ज्योतिष समाधान

Thursday, 13 July 2017

शीश गंग अर्धांग पार्वती सदा विराजत कैलासी! नंदी भृंगी नृत्य करत है, गुणभक्त शिव की दासी!! सीतल मद्सुगंध पवन बहे बैठी हैं शिव अविनाशी! करत गान गन्धर्व सप्त सुर, राग - रागिनी सब गासी!!

शीश गंग अर्धांग पार्वती सदा विराजत कैलासी!
नंदी भृंगी नृत्य करत है, गुणभक्त शिव की दासी!!

सीतल मद्सुगंध पवन बहे बैठी हैं शिव अविनाशी!
करत गान गन्धर्व सप्त सुर, राग - रागिनी सब गासी!!

अक्ष रक्ष भैरव जह डोलत बोलत है अनेक वासी!
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत है गुन्जासी!!

कल्प वृक्ष अरु पारिजात लग रहे हैं लक्षासी!
सूर्य कांति सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्ति नव मीमासी!!

छहों ऋतु नित फलत फुलत है पुष्प चढत है वर्षा सी!
देव मुनि जन की भीड़ पडत, निगम रहत जो नितगासी !!

ब्रह्मा विष्णु जाको ध्यान धरत है, कछु शिव हमको परमसी! ऋद्धि-सिद्धि के दाता शंकर, सदा आनंदित सुखरासी!!

जिनके सुमिरन सेवा करते टूट जाये यम की फांसी!
त्रिशूल फरसा का ध्यान निरंतर, मन लगाये कर जो ध्यासी!!

दूर करे विपदा शिव तिनकी जन्म सफल शिव्पदपासी! कैलाशी काशी के वासी, अविनाशी सुध मेरी लीज्यो! सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान दरस दीज्यो!!

तुम तो प्रभु सदा सयाने, अवगुण मेरे सदा ढकियो!
सब अपराध क्षमा कर शंकर किंकर की विनती सुनियो!!

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