24 फरवरी 2017 को मनाया जाएगा।
एक नजर शिवारात्रि पूजा और मुहूर्त के समय पर
महाशिवरात्रि : 24 फरवरी 2017
निशिथ काल पूजा- 12:08 से 12:59
पारण का समय- 06:54 से 3:24 (25फरवरी)
चतुर्दशी तिथि आरंभ- 09:38 (24 फरवरी) चतुर्दशी तिथि समाप्त- 09:20 (25 फरवरी
चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं।
रात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त
निशीथ काल पूजा का मुहूर्त- रात 12.30 से 01.05 बजे तक
पहले प्रहर की पूजा- शाम 06:42 से 09:45 बजे तक
दूसरे प्रहर की पूजा- रात 09:45 से 12:50 बजे तक
तीसरे प्रहर की पूजा- रात 12:50 से 03:50 बजे तक
चौथे प्रहर की पूजा- रात 03:50 से सुबह 06:50 बजे तक
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रेलवे टाइम
Nishita Kaal Puja
Time= 24:08+ to 24:58+
Duration =
0 Hours 50 Mins On 25th,
Maha Shivaratri Parana
Time06:50 to 15:25
Ratri First Prahar Puja
Time = 18:16 to 21:25
Ratri Second Prahar Puja
Time = 21:25 to 24:33+
Ratri Third Prahar Puja
Time = 24:33+ to 27:42+
Ratri Fourth Prahar Puja
Time = 27:42+ to 30:50+
How to read 24+ time?
Chaturdashi Tithi Begins
= 21:38 on 24/Feb/2017 Chaturdashi Tithi Ends
= 21:20 on 25/Feb/2017
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शास्त्रोक्त प्रमाण् सहित शिव रात्रि:
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शिव पुराण-विद्येश्वरसंहिता खंड-10 में
भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के प्रश्न के उत्तर में भगवान महेश्वर के आदेश विद्यमान हैं कि ‘‘मेरे दर्शन-पूजन के लिये चतुर्दशी तिथि निशीथ व्यापिनी अथवा प्रदोष व्यापिनी (अर्द्धरात्रि व्यापिनी अथवा संध्याकाल व्यापिनी) लेनी चाहिये; क्योंकि परवर्तिनी तिथि से संयुक्त चतुर्दशी की ही प्रशंसा की जाती है।’’
‘‘निशीथसंयुता या तु कृष्णपक्षे च चतुर्दशी। उपोष्या सा तिथिसर्वेःशिवसायुज्यकारिका।।’’
-स्कन्दपुराण- माहेश्वरखंड-केदारखंड-33/92
‘‘कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी अर्धरात्रि व्यापिनी हो, उसमें सबको उपवास करना चाहिये।
वह भगवान् शिव का सायुज्य प्रदान करने वाली है।’
’ स्कंद पुराण- नागर खंड-उत्तरार्द्ध-221 में पृष्ठांकित है
कि ‘‘माघ मास के कृष्ण पक्ष में जो चतुर्दशी तिथि आती है, उसकी रात्रि ही शिव रात्रि है।’’ यहां अमावास्यान्त मास की दृष्टि से माघ मास कहा गया है। जहां कृष्ण पक्ष में मास का आरंभ और पूर्णिमा पर उसकी समाप्ति होती है, उसके अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी में यह शिवरात्रि का व्रत होता है।
निर्णय सिंधु में उद्धृत नारद संहिता और ईशान संहिता का उदाहरण भी यही समझना चाहिए। लिंगपुराण में भगवान् शिव का स्पष्ट कथन है
कि फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सावधान होकर कृत्तिवासेश्वर लिंग में जो महादेव की पूजा करते हैं; उनको मैं सदैव मुक्त और रोगरहित परमस्थान देता हूं।
