ज्योतिष समाधान

Friday, 9 August 2024

कुल देवी स्तोत्र

🔥🔥कुलदेवी स्तोत्र का गौरवी भाष्य, ताकि कोई अन्य इसके अर्थ का अनर्थ न करें।आप सब विद्वानो से विनती है की इसको पढ़कर अपना सुझाव अवश्य दें।मैंने सबकी सुविधा केलिये भाष्य का भी हिंदी अनुवाद कर दिया है।

गौरवी भाष्य :-
🔥🔥कुलदेवीस्तोत्रमिदं पूर्वकाले मया कृतम्।
भाष्यं करोमी तत्सर्वं त्रिपुरेश्वरी प्रसीद मे।।

अर्थात :-मेरे द्वारा पूर्वकाल में इस कुलदेवी स्तोत्र की रचना हुई थी।
अब मै इसका सम्पूर्ण भाष्य कर रहा हूँ, हे त्रिपुरेश्वरी, मुझ पर कृपा करें।

🔥भाष्य :- भगवती त्रिपुरा एव मम कुलदेवी अस्ति, अतः तस्याः ध्यानं कृत्वा एव अहमेतत् स्तोत्रं निर्मितवान्। इदानीं अस्य भाष्यं अपि मम हृदि तस्याः कृपया एव उत्पन्नम् अस्ति, अतः सा आदिशक्ति मयि प्रसन्ना भवतु।

अर्थात :-
भगवती त्रिपुरा हीं मेरी कुलदेवी हैं, अत: मैंने उन्हींका ध्यान करते हुये इस स्तोत्र की रचना की थी। अब इसका भाष्य भी मेरे हृदय मे उन्ही की कृपा से उतपन्न हुआ है अत: वो आदि शक्ति मुझपर प्रसन्न हों।

🔥🔥यो यः सृजेति तं तस्य मूलभावं स वेत्ति हि।
शिल्पी स्वशिल्पं जानाती!अन्ये यत्नं कुर्वते॥
अतो मम हृदयस्थोऽयं चन्द्रमौलीश्वरः प्रभुः।
स एव तत्पदं वेद्मि निमित्तमात्रकोऽस्म्यहम्॥

अर्थात:-जो भी जिसकी रचना करता है, वह उसके मूल भाव को भली-भाँति जानता है।जैसे कोई शिल्पी अपने शिल्प को अच्छी तरह से जानता है अन्य तो केवल यत्न हीं कर सकते हैं।अतः मेरे हृदय में स्थित यह चन्द्रमौलीश्वर प्रभु ही उसका ठीक-ठीक अर्थ समझ सकते हैं।क्योंकि वही इसके रचयता हैं मैं तो केवल निमित्त मात्र हीं हूँ।

🔥भाष्य:- यदि अन्यः कश्चित् अस्य अनुवादं वा भाष्यं करोति तर्हि सम्भवम् अस्ति यत् सः स्वबुद्ध्या अस्य अर्थे विपर्यासं करिष्यति। यतः यः कश्चित् रचयिता भवति सः एव तं विषयं यथार्थतः ज्ञातुं शक्नोति, अन्ये तु केवलं अनुमानं कर्तुं शक्नुवन्ति। उदाहरणार्थ, यथा कश्चित् शिल्पकारः स्वस्य शिल्पं यथा उत्तमं जानाति, अन्ये तथैव ज्ञातुं न शक्नुवन्ति, केवलं प्रयासं कर्तुं शक्नुवन्ति।

अर्थात :-यदि कोई अन्य इसका अनुवाद अथवा भाष्य करता तो सम्भव है अपनी बुद्धि के अनुसार इसके अर्थ मे फेर बदल कर देता।क्योंकि जो जिसका रचयिता होता है वही उस विषय को ठीक से जान सकता है, अन्य तो बस अनुमान लगा सकते हैं।उदाहरण के लिए कोई शिल्पकार अपने शिल्प को जितनी अच्छी तरह से जानता है अन्य नहीं जान सकते, बस प्रयास कर सकते हैं।
किन्तु मै स्वयं भी इसका रचयिता होने का दर्प नहीं पाल सकता क्योंकि सबके हृदय मे स्थित परमात्मा हीं सबका कारण भी है। अत: वही चन्द्रमौलिश्वर प्रभु इस स्तोत्र के भावो को ठीक ठीक जान सकते हैं जिन्होंने मेरे हृदय मे इस का प्रस्फुटन किया है।

