ज्योतिष समाधान

Sunday, 18 May 2025

#नवतपा 2025#

नौतपा में अबकी बार पड़ेगी प्रचंड गर्मी, जानें कब से कब तक लगेगा नौतपा

ज्योतिषाचार्य गुरुदेव भुननेश्वर पर्णकुटी आश्रम  ने बताया की सूर्य 15 दिनों के लिए रोहिणी नक्षत्र में रहते हैं, जिसके शुरुआती 9 दिनों को नौतपा कहा जाता है. नौतपा के 9 दिन अगर भीषण गर्मी पड़ती है तो यह बारिश होने के अच्छे संकेत होते हैं. लेकिन नौतपा के दौरान बारिश हो जाती है तो फिर यह फसलों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. 25 मई से 2025 से सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे, जिससे नौतपा की शुरुआत होगी, हर साल सूर्य देव 15 दिनों के लिए रोहिणी नक्षत्र में गोचर करते हैं और इन्हीं 15 दिन के शुरुआती नौ दिनों को नौतपा के नाम से जाना जाता है.इस बार 25 मई को प्रात:9:40से नौतपा की शुरुआत हो रही है. जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेगे. यह अवधि 15 दिनों तक चलेगी और रोहिणी नक्षत्र का समापन 8 जून प्रात:07:27 को होगा, उसके बाद सूर्य मृगशिरा नक्षत्र में प्रवेश करेगा.  अत: 25 मई से 02 जून तक नव तपा का योग बन रहा है गुरुदेव भुवनेश्वर ने बताया  रोहिणी नक्षत्र शुक्र देव का नक्षत्र होता है और शुक्र देव सूर्य देव के शत्रु नक्षत्र माने गए हैं, इसलिए जब सूर्य और शुक्र मिलते हैं तो इसी वजह से भीषण गर्मी पड़ती है.  तपा लगने के दौरान चंद्रदेव नौ नक्षत्रों में भ्रमण करते हैं इसलिए शीतलता का प्रभाव नौतपा के दौरान हट जाता है ज्योतिष शास्त्र में जब चंद्रमा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक अपनी स्थितियों में हो एवं तीव्र गर्मी पड़े, तो ये स्थिति नौतपा कहलाती है। अगर रोहिणी के दौरान अगर बारिश हो जाती है तो इसे रोहिणी नक्षत्र का गलना भी कहा जाता है।

ज्येष्ठ मासे सीत पक्षे आर्द्रादि दशतारका।
सजला निर्जला ज्ञेया निर्जला सजलास्तथा।।

 धार्मिक मान्यता है कि अगर नौतपा के इन 9 दिनों में बारिश नहीं होती, तो उस साल बारिश भी जोरदार होती है। 


अगर नो तपा न तपे तो जहरीले जीव-जंतु और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट पतंगे खत्म नहीं होंगे. 

टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे, 

बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे. 

सांप-बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे. 

लू नहीं चलने के कारण आंधियां फसलों को चौपट कर सकती है. 

यही वजह है कि नौतपा में भीषण गर्मी पड़ना अच्छा माना जाता है. घाघ भद्दरी के अनुसार 

 दो मूसा, दो कातरा, दो तीड़ी, दो ताय।

कहने का मतलब  

नौतपा के पहले 2 दिन लू न चले तो चूहे बहुत हो जाएंगे। 

अगले 2 दिन लू न चले तो कातरा (फसल को नुकसान पहुंचाने वाला कीट) नहीं मरेगा। 

. तीसरे दिन से 2 दिन लू न चली तो टिडियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे। 

चौथे दिन से 2 दिन नहीं तपा तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे। 

इसके बाद दो दिन लू न चली तो विश्वर यानी सांप-बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे। 

आखिरी दो दिन भी लू नहीं चली तो आंधियां अधिक चलेंगी और फसलें चौपट कर देंगी।

इस वार नव तपा के दौरान आगजनी  तेज हवाएं, आंधिया और फिर बरसा के योग बनते नजर आ रहे है नौ दिन में से अंतिम 3 दिन हवाएं खूब तेज चलेगी। कहीं-कहीं मध्यम बारिश की संभावना है तो कहीं बौछारें भी हो सकती है। नौतपा का समय हमेशा गर्मी और सूर्य की प्रचंड तपिश के लिए प्रसिद्ध होता है। इस समय सूर्य देव पृथ्वी के बहुत करीब आ जाते हैं जिससे गर्मी की तीव्रता अपने चरम पर पहुंच जाती है। 

Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti
9893946810

2025 में #होलिका दहन कब है

गुरुदेव भुवनेश्वर जी महाराज ने बताया है कि होलिका दहन 13 मार्च को देर रात होगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 26 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इसी समय होलिका दहन किया जाएगा। होलिका दहन के दिन सबसे पहले गोबर की होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाकर तैयार कर लें।ओर गोबर की मलरिया की माला 
भरभोलिए (गाय के गोबर के उपले जिसमें छेद रहता है, इसमें मूंज की रस्सी डालकर माला बनाई जाती है)
तैयार कर लेवे
 उसके बाद पूजा की थाली में रोली, चावल, नारियल,, कलावा,, कच्चा सूत, ,फूल,  दूर्वा ,साबुत हल्दी, ,बताशे,,मिठाई ,,घर में बने हुए पकवान, फल पूजा के लिए जल से भरा जल कलश आदि रखें। फिर पूजा स्थल पर एक कलश में पानी भरकर रख दें। इस बात का ध्यान रखें कि पूजा के दौरान आपको अपना मुख पूर्व या उत्तर की ओर रखना है। अब नरसिंह भगवान का ध्यान करते हुए उन्हें रोली, चावल, मिठाई, फूल आदि अर्पित करें। इसके बाद होलिका दहन वाले स्थान पर जाकर होलिका की पूजा करें। फिर प्रह्लाद का नाम लेकर फूल अर्पित करें और उन्हें 5 अनाज चढ़ाएं। 
होलिका के लिए मंत्र: ओम होलिकायै नम:
भक्त प्रह्लाद के लिए मंत्र: ओम प्रह्लादाय नम:
भगवान नरसिंह के लिए मंत्र: ओम नृसिंहाय नम:
इसके बाद एक कच्चा सूत लेकर होलिका की परिक्रमा करें और आखिरी में उसमें गुलाल डालकर जल अर्पित करें।
होलिका दहन के दिन शरीर से उतारे गए उबटन को होलिका में अवश्य जलाना चाहिए-

 होलिका की आग में कपड़े, टायर आदि चीजें डाल देते हैं, जिससे ना सिर्फ होलिका की अग्नि अपवित्र होती है बल्कि प्रदूषण भी होता है. साथ ही इन चीजों का संबंध राहु और मंगल ग्रह से है, अगर आप होलिका की अग्नि में इन चीजों का डालते हैं तो कुंडली में इन ग्रहों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता 

