1+"अमावास्यायां यत्र स्याद्दर्शनं चन्द्रसूर्ययोः।
तत्र श्राद्धं न कर्तव्यं तद्व्रतेनैव तिष्ठति॥
" मत्स्यपुराण
(22/30) यदि अमावस्या को सूर्य या चंद्र ग्रहण हो तो उस दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
2+एकादशी "एकादश्यां न कर्तव्यं श्राद्धं पितृपूजनम्।
विष्णोः पूजाव्रतो ह्येष तस्मात् तत्र विवर्जयेत्॥"
(मत्स्यपुराण 22)
एकादशी को केवल विष्णु की पूजा और उपवास करना चाहिए। इस दिन पितृ-श्राद्ध वर्जित है।
"3+यदि तु निषिद्धे दिने पितॄणां श्राद्धकालः स्यात्।
पूर्वं वा परं कुर्यात् नियमेन विधिपूर्वकम्॥"
(मत्स्यपुराण 22/32)
📖 भावार्थ –
यदि पितरों की श्राद्ध तिथि किसी निषिद्ध दिन पड़ती हो तो उस श्राद्ध को निषिद्ध दिन से एक दिन पहले अथवा एक दिन बाद में विधिपूर्वक करना चाहिए।
4+अमावास्यायां यत्र स्याद्दर्शनं चन्द्रसूर्ययोः।
तत्र श्राद्धं न कर्तव्यं तद्व्रतेनैव तिष्ठति॥"
(मत्स्यपुराण 22/30)
📖 भावार्थ –
यदि अमावस्या को सूर्य या चंद्र ग्रहण पड़े तो उस दिन भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए, केवल व्रत रखना चाहिए।
श्राद्ध निषिद्ध तिथियाँ (मत्स्यपुराण, अध्याय 22–23)
5+> "चतुर्दश्यां च संक्रान्तौ ग्रहणे व्यत्यये तथा।
एकादश्यां च नृप श्राद्धं कर्तव्यं कथंचन॥"
(मत्स्यपुराण 22/27)
📖 भावार्थ –
चतुर्दशी तिथि, संक्रांति दिन, ग्रहण काल, व्यत्यय योग और एकादशी – इन दिनों में किसी प्रकार भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
मत्स्य पुराण अध्याय 22_23
6+"एकादश्यां न कर्तव्यं श्राद्धं पितृपूजनम्।
विष्णोः पूजाव्रतो ह्येष तस्मात्तत्र विवर्जयेत्॥"
अर्थात् –
एकादशी के दिन पितरों का श्राद्ध या तर्पण नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह दिन केवल विष्णु की उपासना और उपवास के लिए है।
7+ये कुर्वन्ति महिपाल श्राद्धं एकादशी दिनें । त्रयस्तेनरकंयान्ति दाताभोक्तानुमोदकः ॥
*(ब्रह्मवैवर्त पुराण) *
अर्थ – जो एकादशी को श्राद्ध करता हैं तो श्राद्ध करने वाला उस श्राद्ध को खाने वाला और जिसने वो श्राद्ध करने केलिए प्रेरणा दी है ये तीनो ही नरक में जाते हैं।
8+एकादश्यां यदा राम श्राद्धं नैमित्तकं भवेत् । तद्दिने तु परित्यज्य द्वादश्यां श्राद्धमाचरेत ।।
पद्मपुराण ॥
अर्थ-- एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिये अगले दिन द्वादशी को वो श्राद्ध करना चाहिये ।
निर्णय सिंधु _111
( एकादश्यां श्राद्धप्राप्तौ )
एकादश्यां श्राद्धप्राप्तौ माधवीये कात्यायन आह-
8+उपवासो यदा नित्यः श्राद्धं नैमित्तिकं भवेत् । उपवासं तदा कुर्यादाघ्राय पितृसेवितम् ॥
9+ मातापित्रोः क्षये प्राप्ते मवेदेकादशी यदि । अभ्यर्च्य पितृदेवांश्च आजिघेत्पितृसेवितम् ॥
इति । हेमाद्रयादिसर्वनिबन्धेष्वप्येवम् । 10+एतेनैकादशी-निमित्तकं श्राद्धं द्वादश्यां कार्यमिति वदन्तः परास्ताः ।
एकादशीमें श्राद्ध की प्राप्तिमें माधवीय में कात्यायन ने कहा है- यदि उपवास नित्य है और श्राद्ध नैमित्तिक है तो पितरोंको दिये हुए पदार्थ का आघ्राणकर उपवास करे। यदि माता-पिता की क्षयतिथि दिन एकादशी हो तो पितर एवं देवताओं का अर्चन कर पितरों को दिये हुए पदार्थी को सूँघ लेवे । हेमाद्रि आदि सब ग्रन्थनिबन्धों में भो ऐसा ही है। इससे एकादशी निमिक्त श्राद्धको द्वादशी तिथि में करे । यह कहनेवाले परास्त हुए ।
किञ्च महालये--
11+-स पक्षः सकलः पूज्यः श्राद्धपोडशक प्रति । इति श्रुतं षोडशत्वम्, पाषका-दश्यांच मन्वादिश्राद्धं, क्षयाहापरिज्ञाने च तत्पचेकादश्यां विहितं श्राद्धं बाधितमेव स्यात् ।
