विवाह सम्बंधों में आजकल मंगलीक शब्द एक प्रकार से भय तथा अमंगल का सूचक बन गया है. परन्तू यहाँ यह जानना आवश्यक है की प्रत्येक मंगली जातक, विवाह के लिए अयोग्य होता है यह कहना बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा . सामान्यतः जो कुण्डली प्रथम द्रष्टी में मंगलीक प्रतीत होती है वे जन्म कुण्डलिया भी ग्रहों की स्थिति तथा दृष्टि के कारण दोष रहित होंती है. इसलिए जन्म कुण्डली का बारीकी से अध्यन अति आवश्यक है . मंगल दोष विचार तथा मंगली दोष परिहार मंगली दोष विचारः- यदि जातक की जन्मकण्डली में लग्न (प्रथम भाव) , व्यय (द्वादश भाव), पाताल(चतुर्थ भाव), जामित्र (सप्तम भाव ) , तथा अष्टम भाव (1/12/4/7/8) में मंगल बैठा हो तो कन्या अपने पति के लिए तथा पति के लिए तथा पति कन्या के लिए घातक होता है इसे मंगली दोष कहते है. यदि वर की जन्म कुण्डली में धन (द्वितीय) , सुत(पंचम), सप्तम, मृत्यू (अष्टम) अथवा व्यय (द्वादश ), भाव (2/5/7/8/12) में मंगल बैठा हो तो वह उसकी स्त्री का नाष करता है और यदि स्त्री की जन्मकुण्डली के इन्हीं में से किसी भाव में मंगल बैठा हो तो वह विधवा होती है. मंगल की ऐसी स्थिति वाले वर कन्या का विवाह वर्जित है. आचार्या ने एकादश भाव स्थित मंगल को भी अशुभ माना है. म्ंगलीदोष परिहारः 1 . जन्मकुण्डली के प्रथम , द्वितीय , चतुर्थ , सप्तम, अष्टम , एकादश् तथा द्वादश् इनमें से किसी भी भाव में मंगल बैठा हो तो वह वर वधू का विघटन कराता है परन्तु इन भावों में बैठा हुआ मंगल यदि स्वक्षेत्री हो तो दोषकारक नहीं होता. 2 .यदि जन्मकुण्डली के प्रथम भाव (लग्न) में मंगल मेष राषि का हो , द्वादश भाव में धनु राषि का हो चतुर्थ भाव में वृच्श्रिक राशि का हो सप्तम भाव में मीन राशि का हो तथा अष्टम भाव में कुम्भ को हो तो मंगली दोष नहीं लगता. 3 .यदि जन्मकुण्डली के सप्तम , लग्न (प्रथम ) , चतुर्थ , अष्टम अथवा द्वादश भाव में शनि बैठा हो तो मंगली दोष नहीं रहता अर्थात पहले वर्णन किए गये मंगली दोष वाले भावों – 1/2/4/7/8/11/12 में मंगल के साथ ही यदि बृहस्पति अथवा चन्द्रमा भी बैठा हो अथवा इन भावों में मंगल बैठा हो परन्तु केन्द्र अर्थात 1/4/7/10 भावों में चन्द्रमा बैठा हो तो मंगली – दोष दूर हो जाता है. 4 .केन्द्र और त्रिकोण भावों में यदि शुभग्रह हो तथा तृतीय , षष्ठ एवं एकादष भावों में पापग्रह हो तथा सप्तमभाव का स्वामी सप्तम भाव में बैठा हो तो मंगली दोष नहीं लगता . वर तथा कन्या दोनों की जन्मकुण्डली में यदि मंगल शनि अथवा कोई अन्य पापग्रह एक जैसी स्थिति में बैठे हों तो मंगली दोष नष्ट हो जाता है. 5 .यदि वर कन्या दोनो की जन्मकुण्डली के समान भावों में मंगल अथवा वैसे ही कोई पापग्रह बैठे हो तो मंगली दोष नहीं लगता. ऐसा विवाह शुभप्रद ,दीर्घायुष्य देने वाला तथा पुत्र पौत्रदायक होता है. 6 .यदि अनिष्ठ भावस्थ मंगल वक्री , नीच राशिस्थ (कर्क का) अथवा शुत्रक्षेत्री (मिथुन अथवा कन्या राषि का ) अथवा अस्तंगत हो तो वह अनिष्ट कारक नहीं होता. 7 .जन्मकुण्डली में मंगल यदि द्वितीय भाव में मिथुन अथवा कन्या राशि का हो द्वादष भाव में वृष अथवा कर्क राशि का हो चतुर्थभाव में में मेष अथवा वृच्श्रिक राशि का हो सप्तम भाव में मकर अथवा कर्क राशि का हो एवं अष्टम भाव में धनु अथवा मीन राशि का हो , इनके अतिरिक्त किसी भी अनिष्ट स्थान में कुम्भ अथवा सिंह राशि का हो तो ऐसे में मंगल का दोष नहीं लगता. 8 .जिसकी जन्मकुण्डली के पंचम, चतुर्थ ,सप्तम , अष्टम अथवा द्वादश स्थान में मंगल बैठा हो उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए , परन्तु यदि वह मंगल , बुध और गुरू से युक्त हो अथवा इन ग्रहों के द्वारा दृष्ट हो तो दोष का परिहार हो जाता है. 9 .शुभ ग्रहों से संबंधित मंगल अशुभकारक नहीं होता . कर्क लग्न में स्थित मंगल कभी भी दोषी नहीं होता. यदि मंगल अपनी नीच राशि अथवा राशि शुत्र राशि (3/6) का हो अथवा अस्तंगत हो तो वह शुभ अशुभ कोई फल नहीं देता. 