ज्योतिष समाधान

Tuesday, 25 November 2025

भूमि पूजन सामग्री

1】हल्दीः------------------20ग्राम
२】कलावा(आंटी)----------01गोले
३ धूप बत्ती--------------     1 पैकिट
४】कपूर----------------   10ग्राम
5) कच्चा सूत ------------ 01 छोटा गोला
6)उन ------------------ छोटा गोला
७】यज्ञोपवीत -------------   05नग्
८】चावल----------------- 500ग्राम
९】अबीर------------------10ग्राम
१०】गुलाल, ---------------20ग्राम
11) सरसों ------------------10रुपए की
१२】सिंदूर -------------------20ग्राम
१३】रोली, -------------------20 ग्राम
१४】गोल सुपारी, ( बड़ी)---  50 ग्राम
१५】नारियल ------------  3 नग्
१६】असली गूगल -----------20 ग्राम
१७】पंच मेवा--------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)------------ 50 ग्राम
१९】शकर-----------------100ग्रांम
२०】घृत (शुद्ध घी)---------  100 ग्राम
२१】इलायची (छोटी)--------05ग्राम
२२】लौंग -----------------05ग्राम
२३】इत्र की शीशी-------------1 नग्
२4】तांबे का लौटा 01
=============
25】दूर्वा
26】पुष्प 
27】हार मोगरा के फूल के  5
28】ऋतुफल पांच प्रकार के -----1 किलो
29) पान के पत्ते ,5

(30)मिट्टी का कलश (ढक्कन सहित)
(31)सप्त मृत्तिका (सात प्रकार की मिट्टी)
(31)गंगाजल, 
(32)गुलाब जल,
(33)हल्दी की गांठ,----------  05नग् 
(33) नारियल (पानी वाला ) बड़ा01नग 
(34)चांदी का नाग-नागिन जोड़ा,-------01
(34) चांदी का कछुआ, ---------01 नग 
(35)मछली चांदी की-----------01नग
(36)नवरत्न
(37) पंचधातु 
(38)वास्तु यंत्र---------------04
(39)लोहे की कीलें,-----------04
 (40)काले रंग के पत्थर----------01
(41) ईंटे ------------------09
लाख का टुकड़ा
सिर के वाल
किसी बच्चे का नाल केवल लड़का हो तो
खोटा सिक्का -------------01 नग
गोमती चक्र---------------05 नग 
कोड़ी------------------- 05 नग् 




41)तगाड़ी ....2
42)फडुआ ....2
43) गेंती........1


घर से उपलब्ध समान

44】लाल कपड़ा  या पीला  कपड़ा
1)आसन बैठने के लिये
2)चौकी2×2
3)थाली 2 पूजा के लिये 
4)कटोरी 5
5)हाथ पोछ्ने के लिये टाविल 
6)दूध
7)दही
8)माचिस
10)रुई
11)आटा  चोक पूरने  के लिये 100 ग्राम
12)प्रशाद  अनुमानित
13) घर की तुलसी की मिट्टी
14) घर से गणेश भगवान की मूर्ति
15)पूजा के लिये फुटकर पैसे
16) गाय का गोबर
17)आम के गुच्छे- 5 
18)गाय का मूत्र
19)गंगा जल
20)तुलसी दल 

Gurudev 
bhubneshwar
Parnkuti ashram
9893946810

Monday, 17 November 2025

गृह प्रवेश सामग्री


1】हल्दीः------------------20ग्राम
२】कलावा(आंटी)----------10गोले
३ धूप बत्ती--------------     1 पैकिट
४】कपूर----------------   100ग्राम
5) कच्चा सूत ------------ 01 छोटा गोला
6)उन ------------------ छोटा गोला
७】यज्ञोपवीत -------------   05नग्
८】चावल----------------- 10किलो ग्राम
९】अबीर------------------10ग्राम
१०】गुलाल, ---------------20ग्राम
11) सरसों ------------------10रुपए की
१२】सिंदूर -------------------50ग्राम
१३】रोली, -------------------20 ग्राम
१४】गोल सुपारी, ( बड़ी)---  500 ग्राम
१५】नारियल ------------  15 नग्
१६】असली गूगल -----------20 ग्राम
१७】पंच मेवा--------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)------------ 50 ग्राम
१९】शकर-----------------02किलोग्रांम
२०】घृत (शुद्ध घी)---------  02किलो ग्राम
२१】इलायची (छोटी)--------05ग्राम
२२】लौंग -----------------05ग्राम
२३】इत्र की शीशी-------------1 नग्
२4】तांबे का लौटा 01
     तीली का तेल -----------01 लीटर 
रंग लाल 
रंग पीला
रंग कला
रंग हरा
पीतांबरी  500 ग्राम
=============
25】दूर्वा
26】पुष्प 
27】हार मोगरा के फूल के  5
28】ऋतुफल पांच प्रकार के -----1 किलो
29) पान के पत्ते ,5

(30)मिट्टी का कलश (ढक्कन सहित)
(31)सप्त मृत्तिका (सात प्रकार की मिट्टी)
(31)गंगाजल, 
(32)गुलाब जल,
(33)हल्दी की गांठ,----------  05नग् 
(33) नारियल (पानी वाला ) बड़ा01नग 
(34)चांदी का नाग-नागिन जोड़ा,-------01
(34) चांदी का कछुआ, ---------01 नग 
(35)मछली चांदी की-----------01नग
(36)नवरत्न
(37) पंचधातु 
(38)वास्तु यंत्र---------------04
(39)लोहे की कीलें,-----------04
 (40)काले रंग के पत्थर----------01
(41) लाख का टुकड़ा
 (42) सिर के वाल
 (43) किसी बच्चे का नाल केवल लड़का हो तो
  (44) खोटा सिक्का -------------01 नग
(45)गोमती चक्र---------------05 नग 
(46)कोड़ी------------------- 05 नग् 




41) कपड़ा लाल -----01 मीटर
42) कपड़ा सफेद-------02मीटर
43) कपड़ा पीला -------- 03मीटर
    कपड़ा हरा -----------01 मीटर 
44】 पीला कला---------03 मीटर

घर से उपलब्ध करने वाला सामान 
1)आसन बैठने के लिये
2)चौकी2×2
3)थाली 2 पूजा के लिये 
4)कटोरी 5
5)हाथ पोछ्ने के लिये टाविल 
6)दूध
7)दही
8)माचिस
10)रुई
11)आटा  चोक पूरने  के लिये 100 ग्राम
12)नया चादर 01
13) घर की तुलसी की मिट्टी
14) घर से गणेश भगवान की मूर्ति और लड्डू गोपाल
15)पूजा के लिये फुटकर पैसे
16) गाय का गोबर
17)आम के गुच्छे-45 
18)गाय का मूत्र
19)गंगा जल
20)तुलसी दल 
Gurudev 
bhubneshwar
Parnkuti ashram
9893946810

Sunday, 16 November 2025

विबाह के लिए लगने वाली आबश्यक सामग्री लिस्ट

पर्णकुटी ज्योतिष केंद्र
विबाह के लिए लगने वाली आबश्यक सामग्री लिस्ट
   ------ //-- (   पीली चिट्टी पूजा के लिए  )--- //--------
१】श्री गणेश जी
२】पांच हल्दी की गाँठ
३】पांच गोलसुपारि
४】 पिले चावल
५】गोबर के गणेश जी
६】बतासे
७】  दूर्वा
८】कलश एक मिटटी का
९】दीपक
१०】रुई
११】माचिस
पूजा की थाली सामग्री सहित 
नाई(खबॉस )को किराया बतौर दक्षिणा
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बत्तीसी  झिलाने की सामग्री-

32 लड़डू,
32 रुपया
मेवा,
शकर,
चावल,
गुड़ की भेली,
लाल कपड़ा,
हार,
फुल,
बताशा,
नारियल
और जवारी का रुपया।

विधि-

इसमे भाई पटिये पर बैठता है और बहन उसकी गोद मे पूरा सामान रख़कर आरती उतारती है सभी भाई अपनी बहन को साड़ी और जीजाजी को जवारी देकर बिदा करते है।

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सभी प्रकार की जटिल समस्याओ के समाधान हेतु   शीघ्र सम्पर्क करे एबम  अपनी कुंडली दिखाकर  उचित मार्ग दर्शन प्राप्त करे ।

सम्पर्क सूत्र

पंडित जी श्री परमेस्वर दयाल जी शास्त्री

तिलकचोक मधुसुदनगण

मोबाइल नंबर 09893397835

(पूजन समग्री कम  और  ज्यादा कर  सकते है )

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श्री गणेश पूजन  सहित अन्य पूजन के लिए
सभी पूजन में उपयोग के लिए यही सामग्री में से ले सकते है
०】आटा हल्दी  चोक पुरने के लिए
1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------------100 ग्राम
३】अगरबत्ती-------------------     3पैकिट
४】कपूर-------------------------  - 50 ग्राम
५】केसर-------------------------   -1डिव्वि
६】चंदन पेस्ट --------------------- 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत ---------------------   11नग्
८】चावल-------------------------- 05 किलो
९】अबीर-----------------------------50 ग्राम
१०】गुलाल, ----------------------10 0ग्राम
११】अभ्रक---------------------------10ग्राम
१२】सिंदूर ------------------------100 ग्राम
१३】रोली, -------------------------100ग्राम
१४】सुपारी, ( बड़ी)-----------  200 ग्राम
१५】नारियल ----------------------  11 नग्
१६】सरसो--------------------------50 ग्राम
१७】पंच मेवा---------------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)------------------ 50 ग्राम
१९】शकर-------------------------0 1किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)--------------  01किलो
२१】इलायची (छोटी)--------------10ग्राम
२२】लौंग मौली---------------------10ग्राम
२३】इत्र की शीशी--------------------1 नग्
२४】तिली--------------------------२००ग्राम
२५】जौ-----------------------------१००ग्राम
२६】माचिस -------------------------१पैकिट
२७】रुई-------------------------------२०ग्राम
२८】नवग्रह समिधा------------------१पैकेट
२९】धुप बत्ती ------------------------२पैकिट
३०】लाल कपड़ा --------------------२मीटर
३१】सफेद कपडा-------------------२मीटर
३२】समिधा हवन के लिए ---------५किलो
33) तिली ------- ---------------------1किलो
34)जौ-----------------------------200 ग्राम

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                     अन्य सामग्री

१】पान
२】 पुष्प
३】पुष्पहार
४】दूर्वा
५】विल्वपत्र
६】दोना गड्डी
७】बताशे या प्रशाद
८】फल
९】आम के पत्ते
१०】समिधा हवन के लिए
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           माता पूजन सामग्री

१】झंडियां लाल
२】पूड़ी
३】ताव
४】खारक
५】बदाम
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               मंडप पूजन सामग्री

१】मानक खम्भ
२】पटली लकड़ी की
३】नींव में रखने का सामान
४】जैसे  लाख का टुकड़ा
५】सर के वाल
६】कोयला
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अगर  गंगाजली पूजन  हो तो ---------कही कही होती है
ऊपर दी गयी पूजा  सामग्री में से लेबे

१】खाजा
२】खारक
३】वादाम
४】लाल कपड़ा 3 मीटर
५】श्री फल (नारियल)
==========>>>>>>>>=>=>>=======

          जनेऊ (यज्ञनोपवित) संस्कार

१】मूँज की जनेऊ
२】खड़ाऊ
३】डण्डा(दंड)
४】भिक्षा पात्र "कमण्डल
५】गुरुपूजन की सामग्री
६】जैसे =बस्त्र नारियल जनेऊ गोलसुपारी आदि
======>>>>>>>>>======>>>>>>>==

१】बर के निमित्त बस्त्र
२】फल
३】नारियल
४】आभूषण आदि
५】जनेऊ
=============================
गनाना 
पूजन सामग्री ऊपर दी गयी  उसी में से पूजन थाली तैयार होगी
लड़के वालो की तरफ से दुल्हन के निमित्त
१】 बस्र
२】आभूषण श्रृंगार दानी
३】कुलदेवी प्रतिमा टिपारी
४】मोहर दुल्हन के सर पर बाँधने का
५】पिछौड़ा 
६】सिंधोडा
७】सिंधोड़ि
८】कंकण
९】 बतासे
१०】नारियल या नारियल गोला
11)तस्वीर राम विबाह शिव विबाह
12)रगवारै के लोटा
=======>>>>>>>>>======>>>>>>>>
फेरे के समय  लड़की वालों के यहाँ। पूजन सामग्री  ऊपर दी है उसके
अलावा

१】लाजा
२】सूप
३】मधुपर्क
४】हथलेवा
५】सिंदुर्दानी
६】डाभ
७】मधुपर्क 
८】गुड़
९】बतासे
१०】हल्दी पिसी पॉब पुजाई के लिए
११】समिधा हवन के लिए फेरे के समय
११】विछुड़ी

संपर्क
गुरुदेब भुबनेश्वर
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
मो।९८९३९४६८१०

