ज्योतिष समाधान

Wednesday, 14 February 2024

अंग स्पर्स फल

★★★अंगस्पर्श फल ★★★

√●शुभ = हृदय, मांगलिक वस्तुएँ (शंख, दूर्वा, अक्षत, पुष्प, फल, चन्दन, रोली, सिंदूर, दधि, गोबर, कलश, पल्लव)। 

√●अशुभ = ग्रीवा, पीठ, पेट, रोम, केश, करतल, पादतल, नाभि, गुप्तांग, दाँत, मुख, स्तन, नासिका, नाखून, अंगुलिपर्व, सभी संधिस्थल (कलाई, किहुनी, काँख, कटि, घुटना, टखना), सभी छिद्र स्थान (चक्षुगोलक, कर्ण विवर, नासारन्ध्र, स्तनद्वय, नाभि, मुखद्वार, पायु, उपस्थ) अनामिका अंगुली, पादांगुष्ठ वा पञ्जा, सभी अमांगलिक वस्तुएँ (भस्म, तृण, शुष्क पत्र, शुष्क पुष्प, शुष्क फल, शुष्क गोबर, धूक, कफ, स्वेद (पसीना), कर्णमल, चक्षुमल, आँसू, लार, लकड़ी (काष्ठ), कुधान्य, जूँठा बासी दुर्गन्धयुक्त खाद्य पदार्थ)।

√●जब प्रश्न पूछने वाला ज्ञानीपुरुष के सम्मुख आता है तो उस के द्वारा अपने अंगों वा अन्य वस्तुओं के स्पर्श करने पर उसके शुभाशुभ फल का कथन तत्काल करना चहिये।

★★★स्थिति विचार फल★★★

√★ आते हुए प्रष्टा का- 
√★वायाँ पैर आगे हो तो, शुभ। 
√★दायाँ पैर आगे हो तो, अशुभ। 
√★बैठने पर पैर हिलता हो तो, अशुभ।
√★ स्थिर हो कर बैठा हो तो, शुभ। 
√★सुन्दर एवं ऊँचे आसन पर सुख पूर्वक विराजमान हो तो, शुभ। 
√★आसन से उठे, फिर न बैठे अथवा खड़े-खड़े प्रश्न करता हुआ बैठ जाय तो शुभ। 
√★पृच्छक दिखलाई देने पर रुक रुक कर आवे तो जितनी बार रुक रुक कर आता वा पैर रखता है, उतने दिन में कार्य सिद्ध होता है।

★★★दिशा विचार फल ★★★

√●१-किसी भी दिशा में प्रष्टा के बैठने पर पुरुष के बारे में प्रश्न शुभंकर होता है। 

√●२- कोणों में बैठे होन पर स्त्री के विषय में प्रश्न शुभफलद होता है। 

√●३- दक्षिण दिशा में बैठने वा मुँह करने पर आयु के प्रश्न में फल अशुभ होता है।

★★★चेष्टा विचार फल★★★

√● १- प्रष्टा हाथों को हिलाता हुआ, मसलता हुआ, तिरछा मुँह किये बैठा हो, अपना प्रश्न भूल जाय तो उसकी इच्छा नष्ट हो जाती है। 

√●२- अपने अंग वा किसी अन्य पदार्थ पर जोर से प्रहार करना शीघ्र मृत्युदायक है। 

√●३- विनाश के लक्षण सुनना, देखना, सोचना भी मृत्युप्रद है। 

√●४. लेटे हुए खुले बाल, अपवित्र अवस्था (जूठे मुँह, स्नान रहित, मलिन दुर्गन्ध युक्त अंग वस्त्रादि युक्त) में, रोते हुए, आने में रुकते हुए, सिर मुड़ाए हुए, नग्न, लँगोटी मात्र पहने हुए, किसी वस्तु में छिद्र करते हुए, तिनका / काष्ठादि तोड़ते हुए, निन्दा करते हुए, अपशब्द करते हुए, घबराए हुए, दयनीय दशा में, म्लान मुख, हवन करते हुए, सिर खुजलाते हुए, आँख मलते हुए, नाक / कान / मुख में अंगुली डालते हुए, लड़खड़ाते हुए, काँपते हुए, हाथ / पैर बंधे हुए, होने पर प्रश्न विचार का फल अशुभ होता है। 

√●५- नाखून से लिखते हुए, बाहर निकाले जाते हुए, अन्दर जाने में रोके जाते हुए, उबटन लगाए हुए, भस्म लगाये हुए, हड्डी / लोहादि मलिनाभूषण धारण किये हुए, रोगगस्त, कपड़े से गर्दन लपेटे हुए, मनिनवेश युक्त, केश विखराए हुए, रूखी और अनिष्ट बातें कहते हुए, प्रेतों को पिण्डदान देते समय प्रश्न करना अशुभ होता है। 