निष्कर्ष यह है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की
अर्द्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी ही मान्य है। फागुन सुदी 14 दिनांक 24/2/2017 को महा शिव रात्री पर्व मनाना सिद्ध हुआ।
पं परमेश्वर दयाल शर्मा
तिलक चौक
मधुसूदन गढ
9893397835
Pandit ~bhubneshwar
Kasturwanagar parnkuti guna
०9893946810
अर्ध रात्रि की पूजा के लिये स्कन्दपुराण में लिखा है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को
'निशिभ्रमन्ति भूतानि शक्तयः शूलभृद यतः । अतस्तस्यां चतुर्दश्यां सत्यां तत्पूजनं भवेत् ॥'
अर्थात् रात्रिके समय भूत, प्रेत, पिशाच, शक्तियाँ और स्वयं शिवजी भ्रमण करते हैं; अतः उस समय इनका पूजन करने से मनुष्य के पाप दूर हो जाते हैं । शिवपुराण में आया है
“कालो निशीथो वै प्रोक्तोमध्ययामद्वयं निशि ॥ शिवपूजा विशेषेण तत्काले ऽभीष्टसिद्धिदा ॥
एवं ज्ञात्वा नरः कुर्वन्यथोक्तफलभाग्भवेत्”
अर्थात रात के चार प्रहरों में से जो बीच के दो प्रहर हैं, उन्हें निशीधकाल कहा गया हैं |
विशेषत: उसी कालमें की हुई भगवान शिव की पूजा अभीष्ट फल को देनेवाली होती है –
ऐसा जानकर कर्म करनेवाला मनुष्य यथोक्त फलका भागी होता है
चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम कल्याणकारी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है।
शिवरहस्य में कहा गया है
“चतुर्दश्यां तु कृष्णायां फाल्गुने शिवपूजनम्। तामुपोष्य प्रयत्नेन विषयान् परिवर्जयेत।।
शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्।”
शिवपुराण में ईशान संहिता के अनुसार
“फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥”
अर्थात फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए इसलिए इसे महाशिवरात्रि मानते हैं।
शिवपुराण में विद्येश्वर संहिता के अनुसार
शिवरात्रि के दिन ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी ने अन्यान्य दिव्य उपहारों द्वारा सबसे पहले शिव पूजन किया था जिससे प्रसन्न होकर महेश्वर ने कहा था की “आजका दिन एक महान दिन है | इसमें तुम्हारे द्वारा जो आज मेरी पूजा हुई है, इससे मैं तुम लोगोंपर बहुत प्रसन्न हूँ | इसीकारण यह दिन परम पवित्र और महान – से – महान होगा | आज की यह तिथि ‘महाशिवरात्रि’ के नामसे विख्यात होकर मेरे लिये परम प्रिय होगी | इसके समय में जो मेरे लिंग (निष्कल – अंग – आकृति से रहित निराकार स्वरूप के प्रतीक )
वेर (सकल – साकाररूप के प्रतीक विग्रह) की पूजा करेगा, वह पुरुष जगत की सृष्टि और पालन आदि कार्य भी कर सकता हैं | जो महाशिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं जितेन्द्रिय रहकर अपनी शक्ति के अनुसार निश्चलभाव से मेरी यथोचित पूजा करेगा, उसको मिलनेवाले फल का वर्णन सुनो |
