ज्योतिष समाधान

Tuesday, 25 November 2025

भूमि पूजन सामग्री

1】हल्दीः------------------20ग्राम
२】कलावा(आंटी)----------01गोले
३ धूप बत्ती--------------     1 पैकिट
४】कपूर----------------   10ग्राम
5) कच्चा सूत ------------ 01 छोटा गोला
6)उन ------------------ छोटा गोला
७】यज्ञोपवीत -------------   05नग्
८】चावल----------------- 500ग्राम
९】अबीर------------------10ग्राम
१०】गुलाल, ---------------20ग्राम
11) सरसों ------------------10रुपए की
१२】सिंदूर -------------------20ग्राम
१३】रोली, -------------------20 ग्राम
१४】गोल सुपारी, ( बड़ी)---  50 ग्राम
१५】नारियल ------------  3 नग्
१६】असली गूगल -----------20 ग्राम
१७】पंच मेवा--------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)------------ 50 ग्राम
१९】शकर-----------------100ग्रांम
२०】घृत (शुद्ध घी)---------  100 ग्राम
२१】इलायची (छोटी)--------05ग्राम
२२】लौंग -----------------05ग्राम
२३】इत्र की शीशी-------------1 नग्
२4】तांबे का लौटा 01
=============
25】दूर्वा
26】पुष्प 
27】हार मोगरा के फूल के  5
28】ऋतुफल पांच प्रकार के -----1 किलो
29) पान के पत्ते ,5

(30)मिट्टी का कलश (ढक्कन सहित)
(31)सप्त मृत्तिका (सात प्रकार की मिट्टी)
(31)गंगाजल, 
(32)गुलाब जल,
(33)हल्दी की गांठ,----------  05नग् 
(33) नारियल (पानी वाला ) बड़ा01नग 
(34)चांदी का नाग-नागिन जोड़ा,-------01
(34) चांदी का कछुआ, ---------01 नग 
(35)मछली चांदी की-----------01नग
(36)नवरत्न
(37) पंचधातु 
(38)वास्तु यंत्र---------------04
(39)लोहे की कीलें,-----------04
 (40)काले रंग के पत्थर----------01
(41) ईंटे ------------------09
लाख का टुकड़ा
सिर के वाल
किसी बच्चे का नाल केवल लड़का हो तो
खोटा सिक्का -------------01 नग
गोमती चक्र---------------05 नग 
कोड़ी------------------- 05 नग् 




41)तगाड़ी ....2
42)फडुआ ....2
43) गेंती........1


घर से उपलब्ध समान

44】लाल कपड़ा  या पीला  कपड़ा
1)आसन बैठने के लिये
2)चौकी2×2
3)थाली 2 पूजा के लिये 
4)कटोरी 5
5)हाथ पोछ्ने के लिये टाविल 
6)दूध
7)दही
8)माचिस
10)रुई
11)आटा  चोक पूरने  के लिये 100 ग्राम
12)प्रशाद  अनुमानित
13) घर की तुलसी की मिट्टी
14) घर से गणेश भगवान की मूर्ति
15)पूजा के लिये फुटकर पैसे
16) गाय का गोबर
17)आम के गुच्छे- 5 
18)गाय का मूत्र
19)गंगा जल
20)तुलसी दल 

Gurudev 
bhubneshwar
Parnkuti ashram
9893946810

Monday, 17 November 2025

गृह प्रवेश सामग्री


1】हल्दीः------------------20ग्राम
२】कलावा(आंटी)----------10गोले
३ धूप बत्ती--------------     1 पैकिट
४】कपूर----------------   100ग्राम
5) कच्चा सूत ------------ 01 छोटा गोला
6)उन ------------------ छोटा गोला
७】यज्ञोपवीत -------------   05नग्
८】चावल----------------- 10किलो ग्राम
९】अबीर------------------10ग्राम
१०】गुलाल, ---------------20ग्राम
11) सरसों ------------------10रुपए की
१२】सिंदूर -------------------50ग्राम
१३】रोली, -------------------20 ग्राम
१४】गोल सुपारी, ( बड़ी)---  500 ग्राम
१५】नारियल ------------  15 नग्
१६】असली गूगल -----------20 ग्राम
१७】पंच मेवा--------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)------------ 50 ग्राम
१९】शकर-----------------02किलोग्रांम
२०】घृत (शुद्ध घी)---------  02किलो ग्राम
२१】इलायची (छोटी)--------05ग्राम
२२】लौंग -----------------05ग्राम
२३】इत्र की शीशी-------------1 नग्
२4】तांबे का लौटा 01
     तीली का तेल -----------01 लीटर 
रंग लाल 
रंग पीला
रंग कला
रंग हरा
पीतांबरी  500 ग्राम
=============
25】दूर्वा
26】पुष्प 
27】हार मोगरा के फूल के  5
28】ऋतुफल पांच प्रकार के -----1 किलो
29) पान के पत्ते ,5

(30)मिट्टी का कलश (ढक्कन सहित)
(31)सप्त मृत्तिका (सात प्रकार की मिट्टी)
(31)गंगाजल, 
(32)गुलाब जल,
(33)हल्दी की गांठ,----------  05नग् 
(33) नारियल (पानी वाला ) बड़ा01नग 
(34)चांदी का नाग-नागिन जोड़ा,-------01
(34) चांदी का कछुआ, ---------01 नग 
(35)मछली चांदी की-----------01नग
(36)नवरत्न
(37) पंचधातु 
(38)वास्तु यंत्र---------------04
(39)लोहे की कीलें,-----------04
 (40)काले रंग के पत्थर----------01
(41) लाख का टुकड़ा
 (42) सिर के वाल
 (43) किसी बच्चे का नाल केवल लड़का हो तो
  (44) खोटा सिक्का -------------01 नग
(45)गोमती चक्र---------------05 नग 
(46)कोड़ी------------------- 05 नग् 




41) कपड़ा लाल -----01 मीटर
42) कपड़ा सफेद-------02मीटर
43) कपड़ा पीला -------- 03मीटर
    कपड़ा हरा -----------01 मीटर 
44】 पीला कला---------03 मीटर

घर से उपलब्ध करने वाला सामान 
1)आसन बैठने के लिये
2)चौकी2×2
3)थाली 2 पूजा के लिये 
4)कटोरी 5
5)हाथ पोछ्ने के लिये टाविल 
6)दूध
7)दही
8)माचिस
10)रुई
11)आटा  चोक पूरने  के लिये 100 ग्राम
12)नया चादर 01
13) घर की तुलसी की मिट्टी
14) घर से गणेश भगवान की मूर्ति और लड्डू गोपाल
15)पूजा के लिये फुटकर पैसे
16) गाय का गोबर
17)आम के गुच्छे-45 
18)गाय का मूत्र
19)गंगा जल
20)तुलसी दल 
Gurudev 
bhubneshwar
Parnkuti ashram
9893946810

Sunday, 16 November 2025

विबाह के लिए लगने वाली आबश्यक सामग्री लिस्ट

पर्णकुटी ज्योतिष केंद्र
विबाह के लिए लगने वाली आबश्यक सामग्री लिस्ट
   ------ //-- (   पीली चिट्टी पूजा के लिए  )--- //--------
१】श्री गणेश जी
२】पांच हल्दी की गाँठ
३】पांच गोलसुपारि
४】 पिले चावल
५】गोबर के गणेश जी
६】बतासे
७】  दूर्वा
८】कलश एक मिटटी का
९】दीपक
१०】रुई
११】माचिस
पूजा की थाली सामग्री सहित 
नाई(खबॉस )को किराया बतौर दक्षिणा
============================

बत्तीसी  झिलाने की सामग्री-

32 लड़डू,
32 रुपया
मेवा,
शकर,
चावल,
गुड़ की भेली,
लाल कपड़ा,
हार,
फुल,
बताशा,
नारियल
और जवारी का रुपया।

विधि-

इसमे भाई पटिये पर बैठता है और बहन उसकी गोद मे पूरा सामान रख़कर आरती उतारती है सभी भाई अपनी बहन को साड़ी और जीजाजी को जवारी देकर बिदा करते है।

======>>>>>>>======>>>>>>>>>

सभी प्रकार की जटिल समस्याओ के समाधान हेतु   शीघ्र सम्पर्क करे एबम  अपनी कुंडली दिखाकर  उचित मार्ग दर्शन प्राप्त करे ।

सम्पर्क सूत्र

पंडित जी श्री परमेस्वर दयाल जी शास्त्री

तिलकचोक मधुसुदनगण

मोबाइल नंबर 09893397835

(पूजन समग्री कम  और  ज्यादा कर  सकते है )

============================

श्री गणेश पूजन  सहित अन्य पूजन के लिए
सभी पूजन में उपयोग के लिए यही सामग्री में से ले सकते है
०】आटा हल्दी  चोक पुरने के लिए
1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------------100 ग्राम
३】अगरबत्ती-------------------     3पैकिट
४】कपूर-------------------------  - 50 ग्राम
५】केसर-------------------------   -1डिव्वि
६】चंदन पेस्ट --------------------- 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत ---------------------   11नग्
८】चावल-------------------------- 05 किलो
९】अबीर-----------------------------50 ग्राम
१०】गुलाल, ----------------------10 0ग्राम
११】अभ्रक---------------------------10ग्राम
१२】सिंदूर ------------------------100 ग्राम
१३】रोली, -------------------------100ग्राम
१४】सुपारी, ( बड़ी)-----------  200 ग्राम
१५】नारियल ----------------------  11 नग्
१६】सरसो--------------------------50 ग्राम
१७】पंच मेवा---------------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)------------------ 50 ग्राम
१९】शकर-------------------------0 1किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)--------------  01किलो
२१】इलायची (छोटी)--------------10ग्राम
२२】लौंग मौली---------------------10ग्राम
२३】इत्र की शीशी--------------------1 नग्
२४】तिली--------------------------२००ग्राम
२५】जौ-----------------------------१००ग्राम
२६】माचिस -------------------------१पैकिट
२७】रुई-------------------------------२०ग्राम
२८】नवग्रह समिधा------------------१पैकेट
२९】धुप बत्ती ------------------------२पैकिट
३०】लाल कपड़ा --------------------२मीटर
३१】सफेद कपडा-------------------२मीटर
३२】समिधा हवन के लिए ---------५किलो
33) तिली ------- ---------------------1किलो
34)जौ-----------------------------200 ग्राम

=============================

                     अन्य सामग्री

१】पान
२】 पुष्प
३】पुष्पहार
४】दूर्वा
५】विल्वपत्र
६】दोना गड्डी
७】बताशे या प्रशाद
८】फल
९】आम के पत्ते
१०】समिधा हवन के लिए
======>>>>>>>>>>>>>>=========

           माता पूजन सामग्री

१】झंडियां लाल
२】पूड़ी
३】ताव
४】खारक
५】बदाम
=========>>>>>>>>>>>==========

               मंडप पूजन सामग्री

१】मानक खम्भ
२】पटली लकड़ी की
३】नींव में रखने का सामान
४】जैसे  लाख का टुकड़ा
५】सर के वाल
६】कोयला
=============================    

=============================

अगर  गंगाजली पूजन  हो तो ---------कही कही होती है
ऊपर दी गयी पूजा  सामग्री में से लेबे

१】खाजा
२】खारक
३】वादाम
४】लाल कपड़ा 3 मीटर
५】श्री फल (नारियल)
==========>>>>>>>>=>=>>=======

          जनेऊ (यज्ञनोपवित) संस्कार

१】मूँज की जनेऊ
२】खड़ाऊ
३】डण्डा(दंड)
४】भिक्षा पात्र "कमण्डल
५】गुरुपूजन की सामग्री
६】जैसे =बस्त्र नारियल जनेऊ गोलसुपारी आदि
======>>>>>>>>>======>>>>>>>==

१】बर के निमित्त बस्त्र
२】फल
३】नारियल
४】आभूषण आदि
५】जनेऊ
=============================
गनाना 
पूजन सामग्री ऊपर दी गयी  उसी में से पूजन थाली तैयार होगी
लड़के वालो की तरफ से दुल्हन के निमित्त
१】 बस्र
२】आभूषण श्रृंगार दानी
३】कुलदेवी प्रतिमा टिपारी
४】मोहर दुल्हन के सर पर बाँधने का
५】पिछौड़ा 
६】सिंधोडा
७】सिंधोड़ि
८】कंकण
९】 बतासे
१०】नारियल या नारियल गोला
11)तस्वीर राम विबाह शिव विबाह
12)रगवारै के लोटा
=======>>>>>>>>>======>>>>>>>>
फेरे के समय  लड़की वालों के यहाँ। पूजन सामग्री  ऊपर दी है उसके
अलावा

१】लाजा
२】सूप
३】मधुपर्क
४】हथलेवा
५】सिंदुर्दानी
६】डाभ
७】मधुपर्क 
८】गुड़
९】बतासे
१०】हल्दी पिसी पॉब पुजाई के लिए
११】समिधा हवन के लिए फेरे के समय
११】विछुड़ी

संपर्क
गुरुदेब भुबनेश्वर
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
मो।९८९३९४६८१०

Saturday, 8 November 2025

दुर्गा अष्टमी

#दुर्गाष्टमी व्रत की विशेष #जानकारी ...........
==============================
जिनको पुत्र संतानें हैं, वे दुर्गाष्टमी व्रत #उपवास नहीं करें। जिनकी पुत्र संतानें नहीं हैं,वे दुर्गाष्टमी व्रत उपवास करें।
उस आलेख पर सभी सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों?क्या इसका कोई #शास्त्रीय प्रमाण है? हमलोग परम्परा वश तो दुर्गाष्टमी उपवास व्रत करते आ रहे हैं। शास्त्र प्रमाण के आधार पर धार्मिक कृत्य करने चाहिए।
इसी प्रमाण को यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
सबसे पहले यह जान लिजिए कि सप्तमी युक्त #अष्टमी व्रत नहीं करना चाहिए.............
शरन्महाष्टमी पूज्या नवमी संयुता सदा।
सप्तमी संयुता नित्यं शोकसंतापकारिणीम्।।
सप्तमी युक्त अष्टमी शोक संताप देने वाली होती है। इसे शल्य कहा जाता है : ---
सप्तमी कलया यत्र परतश्चाष्टमी भवेत्।
तेन शल्यमिदं प्रोक्तं पुत्र पौत्र क्षयप्रदम्।।
शल्य युक्त #अष्टमी कंटक अष्टमी है , जो पुत्र पौत्रादि का क्षय करता है। आगे और भी स्पष्ट है : -- 
#पुत्रान् हन्ति पशून हन्ति राष्ट्र हन्ति सराज्यकम्।
हन्ति जातानजातांश्च सप्तमी सहिताष्टमी।।
सप्तमी सहित अष्टमी व्रत पुत्रों को नाश करती है , पशुओं को नाश करती है, राष्ट्र / देश तथा राज्य का नाश करती है। और , उत्पन्न हुए और न उत्पन्न हुए का नाश करती है।
सप्तमी वेध संयुता यैः कृता तु महाष्टमी ।
पुत्रदार धनैर्हीना भ्रमयन्तीह पिशाचवत्।।
#सप्तमी वेध से युक्त महा - अष्टमी को करने से लोग इस संसार में पुत्र , स्त्री तथा धन से हीन होकर पिशाच के सदृश भ्रमण करते हैं तथा : ---
सप्तमीं शैल्यसंयुक्तां मोहादज्ञानतोऽपि वा ।
महाष्टमीं प्रकुर्वाणो नरकं प्रतिपद्यते।।
मोह - अज्ञान से शल्य युक्त / सप्ती से युक्त महाष्टमी को जो करता है , वह नरक में जाता है। इसलिए, स्पष्ट है कि सप्तमी युक्त #अष्टमी उपवास व्रत नहीं करना चाहिए। 