शास्त्रों के अनुसार, साल में तीन रात्रियां अत्यंत शुभ मानी जाती हैं- (1,)महाशिवरात्रि, (2)होलिका दहन और (3)दीपावली की अमावस्या. होली की रात का विशेष महत्व है, खासकर उन लोगों के लिए जो लंबे समय से परेशानियों का सामना कर रहे हैं. यह रात विशेष रूप से उन समस्याओं को समाप्त करने में मददगार होती है जो लंबे वक्त से परेशान कर रही हों. सही उपाय करने से व्यक्ति की बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में नई सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
घर में अगर कोई सदस्य लंबे समय से बीमार है, तो होली की रात भगवान नरसिंह का स्तोत्र पाठ करें.
एवं होलिका दहन की राख को शिवलिंग पर अर्पित करना शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इससे शनि की महादशा, साढ़ेसाती और ढैय्या के प्रभाव कम हो जाते हैं, जिससे रुके हुए कार्य बनने लगते हैं. यह उपाय राहु-केतु के नकारात्मक प्रभाव को भी कम करने में सहायक होता है और वैवाहिक जीवन में खुशियाँ लाता है होलिका दहन की राख को लाल कपड़े में रखकर उसमें तांबे का सिक्का डालकर बांध लें और इसे तिजोरी या पैसे रखने वाले स्थान पर रखें. ऐसा करने से घर में धन-संपत्ति का आगमन होता है और देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है.जो लोग बार-बार बीमार पड़ते हैं, उन्हें एक महीने तक प्रतिदिन होलिका दहन की राख को माथे पर लगाना चाहिए. ऐसा करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है और व्यक्ति पूर्णतः स्वस्थ महसूस करता है. बच्चों को बुरी नज़र से बचाने के लिए होलिका दहन की राख को उनके माथे पर तिलक के रूप में लगाएँ. यह उपाय बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है.
एक काला कपडा लें और उसमें काले तिल, 7 लौंग, 3 सुपारी, 50 ग्राम सरसों और ओर थोड़ी सी मिट्टी लेकर एक पोटली बना लें. इसे खुद पर से 7 बार उतारा कर लें और होलिका दहन में डालें.
यदि राहु के कारण परेशानी है तो एक नारियल का गोला लेकर उसमें अलसी का तेल भरें. उसी में थोड़ा सा गुड़ डालें और इस गोले को जलती हुई होलिका में डाल दें. इससे राहु का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाएगा.
बेरोजगार हैं तो होली की रात 12 बजे से पहले एक नींबू लेकर चौराहे पर जाएं और अपने सिर से सात बार घुमाकर उसके चार टुकड़े कर चारों दिशाओं में फेंक दें. वापिस घर आ जाएं किन्तु ध्यान रहे, वापस आते समय पीछे मुड़कर न देखें.
इसके अलावा होलिका दहन में पान के पत्ते का भी एक उपाय करना चाहिए। इसके लिए एक पान का पत्ता लें और इस पान के पत्ते को घी में डूबा दें, इसके बाद इश पर एक बताशा रख लें। इसके बाद इसे होलिका दहन में डाल दें, इससे भी मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है।
अगर आपको नौकरी नहीं मिल रही या पदोन्नति में अड़चनें आ रही हैं, तो होली की रात 8 नींबू लेकर उन्हें अपने ऊपर से 21 बार उल्टी दिशा में वारें और फिर जलती होलिका में डाल दें. इसके बाद होलिका की 8 परिक्रमा करें और मन ही मन अपने करियर से जुड़ी इच्छा पूरी होने की प्रार्थना करें.
होलिका दहन के दिन सरसों के दाने और काले तिल अपने ऊपर से वारकर सरसों के दानें और काले तिल डाल दें। इससे आपकी नेगेटिविट दूर होगी।

Monday, 5 May 2025

ram katha

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग   त्रेतायुग   द्वापरयुग   कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग   त्रेतायुग   द्वापरयुग   कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।

Thursday, 1 May 2025

चौषठ योगनी

चौसठ योगिनी का उल्लेख पुराणों में मिलता है जिनकी अलग अलग कहानियां है । इनको आदिशक्ति मां काली का अवतार बताया है
कहा जाता है घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने ये अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पर्वती की सखियां हैं।

ब्रह्म वैवर्त पुराण में भी इन योगिनियों का वर्णन है लेकिन इस पुराण के अनुसार ये ६४ योगिनी कृष्ण की नासिका के छेद से प्रकट हुईं हैं
चौसठ योगिनियों की पूजा करने से सभी देवियों की पूजा हो जाती है। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतार रूप हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं।

हर दिशा में 8 योगिनी फ़ैली हुई है, हर योगिनी के लिए एक सहायक योगिनी है, हिसाब से हर दिशा में 16 योगिनी हुई तो 4 दिशाओ में 16 × 4 = 64 योगिनी हुई । ६४ योगिनी ६४ तन्त्र की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। एक देवी की भी कृपा हो जाये तो उससे संबंधित तन्त्र की सिद्धी मानी जाती है। चौंसठ योगिनियों के नाम इस प्रकार हैं – 1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।
योगिनीस्तोत्रसारं च श्रवणाद्धारणाद् यतिः ।
अप्रकाश्यमिदं रत्नं नृणामिष्टफलप्रदम् ॥ ३१-३७॥

यस्य विज्ञानमात्रेण शिवो भवति साधकः ॥ ३१-३८॥

कङ्काली कुलपण्डिता कुलकला कालानला श्यामला ।
योगेन्द्रेन्द्रसुराज्यनाथयजिताऽन्या योगिनीं मोक्षदा ।
मामेकं कुजडं सुखास्तमधनं हीनं च दीनं खलं
यद्येवं परिपालनं करोषि नियतं त्वं त्राहि तामाश्रये ॥ ३१-३९॥

यज्ञेशी शशिशेखरा स्वमपरा हेरम्बयोगास्पदा ।
दात्री दानपरा हराहरिहराऽघोरामराशङ्करा ।
भद्रे बुद्धिविहीन देहजडितं पूजाजपावर्जितं
मामेकार्भमकिञ्चनं यदि सरत्त्वं योगिनी रक्षसि ॥ ३१-४०॥

भाव्या भावनतत्परस्य करणा सा चारणा योगिनी ।
चन्द्रस्था निजनाथदेहसुगता मन्दारमालावृता ।
योगेशी कुलयोगिनी त्वममरा धाराधराच्छादिनी
योगेन्द्रोत्सवरागयागजडिता या मातृसिद्धिस्थिता ॥ ३१-४१॥

त्वं मां पाहि परेश्वरी सुरतरी श्रीभास्करी योगगं
मायापाशविबन्धनं तव कथालापामृतावर्जितम् ।
नानाधर्मविवर्जितं कलिकुले संव्याकुलालक्षणं
मय्येके यदि दृष्टिपातकमला तत् केवलं मे बलम् ॥ ३१-४२॥

मायामयी हृदि यदा मम चित्तलग्नं
     राज्यं तदा किमु फलं फलसाधनं वा ।
इत्याशया भगवती मम शक्तिदेवी
     भाति प्रिये श्रुतिदले मुखरार्पणं ते ॥ ३१-४३॥

या योगिनी सकलयोगसुमन्त्रणाढ्या
     देवी महद्गुणमयी करुणानिधाना ।
सा मे भयं हरतु वारणमत्तचित्ता
     संहारिणी भवतु सोदरवक्षहारा ॥ ३१-४४॥

यदि पठति मनोज्ञो गोरसामीश्वरं यो
     वशयति रिपुवर्गं क्रोधपुञ्जं विहन्ति ।
भुवनपवनभक्षो भावुकः स्यात् सुसङ्गी
     रतिपतिगुणतुल्यो रामचन्द्रो यथेशः ॥ ३१-४५॥