Saturday, 8 November 2025

दुर्गा अष्टमी

#दुर्गाष्टमी व्रत की विशेष #जानकारी ...........
==============================
जिनको पुत्र संतानें हैं, वे दुर्गाष्टमी व्रत #उपवास नहीं करें। जिनकी पुत्र संतानें नहीं हैं,वे दुर्गाष्टमी व्रत उपवास करें।
उस आलेख पर सभी सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों?क्या इसका कोई #शास्त्रीय प्रमाण है? हमलोग परम्परा वश तो दुर्गाष्टमी उपवास व्रत करते आ रहे हैं। शास्त्र प्रमाण के आधार पर धार्मिक कृत्य करने चाहिए।
इसी प्रमाण को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
सबसे पहले यह जान लिजिए कि सप्तमी युक्त #अष्टमी व्रत नहीं करना चाहिए.............
शरन्महाष्टमी पूज्या नवमी संयुता सदा।
सप्तमी संयुता नित्यं शोकसंतापकारिणीम्।।
सप्तमी युक्त अष्टमी शोक संताप देने वाली होती है। इसे शल्य कहा जाता है : ---
सप्तमी कलया यत्र परतश्चाष्टमी भवेत्।
तेन शल्यमिदं प्रोक्तं पुत्र पौत्र क्षयप्रदम्।।
शल्य युक्त #अष्टमी कंटक अष्टमी है , जो पुत्र पौत्रादि का क्षय करता है। आगे और भी स्पष्ट है : -- 
#पुत्रान् हन्ति पशून हन्ति राष्ट्र हन्ति सराज्यकम्।
हन्ति जातानजातांश्च सप्तमी सहिताष्टमी।।
सप्तमी सहित अष्टमी व्रत पुत्रों को नाश करती है , पशुओं को नाश करती है, राष्ट्र / देश तथा राज्य का नाश करती है। और , उत्पन्न हुए और न उत्पन्न हुए का नाश करती है।
सप्तमी वेध संयुता यैः कृता तु महाष्टमी ।
पुत्रदार धनैर्हीना भ्रमयन्तीह पिशाचवत्।।
#सप्तमी वेध से युक्त महा - अष्टमी को करने से लोग इस संसार में पुत्र , स्त्री तथा धन से हीन होकर पिशाच के सदृश भ्रमण करते हैं तथा : ---
सप्तमीं शैल्यसंयुक्तां मोहादज्ञानतोऽपि वा ।
महाष्टमीं प्रकुर्वाणो नरकं प्रतिपद्यते।।
मोह - अज्ञान से शल्य युक्त / सप्ती से युक्त महाष्टमी को जो करता है , वह नरक में जाता है। इसलिए, स्पष्ट है कि सप्तमी युक्त #अष्टमी उपवास व्रत नहीं करना चाहिए। 

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
(02)
लेकिन , #दुर्गाष्टमी उपवास किसे करना चाहिए और किसे नहीं करना चाहिए, यह जानना अत्यावश्यक है : ---
कालिका पुराण में स्पष्ट कहा गया है , जो निर्णय सिन्धु पृष्ठ संख्या 357 में उद्धृत है :---
अष्टम्युपवाश्च पुत्रवाता न कार्यः।
उपवासं महाष्टम्यां पुत्रवान्न समाचरेत्।
यथा तथा वा पूतात्मा व्रतीं देवीं प्रपूज्येत्।।
अर्थात अष्टमी तिथि में उपवास #पुत्रवाला न करे। जैसे - तैसे पवित्र आत्मा वाला व्रती देवी की पूजा करे। यानि स्पष्ट है कि जिनके पुत्र संतान हैं वे लोग दुर्गाष्टमी को उपवास व्रत नहीं करें।
लेकिन, वैसे लोग जिनके #पुत्र संतान नहीं हैं , वे सभी भक्त गण पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से दुर्गाष्टमी का उपवास व्रत करें। महाभागवत ( देवीपुराण ) अध्याय 46 श्लोक संख्या 30 एवं 31 में स्पष्टतः देवी का आदेश है :--- 
महाष्टम्यां मम प्रीत्यै उपवासः सुरोत्तमाः। 
कर्तव्यः पुत्रकामैस्तु लोकैस्त्रैलोक्यवासिभिः।।
स्वयं माँ #भगवती कहती हैं कि मेरी संतुष्टि के लिए तीनों लोकों में रहने वाले लोगों को महाष्टमी के दिन पुत्र की कामना से उपवास करना चाहिए । ऐसा करने से उन्हें सर्वगुण सम्पन्न पुत्र की प्राप्ति अवश्य होगी। 
अवश्यं भविता पुत्रस्तेषां सर्वगुण समन्वितः।
लेकिन, उस दिन पुत्रवान लोगों को उपवास व्रत नहीं करना चाहिए :---
#पुत्रवद्भिर्न कर्तव्य उपवासस्तु तद्दिने।।
माँ भगवती जगत् जननी सब का कल्याण करें , यही #प्रार्थना है।।

                   

Monday, 27 October 2025

दीपावली पर पांच दिन के मुहूर्त 2025

गुरुदेव भुवनेश्वर जी महाराज पर्णकुटी आश्रम गुना के अनुसार पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है और समापन भाई दूज पर। इन पांच दिनों में मुख्य आकर्षण माता महालक्ष्मी की पूजा होती है, जो कार्तिक अमावस्या की रात में की जाती है। इस दिन लोग घर-आंगन में दीप जलाकर अंधकार को दूर करते हैं और धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। आइए जानते हैं, इस साल धनतेरस, छोटी दिवाली, महालक्ष्मी पूजा, गोवर्धन पूजा और भाई दूज के शुभ मुहूर्त 
 इस साल धनतेरस शनिवार 18 अक्टूबर को है।

त्रयोदशी के दिन क्षीर सागर से प्रकट हुयीं थीं तथा उन्होंने दीवाली के दिन अपने पति के रूप में भगवान विष्णु का वरण किया था। इसीलिये दीवाली अमावस्या को धन और समृद्धि की देवी को प्रसन्न करने हेतु सर्वाधिक उपयुक्त दिन माना जाता है। इस दिन लोहे के सामान नहीं खरीदना चाहिए गुरुदेव भुवनेश्वर जी के अनुसार इस दिन धातु खरीदना चाहिए जैसे सोना, चांदी तांबा पीतल आदि लोहे के बरतन भी नहीं खरीदना चाहिए 

सभी प्रकार की खरीदारी का शुभ समयः दोपहर 12:00बजे से दोपहर 03:00 बजे तक
 एवं अभिजित मुहूर्त 11:43 से 12:43 तक
 विजय मुहूर्त के अनुसार 
अपरान्ह काल 02:01 बजे से 02:43 तक शुभ रहेगा
 धनतेरस पर सोना, चांदी, पीतल, तांबे के बर्तन, झाडू, गोमती चक्र, सूखा धनिया, नमक और लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, घर की सजावट की वस्तुएँ खरीदना बहुत शुभ माना जाता है।
 X क्या न खरीदेंः धनतेरस पर चाकू, कैंची, पिन या कोई भी धारदार वस्तु खरीदना अशुभ माना जाता है।



धनतेरस पर शाम के समय भगवान धन्वंतरि, कुबेर महाराज और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। 


त्रयोदश्यां तु या रात्रिः शनिवारे विशेषतः।
धन्वन्तरिप्रसादेन दरिद्र्यं तस्य नश्यति॥”

अर्थात —
जब त्रयोदशी तिथि (धनतेरस) शनिवार को आए,
तो उस दिन धन्वंतरि पूजन से दरिद्रता सदा के लिए नष्ट हो जाती है।


शनिवारे जगद्धात्रि कोट्यावृत्तिफलं ध्रुवम्॥” 


त्रयोदश्यां यमदीपं तु कुर्यादायुर्यमोदितम्।
दारिद्र्यनाशनं सर्वं सौभाग्यं तत् प्रयच्छति॥



अर्थ:
कार्तिक मास की त्रयोदशी (धनतेरस) के दिन यदि यमराज के लिए दीपदान किया जाए,
तो वह आयु और सौभाग्य प्रदान करता है तथा दारिद्र्य का नाश करता है।


---

🌕 २. धर्मसिंधु (दीपमालिका विधिः)

> धनत्रयोदश्यां दीपदानं यमदीपं विशेषतः।
कृत्वा प्रातःस्नानसमये धनं धान्यं च वर्धते॥



अर्थ:
धनत्रयोदशी के दिन दीपदान (विशेषकर यमराज हेतु) करने से धन और धान्य की वृद्धि होती है।


---

🌕 ३. कालिकापुराण (दीपदान फलवर्णन)

> यः कुर्याद् दीपदानं तु धनत्रयोदश्यां निशि।
तस्य धन्यं च आयुश्च भवेत् संततिवर्धनम्॥



अर्थ:
जो धनत्रयोदशी की रात्रि में दीपदान करता है,
उसका धन, आयु और संतति (वंश) तीनों बढ़ते हैं।





धनतेरस पर मृत्यु के देवता यमराज का सम्मान भी किया जाता है।
 शाम के समय घर के बाहर दक्षिण दिशा में चौमुखी दीपक जलाकर यमराज से लंबी आयु की कामना की जाती है।

त्रयोदशी तिथि आरंभ: 18 अक्टूबर दोपहर 12:18 बजे

त्रयोदशी तिथि समाप्त: 19 अक्टूबर दोपहर 1:51 बजे

दीपदान समय:::::::::::

(1)धनतेरस पूजा मुहूर्त: शाम 7:16 से 8:20 बजे तक  शुभ रहेगा
(2)प्रदोष काल: सायंकाल 5:48  –रात्रि  8:20 तक शुभ रहेगा

(3)वृषभ लग्न :सायंकाल 7:16 – रात्रि 9:11 तक शुभ रहेगा 

++++++++++++++++++++++++++++

भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर पर विजय का प्रतीक। 
 2025 में छोटी दिवाली सोमवार 19 अक्टूबर को पड़ेगी।

अभ्यंग स्नान मुहूर्त - प्रात: 05:13 से प्रात: 06:25  

नरक चतुर्दशी के दिन चन्द्रोदय का समय - : प्रात:05:13 

अभ्यंग स्नान महत्व
शास्त्रों के अनुसार, नरक चतुर्दशी पर सूर्योदय के पूर्व शरीर पर उबटन लगाकर स्नाने करने की प्रक्रिया को अभ्यंग स्नान कहा जाता है. जिसमें हल्दी, दही, तिल का तेल, बेसन, चंदन, जड़ी-बूटियों का लेप किया जाता है. इस लेप से पूरे शरीर की मालिश की जाती है.

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दिवाली का आवश्यक अंग, श्राद्ध कर्म भी है जोकि 20 तारीख़ को कुतुप काल में संभव नहीं है इसलिए 20 में कर्म का लोप हो रहा है। इस स्थिति में 20 में  दिवाली मनाए और 21 में अभ्यंग स्नान, श्राद्ध और पूर्वजो को मशाल प्रज्वलित करके पितरों को मार्ग का दर्शन अवश्य करायें। जिससे शात्र विधि पूरी हो सके
दीपावली शाम को लक्ष्मी और गणेश पूजा होती है। 2025 में महालक्ष्मी पूजन सोमवार 20 अक्टूबर को होगा।

अमावस्या तिथि आरंभ:

 20 अक्टूबर दोपहर 3:44 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त:

 21 अक्टूबर शाम 5:54 बजे


गुरुदेव भुवनेश्वर जी महाराज पर्णकुटी वालो के अनुसार अमावस्या की रात स्थिर लग्न में महालक्ष्मी की पूजा करने से घर में मां लक्ष्मी की स्थिरता बनी रहती है। वैसे तो चार स्थिर लग्न है, 

वृष, सिंह, वृश्चिक, और कुंभ।

  1. वृश्चिक लग्न - दीवाली के दिन प्रातःकाल वृश्चिक लग्न प्रबल होता है। मन्दिरों, अस्पतालों, होटलों, विद्यालयों और महाविद्यालयों के लिये वृश्चिक लग्न के समय लक्ष्मी पूजा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। विभिन्न टीवी और फिल्म कलाकारों, शो एन्करों, बीमा अभिकर्ताओं तथा जो लोग सार्वजनिक मामलों एवं राजनीति से जुड़े हैं, उन्हें भी वृश्चिक लग्न के दौरान देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिये।
  2. कुम्भ लग्न - दीवाली के दिन मध्यान्ह के समय कुम्भ लग्न प्रबल होता है। जो रोगग्रस्त एवं ऋणग्रस्त हैं, भगवान शनि के दुष्प्रभाव से मुक्ति प्राप्त करने के इच्छुक हैं, जिनके व्यापार में धन हानि हो रही है तथा व्यापार में भारी ऋण में है, उनके लिये कुम्भ लग्न में लक्ष्मी पूजा करना उत्तम होता है।
  3. वृषभ लग्न - दीवाली के दिन सायाह्नकाल में वृषभ लग्न प्रबल होता है। गृहस्थ, विवाहित, सन्तानवान, मध्यम वर्गीय, निम्न वर्गीय, ग्रामीण, किसान, वेतनभोगी तथा जो सभी प्रकार के व्यवसायों में संलिप्त व्यापारी हैं, उनके लिये वृषभ लग्न लक्ष्मी पूजा का सर्वोत्तम समय है। वृषभ लग्न को दीवाली पर लक्ष्मी पूजा हेतु सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है।
  4. सिंह लग्न - दीवाली के दिन मध्य रात्रि के समय सिंह लग्न प्रबल होता है। सिंह लग्न का मुहूर्त, साधु-सन्तों, सन्यासियों, विरक्तों एवं तान्त्रिकों के लिये लक्ष्मी पूजा एवं देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम मुहूर्त होता है।
Settingलक्ष्मी पूजा मुहूर्त स्थिर लग्न पर आधारित गुना, मध्यप्रदेश, भारत के लिये

इनमें से किसी भी  लग्न का उपयोग लक्ष्मी पूजा व्यापार पूजा में कर सकते है

(1)वृश्चिक लग्न मुहूर्त 
प्रात:- 08:28 से 10:45 तक

(2)कुम्भ लग्न मुहूर्त
 (अपराह्न) - 03:44 से 04:06 

(3)वृषभ लग्न मुहूर्त
 (सन्ध्या) - 07:14 से 09:12 

(4)निशिता मुहूर्त: रात 11 बजकर  41 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक

(5)सिंह लग्न मुहूर्त
 (मध्यरात्रि) - 01:43  से 03:56 21 अक्टूबर 



चोघडिया, मुहूर्त दुकान फैक्ट्री व्यापार के लिए उपयोग कर सकते हो

प्रात: काल अमृत 06:22 से 07:48 शुभ

प्रात: काल  शुभ 09:14 से 10:40 शुभ

मध्यान्ह काल चर 01:31 से 02:57 शुभ

दोपहर      लाभ 02:57 से- 04:23 शुभ

सायंकाल।  अमृत 04:23 से 05:48 शुभ

संध्याकाल लक्ष्मी पूजा के लिए विशेष मुहूर्त

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दिन ओर रात्रि के संक्रमण काल को गो धूली बेला कहते है

