ज्योतिष समाधान

Monday, 29 April 2024

शिवलिंग पर बांधी जाने वाली मटकी को क्या कहते है

शिवलिंग के ऊपर बांधी जाने वाली मटकी को क्या कहते हैं, इसे कब और क्यों बांधते हैं?
 
 
*हम कई बार शिवलिंग के ऊपर एक मटकी बंधी हुई देखते हैं, या स्टेंड पर रखी हुई होती है.. जिसमें से बूंद-बूंद पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है। ये दृश्य अक्सर गर्मी के दिनों में देखने को मिलता है। इस परंपरा से जुड़ी कई बातें हैं, जिसके बारे में  जानना बहुत आवश्यक है।

*इन दिनों वैशाख मास चल रहा है, जो २३ मई तक रहेगा। इस महीने में शिवलिंग के ऊपर एक पानी से भरी मटकी बांधने की परंपरा है। इस मटकी से बूंद-बूंद पानी शिवलिंग पर गिरता रहता है। वैशाख मास में ही ऐसा क्यों किया जाता है और इस परंपरा का क्या महत्व है। इससे जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं हमारे समाज में प्रचलित हैं। आज हम आपको इसी परंपरा से जुड़ी मुख्य बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…

~~~ #क्या कहते हैं इस मटकी को?
*शिवलिंग को ऊपर जो पानी से भरी मटकी बांधी जाती है, उसे #गलंतिका कहा जाता है।* *गलंतिका का शाब्दिक अर्थ है जल पिलाने का करवा या बर्तन। इस मटकी में नीचे की ओर एक छोटा सा छेद होता है जिसमें से एक-एक बूंद पानी शिवलिंग पर निरंतर गिरता रहता है। ये मटकी मिट्टी या किसी अन्य धातु की भी हो सकती है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि इस मटकी का पानी खत्म न हो।

 #क्या है इस परंपरा से जुड़ी कथा?
~~~ धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन करने पर सबसे पहले कालकूट नाम का भयंकर विष निकला, जिससे संसार में त्राहि-त्राहि मच गई। तब शिवजी ने उस विष को अपने गले में धारण कर लिया। मान्यताओं के अनुसार, वैशाख मास में जब अत्यधिक गर्मी पड़ने लगती है जो कालकूट विष के कारण शिवजी के शरीर का तापमान में बढ़ने लगता है। उस तापमान को नियंत्रित रखने के लिए ही शिवलिंग पर गलंतिका बांधी जाती है। जिसमें से बूंद-बूंद टपकता जल शिवजी को ठंडक प्रदान करता है।

 *इसी से शुरू हुई शिवजी को जल चढ़ाने की परंपरा?

*शिवलिंग पर प्रतिदिन लोगों द्वारा जल चढ़ाया जाता है। इसके पीछे ही यही कारण है कि शिवजी के शरीरा का तापमान सामान्य रहे। गर्मी के दिनों तापमान अधिक रहता है इसलिए इस समय गलंतिका बांधी जाती है ताकि निरंतर रूप से शिवलिंग पर जल की धारा गिरती रहे।

*इस बात का रखें खास ध्यान
*वैसाख मास में लगभग हर मंदिर में शिवलिंग के ऊपर गलंतिका बांधी जाती है। इस परंपरा में ये बात ध्यान रखने वाली है तो गलंतिका में डाला जाने वाला जल पूरी तरह से शुद्ध हो। चूंकि ये जल शिवलिंग पर गिरता है* *इसलिए इसका शुद्ध होना जरूरी है। अगर किसी अपवित्र स्त्रोत से लिया गया जल गलंतिका में डालने से भविष्य में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
*अत : सफाई और शुद्धता का ध्यान रखना जरूरी है।
मृत्तिका की मटकी उत्तम होती है क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में इससे जल ठंडा हो जाता है जिससे महादेव जी प्रसन्न होते हैं..!!

❗जय महादेव❗
 ⭕प्रश्न नहीं स्वाध्याय करें‼️

साधना कैसे करें

🔥गोपनीयं प्रयत्नेन 

मेरे पास एक प्रश्न आया की कई वर्षो से साधना कर रहे हैं,पर सफलता क्यों नहीं मिलती?