एक वर्षतक निरंतर मेरी पूजा करनेपर जो फल मिलता हैं, वह सारा केवल महाशिवरात्रि को मेरा पूजन करने से मनुष्य तत्काल प्राप्त कर लेता हैं | जैसे पूर्ण चंद्रमा का उदय समुद्र की वृद्धि का अवसर हैं, उसी प्रकार यह महाशिवरात्रि तिथि मेरे धर्म की वृद्धि का समय हैं |
इस तिथिमे मेरी स्थापना आदि का मंगलमय उत्सव होना चाहिये | व्रत क्यों, कब और कैसे रखें : तिथितत्त्व के अनुसार शिव को प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि पर उपवास की प्रधानता तथा प्रमुखता है क्योंकि भगवान् शंकर ने खुद कहा है -
“न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया। तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः।।”
'मैं उस तिथि पर न तो स्नान, न वस्त्रों, न धूप, न पूजा, न पुष्पों से उतना प्रसन्न होता हूँ, जितना उपवास से।'
स्कंदपुराण में लिखा है
“सागरो यदि शुष्येत क्षीयेत हिमवानपि। मेरुमन्दरशैलाश्च रीशैलो विन्ध्य एव च॥
चलन्त्येते कदाचिद्वै निश्चलं हि शिवव्रतम्।”
अर्थात् ‘चाहे सागर सूख जाये, हिमालय भी क्षय को प्राप्त हो जाये, मन्दर, विन्ध्यादि पर्वत भी विचलित हो जाये, पर शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं हो सकता।’ इसका फल अवश्य मिलता है।
‘स्कंदपुराण’ में आता है
“परात्परं नास्ति शिवरात्रि परात्परम् |
न पूजयति भक्तयेशं रूद्रं त्रिभुवनेश्वरम् |
जन्तुर्जन्मसहस्रेषु भ्रमते नात्र संशयः||”
‘शिवरात्रि व्रत परात्पर (सर्वश्रेष्ठ) है, इससे बढ़कर श्रेष्ठ कुछ नहीं है | जो जीव इस रात्रि में त्रिभुवनपति भगवान महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक जन्म-चक्रों में घूमता रहता है |
’ ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एकादशी को अन्न खाने से पाप लगता है और शिवरात्रि, रामनवमी तथा जन्माष्टमी के दिन अन्न खाने से दुगना पाप लगता है।
अतः महाशिवरात्रि का व्रत अनिवार्य है।
जब प्रदोष काल रात्रि का आंरभ एवं अर्द्धरात्रि के समय चतुर्दशी तिथि रहे उसी दिन शिव रात्रि का व्रत होता है
शिवरात्रि में संपूर्ण रात्रि जागरण करने से महापुण्य फल की प्राप्ति होती है। ध्यान रहे महाशिवरात्रि में रात्रिकाल की ही प्रधानता है। पूरे दिन व्रत रखकर शाम को पारण करने की गलती न करें।
अगर आप इस दिन शिव पूजन, व्रत, रात्रि जागरण कर अगले दिन पारण कर रहे हैं तो गरुड़पुराण के निम्न मंत्र से प्रार्थना करें और व्रत का नियम लें:
“प्रातर्देव ! चतुर्दश्यां जागरिष्याम्यहं निशि ।
पूजां दानं तपो होमं करिष्याम्यात्मशक्तितः ॥
चतुर्दश्यां निराहारो भूत्वा शम्भो परेऽहनि । भोक्ष्येऽहं भुक्तिमुक्त्यर्थं शरणं मे भवेश्वर ॥
हे देव! मैं रात्रिभर जागरण करूँगा। प्रात: चतुर्दशी तिथि में यथासामथ्र्य आपकी पूजा, दान और हवन भी करूँगा। हे शम्भो! चतुर्दशी तिधि में निराहार रहकर दूसरे दिन भोजन करूँगा। हे महादेव ! भक्ति और मुक्ति की प्राप्ति के लिए मैं आपकी शरण में हूँ।
अथवा
