ज्योतिष समाधान

Wednesday, 28 February 2024

कथा वाचन से पूर्व

स्त्रियों को व्यासपीठ पर बैठने का अधिकार क्यों नही-----

१.पहली बात 
स्त्री, शूद्र और पतित द्विजाति—तीनों ही वेद-श्रवण के अधिकारी नहीं हैं --- स्त्रीशूद्रद्विजबन्धूनां त्रयी न श्रुतिगोचरा (श्रीमद्भागवत १/४/२५) अब जिनका वेदों और उपनिषदों को पढने और सुनने का ही अधिकार नही है तब वे कैमुतिक न्याय से श्रीमद्भागवत की कथा बांच ही कैसे सकते है क्योंकि श्रीमद्भागवत ---निगमकल्पतरोर्गलितं फलं  अर्थात  वेदरूप कल्पवृक्ष का परिपक्व फल है जिसमें ऐसे ऐसे वेदान्त के दार्शनिक रहस्य गढ़े हुए है जिसको केवल श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ ब्राह्मण ही समझा सकता है,अन्य कोई नही।विद्या की परीक्षा भी श्रीमद्भागवत से ही होती है।श्रीमद्भागवत की वंशीधरी टीका में कहा गया है--विद्यावतां भागवते परीक्षा अर्थात विद्वानों की बुद्धि की परीक्षा भागवत से होती है कि वे श्रीमद्भागवत के प्रत्येक श्लोक का सटीक अर्थ कर सकते है या नही!।श्रीमद्भागवत कोई  सामान्य ग्रंथ नही है ।उसमें वेदों का सार समाहित है । क्या ये स्त्रियां जिन्हें वेदान्त का "क ख़ ग" भी नही मालूम जिज्ञासुओं की वेदान्त सम्बन्धी शंकाओं का निवारण करने में समर्थ है!! कदापि नही । वर्तमान की कथाओं में तो श्रीमद्भागवत के दर्शन भाग को तो छोड़ ही दिया गया है (राजा चित्रकेतु की कथा , जड़भरत और रहूगण की कथा, एकादश स्कन्द आदि आदि ये सब तो सुनने को भी नही मिलता ) और कथा भाग में भी महान अशुद्धियां इन कथावचिकाओं के द्वारा होती है । बस केवल फ़िल्मी धुन पर "राधे राधे" के जयकारे लगाए जा रहे है।अश्लीलता की पराकाष्ठा भी देखने को मिल रही है जहां व्यासपीठ पर ही कथावाचिकाये ठुमके लगाती हुई नजर आ जाती है ।यही होता है जब अनाधिकृत को किसी उच्च पद पर बिठा दिया जाता है।

 अपने कर्तव्य का पालन और दूसरे के अधिकार की रक्षा करने से ही परमार्थ में सिद्धि मिलती है । किन्तु जब अपने कर्तव्य का ज्ञान ही नही रहता और दूसरे के अधिकार पाने की कामना मन मे जगने लगती है( दूसरे की थाली में लड्डू बड़ा लगने लगता है ) तब पारमार्थिक सिद्धि तो दूर की बात लौकिक उत्कर्ष को भी मनुष्य प्राप्त नही होता है ।स्त्री कथावाचकों को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि वे व्यासपीठ पर बैठकर ब्राह्मणों की जीविका का हरण भी कर रही है और ब्राह्मण धन हड़पने के कारण नरक की सीट पक्की कर रही है।
 (इस मुख्य श्लोक से ही स्त्रियों का व्यासपीठ पर बैठने का अधिकार सिद्ध नही होता)

२. दूसरी बात इसी अध्याय में कहा गया है ---

अनेकधर्मविभ्रान्ताः स्त्रैणाः पाखण्डवादिनः ।
शुकशास्त्रकथोच्चारे त्याज्यास्ते यदि पण्डिताः ॥ २१॥

अर्थात: श्रीमद्भागवत के प्रवचन में ऐसे लोगों को नियुक्त नहीं करना चाहिये जो पण्डित होने पर भी अनेक धर्मों के चक्कर में पड़े हुए, स्त्री- लम्पट एवं पाखण्ड के प्रचारक हों ॥ 

यहाँ इस स्त्री लम्पट पद से भी यही सिद्ध होता है मूलतः व्यासपीठ पर पुरुष(ब्राह्मण) का ही अधिकार है क्योंकि स्त्री लम्पट तो पुरुष ही होगा ना की स्त्री।वैसे वर्तमान घोर कलियुग में स्त्रियां भी स्त्री लम्पट हो सकती है क्योंकि इस देश में धारा ३७७ निरस्त करके शासनतंत्र ने ये मान्यता इन जैसों को दे ही दी है😏

जो मोलाड़ी भोपू और उसके जैसे पाखण्डी कथावाचक है जो व्यासपीठ से अली मौला गाते है,अल्लाह- अल्लाह करते फिरते है,हिजड़ों से शास्त्रों की आरती उतरवाते है,ओशो जैसे पाखण्डी के समर्थक है और सर्वधर्म समभाव के सुतयापे की बात करते है उनके मुँह पर ये श्लोक करारा तमाचा है।

(इस श्लोक से भी स्त्रियों का और पाखंडियों का व्यासपीठ पर बैठने का अधिकार सिद्ध नही होता)

३.तीसरी बात व्यासपीठ पर बैठने से पहले वक्ता को क्षौरकर्म(दाढ़ी बनवाना) करवाना अनिवार्य है। इसी अध्याय में कहा गया है----वक्त्रा क्षौरं प्रकर्तव्यं दिनादर्वाग्व्रताप्तये (२३) अर्थात कथा-प्रारम्भ के दिन से एक दिन पूर्व व्रत ग्रहण करने के लिये वक्ता को क्षौर करा लेना चाहिये।

अब प्रश्न तो ये उठता है कि विचित्र लेखा, विजया मोरी आदि आदि कथावाचिकाएं भागवत की कथा करने से पहले क्या अपनी दाढ़ी बनवाती है!😏 वैसे बहुत खोजने पर भी मुझे वो श्लोक नही मिला जिसमें वेदव्यास जी ने स्त्री कथावाचकों के लिए रिबॉन्डिंग,वैक्सिंग,ट्रिममिंग,ब्लीचिंग,फाउंडेशन आदि का विधान किया हो😏

मोलाड़ी भोपू दाढ़ी रखता है ,जो सरेआम व्यासपीठ की मर्यादा का अतिक्रमण है।

(इस श्लोक से भी स्त्रियों का व्यासपीठ पर बैठने का अधिकार सिद्ध नही होता)

