच दिन (का. शु. ११ से पूर्णिमा तक) निर्दिष्ट है। इन पाँच दिनों में व्रताचरणपूर्वक पूर्वाण में विष्णुपूजा और मध्याह्न में भीष्मपितामह के लिए एकोद्दिष्ट श्राद्ध किया जाता है। यदि शुद्धा एकादशी से उदयकालिक पूर्णिमा तक की अवधि में कोई तिथि क्षय हो जाए और भीष्मपंचकों के दिनों की संख्या चार ही रह जाए, तब शास्त्रकारों ने यह परामर्श दिया है कि दशमीविद्धा एकादशी से ही यह व्रत प्रारम्भ करके शुद्ध (जिसमें चतुर्दशी का वेध न हो) उदयकालिक पूर्णिमा के दिन ही इसे समाप्त कर लेना चाहिए। इसी प्रकार, यदि इन पाँच तिथियों में से किसी एक तिथि की वृद्धि हो जाने से भीष्मपंचकों के 6 दिन बनते हो, तो शुद्ध एकादशी वाले दिन से प्रारम्भ करके चतुर्दशी-विद्धा, पूर्णिमा के दिन ही भीष्मपंचकों को समाप्त करना चाहिए। इस बारे 'धर्मसिन्धु' का वचन है-
"एकादश्यादि-दिनपंचके भीष्मपंचकव्रतमुक्तम्। तच्च शुद्धेकादश्यामारम्य चतुर्दश्यविद्वौदयिक-पौर्णमास्यां समापनीयम्। यदि शुद्धेकादश्यमारम्भे क्षयवशेन पौर्णमास्यां पंचदिनात्मकव्रतसमाप्तिर्न घटते, तदा विर्द्धकादश्यामपि आरम्भः ।।"
इस वर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष में द्वादशी का क्षय हो जाने से भीष्मपंचक के दिन केवल चार ही बच रहे हैं। अतः उपरोक्त नियमानुसार यहाँ दशमीविद्धा एकादशी (1 नवम्बर, 2025 ) से भीष्मपंचक का आरम्भ माना गया है। स्पष्ट है, इससे पूर्णिमा तक के दिन पाँच हो गए हैं।
तुलसी विवाह (2 नवम्बर, रविवार)
कार्तिक शुक्ल एकादशी (हरिप्रबोधिनी एकादशी) की पारणा वाले दिन प्रबोधोत्सव मनाया जाता है। इसी दिन अथवा इससे अग्रिम चार (द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा वाले) दिनों में किसी भी दिन विवाह-नक्षत्र में तुलसी विवाह किया जा सकता हे 
ऐसा शास्त्रविधान है-एकादश्यादि पूर्णिमान्ते यत्र क्वापि दिने कार्तिक शुक्लान्तर्गत-विवाह-नक्षत्रेषु वा विधानादनेक कालत्वं तथापि पारणाहे प्रबोधोत्सव कर्मणा सह
- परन्तु प्रबोधोत्सव के साथ एकादशी व्रत पारणा वाले दिन पूर्वरात्रि में (अर्धरात्रि से पहिले ही रात्रिकाल में) तुलसी विवाह करने की परम्परा है-ऐसा 'धर्मसिन्धुकार' का निर्देश है-
'रात्रि प्रथमभागे प्रशस्तः।' यदि पारणा के दिन पूर्वरात्रिकाल में विवाह-नक्षत्र न हो तो दिन के समय प्राप्त विवाहनक्षत्र में, यदि वहाँ भी न मिले तो उसके बिना भी पूर्वरात्रि में तुलसी-विवाह पारणा के दिन कर लेना चाहिए।
इस वर्ष 2 नवम्बर, 2025 को प्रबोधोत्सव है। इसदिन पूर्वरात्रि में विवाह-नक्षत्र उ.भा. भी है। अतः इसदिन 'तुलसी विवाह' शास्त्रविहित है।
नोट-ध्यान रहे-कुछ शास्त्रकार व्यतीपात/वैधृति योग में, द्वादशी तिथि एवं रविवार को तुलसी-दल का स्पर्श एवं तोड़ने का निषेध मानते हैं-
वैधृतौ
च व्यतीपाते भौमभार्गवभानुषु ।
पर्व द्वये च संक्रान्तौ द्वादश्यां सूतके द्वयोः ।। (निर्णयसिन्धु)
अतएव हमारे विचारानुसार श्री तुलसी विवाह उत्सव 3 नवम्बर, सोमवार को मनाना अधिक शास्त्र सम्मत होगा। क्योंकि यहाँ प्रदोष में विवाह नक्षत्र रेवती भी विद्यमान होगा

