ज्योतिष समाधान

Thursday, 23 February 2017

*मां के गर्भ से लेकर मृत्यु तक कब, कैसे होते हैं १६ संस्कार, जानिए....?

*मां के गर्भ से लेकर मृत्यु तक कब, कैसे होते हैं १६ संस्कार, जानिए....?

                    *हिंदू धर्म*  में व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक १६ कर्म अनिवार्य बताए गए हैं। इन्हें १६ संस्कार कहा जाता है। इनमें से हर एक संस्कार एक निश्चित समय पर किया जाता है। कुछ संस्कार तो शिशु के जन्म से पूर्व ही कर लिए जाते हैं।

संस्कारों के संबंध में आद्य गुरु शंकराचार्य ने कहा है-

*संस्कारों हि नाम संस्कार्यस्य गुणाधानेन वा स्याद्योषाप नयनेन वा ॥*

-ब्रह्मसूत्र भाष्य १/१/४

अर्थात: व्यक्ति में गुणों का आरोपण करने के लिए जो कर्म किया जाता है,उसे संस्कार कहते हैं।

*संस्कार विधि में लिखा है....✍🏼*

जन्मना जायते शुद्रऽसंस्काराद्द्विज उच्यते।

अर्थात जन्म से सभी शुद्र होते हैं और संस्कारों द्वारा व्यक्ति को द्विज बनाया जाता है।

*संस्कार कितने हैं.....?

गौतम स्मृति शास्त्र में ४० संस्कारों का उल्लेख है।

कुछ जगह ४८ संस्कार भी बताए गए हैं।

महर्षि अंगिरा ने २६ संस्कारों का उल्लेख किया है।

वर्तमान में महर्षि वेदव्यास स्मृति शास्त्र के अनुसार, १६ संस्कार प्रचलित हैं,

उसके अनुसार-

*गर्भाधानं पुंसवनं सीमंतो जातकर्म च।* *नामक्रियानिष्क्रमणेअन्नाशनं वपनक्रिया:।।*

*कर्णवेधो व्रतादेशो वेदारंभक्रियाविधि:।*
*केशांत स्नानमुद्वाहो विवाहाग्निपरिग्रह:।।*

*त्रेताग्निसंग्रहश्चेति संस्कारा:षोडश स्मृता:।*

(व्यासस्मृति १/१३-१५)

संस्कारों से हमारा जीवन बहुत प्रभावित होता है। संस्कार के लिए किए जाने वाले कार्यक्रमों में जो पूजा,यज्ञ,मंत्रोच्चारण आदि होता है,उसका वैज्ञानिक महत्व भी होता है।

*इन १६ संस्कारों की संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है-*

१. *गर्भाधान संस्कार* 📖

यह ऐसा संस्कार है,जिससे योग्य,गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त होती है। शास्त्रों में मनचाही संतान के लिए गर्भधारण किस प्रकार करें?इसका विवरण दिया गया है। इस संस्कार से कामुकता का स्थान अच्छे विचार ले लेते हैं। ऐसी मान्यता है।

२. *पुंसवन संस्कार* 📖

यह संस्कार गर्भधारण के दो-तीन महीने बाद किया जाता है। मां को अपने गर्भस्थ शिशु की ठीक से देखभाल करने योग्य बनाने के लिए यह संस्कार किया जाता है। पुंसवन संस्कार के दो प्रमुख लाभ-पुत्र प्राप्ति और स्वस्थ,सुंदर गुणवान संतान है।

३. *सीमन्तोन्नयन संस्कार* 📖

यह संस्कार गर्भ के छठे या आठवें महीने में किया जाता है। इस संस्कार का फल भी गर्भ की शुद्धि ही है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्चा सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म आएं, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है। महाभक्त प्रह्लाद को देवर्षि नारद का उपदेश तथा अभिमन्यु को चक्रव्यूह प्रवेश का उपदेश इसी समय में मिला था। अत: माता-पिता को चाहिए कि वे इन दिनों विशेष सावधानी के साथ योग्य आचरण करें।

