ज्योतिष समाधान
Monday, 29 August 2016
क्या आप जानते है की भगवान का परम भक्त नन्दी जी केबारे में
Sunday, 28 August 2016
क्या आप जानना चाहेंगे भगबान श्री राम की बंशाबलि
भगवान श्री राम जी के वंश के बारे भगवान श्री राम जी केवंश के बारे में बताता हूँ | ब्रह्मा जी की उन्चालिसवी पीढ़ी में भगवाम श्री राम का जन्म हुआ था | हिंदू धर्म में श्री राम को श्री हरि विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है |
वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे – इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त,करुष, महाबली, शर्याति और पृषध |
श्री राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था और जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे |
मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए | इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र, रोहित, वृष, बाहु और सगरतक पहुँची |
इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी | रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठ जी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है :-
1 】– ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 】– मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 】– कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 】– विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
5】 – वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
6 】– इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7】 – कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 】– विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 】– बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10】- अनरण्य से पृथु हुए,
11】- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12】- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13】- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14】- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15】- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16】- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17】- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18】- भरत के पुत्र असित हुए,
19】- असित के पुत्र सगर हुए,
20】- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21】- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22】- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23】- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24】- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है |
25】- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26】- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27】- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28】- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29】- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30】- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31】- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32】- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33】- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34】- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35】- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36】- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37】- अज के पुत्र दशरथ हुए,
38】- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए | इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ |
बाल्मीक जी के विभीषण और त्रिजटा।
बाल्मीकि में रावण की माँ के आशुओँ को सुखेन बैध ने दवा में मिलाया
ऋग बैद में सीता जी है क़्रषको की माता
सुपनखा ने रावण से लिया बदला
लंका में सीता जी को भूख क्यों नही लगी
जटायु जी के पिता कौन थे
राम लछमन भरत स्त्रुघ्न जी का अलग अलग जन्म दिन
जिन स्त्रियों में हों ऐसे लक्षण
