श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत पुराणों वा शास्त्रों द्वारा निर्णय किस दिन करना शास्त्रों के अनुकूल, सही तिथि
श्रीमद्भागवत् पुराण, श्रीभविष्य पुराण, अग्नि, विष्णु सहित सभी धर्मग्रंथों में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी, नक्षत्र एवं वृष राशिस्थ चन्द्रमाकालीन अर्धरात्रि के समय हुआ था।
भविष्यपुराण में लिखा है-
'सिंहराशिगते सूर्ये गगने जलदाकुले।
मासि भाद्रपदे अष्टम्यां कृष्णपक्षेअर्धरात्रिके।
वृषराशि स्थिते चन्द्रे, नक्षत्रे रोहिणी युते।।
निशीथे तमउद्भूते जायमाने जनार्दने ।
देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णु: सर्वगुहाशय: ॥
( श्रीमद्भागवत महापुराण* (10/03/08)
शास्त्र विचार
शास्त्रों में स्मार्त, वैष्णव, शैव, शाक्त, गाणपत्य आदि अनेक आचार्यों के भिन्न-भिन्न मत अर्थात् सिद्धान्त हैं । इनमें, जो जिनका उपासक है तथा जिस पथ का पथिक है, वह अपने उन आचार्य ( गुरु ) के दिये गये शास्त्रसम्मत मतों ( सिद्धान्तों ) को मानकर उनका अनुगमन करते हैं । मुख्य रूप से हम यहाँ दो मतों की चर्चा करते हैं । स्मार्त तथा वैष्णव मत ।
कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है। जब-जब ऐसा होता है, तब पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त सम्प्रदाय के लोगो के लिये और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोगो के लिये होती है।
स्मार्त मत के अनुसार:-राज्यराष्ट्रीयदुनियाभोजपुरी कहानियाव्यंग ही व्यंगलेखसंपादकीयमनोरंजनराजनीती
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत पुराणों वा शास्त्रों द्वारा निर्णय किस दिन करना शास्त्रों के अनुकूल, सही तिथि
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे,
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम: ॥
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत पुराणों वा शास्त्रों द्वारा निर्णय किस दिन करना शास्त्रों के अनुकूल, सही तिथि
श्रीमद्भागवत् पुराण, श्रीभविष्य पुराण, अग्नि, विष्णु सहित सभी धर्मग्रंथों में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी, नक्षत्र एवं वृष राशिस्थ चन्द्रमाकालीन अर्धरात्रि के समय हुआ था।
भविष्यपुराण में लिखा है- 'सिंहराशिगते सूर्ये गगने जलदाकुले। मासि भाद्रपदे अष्टम्यां कृष्णपक्षेअर्धरात्रिके। वृषराशि स्थिते चन्द्रे, नक्षत्रे रोहिणी युते।।
निशीथे तमउद्भूते जायमाने जनार्दने ।
देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णु: सर्वगुहाशय: ॥
( श्रीमद्भागवत महापुराण* (10/03/08)
शास्त्र विचार
शास्त्रों में स्मार्त, वैष्णव, शैव, शाक्त, गाणपत्य आदि अनेक आचार्यों के भिन्न-भिन्न मत अर्थात् सिद्धान्त हैं । इनमें, जो जिनका उपासक है तथा जिस पथ का पथिक है, वह अपने उन आचार्य ( गुरु ) के दिये गये शास्त्रसम्मत मतों ( सिद्धान्तों ) को मानकर उनका अनुगमन करते हैं । मुख्य रूप से हम यहाँ दो मतों की चर्चा करते हैं । स्मार्त तथा वैष्णव मत ।
कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है। जब-जब ऐसा होता है, तब पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त सम्प्रदाय के लोगो के लिये और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोगो के लिये होती है।
स्मार्त मत के अनुसार:-
स्मार्त मतानुसार वे चन्द्रोदय को स्वीकारते हुए पर्व के समय उस तिथि के होने को महत्त्व देते हैं – 'अष्टमी चन्द्रोदयव्यापिनी यदा तदा जयन्ती व्रतम्' ( कृत्यसार समुच्चय )
तद्युत्तरदिने चन्द्रोदयव्यापिनी नाष्टमी तदा सप्तमीसंयुता ग्राह्या । ( कृत्यसार समुच्चय )
अर्थात् वे चन्द्रोदय के अनुसार रात्रि के समय अष्टमी तिथि होने पर जन्माष्टमी पर्व मनाते हैं – 'निशीथव्यापिनी अष्टम्याम्' ।
स्मार्त – वे सभी जो वेद-पुराणों के पाठक, आस्तिक, पंच देवों (गणेश, विष्णु, शिव, सूर्य व दुर्गा) के उपासक व गृहस्थ हैं, स्मार्त के अंतर्गत आते हैं। इस मत को मानने वाले 11अगस्त 2020 मंगलवार को जन्माष्टमी मनाएंगे व्रत भी रखेंगे।
वैष्णव मत के अनुसार:-
वैष्णव मतानुसार वे सूर्योदय के समय की तिथि को महत्त्व देते हैं ।
'उदयव्यापिनी अष्टम्यमलम्बिनां वैष्णवानाम्'
अर्थात् सूर्योदय में यदि अष्टमी है, तो रात्रि में अष्टमी न होने पर भी सूर्योदय के अनुसार उसे अष्टमी तिथि के रूप में ही ग्राह्य करते हैं और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व को मनाते हैं ।
कलाकाष्ठामुहूर्तापि यदा कृष्णाष्टमीतिथि: ।
नवम्यां सैव ग्राह्या स्यात्सप्तमीसंयुता नहि ॥
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