मैंने विचार किया साधना में सम्पूर्ण परिश्रम के बाद भी सफलता न मिलने का एक बहुत कारण है।साधको की लापरवाही।

                     वस्तुत: नये साधकों में एक कमी नजर आती है जो पुराने साधको में नहीं थी इसीलिए वे सफल होते थे और आजकल सफलता कम हो गयी।वो कमी है गोपनीयता की।
स्मरण कीजिए कुंजिका स्तोत्र, शिव कहते हैं -: 🔥गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनीरीव पार्वती। (कुंजिका)

अर्थात इस विद्या को अपने गुप्तांग की भांति गुप्त रखनी चाहिए।
क्या केवल कुंजिका के लिए ऐसा कहा गया है? नहीं बल्कि प्रत्येक साधन को गुप्त ही रखना चाहिए।
इसीलिए कहा भी गया है -: 
🔥मौनम सर्वार्थ साधनम।।
दुर्गा तंत्र में भी आया है -:
🔥रहस्यं देवी दुर्गाया: गोपनीयं स्वयोनिवत। ( दु०60/33)
इतना गुप्त होना चाहिए साधन की अपनी छाया तक को पता न चले की हम क्या साधन कर रहे हैं।
पुराने आचार्य अपना भोजन पात्र जल पात्र आदि भी निजी रखते थे। यहाँ तक की परिवार के सदस्य से भी अलग।
साधना इतनी ही गुप्त होनी चाहिए। इसीलिए कहा गया है -: 
🔥नदी तीरे, विजने, वने, शिवालये, पर्वते वा।
वृक्ष मुळे सदा कार्या श्मशाने साधनं परम।।
अर्थात :- ऐसा गुप्त स्थल जहाँ कोई नहीं जा सके वही साधना करनी चाहिए।

सारांश :-ज़ब साधना में प्रवेश कीजिए, तो प्राय: प्रयास कीजिये जन सम्पर्क से दूरी बने। जितना हो सके उतना निजी बनिए। साधको और सिद्धों में यही अंतर है, सिद्ध अपना अनुभव लोक कल्याण के लिए प्रकशित करता रहे, और साधक अपना अनुभव सिर्फ गुरु से प्रकाशित करे वो भी संकेत में।
एक बार गुरु से मंत्र प्राप्त होने के पश्चात उस मंत्र को तथा देवता को गुरु से भी गुप्त रखे ऐसा तंत्र शास्त्र में निर्देश है -
🔥गुरुवेपी न दर्शयेत।(दु०५४/२४)

अपना आसन, साधना स्थल, साधन में प्रयोग होने वाला उपादान यथा, माला, मंत्र,देवता, ग्रन्थ, ईष्ट,स्तोत्र ये सब,अनुभव ये सब आपका निजी हो और गुप्त रहे।
जहाँ तक संभव हो साधना गुप्त स्थल पर करे, अन्यथा प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में करें ज़ब कोई न देखता हो।
ऐसा कहा गया है की अपनी साधना का प्रकाश मुमुक्षु जनों से भी न करे।
🔥यन्त्रं मन्त्रं च मालां च पंचांगं परमेश्वरी।
पुन: जातु शिवे शिष्यो गुरुवेपी न दर्शयेत।।
गुह्यातीगुह्य गुप्तं तु न प्रकाश्यं मुमुक्षुभी:।।(दु०26/27) 
शाक्ताचार परम गहन है अत: बड़ी सावधानी से चलना चाहिए।
🔥कौलाचारो परम गहनो योगी नाम अपी अगम्य:।।

:-आचार्य राजगौरव ठाकुर 
नोट:-यह पूजन स्थल पिंडी जो चित्र में दिख रहा है,हमारे क्षेत्र का कामाख्या स्थान कहा जाता है जो अत्यंत गुप्त तंत्र स्थल के रूप में विख्यात है।

Saturday, 27 April 2024

शुक्रास्त में क्या नही करना चाहिए

शुक्रास्त रहने पर कौन-कौन से कार्य न करें:
कहा गया है-
"शुक्रे चास्तं गते जीवे चन्द्र वास्तमुपागते।
तेषां वृद्धि च बाल्ये च शुभकर्म भयप्रदम्।"
अर्थात् शुक्र चन्द्र गुरू के अस्त होने में व वृद्धत्वव बलात् में शुभ कार्य करने से भय ही मिलता है। इसी तरह कहा गया है-
शुक्र नष्टे गुरौ सिंह गुर्वादित्ये मलिम्लुचे।
गृहकर्म व्रतं यात्रा मनसापि न चिन्तयेत।।
अर्थात् शुक्र के अस्त होने पर, सिंह में गुरू स्थितिवश गुरूवादित्य और मलमास में  ग्रहप्रवेश, ग्रहारंभ, यात्रा, व्रतबंध का मन से भी चिन्तन नहीं करना चाहिये।

