ज्योतिष समाधान

Friday, 16 June 2017

25 जून से पहले घर में लगा लें ये 1 पौधा, लक्ष्मी और शनि घर में घुसने नहीं देगे दरिद्रतापेड-पौधों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है लेकिन कई बार कुछ पौधे हमारे जीवन में सौभाग्य लेकर आते हैं। उन्ही में से एक है शमी का पौधा। इस पौधे को घर के मुख्य दरवाजे के पास लगाने से दरिद्रता दूर होती है और देवी-देवताओं की कृपा बरसने लगती है। घर में शमी का पौधा लगाने से शनि देव और माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।

25 जून से पहले घर में लगा लें ये 1 पौधा, लक्ष्मी और शनि घर में घुसने नहीं देगे दरिद्रतापेड-पौधों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है लेकिन कई बार कुछ पौधे हमारे जीवन में सौभाग्य लेकर आते हैं। उन्ही में से एक है शमी का पौधा। इस पौधे को घर के मुख्य दरवाजे के पास लगाने से दरिद्रता दूर होती है और देवी-देवताओं की कृपा बरसने लगती है। घर में शमी का पौधा लगाने से शनि देव और माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।

शमी के पौधे को शनि पौधा भी कहा जाता है। इसे लगाने से शनि की साढे-साती और अन्य बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है। 25 जून से गुप्त नवरात्री शुरू होने वाली है। अगर आप 25 जून से पहले शमि का पौधा अपने घर में लगायेंगे तो इससे आप पर शनि देव और माता लक्ष्मी सहित सभी नव दुर्गा देवियों की कृपा भी बरसने लगेगी। शमी का पौधा गणेश जी को भी प्रिय है इसलिए उनकी पूजा में हरी दुर्वा के अलावा शमी के पत्तियों का भी प्रयोग होता है।

पूजा करने की विधि

प्रतिदिन पूरब दिशा या सूर्य की तरफ मूँह कर के शमी के पौधे को पानी डालने से शनि का प्रकोप दूर होता ह॥ इसके अलावा शाम के समय शमी के पौधे के नीचे मिट्टी के दीपक में सरसों का तेल डालकर जलाना चाहिए इससे आप पर शनि देव, भगवान श्री गणेश और माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। यह एक ऐसा पौधा है जो सभी देवी-देवताओं को प्रिय है। इसे घर में लगाने मात्र से सभी देवी-देवताओं आप पर प्रसन्न हो जाते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शमी पौधे की पत्तियाँ, टहनी, फल, फूल और कांटे ये सभी शनि के दोषों को दूर करते हैं। शमी का पौधा घर में नाकारात्मक उर्जा को प्रवेश करने से रोकता है जिससे घर में सुख-शांति बनी रहती है। इसके अलावा अगर आप घर से बाहर किसी जरूरी काम से जा रहे हों तो शमी के पौधे को प्रणाम कर के जाएं आपका काम जरूर सफल होगा। इतना हीं नही शिक्षा, व्यापार, घर सभी जगहों पर सभी देवताओं की कृपा दृष्टि बनी रहेगी। 

  शमी की कथा धन की कमी के कारण जब कोस्तेय रजा रग के यह गए 

कौस्तेय राजा रघु के दरबार में पहुंचा लेकिन वहां की स्थिति जानकार अभिप्राय बताने में संकोच का अनुभव हो रहा था.
राजा रघु द्वारा बार-बार पूछने पर कौस्तेय ने अपने आने का उद्देश्य बताया.
राजा रघु ने दक्षिणा के लिए पूर्ण आश्वासित किया और धनपति कुबेर पर आक्रमण करने का निश्चय किया.

यात्रा में रात्रि में एक वन में रुके.यह शमी का वृक्ष था.

इसी अंतराल कुबेर को ज्ञात हो गया कि राजा रघु एक शिष्य की गुरु दक्षिणा के लिए आक्रमण हेतु राह में है.

उसी रात्रि शमी वृक्षों के सारे पत्ते स्वर्ण मुद्रा में परिवर्तित हो गए और सारा वन स्वर्ण आभा से जगमगा उठा.प्रातः राजा रघु को इसकी जानकारी मिली.

आक्रमण का विचार निरस्त कर उन्होंने कौस्तेय को गुरु दक्षिणा के लिए अनुरोध किया.कौस्तेय ने गिनकर दास लाख स्वर्ण मुद्रा ली और गुरु दक्षिणा अर्पित की.अपुल धन राशि से राजा रघु का राज्य कोष पुनः स्वर्ण पूरित हो गया.

विजयादशमी के आस-पास घटी इस घटना के कारण आज भी अनेक राज-परिवारों में इस वृक्ष की पूजा विजयादशमी पर की जाती है. शमी का महत्व:

1)बंगाल में दुर्गापूजा पर शमी वृक्ष की पत्तियां स्वर्ण प्रतीक रूप में परस्पर सद्भावना के लिए वितरित की जाती हैं.