(1)गोधूली मुहूर्त सायंकाल 5:50से सायंकाल 06:15 तक

(2)लक्ष्मी पूजा मुहूर्त: शाम 7:08 से 8:18 बजे तक 

(3)प्रदोष काल: सायंकाल 5:46  –से  रात्रि 8:18  तक

4)वृषभ काल: सायंकाल 7:14से – रात्रि 9:012 अति शुभ मुहूर्त

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प्रदोष काल कब होता है

(1)प्रदोषोऽस्तसमयादूर्ध्वं घटिकाद्वयमिष्यते।त्र्यंशेन तस्य कालस्य यः पूज्यः स प्रदोषकः

अस्त (सूर्यास्त) के समय से ऊपर (बाद में) दो घटी का जो समय होता है, वही प्रदोषकाल कहलाता है। उस काल के तृतीयांश (एक तिहाई भाग) में जो लक्ष्मी की पूजा की जाती है, वही प्रदोषपूजा मानी जाती है।

(2)सूर्यास्तं यावत् कालं प्रदोषः संप्रकीर्तितः।

तस्य तृतीयभागस्थे पूजां कुर्यात् प्रदोषिकाम्॥

(3)अस्ताचलगतादर्कात् पूर्वं द्विघटिकापर्यन्तं च प्रदोषकालः।

अथास्तमितभानोरनन्तरं द्विघटीकान्तः स प्रदोषः परिकीर्तितः

जब सूर्य अस्ताचल (पश्चिम पर्वत) की ओर अग्रसर होता है, तो सूर्यास्त से दो घटी (लगभग 48 मिनट) पहले से लेकर सूर्यास्त के दो घटी बाद तक का जो काल होता है, वही प्रदोषकाल कहलाता है।

➡️ सूर्यास्त से 48 मिनट पूर्व आरंभ होकर

➡️ सूर्यास्त के 48 मिनट बाद तक

कुल चार घटी (लगभग 1 घंटा 36 मिनट) का काल प्रदोषकाल माना गया है।

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प्रतिपदा तिथि आरंभ: 21 अक्टूबर शाम 5:54 बजे

प्रतिपदा तिथि समाप्त: 22 अक्टूबर शाम 8:16 बजे

(1)गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त: 6:26 से प्रात:  09:14तक

(2)प्रात: काल 10:39से से 12:05 तक 

सायाह्नकाल मुहूर्त: 3:29 – से सायंकाल 5:44 

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भाई दूज:  भाई दूज गुरुवार 23 अक्टूबर को है।

द्वितीया तिथि आरंभ: 22 अक्टूबर रात 8:16 बजे

द्वितीया तिथि समाप्त: 23 अक्टूबर रात 10:46 बजे

प्रात: काल 10;39से अपरान्ह 02:56 तक

+++++++++++++++++++++++++++++गुरुदेव 

भुवनेश्वर जी महाराज 
पर्णकुटी आश्रम गुना 
9893946810

एकादशी निर्णय 2025

कार्तिक शुक्ल (हरिप्रबोधिनी) एकादशी व्रत कब करें??
जानिए शास्त्रीय समाधान, 
इस वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वादशी का क्षय हुआ है। इस स्थिति में धर्मशास्त्र निर्णयानुसार स्मार्त्त (सभीगृहस्थी) लोगों को पहिली दशमीविद्धा एकादशी वाले दिन 1 नवम्बर, 2025 शनिवार को तथा वैष्णवों (संन्यासी, विधवा स्त्री, वानप्रस्थ और वैष्णव सम्प्रदाय वाले) को 2 नवम्बर, 2025 के दिन उपवास करना चाहिए। यहाँ आगे स्पष्टीकरण दे रहे हैं-'धर्मसिन्धुकार' अनुसार एकादशी तिथि मुख्यतः दो प्रकार की होती है- (i) विद्धा और (ii) शुद्धा। (i) सूर्योदयकाल में दशमी का वेध हो अथवा अरुणोदयकाल (सूर्योदय से लगभग 4 घड़ी पूर्व) में एकादशी तिथि दशमी द्वारा विद्वा हो, तो वह (एकादशी) विद्वा कहलाती है। (ii) अरुणोदयकाल में दशमी तिथि के वेध से रहित एकादशी शुद्धा मानी जाती है।
प्रायः सभी शास्त्रों में दशमी से युक्त एकादशी व्रत करने का निषेध माना गया है। परन्तु द्वादशी का क्षय हो जाने पर स्मार्तों (गृहस्थियों) को दशमीयुता एवं वैष्णव सम्प्रदाय वालों को द्वादशी-त्रयोदशीयुता एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। पद्मपुराण अनुसार भी-
एकादशी द्वादशी च रात्रिशेषे त्रयोदशी।
उपवासं न कुर्वीत पुत्रपौत्रसमन्वितः ।।' उपरोक्त प्रमाणानुसार 11, 12, 13 तिथियों से मिश्रित दिन में स्मार्तों (गृहस्थियों)
के व्रत का निषेध और वैष्णवों के व्रत का विधान है। 'वृद्धशातातप' का भी यहाँ वचन है-'दशम्यैकादशीविद्धा द्वादशी च क्षयं गता। क्षीणा सा द्वादशी ज्ञेया नक्तं तु गृहिणः स्मृतम् ।..... गृहिणः पूर्वत्रोपवासः ।।'
ध्यान दें-यहाँ धर्मशास्त्रों में सूर्योदयवेधवती दशमी के दिन स्मार्तों को व्रत करने की आज्ञा दी है, जोकि कण्वस्मृति के सामान्य नियम 'उदयोपरि विद्धा तु दशम्यैकादशी यदि। दानवेभ्यः प्रीणनार्थं दत्तवान् पाकशासनः ।।' के बिल्कुल विरुद्ध है। परन्तु शास्त्रों द्वारा स्मार्तों के लिए त्रयोदशी में पारणा भी सर्वथा वर्जित मानी गई है। यदि द्वादशी तिथि के क्षय की स्थिति में स्मार्तों (गृहस्थियों) तथा वैष्णवों का व्रत एक ही दिन कर दिया जाए तो स्मार्तों को भी व्रत की पारणा त्रयोदशी में करने की स्थिति आ पड़ेगी।
इसीलिए निर्णयसिन्ध में 'ऋष्यश्रृंग' ने अन्य विकल्प के अभाव में तथा जब स्मार्तों को त्रयोदशी में पारणा करने की नौबत आ पड़े तब दशमीमिश्रिता एकादशी में ही व्रत करने की अनुमति दी है-
'पारणाहे न लभ्येत द्वादशी कलयाऽपि चेत् ।
तदानीं दशमीविद्वाऽपि-उपोष्यै-एकादशी तिथिः ।।' 
इस प्रकार उपरोक्त शास्त्र-विवेचन से पाठक समझ गए होंगे कि इस वर्ष एकादशी-द्वादशी-त्रयोदशी-इन तिथियों का एकत्र (एक ही वार में संगम) होने के कारण स्मार्तों (गृहस्थियों) का 'देवप्रबोधिनी एकादशी व्रत' विशेष नियमानुसार 1 नवम्बर, 2025 ई. को सूर्योदय-वेधवती दशमी के दिन शनिवार को लिखा गया है, जो सर्वथा शास्त्रीय है, जबकि वैष्णवों का व्रत 2 नवम्बर, रविवार को होगा।
भीष्मपंचक प्रारम्भ/समाप्त (1 से 5 नवम्बर)
कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक का काल (अवधि) 'भीष्मपंचक' कहलाता है। शास्त्रों में भीष्मपंचक व्रत का अनुष्ठान केवल पाँच दिन (का. शु. ११ से पूर्णिमा तक) निर्दिष्ट है। इन पाँच दिनों में व्रताचरणपूर्वक पूर्वाण में विष्णुपूजा और मध्याह्न में भीष्मपितामह के लिए एकोद्दिष्ट श्राद्ध किया जाता है। यदि शुद्धा एकादशी से उदयकालिक पूर्णिमा तक की अवधि में कोई तिथि क्षय हो जाए और भीष्मपंचकों के दिनों की संख्या चार ही रह जाए, तब शास्त्रकारों ने यह परामर्श दिया है कि दशमीविद्धा एकादशी से ही यह व्रत प्रारम्भ करके शुद्ध (जिसमें चतुर्दशी का वेध न हो) उदयकालिक पूर्णिमा के दिन ही इसे समाप्त कर लेना चाहिए। इसी प्रकार, यदि इन पाँच तिथियों में से किसी एक तिथि की वृद्धि हो जाने से भीष्मपंचकों के 6 दिन बनते हो, तो शुद्ध एकादशी वाले दिन से प्रारम्भ करके चतुर्दशी-विद्धा, पूर्णिमा के दिन ही भीष्मपंचकों को समाप्त करना चाहिए। इस बारे 'धर्मसिन्धु' का वचन है-
"एकादश्यादि-दिनपंचके भीष्मपंचकव्रतमुक्तम्। तच्च शुद्धेकादश्यामारम्य चतुर्दश्यविद्वौदयिक-पौर्णमास्यां समापनीयम्। यदि शुद्धेकादश्यमारम्भे क्षयवशेन पौर्णमास्यां पंचदिनात्मकव्रतसमाप्तिर्न घटते, तदा विर्द्धकादश्यामपि आरम्भः ।।"
इस वर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष में द्वादशी का क्षय हो जाने से भीष्मपंचक के दिन केवल चार ही बच रहे हैं। अतः उपरोक्त नियमानुसार यहाँ दशमीविद्धा एकादशी (1 नवम्बर, 2025 ) से भीष्मपंचक का आरम्भ माना गया है। स्पष्ट है, इससे पूर्णिमा तक के दिन पाँच हो गए हैं।
तुलसी विवाह (2 नवम्बर, रविवार)
कार्तिक शुक्ल एकादशी (हरिप्रबोधिनी एकादशी) की पारणा वाले दिन प्रबोधोत्सव मनाया जाता है। इसी दिन अथवा इससे अग्रिम चार (द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा वाले) दिनों में किसी भी दिन विवाह-नक्षत्र में तुलसी विवाह किया जा सकता हे 
ऐसा शास्त्रविधान है-एकादश्यादि पूर्णिमान्ते यत्र क्वापि दिने कार्तिक शुक्लान्तर्गत-विवाह-नक्षत्रेषु वा विधानादनेक कालत्वं तथापि पारणाहे प्रबोधोत्सव कर्मणा सह
- परन्तु प्रबोधोत्सव के साथ एकादशी व्रत पारणा वाले दिन पूर्वरात्रि में (अर्धरात्रि से पहिले ही रात्रिकाल में) तुलसी विवाह करने की परम्परा है-ऐसा 'धर्मसिन्धुकार' का निर्देश है-
'रात्रि प्रथमभागे प्रशस्तः।' यदि पारणा के दिन पूर्वरात्रिकाल में विवाह-नक्षत्र न हो तो दिन के समय प्राप्त विवाहनक्षत्र में, यदि वहाँ भी न मिले तो उसके बिना भी पूर्वरात्रि में तुलसी-विवाह पारणा के दिन कर लेना चाहिए।
इस वर्ष 2 नवम्बर, 2025 को प्रबोधोत्सव है। इसदिन पूर्वरात्रि में विवाह-नक्षत्र उ.भा. भी है। अतः इसदिन 'तुलसी विवाह' शास्त्रविहित है।
नोट-ध्यान रहे-कुछ शास्त्रकार व्यतीपात/वैधृति योग में, द्वादशी तिथि एवं रविवार को तुलसी-दल का स्पर्श एवं तोड़ने का निषेध मानते हैं-
वैधृतौ
च व्यतीपाते भौमभार्गवभानुषु ।
पर्व द्वये च संक्रान्तौ द्वादश्यां सूतके द्वयोः ।। (निर्णयसिन्धु)
अतएव हमारे विचारानुसार श्री तुलसी विवाह उत्सव 3 नवम्बर, सोमवार को मनाना अधिक शास्त्र सम्मत होगा। क्योंकि यहाँ प्रदोष में विवाह नक्षत्र रेवती भी विद्यमान होगा

Thursday, 16 October 2025

दीपावली निर्णय 2025

"सूर्यसिद्धान्त और दीपावली का तिथि-निर्णय: गणितीय और शास्त्रीय विश्लेषण"
 2025 में अमावस्या तिथि की गणना निम्नलिखित है:

✓•1.अमावस्या तिथि का गणितीय निर्धारण:

   - सूर्यसिद्धान्त के अनुसार, अमावस्या तब होती है जब चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° से 12° के बीच होती है।

   - मान लें कि 20 अक्टूबर 2025 को प्रातः 6:00 बजे चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° है (अमावस्या का प्रारम्भ)।

   - चन्द्रमा की सूर्य के सापेक्ष गति 12.1908° प्रति दिन है। अतः, अमावस्या तिथि की अवधि होगी:
     
अवधि= 12°/12.1908°/दिन≈ 0.984  दिन ≈23 घंटे 37  मिनट
   
   - इस आधार पर, अमावस्या 21 अक्टूबर को दोपहर बाद लगभग 4:00 बजे समाप्त होगी (6:00 AM + 23 घंटे 37 मिनट ≈ 4:37 PM)।

✓•2. सूर्यास्त और प्रदोष काल की गणना:

   - भारत में सूर्यास्त का समय सामान्यतः सायं 6:00 बजे के आसपास होता है (स्थानीय भौगोलिक स्थिति के आधार पर ±15 मिनट)।

   - प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद 2 घटी (48 मिनट) तक माना जाता है, अर्थात् लगभग 6:00 PM से 6:48 PM तक।

   - निशीथ काल मध्यरात्रि (लगभग 11:30 PM से 12:30 AM) तक माना जाता है।

   - 21 अक्टूबर को सूर्यास्त (6:00 PM) के समय अमावस्या तिथि समाप्त हो चुकी होगी, क्योंकि यह 4:00 PM के आसपास समाप्त हो रही है।

