Nउत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान
।1। खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै
।2। उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो सँग रहा
।3। जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी
।4। खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।
5। गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै।
6। सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै।
7। गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।
8। वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा ।
9। छोड़ै खाद जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई ।
10। सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी जो पचास का सौ न तुलै, देव घाघ को गारी
।11। सावन मास बहे पुरवइया। बछवा बेच लेहु धेनु गइया।
12। शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।
13। रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय। कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।
14। उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि। भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।
15। पुरुवा रोपे पूर किसान। आधा खखड़ी आधा धान।
16। आद्रा में जौ बोवै साठी। दु:खै मारि निकारै लाठी।
17। पूस मास दसमी अंधियारी। बदली घोर होय अधिकारी। सावन बदि दसमी के दिवसे। भरे मेघ चारो दिसि बरसे।
18। पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज। मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।
19। अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।
20। सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात। बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।
21। असुनी नलिया अन्त विनासै। गली रेवती जल को नासै।
22। भरनी नासै तृनौ सहूतो। कृतिका बरसै अन्त बहूतो
।२३। आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत। नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत।
24। रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय। कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।
25। उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि। भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।
26। खनिके काटै घनै मोरावै। तव बरदा के दाम सुलावै
।27। हस्त बरस चित्रा मंडराय। घर बैठे किसान सुख पाए।
28। हथिया पोछि ढोलावै। घर बैठे गेहूं पावै
।29। जब बरखा चित्रा में होय। सगरी खेती जावे खोय।
30। जो बरसे पुनर्वसु स्वाती। चरखा चलै न बोलै तांती।
31 जो कहुं मग्घा बरसै जल। सब नाजों में होगा फल।
32। जब बरसेगा उत्तरा। नाज न खावै कुत्तरा
।33। दसै असाढ़ी कृष्ण की, मंगल रोहिनी होय। सस्ता धान बिकाइ हैं, हाथ न छुइहै कोय।
34। असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।
35। चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।
36। असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र। तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।
37। रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर। एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।
38। गहिर न जोतै बोवै धान। सो घर कोठिला भरै किसान।
39। गेहूं भवा काहें। असाढ़ के दुइ बाहें।। गेहूं भवा काहें। सोलह बाहें नौ गाहें।। गेहूं भवा काहें। सोलह दायं बाहें।। गेहूं भवा काहें। कातिक के चौबाहें।
40। गेहूं बाहें। धान बिदाहें।
41। गेहूं मटर सरसी। औ जौ कुरसी।
42। गेहूं बाहा, धान गाहा। ऊख गोड़ाई से है आहा
।43। गेहूं बाहें, चना दलाये। धान गाहें, मक्का निराये। ऊख कसाये।
44 पुरुवा रोपे पूर किसान। आधा खखड़ी आधा धान।
45। पुरुवा में जिनि रोपो भैया। एक धान में सोलह पैया
।46। कन्या धान मीनै जौ। जहां चाहै तहंवै लौ
।47। कुलिहर भदई बोओ यार। तब चिउरा की होय बहार