√●६- शल्य उपकरण (चाकू कैंची सूई), खड्ङ्ग, भाला, तीर, मांस, जाल, भूसा, भूसी, पंख, पत्ता, खाल लिये हुए तथा सींग लिये हुए, घावयुक्त, बेचैनी में, झाडू लिये हुए, प्रेत-पुष्प, सूप, रस्सी, मुसल लिये हुए, बभुक्षित दैवज्ञ वा प्रश्न कर्ता हो तो प्रश्न फल का विचार न करना। फल अशुभ होता है।

★★★भाव विचार फल ★★★

√●१- शोक, क्रोध, क्षोभ, रोष तथा अन्यमनस्कता से युक्त प्रष्टा को अशुभ फल मिलता है। 

√●२- सुन्दर, कुलीन, विनयशील, स्वस्थ, प्रसन्नचित्त दूत हो तो शुभ फल मिलता है।

★★★दर्शन विचार फल★★★

√● १- आँख बन्द करते हुए, मांगालिक पदार्थों की ओर दृष्टि डाले हुए, ऊपर-नीचे दृष्टि न करते हुए, इधर-उधर न ताकते हुए, अर्धमुदित नेत्र वाले प्रष्टा का अभीष्ट सिद्ध होता है। 

√◆२. इसके विपरीत टकटकी लगाते हुए, पूरते हुए, चपल दृष्टि प्रष्टा का मनोरथ नष्ट होता है और दुःख मिलता है। 

√●३- आँख मुलमुलाते हुए, तिरछी दृष्टि डालते हुए प्रष्टा का प्रश्न विफल होता है।

★★★वस्त्राभूषण विचार फल ★★★

√●१- जल से भोगे, तैलीय, फटे, मैले, लाल वा नीले काले कपड़े पहले हुए, लाल फूलों को धारण किये हुए प्रष्टा को दुःख मिलता है। 

√●२- श्वेत वस्त्र, सुगन्धित शुभ्र एवं शोभादायक अनुलेप वा आभूषण पहने हुए प्रष्टा का कल्याण होता है। 

√●३- सिर पर पगड़ी, पैर में खड़ाऊँ / उपानह, ललाट पर चन्दन धारण किये हुए अंगवस्त्र युक्त प्रष्टा का प्रश्न शुभप्रद होता है। है। 

√●४- सिर पर छाता लगाये हुए, हाथ में छड़ी लिये हुए आते हुए प्रसन्नचित्त प्रष्टा को शुभ फल मिलता है।

★★★वाणी विचार फल★★★

√● १- तुतलाता हुआ, रुक-रुक बोलता हुआ, सोच-सोच कर बोलता हुआ, विखण्डित एवं अशुद्ध वाक्यों से युक्त प्रष्टा अशुभ फल पाता है। 

√●२- शुद्ध उच्चारण वाला, बिना झिझक बोलता हुआ प्रष्टा शुभ फल पाता है।

★★★शकुन फल ★★★

√●श्रव्य दृश्य घटना का नाम शकुन है। इस का कारक प्रकृति है। यह शकुन प्रकृति को क्रियात्मक वा लाक्षणिक भाषा है। इसका अर्थ लोक व्यवहार के अनुसार लिया जाता है। जो भविष्य वक्त्री प्रकृति के इस क्रिया कलाप को जानता है, वह भविष्य वक्ता है। ये अशुभ शकुन हैं जो कार्य नाशक हैं- 

√●१- हाहाकार शब्द। पूजित वृक्ष या ध्वज का कटना / गिरना। कपड़ा, छाता, जूते का फटना / विध्वंस / उपद्रव वा कोलाहल। हिंसाजन्य चीत्कार। क्रूर पशु पक्षियों का बोलना। दीपक का बुझना। भरे घड़े का गिरना। वस्तु का टूटना / फूटना । 

√●२- बातचीत में भयानक जीवों की चर्चा प्रशस्त होती है। इन को देखना, आवाज सुनना अच्छा नहीं होता । 

√●३- बन्दर / रीछ को देखना, बोली सुनना प्रशस्त होता है। बातचीत में इनका (बन्दर, रीछ) नाम लेना अशुभ होता है। 

√●४- प्रश्न समय हाथी, घोड़ा, बैल का शब्द / दर्शन हो तो प्रश्न कर्ता का अभीष्ट लाभ होता है। 

√●५- वीणा, बाँसुरी, मृदंग, तबला, सारंगी, शंख, पटह, भेरी का घोष तथा स्त्रियों का मंगलगीत प्रश्न में शुभ हाता है। 