🔥🔥शब्दानामर्थरूपाणां नास्ति सीमा कथञ्चन।
साधकः स्वस्वभावेन जानात्यर्थं स्वकीर्तितम्॥
शब्दानां परिवर्तेन अर्थमेव परिवर्त्यते।
स्तोत्रं सर्वहितं एतत सर्वेषां तु समानवत्॥

अर्थात :-शब्दों के अर्थों की कोई निश्चित सीमा नहीं होती। साधक अपने स्वभाव के अनुसार अपने द्वारा उच्चारित अर्थ को जानता है।शब्दों के परिवर्तन से अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। यह स्तोत्र सबके लिए हितकारी है और सबके लिए समान रूप से उपयुक्त है।
🔥🔥इह गोरवी नामकं भाष्यम् आरभामि,
यत् जनानां वास्तविकं अर्थबोधः प्राप्नुयात।
🔥स्तोत्रं प्रारभ्यते :-
अब स्तोत्र प्रारम्भ करते हैं :-

🔥🔥नमस्ते श्री कुलदेवी कुलाराध्या कुलेश्वरी।
कुलसंरक्षणी माता कौलिक ज्ञान प्रकाशीनी।।

अनुवाद :-श्री कुलदेवी को नमस्कार है, जो कुल द्वारा पूजित हैं, और कुल की इश्वरी हैं।जो कुल की रक्षा करने वाली हैं, और कौलिक ज्ञान को प्रकाशित करने वाली माता हैं।

🔥भाष्य :-अत्र "कुल" शब्दस्य द्वौ अर्थौ स्तः। प्रथमः तु यः कुलः यस्मिन् अस्माकं जन्म अभवत्, द्वितीयः तु आध्यात्मिकः शाक्तः श्रीकुलः तथा कालिकुलः इति।

भौतिकः कुलः वा, आध्यात्मिकः कुलः वा, सर्वस्याः संरक्षिका सा एव जगन्माता अस्ति। सा यदि प्रसन्ना भवेत् तर्हि कौलिकं ज्ञानं हृदयं प्रकाशयेत्। तेन परमगुप्तस्य कुलाकुलस्य भेदः प्रकटः भवति।

अर्थात :-यहाँ कुल शब्द के दो अर्थ हैं प्रथम तो जिस कुल मे हमारा जन्म हुआ है। दूसरा आध्यत्मिक शाक्त श्री कुल तथा काली कुल।
भौतिक कुल हो अथवा आध्यात्मिक कुल सबकी संरक्षिका वही जगन्माता है। वो यदि प्रसन्न हो जाय तो कौलिक ज्ञान से ह्रदय प्रकशित हो उठेगा।अर्थात परम गुप्त कुलाकुल का भेद प्रगट हो जाता है।

🔥🔥वन्दे श्री कुल पूज्या कुलाम्बा कुलरक्षिणी।
वेदमाता जगन्माता लोक माता हितैसिनी।।

अनुवाद :-मैं वन्दना करता हूँ उन कुल पूज्या, कुल की माता और कुल की रक्षिणी देवी की।
जो वेदों की माता, जगत की माता और लोक की हितैषीणी हैं।

🔥भाष्य :-"अदितिः माता स पिता पुत्रः," "सैव परमेश्वरी विज्ञेया," "सैव कुलाम्बिका" इत्यादि श्रुति-वाक्यैः सिद्ध्यति यत् या वेदेषु ब्रह्मस्वरूपा इति कथ्यते, सा एव कुलेषु कुलस्वामिनी इति पूज्यते। अतः तस्याः एव एकस्याः शरणागतिः सर्वेषां शरणागतिं भवति।
अर्थात :-
"अदिति: माता स पिता पुत्र: "
"सैव परमेश्वरी विज्ञेया ""सैव कुलाम्बिका" इत्यादि श्रुति वाक्यों से सिद्ध होता है की  जो वेदों मे ब्रह्म स्वरूपा है वही कुलो मे कुल स्वामीनी बनकर पूजीत हैं। अत: उन्ही एक की शरणागती से सबकी शरणागती हो जाएगी।

