ज्योतिष समाधान

Tuesday, 24 October 2017

लग्न से संबंधित व्यवसाय दिए जा रहे हैं जिनमें जातक को पूर्ण सफलता मिलती है तथा धन एवं सम्पत्ति को प्राप्त करता है :

यहां प्रत्येक लग्न से संबंधित व्यवसाय दिए जा रहे हैं जिनमें जातक को पूर्ण सफलता मिलती है तथा धन एवं सम्पत्ति को प्राप्त करता है :

मेष लग्न वाले जातक को इंजीनियरिंग, सेना, पुलिस, मिलिट्री, वकालत, चिकित्सक, ड्राइविंग, कम्प्यूटर जौहरी, अग्नि संबंधी व्यवसाय आदि में सफलता मिलती है।

वृष लग्न वाले जातकों के लिए कृषि, अध्यापन, कला, सजावट, विलासिता की वस्तुएं, चित्रकारी, कशीदाकारी, कलात्मक वस्तुएं, संगीत, सिनेमा, नृत्य, नाटक, अभिनय, गायक, फैशन, पेंटिंग, धातु का व्यापार, होटल या बर्फ के कारोबार अत्यधिक लाभदायक हैं।

मिथुन लग्न के जातकों के लिए बैंकिंग, लिपिक लेखन, समाचार रिपोर्टर, संपादन, भाषा विशेषज्ञ, एजैंट, अनुवादक, लेखक, उन्नतिकारक सिद्ध होंगे।

कर्क लग्न के जातकों के लिए जल व कांच से संबंधित व्यवसाय उष्ण व शीतल पेय, लांडरी, नाविक, डेयरी फार्म, मेट्रान, गृहिणी, होटल, कारोबार, स्नेकबार, बेकरी उद्योग, बर्फ, जहाज, रसायन विज्ञान सुगंधित पदार्थ, अगरबत्ती, फोटोग्राफी, चित्रकारी, पुरातत्व, इतिहास सामाजिक कार्यकर्ता आदि व्यवसाय सही हैं।

सिंह लग्न के जातकों के लिए राजनयिक, औषधि, स्टाक एक्सचेंज कपड़ा, रूई, कागज, स्टेशनरी, घास, फल, जमीन से प्राप्त पदार्थ, शासक, प्रशासक एवं अधिकारी जेवरात, सर्कस आदि व्यवसायों में लाभ होता है।

कन्या लग्न के जातकों को ज्योतिष, वायु, अध्ययन, अध्यापन, शिक्षक, खुदरा, विक्रेता, लिपिक, रुपयों का लेन-देन, स्वागतकर्ता, बस ड्राइवर, रेडियों-दूरदर्शन के कलाकार, नोटरी, कम्प्यूटर आदि के क्षेत्रों में कार्य करने से लाभ प्राप्त होता है।

तुला लग्न के जातकों को मनोचिकित्सक, अन्वेषक, जासूस, बही खाता रखने वाला, खजांची, बैंक क्लर्क, टाइपिस्ट, लेखा परीक्षक, सेल्स गर्ल पशुओं से उत्पन्न वस्तुएं जैसे दूध, घी, ऊन आदि का कारोबार लाभदायक रहता है।

वृश्चिक लग्न के जातक के लिए कैमिस्ट, डाक्टर, वकील, इंजीनियर, भवन निर्माण, मार्कीटिंग, देश सेवा, टैलीफोन, विद्युत खनिज तेल, नमक, औषधि, घड़ी, रेडियो दार्शनिक, ज्योतिषी, तांत्रिक जासूस एवं परिचारिकाएं के क्षेत्र अनुकूल हैं।

धनु लग्न के जातक अध्यापक, प्राध्यापक, लेखक, संपादक, शिक्षा विभाग, कानून, वकालत, लेखन, कार्य, क्लर्क, उपदेशक, स्वतंत्रता सेनानी, दार्शनिक, धर्म सुधारक, प्रकाशन, दलाली, कमीशन, एजैंट, आयात-निर्यात, खाद्य पदार्थ, चमड़े का व्यापारी, बैंकर आदि बना करते हैं।

मकर लग्न के जातक मैनेजमैंट, बीमा विभाग, बिजली, कमिशन, मशीनरी, ठेकेदारी, सट्टा, आयात-निर्यात, रेडीमेड कपड़ा, राजनीतिक, खिलौना, कृषि, खनन, वन उत्पाद, फार्म का कार्य, बागवानी, खान, विज्ञान, भूगर्भ, विज्ञान, संयोजन, सचिव, बैंकर आदि कार्यों में सफलता पाते हैं।

