शल्य चिकित्सा ( Sergury ) हेतु शुभ मुहूर्त का विचार निम्न प्रकार से करना चाहिए
शुभ तिथियां :-
2, 3, 5, 6, 7, 10, 12, 13 ( शुक्ल पक्ष की ) हैं।
शुभ वार :-
रविवार, मंगलवार, गुरूवार और शनिवार हैं।
शुभ नक्षत्र :-
अश्विनी,
मृगशिरा,
उत्तरा फाल्गुनी,
हस्त,
श्रवण
तथा विशाखा हैं।
उपर्युक्त शुभ मुहूर्त के निर्धारण में यदि शुभ तिथियां, वार तथा नक्षत्र का एक साथ निर्धारण नहीं हो पा रहा है तो इनमे से कमसे कम दो का चयन कर ऑपरेशन करवा लेना चाहिए।
जैसे —
जून 2017 में 4 जून को तिथि, वार तथा नक्षत्र नियम के अनुरूप है।
परन्तु इसके अतिरिक्त अन्य तिथि उपलब्ध नहीं है ऐसी स्थिति में हमें तिथि, वार तथा नक्षत्र में किसी दो का चयन कर ऑपरेशन करवा लेना चाहिए।
चूँकि अमावस्या को सूर्य और चंद्र दोनों का प्रभाव बराबर होता है इसलिए अमावस्या किसी भी शुभ कार्य के आरंभ के लिए शुभ नहीं मानी जाती है
लेकिन शल्य चिकित्सा के लिए अमावस्या सर्वोत्तम तिथि मानी गयी है,
क्योंकि उस दिन शरीर में द्रवों का प्रवाह बहुत ही कम होता है
लेकिन पूर्णिमा तिथि शल्य चिकित्सा के लिए बिलकुल भी उपयोगी नहीं मानी गयी है,
क्योंकि इस दिन शरीर के द्रवों का प्रवाह बहुत ही तेज होता है।
वैसे शल्य-चिकित्सा के लिए मंगलवार का दिन भी अति उत्तम माना गया है ।
लेकिन शल्य चिकित्सा के अतिरिक्त अमावस्या तिथि स्वास्थ्य के मामलो में ठीक नहीं मानी जाती है।
अमावस्या और अमावस्या से पूर्व कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी भी रोगियों के लिए घातक मानी गयी है।
ज्योतिष शास्त्र में रोगों के निदान के लिए कुछ ऐसे सयम सुनिश्चित किए हैं जिसमें उस रोग विशेष का यदि उपचार कर्म प्रारम्भ किया जाए तो शुभ फलदायी सिद्ध होता है
ज्योतिष की गूढ़ गणनाओं से सर्वथा अलग यह वह प्राकृतिक नियमों के अनुकूल समय हैं जो हर कोई सरलता से अपना कर आशातीत परिणाम पा सकता है।
1. साधारण में 11 से 3 बजे तक2. पेट के रोग
सुबह 7 से 9 बजे तक3. गुर्दे के रोग
दिन में 11 से 1 बजे तक4. शारीरिक कष्ट
सुबह 9 से 11 बजे तक5. लिवर के रोग
दिन में 1 से 3 बजे तक6. हृदय रोग
दिन में 11 बजे से 1 बजे तक7. मूत्र रोग
दिन में 3 से 5 बजे तक8. फेफड़े रोग
दिन में 3 से 5 बजे तक चीनी चिकित्सा पद्यति में माना गया है
शरीर में प्राकृतिक ऊर्जा की शक्ति दिन में 3 बजे से 5 बजे तक सर्वाधिक होती है।
इसलिए वहाँ सलाह दी जाती है कि गम्भीर रोगों का इलाज दिन के निर्दिष्ट समयानुसार ही किया जाए।
यदि शल्य चिकित्सा में जा रहे हैं तो इसी प्रकार प्रयास करें कि दोनों पक्षों की 4, 9, 14 तिथियाँ, सोमवार, मंगलवार अथवा गुरूवार और अश्विनी, मृगशिरा, पुष्प, हस्त, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठा, श्रवण अथवा शतमिषा नक्षत्रों के संयोग एक साथ मिल जाएं।
यदि पूर्णतया विशुद्ध गणनाओं में जाना है तो ज्योतिष ज्ञान, ग्रहगोचर आदि का ज्ञान परम आवश्यक है।
औषधि सेवन के लिए प्रारम्भ करने के लिए समय के अभाव में यदि विशुद्ध गणना करना सम्भव न हो तब पंचाग से मात्र तिथि, वार और नक्षत्र देखकर उपचार प्रारम्भ कर सकते हैं।
शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 8, 10, 11, 12, 13 और 15 तिथियाँ इसके लिए शुभ सिद्ध होती हैं।
संयोग से यह तिथियाँ रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरूवार अथवा शुक्रवार की पड़ती हैं तो यह और भी अच्छा योग है।
इनमें यदि अश्विनी, मृगाशिरा, पुनर्वस, पुष्प, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, मूल, श्रवण, घनिष्ठा और रेवती नक्षत्र भी मिल जाए अर्थात् तिथि, दिन और नक्षत्र तीनों के संयोग एक साथ बन जाएं तब तो बहुत ही अच्छा
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