एतत्स्तोत्रं पठेद्यस्तु स भक्तो भवति प्रियः ।
मूलपद्मे स्थिरो भूत्त्वा षट्चक्रे राज्यमाप्नुयात् ॥ ३१-४६॥

इति श्रीरुद्रयामले उत्तरतन्त्रे महातन्त्रोद्दीपने षट्चक्रप्रकाशे
सिद्धिमन्त्रप्रकरणे भैरवभैरवीसंवादे भेदिन्यादिस्तोत्रं
नाम एकत्रिंशः पटलः ॥
  महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती की तीनों की सहचरी योगिनी पृथक पृथक है और प्रत्येक में कुछ भेद है इस विषय पर चलचित्र के द्वारा अवगत करवा दिया जायेगा।।

Thursday, 24 April 2025

वर्धिनी कलश कौन कौन से है

🌷💐गृह प्रवेश:- 🌷💐
वर्धिनी कलश पूजनमंत्र- वर्धिनी त्वं महापूता महातीर्थोदकान्विता । त्वत्तोयेन प्रपूर्येऽहं भव त्वं कुलवर्धिनी ।। वर्धिनी त्वं जगन्माता पवित्रातिमनोहरा, तव तोयेन कलशान् पूरयामि श्रिये मुदा।। 


ॐ भू० वर्धिन्यै० आ०स्था० 
ॐ भू० वरुणाय० आ०स्था० 
ब्रह्मणे० 
रुद्राय० 
विष्णवे०. 
मातृभ्यो० 
मातृः आ०स्था० 
सागरेभ्यो० 
महौ० 
नदीभ्यो० 
तीर्थेभ्यो० 
तीर्थानि आ०स्था०
 गायत्र्यै० 
ऋग्वेदाय० 
यजुर्वेदाय० 
सामवेदाय० 
अथर्ववेदाय० 
अग्नये० 
आदित्येभ्यो० 
एकादशरुद्रेभ्यो० 
मरुद्भ्यो०
 मरुतः आ०स्था० 
गंधर्वेभ्यो० 
ऋषये० 
वरुणाय वायवे० 
धनदाय० 
यमाय० 
धर्माय० 
शिवाय० 
यज्ञाय० 
विश्वेभ्यो देवेभ्यो० 
स्कंदाय०
 गणेशाय० 
यक्षाय० 
अरुंधत्यै० आ०स्था०
 ॐ मनोजूर्ति० ॐ भू० वर्धिनीवरुणाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठिताः वरदा भवत। 
पंचोपचारैः पूजनम् । 
   द्वार पर शुभ लाभ स्वस्तिक आदि करें। पत्नीद्वारा देहली पूजन। पंचामृत तथा जलसे द्वारमार्जन । 
ॐ असुरान्तकचक्राय नमः

संकल्पः- शुभपुण्यतिथौ अस्मिन् पुण्याहे श्रौतस्मार्त कर्म करणार्थं अनेकविध ऐश्वर्यप्राप्ति अर्थ ऐहिक आमुष्मिक अभीष्ट सिद्धिअर्थं नवीनगृह प्रवेशं अहं करिष्ये

* द्वारशाखापूजनम् - ॐ स्थापितेंयं मया शाखा शुभदा, ऋद्धिदाऽस्तु मे। सुस्थिरा च सुदा भूयात् सर्वेषां हितकारिणी।। दक्षिणशाखायाम्- यो धारयति सर्वेशो जगन्ति स्थावराणि च। धाता दक्षिणशाखायां पूजितो वरदोऽस्तु मे ।। ॐ धात्रे नमः ।। वामशाखायाम्- यः समुत्पाद्य विश्वेशो भुवनानि चतुर्दश। विधाता वामशाखायां स्थिरो भवतु पूजितः ।। ॐ विधात्रे नमः ।। ऊर्ध्वम् ॐ गणानान्त्वा० ॐ गणपतये नमः । अधो- देहल्याम्- ॐ इदम्मे ब्रह्म च क्षेत्रञ्चोभे श्रिय॑मश्नुताम्। मय॑ि देवा देघतु श्रियमुत्त॑मां तस्यै ते स्वाहो।। यस्याः प्रसादात् सुखिनो देवाः सेन्द्राः सहोरगाः। सा वै श्रीर्देहलीसंस्था पूजिता ऋद्धिदाऽस्तु मे ।। ॐ देहल्यै नमः ।। दक्षिणे चंडाय० वामे प्रचंडाय० ऊर्ध्वं द्वारश्रियै० अधो देहल्यां वास्तुपुरुषाय० दक्षिणशाखायां गंगायै० शंखनिधये० वामशाखायां यमुनायै० प‌द्मनिधये० द्वारस्य ऊर्ध्वं आग्नेय्यां गणपतये० अधः नैऋत्यां दुगर्गायै० अधः वायव्यां सरस्वत्यै० ऊर्ध्वं ईशान्यां क्षेत्रपालाय० द्वारश्रिया द्यावाहितदेवताभ्यो नमः पंचोपचारैः पूजनम्। वास्तुपुरुषाय बलिदानम्। अपसर्पन्तु० भो ब्रह्मन् प्रविशामि । प्रविशस्व। शांतिसूक्तपाठः। मंगलघोषः।

गृहप्रवेशः - ॐ धर्मार्थकामसिद्ध्यर्थं पुत्रपौत्राभिवृद्धये । मंदिरं प्रविशाम्यद्य सर्वदा मंगलं भवेत् ।। यावत् चन्द्रश्च सूर्यश्च यावत् तिष्ठति मेदिनी। तावत् त्वं मम वंशस्य मंगलाभ्युदयं कुरु ।। ॐ धर्मस्थूणाराजं श्रीस्तूपमहोरात्रे द्वारफलके। इन्द्रस्य गृहा वसुमन्तो वरूथिनस्तानहं प्रपद्ये सह प्रजया पशुभिः सह ।। यन्मे किंचिदस्त्युपहूतः सर्वगण सखाय साधु संवृतः । तान्वा शालेऽरिष्टवीरा गृहान्नः सन्तु सर्वे ।।

         ज्योतिषाचार्य डॉ०आशुतोष मिश्र

Thursday, 17 April 2025

विबाह के लिए लगने वाली आबश्यक सामग्री लिस्ट

पर्णकुटी ज्योतिष केंद्र
विबाह के लिए लगने वाली आबश्यक सामग्री लिस्ट
   ------ //-- (   पीली चिट्टी पूजा के लिए  )--- //--------
१】श्री गणेश जी
२】पांच हल्दी की गाँठ
३】पांच गोलसुपारि
४】 पिले चावल
५】गोबर के गणेश जी
६】बतासे
७】  दूर्वा
८】कलश एक मिटटी का
९】दीपक
१०】रुई
११】माचिस
पूजा की थाली सामग्री सहित 
नाई(खबॉस )को किराया बतौर दक्षिणा
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बत्तीसी  झिलाने की सामग्री-

32 लड़डू,
32 रुपया
मेवा,
शकर,
चावल,
गुड़ की भेली,
लाल कपड़ा,
हार,
फुल,
बताशा,
नारियल
और जवारी का रुपया।

विधि-

इसमे भाई पटिये पर बैठता है और बहन उसकी गोद मे पूरा सामान रख़कर आरती उतारती है सभी भाई अपनी बहन को साड़ी और जीजाजी को जवारी देकर बिदा करते है।

