शिव रात्रि:
शिव पुराण-विद्येश्वरसंहिता खंड-10 में
भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के प्रश्न के उत्तर में भगवान महेश्वर के आदेश विद्यमान हैं कि
‘‘मेरे दर्शन-पूजन के लिये चतुर्दशी तिथि निशीथ व्यापिनी अथवा प्रदोष व्यापिनी (अर्द्धरात्रि व्यापिनी अथवा संध्याकाल व्यापिनी) लेनी चाहिये;
क्योंकि परवर्तिनी तिथि से संयुक्त चतुर्दशी की ही प्रशंसा की जाती है।’’
‘‘निशीथसंयुता या तु कृष्णपक्षे च चतुर्दशी।
उपोष्या सा तिथिः सर्वेः शिवसायुज्यकारिका।।’’
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-स्कन्दपुराण-
माहेश्वरखंड-केदारखंड-33/92
‘‘कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी अर्धरात्रि व्यापिनी हो,
उसमें सबको उपवास करना चाहिये।
वह भगवान् शिव का सायुज्य प्रदान करने वाली है।
’’ स्कंद पुराण- नागर खंड-उत्तरार्द्ध-221 में पृष्ठांकित है
‘‘माघ मास के कृष्ण पक्ष में जो चतुर्दशी तिथि आती है, उसकी रात्रि ही शिव रात्रि है।’’ यहां अमावास्यान्त मास की दृष्टि से माघ मास कहा गया है।
जहां कृष्ण पक्ष में मास का आरंभ और पूर्णिमा पर उसकी समाप्ति होती है, उसके अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी में यह शिवरात्रि का व्रत होता है।
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ईशान संहिता में स्पष्ट वर्णित है कि ‘‘
फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्याम् आदि देवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः।।
तत्कालव्यापिनी ग्राहृा शिवरात्रिव्रते तिथिः।।’
फाल्गुनकृष्ण चतुर्दशी की मध्यरात्रि में आदिदेव भगवान शिव लिंग रूप में अमितप्रभा के साथ उद्- भूूूत हुए अतः अर्धरात्रि से युक्त चतुर्दशी ही शिवरात्रि व्रत में ग्राहृा है।
निर्णय सिंधु में उद्धृत नारद संहिता और ईशान संहिता का उदाहरण भी यही समझना चाहिए।
लिंगपुराण में भगवान् शिव का स्पष्ट कथन है कि
फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सावधान होकर कृत्तिवासेश्वर लिंग में जो महादेव की पूजा करते हैं; उनको मैं सदैव मुक्त और रोगरहित परमस्थान देता हूं।
निष्कर्ष यह है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अर्द्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी ही मान्य है।
#शिवरात्रि का अर्थ क्या है ?
'शिवस्य प्रिया रात्रियस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतं शिवरात्र्याख्याम्।'
इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ होता है,
वह रात्रि जो आनंद प्रदायिनी है
और जिसका शिव के साथ विशेष संबंध है।
शिवरात्रि, जो फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को है,
उसमें शिव पूजा, उपवास और रात्रि जागरण का प्रावधान है।
इस महारात्रि को शिव की पूजा करना सचमुच एक महाव्रत है
रात्रि जागरण महाशिवरात्रि व्रत में विशेष फलदायी है।
गीता में इसे स्पष्ट
या निशा सर्वभूतानां तस्या जागर्ति संयमी।
यस्यां जागृति भूतानि सा निशा पश्चतो सुनेः॥
- तात्पर्य यह कि विषयासक्त सांसारिक लोगों की जो रात्रि है,
उसमें संयमी लोग ही जागृत अवस्था में रहते है
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शिवरात्रि में चार प्रहरों में चार बार अलग-अलग विधि से पूजा का प्रावधान है
। महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में
भगवान शिव की ईशान मूर्ति को दुग्ध द्वारा स्नान कराएं,
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दूसरे प्रहर में
उनकी अघोर मूर्ति को दही से स्नान करवाएं
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और तीसरे प्रहर में घी से स्नान कराएं
व चौथे प्रहर में
चतुर्थ प्रहर में
मधु स्नान
एवं
ॐ ओम हीं सद्योजाताय नम:
मंत्र का जाप करना चाहिए
उनकी सद्योजात मूर्ति को
मधु द्वारा स्नान करवाएं।
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इससे भगवान आशुतोष अतिप्रसन्न होते हैं।
प्रातःकाल विसर्जन और व्रत की महिमा का श्रवण कर अमावस्या को निम्न प्रार्थना कर पारण करें -
संसार क्लेश दग्धस्य व्रतेनानेन शंक
प्रसीद समुखोनाथ, ज्ञान दृष्टि प्रदोभव॥
- तात्पर्य यह कि भगवान शंकर!
मैं हर रोज संसार की यातना से, दुखों से दग्ध हो रहा हूं।
इस व्रत से आप मुझ पर प्रसन्न हों और प्रभु संतुष्ट होकर मुझे ज्ञानदृष्टि प्रदान करें।
'ॐ नमः शिवाय' कहिए और देवादिदेव प्रसन्न होकर सब मनोरथ पूर्ण करेंगे।
शिवरात्रि के दिन शिव को ताम्रफल (बादाम),
कमल पुष्प, अफीम बीज और धतूरे का पुष्प चढ़ाना चाहिए
एवं अभिषेक कर बिल्व पत्र चढ़ाना चाहिए।
Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti guna
9893946810
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