✓•3. 20 अक्टूबर की स्थिति:

   - 20 अक्टूबर को सूर्यास्त (6:00 PM), प्रदोष काल (6:00 PM से 6:48 PM), निशीथ काल (11:30 PM से 12:30 AM), और सम्पूर्ण रात्रि में अमावस्या तिथि विद्यमान होगी।

   - गणितीय रूप से, 20 अक्टूबर को प्रातः 6:00 बजे से अमावस्या तिथि प्रारम्भ होने के बाद, यह पूरे दिन और रात्रि तक प्रभावी रहेगी।

✓•निष्कर्ष: सूर्यसिद्धान्त की गणितीय गणना के आधार पर, 20 अक्टूबर 2025 को ही दीपावली मनाना शास्त्रसम्मत है, क्योंकि इस दिन सूर्यास्त, प्रदोष, और निशीथ काल में अमावस्या तिथि उपस्थित है।

✓•सूर्यसिद्धान्त बनाम दृक्-सिद्ध गणना: गणितीय तुलना: दृक्-सिद्ध गणनाएं आधुनिक वेधशालाओं और उपकरणों पर आधारित हैं, जो ग्रहों की वास्तविक स्थिति को प्रत्यक्ष अवलोकन द्वारा मापती हैं। उदाहरण के लिए, दृक्-सिद्ध गणना में अमावस्या का समय सूर्य और चन्द्रमा की वास्तविक खगोलीय स्थिति पर आधारित होता है, जो GPS और अन्य उपकरणों द्वारा मापा जाता है। सूर्यसिद्धान्त, इसके विपरीत, प्राचीन गणितीय मॉडल पर आधारित है, जो दीर्घकालिक औसत गति (mean motion) को आधार मानता है।

✓•उदाहरण:

- दृक्-सिद्ध गणना: मान लें कि 21 अक्टूबर 2025 को वेधशाला द्वारा मापी गई चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° दोपहर 2:00 बजे है। चूंकि चन्द्रमा की गति 12.1908° प्रति दिन है, अमावस्या तिथि 4:00 PM तक समाप्त हो सकती है।

- सूर्यसिद्धान्त गणना: सूर्यसिद्धान्त में दीर्घकालिक औसत गति के आधार पर तिथि की गणना की जाती है, जो 20 अक्टूबर को सूर्यास्त तक अमावस्या की उपस्थिति को सुनिश्चित करती है।

✓•निर्णयसिन्धु में स्पष्ट है:

"अदृष्ट-फल-सिध्यर्थ यथार्कगणितं कुरु।
 गणितं यदि दृष्टार्थ त‌दृष्ट्युद्भव तस्सदा।।"

✓•अर्थात्, धार्मिक कर्मों (अदृष्ट फल) के लिए सूर्यसिद्धान्त का प्रयोग करें, जबकि दृष्ट प्रयोजनों (जैसे वैज्ञानिक अनुसंधान) के लिए दृक्-सिद्ध गणना उपयुक्त है।

✓•निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु का महत्व
निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु भारतीय पञ्चाङ्गों के लिए सर्वमान्य ग्रन्थ हैं। आचार्य कमलाकर भट्ट ने निर्णयसिन्धु में दृक्-सिद्ध गणनाओं को नकारते हुए सूर्यसिद्धान्त को प्रामाणिक माना है। पण्डित सदाशिव शास्त्री ने धर्मसिन्धु की टीका में सूर्यसिद्धान्त की प्रामाणिकता को स्थापित किया। सूर्यसिद्धान्त को भ्रमजाल मानने वाले विद्वानों को निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु  का भी त्याग करना होगा, जो तार्किक रूप से असंगत है।

✓•कालिदास और ज्योतिर्विदाभरण
कालिदास ने ज्योतिर्विदाभरण में लिखा है:

"श्रीसूर्यसिद्धान्तमतोद्भवार्कात् साध्यौ तदा तावधिकक्षयौ। 
मासौ तदा संक्रमकाल एव साध्यः सदा हौरिकशास्त्रविद्भिः।।"

✓•यह स्पष्ट करता है कि अधिकमास, क्षयमास, और संक्रान्ति की गणना सूर्यसिद्धान्त के आधार पर ही की जानी चाहिए।

✓•शंकराचार्यों की भूमिका:
दीपावली जैसे पर्वों के तिथि-निर्णय में एकरूपता के लिए चारों शंकराचार्य पीठों को सूर्यसिद्धान्त के आधार पर समवेत घोषणा करनी चाहिए। यह धार्मिक एकता और परम्पराओं के संरक्षण के लिए आवश्यक है।

✓••निष्कर्ष: सूर्यसिद्धान्त की गणितीय और शास्त्रीय प्रामाणिकता प्राचीन ग्रन्थों और विद्वानों द्वारा सिद्ध है। दीपावली 2025 के लिए गणितीय गणना के आधार पर 20 अक्टूबर ही शास्त्रसम्मत है। सूर्यसिद्धान्त को भ्रमजाल मानने वाले विद्वानों को निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु‌का भी त्याग करना होगा, जो असंगत है। शंकराचार्यों को सूर्यसिद्धान्त को आधार मानकर तिथि-निर्णय में एकरूपता लानी चाहिए।

✓•सन्दर्भ:
1. स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज, कुम्भ तिथ्यादि निर्णय.
2. आचार्य कमलाकर भट्ट, निर्णयसिन्धु.
3. पण्डित सदाशिव शास्त्री मुसलगाँवकर, धर्मसिन्धु टीका.
4. कालिदास, ज्योतिर्विदाभरण.
5. स्कन्दपुराण, कलिमाहात्म्य.
#त्रिस्कन्धज्योतिर्विद्

दीपावली पर पठाके का प्रमाण

#दीपावली में #आतिशबाजी-स्कन्द तथा पद्म पुराण में दीपावली उत्सव का वर्णन है। असुर राजा #बलि इसी दिन पाताल गये थे, उस उपलक्ष्य में दीपावली का पालन होता है। सन्ध्या को स्त्रियों द्वारा लक्ष्मी पूजा के बाद दीप जलाते हैं तथा #उल्का (आतिशबाजी) करनी चाहिये। उल्का तारा गणों के प्रकाश का प्रतीक है। आधी रात को जब लोग सो जायें तब जोर से शब्द होना चाहिये (पटाखा) जिससे #अलक्ष्मी भाग जाये। #विस्फोटक को बाण कहते थे और इनकी उपाधि ओड़िशा में बाणुआ तथा महाबाणुआ है। #ओड़िशा के क्षत्रियों की उपाधि प्रुस्ति का भी यही अर्थ है। (प्रुषु दाहे, पाणिनीय धातु पाठ, १/४६७)
#तिथितत्त्वे अमावास्या प्रकरणे...............
तुलाराशिं गते भानौ अमावस्यां नराधिपः।
#स्नात्वा देवान् पितॄन् भक्त्या संयुज्याथ प्रणम्य च॥
#कृत्वा तु पार्वणश्राद्धं दधिक्षीरगुड़ादिभिः।
 ततो ऽपराह्ण समये घोषयेन्नगरे नृपः॥
#लक्ष्मीः संपूज्यतां लोका उल्काभिश्चापि वेष्ट्यताम्॥
भारत मञ्जरी (१/८९०)-
#प्रकाशिताग्राः पार्थेन ज्वलदुल्मुक पाणिना।
स्कन्द पुराण (२/४/९)- 
त्वं ज्योतिः श्री #रवीन्द्वग्नि विद्युत्सौवर्ण तारकाः। 
#सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिते नमः॥८९॥ 
या #लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले। 
गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम॥९०॥ 
#दीपदानं ततः कुर्यात्प्रदोषे च तथोल्मुकम्।
 भ्रामयेत्स्वस्य शिरसि सर्वाऽरिष्टनिवारणम्॥९१॥ 
पद्म पुराण (६/१२२)-त्वं ज्योतिः श्री रविश्चंद्रो विद्युत्सौवर्ण तारकः। 
#सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिता तु या॥२३॥
या लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले।
#गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम॥२४॥
शंकरश्च भवानी च क्रीडया द्यूतमास्थितौ।
#भवान्याभ्यर्चिता लक्ष्मीर्धेनुरूपेण संस्थिता॥२५॥
गौर्या जित्वा पुरा शंभुर्नग्नो द्यूते विसर्जितः॥ 
#अतोऽयं शंकरो दुःखी गौरी नित्यं सुखे स्थिता॥२६॥
प्रथमं विजयो यस्य तस्य संवत्सरं सुखम्। 
एवं गते #निशीथे तु जने निद्रार्ध लोचने॥२७॥
तावन्नगर नारीभिस्तूर्य डिंडिम वादनैः।
#निष्कास्यते प्रहृष्टाभिरलक्ष्मीश्च गृहां गणात्॥२८॥

              गुरुदेव
Bhubneshwar 
Parnkuti ashram guna
9893946810

Sunday, 12 October 2025

दीपावली पर दीपदान महत्व

दीपदानात् सदा लक्ष्मीः स्थिरा भवति सर्वदा।
दीपैर्नीराजनं तस्मात् दीपावली स्मृता।।”

🔹 अर्थ:
दीपदान करने से लक्ष्मी सदा स्थिर (स्थायी) होती हैं।
इसी कारण दीपों से नीराजन करने का विधान है, और इसी से यह तिथि दीपावली कहलाती है।स्कन्दपुराण, कार्तिकमाहात्म्य में दीपदान (दीयों का दान और प्रज्वलन) केवल दीपावली पर ही नहीं, बल्कि कार्तिक मास के संपूर्ण काल में अत्यंत पुण्यकारी बताया गया है स्कन्दपुराण, कार्तिकमाहात्म्य में
  1. दीपदानात् सदा लक्ष्मीः स्थिरा भवति सर्वदा।
    दीपैर्नीराजनं तस्मात् दीपावली स्मृता।।

    ➤ अर्थ: दीपदान करने से लक्ष्मी स्थिर होती हैं। इसी कारण दीपों से आराधना कर इस तिथि को दीपावली कहा गया।


  1. पद्मपुराण, कार्तिकमाहात्म्य

    यः कार्तिके मासि नरोऽभ्युपेतो
    दीपं ददात्यायनवस्त्रसङ्गम्।
    तेनाक्षयं पुण्यमवाप्य लोके
    विष्णोः पदं याति सुखेन पुंसाः।।

    ➤ अर्थ: जो कार्तिक मास में दीपदान करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और अंततः वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है।


  1. नारदपुराण

    दीपं यः प्रयतो दद्यात् कार्तिके मासि भक्तितः।
    स याति विष्णुसायुज्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते।।

    ➤ अर्थ: जो कार्तिक मास में भक्ति से दीपदान करता है, वह विष्णुसायुज्य को प्राप्त होता है और समस्त पापों से मुक्त होता है।


  1. गृह्यसूत्रवचन

    दीपदानं तु यः कुर्यात् संध्यायां वा निशामुखे।
    तस्य पापं विनश्येत् दीपवत् तिमिरं यथा।।

    ➤ अर्थ: जो संध्या या रात्रि के आरंभ में दीपदान करता है, उसके पाप वैसे ही नष्ट होते हैं जैसे दीप से अंधकार


🔱 दीपदान माहात्म्य (महत्व)

✴️ शास्त्रवचन:

> दीपं यो यः प्रयच्छेत् कार्तिके मासि मानवः।
तेन जातं महत् पुण्यं सर्वपापप्रणाशनम्।।
(स्कन्दपुराण, कार्तिकमाहात्म्य)



अर्थ:
जो मनुष्य कार्तिक मास में दीपदान करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।


---

> दीपदानं हि यः कुर्यात् प्रदोषे भक्तिसंयुतः।
तस्य लोकाः परं यान्ति दीपवत् सर्वतः शुभाः।।
(नारदपुराण)



अर्थ:
जो संध्याकाल में दीपदान करता है, वह स्वयं प्रकाशमय लोकों को प्राप्त होता है।


---

> दीपदानात् सदा लक्ष्मीः स्थिरा भवति सर्वदा।
दीपैर्नीराजनं तस्मात् दीपावली स्मृता।।
(स्कन्दपुराण)



अर्थ:
दीपदान करने से लक्ष्मी सदा स्थिर रहती हैं। इसी कारण दीपों से आराधना कर इसे दीपावली कहा गया है।




2. दीपावली की रात्रि:

प्रदोषकाल — सूर्यास्त से लगभग 72 मिनट तक का समय सर्वश्रेष्ठ माना गया है।


5. मंत्र बोलें —

> “दीपं देहि जगन्नाथ त्रैलोक्यं तमोनुदम्।
नमस्ते दीपदेवेति प्रज्वालयामि सर्वदा।।




6. दीप जलाने के बाद प्रार्थना करें —
“दीपज्योतिर्विनाशाय पापानां संसारसागरात्।
दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते नमोऽस्तु ज्योतिरेश्वरि।।”









🔱

दीपावली निर्णय 2025

मार्तण्ड की चुप्पी भादवमाता पंचांग की लीपापोती दिवाकर आदि पंचांग द्वारा सूत्र ही गलत, एवं अन्य पंचांगकर्ताओं को चुनौती: शास्त्र विरुद्ध दीपावली निर्णय पर विमर्श

मार्तण्ड पंचांग के निर्माताओं और अन्य सभी पंचांगकर्ताओं ने 21 अक्टूबर, 2025 को दीपावली मनाने का जो निर्णय लिया है, वह शास्त्रों के विरुद्ध है। यह एक गंभीर त्रुटि है, जिसका कारण शास्त्रों वचनों का गलत विश्लेषण है।