Thursday, 16 October 2025

दीपावली निर्णय 2025

"सूर्यसिद्धान्त और दीपावली का तिथि-निर्णय: गणितीय और शास्त्रीय विश्लेषण"
 2025 में अमावस्या तिथि की गणना निम्नलिखित है:

✓•1.अमावस्या तिथि का गणितीय निर्धारण:

   - सूर्यसिद्धान्त के अनुसार, अमावस्या तब होती है जब चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° से 12° के बीच होती है।

   - मान लें कि 20 अक्टूबर 2025 को प्रातः 6:00 बजे चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° है (अमावस्या का प्रारम्भ)।

   - चन्द्रमा की सूर्य के सापेक्ष गति 12.1908° प्रति दिन है। अतः, अमावस्या तिथि की अवधि होगी:
     
अवधि= 12°/12.1908°/दिन≈ 0.984  दिन ≈23 घंटे 37  मिनट
   
   - इस आधार पर, अमावस्या 21 अक्टूबर को दोपहर बाद लगभग 4:00 बजे समाप्त होगी (6:00 AM + 23 घंटे 37 मिनट ≈ 4:37 PM)।

✓•2. सूर्यास्त और प्रदोष काल की गणना:

   - भारत में सूर्यास्त का समय सामान्यतः सायं 6:00 बजे के आसपास होता है (स्थानीय भौगोलिक स्थिति के आधार पर ±15 मिनट)।

   - प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद 2 घटी (48 मिनट) तक माना जाता है, अर्थात् लगभग 6:00 PM से 6:48 PM तक।

   - निशीथ काल मध्यरात्रि (लगभग 11:30 PM से 12:30 AM) तक माना जाता है।

   - 21 अक्टूबर को सूर्यास्त (6:00 PM) के समय अमावस्या तिथि समाप्त हो चुकी होगी, क्योंकि यह 4:00 PM के आसपास समाप्त हो रही है।

✓•3. 20 अक्टूबर की स्थिति:

   - 20 अक्टूबर को सूर्यास्त (6:00 PM), प्रदोष काल (6:00 PM से 6:48 PM), निशीथ काल (11:30 PM से 12:30 AM), और सम्पूर्ण रात्रि में अमावस्या तिथि विद्यमान होगी।

   - गणितीय रूप से, 20 अक्टूबर को प्रातः 6:00 बजे से अमावस्या तिथि प्रारम्भ होने के बाद, यह पूरे दिन और रात्रि तक प्रभावी रहेगी।

✓•निष्कर्ष: सूर्यसिद्धान्त की गणितीय गणना के आधार पर, 20 अक्टूबर 2025 को ही दीपावली मनाना शास्त्रसम्मत है, क्योंकि इस दिन सूर्यास्त, प्रदोष, और निशीथ काल में अमावस्या तिथि उपस्थित है।