कुंभ लग्न के जातक शोध कार्य, शिक्षण कार्य, ज्योतिष तांत्रिक, प्राकृतिक, उपचारक, दार्शनिक, एक्स-रे कर्मचारी, चिकित्सकीय, उपकरणों के विक्रेता, टैलीग्राफिस्ट, कम्प्यूटर, वायुयान, मैकेनिक, बीमा, ठेकेदारी, चौकीदार आदि कार्यों में प्रवीणता प्राप्त करते हैं।

मीन लग्न के जातक लेखन, सम्पादन, अध्यापन, लिपिक, पानी, अनाज, दलाली, शेयर, मछली, कमीशन, एजैंट, आयात निर्यात, कोरियोग्राफी, सामाजिक, कार्य संग्रहालय, पुस्तकालय, क्लब संचालन संगीतज्ञ, कवि, तांत्रिक, यात्रा, एजैंट, अनुसंधानकर्ता चिकित्सा, सर्जन, नर्स, जेलर, उपदेशक मंत्री आदि कार्यों में से किसी भी एक को अपना व्यवसाय बनाकर धन एवं यश की प्राप्ति कर सकते हैं।

इस बार देव जागने के 25 दिन बाद भी कोई शुभ मुहूर्त नहीं है. 31 अक्टूबर को देवउठनी एकादशी है, लेकिन 11अक्टूबर से देवगुरु बृहस्पति पश्चिामास्त हैं जो कि देवउठनी एकादशी के बाद 6 नवंबर को पूर्व दिशा में उदित होंगे और आगामी तीन दिन बाल अवस्था में रहने के बाद 10 नवंबर को बालत्व निवृत्ति होगी. 16 नवंबर दिन को 12:39 को सूर्य वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा. इन समस्त दोषों की निवृत्ति के पश्चात 19 नवंबर से शादियों की शुरुआत होगी


वर्ष 2017 में तुलसी विवाह 31 अक्टूबर अथवा 1 नवंबर को अपनी –अपनी मान्यतानुसार के दिन किया जायेगा.

1देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी 31 अक्टूबर

2तुलसी विवाह 1 नवम्बर तुलसी विवाह का महत्व तुलसी एक गुणकारी पौधा हैं जिससे वातावरण एवम तन मन शुद्ध होते हैं.

कैसे बना तुलसी का पौधा एवम तुलसी विवाह के पीछे क्या कथा हैं ?

तुलसी, राक्षस जालंधर की पत्नी थी, वह एक पति व्रता सतगुणों वाली नारी थी, लेकिन पति के पापों के कारण दुखी थी| इसलिए उसने अपना मन विष्णु भक्ति में लगा दिया था. जालंधर का प्रकोप बहुत बढ़ गया था, जिस कारण भगवान विष्णु ने उसका वध किया. अपने पति की मृत्यु के बाद पतिव्रता तुलसी ने सतीधर्म को अपनाकर सती हो गई.

कहते हैं उन्ही की भस्म से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ और उनके विचारों एवम गुणों के कारण ही तुलसी का पौधा इतना गुणकारी बना.

तुलसी के सदगुणों के कारण भगवान विष्णु ने उनके अगले जन्म में उनसे विवाह किया.

इसी कारण से हर साल तुलसी विवाह मनाया जाता है|

------------------------------------------------------

तिथि प्रारम्भ = ३०/अक्टूबर/२०१७ को १९:०३ बजे |

एकादशी तिथि समाप्त = ३१/अक्टूबर/२०१७ को १८:५५ बजे |

-----------------------------------------------------

4 महीने बाद खत्म होगा भगवान विष्णु का शयनकाल,

ऐसे करें पूजा भगवान विष्णु चार महीने के बाद जागते हैं तो तुलसी के पौधे से उनका विवाह होता है.

देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है.

देवउठनी एकादशी के बाद सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं.

खास बातें देवउठनी एकादशी के बाद सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं.

इस बार देव जागने के 25 दिन बाद भी कोई शुभ मुहूर्त नहीं है.

देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक यानी चार महीने भगवान विष्णु शयनकाल की अवस्था में होते हैं और इस दौरान कोई शुभ कार्य जैसे, शादी, गृह प्रवेश या कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है.

