भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। हर वर्ष भाद्रपद की अष्टमी को
धूमधाम से मनायी जाती है। हमेशा की तरह इस बार भी यह त्योहार दो दिन 14 अगस्त और 15 अगस्त को मनाया जाएगा। 14 अगस्त को स्मार्त जन्माष्टमी मनाई जाएगी वहीं 15 को वैष्णव जन्माष्टमी रहेगी।
लेकिन खास बात ये है कि 15 अगस्त को मनाई जाने वाली जन्माष्टमी में कृष्ण जन्म के समय यानी रात 12 बजे न तो अष्टमी तिथि होगी और न ही रोहिणी नक्षत्र रहेगा।
जानिए क्यों?
ज्योतिषाचार्य पंडित bhubneshwar पर्णकुटी के अनुसार यदि 14 अगस्त को आप व्रत रखते हैं तो कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि में होगा
क्योंकि 14 अगस्त को शाम 7.46 बजे अष्टमी शुरू होगी और दूसरे दिन शाम 5.40 बजे तक रहेगी।
लेकिन जो लोग 15 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे उनके लिए कृष्ण जन्माष्टमी के समय न तो अष्टमी रहेगी और न ही रोहिणी नक्षत्र,
क्योंकि 15 अगस्त को शाम 5.40 बजे अष्टमी समाप्त होकर नवमी शुरू हो जाएगी।
वहीं रोहिणी नक्षत्र 15 अगस्त की रात्रि 2.32 बजे से शुरू होकर 16 अगस्त रात 12.50 मिनट तक रहेगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित bhubneshwar पर्णकुटी का कहना है कि शास्त्रों के अनुसार उदया तिथि से हिंदुओं के त्योहार और कोई भी तिथि निर्धारित की जाती है।
15 अगस्त की अष्टमी उदया तिथि की अष्टमी है। बेशक शाम तक अष्टमी समाप्त हो जाएगी, लेकिन इससे परेशान न हों, क्योंकि अष्टमी समाप्त होने के बावजूद भी काफी समय तक उसका असर रहता है।
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक पहले सिर्फ उदया तिथि को ध्यान में रखकर त्योहार निर्धारित होते थे तो हर त्योहार एक ही होता था, लेकिन अब अलग—अलग मान्यताओं के साथ कई तरह के पंचांग बन गए हैं जिससे हर त्योहार दो बार होने लगा है जो कि सही नहीं है। शास्त्रों में भी उदया तिथि का विशेष महत्व रहा है
इसलिए 15 अगस्त को व्रत रहना शास्त्र संवत है।
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