✓•सूर्यसिद्धान्त बनाम दृक्-सिद्ध गणना: गणितीय तुलना: दृक्-सिद्ध गणनाएं आधुनिक वेधशालाओं और उपकरणों पर आधारित हैं, जो ग्रहों की वास्तविक स्थिति को प्रत्यक्ष अवलोकन द्वारा मापती हैं। उदाहरण के लिए, दृक्-सिद्ध गणना में अमावस्या का समय सूर्य और चन्द्रमा की वास्तविक खगोलीय स्थिति पर आधारित होता है, जो GPS और अन्य उपकरणों द्वारा मापा जाता है। सूर्यसिद्धान्त, इसके विपरीत, प्राचीन गणितीय मॉडल पर आधारित है, जो दीर्घकालिक औसत गति (mean motion) को आधार मानता है।

✓•उदाहरण:

- दृक्-सिद्ध गणना: मान लें कि 21 अक्टूबर 2025 को वेधशाला द्वारा मापी गई चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° दोपहर 2:00 बजे है। चूंकि चन्द्रमा की गति 12.1908° प्रति दिन है, अमावस्या तिथि 4:00 PM तक समाप्त हो सकती है।

- सूर्यसिद्धान्त गणना: सूर्यसिद्धान्त में दीर्घकालिक औसत गति के आधार पर तिथि की गणना की जाती है, जो 20 अक्टूबर को सूर्यास्त तक अमावस्या की उपस्थिति को सुनिश्चित करती है।

✓•निर्णयसिन्धु में स्पष्ट है:

"अदृष्ट-फल-सिध्यर्थ यथार्कगणितं कुरु।
 गणितं यदि दृष्टार्थ त‌दृष्ट्युद्भव तस्सदा।।"

✓•अर्थात्, धार्मिक कर्मों (अदृष्ट फल) के लिए सूर्यसिद्धान्त का प्रयोग करें, जबकि दृष्ट प्रयोजनों (जैसे वैज्ञानिक अनुसंधान) के लिए दृक्-सिद्ध गणना उपयुक्त है।

✓•निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु का महत्व
निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु भारतीय पञ्चाङ्गों के लिए सर्वमान्य ग्रन्थ हैं। आचार्य कमलाकर भट्ट ने निर्णयसिन्धु में दृक्-सिद्ध गणनाओं को नकारते हुए सूर्यसिद्धान्त को प्रामाणिक माना है। पण्डित सदाशिव शास्त्री ने धर्मसिन्धु की टीका में सूर्यसिद्धान्त की प्रामाणिकता को स्थापित किया। सूर्यसिद्धान्त को भ्रमजाल मानने वाले विद्वानों को निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु  का भी त्याग करना होगा, जो तार्किक रूप से असंगत है।

✓•कालिदास और ज्योतिर्विदाभरण
कालिदास ने ज्योतिर्विदाभरण में लिखा है:

"श्रीसूर्यसिद्धान्तमतोद्भवार्कात् साध्यौ तदा तावधिकक्षयौ। 
मासौ तदा संक्रमकाल एव साध्यः सदा हौरिकशास्त्रविद्भिः।।"

✓•यह स्पष्ट करता है कि अधिकमास, क्षयमास, और संक्रान्ति की गणना सूर्यसिद्धान्त के आधार पर ही की जानी चाहिए।

✓•शंकराचार्यों की भूमिका:
दीपावली जैसे पर्वों के तिथि-निर्णय में एकरूपता के लिए चारों शंकराचार्य पीठों को सूर्यसिद्धान्त के आधार पर समवेत घोषणा करनी चाहिए। यह धार्मिक एकता और परम्पराओं के संरक्षण के लिए आवश्यक है।

✓••निष्कर्ष: सूर्यसिद्धान्त की गणितीय और शास्त्रीय प्रामाणिकता प्राचीन ग्रन्थों और विद्वानों द्वारा सिद्ध है। दीपावली 2025 के लिए गणितीय गणना के आधार पर 20 अक्टूबर ही शास्त्रसम्मत है। सूर्यसिद्धान्त को भ्रमजाल मानने वाले विद्वानों को निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु‌का भी त्याग करना होगा, जो असंगत है। शंकराचार्यों को सूर्यसिद्धान्त को आधार मानकर तिथि-निर्णय में एकरूपता लानी चाहिए।

