ज्योतिष समाधान

Monday, 21 November 2016

पंचामृत और पञ्चगव्य और पंजीरी (कसार) बनाने की शास्त्रीय बिधि क्या है

पंचामृत का महत्व पंचामृत क्या हैंपंचामृत का
मतलब हैं पांच तरह के अमृत का मिश्रण

पंचामृत को घी + दुध + दही + शहद + शक्कर मिला कर बनता हैं।

तो कहीं पंचामृत को घी + दुध + दही + शहद + गुड मिला कर बनाते हैं।

आध्यात्मिक द्रश्टि कोण से देखे तो जो व्यक्ति पंचामृत से देवमूर्ति (प्रतिमा) का अभिषेक करता हैं, उसे मुक्ति प्रदान हो जाती हैं।

भारतीय सभ्यता में पंचामृत का जो महत्व बताय गया हैं वह हैं, श्रद्धापूर्वक पंचामृत का पान करने वाले व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार की सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं, एवं उसका शरीर मृत्यु के पश्च्यात जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता हैं।

आवश्यक सामग्री - की मात्रा 

स्कन्द पुराण द्वारा प्र माणित्  निर्णय सिंधु

  पेज नंबर  ६९६पर 

दूध से दस गुणा  दही ,

दही से सौ गुणा  घृत ,

 घृत से दस गुणां मधु ,

 मधु से दस गुणा ईख का रस (या  शकर )


पंजीरी  या कसार बनाने की विधि

चरणामृ्त के साथ पंजीरी भी प्रसाद में बनायी जाती है. तो आइये वह पंजीरी भी बनाना शुरू करते हैं.

आवश्यक सामग्री -

गेहूं का आटा - 150 ग्राम (1 कप)

घी - 50 ग्राम (1/4 कप)

बूरा (पिसी चीनी) -

100 ग्राम(आधा कप) मखाने -

10 - 12 इलाइची - 2 (छील कर कूट लीजिये)

विधि - How to make Panjeeri

आटे को किसी बर्तन में छान कर निकालिये. भारे तले की कढाई गैस फ्लेम पर रखिये और कढाई में घी डालकर गरम कीजिये, गरम घी में आटा डालिये और मीडियम गैस फ्लेम पर करछी से चला चला कर भूनिये, जब आटे में महक आने लगे और कलर ब्राउन हो जाय तब गैस फ्लेम बन्द कर दीजिये. भुने आटे को ठंडा होने दीजिये. एक मखाने को 4-5 टुकड़े करते हुये काट लीजिये, छोटी कढ़ाई में 2 छोटी चम्मच घी डाल कर गरम कीजिये, कतरे हुये मखाने गरम घी में डालिये और ब्राउन होने तक चमचे से चलाते हुये भून लीजिये. इलाइची को छील कर पाउडर बना लीजिये. भुने हुये मखाने, बूरा, इलाइची पाउडर को आटे में मिलाइये, आह ये स्वादिष्ट पंजीरी तैयार है

पञ्चगव्य

.
तीन भाग देसी गांय का शकृत (गोबर) ,

तीन ही भाग देसी गांय का कच्चा दूध,

दो भाग देसी गांय के दूध की दधि,

एक भाग देसी गांय का घृत इन्हें मिश्रित कर लें

विष्णु धर्म में कहा गया है जितना पंचगव्य बनाना हो उसका आधा अंश गौमूत्र का होना चाहिए |

अर्थात उक्त मिश्रण जितनी मात्र में हो उतने ही मात्र में गौमूत्र होना चाहिए, शेष कुशाजल होना चाहिए ।

गोमूत्रं गोमय क्षीरं दधि सर्पि कुशोदकम् । पंचचगव्य मिदम् प्रोक्तम्महापातक नाशनम् ॥

पंडित
bhubneshwar
Parnkuti ksturwanagar 
Gunaa m.p
Mo. ९८९३९४६८१०

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