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सभी प्रकार की जटिल समस्याओ के समाधान हेतु   शीघ्र सम्पर्क करे एबम  अपनी कुंडली दिखाकर  उचित मार्ग दर्शन प्राप्त करे ।

सम्पर्क सूत्र

पंडित जी श्री परमेस्वर दयाल जी शास्त्री

तिलकचोक मधुसुदनगण

मोबाइल नंबर 09893397835

(पूजन समग्री कम  और  ज्यादा कर  सकते है )

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श्री गणेश पूजन  सहित अन्य पूजन के लिए
सभी पूजन में उपयोग के लिए यही सामग्री में से ले सकते है
०】आटा हल्दी  चोक पुरने के लिए
1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------------100 ग्राम
३】अगरबत्ती-------------------     3पैकिट
४】कपूर-------------------------  - 50 ग्राम
५】केसर-------------------------   -1डिव्वि
६】चंदन पेस्ट --------------------- 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत ---------------------   11नग्
८】चावल-------------------------- 05 किलो
९】अबीर-----------------------------50 ग्राम
१०】गुलाल, ----------------------10 0ग्राम
११】अभ्रक---------------------------10ग्राम
१२】सिंदूर ------------------------100 ग्राम
१३】रोली, -------------------------100ग्राम
१४】सुपारी, ( बड़ी)-----------  200 ग्राम
१५】नारियल ----------------------  11 नग्
१६】सरसो--------------------------50 ग्राम
१७】पंच मेवा---------------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)------------------ 50 ग्राम
१९】शकर-------------------------0 1किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)--------------  01किलो
२१】इलायची (छोटी)--------------10ग्राम
२२】लौंग मौली---------------------10ग्राम
२३】इत्र की शीशी--------------------1 नग्
२४】तिली--------------------------२००ग्राम
२५】जौ-----------------------------१००ग्राम
२६】माचिस -------------------------१पैकिट
२७】रुई-------------------------------२०ग्राम
२८】नवग्रह समिधा------------------१पैकेट
२९】धुप बत्ती ------------------------२पैकिट
३०】लाल कपड़ा --------------------२मीटर
३१】सफेद कपडा-------------------२मीटर
३२】समिधा हवन के लिए ---------५किलो
33) तिली ------- ---------------------1किलो
34)जौ-----------------------------200 ग्राम

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                     अन्य सामग्री

१】पान
२】 पुष्प
३】पुष्पहार
४】दूर्वा
५】विल्वपत्र
६】दोना गड्डी
७】बताशे या प्रशाद
८】फल
९】आम के पत्ते
१०】समिधा हवन के लिए
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           माता पूजन सामग्री

१】झंडियां लाल
२】पूड़ी
३】ताव
४】खारक
५】बदाम
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               मंडप पूजन सामग्री

१】मानक खम्भ
२】पटली लकड़ी की
३】नींव में रखने का सामान
४】जैसे  लाख का टुकड़ा
५】सर के वाल
६】कोयला
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अगर  गंगाजली पूजन  हो तो ---------कही कही होती है
ऊपर दी गयी पूजा  सामग्री में से लेबे

१】खाजा
२】खारक
३】वादाम
४】लाल कपड़ा 3 मीटर
५】श्री फल (नारियल)
==========>>>>>>>>=>=>>=======

          जनेऊ (यज्ञनोपवित) संस्कार

१】मूँज की जनेऊ
२】खड़ाऊ
३】डण्डा(दंड)
४】भिक्षा पात्र "कमण्डल
५】गुरुपूजन की सामग्री
६】जैसे =बस्त्र नारियल जनेऊ गोलसुपारी आदि
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१】बर के निमित्त बस्त्र
२】फल
३】नारियल
४】आभूषण आदि
५】जनेऊ
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गनाना 
पूजन सामग्री ऊपर दी गयी  उसी में से पूजन थाली तैयार होगी
लड़के वालो की तरफ से दुल्हन के निमित्त
१】 बस्र
२】आभूषण श्रृंगार दानी
३】कुलदेवी प्रतिमा टिपारी
४】मोहर दुल्हन के सर पर बाँधने का
५】पिछौड़ा 
६】सिंधोडा
७】सिंधोड़ि
८】कंकण
९】 बतासे
१०】नारियल या नारियल गोला
11)तस्वीर राम विबाह शिव विबाह
12)रगवारै के लोटा
=======>>>>>>>>>======>>>>>>>>
फेरे के समय  लड़की वालों के यहाँ। पूजन सामग्री  ऊपर दी है उसके
अलावा

१】लाजा
२】सूप
३】मधुपर्क
४】हथलेवा
५】सिंदुर्दानी
६】डाभ
७】मधुपर्क 
८】गुड़
९】बतासे
१०】हल्दी पिसी पॉब पुजाई के लिए
११】समिधा हवन के लिए फेरे के समय
११】विछुड़ी

संपर्क
गुरुदेब भुबनेश्वर
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
मो।९८९३९४६८१०

Monday, 7 April 2025

कुंडली के किस भाव से क्या जाने

हर कोई जानना चाहता है कि उनके जीवन में क्या कुछ अच्छा बुरा घटने वाले वाला है। अगर आप भी अपनी या अन्य किसी का भविष्य जानना चाहते हैं तो इस तरह जान सकते है।जन्म कुंडली के 12 भावों के प्रत्येक भाव से व्यक्ति के अन्य सगे संबंधियों के साथ भावी संबंध की भविष्य के बार में जाना जा सकता हैं। तो आईए जानते हैं।

1- किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के नवम् भाव से उसके पिता के बारे में जान सकते है 
2- किसी महिला की कुंडली के सप्तम् भाव से उसके पति के बारे में जान सकते है ।
3- मातृ भाव अर्थात चतुर्थ भाव से सप्तम् घर अर्थात कुंडली के दशम भाव से ही पिता के बारे में जान सकते है ।
4- तृतीय भाव से सातवें घर अर्थात कुंडली के नवम घर से छोटे भाई की पत्नी और छोटी बहन के पति के भविष्य के बारे में जाना जा सकता है ।
5- पंचम भाव से सप्तम घर अर्थात ग्यारहवें भाव से घर की पुत्रवधू के व्यक्तिव के बारे में जान सकते है ।
6- मातृ भाव अर्थात तीसरे घर से मामा और मौसी की जानकारी मिलती है
7- मातृ भाव से चतुर्थ अर्थात कुंडली के सप्तम भाव से स्त्री के अलावा माता की माता अर्थात नानी के बारे में और नाना के लिए मातृ भाव से दशम भाव अर्थात कुंडली के प्रथम भाव से जान सकते है ।
8- व्यक्ति के चाचा एवं बुआ के बारे में पितृ भाव अर्थात दशम भाव से तीसरे गृह अर्थात कुंडली के द्वादश भाव से जान सकते हैं ।
9- व्यक्ति के दादा के बारे में दशम भाव से दसवें गृह अर्थात कुंडली के सातवें गृह से और दादी के लिए कुंडली के प्रथम भाव से के बारे में जान सकते है ।
10- ताऊ के लिए पितृ भाव से ग्यारहवें गृह अर्थात कुंडली के अष्टम भाव से और ताई के लिए अष्टम भाव से सप्तम भाव अर्थात कुंडली के द्वितीय भाव से के बारे में जान सकते है ।
11- चाचा और बुआ के बारे में बारहवें भाव से किया जाता है इसलिए चाची और फूफा का विचार कुंडली के षष्ठ भाव से करना चाहिए ।
12- मामी और मौसा के बारे में छठे भाव से सप्तम गृह अर्थात कुंडली के बारहवें भाव से जान सकते है ।
13- व्यक्ति की सास के बारे में जानने के लिए पत्नी के घर से चौथे घर अर्थात दसवें घर से और ससुर के लिए पत्नी भाव से दशम घर अर्थात कुंडली के चौथे भाव से जान सकते है ।
14- छोटे सालों और सालियों के लिए सप्तम भाव से तृतीय गृह अर्थात कुंडली के चतुर्थ भाव से एवं बड़े सालों व सालियों के लिए सप्तम भाव से ग्यारहवां घर अर्थात कुंडली के पांचवें भाव से जान सकते है ।
15- बड़े भाई एवं बहनों के बारे में एकादश भाव से, पुत्र, बड़ी भाभी और बड़े जीजा के बारे में एकादश भाव से सप्तम गृह अर्थात कुंडली के पंचम भाव से जान सकते ।
16- किसी स्त्री के जेठ और जेठानी के बारे में पंचम भाव से जेठ का तथा एकादश भाव से जेठानी के बारे में और तृतीय भाव से देवरानी तथा नवम भाव से देवर के बारे में जान सकते है ।
17- यदि किसी व्यक्ति के अपनी माता से मधुर संबंध हैं तो उसका ससुर से संबंध मधुर ही रहेगा । यदि पति के साथ अच्छे संबंध हैं तो सास के साथ भी संबंध ठीक रहेंगे । 
18- नानी के सफल गृहिणी होने की स्थिति में पत्नी भी सफल गृहिणी होगी । 