31 अक्टूबर को भगवान का शयनकाल खत्म होगा और इसके बाद ही कोई शुभ कार्य होगा. कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन देवउठनी ग्यारस होती है. इस एकादशी को प्रबोधनी ग्यारस भी कहा जाता है.

------------------------------------------------------

शुभ कार्यों के लिए करना होगा इंतजार देवउठनी 

31 अक्टूबर को देवउठनी एकादशी है, लेकिन 11अक्टूबर से देवगुरु बृहस्पति पश्चिामास्त हैं जो कि देवउठनी एकादशी के सात दिन बाद 6नवंबर को पूर्व दिशा में उदित होंगे और आगामी तीन दिन बाल अवस्था में रहने के बाद 10 नवंबर को बालत्व निवृत्ति होगी. 16 नवंबर को सूर्य वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा. इन समस्त दोषों की निवृत्ति के पश्चात 19 नवंबर से शादियों की शुरुआत होगी

शादियों के मुहूर्त इस साल नवंबर में 19, 22, 23, 24, 28, 29 और 30 नवंबर को विवाह के विशिष्ट मुहूर्त हैं.

दिसंबर में 3, 4, 8,9,10, 11 और 12 दिसंबर को विवाह मुहूर्त बन रहे हैं.

------------------------------------------------------

15 दिसंबर 2017 से 14 जनवरी 2018 तक मलमास रहेगा. 

एबम शुक्रास्त 15 दिसम्बर 2017से  3 फरबरी 2018 तक  अस्त रहेगा । इस कारण जनवरी में  कोई विबाह मुहूर्त नही है

22 जनवरी को बसंत पंचमी को देवलग्र होने के कारण विवाह आयोजन कर पाएंगे, लेकिन लग्र शुध्दि के शुभ मुहूर्त फरवरी में ही मिलेंगे.

फरवरी में 4, 5, 7, 8, 9, 11, 18 और 19 तथा मार्च में 3 से 8 और 11 से 13 मार्च को शादियों के मुहूर्त हैं.

तुलसी विवाह, देवउठनी ग्यारस, देव प्रबोधनी एकादशी तिथि मान्यतानुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी जी और विष्णु जी का विवाह कराने की प्रथा है. तुलसी विवाह में तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति या शालिग्राम पाषाण का पूर्ण वैदिक रूप से विवाह कराया जाता है.

. तुलसी विवाह की विधि

तुलसी विवाह संपन्न कराने के लिए एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए और तुलसी जी के साथ विष्णु जी की मूर्ति घर में स्थापित करनी चाहिए.

तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति को पीले वस्त्रों से सजाना चाहिए.

पीला विष्णु जी की प्रिय रंग है. तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे को सजाकर उसके चारों तरफ गन्ने का मंडप बनाना चाहिए.

तुलसी जी के पौधे पर चुनरी या ओढ़नी चढ़ानी चाहिए. इसके बाद जिस प्रकार एक विवाह के रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह की भी रस्में निभानी चाहिए.

अगर चाहें तो पंडित या ब्राह्मण की सहायता से भी विधिवत रूप से तुलसी विवाह संपन्न कराया जा सकता है अन्यथा मंत्रोच्चारण (ऊं तुलस्यै नम:) के साथ स्वयं भी तुलसी विवाह किया जा सकता है. द्वादशी के दिन पुन: तुलसी जी और विष्णु जी की पूजा कर और व्रत का पारण करना चाहिए. भोजन के पश्चात तुलसी के स्वत: गलकर या टूटकर गिरे हुए पत्तों को खाना शुभ होता है. इस दिन गन्ना, आंवला और बेर का फल खाने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.

Gurudev -bhubneshwar shastri
Kasturwa ngar
Parnkuti guna
9893946810

Monday, 16 October 2017

दीपावली पर श्री लक्ष्मी पूजा मुहूर्त सहित पांचो दिनों के लिए मुहूर्त 1-व्यापार पूजन मुहूर्त -व्यपारियो को स्याही भरने का कलम दवात सवारने का मुहूर्त -व्यपारियो के लिए गादी स्थापना के लिए मुहूर्त -पर्णकुटी गुना से लिंक ओपन करे

पाँच दिन का दीवाली उत्सव धनत्रयोदशी के दिन प्रारम्भ होता है और भाई दूज तक चलता है।

19 अक्टूम्बर 2017
लक्ष्मी पूजा, दिवाली पूजा लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग २ घण्टे २४ मिनट तक रहता है।