४. *जातकर्म संस्कार* 📖

शिशु का जन्म होते ही इस संस्कार को करने से गर्भस्त्रावजन्य संबंधी सभी दोष दूर हो जाते हैं। नाल छेदन के पूर्व नवजात शिशु को सोने की चम्मच या अनामिका अंगुली (तीसरे नंबर की) से शहद और घी चटाया जाता है। घी आयु बढ़ाने वाला तथा वात व पित्तनाशक है और शहद कफनाशक है। सोने की चम्मच से शिशु को घी व शहद चटाने से त्रिदोष (वात, पित्त व कफ) का नाश होता है।

५. *नामकरण संस्कार* 📖

शिशु के जन्म के बाद ११वें या सौवें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है। ब्राह्मण द्वारा ज्योतिष आधार पर बच्चे का नाम तय किया जाता है। बच्चे को शहद चटाकर सूर्य के दर्शन कराए जाते हैं। उसके नए नाम से सभी लोग उसके उत्तम स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि की कामना करते हैं-

*आयुर्वर्चोअभिवृद्धिश्च सिद्धिव्र्यवह्रतेस्तथा।* *नामकर्मफलं त्वेतत् समुद्दिष्टं मनीषिभि:।।*

(स्मृतिसंग्रह)

६. *निष्क्रमण संस्कार* 📖

इस संस्कार का फल विद्वानों ने आयु की वृद्धि बताया है-

*निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युद्दिष्टा मनीषिभि:।*

ये संस्कार शिशु के जन्म के चौथे चा छठे महीने में किया जाता है। सूर्य तथा चंद्रमा आदि देवताओं की पूजा कर शिशु को उनके दर्शन कराना इस संस्कार की मुख्य प्रक्रिया है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, जिन्हें पंचभूत कहा जाता है, से बना है। इसलिए पिता इस संस्कार में इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं।

७. *अन्नप्राशन संस्कार* 📖

माता के गर्भ में रहते हुए शिशु के पेट में गंदगी चली जाती है, जिससे उस शिशु में दोष आ जाते हैं। अन्नप्राशन संस्कार के माध्यम से उन दोषों का नाश हो जाता है- अन्नाशमान्मातृगर्भे मलाशाद्यपि शुध्दयति।
जब शिशु ६-७ मास का हो जाता है और उसके दांत निकलने लगते हैं, पाचनशक्ति तेज होने लगती है, तब यह संस्कार किया जाता है। शुभ मुहूर्त में देवताओं की पूजा के बाद माता-पिता आदि सोने या चांदी की चम्मच से नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए शिशु को खीर चटाते हैं-

*शिवौ ते स्तां व्रीहियवावबलासावदोमधौ।*
*एतौ यक्ष्मं वि बाधेते एतौ मुंचतो अंहस:।।*

(अथर्ववेद ८/२/१८)

८. *मुंडन संस्कार* 📖

शिशु की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं, जिसे वपन क्रिया संस्कार, मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। इसके बाद शिशु के सिर पर दही-मक्खन लगाकर स्नान करवाया जाता है व अन्य मांगलिक क्रियाएं की जाती हैं। इस संस्कार का उद्देश्य शिशु का बल, आयु व तेज की वृद्धि करना है।

९. *कर्णवेधन संस्कार* 📖

इस परंपरा के अंतर्गत शिशु के कान छेदें जाते हैं। इसलिए इसे कर्णवेधन संस्कार कहा जाता है। यह संस्कार जन्म के छह माह बाद से लेकर पांच वर्ष की आयु के बीच किया जाता था। मान्यता के अनुसार, सूर्य की किरणें कानों के छेदों से होकर बालक-बालिका को पवित्र करती हैं और तेज संपन्न बनाती हैं। शास्त्रों में कर्णवेधरहित (जिसके कान छीदे न हो) पुरुष को श्राद्ध का अधिकारी नहीं माना गया है। कर्णवेध संस्कार के बाद बालक को कुंडल तथा बालिका को कान के आभूषण पहनाने चाहिए।

