ज्योतिष समाधान

Saturday, 29 July 2017

भैरव रक्षा कवच ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः | पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||

भैरव रक्षा कवच
ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||

पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||

नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ||

भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ||

रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||

पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा |

जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा । जय काली और गौरा देवी कृत सेवा ।।

जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा ।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा ।।

तुम्हीं पाप उद्धारक दु:ख सिंधु तारक ।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक ।।

वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी ।
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयकारी ।।

तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे ।
चौमुख दीपक दर्शन दु:ख सगरे खोंवे ।।

तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी ।
कृपा करिये भैरव करिये नहीं देरी ।।

पाँव घुँघरू बाजत अरु डमरु डमकावत ।।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हरषावत ।।

बथुकनाथ की आरती जो कोई नर गावें ।
कहें धरणीधर नर मनवाछिंत फल पावे ।।

Tuesday, 25 July 2017

भाग्य बदलने वाला लक्ष्मी स्त्रोत्र

नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते!
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
नमस्तेतु गरुदारुढै कोलासुर भयंकरी!
सर्वपाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरी!
सर्वदुख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भक्ति मुक्ति प्रदायनी!
मंत्र मुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
आध्यंतरहीते देवी आद्य शक्ति महेश्वरी!
योगजे योग सम्भुते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
स्थूल सुक्ष्मे महारोद्रे महाशक्ति महोदरे!
× महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
पद्मासन स्थिते देवी परब्रह्म स्वरूपिणी!
परमेशी जगत माता महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
श्वेताम्भर धरे देवी नानालन्कार भुषिते!
जगत स्थिते जगंमाते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रं य: पठेत भक्तिमान्नर:!
सर्वसिद्धि मवाप्नोती राज्यम् प्राप्नोति सर्वदा!!
एक कालम पठेनित्यम महापापविनाशनम!
द्विकालम य: पठेनित्यम धनधान्यम समन्वित:!!
त्रिकालम य: पठेनित्यम महाशत्रुविनाषम!
महालक्ष्मी भवेनित्यम प्रसंनाम वरदाम शुभाम

Saturday, 22 July 2017

रक्षा बन्धन मुहूर्त दिन के  11•05 से दोपहर के 1•28 मिनट के बीच में करना है ||  चन्द्र ग्रहण । | चंद्र ग्रहण  समय  प्रारम्भ समय  रात्रि 10•29 से  मध्य रात्रि 12•22 तक । ग्रहण का कुल समय 1•53 मिनट है। सूतक काल प्रांरभ दोपहर 1•29 मिनट से प्रांरभ  गर्भवती स्त्री को सूर्य एवं चन्द्रग्रहण नहीं देखना चाहिए, क्योंकी उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन जाता है । गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है । इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू उसका स्पर्श न करें. । ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची, चाकू आदि से काटने को मना किया जाता है , और किसी वस्त्र आदि को सिलने से मना किया जाता है, क्योंकि ऐसी धारणा है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं ग्रहण के समय सोने से रोग पकड़ता है किसी कीमत पर नहीं सोना चाहिए। ग्रहण के समय मल-मूत्र त्यागने से घर में दरिद्रता आती है । शौच करने से पेट में क्रमी रोग पकड़ता है । ये शास्त्र बातें हैं इसमें किसी का लिहाज नहीं होता। ग्रहण के समय संभोग करने से सूअर की योनी मिलती है । ============================================= ===    भद्रा विश्लेषण। ============= पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ  6 अगस्त 2017 को  रात्रि10:28 बजे से आरंभ होगा परन्तु भद्रा काल व्याप्त रहेगी। भद्रा रहेगी----- आखिर भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती राखी? ऐसा कहा जाता है कि सूपनखा मे अपने भाई रावण को भद्रा में राखी बांधी थी, जिसके कारण रावण का विनाश हो गया, यानी कि रावण का अहित हुआ। इस कारण लोग मना करते हैं भद्रा में राखी बांधने को। भद्रायां द्वे न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी……। अतः हिन्दू शास्त्र के अनुसार यह त्यौहार 7 अगस्त को भद्रा रहित काल में मनाया जाएगा।  किन्तु किसी कारणवश भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को छोड़कर भद्रा पुच्छ काल में रक्षा बंधन का त्यौहार मानना श्रेष्ठ है

          ||||||||||श्रावणी कर्म|||||||||

सनातन धर्म मे एक वर्ण व्यवस्था है।

जिसमें ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , क्षुद्र ये चार वर्ण है।

सभी वर्णों के कर्म व त्योहार अलग अलग है।

जैसे क्षत्रिय का मुख्य त्योहार दशहरा है,

वैश्य का दिवाली है ,

उसी तरह ब्राम्हण का "श्रावणी उपाकर्म " मुख्य त्योहार है।

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                              |||||रक्षा बन्धन||||