मार्तण्ड की चुप्पी और उनके निर्णय की त्रुटियाँ👉
मार्तण्ड पंचांग के विद्वान, यद्यपि वे सम्मानित हैं, इसपर पर मौन हैं और इसका कोई शास्त्रीय उत्तर नहीं दे पा रहे हैं। उनका मौन ही उनकी स्वीकृति है कि उनके द्वारा लिया गया निर्णय शास्त्रसम्मत नहीं है। यदि वे उत्तर देंगे, तो उन्हें शास्त्रों की व्याख्या को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना पड़ेगा, क्योंकि जिस सूत्र के आधार पर उन्होंने 21 अक्टूबर को दीपावली घोषित की है, उसका खंडन स्वयं धर्मसिंधु ग्रंथकार ने किया है। 

अहंकार बनाम स्वीकार्यता: 👉गलती किसी से भी हो सकती है, और उसे स्वीकार करने से कोई छोटा नहीं हो जाता। परंतु यहाँ अहंकार आड़े आ रहा है। 

दोषपूर्ण तर्क:👉 सौ से अधिक पंचांगों ने भी 21 अक्टूबर की तिथि तय की है। उनका तर्क है कि जब इतने सारे पंचांग एक ही निर्णय पर पहुँचे हैं, तो यह सही है। यह हमारे तर्कों का उत्तर नहीं है, यह तो केवल एक-दूसरे का समर्थन करना है, एक दूसरे की पीठ खुजलाने से सिद्धान्त स्थापित नहीं होते शास्त्रीय प्रमाण से होते हैं और जो प्रमाण आप लोगों के द्वारा प्रदत्त है उसमें दोषदर्शन हम करा चुके हैं।  

भादवमाता वालों का अनुचित तर्क👉
भादवमाता वालों की स्थिति तो और भी हास्यास्पद है। वे सभी पंचांगकर्ताओं की तरह एक सूत्र का उपयोग करते हैं: "एतन्मते उभयत्र प्रदोषाव्याप्तिपक्षेऽपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिकव्यापित्वात् परैव युक्तेति भाति।" 

वे इस सूत्र का अर्थ यह लगा रहे हैं कि "यदि दोनों दिन प्रदोष व्याप्त हो, तब"। जबकि इसका सही अर्थ है: "यदि दोनों दिन प्रदोष व्याप्त न हो, तब"। यहाँ 'अव्याप्ति' पद का स्पष्ट उल्लेख है, जिसे वे संस्कृत के अज्ञान से व्याप्ति बता रहे हैं अथवा जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं। 

उनका अतार्किक बचाव हास्यास्पद है, जब उन्हें बताया गया कि उनके ही सूत्र से उनका मत खंडित हो जाता है, तो उनका अद्भुत तर्क था कि "संस्कृत कोई प्रमाण नहीं है।" उन्होंने यह भी कहा कि यदि संस्कृत को प्रमाण मानेंगे तो बौद्ध धर्म के ग्रंथ भी मानने पड़ेंगे क्योंकि वे भी संस्कृत में हैं। यह एक असाधारण और हास्यास्पद तर्क है, जो उनके ज्ञान की कमी को दर्शाता है। 

पुरुषार्थचिंतामणि और धर्मसिंधु का वास्तविक मत

अधिकांश पंचांगकर्ता पुरुषार्थचिंतामणि के सूत्र को धर्मसिंधु द्वारा सिद्धांत के रूप में ग्रहण किया हुआ मान रहे हैं, जो कि एक और भ्रम है। 

पुराणसमुच्चय का उद्धरण: पुरुषार्थचिंतामणि ने वास्तव में पुराणसमुच्चय के वचन को उद्धृत किया है: "त्रियामगा दर्शतिथिर्भवेच्चेत्सार्धत्रियामा प्रतिपद्विवृद्धौ। दीपोत्सवे ते मुनिभिः प्रदिष्टे अतोऽन्यथा पूर्वयुते विधेये॥" 

धर्मसिंधु का खंडन: धर्मसिंधु के लेखक इसी मत का खंडन करते हैं और स्पष्ट करते हैं कि पुरुषार्थचिंतामणि का मत केवल तभी लागू होता है जब दोनों दिन प्रदोष-व्याप्ति न हो👉

"एतन्मते उभयत्र प्रदोषाव्याप्तिपक्षेऽपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिकव्यापित्वात् परैव युक्तेति भाति।" 

सही अर्थ: "इस मत (पुरुषार्थचिंतामणि के मत) के अनुसार, जिस पक्ष में दोनों ही दिन प्रदोष-व्याप्ति न हो, उसमें भी यदि दूसरे दिन अमावस्या साढ़े तीन प्रहर (लगभग 10.5 घंटे) से अधिक व्याप्त हो, तो 'परा' (बाद वाली) तिथि ही उचित है, ऐसा प्रतीत होता है।" 

यह स्पष्ट है कि धर्मसिंधु ने इस मत को पूर्वपक्ष में उठाया है, सिद्धांत के रूप में नहीं। उन्होंने इसे केवल एक विशेष परिस्थिति में लागू करने की बात कही है, अन्य समय में नहीं। 

दिवकारपंचांगकार तो इस सूत्र को ही गलत उठा लेते हैं वे कहते हैं कि 👉

एतन्मते उभयत्र प्रदोषव्याप्तिपक्षेऽपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिकव्यापित्वात् परैव युक्तेति भाति।

उन्होंने उभयत्र प्रदोषाव्याप्तिपक्षेऽपि को ही उभयत्र प्रदोषव्याप्तिपक्षेऽपि करके अव्याप्ति को व्याप्ति करके अपना निर्णय 21 का कर दिया।  

इसप्रकार ये सारे पंचांगकर्ता शास्त्रों के गलत अर्थ, उनके प्रकरणविरुद्ध सूत्रों के प्रयोग आदि से अपना वचन सिद्ध करने के कारण खण्डनयोग्य हैं अत: ये यदि ये पंचांगकर्ता इन स्पष्ट प्रमाणों के बावजूद अपने अहंकार के कारण निर्णय नहीं बदलते, तो वे जनता को भ्रमित करने वाले और शास्त्रों का हनन करने वाले ही सिद्ध होंगे।

और यदि ये हमारे द्वारा प्रदत्त खण्डन का खण्डन कर यह सिद्ध करे दें कि धर्मसिन्धु एवं निर्णयसिन्घुकार के निर्णय से 21 को अक्तूबर को दीपावली सिद्ध होती है तो हम सहर्ष इनके निर्णय को स्वीकार कर लेंगे।
साभार - तंत्र गुरुकुल

Tuesday, 30 September 2025

पान दशहरा

#दशहरा पर बीड़ा चबाने की #परम्परा भी है।.....
बीड़ा ताम्बूलवीटिका के घटक द्रव्य हैं सुपारी , इलायची, कत्था, कपूर।
#पूग्येलाखदिराढ्यं_तु_ताम्बूलं।
बाण ने कादम्बरी में कई बार ताम्बूलवीटिका का प्रयोग किया है। सिंहासनबत्तीसी में भी बीड़ा दिये जाने का वर्णन है।
#दे_बीरा_रघुनाथ_पठाये ...
बीड़ा पान ताम्बूल  किसी कार्य को पूरा करने का संकल्प लेना - बीड़ा उठाना ।
"सुपारी लेना" का भाव वही जो बीड़ा उठाने का.
सुपारी और पान का साथ सदा से ही है ।
देव पूजन में प्रयोग होता है ।
किसी सत्कर्म के उद्देश्य से ही पान, सुपारी का शगुन होता था । किन्तु आजकल हत्या करने जैसे जघन्य अपराध के लिये "सुपारी लेना" या देना का प्रचलन हो गया ।
#शब्दों की यही विडम्बना है , काल के साथ अर्थ एवं भाव परिवर्तन हो जाता है ।
पान सुपारी खाये जाने का चलन बहुत पुराना है,
आज भी लोग एक बटुआ में सरौता , कत्था, सुपारी, चूना रखे हुये मिल जायेंगे ।
आजकल #गुटखा के चलन ने सब दूषित और विकृत कर दिया है । तम्बाकू युक्त गुटखा पर प्रतिबन्ध होते हुये भी , तम्बाकू अलग पाउच में साथ में मिलने से निष्प्रभावी है ।
गुटखा में बहुत से हानिकारक केमिकल और पत्थर का चूरा भी मिला होता है ।

पहले #विप्रों और राजसामंतों के दाँत ताम्बूलरंजित होते थे। बल्लालकृत भोजप्रबन्ध में एक प्रसंग है। कवियों को अकूतधन देने वाले राजा भोज के दरबार में कविकर्म से रहित वेदशास्त्रज्ञाता विद्वान पहुँचे। द्वारपाल ने इन लोगों का सूक्ष्म निरीक्षण किया। दरबार में जाकर उसने उन वैदिक विद्वानों का परिचय इस प्रकार दिया -
#राजमाषनिभैर्दन्तैः_कटिविन्यस्त_पाणयः।
#द्वारतिष्ठन्ति_राजेन्द्र_छादन्साः_श्लोकशत्रावः॥ 
हे राजा ! द्वार पर राजमा के समान दाँतों वाले, श्लोकशत्रु, वेदज्ञ कमर पर हाथ रखे खड़े हैं।

एक श्लोक है -
#शुक्लदन्ताः_जिताक्षश्च_मुंडाः_काषायवाससः।
#शुद्धाधर्म_वदिष्यन्ति_शाठ्यबुद्धयोपजीविनः॥
सफेद दाँत वाले' शठबुद्धि से जीविका चलाने वाले निन्दा के पात्र हैं, वे शुद्धअधर्म की बात करते हैं |
आभास कुमार गांगुली जिन्हें गायक किशोर कुमार के नाम से जाना जाता है, पान की प्रशंसा में एक कविता रची थी
#पान सो पदारथ, सब जहान को सुधारत
गायन को बढ़ावत जामे चूना चौकसाई है
सुपारिन के साथ साथ,मसाला मिले भांत भांत
जामे कत्थे की रत्ती भर थोड़ी सी ललाई है
बैठें है सभा मांहि बात करे भांत भांत
थूकन जात बार बार जाने का बड़ाई है
कहें कवि 'किशोरदास' चतुरन की चतुराई साथ
पान में तमाखू किसी मूरख ने चलाई है.
( मूरख न बनिये )

                     🙇 #जयश्रीसीताराम 🙇

दुर्गा सप्तशती हवन किस श्लोक पर किस ओषधि का हवन करना है केवल ब्राह्मणों के उपयोगार्थ लिंक ओपन करे

नवरात्रि हवन सामग्री श्लोक संख्या सहित कई कौन से श्लोक पर किस ओषधि का हवन करना है केवल ब्राह्मणों के उपयोगार्थ लिंक ओपन करे
श्लोक सँख्या   ///******///
1   पत्र पुष्प, फल,
2 अर्क
3 अर्क
5 अपामार्ग
6 कुशा
7 खैर
10 त्रण कुशा दूर्वा
20 पत्र पुष्प फल
26 पत्र पुष्प फल
29 पत्र पुष्प फल
35 पत्र पुष्प फल
39 पत्र पुष्प फल
46पत्र पुष्प फल
51 यव तंडुल
55 इलायची
56 शकर
59 पत्र पुष्प फल
63 पत्र पुष्प फल
66 मिश्री पुष्प
67 पीपल पत्ता कमल गट्टा
68 उडद राल समुद्र फेन
69कमल गट्टा
70 कमल गट्टा
71पत्र पुष्प फल
72 हल्दी
73पुष्प
74दूर्वा दर्भा
75 मिश्री
77 राई
78 राई
79 लाजा  पुष्प मिश्री शहदेवी
80 हवन नही
83 राई
84जाय फल  भांग
87 भांग
88पत्र पुष्प फल
89 कमल गट्टा
92 रक्त गुंजा
94 राई
96 पत्र पुष्प फल
100 कपूर
101 कमलगट्टा दर्भा
102 पत्र पुष्प फल
103 कुशा शंख  पुष्पी गूगल पान  मधु केला
104 पुष्प
महाहुति "","पान कैथ मधु कमल गट्टा गूगल गंधक्षत पुष्प लोंग इलायची सुपाड़ी
=================================

               दूसरा अध्याय

श्लोक सँख्या ///******///
1 पत्र पुष्प, फल,
2 अर्क
3 अर्क
5 अपामार्ग
6 कुशा
7 खैर
10 त्रण कुशा दूर्वा
20 पत्र पुष्प फल
26 पत्र पुष्प फल
29 पत्र पुष्प फल
35 पत्र पुष्प फल
39 पत्र पुष्प फल
46पत्र पुष्प फल
51 यव तंडुल
55 इलायची
56 शकर
59 पत्र पुष्प फल
63 पत्र पुष्प फल
66 मिश्री पुष्प
67 पीपल पत्ता कमल गट्टा
68 उडद राल समुद्र फेन
69कमल गट्टा
70 कमल गट्टा
71पत्र पुष्प फल
72 हल्दी
73पुष्प
74दूर्वा दर्भा
75 मिश्री
77 राई
78 राई
79 लाजा पुष्प मिश्री शहदेवी
80 हवन नही
83 राई
84जाय फल भांग
87 भांग
88पत्र पुष्प फल
89 कमल गट्टा
92 रक्त गुंजा
94 राई
96 पत्र पुष्प फल
100 कपूर
101 कमलगट्टा दर्भा
102 पत्र पुष्प फल
103 कुशा शंख पुष्पी गूगल पान मधु केला
104 पुष्प
महाहुति "","पान कैथ मधु कमल गट्टा गूगल गंधक्षत पुष्प लोंग इलायची सुपाड़ी
=================================

               दूसरा अध्याय



""""""""","''''''':::::::::::""""""""""''''''''**********
1 पत्र पुष्प फल
2 भैंसा गूगल
10 नीम गिलोय जाय फल
12 कपूर
14 जाटा मासी  विष्णु कांता
15आम्र फल
17 कपूर
18 रक्त चंदन
20 लोंग
21 शंख पुष्पी
22 लोंग
25 पुष्प
28 कपूर पुष्प
29 पुष्प कमल गट्टा
30 मधु
57 हरताल
60 सरसो
63 कटहल
67 दर्भा कपूर राई
69 पुष्प गूगल विल्वफल