19- यदि स्वभाव अपने नाना और अपनी दादी के समान है तो पत्नी का स्वभाव दादा और नानी जैसा तथा पुत्र का स्वभाव बड़े सालों या बड़े जीजा के स्वभाव के समान होगा ।
इस प्रकार व्यक्ति की जन्म कुंडली के प्रत्येक भाव से किसी न किसी सगे संबंधियों के बारे में जान सकते है ।

Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti
9893946810

Thursday, 3 April 2025

यज्ञ कुंड

जाने यज्ञ कुंड 🔥 कितने प्रकार के होते हैं ?

यज्ञ कुंड मुख्यत: आठ प्रकार के होते हैं और सभी  का प्रयोजन अलग अलग होता हैं ।

1. योनी कुंड – योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु ।

2. अर्ध चंद्राकार कुंड – परिवार मे सुख शांति हेतु । पर पतिपत्नी दोनों को एक साथ आहुति देना पड़ती हैं ।

3. त्रिकोण कुंड – शत्रुओं पर पूर्ण विजय हेतु ।

4. वृत्त कुंड - जन कल्याण और देश मे शांति हेतु ।

5. सम अष्टास्त्र कुंड – रोग निवारण हेतु ।

6. सम षडास्त्र कुंड – शत्रुओ मे लड़ाई झगडे करवाने हेतु ।

7. चतुष् कोणा स्त्र कुंड – सर्व कार्य की सिद्धि हेतु ।

8. पदम कुंड – तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु ।
तो आप समझ ही गए होंगे की सामान्यतः हमें
चतुर्वर्ग के आकार के इस कुंड का ही प्रयोग करना हैं । 
ध्यान रखने योग्य बाते :- अब तक आपने शास्त्रीय बाते समझने का प्रयास किया यह बहुत जरुरी हैं । क्योंकि इसके बिना सरल बाते पर आप गंभीरता से विचार नही कर सकते । 

सरल विधान का यह मतलब कदापि नही की आप गंभीर बातों को ह्र्द्यगमन ना करें ।

जप के बाद कितना और कैसे हवन किया जाता हैं ? कितने लोग और किस प्रकार के लोग की
आप सहायता ले सकते हैं ?
 कितना हवन किया जाना हैं ? हवन करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना हैं ?
 क्या कोई और सरल उपाय भी जिसमे हवन ही न करना पड़े ? किस दिशा की ओर मुंह करके बैठना हैं ? 
किस प्रकार की अग्नि का आह्वान करना हैं ? किस प्रकार की हवन सामग्री का उपयोग करना हैं ?
 दीपक कैसे और किस चीज का लगाना हैं ? 
कुछ ओर आवश्यक सावधानी ? आदि बातों के साथ अब कुछ बेहद सरल बाते को अब हम देखेगे । 

जब शाष्त्रीय गूढता युक्त तथ्य हमने समंझ लिए हैं तो अब सरल बातों और किस तरह से करना हैं पर भी
कुछ विषद चर्चा की आवश्यकता हैं ।

 1. कितना हवन किया जाए ?
शास्त्रीय नियम
तो दसवे हिस्सा का हैं ।
इसका सीधा मतलब की एक अनुष्ठान मे
1,25,000 जप या 1250 माला मंत्र जप अनिवार्य हैं और इसका दशवा हिस्सा होगा 1250/10 =
125 माला हवन मतलब लगभग 12,500 आहुति । (यदि एक माला मे 108 की जगह सिर्फ100  गिनती ही माने तो) और एक आहुति मे मानलो 15 second लगे तब कुल 12,500 *
15 = 187500 second मतलब 3125 minute मतलब 52 घंटे लगभग। तो किसी एक व्यक्ति
के लिए इतनी देर आहुति दे पाना क्या संभव हैं ?
2. तो क्या अन्य
व्यक्ति की सहायता ली जा सकती हैं? तो इसका
उतर
हैं हाँ । पर वह सभी शक्ति मंत्रो से दीक्षित हो या अपने ही गुरु भाई बहिन हो तो अति उत्तम हैं । जब यह भी न संभव हो तो गुरुदेव के श्री चरणों मे अपनी असमर्थता व्यक्त कर मन ही मन
उनसे आशीर्वाद लेकर घर के सदस्यों की सहायता ले सकते हैं ।

3. तो क्या कोई और उपाय नही हैं ? यदि दसवां हिस्सा संभव न हो तो शतांश हिस्सा भी हवन
किया जा सकता हैं । मतलब 1250/100 = 12.5 माला मतलब लगभग 1250 आहुति = लगने वाला समय = 5/6 घंटे ।यह एक साधक के लिए
संभव हैं ।

4. पर यह भी हवन भी यदि संभव ना हो तो ? कतिपय साधक किराए के मकान में या फ्लैट में रहते हैं वहां आहुति देना भी संभव नही है तब क्या ? गुरुदेव जी ने यह भी विधान सामने रखा की साधक यदि कुल जप संख्या का एक चौथाई हिस्सा जप और कर देता है संकल्प ले कर की मैं दसवा हिस्सा हवन नही कर पा रहा हूँ । इसलिए यह मंत्र जप कर रहा हूँ तो यह भी संभव हैं । पर इस केस में शतांश जप नही चलेगा इस बात का ध्यान रखे ।

5. स्रुक स्रुव :- ये आहुति डालने के काम मे आते हैं । स्रुक 36 अंगुल लंबा और स्रुव 24 अंगुल लंबा होना चाहिए । इसका मुंह आठ अंगुल और कंठ एक अंगुल का होना चाहिए । ये दोनों स्वर्ण रजत पीपल आमपलाश की लकड़ी के बनाये जा सकते हैं ।
 