।48। आंक से कोदो, नीम जवा। गाड़र गेहूं बेर चना
।49। आद्रा में जौ बोवै साठी। दु:खै मारि निकारै लाठी।
50। आद्रा बरसे पुनर्वसु जाय, दीन अन्न कोऊ न खाय।
51। आस-पास रबी बीच में खरीफ। नोन-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।
52।क्योंकि घाघ के मुताबिक 'दिन में गर्मी रात को ओस, घाघ कहे बरसा सौ कोस
र्षा के संबंध में प्रचलित घाघ की इस कहावत में
'आदि न बरसे आद्रा,
हस्त न बरसे निदान,
सुनौ घाघ कहै भड्डरी भए किसान पिसान।'
वर्षा न होने की स्थिति की ओर संकेत किया गया है तथा किसानों का नुकसान होने की संभावना व्यक्त की गई है।
ऐसी ही एक और लोकोक्ति है कि
'मंगल सोम होय शिवराती,
पछवा वाय बहै दिन राती,
घोड़ा रोड़ा टिड्डी उड़ै,
राजा मरै कि परलै परै'।
जिस वर्ष शिवरात्रि पर्व सोमवार या मंगलवार के दिन पड़े और पछुवा हवा रात-दिन चले तो समझ लीजिए कि टिड्डी जावेगी, राजा मरेगा और खेत सूखे के कारण बोए नहीं जाएंगे।
घाघ 'आवत आदर ना दियौ,
जात न दीन्हों हस्त, ई दोनों पछतात हैं
पहुना औ गिरहस्त।
' चढ़ते आद्र्रा नक्षत्र में यदि वर्षा न हो तथा जाते-जाते हथिया नक्षत्र में यदि वर्षा न हो और घर आए मेहमान को सम्मान न मिले तथा जाते समय उसे कुछ हाथ में देकर विदा न किया जाय तो मेहमान एवं गृहस्थ दोनों पछताते रह जाते हैं।
आधा आद्र्रा बीतने के बाद भी कुछ बूंदाबांदी को छोड़ दें तो अभी तक बारिश न के बराबर हुई है।
घाघ के कुछ अन्य दावों पर गौर करें तो '
रोहिणी बरसे, मृग तपे, कुछ-कुछ आद्र्रा जाय, कहै घाघ सुन घाघनि, श्वान भात नहीं खाय।'
रोहिणी नक्षत्र में वर्षा हो, मृग डाह तपने लगे और आद्र्रा के बीतने के कुछ समय बाद पुन: वर्षा हो तो धान की पैदावार इतनी होगी कि कुत्ता भी भात नहीं खाएगा। '
जै दिन जेठ बहे पुरवाई,
तै दिन सावन धूरि उड़ाई'
ज्येष्ठ माह में जितने दिन पुरवा हवा चलेगी, सावन महीने में उतने ही दिन सूखा पड़ेगा।
'दिन के बद्दर, रात निबद्दर,
बहे पुरवाई झब्बर-झब्बर,
कहै घाघ कुछ होनी होई,
कुआं खोदि के धोबी धोई।
' यदि दिन में बदली हो तथा रात में आसमान साफ हो जाय साथ ही पुरवा हवा जोर-जोर से बहती हो तो उस साल सूखा पड़ना निश्चित है।
'श्रावण शुक्ला सप्तमी,
उगत दिखे जो भान
, या जल मिलिहैं कूप में या गंगा स्नान।
' यानि सावन माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को प्रात: सूर्य का उगना दिखे तो घाघ के अनुसार निश्चित रूप से सूखा पड़ेगा। '
श्रावण शुक्ला सप्तमी,
डूब के उगे भान,
तब ले देव बरिसिहैं,
जब सो देव उठान।'
सावन शुक्ल सप्तमी को यदि सूर्य बदली में डूब कर उगे तो कार्तिक माह में देवोत्थान एकादशी तक अवश्य वर्षा होती है। '
माघ पूस में दखिना चले,
तो सावन के लक्षन भले'
माघ-पूस में यदि दक्षिण दिशा से हवा चले तो सावन माह में अच्छी वर्षा की उम्मीद की जा सकती है।
'जब पुरवा, पुरवा रस पाई,
तब गड़ही में नाव चलाई।'
यानि पुरवा नक्षत्र में यदि पुरवाई बहेगी तो इतनी वर्षा होगी कि गड़ही में भी नाव चलने लगेगी।
'अंडा ले चीटीं चले,
गौरैया धूरि नहाय,
छर-छर बरसी बदरा
, अन्न से घर भर जाय' माना जाता है कि चींटी अपना अंडा सुरक्षित स्थान पर ले जाय गौरैया धूल में स्नान करती दिखे तो तत्काल वर्षा होगी। 'शुक्र के आवे बादरी, रहे शनीचर ठाढ़, कहै घाघ सुन घाघनि बिन बरसे ना जाय' यदि शुक्रवार को बदरी हो तथा शनिवार तक छाई रहे तो वर्षा अवश्य होगी।
सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।
अर्थात् यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
अर्थात् यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय। कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।
अर्थात् यदि रोहिणी पूरा बरस जाए, मृगशिरा में तपन रहे और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।
अर्थात् उत्तरा और हथिया नक्षत्र में यदि पानी न भी बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज ठीक ठाक ही होती है।
पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।