४.चौथी बात
नित्यं संक्षेपतः कृत्वा सन्ध्याद्यं स्वं प्रयत्नतः ।
कथाविघ्नविघाताय गणनाथं प्रपूजयेत् ॥ २४॥

अर्थात संध्यादि अपने नित्यकर्मों को संक्षेप से समाप्त करके कथा के विघ्रों की निवृत्ति के लिये गणेश जी का पूजन करे। 

अब जब स्त्रियों का यज्ञोपवीत संस्कार ही नही होता और गायत्री मंत्र में भी ये दीक्षित नही हो सकती, तब ये स्त्री कथावचकाएँ संध्यादि आदि नित्य कर्म कैसे कर सकती है! इससे भी यहाँ पुरुष( ब्राह्मण) का ही व्यासपीठ पर अधिकार सिद्ध हो रहा है ,ना की स्त्रियों का ।

५. पांचवी बात
मुख्य श्रोता कथा आरम्भ से पूर्व कथावाचक की स्तुति करे ये विधान इसी अध्याय में श्रीवेदव्यास जी द्वारा दिया गया है,उसमे जो संबोधन  दिया गया वक्ता के लिए श्रोता के द्वारा वो बहुत महत्वपूर्ण है-----
शुकरूप प्रबोधज्ञ सर्वशास्त्रविशारद ।
एतत्कथाप्रकाशेन मदज्ञानं विनाशय ॥ ३३॥

अर्थात :‘शुकस्वरूप भगवन् ! आप समझाने की कला में कुशल और सब शास्त्रों में पारंगत हैं; कृपया इस कथा को प्रकाशित करके मेरा अज्ञान दूर करें’ ॥ 

अब 'शुकस्वरूप भगवन' से सिद्ध है कि वक्ता पुरुष(ब्राह्मण) ही होना चाहिए क्योंकि श्रीशुकदेवजी स्वयं पुरुष थे और जन्म से ब्राह्मण थे और 'सर्वशास्त्रविशारद' पद से भी स्त्री कथावाचक का निषेध हो जाता है क्योंकि स्त्री को वेद श्रवण और अध्ययन का अधिकार ही नही है फिर वह सर्वशास्त्रविशारद कैसे होगी! स्त्री शुद्र आदि को स्मृति शास्त्र को भी केवल सुनने का अधिकार है पढ़ने का नही।इसी अध्याय में सनकादिकों के द्वारा कहा गया है

दूरे हरिकथाः केचिद्दूरे चाच्युतकीर्तनाः ।
स्त्रियः शूद्रादयो ये च तेषां बोधो यतो भवेत् ॥ ६॥

अर्थात स्त्री और शूद्रादि भगवत्कथा एवं संकीर्तन से दूर पड़ गये हैं। उनको भी सूचना हो जाय, ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये ।

इससे भी स्त्री शुद्र आदि का केवल कथा श्रवण का ही अधिकार सिद्ध होता है। विद्यारण्य स्वामी जी ने सूत संहिता के भाष्य में कहा है कि,"स्त्री शूद्र आदि को लोक भाषा के ग्रंथ पढ़ने चाहिए" जैसे कि रामचरितमानस आदि। जिससे कि श्रुति (वेद)और स्मृति(पुराण,इतिहास आदि) ग्रंथ पढ़ने के अधिकार का भी खंडन हो जाता है।

श्रीपद्मपपुराण के इस अध्याय से ही स्पष्ट सिद्ध है कि केवल जन्मना श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ विरक्त वैष्णव ब्राह्मण का ही व्यासपीठ पर कथा बांचने का अधिकार है ,अन्य किसी का नही।

#व्यासपीठ_की_मर्यादा_और_कथा_कहने_के_नियम_और_वर्तमान_में_होने_वाली_कथा_से_समीक्षा👇👇

 केवल जन्मना श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ विरक्त वैष्णव ब्राह्मण का ही व्यासपीठ पर कथा बांचने का अधिकार है और श्रीमद्भागवत के प्रवचन में ऐसे लोगों को नियुक्त नहीं करना चाहिये जो पण्डित होने पर भी अनेक धर्मों के चक्कर में पड़े हुए, स्त्री- लम्पट एवं पाखण्ड के प्रचारक हों। इतना कहने के बाद सनकादिक नारद जी को व्यासपीठ पर कथा करने के कुछ और नियम भी बताते है👇👇
 
 वक्तुः पार्श्वे सहायार्थमन्यः स्थाप्यस्तथाविधः ।
पण्डितः संशयच्छेत्ता लोकबोधनतत्परः ॥ २२॥

अर्थात : वक्ता के पास ही उसकी सहायता के लिये एक वैसा ही विद्वान् और स्थापित करना चाहिये। वह भी सब प्रकार के संशयों की निवृत्ति करने में समर्थ और लोगों को समझाने में कुशल हो ॥ २२ ॥

नित्यं संक्षेपतः कृत्वा सन्ध्याद्यं स्वं प्रयत्नतः ।
कथाविघ्नविघाताय गणनाथं प्रपूजयेत् ॥ २४॥

अर्थात: संध्यादि अपने नित्यकर्मों को संक्षेप से समाप्त करके कथा के विघ्रों की निवृत्ति के लिये गणेशजी का पूजन करे ॥

अब सुनिए! व्यासपीठ से वर्तमान श्री रामानुजाचार्य पद पर विराजमान श्रीराघवाचार्य जी ने श्रीमद्भागवत की कथा करते समय सरेआम व्यासपीठ से कह दिया था कि,"हम केवल भगवान विष्णु को और उनके अवतारों को ही भगवान मानते है,गणेश ,शिव जी आदि को नही क्योंकि उनमें भगवान का लक्षण ही चरितार्थ नही होता"। अब विचार कीजिये ऐसे महानुभाव जो गणेश जो को भगवान तक नही मानते वो श्रीमद्भागवत की कथा से पूर्व गणेश का पूजन क्यूँ करेंगें! और बिना गणेश जी के पूजन से एक तो व्यासपीठ की मर्यादा का अतिक्रमण होता है, दूसरा इनकी भागवत की कथा भी निर्विघ्नतापूर्ण समाप्त नही होती।जब उच्च पद पर आसीन ये लोग ही अपने सम्प्रदाय के आग्रह के चक्कर में शास्त्राज्ञा विरुद्ध कार्य कर सकते है तब जो अन्य कथावाचक है जो की स्वभाव से ही सड़कछाप है वो व्यासपीठ की मर्यादा की धज्जियाँ उड़ाए तो कहना ही क्या!