१०. *उपनयन संस्कार* 📖

इस संस्कार को व्रतादेश व यज्ञोपवित संस्कार भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस संस्कार के द्वारा ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य का दूसरा जन्म होता है। बालक को विधिवत् यज्ञोपवित (जनेऊ) धारण करना इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है। जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं। इस संस्कार के द्वारा बालक को गायत्री जाप, वेदों का अध्ययन आदि करने का अधिकार प्राप्त होता है।

११. *विद्यारंभ संस्कार* 📖

उपनयन संस्कार हो जाने के बाद बालक को वेदों का अध्ययन करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस संस्कार के अंतर्गत निश्चित समय शुभ मुहूर्त देखकर बालक की शिक्षा प्रारंभ की जाती है। इसे ही विद्यारंभ संस्कार कहा जाता है। इस संस्कार का मूल उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना है। पूर्व में इस संस्कार के बाद बालक को गुरुकुल भेज दिया जाता था, जहां वह अपने गुरु के संरक्षण में वेदों व अन्य शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त करता था।

१२. *केशांत संस्कार* 📖

विद्यारंभ संस्कार में बालक गुरुकुल में रहते हुए वेदों का अध्ययन करता है। उस समय वह ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करता है तथा उसके लिए केश और श्मश्रु (दाड़ी) व जनेऊ धारण करने का विधान है। पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद गुरुकुल में ही केशांत संस्कार किया जाता है। इसके बाद श्मश्रु वपन (दाड़ी बनाने) की क्रिया संपन्न की जाती है, इसलिए इसे श्मश्रु संस्कार भी कहा जाता है। यह संस्कार सूर्य के उत्तरायण होने पर ही किया जाता है। कुछ शास्त्रों में इसे गोदान संस्कार भी कहा गया है।

१३. *समावर्तन संस्कार* 📖

समावर्तन का अर्थ है फिर से लौटना। समावर्तन विद्याध्ययन का अंतिम संस्कार है। पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद ब्रह्मचारी अपने गुरु की आज्ञा से अपने घर लौटता है। इसीलिए इसे समावर्तन संस्कार कहा जाता है। इस संस्कार में वेदमंत्रों से अभिमंत्रित जल से भरे हुए ८ कलशों से विधिपूर्वक ब्रह्मचारी को स्नान करवाया जाता है, इसलिए इसे वेद स्नान संस्कार भी कहते हैं। इस संस्कार के बाद ब्रह्मचारी गृहस्थ जीवन में प्रवेश पाने का अधिकारी हो जाता है।

१४. *विवाह संस्कार* 📖

वि यानी विशेष रूप से, वहन यानी ले जाना। विवाह का अर्थ है पुरुष द्वारा स्त्री को विशेष रूप से अपने घर ले जाना। सनातन धर्म में विवाह को जन्म-जन्मांतर का बंधन माना गया है। यह धर्म का साधन है। विवाह के बाद पति-पत्नी साथ रहकर धर्म का पालन करते हुए जीवन यापन करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी से व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त होता है। पुराणों के अनुसार, ब्राह्म आदि उत्तम विवाहों से उत्पन्न पुत्र पितरों को तारने वाला होता है।
विवाह का यही फल बताया गया है-

*ब्राह्माद्युद्वाहसंभूत: पितृणां तारक: सूत:।*
*विवाहस्य फलं त्वेतद् व्याख्यातं परमर्षिभि:।।*

(स्मृतिसंग्रह)

१५. *विवाह अग्नि संस्कार* 📖

विवाह संस्कार में होम आदि क्रियाएं जिस अग्नि में की जाती हैं, उसे आवसथ्य नामक अग्नि कहते हैं। इसी को विवाह अग्नि भी कहा जाता है। विवाह के बाद वर-वधू उस अग्नि को अपने घर में लाकर किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करते हैं व प्रतिदिन अपने कुल की परंपरा के अनुसार सुबह-शाम हवन करते हैं। प्रतिदिन किए जाने वाले इस हवन को ब्राह्मणों के लिए आवश्यक बताया गया है। इसी अग्नि में सभी देवताओं के निमित्त आहुति दी जाती है।