अर्थात् पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा खखड़ी (कटकर-पइया) पैदा होता है। आद्रा में जौ बोवै साठी। दु:खै मारि निकारै लाठी।। अर्थात् जो किसान आद्रा नक्षत्र में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
1 रहै निरोगी जो कम खाय बिगरे न काम जो गम खाय
2 प्रातकाल खटिया ते उठि के पियइ तुरते पानी कबहूँ घर में वैद न अइहैं बात घाघ के जानी
3 मार के टरि रहू खाइ के परि रहू
4 ओछे बैठक ओछे काम ओछी बातें आठो जाम घाघ बताए तीनो निकाम भूलि न लीजे इनकौ नाम
5 ना अति बरखा ना अति धूप ना अति बक्ता न अति चूप
6 माघ-पूस की बादरी और कुवारा घाम ये दोनों जो कोऊ सहे करे पराया काम
7 चींटी संचय तीतर खाय पापी को धन पर ले जाय
8 धान पान अरू केरा तीनों पानी के चेरा
9 बाड़ी में बाड़ी करे करे ईख में ईख वे घर यों ही जाएंगे सुने पराई सीख
10 जेकर खेत पड़ा नहीं गोबर वही किसान को जानो दूबर
11 जेठ मास जो तपे निरासा तो जानो बरखा की आसा
12 दिन में गरमी रात में ओस कहे घाघ बरखा सौ कोस कृषि *
*-** घाघ का अभिमत था कि कृषि सबसे उत्तम व्यवसाय है, जिसमें किसान भूमि को स्वयं जोतता है : उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान
।1। खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै।
2। उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो सँग रहा।
3। अथवा- जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी
।1। खादों के संबंध में घाघ के विचार अत्यंत पुष्ट थे। उन्होंने गोबर, कूड़ा, हड्डी, नील, सनई, आदि की खादों को कृषि में प्रयुक्त किए जाने के लिये वैसा ही सराहनीय प्रयास किया जैसा कि 1840 ई. के आसपास जर्मनी के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक लिबिग ने यूरोप में कृत्रिम उर्वरकों के संबंध में किया था। घाघ की निम्नलिखित कहावतें अत्यंत सारगर्भित हैं : खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।5। गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै।
6। सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै
।7। गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।
8। वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा
9। घाघ ने गहरी जुताई को सर्वश्रेष्ठ जुताई बताया। यदि खाद छोड़कर गहरी जोत कर दी जाय तो खेती को बड़ा लाभ पहुँचता है : छोड़ै खाद जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई।10। बांध न बाँधने से भूमि के आवश्यक तत्व घुल जाते और उपज घट जाती है। इसलिये किसानों को चाहिए कि खेतों में बाँध अथवा मेंड़ बाँधे, सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी जो पचास का सौ न तुलै, दव घाघ को गारी
।11। घाघ ने फसलों के बोने का उचित काल एवं बीज की मात्रा का भी निर्देश किया है। उनके अनुसार प्रति बीघे में पाँच पसेरी गेहूँ तथा जौ, छ: पसेरी मटर, तीन पसेरी चना, दो सेर मोथी, अरहर और मास, तथा डेढ़ सेर कपास, बजरा बजरी, साँवाँ कोदों और अंजुली भर सरसों बोकर किसान दूना लाभ उठा सकते हैं। यही नहीं, उन्होंने बीज बोते समय बीजों के बीच की दूरी का भी उल्लेख किया है, जैसे घना-घना सन, मेंढ़क की छलांग पर ज्वार, पग पग पर बाजरा और कपास; हिरन की छँलाग पर ककड़ी और पास पास ऊख को बोना चाहिए। कच्चे खेत को नहीं जोतना चाहिए, नहीं तो बीज में अंकुर नहीं आते। यदि खेत में ढेले हों, तो उन्हें तोड़ देना चाहिए। आजकल दालों की खेती पर विशेष बल दिया जाता है, क्योंकि उनसे खेतों में नाइट्रोजन की वृद्धि होती है। घाघ ने सनई, नील, उर्द, मोथी आदि द्विदलों को खेत में जोतकर खेतों की उर्वरता बढ़ाने का स्पष्ट उल्लेख किया है। खेतों की उचित समय पर सिंचाई की ओर भी उनका ध्यान था। घाघ को खेती के साथ-साथ लोक समाज की व्यावहारिक बातों का भी बहुत अच्छा ज्ञान था। उनकी कहावतें लोकजीवन में आज भी लोगों की जवान पर रहती हँ I
ज्योतिष ज्ञान पर आधारित मौसम -
भविष्य वाणी ...