🔥🔥आदि शक्ति समुद्भूता त्वया ही सम्पूर्णं जगत।
विश्ववंद्यां महाघोरां त्राहिमां शरणागतम।।

अनुवाद :-हे माता आदि शक्ति से उत्पन्न, आपसे ही सम्पूर्ण जगत का सृजन हुआ है।
जो विश्व द्वारा पूजनीय और महाघोर रूपों वाली हैं, वो भगवती मेरी रक्षा करें, मैं आपकी शरण में आया हूँ।

🔥भाष्य :-आदिशाक्त्या:उत्पन्नस्य तात्पर्यः अवतरणम् अस्ति, यथा अनन्तात् अनन्तस्य उत्पत्ति। "पूर्णमदः पूर्णमिदं," या आदि शक्ति सर्वथा पूर्णा अस्ति, सा एव कुलदेवी रूपेण पूजिता अस्ति।
विश्वस्य वन्दिता अत्यन्त उग्रस्वरूपा भगवतीं अहं शरणं गच्छामि, सा एव मम त्राणं कुरुयात्।
अर्थात :-आदि शक्ति से उत्पन्न होने का तात्पर्य है अवतरण करना । अर्थात अनंत से अनंत की उत्पत्ति। "पूर्णमद: पूर्णमिदम०" जो आदि शक्ति हैं वही कुलदेवी के रूप मे पूजीत भी हैं।
विश्व द्वारा वंदिता अत्यंत उग्र स्वरूपों वाली भगवती की मै शरण लेता हुँ वही मेरे त्राण करें।

🔥🔥त्रैलोक्य ह्रदयं शोभे देवी त्वं परमेश्वरी।
भक्तानुग्रह कारिणी त्वं कुलदेवी नमोस्तुते।।

अनुवाद :-हे देवी, आप तीनों लोकों मे व्याप्त विश्व की ह्रदया हैं, आप हीं परमेश्वरी हैं।
जो भक्तों पर अनुग्रह करने वाली हैं, हे कुलदेवी, आपको नमस्कार है।

🔥 भाष्य:-"द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया" इति श्रुतिवाक्येन सिद्धम् यत् जीवस्य सह परमात्मा तत्त्वं अपि हृदये निवसति। सा एव परमेश्वरी भक्तानां अनुग्रहं कर्तुम् कुलदेवी रूपेण स्थितवती अस्ति।
अर्थात :-
"द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया" इस श्रुति से सिद्ध है की जीव के साथ परमात्म तत्व भी हृदय मे निवास करता है।वही परमेश्वरी भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए कुलदेवी के रूप मे स्थित है।
🔥🔥महादेव प्रियंकरी बालानां हितकारिणी।
कुलवृद्धि करी माता त्राहिमां शरणागतम।।

अनुवाद :-महादेव की प्रिय करने वाली और बालकों के हित की साधिका।हे माता, कुल की वृद्धि करने वाली, मेरी रक्षा करें, मैं आपकी शरण में आया हूँ।

🔥भाष्य :-भगवान भूतभावन शंकरस्य प्रियं करी शिवपत्नी भगवती, त्वं मम त्राणं कुरु। बालकोऽहितसाधिका भगवती षष्ठी, सर्वेऽस्माकं बालकाः त्वाम्, अतः मम अपि कल्याणं कुरु। कुलवृद्धिं कर्तुम् हे माता, अहम् तव शरणार्थी अस्मि।

अनुवाद :-
भगवान भूतभावन  शंकर की प्रिय करने वाली शिव पत्नी भगवती आप मेरा त्राण करें। बालको की हित साधिका अर्थात भगवती षष्ठी,हम सभी आपके बालक है अत: आप मेरा भी कल्याण करें।कुल की वृद्धि करने वाली हे माता मै आपका शरणार्थी हुँ।

🔥🔥चिदग्निमण्डल संभुता राज्य वैभव कारिणी।
प्रकटीतां सुरेशानी वन्दे त्वां "राजगौरवाम"।।

अनुवाद :-जो चिदग्नि मंडल से उत्पन्न हैं और राज्य वैभव देने वाली हैं।प्रकट रूप वाली सुरेशानी हैं अर्थात देवताओं की स्वामीनी हैं ऐसी जगदम्बा को वंदन है, जो "राजगौरव" के द्वारा पूजीता हैं।अथवा स्वयं राजगौरवा हैं।

🔥भाष्य:-अस्मिन पंक्तौ अनेकार्थाः सन्ति। साधकः स्वस्य स्थित्यानुसार अर्थं ग्रहणीयात्। अत्र लेखकः स्वस्य कुलदेवीं च आदीशक्ति च सूचयति।
लेखकस्य कुले पूजिता भगवती त्रिपुरा चिदग्न्या:प्रकटिता। यथा ब्रह्माण्डपुराणे प्रसिद्धम्। श्रीविद्यायाः उपासकाः यथा जानन्ति, राजराजेश्वरी पूजनात् भोगमोक्षौ सिध्येत्, तस्मात् सा राज्यवैभवकारिणी अस्ति। सा आद्या अस्माकं कुलदेवी अस्ति। अतः तस्या उपासना यथार्थतः सर्वं सम्भवम्।

राजगौरवपदस्य एकः अर्थः यः लेखकः भगवतीं पूजति! अन्यः अर्थः यः भगवती मनः राज्यं गौरवं दाति अथवा राज्यस्य गौरवाम् स्वामिनी अस्ति। अतः साधकः स्तोत्रपाठे राजगौरवपदं न परिवर्तयेत , केवलं अर्थभेदस्य भावनां करोति। शब्दपरिवर्तनात् दोषः कृतघ्नतायाः संकेतः अस्ति, यः उद्येश्यं पूर्णं न करोति।

अर्थात :-
इस पक्ति के कई अर्थ हैं। साधक अपनी स्थिति के अनुसार अर्थ ग्रहण करें।यहाँ इस पंक्ति मे लेखक ने अपनी कुलदेवी की ओर भी संकेत किया है और आदि परा शक्ति की ओर भी।
लेखक के कुल मे पूजीता भगवती त्रिपुरा का प्राकट्य चिदग्नी से हुआ। ये ब्रह्माण्ड पुराण मे प्रसिद्ध है। श्री विद्या के उपासक जानते हीं हैं की राजराजेश्वरी के पूजन से भोग और मोक्ष दोनों संभव है इसलिए वो राज्य वैभव कारिणी हैं।
वही आद्या हमारी कुलदेवी हैं। अत: उनकी उपासना से हीं सबकुछ सम्भव है।
यहाँ राजगौरव पद का एक अर्थ तो यही है की लेखक द्वारा वो भगवती पूजीत हैं। दूसरा अर्थ ये है की भगवती राज्य ( मन: एव राज्यं )मन हीं राज्य है उसे गौरव प्रदान करती हैं अथवा राज्य की गौरवा अर्थात स्वामीनी हैं।
अत: किसी भी साधक को स्तोत्र पाठ के समय राजगौरव पद हटाने की जरूरत नहीं है बस अर्थ भेद की भावना करें। शब्द परिवर्तन से दोष और कृतघ्नता लगती है जो उदेश्य को पूर्ण नहीं होने देता है।

🔥🔥त्वदीये कुले जात: त्वामेव शरणम गत:!
त्वत वत्सलोअहं आद्ये त्वं रक्ष रक्षाधुना।।

अनुवाद :-मैं आपके कुल में जन्मा हूँ और आपकी ही शरण में आया हूँ।हे आदि माता, मैं आपका वत्स हूँ, अब आप मेरी रक्षा करें।