12साल बाद ऐसा संयोग बना है जब राखी के दिन ग्रहण लग रहा है।

इसलिए इस बार राखी के दिन सूतक का भी लगेगा

श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा  7•8•2017 सोमवार

श्रावणी उपाकर्म 
 राखी बंधन  
श्रवण पूजन  का मुहूर्त
दिन के  11•05 से दोपहर के 1•28 मिनट के बीच में करना है ।

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                          ||  चन्द्र ग्रहण । |

चंद्र ग्रहण  समय  प्रारम्भ समय 
रात्रि 10•29 से  मध्य रात्रि 12•22 तक ।
ग्रहण का कुल समय 1•53 मिनट है।

सूतक काल प्रांरभ
दोपहर 1•29 मिनट से प्रांरभ 

गर्भवती स्त्री को सूर्य एवं चन्द्रग्रहण नहीं देखना चाहिए,

क्योंकी उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन जाता है । गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है ।

इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू उसका स्पर्श न करें. ।

ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची, चाकू आदि से काटने को मना किया जाता है , और किसी वस्त्र आदि को सिलने से मना किया जाता है,

क्योंकि ऐसी धारणा है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं

ग्रहण के समय सोने से रोग पकड़ता है किसी कीमत पर नहीं सोना चाहिए।

ग्रहण के समय मल-मूत्र त्यागने से घर में दरिद्रता आती है । शौच करने से पेट में क्रमी रोग पकड़ता है ।

ये शास्त्र बातें हैं इसमें किसी का लिहाज नहीं होता। ग्रहण के समय संभोग करने से सूअर की योनी मिलती है ।

============================================= ===    भद्रा विश्लेषण। =============

पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 
6 अगस्त 2017 को  रात्रि10:28 बजे से आरंभ होगा परन्तु भद्रा काल व्याप्त रहेगी।

भद्रा रहेगी----- आखिर भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती राखी? ऐसा कहा जाता है कि सूपनखा मे अपने भाई रावण को भद्रा में राखी बांधी थी, जिसके कारण रावण का विनाश हो गया, यानी कि रावण का अहित हुआ। इस कारण लोग मना करते हैं भद्रा में राखी बांधने को।

भद्रायां द्वे न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी……।

अतः हिन्दू शास्त्र के अनुसार यह त्यौहार 7 अगस्त को भद्रा रहित काल में मनाया जाएगा। 
किन्तु किसी कारणवश भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को छोड़कर भद्रा पुच्छ काल में रक्षा बंधन का त्यौहार मानना श्रेष्ठ है

भद्रा पूँछ – 06:40 से 07:55 
भद्रा मुख – 07:55 से 10:01 
भद्रा अन्त समय – 11:04

श्रावणी उपाकर्म 
 राखी बंधन  
श्रवण पूजन  का मुहूर्त
दिन के  11•05 से दोपहर के 1•28 मिनट के बीच में करना है ।
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रक्षाबंधन हमारे सनातन धर्म का सबसे खास त्योहार है। भाई की सलामती के लिए सदियों से यह त्योहार वैदिक रीति से मनाया जाता रहा है।

हालांकि वक्त के साथ इसमें बदलाव आए हैं, लेकिन वैदिक रीति का अपना खास महत्व है।

रक्षाबंधन की वैदिक विधि में सबसे अहम भूमिका रक्षा सूत्र यानी राखी की है।

आज कल बाजार में तरह-तरह की राखियां मिल जाएंगी लेकिन प्राचीन काल में वैदिक राखियां ही बनाई जाती थीं।

वैदिक राखी में जिन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है उसका अपना-अपना प्रतीकात्मक अर्थ भी है।

माना जाता है कि ये वैदिक राखी न सिर्फ आपको अपनी विरासत और परंपरा से जोड़ती है, बल्कि आपके भाई की तरक्की के रास्ते के सारे कांटे भी चुन लेती है।

तो इस बार क्यों न आप अपने भाई को अपने हाथ से बनाई वैदिक राखी ही बांधें।

भाई की कलाई पर राखी बांधते समय बहन को इस मंत्र का उच्चारण जरूर करना चाहिए--

आयुर्द्रोणसुते श्रियो दशरथे शत्रुक्षयं राघवे । 
ऐश्वर्य नहुषे गतिश्च पवने मानञ्च दुर्योधने ॥
शौर्य शान्तनवे बलं हलधरे सत्यञ्च कुन्तीसुते । 
विज्ञानं विदुरे भवन्ति भवतां कीर्तिश्च नारायणे ॥