11 .मंगली दोष वाली कन्या मंगली दोष वाले वर को देने से मंगली दोष नहीं लगता तथा कोई अनिष्ट भी नहीं होता. ऐसा संबंध दाम्पत्य सुख की वृध्दि भी करता है. 12 .यदि वर कन्या दोनों की जन्मकुण्डली में लग्र, चंद्रमा अथवा शुक्र से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ ,सप्तम , अष्टम एवं द्वादष इन छः स्थानों में से किसी भी एक भाव में मंगल एक जैसी स्थिति में बैठा हो (अर्थात वर की कुण्डली में जहां बैठा हो , वधू की कुण्डली में भी उसी जगह पर बैठा हो) तो मंगल दोष नहीं रहता तथा ऐसे स्त्री पुरूष का दाम्पत्य- जीवन चिरस्थायी होता है , साथ ही धन धान्य पुत्र पौत्रादि की अभिवृध्दि भी होती है. परन्तु वर कन्या मं् से केवल किसी एक की जन्मकुण्डली में ही उक्त प्रकार का मंगल बैठा हो (दूसरे की न हो ) तो उसका सर्वथा विपरीत -फल समझाना चाहिए अर्थात वह स्थिति दोषपूर्ण होगी . यदि मंगल अशुभ भावों में स्थित हो तो विवाह नहीं करना चाहिए , पंरतु यदि बहुत गुण मिलते हो तो तथा वर – कन्या दोनों ही मंगली हो तो विवाह करना शुभ रहता है. 13 .कन्या की कुण्डली में मंगल दोष है और वर की कुण्डली में उसी स्थान पर शनि हो तो मंगल दोष का परिहार स्वयंमेव हो जाता है. 14 . यदि जन्मांग में मंगल दोष हो किन्तु शनि मंगल पर दृष्टिपात करे तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है. 15. मकर लग्न में मकर राशि का मंगल व सप्तम स्थान में कर्क राशि का चंद्र हो तो मंगल दोष नहीं रहता है. 16 . कर्क व सिंह लग्न में भी लग्नस्थ मंगल केन्द्र व त्रिकोण का अधिपति होने से राजयोग देता है, जिससे मंगल दोष निरस्त होता है. 17 . लग्न में बुध व शुक्र हो तो मंगल दोष निरस्त होता है. 18 . मंगल अनिष्ट स्थान में है और उसका अधिपति केद्र व त्रिकोण में हो तो मंगल दोष समाप्त होता है. 19 . आयु के 28वें वर्ष के पश्चात मंगल दोष क्षीण हो जाता है. ऐसा कहा जाता है किन्तु अनुभव में आया है कि मंगल अपना कुप्रभाव प्रकट करता ही है. 20 . आचार्यों ने मंगल-राहु की युति को भी मंगल दोष का परिहार बताया है. 21 . कुछ ज्योतिर्विद कहते हैं कि मंगल गुरु से युत या दृष्ट हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है किन्तु आधुनिक शोध के आधार पर यह कहा जा सकता है कि गुरु की राशि में संस्थित मंगल अत्यंत कष्टकारक है, मंगल दोष से दूषित जन्मांगों का जन्मपत्री मिलान करके मंगल दोष परिहार जहां तक संभव हो करके विवाह करें तो दाम्पत्य जीवन सुखद होता है. वृश्चिक राशि में न्यून किन्तु मेष राशि का मंगल प्रबल घातक होता है. कन्या के माता-पिता को घबराना नहीं चाहिए. हमारे धर्मशास्त्रों ने व्रतानुष्ठान, मंत्र प्रयोग द्वारा मंगल दोष को शांत करने का उपाय बताये गए है 22. यदि मंगल चतुर्थ अथवा सप्तम भावस्थ हो तथा क्रूर ग्रह से युक्त या दृष्ट न हो एवं इन भावों में मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है. किन्तु भगवान रामजी की जन्मकुण्डली में सप्तम भाव में उच्च के मंगल ने राजयोग तो दिया किन्तु सीताजी से वियोग भी हुआ,जबकि मंगल पर गुरु की दृष्टि थी. 23. कुण्डली मिलान में यदि मंगल प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में हो व द्वितीय जन्मांग में इन्हीं भावों में से किसी में शनि स्थित हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है. 24. चतुर्थ भाव का मंगल वृष या तुला का हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है. 25. द्वादश भावस्थ मंगल कन्या, मिथुन, वृष व तुला का हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है. 26. वर की कुण्डली में मंगल दोष है व कन्या की जन्मकुण्डली में मंगल के स्थानों पर सूर्य, शनि या राहु हो तो मंगल दोष का स्वयमेव परिहार हो जाता है.
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