वरणं पञ्चविप्राणां कथाभङ्गनिवृत्तये ।
कर्तव्यं तैर्हरेर्जाप्यं द्वादशाक्षरविद्यया ॥ ३५॥

अर्थात: कथा में विघ्र न हो, इसके लिये पाँच ब्राह्मणों को और वरण करे; वे द्वादशाक्षर मन्त्र द्वारा भगवान् के नामों का जप करें ॥ ३५ ॥ 

लेकिन वर्तमान की कथा में आपको ये सब देखने को नही मिलेगा क्योंकि जहां कथा धंधा बन जाती है वहां कथावाचक सब कुछ स्वयं ही हड़पना चाहता है इसलिए वे कथा में ना अपना कोई सहायक बनाता है और ना अन्य पांच ब्राह्मणों को वरण करता है।स्त्री कथावाचकों का तो और भी बुरा हाल है।इनका आयोजक के साथ ६०-४० का सौदा होता है और सोने की चेन अलग से मांगी जाती है,रहने को five star होटल भी आवश्य होना चाहिए।😏

आसूर्योदयमारभ्य सार्धत्रिप्रहरान्तकम् ।
वाचनीया कथा सम्यग्धीरकण्ठं सुधीमता ॥ ३८॥
कथाविरामः कर्तव्यो मध्याह्ने घटिकाद्वयम् ।
तत्कथामनु कार्यं वै कीर्तनं वैष्णवैस्तदा ॥ ३९॥

अर्थात: बुद्धिमान् वक्ता को चाहिये कि सूर्योदय से कथा आरम्भ करके साढ़े तीन पहर तक मध्यम स्वर से अच्छी तरह कथा बाँचे ॥ ३८ ॥ दोपहर के समय दो घड़ी तक कथा बंद रखे। उस समय कथा के प्रसङ्ग के अनुसार वैष्णवों को भगवान् के गुणों का कीर्तन करना चाहिये—व्यर्थ बातें नहीं करनी चाहिये ॥ ३९  ॥ 

वर्तमान में तो कथा ही दोपहर को आरम्भ करते है क्योंकि कथावाचकों को सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठने का संस्कार ही नही है।शास्त्र में जिस समय कथा करने का निषेध है उस समय ये कथा के नाम पर व्यथा बांचते है।

कीर्तन का स्वरूप देखें----  जब शास्त्र ने जिस समय कथा बंद करने की आज्ञा दी है माने दोपहर को २ घड़ी --- ४८ मिंट ,उस समय श्रोताओं को भगवान के गुणों का कीर्तन करना चाहिए ।लेकिन वर्तमान में तो कथा के साथ ही फ़िल्मी धुनों पर अशास्त्रीय भजन गाए जाते है।शास्त्र ने आज्ञा दी है की लगभग सुबह ब्रह्ममुहूर्त से साढ़े तीन घण्टे तक कथा करनी है उसके बाद जितनी कथा हो चुकी है उसके अनुसार ही भगवान के गुणों का कीर्तन करना है ताकि कथा में प्रमाद ना पले,उकताहट ना हो,दाल में नमक के समान भजन का स्वरूप शास्त्र ने तय किया है।जबकि वर्तमान के कथावाचकों ने दाल में नामक के समान कथा का स्वरूप कर दिया है और हारमोनियम लेकर लोक कथाओं के भजन बनाकर बनाकर जनता को लुभा रहें है और अपने धंधा चला रहे है।एक बार स्वामी रामसुखदास जी महाराज से किसी व्यक्ति ने पूछा कि ,"शास्त्र में भागवत के श्रोता और वक्ता को दुर्लभ बता गया है ,जबकि वर्तमान समय में तो ये अत्यंत सुलभ है, इसका क्या कारण है?"
 स्वामी जी ने उत्तर दिया कि,"वर्तमान के वक्ता और श्रोता दोनों ही नकली है।"
 

#श्रोताओं के कथा सुनने के नियम और वर्तमान श्रोताओं की समीक्षा👇👇

सनकादिक नारद जी से कहते है👇👇

सप्ताहव्रतिनां पुंसां नियमाञ्छृणु नारद
विष्णुदीक्षाविहीनानां नाधिकारः कथाश्रवे ॥ ४४॥

अर्थात: नारदजी ! नियम से सप्ताह सुननेवाले पुरुषों के नियम सुनिये। विष्णुभक्त की दीक्षा से रहित पुरुष कथाश्रवण का अधिकारी नहीं है ॥ ४४ ॥ 

वर्तमान में तो विधर्मियों को भी कथा में बुलाया जाता है और उनसे व्यासपीठ पर आरतियां उतरवाई जाती है।जबकि इनका कथा सुनने का भी अधिकार नही है।

ब्रह्मचर्यमधःसुप्तिः पत्रावल्यां च भोजनम्
कथासमाप्तौ भुक्तिं च कुर्यान्नित्यं कथाव्रती ॥ ४५॥

अर्थात: जो पुरुष नियम से कथा सुने, उसे ब्रह्मचर्य से रहना, भूमि पर सोना और नित्यप्रति कथा समाप्त होने पर पत्तल में भोजन करना चाहिये ॥ ४५ ॥

स्त्री कथावाचक से कथा सुनने पर पुरुष श्रोता कैसे ब्रह्मचर्य से रहेगा ! जितना मेकअप,जितने ठुमके और जैसी अंगिमा भंगिमा बनाकर कथा ये स्त्रियां करती है।

#समाधान

इतने विस्तृत लेख के बाद जब समस्या के समाधान की बात नही की तो ये केवल कोरा श्रम रह जायेगा।भागवत कथा के संदर्भ में वर्तमान के मान्य शंकराचार्यों, वैष्णवचार्यों महामंडलेश्वरों आदि को अपनी धर्मसंसद से प्रस्ताव पारित करना चाहिए जिसमें व्यासपीठ की गरिमा और मर्यादा को अक्षुण बनाए रखने के कुछ सख्त दिशा निर्देश हो।प्रस्ताव में------👇

१.व्यासपीठ पर केवल जन्मना ब्राह्मण जो कि श्रोत्रिय हो उसका अधिकार है अन्य किसी वर्ण और स्त्रियों का नही।

२.व्यासपीठ को मनोरंजन का अड्डा ना बनाया जाएं।

३.भागवत कथा कहने स्वरूप तय किया जाएं जिसमें दर्शनभाग, कथाभाग और भजन कीर्तन का समय भी निर्धारित किया जाए कि भागवत कथा में एकादश स्कंद(दर्शन भाग) को और दशम स्कंद(कथाभाग) को अधिक से अधिक कहना अनिवार्य हो।