2)इन्हें पूजा घर,तिजोरी में शुभ प्रतीक के रूप में रखा जाता है.

3)भगवान शिव,देवी दुर्गा,लक्ष्मी पूजन आदि में इस वृक्ष के फूल एवं ऋद्धि-सिद्धिदाता गणेश को पत्तियां अर्पित की जाती हैं.

4)इस वृक्ष की मोटी टहनियां अरणी मंथन द्वारा अग्नि उत्पन्न के लिए प्रधान यंत्र के अलावा पतली-सूखी टहनियां भी यज्ञ समिधा का भाग होती हैं.

5)भगवान राम ने अपने वनवास के समय जिस झोपड़ी का निर्माण किया था उसमें शमी वृक्ष की लकड़ियों का ही उपयोग किया गया था.

6)शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को स्वर्ण फूल चढ़ाने के बराबर सिर्फ आक का एक फूल चढ़ाने का चढ़ाने से फल मिलता है ,

हजार आक के फूलो की अपेक्षा एक कनेर का फूल , हजार कनेर के फूल की अपेक्षा एक बिल्वपत्र , हजार बिल्वपत्र के बराबर एक द्रोण का फूल फलदाई है हजार द्रोण उनके बराबर फल एक चिचड़ा देता है हजार चिचड़ा के बराबर फल एक कुश का पुष्प फल देता है हजार खुश फूलो के बराबर एक शमी का पत्ता फल देता है हजार शमी के पत्तो के बराबर एक नीलकमल और हज़ार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा फल देता है और 1000 दूर से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ पर फल और पूर्ण देने वाला होता है ।

7)विजयदशमी के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है मानता है कि भगवान राम का भी प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पूर्व होने समय की पूजा की थी और विजय होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था ।

8) महाभारत काल में भी मिलता है अपने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास में पांडवों ने अपने सारे अस्त्र शस्त्र इसी के ऊपर छिपाये थे जिस में अर्जुन का गांडीव धनुष भी था । कुरुक्षेत्र में कौरवों से युद्ध के लिए जाने से पहले पांडवों ने भी शमी की पूजा की थी और उसे शक्ति और विजय प्राप्त की कामना की थी कभी समय तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी सुरक्षित की पूजा करता है उसे शक्ति और विजय की प्राप्ति होती है।

9) शमी का पूजन व् सेवा शनि के द्वारा दिए जा रहे कष्टों को कम करता है और शनि को प्रसन्न करता है।

10) घर के बाहर ईशान कोण में लगाने और नित्य सेवा से घर में धन की कभी कमी नहीं होती और ऊपरी बाधाओं और दुर्घटनाओं से रक्षा होती है।

11) शमी की समिधा से हवन करने से एक ओर जहाँ शनि की शांति होती है वहीँ दूसरी ओर ऊपरी बाधा अभिचार नाश के लिए भी शमी समिधा का प्रयोग तीव्रतम असर करता है।

12) कुछ ज्योतिषाचार्य शनि शांति के लिए शमी की जड़ धारण करने की सलाह देते हैं हालाँकि ये शास्त्र सम्मत नहीं है। नीलम के स्थान पर बिछू घास का ही प्रयोग करना उचित है। व्यक्तिगत अनुभव से भी यही ज्ञात होता है की अभिमन्त्रित शमी मूल रखने से धन प्राप्ति के अवसर बढ़ते हैं किन्तु शनि के कुप्रभाव पर अधिक असर नहीं दिखा। हाँ वृक्ष का नियमित पूजन अवश्य अतुलित फलदायी और शमी के कुप्रभाव को खत्म कर शनिदेव को प्रसन्न करता है। कैसे करें पूजन: प्रातः काल शमी वृक्ष के नीचे जाएँ और एक लोटा जल अर्पित करें। शाम के समय वृक्ष के पास जाकर नमन करें, धूप दीप करें, सफ़ेद कच्चा सूत या कच्चे सूत से बने कलावा लेकर सात परिक्रमा कर बांधे। प्रसाद स्वरुप बताशे और भुने चने अर्पित करें। पूजन के पश्चात शमी की कुछ पत्तियां तोड़ कर घर ले आएं और सर्व प्रथम घर के मन्दिर में रखें।

वहां से कुछ पत्तियां लेकर तिजोरी या गल्ले में रखें ,

और कुछ पत्तियां (5-7 पत्तियां) घर के प्रत्येक सदस्य को दें जिसे वे अपने पर्स में रखें।

नियमित पूजन में शमी पर प्रातः जल और शाम को धूप दीप अर्पित करें। निम्न मन्त्र के द्वारा शमी का पूजन करें:-

शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी । 
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥ 
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया । तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।

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