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘
काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज। मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।
यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।
असुनी नलिया अन्त विनासै।
गली रेवती जल को नासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।
कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत।
नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत।।
आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे,
बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत चैते वर्षा आई और सावन सूखा जाई।
एक बूंद जो चैत में परे सहसबूंद सावन की हरै। घाघ! कहते हैं यदि चैत के महीने में वर्षा होगी तो सावन के महीने में कम वर्षा होगी। यदि एक बूंद भी वर्षा की पड़ती है, तो वह सावन की हजार बूंदों को समाप्त कर देती है।
माघ के ऊमष जेठ के जाड़, पहिला वर्षा भरिगे ताल। कहैंघाघ हम होई बियोगी, कुआ खोदि के धोईहैं धोबी।
। घाघ! कहते हैं-यदि माघ के महिने में जाड़े के बजाय गर्मी पड़े और जेठ में गर्मी के जगह जाड़ा पड़े व पहली वर्षा से तालाब भर जाये तो समझ लेना चाहिए कि इस वर्ष इतना सूखा पड़ेगा कि धोबियों को भी कपड़े धोने के लिए जल कुएं से खींचना
मंगल रथ आगे चलै, पीछे चले जो सूर।
मन्द वृष्टि तब जानिये, पडती सगले धूर।।
इस कहावत में घाघ! ज्योतिष के अनुसार ग्रह-गोचर देखकर, वर्षा की भविष्यवाणी कैसे करे बताते हैं, यदि ग्रह-गौचर में मंगल आगे और सूर्य पीछे हो निश्चित ही सूखा पड़ता है।
आगे रवि पीछे चले, मंगल जो आषाड़।
तौ बरसे अनमोल हो, पृथ्वी आनन्द बाढ़।
जिस वर्ष गौचर में सूर्य के पीछे मंगल रहते हैं उस साल वर्षा खूब होती है और पृथ्वी पर आनन्द होता है।
माघ में जो बादर लाल घिरै, सांची मानो पाथर परै।
भड्डरी! कहते हैं कि यदि माघ के महीने में लाल रंग के बादल दिखाई दे तो निश्चय ही ओले पडते हैं।
जेठ चले पुरवाई, सावन सूखा जाई।
भड्डरी! कहते हैं, यदि जेठ के महिने में पुरवा हवा चले तो सावन के महिने में सूखा पड़ेगा, ऐसा मानना चाहिए।
रात दिन घम छाहीं, घाघ कहै अब बरखा नाही।
पूनों पड़वा गाजै, दिना बहत्तर बाजै।।
कवि घाघ! कहते हैं कि रात दिन धूल छाई रहे तो वर्षा नहीं होगी, यदि जेठ के महिने में पूनो और परवा का बादल गर्जे तो समझ लो कि दो माह तक वर्षा नहीं होगी।
सवन शुक्ला सप्तमी, उगत न दीखै भान।
तब तक वर्षा होइगी, जो लगि देवउठान।।
घाघ! कहते हैं कि यदि सावन सुदी की सप्तमी को सूर्य बादल से ढका रहे तो देवउठान तक वर्षा होती है।
माघ पूस जो दखिना चले, तो सावन में लक्षन भले।
घाघ! कहते हैं कि यदि माघ तथा पूस के महिने में दक्षिण दिशा की हवा चले तो सावन में अच्छी वर्षा होती है।
दिन में गर्मी रात को ओस, कहै घाघ वर्षा सौ कोष।
घाघ! कहते है यदि दिन में गर्मी और रात को ओस पड़े तो वर्षा की कोई आशा नहीं है।
करिया बादल डरवावे, भुवरा बादल पानी लावे।
घाघ! कहते हैं काला बादल केवल वर्षा का भय दिखाता है, जबकि भूरा बादल अच्छी वर्षा करता है।
पूरब के बादल पछियां जाय, पतली छांडि के मोटी पकाव।
पछुवा बादर पूरब को जावे, मोटी छांडि के पतली खावे।।