महर्षि याज्ञवल्क्य ने लिखा है कि-

*कर्म स्मार्तं विवाहाग्नौ कुर्वीत प्रत्यहं गृही।*

याज्ञवल्क्य स्मृति, आचाराध्याय (२/१७)

१६. *अंत्येष्टि संस्कार* 📖

इसका अर्थ है अंतिम यज्ञ। आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है। इसी से चिता जलाई जाती है। आशय है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई थी, उसी से उसके अंतिम यज्ञ की अग्नि जलाई जाती है। मृत्यु के साथ ही व्यक्ति स्वयं इस अंतिम यज्ञ में होम हो जाता है। हमारे यहां अंत्येष्टि को इसलिए संस्कार कहा गया है कि इसके माध्यम से मृत शरीर नष्ट होता है। अंत्येष्टि संस्कार को पितृमेध, अन्त्यकर्म व श्मशानकर्म आदि भी कहा जाता है।

              
                             🙏🏼

Wednesday, 15 February 2017

महाशिव रात्रि मुहूर्त एबम शिव पूजन सामग्री

24 फरवरी 2017 को मनाया जाएगा।

एक नजर शिवारात्रि पूजा और मुहूर्त के समय पर

महाशिवरात्रि : 24 फरवरी 2017 
निशिथ काल पूजा- 12:08 से 12:59
पारण का समय- 06:54 से 3:24 (25फरवरी)

चतुर्दशी तिथि आरंभ- 09:38 (24 फरवरी) चतुर्दशी तिथि समाप्त- 09:20 (25 फरवरी

चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं।

रात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त

निशीथ काल पूजा का मुहूर्त- रात 12.30 से 01.05 बजे तक

पहले प्रहर की पूजा- शाम 06:42 से 09:45 बजे तक

दूसरे प्रहर की पूजा- रात 09:45 से 12:50 बजे तक

तीसरे प्रहर की पूजा- रात 12:50 से 03:50 बजे तक

चौथे प्रहर की पूजा- रात 03:50 से सुबह 06:50 बजे तक
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
                     रेलवे टाइम

Nishita Kaal Puja
Time= 24:08+ to 24:58+
Duration = 
0 Hours 50 Mins On 25th,

Maha Shivaratri Parana
Time06:50 to 15:25

Ratri First Prahar Puja 
Time = 18:16 to 21:25

Ratri Second Prahar Puja 
Time = 21:25 to 24:33+

Ratri Third Prahar Puja
Time = 24:33+ to 27:42+

Ratri Fourth Prahar Puja 
Time = 27:42+ to 30:50+

How to read 24+ time?

Chaturdashi Tithi Begins
= 21:38 on 24/Feb/2017 Chaturdashi Tithi Ends
= 21:20 on 25/Feb/2017

(पूजन समग्री कम और ज्यादा कर सकते है )

============================
1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम 
२】कलावा(आंटी)-------------100 ग्राम 
३】अगरबत्ती------------------- 3पैकिट 
४】कपूर------------------------- 50 ग्राम 
५】केसर------------------------- 1डिव्वि 
६】चंदन पेस्ट ------------------ 50 ग्राम 
७】यज्ञोपवीत ----------------- 11नग् 
८】चावल------------------------ 05 किलो 
९】अबीर-------------------------50 ग्राम
१०】गुलाल, -----------------10 0ग्राम 
११】अभ्रक-------------------
१२】सिंदूर --------------------100 ग्राम 
१३】रोली, --------------------100ग्राम 
१४】सुपारी, ( बड़ी)-------- 200 ग्राम 
१५】नारियल ----------------- 11 नग् 
१६】सरसो----------------------50 ग्राम 
१७】पंच मेवा------------------100 ग्राम 
१८】शहद (मधु)--------------- 50 ग्राम 
१९】शकर-----------------------0 1किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)------------ 01किलो 
२१】इलायची (छोटी)-----------10ग्राम 
२२】लौंग मौली-------------------10ग्राम 
२३】इत्र की शीशी----------------1 नग्

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~अगर मंडल रचना करना हो तो लाना है