✓•सन्दर्भ:
1. स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज, कुम्भ तिथ्यादि निर्णय.
2. आचार्य कमलाकर भट्ट, निर्णयसिन्धु.
3. पण्डित सदाशिव शास्त्री मुसलगाँवकर, धर्मसिन्धु टीका.
4. कालिदास, ज्योतिर्विदाभरण.
5. स्कन्दपुराण, कलिमाहात्म्य.
#त्रिस्कन्धज्योतिर्विद्

दीपावली पर पठाके का प्रमाण

#दीपावली में #आतिशबाजी-स्कन्द तथा पद्म पुराण में दीपावली उत्सव का वर्णन है। असुर राजा #बलि इसी दिन पाताल गये थे, उस उपलक्ष्य में दीपावली का पालन होता है। सन्ध्या को स्त्रियों द्वारा लक्ष्मी पूजा के बाद दीप जलाते हैं तथा #उल्का (आतिशबाजी) करनी चाहिये। उल्का तारा गणों के प्रकाश का प्रतीक है। आधी रात को जब लोग सो जायें तब जोर से शब्द होना चाहिये (पटाखा) जिससे #अलक्ष्मी भाग जाये। #विस्फोटक को बाण कहते थे और इनकी उपाधि ओड़िशा में बाणुआ तथा महाबाणुआ है। #ओड़िशा के क्षत्रियों की उपाधि प्रुस्ति का भी यही अर्थ है। (प्रुषु दाहे, पाणिनीय धातु पाठ, १/४६७)
#तिथितत्त्वे अमावास्या प्रकरणे...............
तुलाराशिं गते भानौ अमावस्यां नराधिपः।
#स्नात्वा देवान् पितॄन् भक्त्या संयुज्याथ प्रणम्य च॥
#कृत्वा तु पार्वणश्राद्धं दधिक्षीरगुड़ादिभिः।
 ततो ऽपराह्ण समये घोषयेन्नगरे नृपः॥
#लक्ष्मीः संपूज्यतां लोका उल्काभिश्चापि वेष्ट्यताम्॥
भारत मञ्जरी (१/८९०)-
#प्रकाशिताग्राः पार्थेन ज्वलदुल्मुक पाणिना।
स्कन्द पुराण (२/४/९)- 
त्वं ज्योतिः श्री #रवीन्द्वग्नि विद्युत्सौवर्ण तारकाः। 
#सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिते नमः॥८९॥ 
या #लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले। 
गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम॥९०॥ 
#दीपदानं ततः कुर्यात्प्रदोषे च तथोल्मुकम्।
 भ्रामयेत्स्वस्य शिरसि सर्वाऽरिष्टनिवारणम्॥९१॥ 
पद्म पुराण (६/१२२)-त्वं ज्योतिः श्री रविश्चंद्रो विद्युत्सौवर्ण तारकः। 
#सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिता तु या॥२३॥
या लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले।
#गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम॥२४॥
शंकरश्च भवानी च क्रीडया द्यूतमास्थितौ।
#भवान्याभ्यर्चिता लक्ष्मीर्धेनुरूपेण संस्थिता॥२५॥
गौर्या जित्वा पुरा शंभुर्नग्नो द्यूते विसर्जितः॥ 
#अतोऽयं शंकरो दुःखी गौरी नित्यं सुखे स्थिता॥२६॥
प्रथमं विजयो यस्य तस्य संवत्सरं सुखम्। 
एवं गते #निशीथे तु जने निद्रार्ध लोचने॥२७॥
तावन्नगर नारीभिस्तूर्य डिंडिम वादनैः।
#निष्कास्यते प्रहृष्टाभिरलक्ष्मीश्च गृहां गणात्॥२८॥