√●६- ये शुभ शकुन कार्य साधक हैं- 

√●६क- वेश्या, दही, अक्षत, गन्ना (ईख), दूब घास, चन्दन, कलश, पुष्प, माला, फल, कंन्या, घण्टा, दीपक, कमल ।

√●६ख- छत्र, तोरण, सुन्दर वाहन (गाड़ी) स्तोत्रपाठ, वेदध्वनि, बँधा हुआ एक पशु, बैल / गाय, सवत्सा सुवर्ण घेनु, खाद्य वस्तु, खोद कर लाई हुई मिट्टी। 

√●६ग- शिशु को स्तन पान कराती हुई स्वी, सजी सँवरी सुहागिन, कूएँ वा नल से पानी भरती स्त्री, शिष्ट व्यक्ति, विप्र । 

√●६घ. कर्णप्रिय, नेत्रप्रिय, रसना प्रिय, त्वप्रिय, घ्राणप्रिय अर्थात् श्रवणीय, दर्शनीय, पानीय (आस्वादनीय), स्पर्शणीय (कोमल), सुगन्धित वस्तुएँ। 

√●७- घर से निकलते समय व्यक्ति के साथ कपड़ा चला जाय, हाथ में लिया हुआ छाता / दण्ड / छड़ी / शस्त्र गिर जाय तो अशुभ होता है। 

√●८- आओ, न जाओ, लौटो, रुको, अन्दर आओ, कहाँ जा रहे हो ? आदि वाक्य प्रस्थान के समय बोलना, सुनना निश्चित रूप से अशुभ होता है। 

√●९- घर से निर्गमन समय पत्थर आदि से पैर फिसलना, खम्भा से सिर टकराना हो तो नेष्ट / अशुभ होता है।

★★★मार्ग में होने वाले अशुभ शकुन★★★

√● १- कपास । औषधि। कृष्णधान्य। नमक। जाल। शस्त्र (हिंसार्थ प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तु)। भस्म। छाछ (मट्ठा)। सर्प । दुर्गन्धित वस्तु । मल्। छर्दि (वमन / उल्टी)। भूला भटका, आपत्तिग्रस्त, पागल, अन्धा, बहरा, विकलांग, नपुंस्क व्यक्ति । संन्यासी । अरुचिकर तथा मन को खिन्न करने वाली वस्तुएँ। घटनाएँ। 

√◆२- बिल्ली, नेवला, बन्दर, सर्प द्वारा रास्ता काटना अशुभ है। 

√●३- ईंधन, पत्थर, तृण, कण्डा, कूड़ाकर्कट रास्ते में पड़े हों तो अशुभ है।

★★★मार्ग में होने वाले शुभ शकुन ★★★

√●१- मांस। शराब । शहद । घी। चन्दन। घुला वस्त्र। रत्न। हाथी। पक्षी। घोड़ा। वृषभ। राजा । विप्र । विद्वान् । धनी । देवमूर्ति। शुभ्रचामर (व्यञ्जन)। मधुर एवं स्निग्ध भोजन। शवं। ब्राह्मण। गाय। प्रज्ज्वलित अग्नि। नेवला । मेढा । मयूर । सिंह। चाष पक्षी। स्त्री पुरुष का जोड़ा। कुंन्या। जलपूर्ण पात्र । ये सभी अभीष्ट फलदायक हैं। 

√●२- प्रदक्षिण क्रम से जाते हुए पशु, पक्षी शुभ हैं। किन्तु कुत्ता, गीदड़। (सियार) अशुभ हैं। 

√●३- विषम संख्या में हिरण शुभ। हैं। प्रातः काल इनका दर्शन शुभ है।

√● ४- कुत्ता, कौवा, बकरा, मृग, हाथी- ये बायीं ओर जाते हुए (वामावर्त क्रम) में शुभ हैं। प्रदक्षिण क्रम में ये ही अशुभ हैं।

★★★अशुभ शकुन का निराकरण★★★

√● १- पहला अपशकुन होने पर ११ प्राणायाम करे। 

√●२- दूसर अपशकुन होने पर १६ प्राणायाम करे। 

√●३- तीसरा अपशकुन होने पर यात्रा स्थागित कर दे।

★★★दीपशिखा विचार फल ★★★

√●पूर्वाभिमुख - अभीष्ट दायक। आग्नेय कोण में अग्निभय । 

√●दक्षिणाभिमुख - प्राण नाशक । नैर्भृत्य कोण में विस्मृति कारक ।

√●पश्चिमाभिमुख - शान्तिदायक। वायव्य कोण में सम्पत्तिनाशक । 

√●उत्तराभिमुख - जीवन दायक। ईशानकोण में कल्याण कारक । 

√●अग्नि को ऊँची शिखा स्वास्थ्य एवं मनोवञ्छित वस्तुएँ देती है।

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