घाघ! कहते हैं कि यदि बादल पूरब से पश्चिम की ओर जाये जो वर्षा अच्छी होती है, अन्न खूब पैदा होता है, यदि पश्चिम से पूरब की ओर हवा चले तो वर्षा कम होती है।
शुक्रवार की बादरी रही शनीचर छाय।
ऐसा बोले भड्डरी बिन बरसे ना जाय।।
भड्डरी! कहते हैं कि यदि शुक्रवार के दिन होने वाले बादल शनिवार तक छाये रहें तो वर्षा अवश्य होती है।
सावन केरे प्रथम दिन उगत न दिखे भान।
चार महिना पानी बरसें जानों इसे प्रमान।
घाघ! कहते हैं कि सावन प्रतिपदा को यदि सूरज उगता न दिखायी पड़े तो चार मास तक खूब वर्षा होती है।
माघ मास की बादरी, और क्वार का घाम।
ये दोनों जो कोई सहै, करै पराया काम।।
घाघ! कहते हैं कि वही व्यक्ति नौकरी कर सकता है जो माघ के महिने की बदली तथा क्वार के महिने का घाम सहन कर सकता हो।
भोर समें डर डम्बरा रात उजेरी होय।
दुपहरिया सूरज तपै दुरभिक्ष तेऊ जोय।।
घाघ! कहते हैं यदि प्रातःकाल बादल घिरे, दोपहर को सूरज तपे और रात में आकाश स्वच्छ रहे तो निश्चय दुर्भिक्ष जानो।
मटका में पानी गर्म चिडि़या न्हावे धूर।
चिउंटी अन्डा लै चलै तौ बरषा भरपूर।
भड्डरी! वर्षा आने का एक संकेत और बताते हैं जो देहात में खूब प्रचलित हैं, यदि घड़े का पानी गर्म रहे, चिडि़या धूल में स्नान करें और चींटी अण्डा लेकर निकले तो खूब वर्षा होती है।
उतरे जेठ जो बोले दादुर, कहैं भडडरी बरसै बादर।
भडड्री्! कहते हैं, यदि जेठ मास के समाप्त होते ही मेढ़क बोले, तो वर्षा होती है।
सब चिन्ता को छांडि कै, करि प्रभु में विश्वास।
वाकै थापै, सब थपै, बिन थापे हो नाश।।
अन्त में घाघ! कहते हैं सब चिन्ताओं को छोड़कर भगवान में विश्वास करना चाहिए। उसमें निष्ठा करने से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं, बिना उसके सर्वनाश होता है।
ड्डरी की मौसम सम्बन्धित कहावतें नक्षत्र ज्योतिष विद्या के महारथी कहे जाने वाले घाघ-भड्डरी की कहावतें उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में आज भी प्रचलित हैं तथा बडे़ चाव से सुनी और सुनाई जाती हैं। लोकगाथा के इस ज्योतिषी के जन्म के समय और स्थान को लेकर अनेक लोकोक्तियां हैं।
भड्डरी की एक कहावत है –
उलटे गिरगिट ऊंचे चढै।
बरखा होइ भूइं जल बुडै।।
यानी यदि गिरगिट पेड़ पर उल्टा होकर अर्थात पूंछ ऊपर की ओर करके चढे़ तो समझना चाहिए कि इतनी वर्षा होगी कि पृथ्वी पानी में डूब जाएगी।
इसी तरह भड्डरी कहते हैं, कि
पछियांव के बाद। लबार के आदर।।
जो बादल पश्चिम से या पश्चिम की हवा से उठता है ‘वह नहीं बरसता’ जैसे झूठ बोलने वाले का आदर निष्फल होता है। सूखे की तरफ संकेत करने वाली
घाघ-भड्डरी की एक कहावत है – दिन को बादर रात को तारे। चलो कंत जहं जीवैं बारे।। इसका मतलब है कि अगर दिन में बादल हों और रात में तारे दिखाई पड़े तो सूखा पडे़गा। हे नाथ वहां चलो जहां बच्चे जीवित रह सकें। सूखे से ही जुड़ी उनकी एक और कहावत है – माघ क ऊखम जेठ क जाड। पहिलै परखा भरिगा ताल।। कहैं घाघ हम होब बियोगी। कुआं खोदिके धोइहैं धोबी।। अर्थात यदि माघ में गर्मी पडे़ और जेठ में जाड़ा हो, पहली वर्षा से तालाब भर जाए तो घाघ कहते हैं कि ऐसा सूखा पडे़गा कि हमें परदेश जाना पडे़गा और धोबी कुएं के पानी से कपडे़ धोएंगे। अतिवृष्टि की तरफ संकेत करने वाली भड्डरी की एक और कहावत है – ढेले ऊपर चील जो बोलै। गली गली में पानी डोलै।। इसका तात्पर्य है कि अगर चील ढेले पत्थर पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि इतना पानी बरसेगा कि गली, कूचे पानी से भर जाएंगे। वर्षा की विदाई का संकेत देने वाली उनकी एक कहावत है – रात करे घापघूप दिन करे छाया। कहैं घाघ अब वर्षा गया।। अर्थात यदि रात में खूब घटा घिर आए, दिन में बादल तितर-बितर हो जाएं और उनकी छाया पृथ्वी पर दौड़ने लगे तो घाघ कहते हैं कि वर्षा को गई हुई समझना चाहिए।