लक्ष्मीस्ते पंकजश्री निवसतु भवने भारती कण्ठदेशे बर्द्धन्तां बन्धुवर्गा: सकलरिपुगणा यान्तु पातालदेशम् । 
देश देशे च कीर्ति: प्रसरतु भवतां कुन्दपुष्पेन्दुशुभ्रा जीव त्वं पुत्रपौत्रै: सकलसुखयुतैर्हायनानां शलैश्व ॥

स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु गोवाजीरत्न धनधान्यसमृद्धिरस्तु ।
ऐश्वर्यमस्तु वलमस्तु रिपुक्षयोSस्तु सन्तानसौख्यशततं हरिभक्तिस्तु ॥

मन्त्रार्था: सफला: सन्तु पूर्णा: सन्तु मनोरथा: । 
शत्रुंणा बुद्धिनाशोSस्तु मित्राणांमुदयस्तव ॥ 
अव्याधिना शरीरेण मनसा च निरामया । 
पूरयन्नर्थिनामाशां त्वं जीव शरदांशतम् ॥ 
भद्रमस्तु शिवंचास्तु महालक्ष्मी प्रसीदतु । 
रक्षन्तु त्वां सदां: देवा आशीष: सन्तु सर्वदा ॥ 
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। 
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल।।

कैसे बनाएं वैदिक राखी?

वैदिक राखी बनाने के लिए जो 5 वस्तुएं जरूरी होती हैं
जिसमें

दूर्वा,
अक्षत, 
केसर,
चंदन 
और सरसों के दाने प्रमुख हैं।

इन पांचों चीजों को रेशम या मलमल के कपड़े में बांधकर उसे लाल रंग के कलावे में पिरो दें और इस तरह से वैदिक राखी तैयार हो जाएगी।

वैदिक राखी में जिन पांच चीजों का सम्मिश्रण होता है उसका अपना अलग महत्व होता है।

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                              1   दूर्वा 
    
के पीछे धारणा यह है कि जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर लगाने पर वह तेजी से फैलता है और हजारों की संख्या में वृद्धि करता है,

उसी प्रकार भाई के वंश और सदगुणों में भी वृद्धि होती रहे और उसका सदाचार, मन की पवित्रता तीव्र गति से बढ़ती जाए। दूर्वा गणेश जी को प्रिय है। इसका राखी में प्रयोग करने का अर्थ यह भी है, कि हम जिसे राखी बांध रहे हैं, उनके जीवन में किसी तरह के विघ्न न आने पाए।

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                             2 अक्षत

हमारे रिश्तों के प्रति श्रद्धा भाव का प्रतीक होता है। लंबी उम्र और यशस्वी जीवन की कामना भी इन्हीं अक्षत में छुपी है।
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                           3   केसर

की प्रकृति तेज होती है। हम जिसे राखी बांध रहे हैं, वह तेजस्वी हो। उनके जीवन में धर्म की तेजस्विता कभी कम न हो, इसके लिए वैदिक राखी में अक्षत का प्रयोग किया जाता है।

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                             4    चंदन

की प्रकृति शीतल होती है और यह सुंदर सुगंध देता है। भाई के जीवन में शीतलता बनी रहे और कभी मानसिक तनाव ना हो। उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे। इन गुणों की वजह से वैदिक राखी में चंदन का इस्तेमाल किया जाता है।
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                             5  सरसों
जहां तक सरसों के दाने की बात है तो इसकी प्रकृति तीक्ष्ण होती है। इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों, विध्नों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें। सरसों के दाने भाई की नजर उतारने और बुरी नजर से भाई को बचाने के लिए भी प्रयोग में लाए जाते हैं।

रक्षा बंधन : वैदिक राखी बांधने से होती है भाई की तरक्की

वामन पुराण की एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जब राजा बलि से तीन पग में उनका सब कुछ ले लिया था, तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा।

वरदान में बलि ने विष्णु भगवान को पाताल में उनके साथ निवास करने का आग्रह किया।

भगवान विष्णु को वरदान के कारण पाताल में जाना पड़ा। इससे देवी लक्ष्मी को बहुत दुखी हुईं।

लक्ष्मी जी भगवान विष्णु को वामन से मुक्त करवाने के लिए एक दिन वृद्ध महिला का वेष बनाकर पाताल पहुंची और वामन को राखी बांधकर उन्हें अपना भाई बना लिया।

वामन ने जब लक्ष्मी से कुछ मांगने के लिए कहा तो लक्ष्मी ने वामन से भगवान विष्णु को पाताल से बैकुंठ भेजने के लिए कहा।

प्रतीकात्मक फोटो बहन की बात रखने के लिए वामन ने भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ बैकुंठ भेज दिया।