Monday, 22 April 2024

चोरी हुई वस्तु मिलेगी या नहीं

√••चोरी गई वस्तु मिलेगी या नहीं मिलेगी। मिलेगी तो कब तक मिलेगी इस बात तक का पता ज्योतिष शास्त्र के जरिए लगाया जा सकता है।

√•आजकल जिस तरह से आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है। चोरी का भय भी बढ़ता जा रहा है। लोग अपना घर सूना छोड़ने में डरने लगे हैं। किस पर विश्वास करें, किस पर न करें यह बड़ा विचारणीय प्रश्न बन गया है। कई बार लोगों को बड़ा नुकसान हो जाता है, जब उनके घर, व्यापारिक प्रतिष्ठान या यात्रा आदि के दौरान सामान चोरी हो जाता है।

√•ज्योतिष के अनुसार अलग-अलग नक्षत्रों में चोरी गई वस्तुओं के मिलने या न मिलने का अलग-अलग परिणाम होता है। जिस समय हमें अपनी चोरी गई वस्तु का पता लगे उस समय के नक्षत्र या अंतिम बार आपने फलां वस्तु को किस वक्त देखा था, उस समय के नक्षत्र के अनुसार चोरी गई वस्तु का विचार किया जाता है।

√•आइये जानते हैं किस नक्षत्र का क्या परिणाम होता है:

√•1. रोहिणी, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और रेवती को ज्योतिष में अंध नक्षत्र माना गया है। इन नक्षत्रों में चोरी होने वाली वस्तु पूर्व दिशा में जाती है और जल्दी मिल जाती है। इन नक्षत्रों में यदि कोई वस्तु चोरी हुई है तो वह अधिक दूर नहीं जाती है उसे आसपास ही तलाशना चाहिए।

√•2. मृगशिरा, अश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा, अश्विनी ये मंद नक्षत्र कहे गए हैं। इन नक्षत्रों में यदि कोई वस्तु चोरी होती है तो वह तीन दिन में मिलने की संभावना रहती है। इन नक्षत्रों में गई वस्तु दक्षिण दिशा में प्राप्त होती है। साथ ही वह वस्तु रसोई, अग्नि या जल के स्थान पर छुपाई होती है।

√•3. आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजीत, पूर्वाभाद्रपद, भरणी ये मध्य लोचन नक्षत्र होते हैं। इन नक्षत्रों में चोरी गई वस्तुएं पश्चिम दिशा में मिल जाती हैं। वस्तु के संबंध में जानकारी 64 दिनों के भीतर मिलने की संभावना रहती है। यदि 64 दिनों में न मिले तो फिर कभी नहीं मिलती। इस स्थिति में वस्तु के अत्यधिक दूर होने की जानकारी भी मिल जाती है, लेकिन मिलने में संशय रहता है।

√•4. पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद, कृतिका को सुलोचन नक्षत्र कहा गया है। इनमें गई वस्तु कभी दोबारा नहीं मिलती। वस्तु उत्तर दिशा में जाती है, लेकिन पता नहीं लगा पाता कि कहां रखी गई है या आप कहां रखकर भूल गए हैं।

√•भद्रा, व्यतिपात और अमावस्या में गया धन प्राप्त नहीं होता।

√•प्रश्न: लग्न के अनुसार भी चोरी गई वस्तु के संबंध में विचार किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति चोरी गई वस्तु के संबंध में जानने के लिए आए और प्रश्न करे तो जिस समय वह प्रश्न करे उस समय की लग्न कुंडली बना लेना चाहिए। या जिस समय वस्तु चोरी हुई है उस समय गोचर में जो लग्न चल रहा था उसके अनुसार फल कथन किया जाता है।

√•1. मेष लग्न मेष वस्तु चोरी हुई हो प्रश्नकाल में मेष लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में होती है। चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में दो या तीन अक्षर होते हैं।

√•2. वृषभ लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होती है और चोर क्षत्रिय वर्ण का होता है। उसके नाम में आदि अक्षर म रहता है तथा नाम चार अक्षरों वाला होता है।