२४रंगलाल----------------------10ग्राम 
२५】रंग काला--------------------10ग्राम 
२६    रंगहरा-----------------------10ग्राम 
२७】रंगपिला---------------------10ग्राम 
२८】चंदन मूठा--------------------1 नग् 
२९】धुप बत्ती ---------------------2 पैकिट =============================
अगर मिटटी का  शिवलिंग बनाना हो तो

३०】सप्तमृत्तिका

1हाथीकेस्थानकीमिट्टि-----------50ग्राम 
२】घोड़ा बांदने के स्थानकीमिटटी--50ग्राम
३बॉबीकीमिटटी--------------------50ग्राम
४दीमककीमिटटी------------------50ग्राम 
५नदीसंगमकीमिटटी-------------50ग्राम 
६तालाबकीमिटटी------------------50ग्राम 
७गौशालाकीमिटटी-----------------50ग्राम राजद्वारकीमिटटी------------------50ग्राम ============================ ३१】पंचगव्य
१】 गाय का गोबर -----------------50 ग्राम 
२】गौ मूत्र-----------------------------50ग्राम 
३】गौ घृत------------------------------50ग्राम 
4】गाय दूध----------------------------50ग्राम 
५】गाय का दही ---------------------50ग्राम ============================= ============================= ३३】कुशा
३४】दूर्वा
35】पुष्प कई प्रकार के 
३६】गंगाजल 
३७】ऋतुफल पांच प्रकार के -----1 किलो 38】पंच पल्लव 
१】बड़, 
२】 गूलर, 
३】पीपल, 
४】आम
५】पाकर के पत्ते) ============================= ३९】बिल्वपत्र 
४०】शमीपत्र 
४१】सर्वऔषधि 
४२】अर्पित करने हेतु पुरुष बस्त्र 
४३】मता जी को अर्पित करने हेतु सौ भाग्यवस्त्र 
44】जल कलश तांबे का मिट्टी का)

~~~~~~~~~~~~~~~~|~~~~~~~
    मण्डल रचना करना हो तो सरे बस्त्र लाना है नही तो केवल पिला या लाल लाना है 
४५】 बस्त्र 
१】सफेद कपड़ा दोमीटर)
२】लाल कपड़ा (2मीटर) 
३】काला कपड़ा 2मीटर) 
४】हरा कपड़ा 2मीटर) 
5)पीला कपड़ा 2 मीटर 
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
४६】पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार) 
४७】दीपक
४८】तुलसी दल 
४८】केले के पत्ते (यदि उपलब्ध हों तो खंभे सहित) 
49】बन्दनवार 
50】पान के पत्ते ------------11 नग 
51】रुई

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
              अभिषेक सामग्री 
1)गाय का दूध से स्नान
2)गाय का दही स्नान
3)गाय का घी स्नान
4)शहद स्नान
5)शकर स्नान
6)पंचामृत स्नान
7)फलो का रस स्नान
8)फूलो का रस (इत्र) स्नान
9)विजया (भांग) स्नान
10अष्टगंध या चन्दन घिसा हुआ  स्नान
11)यज्ञ भस्म  स्नान एबम त्रिपुण्ड के लिए 
12)गंगा जल् स्नान

अभिषेक के लिए जल दूध गन्ने का रस  जिस कामना के लिए करना है उसकी व्यबस्था करे 
============================ ×××××××××××××××××××××××××××××× संपर्क -किसी भी प्रकार की पूजा जैसे - सतचण्डीपाठ ,नवरात्रिपाठ ,महामृत्यंजय , वास्तु पूजन, ग्रह प्रवेश ,श्री मदभागवत कथा, श्री राम कथा , करवाने हेतु एबम ज्योतिष द्वारा समाधान,आदि की जानकारी के लिए ×××××××××××××××××××××××××××××× संपर्क सूत्र पंडित -परमेश्वर दयाल शास्त्री (मधुसुदनगड़) 09893397835 ============================= पंडित-भुबनेश्वर दयाल शास्त्री (पर्णकुटी गुना) 09893946810 ============================ पंडित -घनश्याम शास्त्री(मधुसुदंगड़) 09893983084 ============================= विशेष संपर्क कस्तूरवा नगर पर्णकुटी आश्रम गुना ऐ -बी रोड दा होटल सारा के सामने 09893946810 =============================