              गुरुदेव
Bhubneshwar 
Parnkuti ashram guna
9893946810

Sunday, 12 October 2025

दीपावली पर दीपदान महत्व

दीपदानात् सदा लक्ष्मीः स्थिरा भवति सर्वदा।
दीपैर्नीराजनं तस्मात् दीपावली स्मृता।।”

🔹 अर्थ:
दीपदान करने से लक्ष्मी सदा स्थिर (स्थायी) होती हैं।
इसी कारण दीपों से नीराजन करने का विधान है, और इसी से यह तिथि दीपावली कहलाती है।स्कन्दपुराण, कार्तिकमाहात्म्य में दीपदान (दीयों का दान और प्रज्वलन) केवल दीपावली पर ही नहीं, बल्कि कार्तिक मास के संपूर्ण काल में अत्यंत पुण्यकारी बताया गया है स्कन्दपुराण, कार्तिकमाहात्म्य में
  1. दीपदानात् सदा लक्ष्मीः स्थिरा भवति सर्वदा।
    दीपैर्नीराजनं तस्मात् दीपावली स्मृता।।

    ➤ अर्थ: दीपदान करने से लक्ष्मी स्थिर होती हैं। इसी कारण दीपों से आराधना कर इस तिथि को दीपावली कहा गया।


  1. पद्मपुराण, कार्तिकमाहात्म्य

    यः कार्तिके मासि नरोऽभ्युपेतो
    दीपं ददात्यायनवस्त्रसङ्गम्।
    तेनाक्षयं पुण्यमवाप्य लोके
    विष्णोः पदं याति सुखेन पुंसाः।।

    ➤ अर्थ: जो कार्तिक मास में दीपदान करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और अंततः वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है।


  1. नारदपुराण

    दीपं यः प्रयतो दद्यात् कार्तिके मासि भक्तितः।
    स याति विष्णुसायुज्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते।।

    ➤ अर्थ: जो कार्तिक मास में भक्ति से दीपदान करता है, वह विष्णुसायुज्य को प्राप्त होता है और समस्त पापों से मुक्त होता है।


  1. गृह्यसूत्रवचन

    दीपदानं तु यः कुर्यात् संध्यायां वा निशामुखे।
    तस्य पापं विनश्येत् दीपवत् तिमिरं यथा।।

    ➤ अर्थ: जो संध्या या रात्रि के आरंभ में दीपदान करता है, उसके पाप वैसे ही नष्ट होते हैं जैसे दीप से अंधकार


🔱 दीपदान माहात्म्य (महत्व)

✴️ शास्त्रवचन:

> दीपं यो यः प्रयच्छेत् कार्तिके मासि मानवः।
तेन जातं महत् पुण्यं सर्वपापप्रणाशनम्।।
(स्कन्दपुराण, कार्तिकमाहात्म्य)



अर्थ:
जो मनुष्य कार्तिक मास में दीपदान करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।


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> दीपदानं हि यः कुर्यात् प्रदोषे भक्तिसंयुतः।
तस्य लोकाः परं यान्ति दीपवत् सर्वतः शुभाः।।
(नारदपुराण)



अर्थ:
जो संध्याकाल में दीपदान करता है, वह स्वयं प्रकाशमय लोकों को प्राप्त होता है।


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> दीपदानात् सदा लक्ष्मीः स्थिरा भवति सर्वदा।
दीपैर्नीराजनं तस्मात् दीपावली स्मृता।।
(स्कन्दपुराण)



अर्थ:
दीपदान करने से लक्ष्मी सदा स्थिर रहती हैं। इसी कारण दीपों से आराधना कर इसे दीपावली कहा गया है।




2. दीपावली की रात्रि:

प्रदोषकाल — सूर्यास्त से लगभग 72 मिनट तक का समय सर्वश्रेष्ठ माना गया है।


5. मंत्र बोलें —

> “दीपं देहि जगन्नाथ त्रैलोक्यं तमोनुदम्।
नमस्ते दीपदेवेति प्रज्वालयामि सर्वदा।।




6. दीप जलाने के बाद प्रार्थना करें —
“दीपज्योतिर्विनाशाय पापानां संसारसागरात्।
दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते नमोऽस्तु ज्योतिरेश्वरि।।”









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दीपावली निर्णय 2025

मार्तण्ड की चुप्पी भादवमाता पंचांग की लीपापोती दिवाकर आदि पंचांग द्वारा सूत्र ही गलत, एवं अन्य पंचांगकर्ताओं को चुनौती: शास्त्र विरुद्ध दीपावली निर्णय पर विमर्श

मार्तण्ड पंचांग के निर्माताओं और अन्य सभी पंचांगकर्ताओं ने 21 अक्टूबर, 2025 को दीपावली मनाने का जो निर्णय लिया है, वह शास्त्रों के विरुद्ध है। यह एक गंभीर त्रुटि है, जिसका कारण शास्त्रों वचनों का गलत विश्लेषण है।

मार्तण्ड की चुप्पी और उनके निर्णय की त्रुटियाँ👉
मार्तण्ड पंचांग के विद्वान, यद्यपि वे सम्मानित हैं, इसपर पर मौन हैं और इसका कोई शास्त्रीय उत्तर नहीं दे पा रहे हैं। उनका मौन ही उनकी स्वीकृति है कि उनके द्वारा लिया गया निर्णय शास्त्रसम्मत नहीं है। यदि वे उत्तर देंगे, तो उन्हें शास्त्रों की व्याख्या को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना पड़ेगा, क्योंकि जिस सूत्र के आधार पर उन्होंने 21 अक्टूबर को दीपावली घोषित की है, उसका खंडन स्वयं धर्मसिंधु ग्रंथकार ने किया है। 

अहंकार बनाम स्वीकार्यता: 👉गलती किसी से भी हो सकती है, और उसे स्वीकार करने से कोई छोटा नहीं हो जाता। परंतु यहाँ अहंकार आड़े आ रहा है। 

दोषपूर्ण तर्क:👉 सौ से अधिक पंचांगों ने भी 21 अक्टूबर की तिथि तय की है। उनका तर्क है कि जब इतने सारे पंचांग एक ही निर्णय पर पहुँचे हैं, तो यह सही है। यह हमारे तर्कों का उत्तर नहीं है, यह तो केवल एक-दूसरे का समर्थन करना है, एक दूसरे की पीठ खुजलाने से सिद्धान्त स्थापित नहीं होते शास्त्रीय प्रमाण से होते हैं और जो प्रमाण आप लोगों के द्वारा प्रदत्त है उसमें दोषदर्शन हम करा चुके हैं।  

भादवमाता वालों का अनुचित तर्क👉
भादवमाता वालों की स्थिति तो और भी हास्यास्पद है। वे सभी पंचांगकर्ताओं की तरह एक सूत्र का उपयोग करते हैं: "एतन्मते उभयत्र प्रदोषाव्याप्तिपक्षेऽपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिकव्यापित्वात् परैव युक्तेति भाति।" 

वे इस सूत्र का अर्थ यह लगा रहे हैं कि "यदि दोनों दिन प्रदोष व्याप्त हो, तब"। जबकि इसका सही अर्थ है: "यदि दोनों दिन प्रदोष व्याप्त न हो, तब"। यहाँ 'अव्याप्ति' पद का स्पष्ट उल्लेख है, जिसे वे संस्कृत के अज्ञान से व्याप्ति बता रहे हैं अथवा जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं। 