6। हवन किस चीज का किया जाना चाहिये ?
· शांति कर्म मे पीपल के पत्ते, गिलोय, घी का ।
· पुष्टि क्रम में बेलपत्र चमेली के पुष्प घी ।
· स्त्री प्राप्ति के लिए कमल ।
· दरिद्र्यता दूर करने के लिये दही और घी का ।
· आकर्षण कार्यों में पलाश के पुष्प या सेंधा नमक से ।
· वशीकरण मे चमेली के फूल से ।
· उच्चाटन मे कपास के बीज से ।
· मारण कार्य में धतूरे के बीज से हवन किया जाना चाहिए ।

7. दिशा क्या होना चाहिए ? साधरण रूप से
जो हवन कर रहे हैं वह कुंड के पश्चिम मे बैठे और उनका मुंह पूर्व
दिशा की ओर होना चाहिये । यह भी विशद व्याख्या चाहता है । यदि षट्कर्म किये
जा रहे हो तो ;
· शांती और पुष्टि कर्म में पूर्व दिशा की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे ।
· आकर्षण मे उत्तर की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे और यज्ञ कुंड वायु कोण में हो ।
· विद्वेषण मे नैऋत्य दिशा की ओर मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण में रहे ।
· उच्चाटन मे अग्नि कोण में मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण मे रहे ।
· मारण कार्यों में - दक्षिण दिशा में मुंह और दक्षिण दिशा में हवन कुंड हो ।

8. किस प्रकार के हवन कुंड का उपयोग किया जाना चाहिए ?
· शांति कार्यों मे स्वर्ण, रजत या ताबे का हवन कुंड होना चाहिए ।
· अभिचार कार्यों मे लोहे का हवन कुंड होना चाहिए।
· उच्चाटन मे मिटटी का हवन कुंड ।
· मोहन् कार्यों मे पीतल का हवन कुंड ।
· और ताबे के हवन कुंड में प्रत्येक कार्य में उपयोग किया जा सकता है ।

9. किस नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चाहिए ?
· शांति कार्यों मे वरदा नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चहिये ।
· पुर्णाहुति मे शतमंगल नाम की ।
· पुष्टि कार्योंमे बलद नाम की अग्नि का ।
· अभिचार कार्योंमे क्रोध नाम की अग्नि का ।
· वशीकरण मे कामद नाम की अग्नि का आहवान किया जाना चहिये

: 10. कुछ ध्यान योग बाते :-
· नीम या बबुल की लकड़ी का प्रयोग ना करें ।
· यदि शमशान मे हवन कर रहे हैं तो उसकी कोई भी चीजे अपने घर मे न लाये ।
· दीपक को बाजोट पर पहले से बनाये हुए चन्दन के त्रिकोण पर ही रखे ।
· दीपक मे या तो गाय के घी का या तिल का तेल का प्रयोग करें ।
· घी का दीपक देवता के दक्षिण भाग में और तिल का तेल का दीपक देवता के बाए ओर लगाया जाना चाहिए ।
· शुद्ध भारतीय वस्त्र पहिन कर हवन करें ।
· यज्ञ कुंड के ईशान कोण मे कलश की स्थापना करें ।
· कलश के चारो ओर स्वास्तिक का चित्र अंकित करें ।
· हवन कुंड को सजाया हुआ होना चाहिए ।

अभी उच्चस्तरीय इस विज्ञानं के
अनेको तथ्यों को आपके सामने आना
बाकी हैं । जैसे की "यज्ञ कल्प सूत्र विधान"क्या हैं । 
जिसके माध्यम से आपकी हर प्रकार की इच्छा की पूर्ति केवल मात्र यज्ञ के माध्यम से हो जाति हैं । पर यह यज्ञ कल्प विधान हैं क्या ? 

यह और भी अनेको उच्चस्तरीय तथ्य जो आपको विश्वास ही नही होने देंगे की यह भी संभव हैं । इस आहुति विज्ञानं के माध्यम से आपके सामने भविष्य मे आयंगे । अभी तो मेरा उदेश्य यह हैं की इस विज्ञानं की
प्रारंभिक रूप रेखा से आप परिचित हो । तभी तो उच्चस्तर के ज्ञान की
आधार शिला रखी जा सकती हीं ।
क्योंकि कोई भी विज्ञानं क्या मात्र चार
भाव मे सम्पूर्णता से लिया जा सकता हैं ? 
कभी नही । यह 108 विज्ञान मे से एक हैं ।
Gurudev 
Bhubneshwar
9893946810

Wednesday, 2 April 2025

गो मुखी प्रमाण

#गोमुखीलक्षणम्  
       सनातन परम्परा में प्रयुक्त सभी वस्तु आदि
        के शास्त्रीय स्वरूप निर्धारित हैं। 
  सभी सम्प्रदायों में जप का विधान है । जपार्थ माला
को गोमुखी के अन्दर रखना अनिवार्य है। शान्त्यर्थ जप 
 के समय गोमुखी से तर्जनी को बाहर करके मणिबन्ध   
पर्यन्त हाथ को  अन्दर रखने का विधान है । 

प्रकृति में #गोमुखी के शास्त्रीय लक्षण पर विचार किया जाता है । 
  #गोमुखी_माने_गौ_के_मुख_जैसा_वस्त्र ।  

   "#वस्त्रेणाच्छाद्य_च_करं_दक्षिणं_य:#सदा_जपेत् । 
    #तस्य_स्यात्सफलं_जाप्यं_तद्धीनमफलंस्मृतम् ।। 
   #अत_एव_जपार्थं_सा_गोमुखी_ध्रियते_जनै: ।।               (आ.सू.वृद्धमनु) 
      गोमुखी से अतिरिक्त आधुनिक झोली में मणिबन्धपर्यन्त दायें हाथ को ढऀकना सम्भव नहीं है । 

 #गोमुखादौ_ततो_मालां_गोपयेन्मातृजारवत्  ।
 #कौशेयं_रक्तवर्णं_च_पीतवस्त्रं_सुरेश्वरि ।। 
 #अथ_कार्पासवस्त्रेण_यन्त्रतो_गोपयेत्सुधी: । 
 #वाससाऽऽच्छादयेन्मालां_सर्वमन्त्रे_महेश्वरि ।।
  #न_कुर्यात्कृष्णवर्णं_तु_न_कुर्याद्बहुवर्णकम् ।
  #न_कुर्याद्रोमजं_वस्त्रमुक्तवस्त्रेण_गोपयेत्।।                                                             (#कृत्यसारसमुच्चय)
        सूती वस्त्र का गोमुखादि कौशेय, रक्त अथवा पीत वर्ण का हो । काला, हरा, नीला, बहुरङ्गी या रोमज न हो ।
        पुन: इसके विशेष मान भी हैं- 
 #चतुर्विंशाङ्गुलमितं_पट्टवस्त्रादिसम्भवम् । 
  #निर्मायाष्टाङ्गुलिमुखं_ग्रीवायां_षड्दशाङ्गुलम् । 
   #ज्ञेयं_गोमुखयन्त्रञ्च_सर्वतन्त्रेषु_गोपितम् । 
   #तन्मुखे_स्थापयेन्मालां_ग्रीवामध्यगते_करे । 
   #प्रजपेद्विधिना_गुह्यं_वर्णमालाधिकं_प्रिये ।
   #निधाय_गोमुखे_मालां_गोपयेन्मातृजारवत् ।।
                                                                    (#मुण्डमालातन्त्र)
         २४ अङ्गुल परिमित पट्टवस्त्रादि से निर्माण करे, जिसमें ८ अङ्गुल का मुख और १६ अङ्गुल की ग्रीवा हो । गोमुखवस्त्र के मुख से माला को प्रवेश कराये और ग्रीवा के अभ्यन्तर में हाथ को रखकर गोपनीयता से यथाविधि जप करे ।
      इसी प्रकार के अनेक आगमप्रमाण हैं । आधुनिक झोली की शास्त्रीयता उपलब्ध नहीं होती है । प्रचुरमात्रा
 में कुछ गोविरोधियों ने किसी भारतीय पन्थविशेष में प्रवेश कर अतिशय भक्ति का अभिनय दिखाकर पवित्र #गोमुखी  के बदले अवैध *#झोली का दुष्प्रचार कर दिया और दुर्भाग्य से यहाऀ के बड़े-बड़े धर्मोपदेशकों ने भी चित्र-विचित्र उस अशास्त्रीय वस्त्र को स्वीकार कर लिया। 
      