√•3. मिथुन लग्न में चोरी गई वस्तु आग्नेय कोण में होती है। चोरी करने वाला व्यक्ति वैश्य वर्ण का होता है और उसका नाम क ककार से प्रारंभ होता है। नाम में तीन अक्षर होते हैं।

√•4. कर्क लग्न में वस्तु चोरी होने पर दक्षिण दिशा में मिलती है और चोरी करने वाला शूद्र होता है। उसका नाम त अक्षर से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं।

√•5. सिंह लग्न में चोरी हो तो वस्तु नैऋत्य कोण में होती है। चोरी करने वाला नौकर, सेवक होता है। चोर का नाम न से प्रारंभ होता है और नाम तीन या चार अक्षरों का होता है।

√•6. प्रश्नकाल या चोरी के समय कन्या लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम म से प्रारंभ होता है। नाम में कई वर्ण हो सकते हैं।

√•7. चोरी के समय तुला लग्न हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में जानना चाहिए। चोरी करने वाला पुत्र, मित्र, भाई या अन्य कोई संबंधी होता है। इसका नाम म से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं। तुला लग्न में गई वस्तु बड़ी कठिनाई से प्राप्त होती है।

√•8. वृश्चिक लग्न में चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोर घर का नौकर ही होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम चार अक्षरों वाला होता है। चोरी करने वाला उत्तम वर्ण का होता है।

√•9. प्रश्नकाल या चोरी के समय धनु लग्न हो तो चोरी गई वस्तु वायव्य कोण में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में चार वर्ण पाए जाते हैं।

√•10. चोरी के समय मकर लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर दिशा में समझनी चाहिए। चोरी करने वाला वैश्य जाति का होता है। नाम चार अक्षरों का होता है और वह स से प्रारंभ होता है।

√•11. प्रश्नकाल या चोरी के समय कुंभ लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में होती है। इस प्रश्न लग्न के अनुसार चोरी करने वाला व्यक्ति कोई मनुष्य नहीं होता बल्कि चूहों या अन्य जानवरों के द्वारा इधर-उधर कर दी जाती है।

√•12. मीन लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु ईशान कोण में होती है। चोरी करने वाला निम्न जाति का व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति चोरी करके वस्तु को जमीन में छुपा देता है। ऐसे चोर का नाम व अक्षर से प्रारंभ होता है और उसके नाम में तीन अक्षर रहते हैं। चोर कोई परिचित महिला या नौकरानी भी हो सकती है।

#त्रिस्कन्धज्योतिर्विद् #sanatandharma #ayurveda #shulba

Thursday, 18 April 2024

दिन में विवाह का निषेध~


दिवा विवाह का निषेध~

विवाहे तु दिवाभागे,कन्या स्यात्पुत्रवर्जिता |
विवाहानलदग्धा सा नियतं स्वामी घातिनी ||
                (ज्योतिष सारसंग्रह ,ज्योतिषतत्व सुधार्णव)
अर्थात्~दिन मे विवाह होने से कन्या पुत्रहीना होती है और विवाहानल द्वारा दग्ध होकर स्वामी घातिनी होती है|

* हमें स्वाध्याय करते समय इन दो प्राचीन पुस्तकों में दिवा विवाह को निषेध करते हुए श्लोक मिले।

Monday, 15 April 2024

ब्राह्मण कोन है

शंका:~ जिसका जन्म ब्राह्मण कुल में होकर भी वह ब्राह्मणोचित संस्कार न धारण करता हो, तो क्या  उसे भी ब्राह्मण कहा जाये ?

                     
👇समाधान  😊👇🏻  
महाभारत के आदिपर्व में गरूड़जी ने भूख लगने पर माता से भोजन मांगा।      तब विनता जी ने गरूड़ जी को किरातों को खाने की आज्ञा दी, कहा---  'हे पुत्र !   इनके बीच में एक संस्कारहीन ब्राह्मण है, उसको न खाना।'  

 'इतने किरातों के बीच में उसकी पहचान कैसे हो ?'