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
(02)
लेकिन , #दुर्गाष्टमी उपवास किसे करना चाहिए और किसे नहीं करना चाहिए, यह जानना अत्यावश्यक है : ---
कालिका पुराण में स्पष्ट कहा गया है , जो निर्णय सिन्धु पृष्ठ संख्या 357 में उद्धृत है :---
अष्टम्युपवाश्च पुत्रवाता न कार्यः।
उपवासं महाष्टम्यां पुत्रवान्न समाचरेत्।
यथा तथा वा पूतात्मा व्रतीं देवीं प्रपूज्येत्।।
अर्थात अष्टमी तिथि में उपवास #पुत्रवाला न करे। जैसे - तैसे पवित्र आत्मा वाला व्रती देवी की पूजा करे। यानि स्पष्ट है कि जिनके पुत्र संतान हैं वे लोग दुर्गाष्टमी को उपवास व्रत नहीं करें।
लेकिन, वैसे लोग जिनके #पुत्र संतान नहीं हैं , वे सभी भक्त गण पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से दुर्गाष्टमी का उपवास व्रत करें। महाभागवत ( देवीपुराण ) अध्याय 46 श्लोक संख्या 30 एवं 31 में स्पष्टतः देवी का आदेश है :--- 
महाष्टम्यां मम प्रीत्यै उपवासः सुरोत्तमाः। 
कर्तव्यः पुत्रकामैस्तु लोकैस्त्रैलोक्यवासिभिः।।
स्वयं माँ #भगवती कहती हैं कि मेरी संतुष्टि के लिए तीनों लोकों में रहने वाले लोगों को महाष्टमी के दिन पुत्र की कामना से उपवास करना चाहिए । ऐसा करने से उन्हें सर्वगुण सम्पन्न पुत्र की प्राप्ति अवश्य होगी। 
अवश्यं भविता पुत्रस्तेषां सर्वगुण समन्वितः।
लेकिन, उस दिन पुत्रवान लोगों को उपवास व्रत नहीं करना चाहिए :---
#पुत्रवद्भिर्न कर्तव्य उपवासस्तु तद्दिने।।
माँ भगवती जगत् जननी सब का कल्याण करें , यही #प्रार्थना है।।

                   

Monday, 27 October 2025

दीपावली पर पांच दिन के मुहूर्त 2025

गुरुदेव भुवनेश्वर जी महाराज पर्णकुटी आश्रम गुना के अनुसार पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है और समापन भाई दूज पर। इन पांच दिनों में मुख्य आकर्षण माता महालक्ष्मी की पूजा होती है, जो कार्तिक अमावस्या की रात में की जाती है। इस दिन लोग घर-आंगन में दीप जलाकर अंधकार को दूर करते हैं और धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। आइए जानते हैं, इस साल धनतेरस, छोटी दिवाली, महालक्ष्मी पूजा, गोवर्धन पूजा और भाई दूज के शुभ मुहूर्त 
 इस साल धनतेरस शनिवार 18 अक्टूबर को है।

त्रयोदशी के दिन क्षीर सागर से प्रकट हुयीं थीं तथा उन्होंने दीवाली के दिन अपने पति के रूप में भगवान विष्णु का वरण किया था। इसीलिये दीवाली अमावस्या को धन और समृद्धि की देवी को प्रसन्न करने हेतु सर्वाधिक उपयुक्त दिन माना जाता है। इस दिन लोहे के सामान नहीं खरीदना चाहिए गुरुदेव भुवनेश्वर जी के अनुसार इस दिन धातु खरीदना चाहिए जैसे सोना, चांदी तांबा पीतल आदि लोहे के बरतन भी नहीं खरीदना चाहिए 

सभी प्रकार की खरीदारी का शुभ समयः दोपहर 12:00बजे से दोपहर 03:00 बजे तक
 एवं अभिजित मुहूर्त 11:43 से 12:43 तक
 विजय मुहूर्त के अनुसार 
अपरान्ह काल 02:01 बजे से 02:43 तक शुभ रहेगा
 धनतेरस पर सोना, चांदी, पीतल, तांबे के बर्तन, झाडू, गोमती चक्र, सूखा धनिया, नमक और लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, घर की सजावट की वस्तुएँ खरीदना बहुत शुभ माना जाता है।
 X क्या न खरीदेंः धनतेरस पर चाकू, कैंची, पिन या कोई भी धारदार वस्तु खरीदना अशुभ माना जाता है।



धनतेरस पर शाम के समय भगवान धन्वंतरि, कुबेर महाराज और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। 


