ज्योतिष समाधान

Thursday, 27 April 2017

नक्षत्र ज्योतिष ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक नक्षत्र में किए जाने वाले कार्यों का निर्देश दिया गया है। दैनिक जीवन में नक्षत्रों के आधार पर

नक्षत्र ज्योतिष ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक नक्षत्र में किए जाने वाले कार्यों का निर्देश दिया गया है। दैनिक जीवन में नक्षत्रों के आधार पर मुहूर्त निकाले जाते हैं।

मिसाल के तौर पर विवाह, वाहन क्रय, नींव या गृह प्रवेश के अलग-अलग नक्षत्र ज्योतिष विज्ञान में दिए गए हैं।

‘वराही संहिता’ में बताए गए जलचर नक्षत्रों को देख किसान अच्छी वर्षा तक का अनुमान लगा लेते हैं।

जिस प्रकार पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी को मील और किलोमीटर में नापने का नियम है, उसी तरह आकाशीय मंडल में चंद्र सूर्य आदि ग्रहों की दूरी का माप नक्षत्रों और उनके चरणों से पता चलता है।

ज्योतिष में गणितज्ञों को यह बताने के लिए मार्ग सरल हो जाता है कि अमुक ग्रह अमुक समय में अमुक नक्षत्र में था। जन्मनाम और नक्षत्र ज्योतिष गणना के अनुसार नक्षत्र 27 होते हैं, लेकिन 28 वां नक्षत्र अभिजीत होता है, जो साधारणतया मुहूर्त में ही काम आता है।

नक्षत्रों का प्रारम्भ अश्विनी नक्षत्र से होता है।

आगे दी गई तालिका में देखें कि मेष राशि में अश्विनी के आगे 4 लिखा हुआ है

यानी अश्विनी नक्षत्र में 4 अक्षर होते हैं।

नाम के अक्षर वाले कॉलम में जो प्रथम 4 अक्षर

(चू, चे, चो, ला) अश्विनी नक्षत्र के हैं।

भरणी के सामने भी 4 लिखे हैं

यानी इससे आगे के 4 अक्षर (लि, लू, ले, लो) भरणी नक्षत्र के हैं और कृतिका के आगे 1 लिखा है यानी अंतिम ‘अ’ अक्षर कृतिका का है।

कृतिका के अगले 3 अक्षर (इ, उ, ए) वृष राशि में आ रहे हैं।

यहां यह स्पष्ट करना ठीक होगा कि ग्रह हमेशा जन्म के नामों से ही प्रभावशील रहते हैं नाम बदल लेने से ग्रह अपनी गति नहीं बदलते।

लेकिन इसका भी निराकरण ज्योतिष में उपलब्ध है। मान लीजिए किसी का जन्म मिथुन राशि के आद्र्रा नक्षत्र के द्वितीय चरण में हुआ है तो तालिका 1 के अनुसार उसका नाम ‘घ’ अक्षर पर आएगा।

अब माता-पिता बालक का नाम घमंडी लाल नहीं रखना चाहते तो, इसका परिहार यह है कि आद्र्रा नक्षत्र में चार चरण (कु, घ, ड, छ) उपलब्ध है इसलिए माता-पिता चाहे तो बालक का नाम ‘घ’ अक्षर पर न रखकर उक्त नक्षत्र के प्रथम अक्षर ‘कु’ पर भी रख सकते हैं जैसे कुणाल, कुसुम आदि।

इससे न तो राशि ही बदलेगी न ही नक्षत्र। बालक के युवा होने पर विवाह के समय मेलापक (जन्मपत्री मिलान) में भी इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। स्थाई रूप से इस संदेहास्पद स्थिति का निराकरण भी हो जाएगा।

बारह नक्षत्र व्यापार के लिए

उत्तम श्रुति गुन कर गुन पु जुग मृग हय रेवती सखाउ। छेहि लेहि धन धरनि धरू गएहुं न जाइहि काउ।

अर्थात श्रवण नक्षत्र से तीन नक्षत्र (श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा)

हस्त नक्षत्र से तीन नक्षत्र (हस्त, चित्रा, स्वाती)

‘पु’ से आरम्भ होने वाले दो नक्षत्र (पुख्य, पुनर्वसु) और मृगशिरा, अश्विनी, रेवती और अनुराधा इन सभी नक्षत्रों में धन, जमीन का लेन-देन करना चाहिए। अच्छा धनलाभ होता है।

चौदह नक्षत्रों में आर्थिक हानि ऊगुन पूगुन बि अज कृ, म. आ. भ. अ. मू गुनु।

साथ हरो धरो गाडो दियो धन फिरि चढ़ई न हाथ।
‘उ’ से आरम्भ होने वाले तीन नक्षत्र (उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद), पू से आरम्भ होने वाले तीन नक्षत्र (पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वा भाद्रपद) बि (विशाखा) अज (रोहणी), कृ (कृतिका), म (मघा), आ (आद्र्रा), भ (भरणी), अ (अश्लेषा) और मू (मूल) इन चौदह नक्षत्रों में चोरी गया या उधार दिया हुआ धन लौटकर हाथ नहीं लगता।

ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का खासा महत्व है। प्रतिदिन के नक्षत्रों को देख कर हम आने वाले कल को साध सकते हैं। जिस प्रकार पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी को मील, किलोमीटर में नापने का नियम है उसी प्रकार आकाशीय मंडल में चंद्र, सूर्य आदि ग्रहों की दूरी का मापदंड नक्षत्रों और उनके चरणों से पता चलता है।

No comments: