1नवम्बर 2024 को शास्त्रानुमोदित दीपावली पर्व को लेकर जनमानस में भ्रान्तियाँ फैलाने की दृष्टि से तथाकथित विद्वानों ने अब नया शगूफा छोड़ा है- *यदि दीपोत्सव के समय प्रतिपदा तिथि दिख जाए तो उस दूषित तिथि को रजस्वला स्त्री के समान त्याग देना चाहिए।* इसका निराकरण इस प्रकार है -
1👉1 नवम्बर दीपावली के दिन अमावस्या तिथि प्रदोष काल में सायं 6.17तक व्याप्त रहेगी और इसी में दीपोत्सव अथवा दीपदान किया जाएगा अतः यह कथन पूरी तरह से निराधार है।
*रुद्रेण द्वादशी युक्ता चतुर्दश्यां च पूर्णिमा। प्रतिपदाष्यमावस्या तिथ्योर्युग्मं महाफलम्।एतद्व्यस्तं महादोषं हन्ति पुण्यं पुराकृतम्।।*
2👉जनता को भ्रमित करने वाले इन विद्वानों से पूछा जाना चाहिए कि,यदि स्वयं की पत्नी, पुत्री, बहन और बहू आदि पर्व अथवा मांगलिक कार्य के अवसर पर अचानक रजस्वला हो जायें तो क्या उन्हें त्याग दिया जायेगा?क्योंकि वे धन-धान्य का क्षय करने वाली हैं?
3👉विष्णु धर्मोत्तरपुराण में कहा गया है कि,जिस कर्म का जो काल(समय) हो उस समय तक व्यापिनी जो तिथि हो उसमें कर्मों को करना चाहिए क्योंकि उसमें ह्रास और वृद्धि कारण नहीं होता है- *कर्मणो यस्य य:कालस्तत्काल व्यापिनी तिथि:।तया कर्माणि कुर्वीत ह्रासवृद्धी न कारणम्।।* यदि वह तिथि दो दिन हो तो युग्म वाक्य से निर्णय करना चाहिए अर्थात् इसमें एकादशी से युक्त द्वादशी,चतुर्दशी से युक्त पूर्णिमा और प्रतिपदा से युक्त अमावस्या ग्रहण करना चाहिए।इन तिथियों का युग्म महान् फल देता है और इसके विपरीत हो तो महान् दोषकारक होकर होकर सारे पुण्यों को नष्ट कर देता है- *रुद्रेण द्वादशी युक्ता चतुर्दश्यां च पूर्णिमा। प्रतिपदाष्यमावस्या तिथ्योर्युग्मं महाफलम्।एतद्व्यस्तं महादोषं हन्ति पुण्यं पुराकृतम्।।*
4👉स्कन्दपुराण में भी यह स्पष्ट किया गया है कि-जिस तिथि को प्राप्त करके सूर्य अस्त हो जाए और उस दिन तीन मुहूर्त जो तिथि हो वही पूरे समय मानी जाएगी- *यां तिथिं समनुप्राप्य यात्यस्तं पद्मिनीपति:।सा तिथिस्तद्दिने प्रोक्ता त्रिमुहूर्तैव या भवेत्।।*
5👉 इसी तरह धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु,व्रत-पर्व-निर्णय,आदि ग्रंथों में स्पष्टतः उल्लिखित है कि-व्रतों में उत्तम सावित्री व्रत को छोड़कर चतुर्दशी से विद्ध अमावस्या तथा पूर्णिमा कभी भी ग्रहण नहीं करना चाहिए- *पौर्णमास्यमावास्ये तु सावित्रीव्रतं विना परे ग्राह्ये।* ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी कहा गया है - *भूतविद्धे न कर्तव्ये दर्शपूर्णे कदाचन।वर्जयित्वा मुनिश्रेष्ठ सावित्रीव्रतमुत्तमम्।।*
इस प्रकार और भी अनेक प्रमाण धर्मशास्त्रों में उपलब्ध हैं जिनके आधार पर इस प्रकार के अतिरेकी वचन स्वत:ही निर्मूल सिद्ध हैं। अतः जनता जनार्दन को इस प्रकार के असंबद्ध विचारों से विचलित न होकर उमंग और हर्षोल्लास से दीपावली का पर्व 1 नवम्बर को शास्त्रों के निर्देशानुसार मनाना चाहिए।
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