 इसपर कहा ---   'जिसपर प्रहार करने से तुम्हारा गला आग के समान जलने लगे, उसे ब्राह्मण समझना।'

इससे संस्कारहीन भी जन्ममात्र से ब्राह्मण सिद्ध होता है।

युधिष्ठिर के प्रति भगवान् ने कहा है-----  "अविद्यो वा सविद्यो वा ब्राह्मणो मामकीतनु:"  【विद्वान् हो या मूर्ख, ब्राह्मण मेरा शरीर है।】
अतः जो ब्राह्मण के बीज से उत्पन्न है वह ब्राह्मण ही है, शूद्र नहीं।

यद्यपि संस्कारहीन ब्राह्मण सदाचारी ब्राह्मणों के बीच में पतित ही माना जाता है,न तो वह सम्मान का पात्र होता है और न ही संन्यास का अधिकारी ही , तथापि जन्म से तो वह ब्राह्मण ही है।

'ब्राह्मणी कन्या के गर्भ से ब्राह्मण द्वारा उत्पन्न पुत्र उत्तम ब्राह्मण है।' यह बात हारीत, व्यास, विष्णु स्मृतियों से सिद्ध होती है।

अब जो लोग कहते हैं कि जैसा जिसका संस्कार होता है, वैसा उसका वर्ण भी होता है। वे लोग सुनें~

अपने वर्ण की ही स्त्री से उत्पन्न पुत्र का संस्कार होता है।
यदि संस्कार मात्र से द्विजत्व प्राप्त होगा तो अन्त्यजों, चांडालों एवं मुसलमानों का भी संस्कार होकर द्विज कहा जायेगा तथा चारों वर्णों की एक ही जाति हो जायेगी, यह सर्वथा शास्त्र के विरुद्ध है।

श्रुति, स्मृति, इतिहास, पुराणों में चारों वर्ण-आश्रमों के पृथक्-पृथक् धर्म कहे गये है, यही वर्णाश्रम प्राप्त धर्म ही सनातन धर्म है, ऐसी स्थिति में इसका लोप हो जायेगा।

कभी-कभी संसार में देखा जाता है कि विद्वान् कुल में उत्पन्न होने पर भी कोई मूर्ख ही रहता है।
कोई स्वयं मूर्ख होने पर भी उसका पुत्र विद्वान् हो जाता है।  कोई सत्कुल में जन्म लेकर भी असत्कर्म करते हैं।   
कोई-कोई इन सबसे विलक्षण भी पाये जाते हैं। 
इनमें से कौन पूज्यनीय है ?  
अच्छे कुल में पैदा हुआ मूर्ख या असत् कुल में पैदा हुआ विद्वान् ?
इस सम्बंध में कहा है~

        "जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेय: संस्कारैर्द्विज उच्यते।
      वेदाभ्यासाद् भवेत विप्र त्रिविधं श्रोत्रिय लक्षणम्।।" 

【शुद्ध ब्राह्मणी के गर्भ से शुद्ध ब्राह्मण द्वारा उत्पन्न बालक जन्म से ब्राह्मण कहा गया है,  समय पर उपनयन आदि संस्कार नक्त ब्राह्मण श्रोत्रिय कहा जाता है।】

व्यास संहिता में कहा है~

        "ब्रह्मबीज समुत्पन्नो मन्त्र संस्कार वर्जित:।
       जाति मात्रोपजीवी च स भवेत् ब्राह्मण: सम:।।"

【जो ब्राह्मण पिता से उत्पन्न होकर भी संस्कारहीन है, केवल जाति मात्र से जीविका चलाता है, वह साधारण ब्राह्मण कहलाता है।】

जो गर्भधानादि संस्कारों से युक्त तथा वेदाध्ययन से युक्त है, किन्तु ब्राह्मणोचित कर्म नहीं करता, वह भी साधारण ब्राह्मण है।

🙏🙏
Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti Guna
9893946810

शुक्र अस्त में वर्जित कार्य


विवाह, गृह प्रवेश, बावड़ी, भवन निमार्ण, कुआं, तालाब, बगीच, जल के बडे होदे, व्रत का प्रारम्भ, उद्यापन, प्रथम उपाकर्म, नई बहू का गृह प्रवेश, देवस्थापन, दीक्षा, उपनयन, जडुला उतारना आदि कार्य नहीं करें. वधू का द्विरागमन शुक्र के अस्त काल में वर्जित है.