कुछ स्त्रोत लक्ष्मी पूजा को करने के लिए महानिशिता काल भी बताते हैं।

हमारे विचार में महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानते हैं, उनके लिए यह समय ज्यादा उपयुक्त होता है।

सामान्य लोगों के लिए हम प्रदोष काल मुहूर्त उपयुक्त बताते हैं।

पंडित भुबनेश्वर ने बताया लक्ष्मी पूजा को करने के लिए हम चौघड़िया मुहूर्त को देखने की सलाह नहीं देते हैं क्योंकि वे मुहूर्त यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं।

लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है।

ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है।

इसीलिए लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है।

वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है।

हम यथार्थ समय उपलब्ध कराते हैं। हमारे दर्शाये गए मुहूर्त के समय में त्रयोदशी तिथि, प्रदोष काल और स्थिर लग्न सम्मिलित होते हैं।

हम स्थान के अनुसार मुहूर्त उपलब्ध कराते हैं इसीलिए आपको पूजा का शुभ समय देखने से पहले अपने शहर का चयन कर लेना चाहिए।

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

धनतेरस का दिन धन्वन्तरि त्रयोदशी या धन्वन्तरि जयन्ती, जो कि आयुर्वेद के देवता का जन्म दिवस है, के रूप में भी मनाया जाता है।

धनतेरस पूजा मुहूर्त

(2)प्रदोष काल = 18:03से 20:27

(मतलब):- 06 बजकर 03 मिनिट से 8 बजकर 27 मिनिट तक

वृषभ लग्न काल = 19:36 से 21:32

बृषभ लग्न :-7 बजकर 36मिनिट से  09बजकर 32  मिनिट तक

त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ = १७/अक्टूबर/२०१७ को ००:२६ बजे

मतलव :16 ओर 17 तारीख की रात्रि :12 बजकर  26 मिनिट से प्रारंभ

त्रयोदशी तिथि समाप्त = १८/अक्टूबर/२०१७ को ००:०८ बजे

मतलब :-17 ओर 18 तारीख की रात्रि  12:बजकर 8 मिनिट तक

वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है।
असामयिक मृत्यु से बचने के लिए मृत्यु के देवता यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाया जाता है जिसे यम दीपम के नाम से जाना जाता है और इस धार्मिक संस्कार को त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^-  18 अक्टूम्बर 2017 नरक चतुर्दशी

वास्तविकता में यह दोनों अलग-अलग त्यौहार है और एक ही तिथि को मनाये जाते हैं। यह दोनों त्यौहार अलग-अलग दिन भी हो सकते हैं और यह चतुर्दशी तिथि के प्रारम्भ और समाप्त होने के समय पर निर्भर होता है।

दीवाली के दौरान अभ्यंग स्नान को चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा के दिन करने की सलाह दी गई है।

चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है।

यह माना जाता है कि जो भी इस दिन स्नान करता है वह नरक जाने से बच सकता है।

अभ्यंग स्नान के दौरान उबटन के लिए तिल के तेल का उपयोग किया जाता है।

अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान लक्ष्मी पूजा से एक दिन पहले या उसी दिन हो सकता है।

जब सूर्योदय से पहले चतुर्दशी तिथि और सूर्योदय के बाद अमावस्या तिथि प्रचलित हो तब नरक चतुर्दशी और लक्ष्मी पूजा एक ही दिन हो जाते हैं।

अभ्यंग स्नान चतुर्दशी तिथि के प्रचलित रहते हुए हमेशा चन्द्रोदय के दौरान (लेकिन सूर्योदय से पहले) किया जाता है।

अभ्यंग स्नान के लिए मुहूर्त का समय चतुर्दशी तिथि के प्रचलित रहते हुए चन्द्रोदय और सूर्योदय के मध्य का होता है।

नरक चतुर्दशी के दिन को छोटी दीवाली, रूप चतुर्दशी, और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
है।

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

लक्ष्मी पूजा

19 अक्टूबर २०१७ (बृहस्पतिवार) लक्ष्मी-गणेश पूजा
दिवस बेला:-  व्यपारियो लिए गादी स्थापना मुहूर्त स्याही भरना कलम दवात सबारने हेतु प्रता:रेलवे घड़ी अनुसार
प्रता:06 बजकर 42 मिनिट से 08 बजकर 7 मिनिट तक शुभ बेला
दिवा:-10 बजकर 58 मिनिट से 12 बजकर 23 मिनिट तक चंचल बेला
दिवा:-12 बजकर 00मिनिट से 12बजे तक अभिजीत बेला
दिवा :-12 बजकर 23 मिनिट से 01 बजकर 30 मिनिट तक लाभ बेला
दिवा:-01 बजकर 30 मिनिट से 03 बजे तक राहु काल
शाम:-04 बजकर 38 मिनिट से 06 बजकर 3 मिनिट तक शुभबेला