४.व्यासपीठ से सर्वधर्मसमभाव की बात करने वाले को,विधर्मियों के भजन गाने वाले को व्यासपीठ का अधिकार छीना जाए और उसे सनतान धर्म से बाहर किया जाएं।

५.धर्महित में, राष्ट्रहित में कथावाचक ने अपनी कथा के माध्यम से कितना योगदान दिया इसकी समीक्षा उच्च महानुभावों के द्वारा अवश्य होनी चाहिए।

ये कोई असम्भव कार्य नही है।इस प्रस्ताव को यदि मान्य शंकराचार्य पारित करते है तो इसको न्यायालय में भी चुनौती नही दी जा सकती क्योंकि कटक हाईकोर्ट का ये निर्णय है कि "शंकराचार्य धार्मिक और आध्यात्मिक जगत में सर्वोच्च न्यायाधीश है ,उनके किसी भी निर्णय को बदलने का अधिकार हाईकोर्ट के पास नही है"।

केवल इच्छाशक्ति और एकता की कमी है ,नही तो व्यासपीठ की मर्यादा की समस्या आज ही सुलझ सकती है।लेकिन इस देश में शास्त्रीय प्रमाणों से बात कोई नही रखना चाहता क्योंकि इससे बड़े बड़े पदों पर आसीन लोगों की भी पोलपट्टी खुलने का भय है😏

क्या कारण है कि सोशल मीडिया पर व्यासपीठ से अली मौला आदि का तो जमकर विरोध किया गया और माफियां भी मंगवाई गई ,लेकिन व्यासपीठ पर जन्मना श्रोत्रिय ब्राह्मण के बैठने के अधिकार की बात को उस शोर शराबे में दबा दिया गया।😏

अंत में इतना ही कहूंगा कि इस देश की, धर्म की लाख समस्याओं का केवल एक ही हल है वो है राजपीठ और व्यासपीठ का शोधन और उनमें आपसी सद्भावपूर्वक संवाद से शास्त्रीय मर्यादा का पालन दृढ़ता से जनता पर लागू करना।
Gurudev
Bhubnedhwar
9893946810

Monday, 19 February 2024

पूजन सामग्री पर्णकुटी

1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------------2 गोले
३】अगरबत्ती--------------     1पैकिट
४】कपूर---------------------   100 ग्राम
५】केसर-------------------------   1डिव्वि
६】चंदन पेस्ट ------------------ 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत -----------------   11नग्
८】चावल------------------------ 03किलो
९】अबीर-------------------------20 ग्राम
१०】गुलाल, -----------------50ग्राम
११】अभ्रक-------------------20 ग्रांम
१२】सिंदूर --------------------50 ग्राम
१३】रोली, --------------------50ग्राम
१४】सुपारी, ( बड़ी)--------  100ग्राम
१५】नारियल -----------------  5 नग्
१६】सरसो----------------------20 ग्राम
१७】पंच मेवा------------------200 ग्राम
१८】शहद (मधु)--------------- 50 ग्राम
१९】शकर-----------------------200ग्रांम
२०】घृत (शुद्ध घी)--------- 1 किलो 
२१】इलायची (छोटी)-----------10ग्राम
२२】लौंग मौली-------------------10ग्राम
२३】इत्र की शीशी----------------1 नग्
२4】धुप बत्ती -----------------2 पैकिट
=============
कुशा
25】दूर्वा
26】पुष्प 
27】हार मोगरा के फूल के  5
28】ऋतुफल पांच प्रकार के -----1 किलो
29)पान के पत्ते ,10
जल कलश तांबे का 1 नग 
 2 किलो जल आ जाये इतना

29)तिली 500 ग्राम
30) जौ 100 ग्राम
31)हवन सामग्री पेकिट (सुर्जन) का 2 किलो
32)चंदन बुरादा 100 ग्राम
33)गूगल 200 ग्राम 
34)हवन के लिये समिधा 10किलो
35) नवग्रह समिधा पैकिट  1 

1)सफेद कपड़ा (2मीटर)
२】लाल कपड़ा (2मीटर)
३)पीला कपड़ा

घर से उप्लब्ध करने का सामान
1)आसन बैठने के लिये
2)चौकी2×2 - 3
3)थाली 2 पूजा के लिये 
4)कटोरी 
5)हाथ पोछ्ने के लिये टाविल 
6)दूध
7)दही
8)माचिस
10)रुई
11)आटा  चोक पूरने  के लिये 100 ग्राम
12)प्रशाद पंजीरी  
13)हलुआ हवन के लिए
14)खीर हवन के लिए
15)पूजा के लिये पैसे
16) केले के पत्ते
17)आम के गुच्छे- 5 
18)पूजा के लिए सबूत चावल 
19)गंगा जल
20)तुलसी दल 
Gurudev 
Bhubneshwar 
Parnkuti  gunaa 
9893946810

नवग्रहों का शरीर पर प्रभाब

*ग्रहों का शरीर पर प्रभाव और होने वाले रोग नवग्रहों के प्रकोप से आपको होती हैं गंभीर बीमारियां*

कई बार आप बीमार पड़ते हैं और लगातार इलाज के बाद भी बीमारी ठीक नहीं होती है तो कई बार आपकी बीमारी डॉक्टर की समझ से भी बाहर होती है। यह सब ग्रहों के प्रकोप के कारण होता है। प्रत्येक ग्रह का हमारी धरती और हमारे शरीर सहित मन- मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है, जिसके चलते हमें सामान्य या गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है। सतर्क रहकर हम कई सारी बीमारियों से बच सकते हैं। यहां आप विभिन्न ग्रहों के प्रभाव से होने वाली बिमारियों के बारे में जान सकते हैं

 ● *सूर्य*

• दिमाग समेत शरीर का दायां भाग सूर्य से प्रभावित होता है।
• सूर्य के अशुभ होने पर शरीर में अकड़न आ जाती है।
• मुंह में थूक बना रहता है।
• व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है।
• दिल का रोग हो जाता है। 
• मुंह और दांतों में तकलीफ होती है।
• सिरदर्द बना रहता है।

_सूर्य ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए_

• इलाइची, केसर एवं गुलहठी, लाल रंग के फूल मिश्रित जल द्वारा स्‍नान करने से सूर्य के दुष्‍प्रभाव कम होत