जप करने के वाद क्या करें

यास्मिन स्थाने जपं कुर्याद्धरेच्छक्रो न तत्फलम्।
तन्मृदा लक्ष्म कुर्वीत ललाटे तिलकाकृतिम्।।
(जप वाचिक, उपांशु और मानसिक होता है तो तीनों ही में ये नियम लगते हैं।)
आप यदि संकल्प लेकर कोई जप कर रहे हैं तो ये करिए। ऊर्जा के संचय और संधान के लिए ये आवश्यक है।
Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti Guna
9893946810

Thursday, 4 April 2024

गो मुखी प्रमाण

#गोमुखीलक्षणम्  
       सनातन परम्परा में प्रयुक्त सभी वस्तु आदि
        के शास्त्रीय स्वरूप निर्धारित हैं। 
  सभी सम्प्रदायों में जप का विधान है । जपार्थ माला
को गोमुखी के अन्दर रखना अनिवार्य है। शान्त्यर्थ जप 
 के समय गोमुखी से तर्जनी को बाहर करके मणिबन्ध   
पर्यन्त हाथ को  अन्दर रखने का विधान है । 

प्रकृति में #गोमुखी के शास्त्रीय लक्षण पर विचार किया जाता है । 
  #गोमुखी_माने_गौ_के_मुख_जैसा_वस्त्र ।  

   "#वस्त्रेणाच्छाद्य_च_करं_दक्षिणं_य:#सदा_जपेत् । 
    #तस्य_स्यात्सफलं_जाप्यं_तद्धीनमफलंस्मृतम् ।। 
   #अत_एव_जपार्थं_सा_गोमुखी_ध्रियते_जनै: ।।               (आ.सू.वृद्धमनु) 
      गोमुखी से अतिरिक्त आधुनिक झोली में मणिबन्धपर्यन्त दायें हाथ को ढऀकना सम्भव नहीं है । 

 #गोमुखादौ_ततो_मालां_गोपयेन्मातृजारवत्  ।
 #कौशेयं_रक्तवर्णं_च_पीतवस्त्रं_सुरेश्वरि ।। 
 #अथ_कार्पासवस्त्रेण_यन्त्रतो_गोपयेत्सुधी: । 
 #वाससाऽऽच्छादयेन्मालां_सर्वमन्त्रे_महेश्वरि ।।
  #न_कुर्यात्कृष्णवर्णं_तु_न_कुर्याद्बहुवर्णकम् ।
  #न_कुर्याद्रोमजं_वस्त्रमुक्तवस्त्रेण_गोपयेत्।।                                                             (#कृत्यसारसमुच्चय)
        सूती वस्त्र का गोमुखादि कौशेय, रक्त अथवा पीत वर्ण का हो । काला, हरा, नीला, बहुरङ्गी या रोमज न हो ।
        पुन: इसके विशेष मान भी हैं- 
 #चतुर्विंशाङ्गुलमितं_पट्टवस्त्रादिसम्भवम् । 
  #निर्मायाष्टाङ्गुलिमुखं_ग्रीवायां_षड्दशाङ्गुलम् । 
   #ज्ञेयं_गोमुखयन्त्रञ्च_सर्वतन्त्रेषु_गोपितम् । 
   #तन्मुखे_स्थापयेन्मालां_ग्रीवामध्यगते_करे । 
   #प्रजपेद्विधिना_गुह्यं_वर्णमालाधिकं_प्रिये ।
   #निधाय_गोमुखे_मालां_गोपयेन्मातृजारवत् ।।
                                                                    (#मुण्डमालातन्त्र)
         २४ अङ्गुल परिमित पट्टवस्त्रादि से निर्माण करे, जिसमें ८ अङ्गुल का मुख और १६ अङ्गुल की ग्रीवा हो । गोमुखवस्त्र के मुख से माला को प्रवेश कराये और ग्रीवा के अभ्यन्तर में हाथ को रखकर गोपनीयता से यथाविधि जप करे ।
      इसी प्रकार के अनेक आगमप्रमाण हैं । आधुनिक झोली की शास्त्रीयता उपलब्ध नहीं होती है । प्रचुरमात्रा
 में कुछ गोविरोधियों ने किसी भारतीय पन्थविशेष में प्रवेश कर अतिशय भक्ति का अभिनय दिखाकर पवित्र #गोमुखी  के बदले अवैध *#झोली का दुष्प्रचार कर दिया और दुर्भाग्य से यहाऀ के बड़े-बड़े धर्मोपदेशकों ने भी चित्र-विचित्र उस अशास्त्रीय वस्त्र को स्वीकार कर लिया। 
      
     शास्त्र का नाम लेकर चलनेवाले महाशय यदि गोमुखी के बदले आधुनिक झोली ही रखना चाहते हैं तो वे अवश्य ही इस #झोली की #शास्त्रीयता #प्रदर्शित #करें। किमधिकम्.....?