भगवान विष्णु ने वामन को वरदान दिया कि चतुर्मास की अवधि में वह पाताल में आकर रहेंगे।

इसके बाद से हर साल चार महीने भगवान विष्णु पाताल में रहते हैं।

पुराणों के अनुसार एक बार दानवों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता दानवों से हारने लगे। देवराज इंद्र की पत्नी देवताओं की हो रही हार से घबरा गईं और इंद्र के प्राणों की रक्षा के तप करना शुरू कर दिया, तप से उन्हें एक रक्षासूत्र प्राप्त हुआ।

शचि ने इस रक्षासूत्र को श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई पर बांध दिया, जिससे देवताओं की शक्ति बढ़ गयी और दानवों पर जीत प्राप्त की।

किसके बांधनी चाहिए राखी

श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षासूत्र बांधने से इस दिन रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा। पुराणों के अनुसार आप जिसकी भी रक्षा एवं उन्नति की इच्छा रखते हैं उसे रक्षा सूत्र यानी राखी बांध सकते हैं, चाहें वह किसी भी रिश्ते में हो।

राखी के साथ क्या है जरूरी

रक्षाबंधन का त्योहार बिना राखी के पूरा नहीं होता, लेकिन राखी तभी प्रभावशाली बनती है जब उसे मंत्रों के साथ रक्षासूत्र बांधा जाए।

राखी बांधने का मंत्र ‘

येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। 
तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे! मा चल! मा चल!!’

इस मंत्र का अर्थ है कि जिस प्रकार राजा बलि ने रक्षासूत्र से बंधकर विचलित हुए बिना अपना सब कुछ दान कर दिया। उसी प्रकार हे रक्षा! आज मैं तुम्हें बांधता हूं, तू भी अपने उद्देश्य से विचलित न हो और दृढ़ बना रहे।

दिया। भगवान विष्णु ने वामन को वरदान दिया कि चतुर्मास की अवधि में वह पाताल में आकर रहेंगे। इसके बाद से हर साल चार महीने भगवान विष्णु पाताल में रहते हैं।

पंडित bhubneshwar 
कस्तूरवा नगर पर्णकुटी गुना 
9893946810

यह व्रत यदि कुंवारी कन्याओं द्वारा किया जाए तो उन्हें मनोनुकूल पति की प्राप्ति होती है। परन्तु इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करना बहुत जरुरी होता है। 16 सोमवारी व्रत श्रावण सोमवार व्रत से अलग होता है और कठिन भी। 16 सोमवार का व्रत कब शुरू करनी चाहिए ?

यह व्रत यदि कुंवारी कन्याओं द्वारा किया जाए तो उन्हें मनोनुकूल पति की प्राप्ति होती है। परन्तु इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करना बहुत जरुरी होता है।
16 सोमवारी व्रत श्रावण सोमवार व्रत से अलग होता है और कठिन भी।

16 सोमवार का व्रत कब शुरू करनी चाहिए ?

इस व्रत को श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक और मार्गशीर्ष मास में आरम्भ करना चाहिए।

उपर्युक्त मास में व्रत आरम्भ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

16 सोमवार व्रत विध

सोमवार के दिन व्रती को सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए। पूजा करने से पहले नित्य क्रिया से निवृत्य होकर स्नान करना चाहिए। स्नान के दौरान पानी में गंगा जल तथा काला तिल डालकर नहाना चाहिए तथा पहली बार शरीर पर जल डालते समय निम्न मंत्र का जप करना चाहिए।

ॐ गंगे च गोदावरीनर्मदेसिंधुकावेरी अस्मिन जलं सन्निधिं कुरु।।

प्रत्येक सोमवार को बाल धोकर अवश्य ही नहाना चाहिए।

इसके बाद स्वच्छ कपड़ा पहनना चाहिए तत्पश्चात अपनी इच्छा तथा सुविधानुसार पूजा घर में या शिवालय में जाकर पूरी विधि के साथ पूजा अर्चना करें। पूजा में निम्न वस्तुओं का प्रयोग करनी चाहिए यथा

:- सफेद चन्दन श्वेत फूल अक्षत पंचामृत पान सुपारी फल गंगा जल बेलपत्र धतूरा-फल तथा धतूरा-फूल से शिव-पार्वती तथा साथ में गणेशजी, कार्तिकेय और नंदी जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है।

यह अभिषेक गंगा जल और पवित्र नदी के जल से किया जाता है। भगवान का अभिषक दूध, दही, घी, शहद, चने की ताल, सरसों के तेल, काले तिल आदि से किया जाता है।
पूजा में “ॐ नमः शिवाय” गणेश मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः ” तथा चन्द्रमा
के बीज मन्त्र “ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः” आदि मंत्रो की कम से कम तीन माला का जप अवश्य करनी चाहिए।