● *चंद्रमा*

• चन्द्रमा मुख्य रूप से दिल, बायां भाग से संबंध रखता है।
• मिर्गी का रोग।
• पागलपन।
• बेहोशी।
• फेफड़े संबंधी रोग।
• मासिक धर्म की गड़बड़ी।
• याददाश्त कमजोर होना। 
• मानसिक तनाव और घबराहट।
• तरह-तरह की शंका और अनिश्चित भय।
• सर्दी-जुकाम बना रहना।
• मन में बार-बार आत्महत्या का विचार आना।

_चंद्र ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए_

• सफेद चंदन, सफेद फूल, सीप, शंख और गुलाब जल मिश्रित पानी से नहाने से आपकी राशि पर चंद्र के दुष्‍प्रभाव कम होते

● *मंगल*

• आंख के रोग
• हाई ब्लड प्रेशर
• वात रोग
• गठिया
• फोड़े-फुंसी होना।
• चोट लगना।
• बार-बार बुखार।
• शरीर में कंपन।
• गुर्दे में पथरी हो जाती है।
• शारीरिक ताकत कम होना।
• रक्त संबंधी बीमारी।
• बच्चे पैदा करने में तकलीफ। 

_मंगल ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए_

 • लाल चंदन, लाल फूल, बेल वृक्ष की छाल, जटामांसी, हींग मिश्रित जल से नहाने से मंगल ग्रह के दुष्‍परिणों को भी कम किया जा सकता है।

● *बुध*

• तुतलाहट
• सूंघने की शक्ति क्षीण होना
• दांतों का खराब होना
• मित्र से संबंधों का बिगड़ना
• अशुभ हो तो बहन, बुआ और मौसी पर विपत्ति आना
• नौकरी या व्यापार में नुकसान होना
• सेक्स पावर कम होना।
• व्यर्थ की बदनामी।

_बुध ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए_

• अगर आप चाहते हैं कि आप पर बुध की कृपा दृष्टि बनी रहे तो आपको अपने स्‍नान के जल में अक्षत, जायफल, गाय का गोबर मिश्रित करके स्‍नान करना होगा।

● *गुरु*

• इससे श्वास रोग, वायु विकार, फेफड़ों में दर्द होता है
• कुंडली में गुरु-शनि, गुरु-राहु और गुरु-बुध जब मिलते हैं तो अस्थमा, दमा, श्वास आदि के रोग, गर्दन, नाक या सिर में दर्द भी होने लगता है
• इसके अलावा गुरु की राहु, शनि और बुध के साथ युति अनुसार भी बीमारियां होती हैं, जैसे- पेचिश, रीढ़ की हड्डी में दर्द, कब्ज, रक्त विकार, कानदर्द, पेट फूलना, जिगर में खराबी आदि

_गुरु ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए_

• सफेद सरसों, दमयंती, गूलर और चमेली के फूल मिलाकर स्‍नान करने से आप पर गुरु के दुष्‍प्रभावों का असर बहुत कम होता है

● *शुक्र*

• शरीर में गाल, ठुड्डी और नसों से शुक्र का संबंध माना जाता है
• वीर्य की कमी हो जाती है। कोई यौन रोग हो सकता है या कामेच्छा समाप्त हो जाती है
• लगातार अंगूठे में दर्द 
• त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न होना
• अंतड़ियों के रोग
• गुर्दे में दर्द
• पांव में तकलीफ आदि

_शुक्र ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए_

• शुक्र को आपके वैवाहिक जीवन का कारक माना गया है। शुक्र को खुश रखने से आपका वैवाहिक जीवन सदैव खुशहाल रहता है। इसके लिए बस आपको अपने स्‍नान के जल में जायफल, मैनसिल, केसर, इलाइची और मूली के बीज मिलाकर नहाना होगा। ऐसा करने से शुक्र ग्रह के दुष्‍प्रभाव दूर हो सकते हैं।

● *शनि*

• शनि का संबंध मुख्‍य रूप से दृष्टि, बाल, भौंह और कनपटी से होता है
• समय पूर्व आंखें कमजोर होने लगती हैं और भौंह के बाल झड़ जाते हैं
• कनपटी की नसों में दर्द बना रहता है
• सिर के बाल समय पूर्व ही झड़ जाते हैं
• सांस लेने में तकलीफ
• हड्डियों की कमजोरी के कारण जोड़ों का दर्द पैदा हो जाता है
• रक्त की कमी
• पेट संबंधी रोग या पेट का फूलना
• सिर की नसों में तनाव
• अनावश्यक चिंता और घबराहट का बढ़ना 

_शनि ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए_

• शनि को न्‍याय के देवता का सम्‍मान प्राप्‍त है। यह व्‍यक्ति को उसके कर्म के अनुरूप परिणाम देते हैं। अत: हमको अपने कर्म तो दुरुस्‍त रखने ही चाहिए साथ ही कुछ विशेष चीजों को स्‍नान के जल में मिलाकर नहाने से आप शनि के दुष्‍प्रभावों से दूर रह सकते हैं। इन चीजों में सरसों, काले तिल, सौंफ, लोबान, सुरमा, काजल आदि शामिल हैं। 

● *राहु*

• गैस की परेशानी
• बाल झड़ना
• पेट के रोग
• बवासीर
• पागलपन
• निरंतर मानसिक तनाव
• नाखूनों का टूटना

_राहु ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए_

• इसके लिए आप स्‍नान औषधि के रूप में लोबान, कस्‍तूरी, गजदंत आदि सामग्री से मिश्रित जल से स्‍नान करके राहु की पीड़ा को दूर कर सकते हैं।

● *केतु*
• संतान उत्पति में रुकावट
• सिर के बाल का झड़ना
• शरीर की नसों में कमजोरी
 • चर्म रोग होना
• कान खराब होना या सुनने की क्षमता कमजोर पड़ना
• कान, रीढ़, घुटने, लिंग, जोड़ आदि में समस्या

_केतु ग्रह की पीड़ा के निवारण के लिए_

• लाल चंदन और छाग मूत्र मिश्रित जल से स्‍नान करके आप केतु के दुष्‍प्रभावों को अपने आप खत्‍म कर देंगे।

