ज्योतिष समाधान

Tuesday, 24 October 2017

इस बार देव जागने के 25 दिन बाद भी कोई शुभ मुहूर्त नहीं है. 31 अक्टूबर को देवउठनी एकादशी है, लेकिन 11अक्टूबर से देवगुरु बृहस्पति पश्चिामास्त हैं जो कि देवउठनी एकादशी के बाद 6 नवंबर को पूर्व दिशा में उदित होंगे और आगामी तीन दिन बाल अवस्था में रहने के बाद 10 नवंबर को बालत्व निवृत्ति होगी. 16 नवंबर दिन को 12:39 को सूर्य वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा. इन समस्त दोषों की निवृत्ति के पश्चात 19 नवंबर से शादियों की शुरुआत होगी


वर्ष 2017 में तुलसी विवाह 31 अक्टूबर अथवा 1 नवंबर को अपनी –अपनी मान्यतानुसार के दिन किया जायेगा.

1देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी 31 अक्टूबर

2तुलसी विवाह 1 नवम्बर तुलसी विवाह का महत्व तुलसी एक गुणकारी पौधा हैं जिससे वातावरण एवम तन मन शुद्ध होते हैं.

कैसे बना तुलसी का पौधा एवम तुलसी विवाह के पीछे क्या कथा हैं ?

तुलसी, राक्षस जालंधर की पत्नी थी, वह एक पति व्रता सतगुणों वाली नारी थी, लेकिन पति के पापों के कारण दुखी थी| इसलिए उसने अपना मन विष्णु भक्ति में लगा दिया था. जालंधर का प्रकोप बहुत बढ़ गया था, जिस कारण भगवान विष्णु ने उसका वध किया. अपने पति की मृत्यु के बाद पतिव्रता तुलसी ने सतीधर्म को अपनाकर सती हो गई.

कहते हैं उन्ही की भस्म से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ और उनके विचारों एवम गुणों के कारण ही तुलसी का पौधा इतना गुणकारी बना.

तुलसी के सदगुणों के कारण भगवान विष्णु ने उनके अगले जन्म में उनसे विवाह किया.

इसी कारण से हर साल तुलसी विवाह मनाया जाता है|

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तिथि प्रारम्भ = ३०/अक्टूबर/२०१७ को १९:०३ बजे |

एकादशी तिथि समाप्त = ३१/अक्टूबर/२०१७ को १८:५५ बजे |

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4 महीने बाद खत्म होगा भगवान विष्णु का शयनकाल,

ऐसे करें पूजा भगवान विष्णु चार महीने के बाद जागते हैं तो तुलसी के पौधे से उनका विवाह होता है.

देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है.

देवउठनी एकादशी के बाद सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं.

खास बातें देवउठनी एकादशी के बाद सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं.

इस बार देव जागने के 25 दिन बाद भी कोई शुभ मुहूर्त नहीं है.

देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक यानी चार महीने भगवान विष्णु शयनकाल की अवस्था में होते हैं और इस दौरान कोई शुभ कार्य जैसे, शादी, गृह प्रवेश या कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है.

31 अक्टूबर को भगवान का शयनकाल खत्म होगा और इसके बाद ही कोई शुभ कार्य होगा. कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन देवउठनी ग्यारस होती है. इस एकादशी को प्रबोधनी ग्यारस भी कहा जाता है.

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शुभ कार्यों के लिए करना होगा इंतजार देवउठनी 

31 अक्टूबर को देवउठनी एकादशी है, लेकिन 11अक्टूबर से देवगुरु बृहस्पति पश्चिामास्त हैं जो कि देवउठनी एकादशी के सात दिन बाद 6नवंबर को पूर्व दिशा में उदित होंगे और आगामी तीन दिन बाल अवस्था में रहने के बाद 10 नवंबर को बालत्व निवृत्ति होगी. 16 नवंबर को सूर्य वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा. इन समस्त दोषों की निवृत्ति के पश्चात 19 नवंबर से शादियों की शुरुआत होगी

शादियों के मुहूर्त इस साल नवंबर में 19, 22, 23, 24, 28, 29 और 30 नवंबर को विवाह के विशिष्ट मुहूर्त हैं.

दिसंबर में 3, 4, 8,9,10, 11 और 12 दिसंबर को विवाह मुहूर्त बन रहे हैं.

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15 दिसंबर 2017 से 14 जनवरी 2018 तक मलमास रहेगा. 

एबम शुक्रास्त 15 दिसम्बर 2017से  3 फरबरी 2018 तक  अस्त रहेगा । इस कारण जनवरी में  कोई विबाह मुहूर्त नही है

22 जनवरी को बसंत पंचमी को देवलग्र होने के कारण विवाह आयोजन कर पाएंगे, लेकिन लग्र शुध्दि के शुभ मुहूर्त फरवरी में ही मिलेंगे.

फरवरी में 4, 5, 7, 8, 9, 11, 18 और 19 तथा मार्च में 3 से 8 और 11 से 13 मार्च को शादियों के मुहूर्त हैं.

तुलसी विवाह, देवउठनी ग्यारस, देव प्रबोधनी एकादशी तिथि मान्यतानुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी जी और विष्णु जी का विवाह कराने की प्रथा है. तुलसी विवाह में तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति या शालिग्राम पाषाण का पूर्ण वैदिक रूप से विवाह कराया जाता है.

. तुलसी विवाह की विधि

तुलसी विवाह संपन्न कराने के लिए एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए और तुलसी जी के साथ विष्णु जी की मूर्ति घर में स्थापित करनी चाहिए.

तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति को पीले वस्त्रों से सजाना चाहिए.

पीला विष्णु जी की प्रिय रंग है. तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे को सजाकर उसके चारों तरफ गन्ने का मंडप बनाना चाहिए.

तुलसी जी के पौधे पर चुनरी या ओढ़नी चढ़ानी चाहिए. इसके बाद जिस प्रकार एक विवाह के रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह की भी रस्में निभानी चाहिए.

अगर चाहें तो पंडित या ब्राह्मण की सहायता से भी विधिवत रूप से तुलसी विवाह संपन्न कराया जा सकता है अन्यथा मंत्रोच्चारण (ऊं तुलस्यै नम:) के साथ स्वयं भी तुलसी विवाह किया जा सकता है. द्वादशी के दिन पुन: तुलसी जी और विष्णु जी की पूजा कर और व्रत का पारण करना चाहिए. भोजन के पश्चात तुलसी के स्वत: गलकर या टूटकर गिरे हुए पत्तों को खाना शुभ होता है. इस दिन गन्ना, आंवला और बेर का फल खाने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.

Gurudev -bhubneshwar shastri
Kasturwa ngar
Parnkuti guna
9893946810

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