त्रयोदश्यां तु या रात्रिः शनिवारे विशेषतः।
धन्वन्तरिप्रसादेन दरिद्र्यं तस्य नश्यति॥”

अर्थात —
जब त्रयोदशी तिथि (धनतेरस) शनिवार को आए,
तो उस दिन धन्वंतरि पूजन से दरिद्रता सदा के लिए नष्ट हो जाती है।


शनिवारे जगद्धात्रि कोट्यावृत्तिफलं ध्रुवम्॥” 


त्रयोदश्यां यमदीपं तु कुर्यादायुर्यमोदितम्।
दारिद्र्यनाशनं सर्वं सौभाग्यं तत् प्रयच्छति॥



अर्थ:
कार्तिक मास की त्रयोदशी (धनतेरस) के दिन यदि यमराज के लिए दीपदान किया जाए,
तो वह आयु और सौभाग्य प्रदान करता है तथा दारिद्र्य का नाश करता है।


---

🌕 २. धर्मसिंधु (दीपमालिका विधिः)

> धनत्रयोदश्यां दीपदानं यमदीपं विशेषतः।
कृत्वा प्रातःस्नानसमये धनं धान्यं च वर्धते॥



अर्थ:
धनत्रयोदशी के दिन दीपदान (विशेषकर यमराज हेतु) करने से धन और धान्य की वृद्धि होती है।


---

🌕 ३. कालिकापुराण (दीपदान फलवर्णन)

> यः कुर्याद् दीपदानं तु धनत्रयोदश्यां निशि।
तस्य धन्यं च आयुश्च भवेत् संततिवर्धनम्॥



अर्थ:
जो धनत्रयोदशी की रात्रि में दीपदान करता है,
उसका धन, आयु और संतति (वंश) तीनों बढ़ते हैं।





धनतेरस पर मृत्यु के देवता यमराज का सम्मान भी किया जाता है।
 शाम के समय घर के बाहर दक्षिण दिशा में चौमुखी दीपक जलाकर यमराज से लंबी आयु की कामना की जाती है।

त्रयोदशी तिथि आरंभ: 18 अक्टूबर दोपहर 12:18 बजे

त्रयोदशी तिथि समाप्त: 19 अक्टूबर दोपहर 1:51 बजे

दीपदान समय:::::::::::

(1)धनतेरस पूजा मुहूर्त: शाम 7:16 से 8:20 बजे तक  शुभ रहेगा
(2)प्रदोष काल: सायंकाल 5:48  –रात्रि  8:20 तक शुभ रहेगा

(3)वृषभ लग्न :सायंकाल 7:16 – रात्रि 9:11 तक शुभ रहेगा 

++++++++++++++++++++++++++++

भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर पर विजय का प्रतीक। 
 2025 में छोटी दिवाली सोमवार 19 अक्टूबर को पड़ेगी।

अभ्यंग स्नान मुहूर्त - प्रात: 05:13 से प्रात: 06:25  

नरक चतुर्दशी के दिन चन्द्रोदय का समय - : प्रात:05:13 

अभ्यंग स्नान महत्व
शास्त्रों के अनुसार, नरक चतुर्दशी पर सूर्योदय के पूर्व शरीर पर उबटन लगाकर स्नाने करने की प्रक्रिया को अभ्यंग स्नान कहा जाता है. जिसमें हल्दी, दही, तिल का तेल, बेसन, चंदन, जड़ी-बूटियों का लेप किया जाता है. इस लेप से पूरे शरीर की मालिश की जाती है.

+++++++++++++++++++++++++++++

दिवाली का आवश्यक अंग, श्राद्ध कर्म भी है जोकि 20 तारीख़ को कुतुप काल में संभव नहीं है इसलिए 20 में कर्म का लोप हो रहा है। इस स्थिति में 20 में  दिवाली मनाए और 21 में अभ्यंग स्नान, श्राद्ध और पूर्वजो को मशाल प्रज्वलित करके पितरों को मार्ग का दर्शन अवश्य करायें। जिससे शात्र विधि पूरी हो सके
दीपावली शाम को लक्ष्मी और गणेश पूजा होती है। 2025 में महालक्ष्मी पूजन सोमवार 20 अक्टूबर को होगा।

अमावस्या तिथि आरंभ:

 20 अक्टूबर दोपहर 3:44 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त:

 21 अक्टूबर शाम 5:54 बजे


गुरुदेव भुवनेश्वर जी महाराज पर्णकुटी वालो के अनुसार अमावस्या की रात स्थिर लग्न में महालक्ष्मी की पूजा करने से घर में मां लक्ष्मी की स्थिरता बनी रहती है। वैसे तो चार स्थिर लग्न है, 