उनका अतार्किक बचाव हास्यास्पद है, जब उन्हें बताया गया कि उनके ही सूत्र से उनका मत खंडित हो जाता है, तो उनका अद्भुत तर्क था कि "संस्कृत कोई प्रमाण नहीं है।" उन्होंने यह भी कहा कि यदि संस्कृत को प्रमाण मानेंगे तो बौद्ध धर्म के ग्रंथ भी मानने पड़ेंगे क्योंकि वे भी संस्कृत में हैं। यह एक असाधारण और हास्यास्पद तर्क है, जो उनके ज्ञान की कमी को दर्शाता है। 

पुरुषार्थचिंतामणि और धर्मसिंधु का वास्तविक मत

अधिकांश पंचांगकर्ता पुरुषार्थचिंतामणि के सूत्र को धर्मसिंधु द्वारा सिद्धांत के रूप में ग्रहण किया हुआ मान रहे हैं, जो कि एक और भ्रम है। 

पुराणसमुच्चय का उद्धरण: पुरुषार्थचिंतामणि ने वास्तव में पुराणसमुच्चय के वचन को उद्धृत किया है: "त्रियामगा दर्शतिथिर्भवेच्चेत्सार्धत्रियामा प्रतिपद्विवृद्धौ। दीपोत्सवे ते मुनिभिः प्रदिष्टे अतोऽन्यथा पूर्वयुते विधेये॥" 

धर्मसिंधु का खंडन: धर्मसिंधु के लेखक इसी मत का खंडन करते हैं और स्पष्ट करते हैं कि पुरुषार्थचिंतामणि का मत केवल तभी लागू होता है जब दोनों दिन प्रदोष-व्याप्ति न हो👉

"एतन्मते उभयत्र प्रदोषाव्याप्तिपक्षेऽपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिकव्यापित्वात् परैव युक्तेति भाति।" 

सही अर्थ: "इस मत (पुरुषार्थचिंतामणि के मत) के अनुसार, जिस पक्ष में दोनों ही दिन प्रदोष-व्याप्ति न हो, उसमें भी यदि दूसरे दिन अमावस्या साढ़े तीन प्रहर (लगभग 10.5 घंटे) से अधिक व्याप्त हो, तो 'परा' (बाद वाली) तिथि ही उचित है, ऐसा प्रतीत होता है।" 

यह स्पष्ट है कि धर्मसिंधु ने इस मत को पूर्वपक्ष में उठाया है, सिद्धांत के रूप में नहीं। उन्होंने इसे केवल एक विशेष परिस्थिति में लागू करने की बात कही है, अन्य समय में नहीं। 

दिवकारपंचांगकार तो इस सूत्र को ही गलत उठा लेते हैं वे कहते हैं कि 👉

एतन्मते उभयत्र प्रदोषव्याप्तिपक्षेऽपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिकव्यापित्वात् परैव युक्तेति भाति।

उन्होंने उभयत्र प्रदोषाव्याप्तिपक्षेऽपि को ही उभयत्र प्रदोषव्याप्तिपक्षेऽपि करके अव्याप्ति को व्याप्ति करके अपना निर्णय 21 का कर दिया।  

इसप्रकार ये सारे पंचांगकर्ता शास्त्रों के गलत अर्थ, उनके प्रकरणविरुद्ध सूत्रों के प्रयोग आदि से अपना वचन सिद्ध करने के कारण खण्डनयोग्य हैं अत: ये यदि ये पंचांगकर्ता इन स्पष्ट प्रमाणों के बावजूद अपने अहंकार के कारण निर्णय नहीं बदलते, तो वे जनता को भ्रमित करने वाले और शास्त्रों का हनन करने वाले ही सिद्ध होंगे।

और यदि ये हमारे द्वारा प्रदत्त खण्डन का खण्डन कर यह सिद्ध करे दें कि धर्मसिन्धु एवं निर्णयसिन्घुकार के निर्णय से 21 को अक्तूबर को दीपावली सिद्ध होती है तो हम सहर्ष इनके निर्णय को स्वीकार कर लेंगे।
साभार - तंत्र गुरुकुल