जिन स्त्रियों में हों ऐसे लक्षण उन्हें शास्त्रों में शुभ नहीं माना गया है- स्त्री को हमारे ग्रंथों में लक्ष्मी कहा गया है। ज्योतिष के ग्रंथों में भी स्त्रियों के स्वभाव और उनके भविष्य से जुड़ी बातों के बारे में रोचक वर्णन मिलता है। प्रसिद्ध ग्रंथ बृहद संहिता में स्त्रियों के दो प्रकार बताए गए है शुभ लक्षणा और अशुभ लक्षणा।शुभ लक्षणा को साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। वहीं अशुभ लक्षणा को अलक्ष्मी कहा जा सकता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं स्त्रियों के कुछ ऐसे ही शारीरिक लक्षणों के बारे में जिन्हें इस ग्रंथ में शुभ नही माना गया है- कनिष्ठिका वा तदनन्तरा वा महीं न यस्या: स्पृशति स्त्रिया: स्यात्। गताथवङ्गुष्ठमतीत्य यस्या: प्रदेशिनी सा कुलटातिपापा।। स्त्री के पैर की सबसे छोटी या उसके बराबर वाली अंगुली भूमि पर न टिकती हो या अंगूठे के बराबर वाली अंगुली, अंगूठे से बहुत लंबी हो तो ऐसी स्त्री का चरित्र परिस्थिति के अनुसार बदल सकता है। ऐसी महिलाएं नियंत्रण मेंं न रहने वाली, पाप करने वाली और गुस्सैल स्वभाव की होती हैं। जिस स्त्री की पिण्डली का पिछला भाग मोटा हो, बहुत ऊपर की ओर चढ़ा हुआ सा हो साथ ही नसें उभरी हों तो ऐसी स्त्रियों को शुभ नहीं माना जाता है।यदि यह भाग मांसहीन, सूखा सा हो, पिण्डली पर बहुत रोम हों तो ऐसी स्त्री बहुत दु:ख पाती है। गुहा भाग के बाल वामावर्त रोमों से युक्त हो या यह भाग दबा हुआ सा हो तो अशुभ होता है। यदि पेट घड़े के समान हो तो जीवन में हमेशा दरिद्रता बनी रहती है। पेट पतला, लंबा या गड्ढेदार हो तब भी अच्छा नही माना जाता है- प्रविलम्बिनि देवरं ललाटे, श्वसुर हन्त्युदरे स्फिजो: पतिं च। अतिरोमचयाान्वितोत्तरोष्ठी, न शुभा भर्तुरतीव या च दीर्घा।। किसी महिला का माथा यदि लंबा हो तो देवर के लिए, पेट लंबा हो तो ससुर के लिए, कमर के नीचे वाला हिस्सा भारी हो तो पति के लिए अनिष्टकारक होता है। मूंछों के स्थान पर बहुत रोएं हो या स्त्री का कद बहुत लंबा हो तो पति के लिए शुभ नहीं होता है। स्त्री के कान रोएंदार हों, मैले हों असमान आकार के हों तो हमेशा क्लेश रहता है। दांत, मोटे चौड़े या बहुत लंबे हों, बाहर निकले हों तो जीवन में हमेशा दुख रहता है। काले मसूड़ों वाली महिलाओं का भाग्य उनका अधिक साथ नही देता है- क्रव्यादरूपैर्वृककाकङ्सरीसृपोलूकसमानचिन्है:। शुष्कै: शिरालैर्विषमैश्च हस्तैर्भवन्ति नार्य सुखवित्तहीना:।। किसी स्त्री की हथेली पर मांसभक्षी पक्षी का चिन्ह हो, भेडिय़ा, कौआ, सांप, उल्लू जैसा चिन्ह हों तो वह स्त्री दुख देने वाली होती है- हथेलियां चपटी मांसहीन हों व नसें ज्यादा उभरी हुुई हों तो उन्हें अच्छा नहीं माना जाता है। दोनों हथेलियों के आकार में अंतर हो तो ऐसी महिलाएं सुख और धन से हीन होती हैं- नेत्रे यस्या: केकरे पिङ्गले वा सा दु:शीला श्यामलेक्षणा च। कूपौ यस्या गण्डयोश्च स्मितेषु नि:सन्दिग्धं बंधकी तां वदन्ति।। जिस महिला की आंखें डरी हुई सी, पीली हों वह बुरे स्वभाव वाली होती है। जबकि चंचल और स्लेटी रंग की आंखों को भी शुभ नहीं माना जाता है। हंसते समय जिस स्त्री के गालों पर गड्ढे पड़ते हों उसका चरित्र बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है- ह्स्वयातिनि:स्वता दीर्घया कुलक्षय:। ग्रीवया पृथूत्थया योषित: प्रचण्डता।। किसी स्त्री की गर्दन छोटी हो तो वह जीवनभर दूसरों पर निर्भर रहती है। वह अपना कोई भी निर्णय स्वयं नहीं ले पाती। वहीं 4 अंगुल से अधिक लंबी गर्दन वाली स्त्री वंश का नाश करने वाली होती है। यदि गर्दन बहुत मोटी हो तो उसे शुभ नही माना जाती है। गर्दन चपटी हो तो ऐसी स्त्री का स्वभाव प्रचण्ड यानी गुस्सैल और जिद्दी होता है- (हिन्दू शास्त्रो में देवी के समान नारी के बारे में कुछ जानकारी लिखी गई है। बाबा महाकाल की नगरी से आई खबर को हम ज्यों की त्यों प्रकाशित कर रहे है। इस खबर से हमारा कोई लेना देना नहीं है।)
Saturday, 27 August 2016
रामायण में महाभारत के चार पात्र
1】जामबंत जी ने क्रष्ण अवतार में भगवान क्रष्ण से युध्द करने के बाद अपनी बेटी का बिबाह किया
