दीपदानात् सदा लक्ष्मीः स्थिरा भवति सर्वदा।
दीपैर्नीराजनं तस्मात् दीपावली स्मृता।।”
🔹 अर्थ:
दीपदान करने से लक्ष्मी सदा स्थिर (स्थायी) होती हैं।
इसी कारण दीपों से नीराजन करने का विधान है, और इसी से यह तिथि दीपावली कहलाती है।स्कन्दपुराण, कार्तिकमाहात्म्य में दीपदान (दीयों का दान और प्रज्वलन) केवल दीपावली पर ही नहीं, बल्कि कार्तिक मास के संपूर्ण काल में अत्यंत पुण्यकारी बताया गया है स्कन्दपुराण, कार्तिकमाहात्म्य में
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दीपदानात् सदा लक्ष्मीः स्थिरा भवति सर्वदा।
दीपैर्नीराजनं तस्मात् दीपावली स्मृता।।
➤ अर्थ: दीपदान करने से लक्ष्मी स्थिर होती हैं। इसी कारण दीपों से आराधना कर इस तिथि को दीपावली कहा गया।
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पद्मपुराण, कार्तिकमाहात्म्य
यः कार्तिके मासि नरोऽभ्युपेतो
दीपं ददात्यायनवस्त्रसङ्गम्।
तेनाक्षयं पुण्यमवाप्य लोके
विष्णोः पदं याति सुखेन पुंसाः।।
➤ अर्थ: जो कार्तिक मास में दीपदान करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और अंततः वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है।
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नारदपुराण
दीपं यः प्रयतो दद्यात् कार्तिके मासि भक्तितः।
स याति विष्णुसायुज्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते।।
➤ अर्थ: जो कार्तिक मास में भक्ति से दीपदान करता है, वह विष्णुसायुज्य को प्राप्त होता है और समस्त पापों से मुक्त होता है।
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गृह्यसूत्रवचन
दीपदानं तु यः कुर्यात् संध्यायां वा निशामुखे।
तस्य पापं विनश्येत् दीपवत् तिमिरं यथा।।
➤ अर्थ: जो संध्या या रात्रि के आरंभ में दीपदान करता है, उसके पाप वैसे ही नष्ट होते हैं जैसे दीप से अंधकार
🔱 दीपदान माहात्म्य (महत्व)
✴️ शास्त्रवचन:
> दीपं यो यः प्रयच्छेत् कार्तिके मासि मानवः।
तेन जातं महत् पुण्यं सर्वपापप्रणाशनम्।।
(स्कन्दपुराण, कार्तिकमाहात्म्य)
अर्थ:
जो मनुष्य कार्तिक मास में दीपदान करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
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> दीपदानं हि यः कुर्यात् प्रदोषे भक्तिसंयुतः।
तस्य लोकाः परं यान्ति दीपवत् सर्वतः शुभाः।।
(नारदपुराण)
अर्थ:
जो संध्याकाल में दीपदान करता है, वह स्वयं प्रकाशमय लोकों को प्राप्त होता है।
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> दीपदानात् सदा लक्ष्मीः स्थिरा भवति सर्वदा।
दीपैर्नीराजनं तस्मात् दीपावली स्मृता।।
(स्कन्दपुराण)
अर्थ:
दीपदान करने से लक्ष्मी सदा स्थिर रहती हैं। इसी कारण दीपों से आराधना कर इसे दीपावली कहा गया है।
2. दीपावली की रात्रि:
प्रदोषकाल — सूर्यास्त से लगभग 72 मिनट तक का समय सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
5. मंत्र बोलें —
> “दीपं देहि जगन्नाथ त्रैलोक्यं तमोनुदम्।
नमस्ते दीपदेवेति प्रज्वालयामि सर्वदा।।
6. दीप जलाने के बाद प्रार्थना करें —
“दीपज्योतिर्विनाशाय पापानां संसारसागरात्।
दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते नमोऽस्तु ज्योतिरेश्वरि।।”
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