पूजा अर्चना के बाद सोमवार व्रत की कथा अवश्य पढ़नी चाहिए। 16 सोमवार व्रत पूजन समय 16 सोमवार व्रत पूजन समय निश्चित होता है।

इस व्रत की पूजा दिन के तीसरे प्रहर में अर्थात साय 4 बजे के आसपास किया जाता है तथा हमेशा इसी समय ही पूजा करना चाहिए इसमें किन्तु परन्तु का समावेश नहीं होता है।

16 सोमवार व्रत में प्रसाद में क्या-क्या चढ़ाये

इस व्रत में गेहू के आटे में घी तथा शक़्कर मिलाकर उसे हल्का भून कर चूर्ण तैयार किया जाता है। इस प्रसाद को मुख्य प्रसाद माना जाता है किसी भी परिस्थिति में इस प्रसाद को छोड़ना नहीं चाहिए।

इस प्रसाद की मात्रा भी निश्चित होती है। यदि आपने प्रथम सोमवार व्रत में 250 ग्राम आटे का प्रयोग किया है तो आपको प्रत्येक सोमवार को इसी मात्रा में आटे का प्रयोग करना होगा।

इस प्रसाद का स्थान विशेष के अनुसार भिन्न-भिन्न नाम से जाना जाता है यथा कही —

गेहू के आटा का चूर्ण तो कहीं पंजीरी इत्यादि। इस व्रत में प्रसाद के रूप में चूर्ण के साथ साथ किसी भी एक फल का उपयोग कर सकते है परन्तु जिस फल को आप एक बार उपयोग करेंगे उस फल को सभी सोमवारी व्रत में उतनी ही मात्रा में उपयोग करना होगा अन्यथा आपका व्रत खंडित हो जाएगा।

16 सोमवारी व्रत का उद्द्यापन कैसे करें

16 सोमवार व्रत का उद्द्यापन 17 वें सोमवार के दिन करना चाहिए।

उद्द्यापन किसी कुशल पंडित के द्वारा ही कराना चाहिए। उद्द्यापन भी उसी समय करना चाहिए जिस समय आप प्रत्येक सोमवार को पूजा करते थे। उद्द्यापन में सवा किलो आटे का प्रसाद चढ़ाना चाहिए।

प्रसाद को तीन भाग में विभक्त कर देना चाहिए तथा उपर्युक्त बताये के अनुसार तीसरा भाग स्वयं खाना चाहिए।

उद्द्यापन में दशमांश जप का हवन करके सफेद वस्तुओं जैसे चावल, श्वेत वस्त्र, दूध-दही,बर्फी चांदी तथा फलों का दान करना चाहिए। इस दिन विवाहित दंपतियों को भी जिमाया जाता है।

दंपतियों का चंद्रदर्शन और विधिवत पूजन किया जाता है। लोगों को उपहार स्वरूप कुछ सामग्री भी उद्यापन के दौरान दान में दी जाती है।

इस प्रकार से देवों के देव शिवजी का व्रत पूर्ण होता है और भक्त जन को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

16 सोमवार व्रत में निम्न बातों का ध्यान जरूर रखे सोमवार व्रत पूजा से पहले पूर्ण उपवास रखा जाता है अर्थात पानी भी नहीं पीना होता है।

भोजन के रूप में सिर्फ चढ़ाये हुए प्रसाद का तीसरा हिस्सा ही ग्रहण करना होता है।

तीन हिस्सा में एक हिस्सा ब्राह्मण को देना चाहिए तथा दुसरा हिस्सा बच्चो के लिए होता है।

पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण के समय आपने जो पानी पी लिया उसके बाद पानी नही पीना होता है।

इस व्रत में किसी भी परिस्थिति में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। दिन में शयन न करें।

16 सोमवार तक जो खाद्य सामग्री ग्रहण करें उसे एक स्थान पर बैठकर ग्रहण करें, चलते फिरते नहीं।

16 सोमवार तक प्रसाद और पूजन के जो नियम और समय निर्धारित करें उसे खंडित ना होने दें।

जिस दिन से पूजा आरभ करेंगे उस दिन से लेकर उद्द्यापन तक किसी दूसरे के घर में भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिन पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे। इस दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए।

व्रत के दौरान अपना ध्यान दिन-रात शिवजी में ही लगाए रखना चाहिए। इस दिन शिवजी का कोई एक मन्त्र का चयन कर लेना चाहिए तथा मन में इसका जप करते रहना चाहिए। इस दिन मन वचन तथा कर्म से शिवमय हो जाना चाहिए।

