ज्योतिष समाधान

Friday, 14 July 2017

जानकारी श्रावणी उपाकर्म क्यों ज़रूरी है? गुरूर्ब्रम्हा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वर । गुरू साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरूवे नम:।। सनातन धर्म मे एक वर्ण व्यवस्था है। जिसमें ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , क्षुद्र ये चार वर्ण है। सभी वर्णों के कर्म व त्योहार अलग अलग है। जैसे क्षत्रिय का मुख्य त्योहार दशहरा है, वैश्य का दिवाली है , उसी तरह ब्राम्हण का "श्रावणी उपाकर्म " मुख्य त्योहार है।

जानकारी श्रावणी उपाकर्म क्यों ज़रूरी है?

गुरूर्ब्रम्हा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वर ।
गुरू साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरूवे नम:।।

सनातन धर्म मे एक वर्ण व्यवस्था है। जिसमें ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , क्षुद्र ये चार वर्ण है।
सभी वर्णों के कर्म व त्योहार अलग अलग है। जैसे क्षत्रिय का मुख्य त्योहार दशहरा है, वैश्य का दिवाली है , उसी तरह ब्राम्हण का "श्रावणी उपाकर्म " मुख्य त्योहार है। वैसे ब्राह्मण को ब्राह्मणत्व मे रहने के लिये निचे दिये गये दैनिक कर्म अत्यावश्यक है...... "सन्ध्या स्नानं जपश्चैव देवतानां च पूजनम् । वैश्वदेवं तथा आतिथ्य षट् कर्माणि दिने दिने ।।" जो इस प्रकार है... संध्या स्नान जप देवता पूजन वैश्वदेव बलि अतिथि सत्कार ये कर्म दैनिक नियम है। इस से हम हमारे पुण्य को बढ़ा कर पाप का क्षय करते है। तो आज हम ये करते है क्या??? अधिकांश लोग नही कर पातेे। दैनिक व्यस्तता, आधुनिक जीवन, भौतिक सुख जैसे कई कारणों की वजह से नही हो पाता। पर इसके साथ आलस्य और अज्ञान भी इसके कारण है। इसका मतलब जाति से भले ही हम ब्राह्मण है परंतु ब्रम्हकर्म से हम विमुख है। अपना कर्म ना कर हम पाप के भागीदार बनते है। वैसे हम अनजान मे दिन भर कई पाप भी करते है । जिनका क्षय उपरोक्त दैनिक कर्म से भी संभव नही। जिसके लिये "श्रावणी उपाकर्म " की व्यवस्था की गयी है। श्रावणी कर्म को लेकर भी कई प्रकार का अज्ञान है । जैसे उसमें सिर्फ़ तर्पण होता है तो पिताजी या परिवार का मुख्य सदस्य कर्म मे बैठ जाये तो सभी का कर्म हो जाता है। फिर बाकि लोग सिर्फ़ जनेउ( यज्ञोपवीत ) बदल कर भोजन कर लेते है। यह ग़लत है । मेरे नहा लेने से आप का शरीर शुद्ध हो सकता है क्या? नही ना? तो हर किसी का कर्म उसका व्यक्तिगत है ना कि पारिवारिक । तो श्रावणी कर्म मे हम कौनसी क्रियाएँ करते है उसका संक्षेप मे विवरण पढ़िये । १) हेमाद्रि संकल्प :- जिसमें हम पापमुक्त होने व वे महापाप फिर से ना करने की कोशिश का संकल्प छोडते है। उनमें से कुछ महापाप निचे दिये है ..... परस्त्रीगमन, रजस्वला स्त्री गमन, विधवास्त्रीगमन, परद्रव्य हरण, पंक्तिभेद, जैसे तथा और कई प्रकार के ज्ञात अज्ञात महा भयंकर विनाशक पापों से मुक्ति मिलती है। २) दशविधी स्नान :- जिसमें १० प्रकार के स्नान कर शरीर शुद्ध करते है । ३) मध्यान्ह संध्या:- कर्म दोपहर को होता है, इसलिये दैनिक कर्म की त्रिकाल संध्या मे से एक ज़रूरी होती है। ४)सुर्योपस्थान:- जिसमें सुर्य नारायण की आराधना , तथा उनका नमस्कार होता है। ५) ब्रम्हयज्ञ ६) तर्पण:- देवतर्पण,ऋषितर्पण,मनुष्य तर्पण, तथा पितृतर्पण, जिसमें अपने देवता,अपने ऋषि,अपने पितृ , अपने गुज़रे हुये रिश्तेदार, मित्र को हम जल अर्पण करते है। जो उस वक़्त अंतरिक्ष मे उपस्थित हो हमें प्रसन्न होकर आशिर्वाद देते है। ७) ऋषिपूजन ८) ऋषिश्राद्ध ९)पंचगव्य प्राशन १०)यज्ञोपवीत पूजन ,धारण ११)हवन १२)रक्षाबंधन १३) महाआरती १४) ब्रम्ह भोज इस कर्म के प्रति अज्ञान दूर करने के एकमात्र हेतु से यह जानकारी प्रस्तुत की है। ज़्यादा से ज़्यादा लोग कर्म मे सम्मिलित हो एवं अपना कल्याण करे। जनजागृति के लिये यह संदेश ज़्यादा से ज़्यादा प्रसारित करे

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