महाशिवरात्रि पर कालसर्प दोष से मुक्ति कैसे पाये

शास्त्रों के अनुसार कालसर्प दोष 12 प्रकार के बताए गए है
1. अनंत
2. कुलिक
3.वासुकि
4. शंखपाल
5. पद्म
6.महापद्म
7.तक्षक
8.कर्कोटक
9. शंखनाद
10. घातक
11. विषाक्त
12. शेषनाग

राहू-केतु के असर को खत्म करने के लिए रामबाण है- पाशुपतास्त्र का प्रयोग।

कालसर्प दोष के लक्षण और आसान अचूक उपाय...

सर्प मंत्र या नाग गायत्री के जाप करें या करवाएं- सर्प मंत्र :

।। ॐ नागदेवताय नम: ।।

× नाग गायत्री मंत्र : ।।

ॐ नवकुलाय विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात् ।।

महाशिवरात्रि' का आध्यत्मिक एवं ज्योतिषीय महत्व भी है। जिनकी जन्म पत्रिकाओं में कालसर्प दोष हो उनके लिए यह दिन वरदान समान है क्योंकि इस दिन से प्रारंभ किए गए कालसर्प दोष निवारण क्रिया अत्यधिक प्रभावी होती है।

जिसने भी लगातार तीन महाशिवरात्रि पर कालसर्प दोष निवारण क्रिया करवा ली है उसे एवं उसकी आने वाली पीढ़ी पर भी कालसर्प दोष का अशुभ प्रभाव नहीं होता है।

आध्यात्मिक क्षेत्र की कुछ वस्तुओं की महाशिवरात्रि के दिन स्थापना करने का विशेष महत्व है, जिनमें से प्रमुख के बारे में हम यह जानकारियां दे रहे हैं-

रुद्राक्ष 01 से 15 मुखी एवं रुद्राक्ष मालाएं- रुद्राक्ष की महिमा जग विख्यात है।

महाशिवरात्रि के दिन पांच मुखी रुद्राक्ष की माना में गठा हुआ सात, आठ, नौ व एक मुखी रुद्राक्ष का कंठा धारण करना यानी जीवन सफल बनाना है क्योंकि इससे सिर्फ सुख-समृद्धि ही नहीं बल्कि शिव परिवार का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

यह आत्मविश्वास और सही निर्णय क्षमता प्रदान करता है। इसी दिन पारिवारिक सुख के लिए पति-पत्नी गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करें और माता पार्वती का आशीर्वाद पाएं।

शिवलिंग :-

शिवलिंग कई प्रकार के होते है किंतु श्रेष्ठ होते हैं पारदेश्वर या स्फटिक अथवा चांदी जलहरी के साथ स्फटिक लिंगम।

महादेव की तंत्र सिद्धि के लिए नीले सनसितारा (उपरत्न) से बने शिवलिंग का प्रयोग किया जाता है किंतु यह लगभग 250 ग्राम वजन या उससे अधिक ही होना चाहिए। अब पारद के शिवलिंग को क्या कहें, पारद से बने शिवलिंग को ज्योर्तिलिंग से भी श्रेष्ठ माना गया हैइसका पूजन सर्व कामप्रद, मोक्षप्रद, शिवस्वरूप बनाने वाला है।

चांदी के त्रिशूल अथवा तीन कमान :-

पंचामृत अभिषेक करके भगवान शिव के चरणों में चांदी के त्रिशूल अथवा तीन कमान अर्पित करने से अचानक आई बाधा अथवा परेशानी से छुटकारा मिलता है।

चांदी का सर्प जोड़ा :-

कालसर्प दोष निवारण के लिए अतिशुभ दिन। अपनी निवारण क्रिया की शुरुआत इस दिन से करें।

दूध, जल, शहद, एवं एक शुद्ध चांदी का सर्प जोड़े के साथ नंदी व शिवजी का अभिषेक करें एवं सर्प जोड़ा शिव चरणों में अर्पित कर दें।

महाशिवरात्रि से प्रारंभ करने के पश्चात इसे सोमवार को किया करें। कितने सोमवार करना है यह आपकी जन्म तारीख से इस प्रकार निकालें।

मान लीजिए आपकी जन्म तारीख