यदि अज्ञानवश कोई त्रुटि हो तो कृप्या अवगत कराते हुए क्षमा करें l

Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti guna
9893946810

अखंड रामायण पूजा सामग्री

हल्दीः--------------------------50 ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------------10गोले ग
३】अगरबत्ती---------------     1 पैकिट
४】कपूर---------------------   50 ग्राम
५】कच्चा सूत----------------  3 पिंडी
६】चंदन पेस्ट ------------------ 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत -----------------   1 मुुठा
८】चावल------------------- 5 किलो
९】अबीर----------------------50 ग्राम
१०】गुलाल-10 0ग्राम,{पांच प्रकार की 
११】अभ्रक--------------100 ग्राम
१२】सिंदूर --------------------100 ग्राम
१३】रोली, --------------------50ग्राम
१४】सुपारी, ( बड़ी)--------  200 ग्राम
१५】नारियल ----------------- 5 नग्
१६】सरसो पीली---------------50 ग्राम
१७】पंच मेवा---,100 ग्राम 
१८】शहद (मधु)--------------- 100 ग्राम
१९】शकर-----------------------0 1किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)------------  01किलो
२१】इलायची (छोटी)-----------10ग्राम
२२】लौंग मौली-------------------10ग्राम
२३】इत्र की शीशी----------------1 नग्
२४】रंग लाल----------------------20ग्राम
२५】रंग काला --------------------20ग्राम
२६】रंग हरा -----------------------20ग्राम
२७】रंग पिला ---------------------20ग्राम
२८】नागफनी कील-------------4 नग 
२९】धुप बत्ती ------------------1 पैकिट
30】तिल का तेल -----------50 ग्राम
(31)दाख {बड़ी}-------------50 ग्राम
32】आँवला -------------------50ग्राम
(32)मूँग बडी------------------200ग्राम
(33)पापाड़थेली----------------01थैली
 ( 34)  पच रंगा ध्वजा -------- १नग
(34) नारियल गोला ---------1 नग 
(35)नवग्रह समिधा -----1पेकिट
(36) तिली ------1 किलो
(37)चावल_-----500साबुत वाले 
(38) जो -------200 ग्राम
(39)हवन सामग्री पेकिट ------1 किलो
(40) समिधा हवन के लिए 10 किलो
(41) कपड़ा पीला -----2 मीटर
(42)कपड़ा लाल  -------1 मीटर
(43)कपड़ा सफेद ----- 1 मीटर

तत्काल लेने वाले रामायण पूजा सामग्री लिस्ट

  • मिष्ठान 500 ग्राम
  • गुलाब/गेंदा का खुला हुआ फूल 500 ग्राम
  • तुलसी का पौधा 1 पीस
  • तुलसी की पत्ती 5 पीस
  • दूध 1 लीटर
  • दही 100 ग्राम
  • पान के पत्ते (समूचे) 21 पीस
  • फूल, हार (गुलाब) की 2 माला
  • फूल, हार (गेंदे) की 2 माला
  • केले के पत्ते 5 पीस
  • आम के पत्ते  
  • ऋतु फल 5 प्रकार के
  • दूब घास 50 ग्राम

घर से लेने वाले रामायण पूजन सामग्री लिस्ट

  • आटा 100 ग्राम
  • चीनी 500 ग्राम
  • थाली 2 पीस
  • लोटे 2 पीस
  • कटोरी 4 पीस
  • चम्मच 2 पीस
  • परात 2 पीस
  • कैंची /चाकू (लड़ी काटने हेतु ) 1 पीस
  • पचरंगा ध्वजा हेतु बांस (छोटा/ बड़ा) 1 पीस
  • अखंड दीपक (ढक्कन समेत) 1 पीस
  • तांबे/पीतल का कलश (ढक्कन समेत) 1 पीस
  • जल (पूजन हेतु), गाय का गोबर, मिट्टी बिछाने का आसन

Wednesday, 14 February 2024

अंग स्पर्स फल

★★★अंगस्पर्श फल ★★★

√●शुभ = हृदय, मांगलिक वस्तुएँ (शंख, दूर्वा, अक्षत, पुष्प, फल, चन्दन, रोली, सिंदूर, दधि, गोबर, कलश, पल्लव)। 

√●अशुभ = ग्रीवा, पीठ, पेट, रोम, केश, करतल, पादतल, नाभि, गुप्तांग, दाँत, मुख, स्तन, नासिका, नाखून, अंगुलिपर्व, सभी संधिस्थल (कलाई, किहुनी, काँख, कटि, घुटना, टखना), सभी छिद्र स्थान (चक्षुगोलक, कर्ण विवर, नासारन्ध्र, स्तनद्वय, नाभि, मुखद्वार, पायु, उपस्थ) अनामिका अंगुली, पादांगुष्ठ वा पञ्जा, सभी अमांगलिक वस्तुएँ (भस्म, तृण, शुष्क पत्र, शुष्क पुष्प, शुष्क फल, शुष्क गोबर, धूक, कफ, स्वेद (पसीना), कर्णमल, चक्षुमल, आँसू, लार, लकड़ी (काष्ठ), कुधान्य, जूँठा बासी दुर्गन्धयुक्त खाद्य पदार्थ)।

√●जब प्रश्न पूछने वाला ज्ञानीपुरुष के सम्मुख आता है तो उस के द्वारा अपने अंगों वा अन्य वस्तुओं के स्पर्श करने पर उसके शुभाशुभ फल का कथन तत्काल करना चहिये।

★★★स्थिति विचार फल★★★

√★ आते हुए प्रष्टा का- 
√★वायाँ पैर आगे हो तो, शुभ। 
√★दायाँ पैर आगे हो तो, अशुभ। 
√★बैठने पर पैर हिलता हो तो, अशुभ।
√★ स्थिर हो कर बैठा हो तो, शुभ। 
√★सुन्दर एवं ऊँचे आसन पर सुख पूर्वक विराजमान हो तो, शुभ। 
√★आसन से उठे, फिर न बैठे अथवा खड़े-खड़े प्रश्न करता हुआ बैठ जाय तो शुभ। 
√★पृच्छक दिखलाई देने पर रुक रुक कर आवे तो जितनी बार रुक रुक कर आता वा पैर रखता है, उतने दिन में कार्य सिद्ध होता है।

★★★दिशा विचार फल ★★★

√●१-किसी भी दिशा में प्रष्टा के बैठने पर पुरुष के बारे में प्रश्न शुभंकर होता है। 

√●२- कोणों में बैठे होन पर स्त्री के विषय में प्रश्न शुभफलद होता है। 

√●३- दक्षिण दिशा में बैठने वा मुँह करने पर आयु के प्रश्न में फल अशुभ होता है।

★★★चेष्टा विचार फल★★★

√● १- प्रष्टा हाथों को हिलाता हुआ, मसलता हुआ, तिरछा मुँह किये बैठा हो, अपना प्रश्न भूल जाय तो उसकी इच्छा नष्ट हो जाती है। 

