श्लोक
स्त्रियो रत्नान्यथो विद्या धर्मः शौचं सुभाषितम्।
विविधानि च शिल्पानि समादेयानि सर्वतः।।
अर्थ-
जहां कहीं या जिस किसी से (अच्छे या बुरे व्यक्ति, अच्छी या बुरी जगह आदि पर ध्यान दिए बिना)
1. सुंदर स्त्री, 2. रत्न, 3. विद्या, 4. धर्म, 5. पवित्रता, 6. उपदेश तथा 7. भिन्न-भिन्न प्रकार के शिल्प मिलते हों, उन्हें बिना किसी संकोच से प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
1. रत्न रत्न बहुत प्रकार के होते हैं जैसे- मोती, पन्ना, माणिक, मूंगा, हीरा, पुखराज आदि। इनकी कीमत बहुत अधिक होती है। इनमें से कुछ रत्न ग्रह दोष को कम कर शुभ परिणाम देते हैं। हीरा भी एक बहुमूल्य रत्न है, लेकिन यह कोयले की खान में मिलता है। उसी प्रकार मोती व मूंगा समुद्र की गहराइयों से प्राप्त होता है। देखा जाए तो कोयले की खान व समुद्र की तलहटी को साफ-स्वच्छ स्थान नहीं कहा जा सकता, लेकिन फिर भी यहां से प्राप्त होने वाले रत्न बेशकीमती होते हैं और हम इन्हें धारण भी करते हैं। इसलिए मनु स्मृति में कहा गया है कि रत्न किसी भी स्थान से मिले, उसे लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।
2. विद्या मनु स्मृति के अनुसार, विद्या यानी ज्ञान जहां से भी, जिस किसी भी व्यक्ति से, चाहे वो अच्छा हो या बुरा लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। ज्ञान से हम अपने जीवन को नई दिशा दे सकते हैं। ज्ञान प्राप्त होने पर हमारे लिए कुछ भी पाना ज्यादा कठिन नहीं रह जाता, लेकिन इसके लिए जरूरी है उस ज्ञान को अपने चरित्र में उतारना। ज्ञान सिर्फ सुनने तक ही सीमित नहीं है, उसे अपने आचार-विचार, व्यवहार व जीवन में उतारने पर ही हम अपने लक्ष्य को आसानी से पा सकते हैं। ज्ञान ही हमें देश-दुनिया में लगातार हो रहे बदलावों के बारे में बताता है। इन बातों को जानकर ही हमारी मानसिकता भी बड़ी होती है। इसलिए विद्या जहां से भी मिले, उसे लेने का प्रयास करना चाहिए।
3. धर्म धर्म एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है धारण करना। धर्म का अर्थ बहुत विशाल है, इसे कुछ शब्दों में स्पष्ट करना मुश्किल है। धर्म हमें अपना काम जिम्मेदारी से करना सिखाता है। दूसरों की भलाई करना, किसी भी परिस्थिति में अपने चरित्र को बेदाग बनाए रखना, पूरी ईमानदारी से अपने परिवार का पालन-पोषण करना व हमेशा सच बोलना भी धर्म का ही एक रूप है। जहां कहीं से भी हमें सादा जीवन-उच्च विचार जैसे सिद्धांत मिले, उसे ग्रहण करने की कोशिश करनी चाहिए। यही धर्म का सार है।
4. पवित्रता पवित्रता का संबंध सिर्फ शरीर से ही नहीं बल्कि आचार-विचार, व्यवहार व सोच से भी है। जब तक हमारा व्यवहार व सोच पवित्र नहीं होंगे, हम जीवन में उन्नति नहीं कर सकते। इसलिए यदि हमें कोई कठिन लक्ष्य प्राप्त करना है तो हमें अपने विचार शुद्ध रखने होंगे। साथ ही, चरित्र यानी व्यवहार भी साफ रखना होगा। जब हमारा व्यवहार व मानसिकता पवित्र होगी, तभी हम बिना झिझक अपना काम जिम्मेदारी से कर पाएंगे और अपना लक्ष्य पाने में सफल भी होंगे। मनु स्मृति के अनुसार, जहां से हमें पवित्र यानी साफ विचार मिले, उसे तुरंत ग्रहण कर लेना चाहिए। यही पवित्र विचार हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करते हैं।
5. उपदेश यदि आप कहीं से गुजर रहे हों और कोई संत या महात्मा उपदेश दे रहे हों तो थोड़ी देर वहां रुकने में संकोच नहीं करना चाहिए। किसी संत का उपदेश आपको नया रास्ता दिखा सकता है। संतों के उपदेश में ही मन की शांति, लक्ष्य की प्राप्ति, परिवार की संतुष्टि व समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी के अहम सूत्र आपको मिल सकते हैं। जब आप संतों व महात्माओं के उपदेशों को अपने जीवन में उतारेंगे तो आपकी अनेक परेशानियां अपने आप ही समाप्त हो जाएंगी। इसलिए मनु स्मृति में कहा गया है कि जहां कहीं भी या जिस किसी से भी उपदेश मिले, बिना संकोच के उसे लेने का प्रयास करना चाहिए।
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