2. 】हनुमानजी
रामायण में श्रीराम के कार्यों को पूरा करने में हनुमानजी ने भी खास भूमिका निभाई थी, इसी वजह से श्रीराम ने हनुमानजी को अपने भाई भरत के समान प्रिय माना है। हनुमान चालीसा में लिखा है कि- रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।। इस चौपाई का अर्थ यह है कि श्रीराम ने हनुमानजी की प्रशंसा की और कहा कि मेरे भाई भरत के समान ही तुम भी मुझे प्रिय हो। हनुमानजी का उल्लेख महाभारत काल में भी मिलता है। द्वापर युग में जिस समय पांडवों का वनवास काल चल रहा था, उस समय भीम को अपनी ताकत पर घमंड हो गया था। भीम के घमंड को तोड़ने के लिए वृद्ध वानर के रूप में हनुमानजी भीम से मिले थे। हनुमानजी को पवन पुत्र भी कहा जाता है और भीम भी पवन देव के ही पुत्र हैं। इस कारण मान्यता है कि हनुमानजी और भीम भाई-भाई हैं।
3. 】परशुराम
परशुराम भी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। त्रेता युग में सीता के स्वयंवर में रखा गया शिवजी का धनुष श्रीराम ने तोड़ दिया था, तब परशुराम क्रोधित हो गए थे। क्रोधित होकर वे श्रीराम के पास पहुंचे और जब उन्हें ये मालूम हुआ कि श्रीराम भी विष्णु के ही अवतार हैं तो वे वहां से लौट गए। महाभारत काल में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण के गुरु परशुराम ही थे। परशुराम और भीष्म पितामह के बीच युद्ध भी हुआ था, जिसमें भीष्म जीत गए थे।
4. 】मयासुर
रामायण में रावण की पत्नी मंदोदरी के पिता मयासुर थे। मयासुर ज्योतिष तथा वास्तु के जानकार थे। महाभारत में युधिष्ठिर के सभा भवन का निर्माण मयासुर ने ही किया था। इस सभा भवन का नाम मयसभा रखा गया था। मयसभा बहुत ही सुंदर और विशाल भवन था। इसे देखकर दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या करने लगा था। ऐसा माना जाता है कि इसी ईर्ष्या के कारण महाभारत युद्ध के योग बने।
रामायण में महाभारत के चार पात्र
1】जामबंत जी ने क्रष्ण अवतार में भगवान क्रष्ण से युध्द करने के बाद अपनी बेटी का बिबाह किया
2. 】हनुमानजी
रामायण में श्रीराम के कार्यों को पूरा करने में हनुमानजी ने भी खास भूमिका निभाई थी, इसी वजह से श्रीराम ने हनुमानजी को अपने भाई भरत के समान प्रिय माना है। हनुमान चालीसा में लिखा है कि- रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।। इस चौपाई का अर्थ यह है कि श्रीराम ने हनुमानजी की प्रशंसा की और कहा कि मेरे भाई भरत के समान ही तुम भी मुझे प्रिय हो। हनुमानजी का उल्लेख महाभारत काल में भी मिलता है। द्वापर युग में जिस समय पांडवों का वनवास काल चल रहा था, उस समय भीम को अपनी ताकत पर घमंड हो गया था। भीम के घमंड को तोड़ने के लिए वृद्ध वानर के रूप में हनुमानजी भीम से मिले थे। हनुमानजी को पवन पुत्र भी कहा जाता है और भीम भी पवन देव के ही पुत्र हैं। इस कारण मान्यता है कि हनुमानजी और भीम भाई-भाई हैं।
3. 】परशुराम
परशुराम भी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। त्रेता युग में सीता के स्वयंवर में रखा गया शिवजी का धनुष श्रीराम ने तोड़ दिया था, तब परशुराम क्रोधित हो गए थे। क्रोधित होकर वे श्रीराम के पास पहुंचे और जब उन्हें ये मालूम हुआ कि श्रीराम भी विष्णु के ही अवतार हैं तो वे वहां से लौट गए। महाभारत काल में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण के गुरु परशुराम ही थे। परशुराम और भीष्म पितामह के बीच युद्ध भी हुआ था, जिसमें भीष्म जीत गए थे।
4. 】मयासुर
रामायण में रावण की पत्नी मंदोदरी के पिता मयासुर थे। मयासुर ज्योतिष तथा वास्तु के जानकार थे। महाभारत में युधिष्ठिर के सभा भवन का निर्माण मयासुर ने ही किया था। इस सभा भवन का नाम मयसभा रखा गया था। मयसभा बहुत ही सुंदर और विशाल भवन था। इसे देखकर दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या करने लगा था। ऐसा माना जाता है कि इसी ईर्ष्या के कारण महाभारत युद्ध के योग बने।
14 वर्ष के वनवास में राम कहां-कहां रहे?…
जानिए ताड़का का वध क्यों किया था श्रीराम ने
रामायण के प्रमख पात्र और उनका परिचय
रामायण के प्रमुख पात्र और उनका परिचय ...