√●२- अपने अंग वा किसी अन्य पदार्थ पर जोर से प्रहार करना शीघ्र मृत्युदायक है। 

√●३- विनाश के लक्षण सुनना, देखना, सोचना भी मृत्युप्रद है। 

√●४. लेटे हुए खुले बाल, अपवित्र अवस्था (जूठे मुँह, स्नान रहित, मलिन दुर्गन्ध युक्त अंग वस्त्रादि युक्त) में, रोते हुए, आने में रुकते हुए, सिर मुड़ाए हुए, नग्न, लँगोटी मात्र पहने हुए, किसी वस्तु में छिद्र करते हुए, तिनका / काष्ठादि तोड़ते हुए, निन्दा करते हुए, अपशब्द करते हुए, घबराए हुए, दयनीय दशा में, म्लान मुख, हवन करते हुए, सिर खुजलाते हुए, आँख मलते हुए, नाक / कान / मुख में अंगुली डालते हुए, लड़खड़ाते हुए, काँपते हुए, हाथ / पैर बंधे हुए, होने पर प्रश्न विचार का फल अशुभ होता है। 

√●५- नाखून से लिखते हुए, बाहर निकाले जाते हुए, अन्दर जाने में रोके जाते हुए, उबटन लगाए हुए, भस्म लगाये हुए, हड्डी / लोहादि मलिनाभूषण धारण किये हुए, रोगगस्त, कपड़े से गर्दन लपेटे हुए, मनिनवेश युक्त, केश विखराए हुए, रूखी और अनिष्ट बातें कहते हुए, प्रेतों को पिण्डदान देते समय प्रश्न करना अशुभ होता है। 

√●६- शल्य उपकरण (चाकू कैंची सूई), खड्ङ्ग, भाला, तीर, मांस, जाल, भूसा, भूसी, पंख, पत्ता, खाल लिये हुए तथा सींग लिये हुए, घावयुक्त, बेचैनी में, झाडू लिये हुए, प्रेत-पुष्प, सूप, रस्सी, मुसल लिये हुए, बभुक्षित दैवज्ञ वा प्रश्न कर्ता हो तो प्रश्न फल का विचार न करना। फल अशुभ होता है।

★★★भाव विचार फल ★★★

√●१- शोक, क्रोध, क्षोभ, रोष तथा अन्यमनस्कता से युक्त प्रष्टा को अशुभ फल मिलता है। 

√●२- सुन्दर, कुलीन, विनयशील, स्वस्थ, प्रसन्नचित्त दूत हो तो शुभ फल मिलता है।

★★★दर्शन विचार फल★★★

√● १- आँख बन्द करते हुए, मांगालिक पदार्थों की ओर दृष्टि डाले हुए, ऊपर-नीचे दृष्टि न करते हुए, इधर-उधर न ताकते हुए, अर्धमुदित नेत्र वाले प्रष्टा का अभीष्ट सिद्ध होता है। 

√◆२. इसके विपरीत टकटकी लगाते हुए, पूरते हुए, चपल दृष्टि प्रष्टा का मनोरथ नष्ट होता है और दुःख मिलता है। 

√●३- आँख मुलमुलाते हुए, तिरछी दृष्टि डालते हुए प्रष्टा का प्रश्न विफल होता है।

★★★वस्त्राभूषण विचार फल ★★★

√●१- जल से भोगे, तैलीय, फटे, मैले, लाल वा नीले काले कपड़े पहले हुए, लाल फूलों को धारण किये हुए प्रष्टा को दुःख मिलता है। 

√●२- श्वेत वस्त्र, सुगन्धित शुभ्र एवं शोभादायक अनुलेप वा आभूषण पहने हुए प्रष्टा का कल्याण होता है। 

√●३- सिर पर पगड़ी, पैर में खड़ाऊँ / उपानह, ललाट पर चन्दन धारण किये हुए अंगवस्त्र युक्त प्रष्टा का प्रश्न शुभप्रद होता है। है। 

√●४- सिर पर छाता लगाये हुए, हाथ में छड़ी लिये हुए आते हुए प्रसन्नचित्त प्रष्टा को शुभ फल मिलता है।

★★★वाणी विचार फल★★★

√● १- तुतलाता हुआ, रुक-रुक बोलता हुआ, सोच-सोच कर बोलता हुआ, विखण्डित एवं अशुद्ध वाक्यों से युक्त प्रष्टा अशुभ फल पाता है। 

√●२- शुद्ध उच्चारण वाला, बिना झिझक बोलता हुआ प्रष्टा शुभ फल पाता है।

★★★शकुन फल ★★★

√●श्रव्य दृश्य घटना का नाम शकुन है। इस का कारक प्रकृति है। यह शकुन प्रकृति को क्रियात्मक वा लाक्षणिक भाषा है। इसका अर्थ लोक व्यवहार के अनुसार लिया जाता है। जो भविष्य वक्त्री प्रकृति के इस क्रिया कलाप को जानता है, वह भविष्य वक्ता है। ये अशुभ शकुन हैं जो कार्य नाशक हैं- 

√●१- हाहाकार शब्द। पूजित वृक्ष या ध्वज का कटना / गिरना। कपड़ा, छाता, जूते का फटना / विध्वंस / उपद्रव वा कोलाहल। हिंसाजन्य चीत्कार। क्रूर पशु पक्षियों का बोलना। दीपक का बुझना। भरे घड़े का गिरना। वस्तु का टूटना / फूटना । 

√●२- बातचीत में भयानक जीवों की चर्चा प्रशस्त होती है। इन को देखना, आवाज सुनना अच्छा नहीं होता । 

√●३- बन्दर / रीछ को देखना, बोली सुनना प्रशस्त होता है। बातचीत में इनका (बन्दर, रीछ) नाम लेना अशुभ होता है। 

√●४- प्रश्न समय हाथी, घोड़ा, बैल का शब्द / दर्शन हो तो प्रश्न कर्ता का अभीष्ट लाभ होता है। 

√●५- वीणा, बाँसुरी, मृदंग, तबला, सारंगी, शंख, पटह, भेरी का घोष तथा स्त्रियों का मंगलगीत प्रश्न में शुभ हाता है। 

√●६- ये शुभ शकुन कार्य साधक हैं- 

√●६क- वेश्या, दही, अक्षत, गन्ना (ईख), दूब घास, चन्दन, कलश, पुष्प, माला, फल, कंन्या, घण्टा, दीपक, कमल ।