(2)प्रदोष काल = 18:03से 20:27

(मतलब):- 06 बजकर 03 मिनिट से 8 बजकर 27 मिनिट तक

वृषभ काल = 19:36 से 21:32

बृषभ लग्न :-7 बजकर 36मिनिट से  09बजकर 32  मिनिट तक
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^परिहार समय समाधान सूचक व्यापार पूजन हेतु

ब्रशिचक लग्न :-प्रता:08:54से 11:11तक

कुम्भ लग्न शाम :-03:01 से 04:32 तक

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

      रात्रि मुहूर्त :-महानिशिता काल मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त = 23:40 से 24:31+ *

मतलब :-रात्रि  11 बजकर 40 मिनिट से 12 बजकर 31 मिनीट तक
रात्रिलग्न

सिंह लग्न

मतलव :-रात्रि 02बजकर 04 मिनिट से 04बजकर 21 मिनिट तक

परिहार समय समाधान सूचक

ब्रशिचक लग्न :-प्रता:08:54से 11:11तक
कुम्भ लग्न :-03:01 से 04:32 तक

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

तारीख - 20 अक्तूबर 2017, शुक्रवार

व्यपारियो के लिए रोकड़ मिलान
प्रता:08 :से10:58तक लाभ अमृत बेला
दिवा 12:23से1:48तक सु भ बेला
शाम:-4:38 से06 ;03 तक
गोवर्धन पूजा पर्व

तारीख - 20 अक्तूबर 2017, शुक्रवार

गोवर्धन पूजा सुबह का मुहूर्त- सुबह 06:28 बजे से 08:43 बजे तक
दोपहर :-अभिजीत मुहूर्त दिन का आधा भाग
गोवर्धन पूजा शाम का मुहूर्त - 04:27 बजे से सायं 05:42 बजे तक

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
21 अक्टूम्बर भाई दोज़

भाई दूज टीका मुहूर्त = 12:45से 03:02

अवधि = 2 घण्टे 16 मिनट्स

द्वितीय तिथि प्रारम्भ = 21/अक्टूबर/2017को 02:07 बजे

द्वितीय तिथि समाप्त = 22/अक्टूबर/2017को 03:30 बजे

Pandit भुबनेश्व र
कस्तूरवानागर पर्णकुटी वुना

09893946810

Saturday, 7 October 2017

पाँच दिन का दीवाली उत्सव धनत्रयोदशी के दिन प्रारम्भ होता है और भाई दूज तक चलता है। 19 अक्टूम्बर २०१७ लक्ष्मी पूजा, दिवाली पूजा लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग २ घण्टे २४ मिनट तक रहता है। लिंक ओपन करे

पाँच दिन का दीवाली उत्सव धनत्रयोदशी के दिन प्रारम्भ होता है और भाई दूज तक चलता है।

19 अक्टूम्बर २०१७ लक्ष्मी पूजा, दिवाली पूजा लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग २ घण्टे २४ मिनट तक रहता है।

कुछ स्त्रोत लक्ष्मी पूजा को करने के लिए महानिशिता काल भी बताते हैं।

हमारे विचार में महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानते हैं, उनके लिए यह समय ज्यादा उपयुक्त होता है।

सामान्य लोगों के लिए हम प्रदोष काल मुहूर्त उपयुक्त बताते हैं।

पंडित भुबनेश्वर ने बताया लक्ष्मी पूजा को करने के लिए हम चौघड़िया मुहूर्त को देखने की सलाह नहीं देते हैं क्योंकि वे मुहूर्त यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं।

लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है।

ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है।

इसीलिए लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है।

वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है।

हम यथार्थ समय उपलब्ध कराते हैं। हमारे दर्शाये गए मुहूर्त के समय में त्रयोदशी तिथि, प्रदोष काल और स्थिर लग्न सम्मिलित होते हैं।

हम स्थान के अनुसार मुहूर्त उपलब्ध कराते हैं इसीलिए आपको पूजा का शुभ समय देखने से पहले अपने शहर का चयन कर लेना चाहिए।

