विद्वान लोग होरा शास्त्र को शुभ और अशुभ कर्म फल की प्राप्ति के लिये उपयोग करते हैं। लग्न और राशि के आधे भाग (१५ अंश) की होरा संज्ञा होती है.
सारांश:-
भदावरी ज्योतिष सूर्य की होरा राजसेवा के लिये उत्तम है।
चन्द्रमा की होरा सर्व कार्य सिद्ध करने के लिये शुभ है।
मंगल की होरा युद्ध, कलह, विवाद, लडाई झगडे के लिये
,बुध की होरा ज्ञानार्जन के लिये शुभ है।
गुरु की होरा विवाह के लिये,
शुक्र की होरा विदेशवास के लिये,
शनि की होरा धन और द्रव्य इकट्ठा करने के लिये शुभ है.
होरा मुहूर्त एवं राहुकाल विचार होरा मुहूर्त एवं राहुकाल विचार होरा मुहूर्त अचूक माने गए हैं।
इन मुहूर्तों में किया जाने वाला हर कार्य सिद्ध होता है।
सात ग्रहों के सात होरा- हैं, जो दिन रात के 24 घंटों में घूमकर मनुष्य को कार्य सिद्धि के लिए अशुभ समय में भी शुभ अवसर प्रदान करते हैं।
सात ग्रहों केसात होरा राज सेवा के लिएसूर्य का होरा
यात्रा के लिएशुक्र का होरा
ज्ञानार्जन के लिएबुध का होरा
सभी कार्यों की सिद्धि के लिएचंद्र का होरा
द्रव्य संग्रह के लिएशनि का होरा
विवाह के लिएगुरु का होरा
युद्ध, कलह और विवाद में विजय के लिएमंगल का होरा
प्रत्येक होरा एक घंटे का होता है। जिस दिन जो वार होता है, उस वार के सूर्योदय के समय 1 घंटे तक उसी वार का होरा रहता है
उसके बाद एक घंटे का दूसरा होरा उस वार से छठे वार का होता है।
इसी प्रकार दूसरे होरे के वार से छठे वार का होरा तीसरे घंटे तक रहता है।
इस क्रम से 24 घंटे में 24 होरा बीतने पर अगले वार के सूर्योदय के समय उसी (अगले) वार का होरा आ जाता है।
यहां प्रत्येक वार के 24 घंटों का होरा चक्र दिया गया है:
होरा चक्रम उदाहरण के लिए मान लें आज गुरुवार है और आज ही आपको कहीं जाना है।
ऊपर बताया गया है कि शुक्र का होरा यात्रा के लिए श्रेष्ठ होता है।
अतः मालूम करना है कि आज गुरुवार को शुक्र का होरा किस-किस समय रहेगा।
चक्र में गुरुवार के सामने वाले खाने में देखें तो पाएंगे कि चैथे और ग्यारहवें घंटे में शुक्र का होरा है।
बिना सारणी के होरा ज्ञात करने की विधि:-
किसी भी वार का प्रथम होरा उसी वार से प्रारंभ होता है।
उस वार से विपरीत क्रम से वारों को एक-एक के अंतर से गिनें।
जैसे बुधवार को प्रथम होरा बुध का,
तत्पश्चात विपरीत क्रम से मंगल को छोड़कर चंद्र का होरा
एवं रवि को छोड़कर शनि का होरा होगा।
इसी क्रम से आगे शेष 21 होरा उस दिन व्यतीत होंगे।
होरा शास्त्र कार्य सिद्धि का अचूक शास्त्रीय माध्यम है
किसी भी व्यक्ति को विशेष कार्य की शुरुआत करनी हो तो वो उसे विशेष मुहूर्त मे ही काम करना चाहता है.ज्योतिष शास्त्र मे होरा चक्र का निर्माण किया गया है जिसे आप स्वयं देख कर किसी भी कार्य की शुरुआत कर सकते है