वृष, सिंह, वृश्चिक, और कुंभ।

  1. वृश्चिक लग्न - दीवाली के दिन प्रातःकाल वृश्चिक लग्न प्रबल होता है। मन्दिरों, अस्पतालों, होटलों, विद्यालयों और महाविद्यालयों के लिये वृश्चिक लग्न के समय लक्ष्मी पूजा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। विभिन्न टीवी और फिल्म कलाकारों, शो एन्करों, बीमा अभिकर्ताओं तथा जो लोग सार्वजनिक मामलों एवं राजनीति से जुड़े हैं, उन्हें भी वृश्चिक लग्न के दौरान देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिये।
  2. कुम्भ लग्न - दीवाली के दिन मध्यान्ह के समय कुम्भ लग्न प्रबल होता है। जो रोगग्रस्त एवं ऋणग्रस्त हैं, भगवान शनि के दुष्प्रभाव से मुक्ति प्राप्त करने के इच्छुक हैं, जिनके व्यापार में धन हानि हो रही है तथा व्यापार में भारी ऋण में है, उनके लिये कुम्भ लग्न में लक्ष्मी पूजा करना उत्तम होता है।
  3. वृषभ लग्न - दीवाली के दिन सायाह्नकाल में वृषभ लग्न प्रबल होता है। गृहस्थ, विवाहित, सन्तानवान, मध्यम वर्गीय, निम्न वर्गीय, ग्रामीण, किसान, वेतनभोगी तथा जो सभी प्रकार के व्यवसायों में संलिप्त व्यापारी हैं, उनके लिये वृषभ लग्न लक्ष्मी पूजा का सर्वोत्तम समय है। वृषभ लग्न को दीवाली पर लक्ष्मी पूजा हेतु सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है।
  4. सिंह लग्न - दीवाली के दिन मध्य रात्रि के समय सिंह लग्न प्रबल होता है। सिंह लग्न का मुहूर्त, साधु-सन्तों, सन्यासियों, विरक्तों एवं तान्त्रिकों के लिये लक्ष्मी पूजा एवं देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम मुहूर्त होता है।
Settingलक्ष्मी पूजा मुहूर्त स्थिर लग्न पर आधारित गुना, मध्यप्रदेश, भारत के लिये

इनमें से किसी भी  लग्न का उपयोग लक्ष्मी पूजा व्यापार पूजा में कर सकते है

(1)वृश्चिक लग्न मुहूर्त 
प्रात:- 08:28 से 10:45 तक

(2)कुम्भ लग्न मुहूर्त
 (अपराह्न) - 03:44 से 04:06 

(3)वृषभ लग्न मुहूर्त
 (सन्ध्या) - 07:14 से 09:12 

(4)निशिता मुहूर्त: रात 11 बजकर  41 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक

(5)सिंह लग्न मुहूर्त
 (मध्यरात्रि) - 01:43  से 03:56 21 अक्टूबर 



चोघडिया, मुहूर्त दुकान फैक्ट्री व्यापार के लिए उपयोग कर सकते हो

प्रात: काल अमृत 06:22 से 07:48 शुभ

प्रात: काल  शुभ 09:14 से 10:40 शुभ

मध्यान्ह काल चर 01:31 से 02:57 शुभ

दोपहर      लाभ 02:57 से- 04:23 शुभ

सायंकाल।  अमृत 04:23 से 05:48 शुभ

संध्याकाल लक्ष्मी पूजा के लिए विशेष मुहूर्त

++++++++++++++++++++++++++++

दिन ओर रात्रि के संक्रमण काल को गो धूली बेला कहते है

(1)गोधूली मुहूर्त सायंकाल 5:50से सायंकाल 06:15 तक

(2)लक्ष्मी पूजा मुहूर्त: शाम 7:08 से 8:18 बजे तक 

(3)प्रदोष काल: सायंकाल 5:46  –से  रात्रि 8:18  तक

4)वृषभ काल: सायंकाल 7:14से – रात्रि 9:012 अति शुभ मुहूर्त

+++++++++++++++++++++++++++++

प्रदोष काल कब होता है

(1)प्रदोषोऽस्तसमयादूर्ध्वं घटिकाद्वयमिष्यते।त्र्यंशेन तस्य कालस्य यः पूज्यः स प्रदोषकः

अस्त (सूर्यास्त) के समय से ऊपर (बाद में) दो घटी का जो समय होता है, वही प्रदोषकाल कहलाता है। उस काल के तृतीयांश (एक तिहाई भाग) में जो लक्ष्मी की पूजा की जाती है, वही प्रदोषपूजा मानी जाती है।

(2)सूर्यास्तं यावत् कालं प्रदोषः संप्रकीर्तितः।

तस्य तृतीयभागस्थे पूजां कुर्यात् प्रदोषिकाम्॥

(3)अस्ताचलगतादर्कात् पूर्वं द्विघटिकापर्यन्तं च प्रदोषकालः।

अथास्तमितभानोरनन्तरं द्विघटीकान्तः स प्रदोषः परिकीर्तितः

जब सूर्य अस्ताचल (पश्चिम पर्वत) की ओर अग्रसर होता है, तो सूर्यास्त से दो घटी (लगभग 48 मिनट) पहले से लेकर सूर्यास्त के दो घटी बाद तक का जो काल होता है, वही प्रदोषकाल कहलाता है।