16 सोमवार व्रत से लाभ |

सोमवार व्रत करने वाले को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। कुवारी कन्याओ को मनोनुकूल पति की प्राप्ति होती है। संतान सुख की प्राप्ति होती है। घर में अकारण होने वाले पति-पत्नी के मध्य क्लेश में कमी हो जाती है या ख़त्म ही हो जाता है। रोगो से मुक्ति मिलती है शरीर में शिव शक्ति संचार की अनुभूति होती है। अपना तथा अपने परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु का भय कम हो जाता है।
जन्मकुंडली में अशुभ ग्रह की दशा चल रही है तो अशुभता में कमी हो जाती है।

16 सोमवार व्रत तथा सोमवार व्रत में अंतर 16 सोमवार व्रत सोमवार व्रत

1  )   16 सोमवार व्रत केवल16 सोमवार ही होता है। सोमवार व्रत आप आजीवन भी कर सकते है।

2)))इस व्रत में पूजा दिन के तीसरे प्रहर में होता है।आप पूजा कभी भी कर सकते है।

3  )  इस व्रत में जो प्रसाद प्रथम दिन चढ़ाते है वही पुरे व्रत में चढ़ाना होता है। सावन या अन्य सोमवार व्रत में ऐसा नहीं है।

4 ) किसी भी रूप में पूजा खंडित नहीं होना चाहिए।यह व्रत आप छोड़कर भी कर सकते है। 

5 ) इस व्रत के दौरान केवल भोजन एक ही बार करना होता है इस व्रत में ऐसा कोई कठिन नियम नहीं है। “ॐ नमः शिवाय “ॐ नमः शिवाय “ॐ नमः शिवाय “ॐ नमः शिवाय “ॐ नमः शिवाय “
पंडित
भुबनेश्वर
कस्तूरवा नगर पर्णकुटी गुना
9893946810

सनातन धर्म मे एक वर्ण व्यवस्था है। जिसमें ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , क्षुद्र ये चार वर्ण है। सभी वर्णों के कर्म व त्योहार अलग अलग है। जैसे क्षत्रिय का मुख्य त्योहार दशहरा है, वैश्य का दिवाली है , उसी तरह ब्राम्हण का "श्रावणी उपाकर्म " मुख्य त्योहार है। व


                      ||||||||||श्रावणी कर्म|||||||||

सनातन धर्म मे एक वर्ण व्यवस्था है।

जिसमें ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , क्षुद्र ये चार वर्ण है।

सभी वर्णों के कर्म व त्योहार अलग अलग है।

जैसे क्षत्रिय का मुख्य त्योहार दशहरा है,

वैश्य का दिवाली है ,

उसी तरह ब्राम्हण का "श्रावणी उपाकर्म " मुख्य त्योहार है।

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                              |||||रक्षा बन्धन||||

12साल बाद ऐसा संयोग बना है जब राखी के दिन ग्रहण लग रहा है।

इसलिए इस बार राखी के दिन सूतक का भी लगेगा

श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा  7•8•2017 सोमवार

श्रावणी उपाकर्म 
 राखी बंधन  
श्रवण पूजन  का मुहूर्त
दिन के  11•05 से दोपहर के 1•28 मिनट के बीच में करना है ।

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                          ||  चन्द्र ग्रहण । |


चंद्र ग्रहण  समय  प्रारम्भ समय 
रात्रि 10•29 से  मध्य रात्रि 12•22 तक ।
ग्रहण का कुल समय 1•53 मिनट है।

सूतक काल प्रांरभ
दोपहर 1•29 मिनट से प्रांरभ 

गर्भवती स्त्री को सूर्य एवं चन्द्रग्रहण नहीं देखना चाहिए,

क्योंकी उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन जाता है । गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है ।

इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू उसका स्पर्श न करें. ।

ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची, चाकू आदि से काटने को मना किया जाता है , और किसी वस्त्र आदि को सिलने से मना किया जाता है,

क्योंकि ऐसी धारणा है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं

ग्रहण के समय सोने से रोग पकड़ता है किसी कीमत पर नहीं सोना चाहिए।

ग्रहण के समय मल-मूत्र त्यागने से घर में दरिद्रता आती है । शौच करने से पेट में क्रमी रोग पकड़ता है ।

ये शास्त्र बातें हैं इसमें किसी का लिहाज नहीं होता। ग्रहण के समय संभोग करने से सूअर की योनी मिलती है ।

============================================= ===    भद्रा विश्लेषण। =============

पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 
6 अगस्त 2017 को  रात्रि10:28 बजे से आरंभ होगा परन्तु भद्रा काल व्याप्त रहेगी।