🔥भाष्य:-हे भगवती, अहम् तव कुले जन्मितः अस्मि, इयं मम सौभाग्यम् अस्ति, अथवा अहम् तव कुले दीक्षितः अस्मि। त्वं आद्या पराशक्तिः, अहम् तव वत्सः, अर्थात् पुत्रः। (कुपुत्रो जायेत्) इति श्लोकस्य अनुसार, त्वं मम रक्षां कुरु।
अर्थात:-
 हे भगवती मै आपके कुल मे जन्मा हुँ यह मेरा सौभाग्य है, अथवा आपके कुल मे दीक्षित हुआ हुँ। आप आद्या परा शक्ति हैं मै आपका वत्स अर्थात पुत्र हुँ। (कुपुत्रो जायेतो० ) के अनुसार आप मेरी रक्षा कीजिए।

🔥🔥पुत्रं देही धनं देही साम्राज्यं प्रदेही में।
सर्वदास्माकं कुले भूयात मंगलानुशासनम।।

अनुवाद :-मुझे पुत्र, धन और साम्राज्य प्रदान करें।हमारे कुल में सदैव मंगलमय अनुशासन बना रहे।

🔥भाष्य :-यस्यास्ती भोगो न च तत्र मोक्षः" इति अनुसार, यः मनुष्य भगवत्या:शरणागतः अस्ति, सः भोगस्य अधिकारः प्राप्तवान तु मोक्षस्य। सः च तस्य कुलं धर्मस्य अनुशासनं प्राप्तवान।

अर्थात :-
यस्यास्ती भोगो न च तत्र मोक्ष: ०इसके अनुसार जो मनुष्य भगवती का शरणागत है वह भोग तथा मोक्ष दोनों का अधिकारी हो जाता है। उसे तथा उसके कुल मे धर्म का अनुशासन होता है।

🔥🔥कुलाष्टकमिदं पुण्यं नित्यं य: सुकृति पठेत।
तस्य वृद्धि कुले जात: प्रसन्ना परमेश्वरी।।

अनुवाद :-जो इस कुलाष्टक के पुण्य स्तोत्र का नित्य पाठ करेगा।उसके कुल की वृद्धि होगी, और परमेश्वरी प्रसन्न होंगी।
🔥🔥कुलदेवी स्तोत्रमिदम सुपुण्यं ललितं तथा।
अर्पयामी भवत भक्त्या त्राहिमां शिव गेहिनी।।

अनुवाद :-यह कुलदेवी स्तोत्र अत्यंत पुण्यकारी और ललित है।मैं इसे भक्तिपूर्वक आपको अर्पित करता हूँ, हे शिव की पत्नी, मेरी रक्षा करें।

🔥🔥दुष्करं खलु भाष्यं तु, कर्तुं न शक्यते जनैः।
भगवत्याः कृपापात्रं, भवेत् तत्रैव सिद्धये॥
अस्माकं गौरवं भाष्यं, समर्प्ये तव पादयोः।
जगदम्बे नमस्तुभ्यं, कुरु कृपां स्वकीयया॥
स्वीयं गौरवमेतत्तु, समर्पयामि भक्तितः।
हे जगन्मातः, तुष्ट्या, स्वीकरोषि प्रसन्नया॥

अनुवाद :-यह भाष्य करना सचमुच कठिन है, जिसे साधारण लोग नहीं कर सकते।
यह केवल भगवती की कृपा से ही सिद्ध हो सकता है।
हमारा यह गौरवी भाष्य, मैं आपके चरणों में समर्पित करता हूँ।
हे जगदम्बा, आपको प्रणाम है, कृपया अपनी कृपा प्रदान करें।
मैं इस अपने गौरव के लिए आपको भक्ति भाव से समर्पित करता हूँ।
हे जगन्माता, अपनी प्रसन्नता से इसे स्वीकार करें।

🔥🔥अद्य श्रावण शुक्लपञ्चम्यां, सम्पन्नं गौरवी भाष्यम।पद्यपुष्परूपेण पुष्पाजलीम प्रति गृहयताम।।
🔥🔥योऽपि पठेत् स्तोत्रं भाष्यम् च मननं यः कुर्यात्।
तस्य हृदयसौदाम्ये कुलाकुलभेदः नश्यते ॥
अद्वैतसिद्धिः सदा लभते, सुखं यत्र समाप्नुयात्।
अन्ते देवी पुरं गच्छेत यत्र सा परमेश्वरी ।।

:-राजगौरव ठाकुर

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