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

धनतेरस का दिन धन्वन्तरि त्रयोदशी या धन्वन्तरि जयन्ती, जो कि आयुर्वेद के देवता का जन्म दिवस है, के रूप में भी मनाया जाता है।

धनतेरस पूजा मुहूर्त = १९:१९ से २०:१७

मतलव : शाम 07 बजकर 19 मिनिट से 08 बजकर 09  बजकर 17 मिनिट तक

अवधि = ० घण्टे ५८ मिनट्स

प्रदोष काल = १७:४५ से २०:१७

मतलब : -शाम 5 बजकर 45 मिनिट से  8 बजकर 17 मिनीट तक

वृषभ  लग्न  :काल = १९:१९ से २१:१४

मतलब:-शाम 07 बजकर 19 मिनिट से 09 बजकर 14 मिनिट तक

त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ = १७/अक्टूबर/२०१७ को ००:२६ बजे

मतलव :16 ओर 17 तारीख की रात्रि :12 बजकर  26 मिनिट से प्रारंभ

त्रयोदशी तिथि समाप्त = १८/अक्टूबर/२०१७ को ००:०८ बजे

मतलब :-17 ओर 18 तारीख की रात्रि  12:बजकर 8 मिनिट तक

वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है।
असामयिक मृत्यु से बचने के लिए मृत्यु के देवता यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाया जाता है जिसे यम दीपम के नाम से जाना जाता है और इस धार्मिक संस्कार को त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^-  18 अक्टूम्बर 2017 नरक चतुर्दशी

वास्तविकता में यह दोनों अलग-अलग त्यौहार है और एक ही तिथि को मनाये जाते हैं। यह दोनों त्यौहार अलग-अलग दिन भी हो सकते हैं और यह चतुर्दशी तिथि के प्रारम्भ और समाप्त होने के समय पर निर्भर होता है।

दीवाली के दौरान अभ्यंग स्नान को चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा के दिन करने की सलाह दी गई है।

चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है।

यह माना जाता है कि जो भी इस दिन स्नान करता है वह नरक जाने से बच सकता है।

अभ्यंग स्नान के दौरान उबटन के लिए तिल के तेल का उपयोग किया जाता है।

अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान लक्ष्मी पूजा से एक दिन पहले या उसी दिन हो सकता है।

जब सूर्योदय से पहले चतुर्दशी तिथि और सूर्योदय के बाद अमावस्या तिथि प्रचलित हो तब नरक चतुर्दशी और लक्ष्मी पूजा एक ही दिन हो जाते हैं।

अभ्यंग स्नान चतुर्दशी तिथि के प्रचलित रहते हुए हमेशा चन्द्रोदय के दौरान (लेकिन सूर्योदय से पहले) किया जाता है।

अभ्यंग स्नान के लिए मुहूर्त का समय चतुर्दशी तिथि के प्रचलित रहते हुए चन्द्रोदय और सूर्योदय के मध्य का होता है।

नरक चतुर्दशी के दिन को छोटी दीवाली, रूप चतुर्दशी, और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
है।

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

लक्ष्मी पूजा

19 अक्टूबर २०१७ (बृहस्पतिवार) लक्ष्मी-गणेश पूजा

(1)प्रदोष काल मुहूर्त लक्ष्मी पूजा मुहूर्त = १९:११ से २०:१६
मतलब :-शाम 7 बजकर 11 मिनिट से प्रारंभ

अवधि = १ घण्टा ५ मिनट्स

(2)प्रदोष काल = १७:४३ से २०:१६

(मतलब):- 5 बजकर 43 मिनिट से 8 बजकर 16 मिनिट तक

वृषभ काल = १९:११ से २१:०६

बृषभ लग्न :-7 बजकर 11 मिनिट से 9 बजकर 6 मिनिट तक

अमावस्या तिथि प्रारम्भ
= १९/अक्टूबर/२०१७ को ००:१३ बजे

अमावस्या तिथि समाप्त

२०/अक्टूबर/२०१७ को ००:४१ बजे लक्ष्मी पूजा

महानिशिता काल मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त = २३:४० से २४:३१+ *