और भी महालय में कहा है-सोलहश्राद्धका संपूर्णपक्ष पूज्य है। ऐसा सुना है षोडशत्व और पौष
एकादशी में मन्वादिश्राद्ध सुना गया है। क्षयाह की जानकारी न होने से तो उस पक्ष की एकादशी में विहित
श्राद्ध बाधित ही होता है।
12+यदपि स्मृतिचन्द्रिकास्थं पठन्ति--
अन्नाश्रितानि पापानि तद्भोक्तुर्दातुरेव वा । मञ्जन्ति पितरस्तस्य नरके शाश्वतीः समाः ॥ इति ।
तस्यापि रागप्राप्तिभुजिगोचरस्य वैधं श्राद्धं गोचरयतां महत्साहसमित्यलम् ।
जो स्मृतिचन्द्रिकामें दिये हुए प्रमाण को पढ़ते हैं भोक्ता तथा दाता के पाप अन्नमें रहते हैं। जो व्रत में अन्न को खाता है उसके पितर बहुत समय तक नरकों में डूबते रहते हैं। यह वचन रागप्राप्त भोजनके निषेध को वैध श्राद्ध माननेवालों का बड़ाही साहस है। अर्थात् उनका प्रलाप ही है।
योऽपि - अकृतश्राद्धनिचता जल पिण्डं विना कृताः। इति लघुनारदीये एकादश्यां श्राद्धादिनिषेधः स मातापितृभिन्नविषयः । पूर्ववाक्ये तद् ग्रहणात् । यद्वाश्राद्धनिचयः = श्राद्धे प्रतिग्रहः ।
लघुनारदीय में लिखा है- एकादशी के दिन जो श्राद्धका निषेध है। वह माता-पिताके श्राद्धसे भिन्न समझना चाहिये । क्योंकि पूर्ववाक्यमें माता-पिता का ग्रहण किया गया है अथवा श्राद्ध का प्रतिग्रह लेनेवाले के लिये यह निषेध है। श्राद्ध करनेवाले के लिये नहीं है।
(महणे श्राद्धाकरणे विशेषफलकथनम् )
अत्र श्राद्धमाह ऋष्यशृङ्गः -
'12+चन्द्रसूर्यग्रहे यस्तु श्राद्धंद्वं विधिवदाचरेत् ।
तेनैव सकला पृथ्वी दत्ता विप्रस्य वै करे ।।
ग्रहण में ऋष्यश्रृंग ने श्राद्ध का करना कहा है-जो मनुष्य चन्द्र-सूर्यग्रहण में श्राद्ध को करता है,
ब्राह्मणों के हाथ में मानो सम्पूर्ण भूमि दे दी है।
( ग्रहणे श्राद्धाकरणे महत्कष्टम् )
13+ 'सर्वस्वेनापि कर्तव्य' श्राद्धं वै राहुदर्शने । अकुर्वाणस्तु नास्तिक्यात्पङ्के गौरिव सीदति ॥'
भारत में लिखा है कि- ग्रहण में सब वस्तुसे श्राद्धको करे । नास्तिकता से जो नहीं करता है पंक में गौ के तुल्य दुःखी होता है।
( ग्रहणे श्राद्धकरणे महत्फलकथनम् )
नामान्न या सुवर्ण से करे । अन्न से न करे ।
तरनौ तीर्थे च चन्द्रसूर्यग्रहे तथा । आमश्राद्धं प्रकुर्वीत हेमश्राद्धमथाि
14+"एकादश्यां न कर्तव्यं श्राद्धं पितृपूजनम्।
विष्णोः पूजाव्रतो ह्येष तस्मात्तत्र विवर्जयेत्॥"
अर्थात् –
एकादशी के दिन पितरों का श्राद्ध या तर्पण नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह दिन केवल विष्णु की उपासना और उपवास के लिए है।
,,15+संक्रान्तौ च ग्रहणे चैव चतुर्दश्यां तथैव च।
एकादश्यां च यो दद्यात् स दाता निरयं व्रजेत्॥" (गरुड पुराण, प्रेतकल्प 10/43)
📖 भावार्थ –
संक्रांति, ग्रहण, चतुर्दशी और एकादशी पर यदि कोई श्राद्ध करता है तो वह नरक का भागी होता है।
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16+ ब्रह्म पुराण
> "अमावास्यां विशेषेण श्राद्धं स्याद्भुवनत्रये।
अन्यासां तिथिषु प्रोक्तं निषिद्धं पितृकर्मणाम्॥" (ब्रह्मपुराण, श्राद्ध प्रकरण)
📖 भावार्थ –
अमावस्या को श्राद्ध विशेष रूप से फलदायी है, परंतु अन्य निषिद्ध तिथियों (जैसे एकादशी, चतुर्दशी, संक्रांति) पर पितृकर्म वर्जित है।
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17+ वायु पुराण
> "व्यत्यये संक्रान्तौ ग्रहणे च चतुर्दशी।
एकादश्यां तु यः कुर्यात् श्राद्धं पित्र्यं स दोषभाक्॥" (वायु पुराण, अध्याय 82)
📖 भावार्थ –
व्यत्यय योग, संक्रांति, ग्रहण, चतुर्दशी और एकादशी – इन दिनों में जो श्राद्ध करता है, वह दोष का भागी होता है।
Gurudev bhubneshwar
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