➡️ सूर्यास्त से 48 मिनट पूर्व आरंभ होकर

➡️ सूर्यास्त के 48 मिनट बाद तक

कुल चार घटी (लगभग 1 घंटा 36 मिनट) का काल प्रदोषकाल माना गया है।

+++++++++++++++++++++++++++++

प्रतिपदा तिथि आरंभ: 21 अक्टूबर शाम 5:54 बजे

प्रतिपदा तिथि समाप्त: 22 अक्टूबर शाम 8:16 बजे

(1)गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त: 6:26 से प्रात:  09:14तक

(2)प्रात: काल 10:39से से 12:05 तक 

सायाह्नकाल मुहूर्त: 3:29 – से सायंकाल 5:44 

+++++++++++++++++++++++++++

भाई दूज:  भाई दूज गुरुवार 23 अक्टूबर को है।

द्वितीया तिथि आरंभ: 22 अक्टूबर रात 8:16 बजे

द्वितीया तिथि समाप्त: 23 अक्टूबर रात 10:46 बजे

प्रात: काल 10;39से अपरान्ह 02:56 तक

+++++++++++++++++++++++++++++गुरुदेव 

भुवनेश्वर जी महाराज 
पर्णकुटी आश्रम गुना 
9893946810

एकादशी निर्णय 2025

कार्तिक शुक्ल (हरिप्रबोधिनी) एकादशी व्रत कब करें??
जानिए शास्त्रीय समाधान, 
इस वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वादशी का क्षय हुआ है। इस स्थिति में धर्मशास्त्र निर्णयानुसार स्मार्त्त (सभीगृहस्थी) लोगों को पहिली दशमीविद्धा एकादशी वाले दिन 1 नवम्बर, 2025 शनिवार को तथा वैष्णवों (संन्यासी, विधवा स्त्री, वानप्रस्थ और वैष्णव सम्प्रदाय वाले) को 2 नवम्बर, 2025 के दिन उपवास करना चाहिए। यहाँ आगे स्पष्टीकरण दे रहे हैं-'धर्मसिन्धुकार' अनुसार एकादशी तिथि मुख्यतः दो प्रकार की होती है- (i) विद्धा और (ii) शुद्धा। (i) सूर्योदयकाल में दशमी का वेध हो अथवा अरुणोदयकाल (सूर्योदय से लगभग 4 घड़ी पूर्व) में एकादशी तिथि दशमी द्वारा विद्वा हो, तो वह (एकादशी) विद्वा कहलाती है। (ii) अरुणोदयकाल में दशमी तिथि के वेध से रहित एकादशी शुद्धा मानी जाती है।
प्रायः सभी शास्त्रों में दशमी से युक्त एकादशी व्रत करने का निषेध माना गया है। परन्तु द्वादशी का क्षय हो जाने पर स्मार्तों (गृहस्थियों) को दशमीयुता एवं वैष्णव सम्प्रदाय वालों को द्वादशी-त्रयोदशीयुता एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। पद्मपुराण अनुसार भी-
एकादशी द्वादशी च रात्रिशेषे त्रयोदशी।
उपवासं न कुर्वीत पुत्रपौत्रसमन्वितः ।।' उपरोक्त प्रमाणानुसार 11, 12, 13 तिथियों से मिश्रित दिन में स्मार्तों (गृहस्थियों)
के व्रत का निषेध और वैष्णवों के व्रत का विधान है। 'वृद्धशातातप' का भी यहाँ वचन है-'दशम्यैकादशीविद्धा द्वादशी च क्षयं गता। क्षीणा सा द्वादशी ज्ञेया नक्तं तु गृहिणः स्मृतम् ।..... गृहिणः पूर्वत्रोपवासः ।।'
ध्यान दें-यहाँ धर्मशास्त्रों में सूर्योदयवेधवती दशमी के दिन स्मार्तों को व्रत करने की आज्ञा दी है, जोकि कण्वस्मृति के सामान्य नियम 'उदयोपरि विद्धा तु दशम्यैकादशी यदि। दानवेभ्यः प्रीणनार्थं दत्तवान् पाकशासनः ।।' के बिल्कुल विरुद्ध है। परन्तु शास्त्रों द्वारा स्मार्तों के लिए त्रयोदशी में पारणा भी सर्वथा वर्जित मानी गई है। यदि द्वादशी तिथि के क्षय की स्थिति में स्मार्तों (गृहस्थियों) तथा वैष्णवों का व्रत एक ही दिन कर दिया जाए तो स्मार्तों को भी व्रत की पारणा त्रयोदशी में करने की स्थिति आ पड़ेगी।
इसीलिए निर्णयसिन्ध में 'ऋष्यश्रृंग' ने अन्य विकल्प के अभाव में तथा जब स्मार्तों को त्रयोदशी में पारणा करने की नौबत आ पड़े तब दशमीमिश्रिता एकादशी में ही व्रत करने की अनुमति दी है-
'पारणाहे न लभ्येत द्वादशी कलयाऽपि चेत् ।
तदानीं दशमीविद्वाऽपि-उपोष्यै-एकादशी तिथिः ।।' 