अग्निपुराण के अनुसार निम्न मंत्र से प्रार्थना करें और नियम लें :
शिवरात्रिव्रतं कुर्वे चतुर्दश्यामभोजनं ॥ रात्रिजागरणेनैव पूजयामि शिवं व्रती । आवाहयाम्यहं शम्भुं भुक्तिमुक्तिप्रदायकं ॥ नरकार्णवकोत्तारनावं शिव नमोऽस्तु ते ।
नमः शिवाय शान्ताय प्रजाराज्यादिदायिने ॥ सौभाग्यारोग्यविद्यार्थस्वर्गमार्गप्रदायिने(२) । धर्मन्देहि धनन्देहि कामभोगादि देहि मे ॥
गुणकीर्तिसुखं देहि स्वर्गं मोक्षं च देहि मे ।
“मैं चतुर्दशी को भोजनका परित्याग करके शिवरात्रि का व्रत करता हूँ | मैं व्रतयुक्त होकर रात्रि-जागरण के द्वारा शिव का पूजन करता हूँ | मैं भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले शंकर का आवाहन करता हूँ | शिव ! आप नरक-समुद्र से पार करानेवाली नौका के समान हैं; आपको नमस्कार है | आप प्रजा और राज्यादि प्रदान करनेवाले, मंगलमय एवं शान्तस्वरूप हैं; आपको नमस्कार है | आप सौभाग्य, आरोग्य, विद्या, धन और स्वर्ग-मार्ग की प्राप्ति करानेवाले है | मुझे धर्म दीजिये, धन दीजिये और कामभोगादि प्रदान कीजिये | मुझे गुण, कीर्ति और सुख से सम्पन्न कीजिये तथा स्वर्ग और मोक्ष प्रदान कीजिये |”
व्रत कैसे रहें :
पंच ज्ञानेन्द्रियां
(आंख, कान, नाक, त्वचा और जिह्वा),
पंच कर्मेन्द्रियां
(वाणी, हाथ, पैर, गुदा और उपस्थ),
चार अन्त:करण
(मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार) –
इन चतुर्दश (चौदह) का समुचित नियंत्रण, संयम, संचालन ही ‘शिवरात्रि-व्रत’ है।
सा जिह्वा या शिवं स्तौति तन्मनो ध्यायते शिवम् !
तौ कर्णौ तत्कथालोलौ तौ हस्तौ तस्य पूजकौ !!
ते नेत्र पश्यत: तच्छिर: प्रणतं शिवे!
तौ पादौ यौ शिवक्षेत्रं भक्त्या पर्यटत: सदा!!
यस्येंद्रियाणि सर्वाणि वर्तन्ते शिवकर्मसु! स निस्तरति संसारं भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति !! शिवभक्तियुतो मर्त्यमर्त्याश्चंडाल: पुल्कसोSपि च !
नारी नरो वा पंढो वा सद्यो मुच्येत संसूते:!!
वही जिह्वा सफल है, जो भगवान शिवकी स्तुति करती है! वही मन सार्थक है, जो भगवान शिव के ध्यान में संलग्न होता है, वे ही कान सफल हैं, जो उनकी कथा सुनाने के लिये उत्सुक रहते हैं और वे ही दोनों हाथ सार्थक हैं, जो शिव की पूजा करते हैं! वे नेत्र धन्य हैं, जो भगवान शिवजी की पूजा का दर्शन करते हैं! वह मस्तक धन्य है, जो भगवान शिव जी के सामने झुक जाता है! वे पैर धन्य हैं, जो भक्तिपूर्वक शिवके क्षेत्रों में सदा भ्रमण करते हैं! जिसकी सम्पूर्ण इन्द्रियाँ भगवान शिवके कार्यों में लगी रहती हैं, वह संसार-सागर से पार हो जाता है और भोग तथा मोक्ष प्राप्त कर लेता है! भगवान शिवकी भक्ति से युक्त मनुष्य चांडाल, पुल्कस, नारी, पुरुष अथवा नपुंसक--कोई भी क्यूँ न हो, तत्काल संसार-बंधन सर मुक्त हो जाता है! जिसके हृदय में भगवान शिव की लेशमात्र भी भक्ति है, वह समस्त देहधारियों के लिये वन्दनीय है! अतः शिवरात्रि व्रत में आखों को शिव दर्शन में, कान को शिव महिमा सुनने में, नाक को शिवमय सुगन्धित वातावरण में लगाएं। शरीर की पवित्रता का ध्यान रखें। जितना ज्यादा हो सके शिव के समीप रहें। दिन में केवल फल खायें और दूध पियें। किसी भी अन्य प्रकार के भोजन से दूर रहे। अपना मन, बुद्धि तथा हृदय शिवमय बना लें।