जिससे आप का कार्य सफल हो जायेकभी कभी बहुत ज़रूरी होने पर हम पंडितजी के पास नही जा पाते या कोई अन्य काम पड़ जाता हैं जिससे हम समय पर काम करने का सही व उचित समय नही जान पाते, इन सभी परेशानियो को ध्यान में रखकर ज्योतिषशास्त्र में होरा चक्र का निर्माण किया गया,जिससे आप किसी भी दिन स्वयं होरा देखकर कोई भी काम कर सकते हैं |
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार एक होरा (दिन-रात)में २४ होराएँ होती हैं जिन्हें हम २४ घंटो के रूप में जानते हैं जिसके आधार पर हर एक घंटे की एक होरा होती हैं जो किसी ना किसी ग्रह की मानी जाती हैं|
प्रत्येक वार की प्रथम होरा उस ग्रह की होती हैं जिसका वो वार होता हैं
जैसे यदि रविवार हैं तो पहली होरा सूर्य की ही होगी|
होराओ का क्रम- प्रत्येक ग्रह की पृथ्वी से जो दुरी हैं उस हिसाब से ही होरा चक्र बनाया गया हैं आईये देखते हैं की होरा कैसे देखी जातीं हैं
|मान लेते हैं की हमें रविवार के दिन किसी भी ग्रह की होरा देखनी हो तो हम उसे इस प्रकार से देखेंगे|
पहली होरा -सूर्य ग्रह की होगी
दूसरी होरा -शुक्र ग्रह की होगी
तीसरी होरा -बुध ग्रह की होगी
चौथी होरा-चंद्र ग्रह की होगी
पांचवी होरा -शनि ग्रह की होगी
छठी होरा -गुरु ग्रह की होगी
सातवी होरा -मंगल ग्रह की होगी
आठवी होरा फ़िर से सूर्य की ही होगी
तथा यह क्रमश: ऐसे ही चलता रहेगा| इस प्रकार जो भी वार हो उसी वार की होरा से आगे की होरा निकाली जा सकती हैं तथा अपने महत्वपूर्ण कार्य किए जा सकते हैं| विभिन्न ग्रहों की होरा में कुछ निश्चित कार्य किए जाए तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होती हैं |
सूर्य की होरा – सरकारी नौकरी ज्वाइन करना,चार्ज लेना और देना,अधिकारी से मिलना,टेंडर भरना व मानिक रत्न धारण करना|
चंद्र की होरा – यह होरा सभी कार्यो हेतु शुभ मानी जाती हैं|
मंगल की होरा- पुलिस व न्यायालयों से सम्बंधित कार्य व नौकरी ज्वाइन करना, जुआ सट्टा लगाना,क़र्ज़ देना, सभा समितियो में भाग लेना,मूंगा एवं लहसुनिया रत्न धारण करना| बुध की होरा– नया व्यापार शुरू करना,लेखन व प्रकाशन कार्य करना,प्रार्थना पत्र देना,विद्या शुरू करना,कोष संग्रह करना,पन्ना रत्न धारण करना |
गुरु की होरा – बड़े अधिकारियो से मिलना,शिक्षा विभाग में जाना व शिक्षक से मिलना,विवाह सम्बन्धी कार्य करना,पुखराज रत्न धारण करना |
शुक्र की होरा – नए वस्त्र पहनना,आभूषण खरीदना व धारण करना,फिल्मो से सम्बंधित कार्य करना ,मॉडलिंग करना,यात्रा करना,हीरा व ओपल रत्न पहनना|
शनि की होरा – मकान की नींव खोदना व खुदवाना,कारखाना शुरू करना,वाहन व भूमि खरीदना,नीलम व गोमेद रत्न धारण करना|
इस प्रकार ग्रह की होरा में कार्य सफलता हेतु किए जा सकते हैं | इस प्रकार विभिन्न ग्रह की होरा में विभिन्न कार्य सफलता हेतु किए जा सकते हैं।
राहुकाल विचार:-
प्रत्येक दिन दिनमान अर्थात सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच के कुल समय का आठवां भाग राहुकाल कहलाता है।