महाहुति """"","",पान शाकल्य  कमल गट्टा  गूगल नारियल फल खंड  पुष्प  लोंग  इलायची सुपाड़ी

:::      ::::  ::::::::::;;;         ::::::::: :;: ;;;;;;;;;    ;;
     तीसरा अध्याय
1पत्र पुष्प फल
9 दर्पण कपूर
10 लोंग कागजी नीबू
12 मैनसिल
17 मैनसिल शिलाजीत
19 लोंग
20 सरसों
25 खिरनी
27 सिंघाड़ा
29 हरताल
34 पान गुड़ दूध शहद
36 वच राजान
37 पत्र पुष्प फल
38  मधुआसव पत्र पुष्प फल
39 पत्र पुष्प फल
40 सरसो गोखुरु
42 कालीमिर्च उडद लोकी
44 पत्र पुष्प गुलाल पान सुपारी
  महा आहुति """""""पान विजोरानीबू चंदन दधि नीम गिलोय  माष (उडद दही मिलाकर ) भैसा गूगल  कमल गट्टा  लोंग इलायची सुपारी पत्र पुष्प फल

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
चौथा अध्याय :::::::
3 कदली फल
5 विष्णु कांता विल्वफल
7 विल्व फल
8 हलुआ पकवान  श्वेत चंदन
11 ब्राह्मी कपूर
12 विजोरा
14 लाल कनेर पुष्प
23 कमल गट्टा  लाल कनेर सीताफल
24 से  हवन नही होगा
27 तक हवन नही होगा
28 पत्र पुष्प फल
29 पुष्प लाल चंदन हरिद्रा सुगंधित द्रव्य
30 अष्टांग धूप गूगल
31 पत्र पुष्प फल
33 पत्र पुष्प फल
34 राई  गूगल
35 गूगल जाय फल
36 पंचमेवा खीर गुलकंद  मिश्री पुष्प फल
37 पत्र पुष्प फल 
39 पुष्प
41 भोजपत्र  रक्तनीर 
42 पुष्प आंवला  मधु  धूप
महआहुति :::::     पान शाकल्य खीर कमल गट्टा विल्वफल लोंग इलायची गूगल पुष्प सुपारी

::::: :::::::::: :::::: ::::::; :::::::: :::::::: ::::: ::::;: ::::: :::::
1 पत्र पुष्प फल
6 पत्र पुष्प फल
8 पत्रपुष्प फल
9 पत्र पुष्प फल  गूगल भोज पत्र 
10 हल्दी  आंवला
11 पुष्प
12 दूर्वा
13 दारू हल्दी
14 से 16तक  विष्णु कांता
17 से  19 तक आंवला
20 से 22 तक ब्राह्मी
23 से 25  तक हल्दी ब नीम गिलोय
29 से 31 तक सतावरी
32 से 34 तक सोंठ  जाय फल
44 से 46 तक   लाजा पुष्प
47 से 49 तक पुष्प
50 से 52 तक पुष्प
53 से 55 तक  अबीर
56 से 58 तक  मिश्री विल्वफल कमल गट्टा
59 से 61 तक शहद  पुष्प
62 से 64 तक  ब्राह्मी विजया
65 से 67 तक सहदेवी
68 से 70 तक पकवान
71 से 73 तक  केसर लाल कनेर
81 मिश्री इलायची
82 गूगल
83 पत्र पुष्प फल
84 जावित्री
85 दाल चीनी
86 भोज पत्र 
87 भोजपत्र दालचीनी
88 दारू हल्दी  पुष्प
89 आम्र फल
92 कपूर
94 पुष्प विल्व पत्र
95 गुंजा
96 पुष्प कमलगट्टा
97 भोजपत्र
99 भोजपत्र
101 पत्र पुष्प
104 मैनसिल
105 पत्र पुष्प फल
114 लाजा
115 पत्र पुष्प फल
116 वच पान भोजपत्र शमीपत्र दूर्वा
117  शमी पत्र दूर्वा फल पुष्प कनेर पुष्प
120 लाजा लोंग काजल
121 लाजा खाजा शमीपत्र  हिंगुल
122 पत्र पुष्प फल
126 जटामांसी
127 पान पुष्प फल शमीपत्र
129 ताम्बूल सुपारी गन्ना
महआहुति:::   पान शाकल्य लोंग इलायची सुपारी गूगल कमल गट्टा श्वेत चंदन पुष्प फल विजोरा

:::::/,,,,,,::    ::::::::::::::::::::;;;;;;;;;;;;;;;;;;;!!!!!!!!!!::;;;;;;;;;




छठवा अध्याय :::::::
1पत्र पुष्प फल
4 राई  जटामांसी गूगल
7 मसूर
10 पत्र पुष्प फल
12 पत्र पुष्प फल
13 राल विजोरा गूगल
14 उडद मसूर
17 केसर
18 केसर राई
19 केसर राई
23 राई जटामांसी
24 लोंग कनेर गन्ना
महआहुति ******पान शाकल्य गूगल कमलगट्टा  भोजपत्र कुष्मांड नारंगीफल  नारिकेल फल खंड /
**///***///////****//////*****/////*****/////***
सातवा अध्याय **///*****////***/////
1पत्र पुष्प फल
5 काली हल्दी कस्तूरी काजल
6 काली मिर्च
8 पान रक्त चंदन कुमकुम केसर
12 सरसो
14 हल्दी काली मिर्च
15 गूगल बज्र दंती
19 कपूर बज्र दंती
20 जटा मासी दर्भा सरसो कदली फल
23 विजोरा नीबू
24 गन्ना
25 पत्र पुष्प फल
26 पान पुष्प फल आम्रफल  चिरोंजी
महआहुति ****/////पान शाकल्य लोंग इलायची चिरोंजी लाजवंती पुष्प कमल गट्टा जाय फल कुष्मांड फलखंड कपूर
******///////*****/////******///////****//////आठवाँ अध्याय
1 पत्र पुष्प फल
5 राई
6 राई
8दूर्वा रक्त नीर गूगल
9 दूर्वा रक्त नीर गूगल
10 दूर्वा गूगल काली हल्दी
13 पत्र पुष्प फल
14 गुंजा
15 ब्राह्मी
16 जटामासी
17 मोर पंख
18 विष्णु कांता
19 बज्रदन्ति पत्र
20 गोखरू
21 पुष्प लोंग
28 जटामासी  विजया
29  आमी हल्दी
39 सरसों
43 रक्त गूंजा 
44 रक्त गुंजा
49 लालचन्दन
54 रक्त चंदन रक्त गुंजा
55 रक्त चंदन
57 से 61 तक रक्त चंदन
62 विजोरा नीबू
63 पुष्प
महआहुति****//////पान शाकल्य कमलगट्टा लोंग इलायची  सुपारी गूगल कुष्मांड फलखण्ड लाल चंदन मधु

*/******///////******///////******/////******//

नबम अध्याय ****///////
1पत्र पुष्प फल
2 विजोरा नीबू
4 पत्र पुष्प फल
17 कवीठ/कैथ
20 केसर
31 दूर्वा रक्त नीर
34 लोंग
35 विजोरा नीबू
36 गूगल कण इन्द्र जो
38 मोरपंखी
41 उडद कुष्मांड फलखण्ड गन्ना पान सुपारी बेलगिरी
महआहुति ****////पान शाकल्य लोंग इलायची सुपारी विजोरा कूष्मांडखण्ड इक्षुरखण्ड /गन्ना विल्वफल  मैनफल

*******///////*******////////******/////*****//

/दसवाँ अध्याय **///
1 पत्र पुष्प फल
2 केसर कस्तूरी
4 पान पुष्प फल दूर्वा शमीपत्र
5 रक्त चंदन
6 पान पुष्प फल
7 पुष्प
8 पान पुष्प फल दूर्वा शमीपत्र
9 पुष्प
10 पान पुष्प फल
27 पक्का केला
28 भोजपत्र
31 पुष्प
32 कपूर गूगल कमल गट्टा बटपत्र इन्द्र जो
महआहुति *****/////
पान शाकल्य लोंग इलायची सुपाड़ी  कस्तूरी कमलगट्टा गूगल विल्वफल  कूष्मांडखण्ड फल पुष्प मैनसिल मातुलिंग

******////////******////////******///////*******

ग्यारवा अध्याय ****/////

1 /1से 3 तक पुष्प पत्र फल
3 दूर्वा
5 विष्णु कांता विजोरा नीबू
6 भोजपत्र  मालकांगनी
10 इलायची गूगल जायफल दूर्वा पुष्प फल केसर मिश्री
12 दूर्वा पुष्प गुगल कमलगट्टा
13 कुशा ब्राह्मी
14 कपूर
15 मोरपंखी
16 शंख पुष्पी
17 बज्र दंती
18 गोखरू
19 पुष्प
20 जायफल जटामांसी
21 नीम गिलोय
22 लोंग इलायची गूगल मिश्री
23पान पुष्प
24 लालकनेर दूर्वा फल पुष्प पत्र बहेड़ा
25 बहेड़ा
26 नीम आंवला राई
28 रक्तचन्दन उडद मसूर दही
29 सरसो कालीमिर्च जायफल नीम गिलोय आंवला राई
31भोजपत्र मालकांगनी 
32 हल्दी दर्भा दुर्बा
33 पुष्प मिश्री
35 फल पुष्प
36 दुर्बा पत्र पुष्प फल शमी पत्र
37 लाजा शमीपत्र फल पुष्प फल
38 पान पुष्प फल
39 सरसों कालीमिर्च दालचीनी जायफल
40 दूर्वा पान शमीपत्र
41 सरसों
42 मक्खन
43 जायफल
44 दाड़िम/गुड़हल के पुष्प
45 आनार मजीठ
46 पुष्प पान फल नारंगी
47 इलायची कमल गट्टा
49 पालक पत्र पुष्प फल
50 दूर्वा लाल कनेर पान फल
52 रक्त गुंजा पान पुष्प फल
53 लालकनेर
54 पुष्प फल पान
55 काली मिर्च सरसो गुगल
महआहुति****///// पान लोंग इलायची कपूर  शकर पत्र पुष्प फल कमल गट्टा सुपारी  मिश्री खीर गूगल गन्ना गुड़हल पुष्प फल
******///////*******///////*******//////*****

बारहवा अध्याय ****/////
1 पान शमीपत्र पुष्प फल
2 गूगल दूर्वा आमी हल्दी  नागकेसर
3 दर्भा
4 भोजपत्र
5 गूगल मिश्री
6 हल्दी दूर्वा
8 मिश्री गूगल
9 पान पुष्प मिश्री इलायची मधु
10 गन्ना कुष्मांड खंड फल नारियल खण्ड फल पेड़ा
11 केला गन्ना कुष्मांड खंड फल
12 पान पुष्प फल मिश्री
13 पान पुष्प मिश्री हल्दी खीर फल इलायची
14 दूर्वा
15 दर्भा
17 अर्क पलास शमीपत्र खैर भोजपत्र
18 राई गुगल फूल प्रियंगु  आशापुरी धूप
20 पान पुष्प फल
21 पान पुष्प फल धूप केसर  मिश्री कपूर विजोरा नीबू  पकवान
22 खीर पकवान
23पान पुष्प फल जायफल
25 दर्भा पुष्प भोजपत्र
29 हरताल गूगल पुष्प
30 सरसों गूगल लोंग
31 पान पुष्प फल
32 वच पान पुष्प
33 सर्वोषधि
36 पान पुष्प फल
39 अनार के छिलके
41 गंध पुष्प पान फल मिश्री जाय फल  चन्दन धूप
महआहुति ****/////
अगर केसर कस्तूरी कमल गट्टा पत्र पुष्प फल जाय फल विल्वफल  मिश्री

******/////******/////////*******////////*******

तेरहँवा अध्याय

1 पत्र पुष्प फल
3 विष्णु कांता
5 पान पत्र  पुष्प फल
6 पान पत्र पुष्प फल
9 पुष्प  भोजपत्र
10 पान पुष्प गन्ध धूप फल
11 गन्ना
12 पान पुष्प फल  खोपरा बूरा गुड़
13 पान पुष्प फल दूर्वा शमीपत्र
14 पान पुष्प फल नारियल खंड फल
15 पान पुष्प फल
16 भैंसा गुगल काली मिर्च अशोक पुष्प या पत्र
18 पान पुष्प फल दूर्वा कनेर पुष्प शमीपत्र
19 कमलपुष्प अशोक पुष्प या पत्र
20 सरसो गुगल
22 अर्क कपूर
23 पुष्प फल
24 भोजपत्र
25 पुष्प फल पान
26 पुष्प फल पान
28 पुष्प फल पान
29 अर्क कपूर गंध फल पान सुपारी
महआहुति******//////पान शाकल्य लोंग इलायची सुपारी  विल्वफल गुगल कमल गट्टा फल शमीपत्र श्वेतकेसर कपूर पुष्प अर्क पुष्प  नारियल खंड फल
महआहुति///****

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Monday, 29 September 2025

शारदीय नवरात्रि

शारदीय नवरात्रि विशेष दस महाविद्या दीक्षा 

साधनाओं की बात आते ही दस महाविद्या का नाम सबसे ऊपर आता है। प्रत्येक महाविद्या का अपने आप में अलग ही महत्त्व है। लाखों में कोई एक ही ऐसा होता है जिसे सदगुरू से महाविद्या दीक्षा प्राप्त हो पाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद सिद्धियों के द्वार एक के बाद एक कर साधक के लिए खुलते चले जाते है।

दस महा विद्या:👉  1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।

महाकाली महाविद्या दीक्षा
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नाम : माता कालिका
शस्त्र : त्रिशूल और तलवार
वार : शुक्रवार
दिन : अमावस्या
ग्रंथ : कालिका पुराण
मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा

दुर्गा का एक रूप : माता कालिका 10 महाविद्याओं में से एक

मां काली के 4 रूप हैं:- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली।

राक्षस वध : रक्तबीज।

कालीका के प्रमुख तीन स्थान है
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 कोलकाता में कालीघाट पर जो एक शक्तिपीठ भी है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भैरवगढ़ में गढ़कालिका मंदिर इसे भी शक्तिपीठ में शामिल किया गया है और गुजरात में पावागढ़ की पहाड़ी पर स्थित महाकाली का जाग्रत मंदिर चमत्कारिक रूप से मनोकामना पूर्ण करने वाला है।