26/02/1975 है अब 26 का जोड़ 2+6 बराबर 8 एवं 26+2+1975 बराबर 50 अर्थात 5, अब तारीख का 8 व कुल तारीख का 5 अर्थात 8+5 बराबर 13 यानी इस जन्म तारीख के व्यक्ति को तेरह सोमवार यह क्रिया करना चाहिए।

यानी प्रत्येक वर्ष तेरह सोमवार जो तीन वर्ष के लिए होगी और हर वर्ष में शुरुआत महाशिवरात्रि से ही करें। (किंतु कुल जोड़ 15 से अधिक होने पर उसे 3 से भाग दें और जो अंक शेष रहे उतने ही सोमवार अपर्ण करें।) जीवन में कालसर्प दोष परेशान नहीं करेगा।

: कालसर्प दोष निवारण महाशिवरात्रि पर्व ज्योतिषीय महत्व

रुद्राक्ष
शिवलिंग
चांदी का सर्प जोड़ा

महाशिवरात्रि पूजा महूर्त सामग्री लिस्ट सहित पारद शिव लिंग पूजन के लिए सम्पर्क करे

24 फरवरी 2017 को मनाया जाएगा।

एक नजर शिवारात्रि पूजा और मुहूर्त के समय पर

महाशिवरात्रि : 24 फरवरी 2017
निशिथ काल पूजा- 12:08 से 12:59
पारण का समय- 06:54 से 3:24 (25फरवरी)

चतुर्दशी तिथि आरंभ- 09:38 (24 फरवरी) चतुर्दशी तिथि समाप्त- 09:20 (25 फरवरी

चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं।

रात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त

निशीथ काल पूजा का मुहूर्त- रात 12.30 से 01.05 बजे तक

पहले प्रहर की पूजा- शाम 06:42 से 09:45 बजे तक

दूसरे प्रहर की पूजा- रात 09:45 से 12:50 बजे तक

तीसरे प्रहर की पूजा- रात 12:50 से 03:50 बजे तक

चौथे प्रहर की पूजा- रात 03:50 से सुबह 06:50 बजे तक
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                     रेलवे टाइम

Nishita Kaal Puja
Time= 24:08+ to 24:58+
Duration = 
0 Hours 50 Mins On 25th,

Maha Shivaratri Parana
Time06:50 to 15:25

Ratri First Prahar Puja 
Time = 18:16 to 21:25

Ratri Second Prahar Puja 
Time = 21:25 to 24:33+

Ratri Third Prahar Puja
Time = 24:33+ to 27:42+

Ratri Fourth Prahar Puja 
Time = 27:42+ to 30:50+

How to read 24+ time?

Chaturdashi Tithi Begins
= 21:38 on 24/Feb/2017 Chaturdashi Tithi Ends
= 21:20 on 25/Feb/2017

(पूजन समग्री कम और ज्यादा कर सकते है )

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1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------------100 ग्राम
३】अगरबत्ती------------------- 3पैकिट
४】कपूर------------------------- 50 ग्राम
५】केसर------------------------- 1डिव्वि
६】चंदन पेस्ट ------------------ 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत ----------------- 11नग्
८】चावल------------------------ 05 किलो
९】अबीर-------------------------50 ग्राम
१०】गुलाल, -----------------10 0ग्राम
११】अभ्रक-------------------
१२】सिंदूर --------------------100 ग्राम
१३】रोली, --------------------100ग्राम
१४】सुपारी, ( बड़ी)-------- 200 ग्राम
१५】नारियल ----------------- 11 नग्
१६】सरसो----------------------50 ग्राम
१७】पंच मेवा------------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)--------------- 50 ग्राम
१९】शकर-----------------------0 1किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)------------ 01किलो
२१】इलायची (छोटी)-----------10ग्राम