भद्रा रहेगी----- आखिर भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती राखी? ऐसा कहा जाता है कि सूपनखा मे अपने भाई रावण को भद्रा में राखी बांधी थी, जिसके कारण रावण का विनाश हो गया, यानी कि रावण का अहित हुआ। इस कारण लोग मना करते हैं भद्रा में राखी बांधने को।

भद्रायां द्वे न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी……।

अतः हिन्दू शास्त्र के अनुसार यह त्यौहार 7 अगस्त को भद्रा रहित काल में मनाया जाएगा। 
किन्तु किसी कारणवश भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को छोड़कर भद्रा पुच्छ काल में रक्षा बंधन का त्यौहार मानना श्रेष्ठ है

भद्रा पूँछ – 06:40 से 07:55 
भद्रा मुख – 07:55 से 10:01 
भद्रा अन्त समय – 11:04

श्रावणी उपाकर्म 
 राखी बंधन  
श्रवण पूजन  का मुहूर्त
दिन के  11•05 से दोपहर के 1•28 मिनट के बीच में करना है ।
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रक्षाबंधन हमारे सनातन धर्म का सबसे खास त्योहार है। भाई की सलामती के लिए सदियों से यह त्योहार वैदिक रीति से मनाया जाता रहा है।

हालांकि वक्त के साथ इसमें बदलाव आए हैं, लेकिन वैदिक रीति का अपना खास महत्व है।

रक्षाबंधन की वैदिक विधि में सबसे अहम भूमिका रक्षा सूत्र यानी राखी की है।

आज कल बाजार में तरह-तरह की राखियां मिल जाएंगी लेकिन प्राचीन काल में वैदिक राखियां ही बनाई जाती थीं।

वैदिक राखी में जिन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है उसका अपना-अपना प्रतीकात्मक अर्थ भी है।

माना जाता है कि ये वैदिक राखी न सिर्फ आपको अपनी विरासत और परंपरा से जोड़ती है, बल्कि आपके भाई की तरक्की के रास्ते के सारे कांटे भी चुन लेती है।

तो इस बार क्यों न आप अपने भाई को अपने हाथ से बनाई वैदिक राखी ही बांधें।

भाई की कलाई पर राखी बांधते समय बहन को इस मंत्र का उच्चारण जरूर करना चाहिए--

आयुर्द्रोणसुते श्रियो दशरथे शत्रुक्षयं राघवे । 
ऐश्वर्य नहुषे गतिश्च पवने मानञ्च दुर्योधने ॥
शौर्य शान्तनवे बलं हलधरे सत्यञ्च कुन्तीसुते । 
विज्ञानं विदुरे भवन्ति भवतां कीर्तिश्च नारायणे ॥

लक्ष्मीस्ते पंकजश्री निवसतु भवने भारती कण्ठदेशे बर्द्धन्तां बन्धुवर्गा: सकलरिपुगणा यान्तु पातालदेशम् । 
देश देशे च कीर्ति: प्रसरतु भवतां कुन्दपुष्पेन्दुशुभ्रा जीव त्वं पुत्रपौत्रै: सकलसुखयुतैर्हायनानां शलैश्व ॥

स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु गोवाजीरत्न धनधान्यसमृद्धिरस्तु ।
ऐश्वर्यमस्तु वलमस्तु रिपुक्षयोSस्तु सन्तानसौख्यशततं हरिभक्तिस्तु ॥

मन्त्रार्था: सफला: सन्तु पूर्णा: सन्तु मनोरथा: । 
शत्रुंणा बुद्धिनाशोSस्तु मित्राणांमुदयस्तव ॥ 
अव्याधिना शरीरेण मनसा च निरामया । 
पूरयन्नर्थिनामाशां त्वं जीव शरदांशतम् ॥ 
भद्रमस्तु शिवंचास्तु महालक्ष्मी प्रसीदतु । 
रक्षन्तु त्वां सदां: देवा आशीष: सन्तु सर्वदा ॥ 
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। 
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल।।

कैसे बनाएं वैदिक राखी?

वैदिक राखी बनाने के लिए जो 5 वस्तुएं जरूरी होती हैं
जिसमें

दूर्वा,
अक्षत, 
केसर,
चंदन 
और सरसों के दाने प्रमुख हैं।

इन पांचों चीजों को रेशम या मलमल के कपड़े में बांधकर उसे लाल रंग के कलावे में पिरो दें और इस तरह से वैदिक राखी तैयार हो जाएगी।

वैदिक राखी में जिन पांच चीजों का सम्मिश्रण होता है उसका अपना अलग महत्व होता है।

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                              1   दूर्वा 
    
के पीछे धारणा यह है कि जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर लगाने पर वह तेजी से फैलता है और हजारों की संख्या में वृद्धि करता है,