यह तीव्र प्रतिस्पर्धा का युग है। आप चाहे या न चाहे विघटनकारी तत्व आपके जीवन की शांति, सौहार्द भंग करते ही रहते हैं। एक दृष्ट प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की अपेक्षा एक सरल और शांत प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के लिए अपमान, तिरस्कार के द्वार खुले ही रहते हैं। आज ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है, जिसका कोई शत्रु न हो … और शत्रु का तात्पर्य मानव जीवन की शत्रुता से ही नहीं, वरन रोग, शोक, व्याधि, पीडा भी मनुष्य के शत्रु ही कहे जाते हैं, जिनसे व्यक्ति हर क्षण त्रस्त रहता है … और उनसे छुटकारा पाने के लिए टोने टोटके आदि के चक्कर में फंसकर अपने समय और धन दोनों का ही व्यय करता है, परन्तु फिर भी शत्रुओं से छुटकारा नहीं मिल पाता।

महाकाली दीक्षा के माध्यम से व्यक्ति शत्रुओं को निस्तेज एवं परास्त करने में सक्षम हो जाता है, चाहे वह शत्रु आभ्यांतरिक हों या बाहरी, इस दीक्षा के द्वारा उन पर विजय प्राप्त कर लेता है, क्योंकि महाकाली ही मात्र वे शक्ति स्वरूपा हैं, जो शत्रुओं का संहार कर अपने भक्तों को रक्षा कवच प्रदान करती हैं। जीवन में शत्रु बाधा एवं कलह से पूर्ण मुक्ति तथा निर्भीक होकर विजय प्राप्त करने के लिए यह दीक्षा अद्वितीय है। देवी काली के दर्शन भी इस दीक्षा के बाद ही सम्भव होते है, गुरु द्वारा यह दीक्षा प्राप्त होने के बाद ही कालिदास में ज्ञान का स्रोत फूटा था, जिससे उन्होंने ‘मेघदूत’ , ‘ऋतुसंहार’ जैसे अतुलनीय काव्यों की रचना की, इस दीक्षा से व्यक्ति की शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है।

काली माता का मंत्र:  हकीक की माला से नौ माला 'क्रीं ह्रीं ह्नुं दक्षिणे कालिके स्वाहा:।' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

तारा दीक्षा
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भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं👉 तारा , एकजटा और नील सरस्वती

तारा के सिद्ध साधक के बारे में प्रचिलित है, वह जब प्रातः काल उठाता है, तो उसे सिरहाने नित्य दो तोला स्वर्ण प्राप्त होता है। भगवती तारा नित्य अपने साधक को स्वार्णाभूषणों का उपहार देती हैं। तारा महाविद्या दस महाविद्याओं में एक श्रेष्ठ महाविद्या हैं। तारा दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक को जहां आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनने लगते हैं, वहीं उसके अन्दर ज्ञान के बीज का भी प्रस्फुटन होने लगता है, जिसके फलस्वरूप उसके सामने भूत भविष्य के अनेकों रहस्य यदा-कदा प्रकट होने लगते हैं। तारा दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक का सिद्धाश्रम प्राप्ति का लक्ष्य भी प्रशस्त होता हैं।

तारा माता का मंत्र👉  नीले कांच की माला से बारह माला प्रतिदिन 'ऊँ ह्रीं स्त्रीं हुम फट' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

षोडशी त्रिपुर सुन्दरी दीक्षा
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महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां हैं, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

त्रिपुर सुन्दरी दीक्षा प्राप्त होने से आद्याशक्ति त्रिपुरा शक्ति शरीर की तीन प्रमुख नाडियां इडा, सुषुम्ना और पिंगला जो मन बुद्धि और चित्त को नियंत्रित करती हैं, वह शक्ति जाग्रत होती है। भू भुवः स्वः यह तीनों इसी महाशक्ति से अद्भुत हुए हैं, इसीसलिए इसे त्रिपुर सुन्दरी कहा जाता है। इस दीक्षा के माध्यम से जीवन में चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही साथ आध्यात्मिक जीवन में भी सम्पूर्णता प्राप्त होती है, कोई भी साधना हो, चाहे अप्सरा साधना हो, देवी साधना हो, शैव साधना हो, वैष्णव साधना हो, यदि उसमें सफलता नहीं मिल रहीं हो, तो उसको पूर्णता के साथ सिद्ध कराने में यह महाविद्या समर्थ है, यदि इस दीक्षा को पहले प्राप्त कर लिया जाए तो साधना में शीघ्र सफलता मिलती है। गृहस्थ सुख, अनुकूल विवाह एवं पौरूष प्राप्ति हेतु इस दीक्षा का विशेष महत्त्व है। मनोवांछित कार्य सिद्धि के लिए भी यह दीक्षा उपयुक्त है। इस दीक्षा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है।

त्रिपुर सुंदरी माता का मंत्र:👉 रूद्राक्ष माला से दस माला 'ऐ ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

भुवनेश्वरी दीक्षा
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भुवनेश्वरी को आदिशक्ति और मूल प्रकृति भी कहा गया है। भुवनेश्वरी ही शताक्षी और शाकम्भरी नाम से प्रसिद्ध हुई। पुत्र प्राप्ती के लिए लोग इनकी आराधना करते हैं।

भूवन अर्थात इस संसार की स्वामिनी भुवनेश्वरी, जो ‘ह्रीं’ बीज मंत्र धारिणी हैं, वे भुवनेश्वरी ब्रह्मा की भी आधिष्ठात्री देवी हैं। महाविद्याओं में प्रमुख भुवनेश्वरी ज्ञान और शक्ति दोनों की समन्वित देवी मानी जाती हैं। जो भुवनेश्वरी सिद्धि प्राप्त करता है, उस साधक का आज्ञा चक्र जाग्रत होकर ज्ञान-शक्ति, चेतना-शक्ति, स्मरण-शक्ति अत्यन्त विकसित हो जाती है। भुवनेश्वरी को जगतधात्री अर्थात जगत-सुख प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। दरिद्रता नाश, कुबेर सिद्धि, रतिप्रीती प्राप्ति के लिए भुवनेश्वरी साधना उत्तम मानी है है। इस महाविद्या की आराधना एवं दीक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की वाणी में सरस्वती का वास होता है। इस महाविद्या की दीक्षा प्राप्त कर भुवनेश्वरी साधना संपन्न करने से साधक को चतुर्वर्ग लाभ प्राप्त होता ही है। यह दीक्षा प्राप्त कर यदि भुवनेश्वरी साधना संपन्न करें तो निश्चित ही पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है।

भुवनेश्वरी माता का मंत्र:👉 स्फटिक की माला से ग्यारह माला प्रतिदिन 'ह्रीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

छिन्नमस्ता महाविद्या दीक्षा
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माता का स्वरूप अतयंत गोपनीय है। चतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती की सिद्ध प्राप्त हो जाती है। कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं। पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है। इससे प्राप्त सिद्धियां मिलने से लेखन बुद्धि ज्ञान बढ़ जाता है। शरीर रोग मुक्त होताते हैं। सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शत्रु परास्त होते हैं। यदि साधक योग, ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक पारंगत होकर विख्यात हो जाता है।

भगवती छिन्नमस्ता के कटे सर को देखकर यद्यपि मन में भय का संचार अवश्य होता है, परन्तु यह अत्यन्त उच्चकोटि की महाविद्या दीक्षा है। यदि शत्रु हावी हो, बने हुए कार्य बिगड़ जाते हों, या किसी प्रकार का आपके ऊपर कोई तंत्र प्रयोग हो, तो यह दीक्षा अत्यन्त प्रभावी है। इस दीक्षा द्वारा कारोबार में सुदृढ़ता प्राप्त होती है, आर्थिक अभाव समाप्त हो जाते हैं, साथ ही व्यक्ति के शरीर का कायाकल्प भी होना प्रारम्भ हो जाता है। इस साधना द्वारा उच्चकोटि की साधनाओं का मार्ग प्रशस्त हो जाता है, तथा उसे मौसम अथवा सर्दी का भी विशेष प्रभाव नहीं पङता है।

छीन्नमस्ता माता का मंत्र👉  रूद्राक्ष माला से दस माला प्रतिदिन 'श्रीं ह्रीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

त्रिपुर भैरवी दीक्षा
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भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि। त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं। यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है। जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है। आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है।

भूत-प्रेत एवं इतर योनियों द्वारा बाधा आने पर जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। ग्रामीण अंचलों में तथा पिछडे क्षेत्रों के साथ ही सभ्य समाज में भी इस प्रकार के कई हादसे सामने आते है, जब की पूरा का पूरा घर ही इन बाधाओं के कारण बर्बादी के कगार पर आकर खडा हो गया हो। त्रिपुर भैरवी दीक्षा से जहां प्रेत बाधा से मुक्ति प्राप्त होती है, वही शारीरिक दुर्बलता भी समाप्त होती है, व्यक्ति का स्वास्थ्य निखारने लगता है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक में आत्म शक्ति त्वरित रूप से जाग्रत होने लगती है, और बड़ी से बड़ी परिस्थियोंतियों में भी साधक आसानी से विजय प्राप्त कर लेता है, असाध्य और दुष्कर से दुष्कर कार्यों को भी पूर्ण कर लेता है। दीक्षा प्राप्त होने पर साधक किसी भी स्थान पर निश्चिंत, निर्भय आ जा सकता है, ये इतर योनियां स्वयं ही ऐसे साधकों से भय रखती है।

त्रिपुर भैरवी का मंत्र👉  मुंगे की माला से पंद्रह माला 'ह्रीं  भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

धूमावती दीक्षा
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धूमावती का कोई स्वामी नहीं है। इसलिए यह विधवा माता मानी गई है। इनकी साधना से जीवन में निडरता और निश्चंतता आती है। इनकी साधना या प्रार्थना से आत्मबल का विकास होता है। मां धूमावती महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका हैं। ऋग्वेद में रात्रिसूक्त में इन्हें 'सुतरा' कहा गया है। अर्थात ये सुखपूर्वक तारने योग्य हैं। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली मां कहा गया है। इस महाविद्या की सिद्धि के लिए तिल मिश्रित घी से होम किया जाता है। धूमावती महाविद्या के लिए यह भी जरूरी है कि व्यक्ति सात्विक और नियम संयम और सत्यनिष्ठा को पालन करने वाला लोभ-लालच से दूर रहें। शराब और मांस को छूए तक नहीं।

धूमावती दीक्षा प्राप्त होने से साधक का शरीर मजबूत व् सुदृढ़ हो जाता है। आए दिन और नित्य प्रति ही यदि कोई रोग लगा रहता हो, या शारीरिक अस्वस्थता निरंतर बनी ही रहती हो, तो वह भी दूर होने लग जाती है। उसकी आखों में प्रबल तेज व्याप्त हो जाता है, जिससे शत्रु अपने आप में ही भयभीत रहते हैं। इस दीक्षा के प्रभाव से यदि कीसी प्रकार की तंत्र बाधा या प्रेत बाधा आदि हो, तो वह भी क्षीण हो जाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद मन में अदभुद साहस का संचार हो जाता है, और फिर किसी भी स्थिति में व्यक्ति भयभीत नहीं होता है। तंत्र की कई उच्चाटन क्रियाओं का रहस्य इस दीक्षा के बाद ही साधक के समक्ष खुलता है।

धूमावती का मंत्र:👉 मोती की माला से नौ माला 'ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।  

बगलामुखी दीक्षा
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माता बगलामुखी की साधना युद्ध में विजय होने और शत्रुओं के नाश के लिए की जाती है। बगला मुखी के देश में तीन ही स्थान है। कृष्ण और अर्जुन ने महाभातर के युद्ध के पूर्व माता बगलामुखी की पूजा अर्चना की थी। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है।

यह दीक्षा अत्यन्त तेजस्वी, प्रभावकारी है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक निडर एवं निर्भीक हो जाता है। प्रबल से प्रबल शत्रु को निस्तेज करने एवं सर्व कष्ट बाधा निवारण के लिए इससे अधिक उपयुक्त कोई दीक्षा नहीं है। इसके प्रभाव से रूका धन पुनः प्राप्त हो जाता है। भगवती वल्गा अपने साधकों को एक सुरक्षा चक्र प्रदान करती हैं, जो साधक को आजीवन हर खतरे से बचाता रहता है।

बगलामुखी का मंत्र:👉 हल्दी या पीले कांच की माला से आठ माला 'ऊँ ह्लीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ओम नम:' दूसरा मंत्र- 'ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

मातंगी दीक्षा
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मतंग शिव का नाम है। शिव की यह शक्ति असुरों को मोहित करने वाली और साधकों को अभिष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए लोग इनकी पूजा करते हैं। अक्षय तृतीया अर्थात वैशाख शुक्ल की तृतीया को इनकी जयंती आती है।

यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं।

पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।

आज के इस मशीनी युग में जीवन यंत्रवत, ठूंठ और नीरस बनकर रह गया है। जीवन में सरसता, आनंद, भोग-विलास, प्रेम, सुयोग्य पति-पत्नी प्राप्ति के लिए मातंगी दीक्षा अत्यन्त उपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा साधक में वाक् सिद्धि के गुण भी जाते हैं। उसमे आशीर्वाद व् श्राप देने की शक्ति आ जाती है। उसकी वाणी में माधुर्य और सम्मोहन व्याप्त हो जाता है और जब वह बोलता है, तो सुनने वाले उसकी बातों से मुग्ध हो जाते है। इससे शारीरिक सौन्दर्य एवं कान्ति में वृद्धि होती है, रूप यौवन में निखार आता है। इस दीक्षा के माध्यम से ह्रदय में जिस आनन्द रस का संचार होता है, उसके फलतः हजार कठिनाई और तनाव रहते हुए भी व्यक्ति प्रसन्न एवं आनन्द से ओत-प्रोत बना रहता है।