बिना तिलक का पाँडिया,
बिना पुरुष की नार।
बायें भले न दायें,
सीन्याँ सर्प सुनार।।
यात्रा के समय बिना तिलक का पंडित, विधवा स्त्री, दर्ज़ी, साँप और सुनार न दाहिने अच्छे हैं न बायें।
पवन बाजै पूरियो।
हाली हलावकीम पूरियो।।
यदि उत्तर-पश्चिम की हवा चले, तो किसान को नई ज़मीन में हल नहीं चलाना चाहिए। क्योंकि वर्षा जल्दी ही आने वाली
3
तीतर बरनी बादरी
बिधवा काजर रेख |
वे बरसैं वे घर करें
कहें भड्डरी देख ||
तीतर के पंख की तरह बदली हो और विधवा की आँखों में काजल की रेखा हो तो भड्डरी कहते हैं कि बदली बरसेगी और विधवा दूसरा घर करेगी |
पुरबा बादर पच्छिम जाए
वासे वृष्टि अधिक बरसाए |
जो पच्छिम से पूरब जाए
वर्षा बहुत न्यून हो जाए ||
पूर्व दिशा से यदि बादल पश्चिम की ओर जा रहे हों तो वर्षा अधिक होगी | यदि पश्चिम से बादल पूर्व की ओर जा रहे हों तो वर्षा बहुत ही कम होगी |
रात निर्मली दिन को छाहीं|
कहैं भड्डरी पानी नाहीं ||
रात निर्मल हो और दिन में बादलों की छाया दिखाई दे तो भड्डरी कहते हैं कि अब वर्षा नहीं होगी |
उतरे जेठ जो बोलें दादर |
कहैं भड्डरी बरसैं बादर ||
यदि जेठ उतारते ही मेढक बोलने लगें तो वर्षा जल्दी होगी |
आकाश लाल हो तो वर्षा बहुत होती है |
आभा पीला |
मेह सीला ||
आकाश पीला हो तो वर्षा कम होती है |
मंगल सोम होए सिवराती |
पछियाँ बाय बहे दिन राती ||
घोडा रोड़ा टिड्डी उडें |
राजा मरें कि पार्टी पड़ें ||
यदि शिवरात्री मंगल या सोमवार को पड़े और रातदिन पश्चिम की हवा बहे, तो समझना चाहिए कि घोडा (एक प्रकार का पतिंगा), रोड़ा और टिड्डी उडेंगी; तथा राज की मृत्यु होगी या सूखा पड़ेगा, जिस से खेत परती पड़ा रहेगा |
कातिक सूद एकादसी,
बादल बिजुली होय |
तो असाढ़ में भड्डरी,
बरखा चोखी होए ||
कार्तिक शुक्ल एकादशी को यदि बादल हों और बिजली चमके, तो भड्डरी कहते हैं कि आषाढ़ में निश्चय वर्षा होगी |
सूरज तेज सुतेज,
आड़ बोले अन्याली |
यदि माटी गल जाए,
पवन फिर बैठे छाली ||
कीड़ी मेले इंड,
छिड़ी रेट में नहावे |
कांसी कामन दौड़,
आभलीलो रंग आवे ||
देब्रो डहक बाड़ा चढ़े,
विसहर चढ़ बैठे बड़ाँ|
पांडिया जोतिस झूठा पड़ें,
धन बरसैं इतर गुणाँ||
यदि धुप के तेजी बढ़ जाए, बत्तख चिल्लाने लगें, घी पिघल जाए, बकरी हवा के रुख पर पीठ करके बैठे, चींटियाँ अंडे लेकर चलें, गोरैया धुल में नहाए, कांसे का रंग फीका पद जाए, आकाश का रंग गहरा नीला हो जाए, मेढक काँटों की बाड़ में घुस जाएँ और सांप वृक्ष के ऊपर चढ़ कर बैठें, तो घनी वर्षा होगी | ज्योतिष का कथन झूठा हो सकता है, पर ये लक्षण मिथ्या नहीं हो सकते |
सभी किसान भाइयो को बर्षा की जान कारी के लिए ब्लॉग तयार किया गया है आशा है किशान भाई इस ब्लॉग का लाभ जरूर लेगें
आपका
पंडित भुबनेश्वर
कतुरवानगर पर्णकुटी गुना
09893946810
No comments:
Post a Comment