     शास्त्र का नाम लेकर चलनेवाले महाशय यदि गोमुखी के बदले आधुनिक झोली ही रखना चाहते हैं तो वे अवश्य ही इस #झोली की #शास्त्रीयता #प्रदर्शित #करें। किमधिकम्.....?

Saturday, 22 February 2025

शिव अभिषेक सामग्री

धतूरे के फल 

आक के फूल 

आक के फल 


अर्पित करने हेतु शिवजी को बस्त्र

मता जी को अर्पित करने हेतु

 सौ भाग्यवस्त्र

ब्राह्मण बस्त्र
जल कलश तांबे का मिट्टी का)


१】सफेद कपड़ा दो मीटर)
२】लाल कपड़ा (2मीटर)

3 पीला कपड़ा 2 मीटर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
दीपक
तुलसी दल
केले के पत्ते (यदि उपलब्ध हो तो
बन्दनवार
पान के पत्ते ---------11 नग
रुई 200     ग्राम

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
              स्नान सामग्री
1)गाय का दूध से स्नान  1 किलो
2)गाय का दही स्नान 500 ग्राम
3)गाय का घी स्नान 100 ग्राम
4)शहद स्नान 50 ग्राम
5)शकर स्नान 200 ग्राम 
6)पंचामृत स्नान 200 ग्राम
7) पांच प्रकार के फलो का रस  100 ग्राम
8)फूलो का रस (इत्र) स्नान  10 ग्राम
9)विजया (भांग) स्नान 10 ग्राम
10अष्टगंध या चन्दन घिसा हुआ  स्नान 10 ग्राम
11)यज्ञ भस्म  स्नान एबम त्रिपुण्ड के लिए 50 ग्राम
12)गंगा जल् स्नान 100 ग्राम

अभिषेक के लिए 

 दूध ,गन्ने का रस ,या  जिस कामना के लिए करना है 

उसकी व्यबस्था करे--------------

8 चीजों से बनी भस्म शिवजी को लगानी चाहिए। 

शास्त्रों के अनुसार  8 चीज़ों को शुद्ध व पावन माना जाता है। 

1- गाय के गोबर कंडे 

2- बिल्व वृक्ष की लड़की 

3- शमी की लड़की 

4- पीपल की लड़की 

5- पलाश की लकड़ी 

6- बड़ (बरगद) की लकड़ी 

7- अमलता की लकड़ी

 8- बेर वृक्ष की लकड़ी।

ऐसे तैयार करें भस्म-
ऊपर बताई गई सभी वृक्षों की सुखी लकड़ियां एकत्रित करके उन्हें जलाकर उनकी भस्म बना लें। ध्यान रखें जब जब भस्म तैयार करें तो तो नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण तब तक करते रहें जब तक भस्म बनकर तैयार न हो जाए। 

बता दें ज्योतिष के अनुसार तैयार भस्म को शिवाग्नि कहा जाता है।

शिव अभिषेक सामग्री

शिव पूजन सामग्री 9893946810

सामग्री कम और ज्यादा कर सकते है )

============================
1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------3 गोले
३】अगरबत्ती------------------- 1पैकिट
४】कपूर------------------------- 50 ग्राम
५】केसर------------------------- 1ग्राम
६】चंदन पेस्ट ------------------ 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत ----------------- 11नग्
८】चावल-------------------- 03 किलो
९】अबीर-------------------------20 ग्राम
१०】गुलाल, -----------------100 ग्राम
११】अभ्रक-------------------20 ग्राम
१२】सिंदूर --------------------20 ग्राम
१३】रोली, -------------------50 ग्राम
१४】सुपारी, ( बड़ी)-------- 200 ग्राम
१५】नारियल ----------------- 05 नग्
१६】सरसो----------------------50 ग्राम
१७】पंच मेवा------------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)--------------- 50 ग्राम
१९】शकर--------------------0 1 किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)------------ 200 ग्राम
२१】इलायची (छोटी)-----------10ग्राम
२२】लौंग मौली-------------------10ग्राम
२३】इत्र की शीशी    1 नग 

24】रूई  मेडिकल 200 ग्राम

Ub

धतूरे के फल 

आक के फूल 

आक के फल 


अर्पित करने हेतु शिवजी को बस्त्र

मता जी को अर्पित करने हेतु

 सौ भाग्यवस्त्र

ब्राह्मण बस्त्र
जल कलश तांबे का मिट्टी का)


१】सफेद कपड़ा दो मीटर)
२】लाल कपड़ा (2मीटर)

3 पीला कपड़ा 2 मीटर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
दीपक
तुलसी दल
केले के पत्ते (यदि उपलब्ध हो तो
बन्दनवार
पान के पत्ते ---------11 नग
रुई 200     ग्राम

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
              स्नान सामग्री
1)गाय का दूध से स्नान  1 किलो
2)गाय का दही स्नान 500 ग्राम
3)गाय का घी स्नान 100 ग्राम
4)शहद स्नान 50 ग्राम
5)शकर स्नान 200 ग्राम 
6)पंचामृत स्नान 200 ग्राम
7) पांच प्रकार के फलो का रस  100 ग्राम
8)फूलो का रस (इत्र) स्नान  10 ग्राम
9)विजया (भांग) स्नान 10 ग्राम
10अष्टगंध या चन्दन घिसा हुआ  स्नान 10 ग्राम
11)यज्ञ भस्म  स्नान एबम त्रिपुण्ड के लिए 50 ग्राम
12)गंगा जल् स्नान 100 ग्राम

अभिषेक के लिए 

 दूध ,गन्ने का रस ,या  जिस कामना के लिए करना है 

उसकी व्यबस्था करे--------------

8 चीजों से बनी भस्म शिवजी को लगानी चाहिए। 

शास्त्रों के अनुसार  8 चीज़ों को शुद्ध व पावन माना जाता है। 

1- गाय के गोबर कंडे 

2- बिल्व वृक्ष की लड़की 

3- शमी की लड़की 

4- पीपल की लड़की 

5- पलाश की लकड़ी 

6- बड़ (बरगद) की लकड़ी 

7- अमलता की लकड़ी

 8- बेर वृक्ष की लकड़ी।

ऐसे तैयार करें भस्म-
ऊपर बताई गई सभी वृक्षों की सुखी लकड़ियां एकत्रित करके उन्हें जलाकर उनकी भस्म बना लें। ध्यान रखें जब जब भस्म तैयार करें तो तो नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण तब तक करते रहें जब तक भस्म बनकर तैयार न हो जाए। 