मतलब :-रात्रि  11 बजकर 40 मिनिट से 12 बजकर 31 मिनीट तक

(स्थिर लग्न के बिना)
अवधि = ० घण्टे ५१ मिनट्स

सिंह काल = २५:४१+ से २७:५९+

मतलव :-रात्रि 1 बजकर 41 मिनिट से 3 बजकर 59 मिनिट तक

चौघड़िया पूजा मुहूर्त दीवाली लक्ष्मी पूजा के लिये शुभ चौघड़िया मुहूर्त

प्रातःकाल मुहूर्त (शुभ) = ०६:२८ - ०७:५३

प्रातःकाल मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) = १०:४१ - १४:५५
सायंकाल मुहूर्त (अमृत, चर) = १६:१९ - २०:५५

रात्रि मुहूर्त (लाभ) = २४:०६+ - २४:४१+

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

गोवर्धन पूजा पर्व

तारीख - 20 अक्तूबर 2017, शुक्रवार

गोवर्धन पूजा सुबह का मुहूर्त- सुबह 06:28 बजे से 08:43 बजे तक
दोपहर :-अभिजीत मुहूर्त दिन का आधा भाग
गोवर्धन पूजा शाम का मुहूर्त - 04:27 बजे से सायं 05:42 बजे तक

^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
21 अक्टूम्बर भाई दोज़

भाई दूज टीका मुहूर्त = १२:४५ से १५:०२
अवधि = २ घण्टे १६ मिनट्स

द्वितीय तिथि प्रारम्भ = २१/अक्टूबर/२०१७ को ०२:०७ बजे

द्वितीय तिथि समाप्त = २२/अक्टूबर/२०१७ को ०३:३० बजे

Pandit भुबनेश्व र
कस्तूरवानागर पर्णकुटी वुना

09893946810

Thursday, 5 October 2017

करवाचौथ ब्रत शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे।

Karwa Chauth
Puja Muhurat = 17:55 to 19:09 


Duration = 1 Hour 14 Mins 


Moonrise On Karwa Chauth Day = 20:14K 

Chaturthi Tithi Begins = 16:58 on 8/Oct/2017
Chaturthi Tithi Ends = 14:16 on 9/Oct/2017
------------------------------------------------------------------------------------------------

////////////////करवाचौथ ब्रत मुहूर्त///////////////////

पूजा मुहूर्त -

शाम -5-बजकर 55 मिनिट से -7-बजकर 09 मिनिट  तक

कुल समय सीमा-1घण्टा-14-मिनिट

चन्द्रोदय अर्घ 8 बजकर 22 मिनिट 

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ-शाम-4 बजकर 58 मिनिट  8 oct 2017 से

चतुर्थी तिथि समाप्त-दोपहर -2बजकर 16 मिनिट 9 oct 2017 तक

******************************************

करवा चौथ एक नारी पर्व है। इस व्रत को सौभाग्यवती महिलाएं करती हैं।

इस व्रत में प्रमुखतः

गौरी व गणेश का पूजन किया जाता है। जिसमें पूजन सामग्री का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।

यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।

शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए।

पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है।

करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है।

अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है।

इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है।

स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।

यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है।

जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं।

इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।

व्रत की विधि उपवास सहित एक समूह में बैठ महिलाएं चौथ पूजा के दौरान, गीत गाते हुए थालियों की फेरी करती हुई चौथ पूजा के उपरांत महिलाएं समूह मे सूर्य को जल का अर्क देती हुई कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात उस चतुर्थी की रात्रि को जिसमें चंद्रमा दिखाई देने वाला है, उस दिन प्रातः स्नान करके अपने सुहाग (पति) की आयु, आरोग्य, सौभाग्य का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहें।

पूजनसंपादित करें उस दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का पूजन करें। पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर उपरोक्त वर्णित सभी देवों को स्थापित करें।

नैवेद्यसंपादित करें शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक (लड्डू) नैवेद्य हेतु बनाएँ।

करवासंपादित करें

काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे।

संख्‍यासंपादित करें

10 अथवा 13 करवे अपनी सामर्थ्य अनुसार रखें। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतु र्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है।

पूजन विधिसंपादित करें

बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें।

पूजन हेतु निम्न मंत्र बोलें -

'ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का,
'ॐ नमः शिवाय' से शिव का,
'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का,
'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का
तथा 'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।

करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें।

करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें। सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें। इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों व पति के माता-पिता को भोजन कराएँ। भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा दें।

पति की माता (अर्थात अपनी सासूजी) को उपरोक्त रूप से अर्पित एक लोटा, वस्त्र व विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद लें। यदि वे जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें।

इसके पश्चात स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।

कथासंपादित करें प्रथम कथासंपादित करें

बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।

द्वितीय कथासंपादित करें

इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया। परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।