मातंगी माता का मंत्र:👉 स्फटिक की माला से बारह माला 'ऊँ ह्रीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

कमला दीक्षा
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दरिद्रता, संकट, गृहकलह और अशांति को दूर करती है कमलारानी। इनकी सेवा और भक्ति से व्यक्ति सुख और समृद्धि पूर्ण रहकर शांतिमय जीवन बिताता है।

श्वेत वर्ण के चार हाथी सूंड में सुवर्ण कलश लेकर सुवर्ण के समान कांति लिए हुए मां को स्नान करा रहे हैं। कमल पर आसीन कमल पुष्प धारण किए हुए मां सुशोभित होती हैं। समृद्धि, धन, नारी, पुत्रादि के लिए इनकी साधना की जाती है। 

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार प्रकार के पुरुषार्थों को प्राप्त करना ही सांसारिक प्राप्ति का ध्येय होता है और इसमे से भी लोग अर्थ को अत्यधिक महत्त्व प्रदान करते हैं। इसका कारण यह है की भगवती कमला अर्थ की आधिष्ठात्री देवी है। उनकी आकर्षण शक्ति में जो मात्रु शक्ति का गुण विद्यमान है, उस सहज स्वाभाविक प्रेम के पाश से वे अपने पुत्रों को बांध ही लेती हैं। जो भौतिक सुख के इच्छुक होते हैं, उनके लिए कमला सर्वश्रेष्ठ साधना है। यह दीक्षा सर्व शक्ति प्रदायक है, क्योंकि कीर्ति, मति, द्युति, पुष्टि, बल, मेधा, श्रद्धा, आरोग्य, विजय आदि दैवीय शक्तियां कमला महाविद्या के अभिन्न देवियाँ हैं।

कमला माता का मंत्र:👉 कमलगट्टे की माला से रोजाना दस माला 'हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:।' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।

प्रत्येक महाविद्या दीक्षा अपने आप में ही अद्वितीय है, साधक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर या गुरुदेव से निर्देश प्राप्त कर इनमें से कोई भी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक दीक्षा के महत्त्व का एक प्रतिशत भी वर्णन स्थानाभाव के कारण यहां नहीं हुआ है, वस्तुतः मात्र एक महाविद्या साधना सफल हो जाने पर ही साधक के लिए सिद्धियों का मार्ग खुल जाता है, और एक-एक करके सभी साधनों में सफल होता हुआ वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है।

यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है, कि दीक्षा कोई जादू नहीं है, कोई मदारी का खेल नहीं है, कि बटन दबाया और उधर कठपुतली का नाच शुरू हो गया।

दीक्षा तो एक संस्कार है, जिसके माध्यम से कुस्नास्कारों का क्षय होता है, अज्ञान, पाप और दारिद्र्य का नाश होता है, ज्ञान शक्ति व् सिद्धि प्राप्त होती है और मन में उमंग व् प्रसन्नता आ पाती है। दीक्षा के द्वारा साधक की पशुवृत्तियों का शमन होता है … और जब उसके चित्त में शुद्धता आ जाती है, उसके बाद ही इन दीक्षाओं के गुण प्रकट होने लगते हैं और साधक अपने अन्दर सिद्धियों का दर्शन कर आश्चर्य चकित रह जाता है।

जब कोई श्रद्धा भाव से दीक्षा प्राप्त करता है, तो गुरु को भी प्रसनता होती है, कि मैंने बीज को उपजाऊ भूमि में ही रोपा है। वास्तव में ही वे सौभाग्यशाली कहे जाते है, जिन्हें जीवन में योग्य गुरु द्वारा ऐसी दुर्लभ महाविद्या दीक्षाएं प्राप्त होती हैं, ऐसे साधकों से तो देवता भी इर्ष्या करते हैं।


Sunday, 28 September 2025

दुर्गा हवन

#चण्डी #हवन की विशेषता.........
साधारण हवन और चण्डी पाठ की पूर्ति के बाद के हवन में बहुत अंतर होता है।इस अंतर को समझ कर जो हवन करता है वह उत्तम फल को प्राप्त करता है।
चण्डी पाठ में जिस अग्निदेव की स्थापना की जाती है उनका नाम है "" #शतमंगल "" अग्नि।इस अग्निदेव की विशेषता है कि ये सौ प्रकार से कल्याण करते हैं।आयु, आरोग्य,ऐश्वर्य के साथ शत्रुनाश,रोग नाश और भय नाश होता है। जैसे शताक्षी देवी देख कर सौ प्रकार से कल्याण करती हैं वैसे ही शतमंगल अग्निदेव देवी की आज्ञा से सौ प्रकार का कल्याण करते हैं।
साधारण हवन में हवन कुंड में अग्निबीज #रं लिखा जाता है।चण्डी हवन में #ह्रीं लिखा जाता है। देवी पूजन में ह्रीं का सर्वोच्च स्थान है।
#साधारण पूजन में तीन बार आचमन किया जाता है।देवीपूजन में चार बार आचमन किया जाता है।व्यवहार में ॐ केशवाय नमः ॐ नारायणाय नमः ॐ माधवाय नमः सामान्य पूजन का आचमनीय मन्त्र है जबकि देवी पूजा में ॐ ऐंआत्मतत्त्वं शोधयामि नमः ॐह्रींविद्यातत्त्वं शोधयामि नमःॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्व- तत्त्वं शोधयामि नमः से चार बार आचमन किया जाता है।
साधारण हवन में जो चार आहुतियाँ दी जाती हैं वे
ॐ भू: स्वाहा, ॐ भुवः स्वाहा,ॐ स्वः स्वाहा ॐप्रजापतये
स्वाहा होती हैं। #देवी हवन में जो चार आहुतियाँ दी जाती हैं वे निम्नवत् होती हैं--
ह्रीं महाकाल्यै स्वाहा,ह्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा,ह्रींमहासरस्वत्यै
स्वाहा,ह्रीं प्रजापतये स्वाहा ।।
ध्येय है देवी के पूजन में सभी #शाक्त ॐ की जगह #ह्रीं का प्रयोग करते हैं।इस परम्परा को खिलमार्कण्डेय में बहुत महत्त्व दिया गया है।देव प्रणव की जगह देवी प्रणव ह्रीं का सर्वत्र महत्त्व प्रतिपादित है।
#सप्तशती के तेरह अध्याय के हवन से व्यक्ति रोग,शत्रु से मुक्त होकर सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करता है।सम्पत्ति और ऐश्वर्य भरा रहता है।अतः #एकमेव सप्तशती का हवनात्मक पाठ ऐसा होता है जो विविध हवनीय द्रव्य से युक्त होता है।
मेरे पास परम्परा से अनेक हवनीय पदार्थों की सूची विद्यमान है पर मैं प्रमाणिक हवनीय द्रव्यों(सामग्री)की चर्चा करना चाहूँगा।
१- पायस आहुति से समृद्धि प्राप्ति।
२- सुगंधित पेय आहुति से देवी कृपा
३- मधु आहुति से रोग,शत्रु नाश
४- पीली सरसों से आहुति से शत्रु भय नाश
५- क्षीर,गोघृत,मधु मिश्रित आहुति से विपुल सम्पदा
६- कमल पुष्प आहुति से देवी कृपा
७- मालती और जाती पुष्प से विद्या प्राप्ति
८- पीली सरसों और गुग्गल से शत्रु नाश
९- काली मिर्च(गोल)से शत्रु उच्चाटन
१०-अनार (दाड़िम) आहुति से ऐश्वर्य, यश
११- शाक आहुति से भोज्यपदार्थ की वृद्धि
१२- अंगूर,इलायची,केसर से आहुति से सौंदर्य और सम्पदा लाभ
१३- भोजपत्र से हवन से विजय प्राप्ति
१४- कमलगट्टा से आहुति से लक्ष्मी प्राप्ति
१५-रक्तचंदन से हवन से रोग-शत्रु नाश
इसी तरह से किस मन्त्र में किस हवनीय पदार्थ से हवन करना चाहिए यह भी वर्णित है।
जिसे सम्पत्ति चाहिए वह पायस,बेल फल और कमल से अवश्य हवन करे।जिसे #शत्रु नाश अभीष्ट हो वह पीली सरसों, कालीमिर्च और बेर की लकड़ी से अवश्य हवन करें।व्यक्तिगत शत्रु और राष्ट्र शत्रुओं के नाश के लिए चण्डी पाठ हवन बेजोड़ है।ऐसे प्रयोगों में प्रक्रिया, मन्त्र, वस्तु और चित्त की शुद्धि अनिवार्य होती है।पाठ और हवन करने वाला व्यक्ति बहुत जल्दबाजी न दिखाये अन्यथा विपरीत प्रभाव भी होता है।केवल #कल्याण हेतु किया पाठ हवन कभी भी विपरीत फल नहीं देता।
पान के दो पत्ते , नारियल और नैवेद्य माता को हवन में अति प्रिय है।इन हवनीय पदार्थों को दुर्गार्चनसृति, नागेश भट्ट और सप्तशती सर्वस्व में से चयनित किया गया है।

                     

Saturday, 27 September 2025

दुर्गा अष्टमी

#दुर्गाष्टमी व्रत की विशेष #जानकारी ...........
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जिनको पुत्र संतानें हैं, वे दुर्गाष्टमी व्रत #उपवास नहीं करें। जिनकी पुत्र संतानें नहीं हैं,वे दुर्गाष्टमी व्रत उपवास करें।
उस आलेख पर सभी सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों?क्या इसका कोई #शास्त्रीय प्रमाण है? हमलोग परम्परा वश तो दुर्गाष्टमी उपवास व्रत करते आ रहे हैं। शास्त्र प्रमाण के आधार पर धार्मिक कृत्य करने चाहिए।
इसी प्रमाण को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
सबसे पहले यह जान लिजिए कि सप्तमी युक्त #अष्टमी व्रत नहीं करना चाहिए.............
शरन्महाष्टमी पूज्या नवमी संयुता सदा।
सप्तमी संयुता नित्यं शोकसंतापकारिणीम्।।
सप्तमी युक्त अष्टमी शोक संताप देने वाली होती है। इसे शल्य कहा जाता है : ---
सप्तमी कलया यत्र परतश्चाष्टमी भवेत्।
तेन शल्यमिदं प्रोक्तं पुत्र पौत्र क्षयप्रदम्।।
शल्य युक्त #अष्टमी कंटक अष्टमी है , जो पुत्र पौत्रादि का क्षय करता है। आगे और भी स्पष्ट है : -- 
#पुत्रान् हन्ति पशून हन्ति राष्ट्र हन्ति सराज्यकम्।
हन्ति जातानजातांश्च सप्तमी सहिताष्टमी।।
सप्तमी सहित अष्टमी व्रत पुत्रों को नाश करती है , पशुओं को नाश करती है, राष्ट्र / देश तथा राज्य का नाश करती है। और , उत्पन्न हुए और न उत्पन्न हुए का नाश करती है।
सप्तमी वेध संयुता यैः कृता तु महाष्टमी ।
पुत्रदार धनैर्हीना भ्रमयन्तीह पिशाचवत्।।
#सप्तमी वेध से युक्त महा - अष्टमी को करने से लोग इस संसार में पुत्र , स्त्री तथा धन से हीन होकर पिशाच के सदृश भ्रमण करते हैं तथा : ---
सप्तमीं शैल्यसंयुक्तां मोहादज्ञानतोऽपि वा ।
महाष्टमीं प्रकुर्वाणो नरकं प्रतिपद्यते।।
मोह - अज्ञान से शल्य युक्त / सप्ती से युक्त महाष्टमी को जो करता है , वह नरक में जाता है। इसलिए, स्पष्ट है कि सप्तमी युक्त #अष्टमी उपवास व्रत नहीं करना चाहिए। 

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(02)
लेकिन , #दुर्गाष्टमी उपवास किसे करना चाहिए और किसे नहीं करना चाहिए, यह जानना अत्यावश्यक है : ---
कालिका पुराण में स्पष्ट कहा गया है , जो निर्णय सिन्धु पृष्ठ संख्या 357 में उद्धृत है :---
अष्टम्युपवाश्च पुत्रवाता न कार्यः।
उपवासं महाष्टम्यां पुत्रवान्न समाचरेत्।
यथा तथा वा पूतात्मा व्रतीं देवीं प्रपूज्येत्।।
अर्थात अष्टमी तिथि में उपवास #पुत्रवाला न करे। जैसे - तैसे पवित्र आत्मा वाला व्रती देवी की पूजा करे। यानि स्पष्ट है कि जिनके पुत्र संतान हैं वे लोग दुर्गाष्टमी को उपवास व्रत नहीं करें।
लेकिन, वैसे लोग जिनके #पुत्र संतान नहीं हैं , वे सभी भक्त गण पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से दुर्गाष्टमी का उपवास व्रत करें। महाभागवत ( देवीपुराण ) अध्याय 46 श्लोक संख्या 30 एवं 31 में स्पष्टतः देवी का आदेश है :--- 
महाष्टम्यां मम प्रीत्यै उपवासः सुरोत्तमाः। 
कर्तव्यः पुत्रकामैस्तु लोकैस्त्रैलोक्यवासिभिः।।
स्वयं माँ #भगवती कहती हैं कि मेरी संतुष्टि के लिए तीनों लोकों में रहने वाले लोगों को महाष्टमी के दिन पुत्र की कामना से उपवास करना चाहिए । ऐसा करने से उन्हें सर्वगुण सम्पन्न पुत्र की प्राप्ति अवश्य होगी। 
अवश्यं भविता पुत्रस्तेषां सर्वगुण समन्वितः।
लेकिन, उस दिन पुत्रवान लोगों को उपवास व्रत नहीं करना चाहिए :---
#पुत्रवद्भिर्न कर्तव्य उपवासस्तु तद्दिने।।
माँ भगवती जगत् जननी सब का कल्याण करें ,