शिव महिमा का गुणगान करें।
निम्न शिव के मंत्र का जप करें।
देव-देव महादेव नीलकंठ नमोवस्तु ते। कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तब॥
तब प्रसादाद् देवेश निर्विघ्न भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडांकुर्वन्तु नैव हि॥
षोडशोपचार पूजन करें, रुद्राभिषेक करें, शिव सहस्त्रार्चन करें।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार
जो शिवरात्रि के दिन भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाता है, वह पत्र-संख्या के बराबर युगों तक कैलास में सुख पूर्वक वास करता है।
पुनः श्रेष्ठ योनि में जन्म लेकर भगवान शिव का परम भक्त होता है। विद्या, पुत्र, सम्पत्ति, प्रजा और भूमि-ये सभी उसके लिए सुलभ रहते हैं।
रात्रि में चार प्रहर की पूजा करें।
रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध से 'ह्रीं ईशानाय नम:' मंत्र बोलते हुए,
दूसरे प्रहर में दही से ह्रीं अधोराय नम:' मंत्र बोलते हुए,
तीसरे प्रहर में घृत से 'ह्रीं वामदेवाय नम:' मंत्र बोलते हुए,
चौथे प्रहर में मधु से 'ह्रीं सद्योजाताय नम:' मंत्र बोलते शिव पूजन तथा अभिषेक करें।
अगले दिन निन्म मंत्र बोलते हुए पारणा अर्थात शिव व्रत का समापन करें।
उपसन्नस्य दीनस्य प्रायश्चित्तकृताञ्जले:।
शरणं च प्रपन्नस्य कुरुष्वाद्य दयां प्रभो।।
परत्र भयभीतस्य भग्रखण्डव्रतस्य च।
कुरु प्रसादं सम्पूर्णं व्रतं सम्पूर्णमस्तु में।।
तपश्छिद्रं व्रतच्छिद्रं यच्छिद्रं भम्रके व्रते।
तव प्रसादाद्देवेश सर्वच्छिद्रमस्तु न:।।
अर्थ - हे ईश्वर, मुझसे व्रत आदि में जो दोष, गलती, अपराध या चूक हो गई है, आपकी कृपा से वह सारे दोष दूर हों व मेरा व्रत पूर्ण हो। मैं आपकी शरण में आया हूं, मुझ पर दया करें।
गरुड़ पुराण के अनुसार इस प्रकार क्षमा-प्रार्थना करें -
अविघ्नेन व्रतं देव ! त्वत्प्रसदान्मयार्चितम् । क्षमस्व जगतां नाथ ! त्रैलोक्याधिपते हर ॥ यन्मयाद्य कृतं पुण्यं यद्रुद्रस्य निवेदितम् । त्वत्प्रसादान्मया देव ! व्रतमद्य समापितम् ॥ प्रसन्नो भव मे श्रीमन् गृहं प्रति च गम्यताम् । त्वदालोकनमात्रेण पवित्रोऽस्मि न संशयः ॥
इसके बाद व्रती ध्याननिष्ठ ब्राह्मण को भोजन से संतृप्त कर वस्त्र-छत्रादि दे। तदन्तर वह पुनः इस प्रकार प्रार्थना करे
- देवादिदेव भूतेश लोकानुग्रहकारक ॥
यन्मया श्रद्धया दत्तं प्रीयतां तेन मे प्रभुः ।
अगर आप द्वादश-वार्षिक व्रत करना चाहते हैं तो आज ही संकल्प लें। बारह व्रत पूर्ण कर द्वादश ब्राह्मणों को भोजन प्रदान करे और दीपदान करे।
पंडित bhubneshwar
कस्तूरवा नगर पर्णकुटी गुना
9893946810
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