#दुर्गाष्टमी व्रत की विशेष जानकारी........
==============================
जिनको पुत्र संतानें हैं, वे दुर्गाष्टमी व्रत उपवास नहीं करें।जिनकी पुत्र संतानें नहीं हैं,वे दुर्गाष्टमी व्रत उपवास करें।
उस आलेख पर सभी सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों?क्या इसका कोई शास्त्रीय प्रमाण है? हमलोग परम्परा वश तो दुर्गाष्टमी उपवास व्रत करते आ रहे हैं। शास्त्र प्रमाण के आधार पर धार्मिक कृत्य करने चाहिए। इसी प्रमाण को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
(01)
सबसे पहले यह जान लिजिए कि #सप्तमी युक्त #अष्टमी व्रत नहीं करना चाहिए ।
#शरन्महाष्टमी पूज्या नवमी संयुता सदा।
सप्तमी संयुता नित्यं शोकसंतापकारिणीम्।।
सप्तमी युक्त अष्टमी शोक संताप देने वाली होती है। इसे शल्य कहा जाता है : ---
#सप्तमी कलया यत्र परतश्चाष्टमी भवेत्।
तेन शल्यमिदं प्रोक्तं पुत्र पौत्र क्षयप्रदम्।।
शल्य युक्त अष्टमी कंटक अष्टमी है , जो पुत्र पौत्रादि का क्षय करता है। आगे और भी स्पष्ट है : --
#पुत्रान्_हन्ति_पशून हन्ति राष्ट्र हन्ति सराज्यकम्।
हन्ति जातानजातांश्च सप्तमी सहिताष्टमी।।
सप्तमी सहित अष्टमी व्रत पुत्रों को नाश करती है , पशुओं को नाश करती है, राष्ट्र / देश तथा राज्य का नाश करती है। और , उत्पन्न हुए और न उत्पन्न हुए का नाश करती है।
#सप्तमी वेध संयुता यैः कृता तु #महाष्टमी ।
पुत्रदार धनैर्हीना भ्रमयन्तीह पिशाचवत्।।
सप्तमी वेध से युक्त महा - अष्टमी को करने से लोग इस संसार में पुत्र , स्त्री तथा धन से हीन होकर पिशाच के सदृश भ्रमण करते हैं तथा : ---
#सप्तमीं शैल्यसंयुक्तां मोहादज्ञानतोऽपि वा ।
महाष्टमीं प्रकुर्वाणो #नरकं प्रतिपद्यते।।
मोह - अज्ञान से शल्य युक्त / सप्ती से युक्त महाष्टमी को जो करता है , वह नरक में जाता है। इसलिए, स्पष्ट है कि सप्तमी युक्त अष्टमी उपवास व्रत नहीं करना चाहिए।
(02)
लेकिन , दुर्गाष्टमी उपवास किसे करना चाहिए और किसे नहीं करना चाहिए, यह जानना अत्यावश्यक है : ---
कालिका पुराण में स्पष्ट कहा गया है , जो निर्णय सिन्धु पृष्ठ संख्या 357 में उद्धृत है :---
#अष्टम्युपवाश्च पुत्रवाता न कार्यः।
उपवासं महाष्टम्यां पुत्रवान्न समाचरेत्।
यथा तथा वा पूतात्मा व्रतीं देवीं प्रपूज्येत्।।
अर्थात #अष्टमी तिथि में उपवास पुत्रवाला न करे। जैसे - तैसे पवित्र आत्मा वाला व्रती देवी की पूजा करे। यानि स्पष्ट है कि जिनके पुत्र संतान हैं वे लोग दुर्गाष्टमी को उपवास व्रत नहीं करें।
लेकिन, वैसे लोग जिनके पुत्र संतान नहीं हैं , वे सभी भक्त गण पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से दुर्गाष्टमी का उपवास व्रत करें। महाभागवत ( देवीपुराण ) अध्याय 46 श्लोक संख्या 30 एवं 31 में स्पष्टतः देवी का आदेश है :---
#महाष्टम्यां मम प्रीत्यै उपवासः सुरोत्तमाः।
कर्तव्यः पुत्रकामैस्तु लोकैस्त्रैलोक्यवासिभिः।।
स्वयं माँ भगवती कहती हैं कि मेरी संतुष्टि के लिए तीनों लोकों में रहने वाले लोगों को महाष्टमी के दिन पुत्र की कामना से उपवास करना चाहिए । ऐसा करने से उन्हें सर्वगुण सम्पन्न पुत्र की प्राप्ति अवश्य होगी।
अवश्यं भविता #पुत्रस्तेषां सर्वगुण समन्वितः।
लेकिन, उस दिन पुत्रवान लोगों को उपवास व्रत नहीं करना चाहिए :---
#पुत्रवद्भिर्न कर्तव्य उपवासस्तु तद्दिने।।
माँ भगवती जगत् जननी सब का कल्याण करें , यही प्रार्थना है।।
Gurudev
Bhubneshwar
9893946810
No comments:
Post a Comment