२२】लौंग मौली-------------------10ग्राम
२३】इत्र की शीशी----------------1 नग्

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~अगर मंडल रचना करना हो तो लाना है

२४रंगलाल----------------------10ग्राम
२५】रंग काला--------------------10ग्राम
२६    रंगहरा-----------------------10ग्राम
२७】रंगपिला---------------------10ग्राम
२८】चंदन मूठा--------------------1 नग्
२९】धुप बत्ती ---------------------2 पैकिट =============================
अगर मिटटी का  शिवलिंग बनाना हो तो

३०】सप्तमृत्तिका

1हाथीकेस्थानकीमिट्टि-----------50ग्राम
२】घोड़ा बांदने के स्थानकीमिटटी--50ग्राम
३बॉबीकीमिटटी--------------------50ग्राम
४दीमककीमिटटी------------------50ग्राम
५नदीसंगमकीमिटटी-------------50ग्राम
६तालाबकीमिटटी------------------50ग्राम
७गौशालाकीमिटटी-----------------50ग्राम राजद्वारकीमिटटी------------------50ग्राम ============================ ३१】पंचगव्य
१】 गाय का गोबर -----------------50 ग्राम
२】गौ मूत्र-----------------------------50ग्राम
३】गौ घृत------------------------------50ग्राम
4】गाय दूध----------------------------50ग्राम
५】गाय का दही ---------------------50ग्राम ============================= ============================= ३३】कुशा
३४】दूर्वा
35】पुष्प कई प्रकार के
३६】गंगाजल
३७】ऋतुफल पांच प्रकार के -----1 किलो 38】पंच पल्लव
१】बड़,
२】 गूलर,
३】पीपल,
४】आम
५】पाकर के पत्ते) ============================= ३९】बिल्वपत्र
४०】शमीपत्र
४१】सर्वऔषधि
४२】अर्पित करने हेतु पुरुष बस्त्र
४३】मता जी को अर्पित करने हेतु सौ भाग्यवस्त्र
44】जल कलश तांबे का मिट्टी का)

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    मण्डल रचना करना हो तो सरे बस्त्र लाना है नही तो केवल पिला या लाल लाना है
४५】 बस्त्र
१】सफेद कपड़ा दोमीटर)
२】लाल कपड़ा (2मीटर)
३】काला कपड़ा 2मीटर)
४】हरा कपड़ा 2मीटर)
5)पीला कपड़ा 2 मीटर
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४६】पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार)
४७】दीपक
४८】तुलसी दल
४८】केले के पत्ते (यदि उपलब्ध हों तो खंभे सहित)
49】बन्दनवार
50】पान के पत्ते ------------11 नग
51】रुई

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              अभिषेक सामग्री
1)गाय का दूध से स्नान
2)गाय का दही स्नान
3)गाय का घी स्नान
4)शहद स्नान
5)शकर स्नान
6)पंचामृत स्नान
7)फलो का रस स्नान
8)फूलो का रस (इत्र) स्नान
9)विजया (भांग) स्नान
10अष्टगंध या चन्दन घिसा हुआ  स्नान
11)यज्ञ भस्म  स्नान एबम त्रिपुण्ड के लिए
12)गंगा जल् स्नान

अभिषेक के लिए जल दूध गन्ने का रस  जिस कामना के लिए करना है उसकी व्यबस्था करे
============================ ×××××××××××××××××××××××××××××× संपर्क -किसी भी प्रकार की पूजा जैसे - सतचण्डीपाठ ,नवरात्रिपाठ ,महामृत्यंजय , वास्तु पूजन, ग्रह प्रवेश ,श्री मदभागवत कथा, श्री राम कथा , करवाने हेतु एबम ज्योतिष द्वारा समाधान,आदि की जानकारी के लिए
पंडित ~पुष्पेन्द्र शास्त्री
सीताराम कालोनी केंट रोड गुना
पार्देस्वर शिव मन्दिर
नाना खेड़ी मंडी गेट
मो.9425718108