तृतीय कथासंपादित करें

एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा। उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ। यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

चौथी कथासंपादित करें

एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था। पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं। तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी। एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया। भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं।
Gurudev _bhubneshwar
Kasturba nagar
Par nkuti guna
9893946810

करवाचौथ व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। ///////////////करवाचौथ ब्रत मुहूर्त/////////////////// पूजा मुहूर्त - शाम -5-बजकर 55 मिनिट से -7-बजकर 09 मिनिट  तक कुल समय सीमा-1घण्टा-14-मिनिट चतुर्थी तिथि प्रारम्भ- शाम-6बजकर 58 मिनिट  8 oct 2017 से चतुर्थी तिथि समाप्त- दोपहर -2बजकर 16 मिनिट 9 oct 2017 तक

Karwa Chauth


Puja Muhurat = 17:55 to 19:09 


Duration = 1 Hour 14 Mins 


Moonrise On Karwa Chauth Day = 20:14K 

Chaturthi Tithi Begins = 16:58 on 8/Oct/2017
Chaturthi Tithi Ends = 14:16 on 9/Oct/2017
------------------------------------------------------------------------------------------------

////////////////करवाचौथ ब्रत मुहूर्त///////////////////

पूजा मुहूर्त -

शाम -5-बजकर 55 मिनिट से -7-बजकर 09 मिनिट  तक

कुल समय सीमा-1घण्टा-14-मिनिट

चन्द्रोदय अर्घ*-8बजकर22 मिनिट पर 

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ-शाम-4 बजकर 58 मिनिट  8 oct 2017 से

चतुर्थी तिथि समाप्त-दोपहर -2बजकर 16 मिनिट 9 oct 2017 तक

****************************************** /////////करवा चौथ : पूजन सामग्री की सूची /////////

इस व्रत में प्रमुखतः
करवा चौथ एक नारी पर्व है। इस व्रत को सौभाग्यवती महिलाएं करती हैं।

इस व्रत में प्रमुखतः

गौरी व गणेश का पूजन किया जाता है। जिसमें पूजन सामग्री का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।

यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।

शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए।

पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है।

करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है।

अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है।

इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है।

स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।

यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है।

जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं।

इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।

व्रत की विधि उपवास सहित एक समूह में बैठ महिलाएं चौथ पूजा के दौरान, गीत गाते हुए थालियों की फेरी करती हुई चौथ पूजा के उपरांत महिलाएं समूह मे सूर्य को जल का अर्क देती हुई कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात उस चतुर्थी की रात्रि को जिसमें चंद्रमा दिखाई देने वाला है, उस दिन प्रातः स्नान करके अपने सुहाग (पति) की आयु, आरोग्य, सौभाग्य का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहें।

पूजनसंपादित करें उस दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का पूजन करें। पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर उपरोक्त वर्णित सभी देवों को स्थापित करें।

नैवेद्यसंपादित करें शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक (लड्डू) नैवेद्य हेतु बनाएँ।

करवासंपादित करें

काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे।

संख्‍यासंपादित करें

10 अथवा 13 करवे अपनी सामर्थ्य अनुसार रखें। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतु र्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है।

पूजन विधिसंपादित करें

बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें।

गौरी व गणेश का पूजन किया जाता है। जिसमें पूजन सामग्री का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।

करवा चौथ से जुड़ी पूजन सामग्री की सूची।  /////////करवा चौथ : पूजन सामग्री की सूची /////////

1. चंदन
2. शहद
3. अगरबत्ती
4. पुष्प
5. कच्चा दूध
6. शक्कर
7. शुद्ध घी
8. दही
9. मिठाई
10. गंगाजल
11. कुंकू
12. अक्षत (चावल)
13. सिंदूर
14. मेहंदी
15. महावर
16. कंघा
17. बिंदी
18. चुनरी
19. चूड़ी
20. बिछुआ
21. मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन
22. दीपक
23. रुई
24. कपूर
25. गेहूं
26. शक्कर का बूरा
27. हल्दी
28. पानी का लोटा
29. गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी
30. लकड़ी का आसन
31. चलनी
32. आठ पूरियों की अठावरी
33. हलुआ
34. दक्षिणा (दान) के लिए पैसे, इ‍त्यादि।

Gurudev bhubneshwar
Kasturwa nagar
Parnkuti guna
9893946810