√●६ख- छत्र, तोरण, सुन्दर वाहन (गाड़ी) स्तोत्रपाठ, वेदध्वनि, बँधा हुआ एक पशु, बैल / गाय, सवत्सा सुवर्ण घेनु, खाद्य वस्तु, खोद कर लाई हुई मिट्टी। 

√●६ग- शिशु को स्तन पान कराती हुई स्वी, सजी सँवरी सुहागिन, कूएँ वा नल से पानी भरती स्त्री, शिष्ट व्यक्ति, विप्र । 

√●६घ. कर्णप्रिय, नेत्रप्रिय, रसना प्रिय, त्वप्रिय, घ्राणप्रिय अर्थात् श्रवणीय, दर्शनीय, पानीय (आस्वादनीय), स्पर्शणीय (कोमल), सुगन्धित वस्तुएँ। 

√●७- घर से निकलते समय व्यक्ति के साथ कपड़ा चला जाय, हाथ में लिया हुआ छाता / दण्ड / छड़ी / शस्त्र गिर जाय तो अशुभ होता है। 

√●८- आओ, न जाओ, लौटो, रुको, अन्दर आओ, कहाँ जा रहे हो ? आदि वाक्य प्रस्थान के समय बोलना, सुनना निश्चित रूप से अशुभ होता है। 

√●९- घर से निर्गमन समय पत्थर आदि से पैर फिसलना, खम्भा से सिर टकराना हो तो नेष्ट / अशुभ होता है।

★★★मार्ग में होने वाले अशुभ शकुन★★★

√● १- कपास । औषधि। कृष्णधान्य। नमक। जाल। शस्त्र (हिंसार्थ प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तु)। भस्म। छाछ (मट्ठा)। सर्प । दुर्गन्धित वस्तु । मल्। छर्दि (वमन / उल्टी)। भूला भटका, आपत्तिग्रस्त, पागल, अन्धा, बहरा, विकलांग, नपुंस्क व्यक्ति । संन्यासी । अरुचिकर तथा मन को खिन्न करने वाली वस्तुएँ। घटनाएँ। 

√◆२- बिल्ली, नेवला, बन्दर, सर्प द्वारा रास्ता काटना अशुभ है। 

√●३- ईंधन, पत्थर, तृण, कण्डा, कूड़ाकर्कट रास्ते में पड़े हों तो अशुभ है।

★★★मार्ग में होने वाले शुभ शकुन ★★★

√●१- मांस। शराब । शहद । घी। चन्दन। घुला वस्त्र। रत्न। हाथी। पक्षी। घोड़ा। वृषभ। राजा । विप्र । विद्वान् । धनी । देवमूर्ति। शुभ्रचामर (व्यञ्जन)। मधुर एवं स्निग्ध भोजन। शवं। ब्राह्मण। गाय। प्रज्ज्वलित अग्नि। नेवला । मेढा । मयूर । सिंह। चाष पक्षी। स्त्री पुरुष का जोड़ा। कुंन्या। जलपूर्ण पात्र । ये सभी अभीष्ट फलदायक हैं। 

√●२- प्रदक्षिण क्रम से जाते हुए पशु, पक्षी शुभ हैं। किन्तु कुत्ता, गीदड़। (सियार) अशुभ हैं। 

√●३- विषम संख्या में हिरण शुभ। हैं। प्रातः काल इनका दर्शन शुभ है।

√● ४- कुत्ता, कौवा, बकरा, मृग, हाथी- ये बायीं ओर जाते हुए (वामावर्त क्रम) में शुभ हैं। प्रदक्षिण क्रम में ये ही अशुभ हैं।

★★★अशुभ शकुन का निराकरण★★★

√● १- पहला अपशकुन होने पर ११ प्राणायाम करे। 

√●२- दूसर अपशकुन होने पर १६ प्राणायाम करे। 

√●३- तीसरा अपशकुन होने पर यात्रा स्थागित कर दे।

★★★दीपशिखा विचार फल ★★★

√●पूर्वाभिमुख - अभीष्ट दायक। आग्नेय कोण में अग्निभय । 

√●दक्षिणाभिमुख - प्राण नाशक । नैर्भृत्य कोण में विस्मृति कारक ।

√●पश्चिमाभिमुख - शान्तिदायक। वायव्य कोण में सम्पत्तिनाशक । 

√●उत्तराभिमुख - जीवन दायक। ईशानकोण में कल्याण कारक । 

√●अग्नि को ऊँची शिखा स्वास्थ्य एवं मनोवञ्छित वस्तुएँ देती है।

Friday, 9 February 2024

छिपकली गिरने का फल

शरीर पर छिपकली या गिरगिट गिरने का फल-

सिर पर गिरे बहुत सुख पावै।
                    औ ललाट ऐश्वर्य बढावै।।
कण्ठ मिलावै फिर को लाई।
                  कांधे पड़े विजय हो जाई।।
जुगल कान जो जुगल भूजाहू।
                    गोधा गिरे होय धन लाहू ।।
हाथन ऊपर जो कहु परई।
                संपत्ति सकल गेह में भरई ।।
निश्चय पीठ परै सुख लावै ।
                कांख गिरे प्रिय बंधु दिखावै ।।
कटि के परै वस्त्र बहुत रंगा।
                 गुदा परै मिल मित्र अभंगा ।।
जुगल जांघ पर आन जो परई।
                 धन इन सकल मनोरथ सरई ।।
जांघ परै नर होइ निरोगी ।
                 पर्व परै तन जीव वियोगी।।
यहि विधि पल्ली सरट विचारा ।
               भड्डर कहते ज्योतिष सारा ।।

Thursday, 8 February 2024

ग्रह केसे काम करते है

ग्रहा राज्यं प्रयच्छन्ति ग्रहा राज्यं हरन्ति च ।
ग्रहैर्व्याप्तमिदं   सर्वं  त्रैलोक्यं   सचराचरं  ।।
          यह सम्पूर्ण जगत ग्रहों के अधीन है ।ग्रह मनुष्य को राजा भी बना देते हैं और भिखारी भी अतः ग्रह सदैव पूजनीय हैं ।जो मनुष्य ग्रहों की पूजा करता है वह इस संसार में तो सुख प्राप्त करता ही है अपितु परलोक में भी सुखी रहता है ।
         जो मनुष्य अज्ञानता वश ज्योतिष को नहीं मानते हैं वे कूप में पडे हुए मेढक की भांति होते हैं जिन्हें पूरा संसार उस कुंए में ही दिखाई देता है ।