गङ्गाधरं शशिकिशोरधरं त्रिलोकी -
रक्षाधरं निटिलचन्द्रधरं त्रिधारम्।
भस्मावधूलनधरं गिरिराजकन्या -
दिव्यावलोकनधरं वरदं प्रपद्ये।।
काशीश्वरं सकलभक्तजनार्तिहारं
विश्वेश्वरं प्रतिपालनभव्यभारम्।
रामेश्वरं विजयदानविधानधीरं
गौरीश्वरं वरदहस्तधरं नमाम:।।
( श्रीकाशीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम्,१-२)
अर्थ:-
गंगा एवं बालचन्द्र को धारण करने वाले, त्रिलोकी की रक्षा करने वाले, मस्तक पर चन्द्रमा एवं त्रिधार ( गंगा)- को धारण करने वाले, भस्भ का उद्धूलन धारण करने वाले तथा पार्वती को दिव्य दृष्टि से देखने वाले, वरदाता भगवान् शंकर की मैं शरण में हूं।
काशी के ईश्वर, सम्पूर्ण भक्तजन की पीड़ा को दूर करने वाले, प्रणतजनों की रक्षा का भव्य भार धारण करने वाले, भगवान् राम के ईश्वर, विजय प्रदान के विधान में धीर एवं वरद मुद्रा धारण करने वाले, भगवान् गौरीश्वर को हम प्रणाम करते हैं।'
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