उसी प्रकार भाई के वंश और सदगुणों में भी वृद्धि होती रहे और उसका सदाचार, मन की पवित्रता तीव्र गति से बढ़ती जाए। दूर्वा गणेश जी को प्रिय है। इसका राखी में प्रयोग करने का अर्थ यह भी है, कि हम जिसे राखी बांध रहे हैं, उनके जीवन में किसी तरह के विघ्न न आने पाए।

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                             2 अक्षत

हमारे रिश्तों के प्रति श्रद्धा भाव का प्रतीक होता है। लंबी उम्र और यशस्वी जीवन की कामना भी इन्हीं अक्षत में छुपी है।
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                           3   केसर

की प्रकृति तेज होती है। हम जिसे राखी बांध रहे हैं, वह तेजस्वी हो। उनके जीवन में धर्म की तेजस्विता कभी कम न हो, इसके लिए वैदिक राखी में अक्षत का प्रयोग किया जाता है।

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                             4    चंदन

की प्रकृति शीतल होती है और यह सुंदर सुगंध देता है। भाई के जीवन में शीतलता बनी रहे और कभी मानसिक तनाव ना हो। उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे। इन गुणों की वजह से वैदिक राखी में चंदन का इस्तेमाल किया जाता है।
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                             5  सरसों
जहां तक सरसों के दाने की बात है तो इसकी प्रकृति तीक्ष्ण होती है। इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों, विध्नों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें। सरसों के दाने भाई की नजर उतारने और बुरी नजर से भाई को बचाने के लिए भी प्रयोग में लाए जाते हैं।

रक्षा बंधन : वैदिक राखी बांधने से होती है भाई की तरक्की

वामन पुराण की एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जब राजा बलि से तीन पग में उनका सब कुछ ले लिया था, तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा।

वरदान में बलि ने विष्णु भगवान को पाताल में उनके साथ निवास करने का आग्रह किया।

भगवान विष्णु को वरदान के कारण पाताल में जाना पड़ा। इससे देवी लक्ष्मी को बहुत दुखी हुईं।

लक्ष्मी जी भगवान विष्णु को वामन से मुक्त करवाने के लिए एक दिन वृद्ध महिला का वेष बनाकर पाताल पहुंची और वामन को राखी बांधकर उन्हें अपना भाई बना लिया।

वामन ने जब लक्ष्मी से कुछ मांगने के लिए कहा तो लक्ष्मी ने वामन से भगवान विष्णु को पाताल से बैकुंठ भेजने के लिए कहा।

प्रतीकात्मक फोटो बहन की बात रखने के लिए वामन ने भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ बैकुंठ भेज दिया।

भगवान विष्णु ने वामन को वरदान दिया कि चतुर्मास की अवधि में वह पाताल में आकर रहेंगे।

इसके बाद से हर साल चार महीने भगवान विष्णु पाताल में रहते हैं।

पुराणों के अनुसार एक बार दानवों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता दानवों से हारने लगे। देवराज इंद्र की पत्नी देवताओं की हो रही हार से घबरा गईं और इंद्र के प्राणों की रक्षा के तप करना शुरू कर दिया, तप से उन्हें एक रक्षासूत्र प्राप्त हुआ।

शचि ने इस रक्षासूत्र को श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई पर बांध दिया, जिससे देवताओं की शक्ति बढ़ गयी और दानवों पर जीत प्राप्त की।

किसके बांधनी चाहिए राखी

श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षासूत्र बांधने से इस दिन रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा। पुराणों के अनुसार आप जिसकी भी रक्षा एवं उन्नति की इच्छा रखते हैं उसे रक्षा सूत्र यानी राखी बांध सकते हैं, चाहें वह किसी भी रिश्ते में हो।

राखी के साथ क्या है जरूरी

रक्षाबंधन का त्योहार बिना राखी के पूरा नहीं होता, लेकिन राखी तभी प्रभावशाली बनती है जब उसे मंत्रों के साथ रक्षासूत्र बांधा जाए।

राखी बांधने का मंत्र ‘

येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। 
तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे! मा चल! मा चल!!’

इस मंत्र का अर्थ है कि जिस प्रकार राजा बलि ने रक्षासूत्र से बंधकर विचलित हुए बिना अपना सब कुछ दान कर दिया। उसी प्रकार हे रक्षा! आज मैं तुम्हें बांधता हूं, तू भी अपने उद्देश्य से विचलित न हो और दृढ़ बना रहे।

दिया। भगवान विष्णु ने वामन को वरदान दिया कि चतुर्मास की अवधि में वह पाताल में आकर रहेंगे। इसके बाद से हर साल चार महीने भगवान विष्णु पाताल में रहते हैं।

पंडित bhubneshwar 
कस्तूरवा नगर पर्णकुटी गुना 
9893946810