बता दें ज्योतिष के अनुसार तैयार भस्म को शिवाग्नि कहा जाता है।


2- बिल्व वृक्ष की लड़की 

3- शमी की लड़की 

4- पीपल की लड़की 

5- पलाश की लकड़ी 

6- बड़ (बरगद) की लकड़ी 

7- अमलता की लकड़ी

 8- बेर वृक्ष की लकड़ी।

ऐसे तैयार करें भस्म-
ऊपर बताई गई सभी वृक्षों की सुखी लकड़ियां एकत्रित करके उन्हें जलाकर उनकी भस्म बना लें। ध्यान रखें जब जब भस्म तैयार करें तो तो नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण तब तक करते रहें जब तक भस्म बनकर तैयार न हो जाए। 

बता दें ज्योतिष के अनुसार तैयार भस्म को शिवाग्नि कहा जाता है।



Wednesday, 19 February 2025

श्री राम जी के धनुष

श्रीराम जी के धनुष ....

प्रायः जनमानस श्रीराम के एक ही धनुष के बारे में जानते हैं, जिसका नाम 'कोदंड' था। 

वास्तव में श्रीराम ने जीवन में तीन धनुषों का प्रयोग किया। 

1) कोदंड:- इसका सामान्य अर्थ होता है  बाँस। अब यह तो तय है कि राम के जिस असाधारण भारी धनुष, जिसके बारे में उल्लेख मिलता है कि उससे छूटे बाण ने ताड़ के वृक्षों को भेद दिया था, सामान्य एक बाँस का बना तो नहीं होगा। हां, यह निश्चित है कि लचीलापन देने के लिए विशेष प्रकार के बाँस की खपच्चियों का प्रयोग अवश्य किया गया होगा लेकिन बिना धातुओं टुकड़ों के प्रयोग के बिना उसका इतना भारी व कठोर होना संभव नहीं। 
 ऐसा प्रतीत होता है कि इस धनुष का निर्माण श्रीराम ने वनवास की अवधि या अयोध्या में वनगमन से पूर्व किया था।
तीन नम्बर का चित्र कोदंड का प्रतीकात्मक रूप है। 

2)शार्ङ्ग :- इसका सामान्य अर्थ है 'सींग'। प्रागैतिहासिक काल से ही हिरनों के सीधे सींगों का भाले की नोंक के रूप में और मुड़े सींगों का धनुष बनाने के लिए उपयोग होता रहा था। कालांतर में जब आर्यों का प्रिय अस्त्र धनुष बन गया तो सींगों का धनुषों में प्रयोग परिष्कृत रूप में होने लगा, यहाँ तक कि हाथीदांत का प्रयोग भी शक्तिशाली धनुषों के बनाने में हुआ। श्रीराम इस धनुष का प्रयोग संभवतः राजकीय अवसरों पर करते थे। नजदीकी युद्ध में छोटे छोटे 'वैतस्तिक' बाणों के प्रयोग के लिए भी इसमें छोटी धनुरी जुड़ी रहती थी ताकि नजदीक आ गए शत्रु सैनिकों पर फुर्ती से छोटे बाण बरसाए जा सकते थे। 
यद्यपि उल्लेख तो नहीं है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि विष्णु का यह धनुष श्रीराम को महर्षि विश्वामित्र द्वारा दिया गया था।

दो नंबर का चित्र इसी धनुष का प्रतीकात्मक रूप है। 

3) वैष्णव:- यह वह धनुष है जिसका प्रयोग श्रीराम ने रावण से अंतिम युद्ध के समय किया। स्पष्टतः यह उस युग का आधुनिकतम धनुष था जिसे महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को प्रदान किया था। 

प्रत्यंचा:- श्रीराम के धनुषों की प्रत्यंचा भी अत्यंत विशिष्ट प्रकार की थी जो धनुषों के एक सिरे पर एक से ज्यादा लिपटी रहती थीं  ताकि प्रत्यंचा के कटने पर  दूसरी तुरंत चढ़ाई जा सके। 

पूरे योद्धा जीवन में उनकी प्रत्यंचा केवल दो बार कटी थी। 

इतनी मजबूती का कारण यह था कि प्रत्यंचा भैंसे की ताजी आंत में मूँज के धागे भर दिये जाते थे और आँत के सूखने पर  न केवल जबरदस्त लचीली होती थी बल्कि  अटूट भी होती थी। 

यह जरूरी भी था क्योंकि श्रीराम की भुजाएं बहुत लंबी थीं और वह छः फीट के धनुष पर प्रत्यंचा को बहुत पीछे तक तानते थे।
बाण के वेग का अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं। 

बाण:- 

1)नाराच:- यह अन्य धनुर्धारियों की तरह श्रीराम का प्रिय बाण था। चार नंबर पर है। 

2)अर्धचंद्र:- यह बड़े लक्ष्य और गर्दन को उड़ाने के लिए प्रयुक्त करते थे। 

3)क्षुरप्र:- चपटी धार का बाण। गर्दन के बगल से निकला और श्वासनली का.. आपको पता ही नहीं लगेगा कि आत्मा कब शरीर छोड़ गई।

4)वैतस्तिक:- 'बित्ते' भर के बाण। यह नजदीकी युद्ध में उपयोगी होते थे जो धनुष पर ही लगी छोटी धनुरी या कमान से छोड़े जाते हैं।

महाभारत काल में द्रोण, कृष्ण, प्रद्युम्न और अर्जुन के पास इन बाणों का संग्रह था। 

धृष्टद्युम्न के भयंकर आक्रमण से द्रोण इन्हीं बाणों से बच पाये थे। 

5) बिना फल के बाण :- इनका निर्माण प्रायः अघातक चोट व चेतावनी के लिए किया गया परंतु कुशल धनुर्धर के हाथों में यह भी जानलेवा सिद्ध होते थे। 

भरत के पास भी ऐसे बाणों का जिक्र मिलता है जो उनके अहिंसक व साधु स्वभाव के अनुरूप स्वाभाविक था। 

 महाभारत काल मे अभिमन्यु ने ऐसे ही बाण से एक राजा बसातीय का वध कर दिया था।

Friday, 3 January 2025

गणेश जी की आरती

मैं आरती तेरी गाऊं मेरे गणराज बिहारी।
मैं तुझको रोज मनाऊं ।
तुम  गोरा घर जाए’ शिव जी के मन को भाए,
कभी मेरे घर भी आओ मेरे गणराज बिहारी,
मैं आरती तेरी गाऊं मेरे गणराज बिहारी,

कोई छप्पन भोग जी मावे कोई लड्डू बन भोग लगावे,
मैं तो दूर्वा ले आया जीमो गणराज बिहारी,
मैं आरती तेरी गाऊं मेरे गणराज बिहारी ,

तुम एकदंत गणराया मैं शरण तुम्हारी या,
या अब राखो लाज हमारी मेरे गणराज बिहारी,
मैं आरती तेरी गाऊं मेरे गणराज बिहारी ,