१】 दशरथ – रघुवंशी राजा इन्द्र के मित्र कौशल के राजा तथा राजधानी एवं निवास अयोध्या
२】कौशल्या – दशरथ की बड़ी रानी,राम की माता
३】सुमित्रा - दशरथ की मंझली रानी,लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न की माता
४】कैकयी -दशरथ की छोटी रानी, भरत की माता
५】सीता – जनकपुत्री,राम की पत्नी
६】उर्मिला – जनकपुत्री, लक्ष्मण की पत्नी
७】मांडवी – जनक के भाई कुशध्वज कीपुत्री,भरत की पत्नी
८】श्रुतकीर्ति - जनक के भाई कुशध्वज पुत्री,शत्रुघ्न की पत्नी
९】राम – दशरथ तथा कौशल्या के पुत्र, सीता के पति
१०】लक्ष्मण - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र,उर्मिला के पति
११】भरत – दशरथ तथा कैकयी के पुत्र,मांडवी के पति
१२】शत्रुघ्न - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्रश्रुतकीर्ति के पति,मथुरा के राजा लवणासूर के संहारक
१३】शान्ता – दशरथ की पुत्री,राम भगिनी
१४】बाली – किष्किन्धा (पंपापुर) का राजा,रावण का मित्र तथा साढ़ू,साठ हजार हाथियों का बल
१५】सुग्रीव – बाली का छोटा भाई,जिनकी हनुमान जी ने मित्रता करवाई
१६】तारा – बाली की पत्नी,अंगद की माता, पंचकन्याओं में स्थान
१७】रुमा – सुग्रीव की पत्नी,सुषेण वैद्य की बेटी
१८】अंगद – बाली तथा तारा का पुत्र ।
१९】रावण – ऋषि पुलस्त्य का पौत्र, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा का पुत्र
२०】कुंभकर्ण – रावण तथा कुंभिनसी का भाई, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा का पुत्र
२१】कुंभिनसी – रावण तथा कुुंंभकर्ण की भगिनी,विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा की पुत्री
२२】विश्रवा - ऋषि पुलस्त्य का पुत्र, पुष्पोत्कटा-राका-मालिनी का पति
२३】विभीषण – विश्रवा तथा राका का पुत्र,राम का भक्त
२४】पुष्पोत्कटा – विश्रवा की पत्नी,रावण, कुंभकर्ण तथा कुंभिनसी की माता
२५】राका – विश्रवा की पत्नी,विभीषण की माता
२६】मालिनी - विश्रवा की तीसरी पत्नी खर दूषण,त्रिसरा तथा शूर्पणखा की माता ।
२७】त्रिसरा – विश्रवा तथा मालिनी का पुत्र,खर-दूषण का भाई एवं सेनापति
२८】शूर्पणखा - विश्रवा तथा मालिनी की पुत्री, खर-दूषण एवं त्रिसरा की भगिनी,विंध्य क्षेत्र में निवास ।
२९】मंदोदरी – रावण की पत्नी,तारा की भगिनी, पंचकन्याओं में स्थान
३०】मेघनाद – रावण का पुत्र इंद्रजीत,लक्ष्मण द्वारा वध
३१】दधिमुख – सुग्रीव का मामा
३२】ताड़का – राक्षसी,मिथिला के वनों में निवास,राम द्वारा वध।
३३】मारिची – ताड़का का पुत्र,राम द्वारा वध (स्वर्ण मृग के रूप में)।
३४】सुबाहू – मारिची का साथी राक्षस,राम द्वारा वध।
३५】सुरसा – सर्पों की माता।
३६】त्रिजटा – अशोक वाटिका निवासिनी राक्षसी, रामभक्त,सीता से अनुराग।
३७】प्रहस्त – रावण का सेनापति,राम-रावण युद्ध में मृत्यु।
३८】विराध – दंडक वन में निवास,राम लक्ष्मण द्वारा मिलकर वध।
३९】शंभासुर – राक्षस, इन्द्र द्वारा वध, इसी से युद्ध करते समय कैकेई ने दशरथ को बचाया था तथा दशरथ ने वरदान देने को कहा।
४०】सिंहिका(लंकिनी) – लंका के निकट रहने वाली राक्षसी,छाया को पकड़कर खाती थी।
४१】कबंद – दण्डक वन का दैत्य,इन्द्र के प्रहार से इसका सर धड़ में घुस गया,बाहें बहुत लम्बी थी,राम-लक्ष्मण को पकड़ा राम-लक्ष्मण ने गड्ढा खोद कर उसमें गाड़ दिया।