इस भाग का स्वामी राहु होता है इसे बहुत अनिष्टकारी मानते हैं। इसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। निम्न सारणी में प्रत्येक वार के नीचे उसका गुणक दिया गया है, जिसके आधार पर राहुकाल का समय ज्ञात किया जा सकता है।
राहुकाल ज्ञात करने की विधि-
स्थानीय दिनमान ज्ञात करके उसके आठ समान भाग करें।
अभीष्ट वार के गुणक से अष्टमांश को गुणा करके उसे सूर्योदय में काल जोड़ दें तो राहुकाल का आरंभ मालूम होगा।
उसमें दिनमान के 1/8 भाग के समय को जोड़ने पर जो समय आएगा, उतने बजे तक राहुकाल रहेगा।
राहुकाल गुणक उदाहरणस्वरूप–
17 जून 1999को कानपुर में सूर्योदय 05 बजकर 14मिनट पर एवं सूर्यास्त 18 बजकर 48 मिनट पर हुआ।
अतः 18.48 – 5 14 बराबर 13.34 घंटे दिनमान हुआ।
इस दिनमान में 08 से भाग दिया तो लगभग 01 घंटा 42मिनट का 01 भाग हुआ। अब 17 जून को सोमवार होने में गुणक 01 है। 01 घंटा 42 मिनट में 01 का गुणा किया तो 01 घंटा 42मिनट ही आया।
फिर सूर्योदय 5.14 में 01 घंटा 42 मिनट जोड़ा तो समय आया 6 घंटा 56 मिनट। अतः 16 जून सोमवार को राहुकाल का आरंभ 6 बजकर56 मिनट पर हुआ।
इसमें 01 घंटा 42 मिनट का एक भाग जोड़ दिया तो समय आया 08 घंटा 38 मिनट। अतः 17 जून 1996 सोमवार को राहुकाल का समय प्रातः6 बजकर 56 मिनट से 8 बजकर 38 मिनट तक रहा।
उत्तर भारत में चैघड़िया, मिथिला एवं बंगाल में यामार्ध एवं दक्षिण भारत में राहुकाल को देखकर ही शुभ कार्य करने की प्रथा है।
अतः अशुभ यामार्ध, राहुकाल में यात्रा,धन-निवेश, कार्यारंभ आदि तो वर्जित है।
इस समय लोग हवन की पूर्णहुति भी नहीं देते।
होरा कुण्डली:-
इस कुण्डली से जातक के पास धन-सम्पत्ति का आंकलन किया जाता है.
इस कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश को दो बराबर भागों में बाँटेंगें. 15 -15अंश के दो भाग बनते हैं.
कुण्डली को दो भागों में बाँटने पर ग्रह केवल सूर्य या चन्द्रमा की होरा में आएंगें.
कुण्डली दो भागों, सूर्य तथा चन्द्रमा की होरा में बँट जाती है.
समराशि में 0 से 15 अंश तक चन्द्रमा की होरा होगी.
15 से 30 अंश तक सूर्य की होरा होगी .
विषम राशि में यह गणना बदल जाती है. 0 से 15अंश तक सूर्य की होरा होगी. 15 से 30 अंश तक चन्द्रमा की होरा होगी.
माना मिथुन लग्न 22 अंश का है. यह विषम लग्न है.
विषम लग्न में लग्न की डिग्री 15 से अधिक है तब होरा कुण्डली में चन्द्रमा की होरा उदय होगी अर्थात होरा कुण्डली के प्रथम भाग में कर्क राशि आएगी और दूसरे भाग में सूर्य की राशि सिंह आएगी.
अब ग्रहों को भी इसी प्रकार स्थापित किया जाएगा. माना बुध 17 अंश का मकर राशि में जन्म कुण्डली में स्थित है.
मकर राशि समराशि है और बुध 17 अंश का है.
समराशि में 15 से 30अंश के मध्य ग्रह सूर्य की होरा में आते हैं तो बुध सूर्य की होरा में लिखा जाएगा.
सिंह राशि में बुध को लिख देगें.
Gurudev Bhubaneswar
Kasturba nagar
Parnkuti guna
9893946810
No comments:
Post a Comment