४२】जामवंत – रीछ,रीछ सेना के सेनापति।
४३】नल – सुग्रीव की सेना का वानरवीर।
४४】नील – सुग्रीव का सेनापति जिसके स्पर्श से पत्थर पानी पर तैरते थे,सेतुबंध की रचना की थी।नल और नील – सुग्रीव सेना मे इंजीनियर व राम सेतु निर्माण में महान योगदान। (विश्व के प्रथम इंटरनेशनल हाईवे “रामसेतु”के आर्किटेक्ट इंजीनियर)
४५】शबरी – अस्पृश्य जाति की रामभक्त, मतंग ऋषि के आश्रम में राम-लक्ष्मण-सीता का आतिथ्य सत्कार।
४६】संपाती – जटायु का बड़ा भाई,वानरों को सीता का पता बताया।
४७】जटायु – रामभक्त पक्षी,रावण द्वारा वध, राम द्वारा अंतिम संस्कार।
४८】गुह – श्रंगवेरपुर के निषादों का राजा, राम का स्वागत किया था।
४९】हनुमान – पवन के पुत्र,राम भक्त,सुग्रीव के मित्र।
५०】सुषेण वैद्य – सुग्रीव के ससुर ।
५१】केवट – नाविक,राम-लक्ष्मण-सीता को गंगा पार कराई।
५२】शुक्र-सारण – रावण के मंत्री जो बंदर बनकर राम की सेना का भेद जानने गए।
५३】अगस्त्य – पहले आर्य ऋषि जिन्होंने विन्ध्याचल पर्वत पार किया था तथा दक्षिण भारत गए।
५४】गौतम – तपस्वी ऋषि,अहिल्या के पति,आश्रम मिथिला के निकट।
५५】अहिल्या - गौतम ऋषि की पत्नी,इन्द्र द्वारा छलित तथा पति द्वारा शापित,राम ने शाप मुक्त किया,पंचकन्याओं में स्थान।
५६】ऋण्यश्रंग – ऋषि जिन्होंने दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया था।
५७】सुतीक्ष्ण – अगस्त्य ऋषि के शिष्य,एक ऋषि।
५८】मतंग – ऋषि,पंपासुर के निकट आश्रम, यहीं शबरी भी रहती थी।
५९】वशिष्ठ – अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं के गुरु।
६०】विश्वामित्र – राजा गाधि के पुत्र,राम-लक्ष्मण को धनुर्विद्या सिखाई थी।
६१】शरभंग – एक ऋषि, चित्रकूट के पास आश्रम।
६२】सिद्धाश्रम – विश्वमित्र के आश्रम का नाम।
६३】भारद्वाज – वाल्मीकि के शिष्य,तमसा नदी पर क्रौंच पक्षी के वध के समय वाल्मीकि के साथ थे,मां-निषाद’ वाला श्लोक कंठाग्र कर तुरंत वाल्मीकि को सुनाया था।
६४】सतानन्द – राम के स्वागत को जनक के साथ जाने वाले ऋषि।
६५】युधाजित – भरत के मामा।
६६】जनक – मिथिला के राजा।
६७】सुमन्त – दशरथ के आठ मंत्रियों में से प्रधान ।
६८】 मंथरा – कैकयी की मुंह लगी दासी,कुबड़ी।
६९】देवराज – जनक के पूर्वज-जिनके पास परशुराम ने शंकर का धनुष सुनाभ (पिनाक) रख दिया था।
७०】मय दानव - रावण का ससुर और उसकी पत्नी मंदोदरी का पिता
७१】मायावी --मय दानव का पुत्र और रावण का साला, जिसका बालि ने वध किया था
७२】मारीच --रावण का मामा
७३】सुमाली --रावण का नाना
७४】माल्यवान --सुमाली का भाई, रावण का वयोवृद्ध मंत्री
७५】नारंतक - रावण का पुत्र,मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण रावण ने उसे सागर में प्रवाहित कर दिया था। रावण ने अकेले पड़ जाने के कारण युद्ध में उसकी सहायता ली थी।
७६】दधिबल - अंगद का पुत्र जिसने नारंतक का वध किया था। नारंतक शापित था कि उसका वध दधिबल ही करेगा।
७७】अयोध्या – राजा दशरथ के कौशल प्रदेश की राजधानी,बारह योजन लंबी तथा तीन योजन चौड़ी नगर के चारों ओर ऊंची व चौड़ी दीवारों व खाई थी,राजमहल से आठ सड़कें बराबर दूरी पर परकोटे तक जाती थी।