इस प्रकार उपरोक्त शास्त्र-विवेचन से पाठक समझ गए होंगे कि इस वर्ष एकादशी-द्वादशी-त्रयोदशी-इन तिथियों का एकत्र (एक ही वार में संगम) होने के कारण स्मार्तों (गृहस्थियों) का 'देवप्रबोधिनी एकादशी व्रत' विशेष नियमानुसार 1 नवम्बर, 2025 ई. को सूर्योदय-वेधवती दशमी के दिन शनिवार को लिखा गया है, जो सर्वथा शास्त्रीय है, जबकि वैष्णवों का व्रत 2 नवम्बर, रविवार को होगा।
भीष्मपंचक प्रारम्भ/समाप्त (1 से 5 नवम्बर)
कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक का काल (अवधि) 'भीष्मपंचक' कहलाता है। शास्त्रों में भीष्मपंचक व्रत का अनुष्ठान केवल पाँच दिन (का. शु. ११ से पूर्णिमा तक) निर्दिष्ट है। इन पाँच दिनों में व्रताचरणपूर्वक पूर्वाण में विष्णुपूजा और मध्याह्न में भीष्मपितामह के लिए एकोद्दिष्ट श्राद्ध किया जाता है। यदि शुद्धा एकादशी से उदयकालिक पूर्णिमा तक की अवधि में कोई तिथि क्षय हो जाए और भीष्मपंचकों के दिनों की संख्या चार ही रह जाए, तब शास्त्रकारों ने यह परामर्श दिया है कि दशमीविद्धा एकादशी से ही यह व्रत प्रारम्भ करके शुद्ध (जिसमें चतुर्दशी का वेध न हो) उदयकालिक पूर्णिमा के दिन ही इसे समाप्त कर लेना चाहिए। इसी प्रकार, यदि इन पाँच तिथियों में से किसी एक तिथि की वृद्धि हो जाने से भीष्मपंचकों के 6 दिन बनते हो, तो शुद्ध एकादशी वाले दिन से प्रारम्भ करके चतुर्दशी-विद्धा, पूर्णिमा के दिन ही भीष्मपंचकों को समाप्त करना चाहिए। इस बारे 'धर्मसिन्धु' का वचन है-
"एकादश्यादि-दिनपंचके भीष्मपंचकव्रतमुक्तम्। तच्च शुद्धेकादश्यामारम्य चतुर्दश्यविद्वौदयिक-पौर्णमास्यां समापनीयम्। यदि शुद्धेकादश्यमारम्भे क्षयवशेन पौर्णमास्यां पंचदिनात्मकव्रतसमाप्तिर्न घटते, तदा विर्द्धकादश्यामपि आरम्भः ।।"
इस वर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष में द्वादशी का क्षय हो जाने से भीष्मपंचक के दिन केवल चार ही बच रहे हैं। अतः उपरोक्त नियमानुसार यहाँ दशमीविद्धा एकादशी (1 नवम्बर, 2025 ) से भीष्मपंचक का आरम्भ माना गया है। स्पष्ट है, इससे पूर्णिमा तक के दिन पाँच हो गए हैं।
तुलसी विवाह (2 नवम्बर, रविवार)
कार्तिक शुक्ल एकादशी (हरिप्रबोधिनी एकादशी) की पारणा वाले दिन प्रबोधोत्सव मनाया जाता है। इसी दिन अथवा इससे अग्रिम चार (द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा वाले) दिनों में किसी भी दिन विवाह-नक्षत्र में तुलसी विवाह किया जा सकता हे 
ऐसा शास्त्रविधान है-एकादश्यादि पूर्णिमान्ते यत्र क्वापि दिने कार्तिक शुक्लान्तर्गत-विवाह-नक्षत्रेषु वा विधानादनेक कालत्वं तथापि पारणाहे प्रबोधोत्सव कर्मणा सह
- परन्तु प्रबोधोत्सव के साथ एकादशी व्रत पारणा वाले दिन पूर्वरात्रि में (अर्धरात्रि से पहिले ही रात्रिकाल में) तुलसी विवाह करने की परम्परा है-ऐसा 'धर्मसिन्धुकार' का निर्देश है-
'रात्रि प्रथमभागे प्रशस्तः।' यदि पारणा के दिन पूर्वरात्रिकाल में विवाह-नक्षत्र न हो तो दिन के समय प्राप्त विवाहनक्षत्र में, यदि वहाँ भी न मिले तो उसके बिना भी पूर्वरात्रि में तुलसी-विवाह पारणा के दिन कर लेना चाहिए।
इस वर्ष 2 नवम्बर, 2025 को प्रबोधोत्सव है। इसदिन पूर्वरात्रि में विवाह-नक्षत्र उ.भा. भी है। अतः इसदिन 'तुलसी विवाह' शास्त्रविहित है।
नोट-ध्यान रहे-कुछ शास्त्रकार व्यतीपात/वैधृति योग में, द्वादशी तिथि एवं रविवार को तुलसी-दल का स्पर्श एवं तोड़ने का निषेध मानते हैं-
वैधृतौ
च व्यतीपाते भौमभार्गवभानुषु ।
पर्व द्वये च संक्रान्तौ द्वादश्यां सूतके द्वयोः ।। (निर्णयसिन्धु)
अतएव हमारे विचारानुसार श्री तुलसी विवाह उत्सव 3 नवम्बर, सोमवार को मनाना अधिक शास्त्र सम्मत होगा। क्योंकि यहाँ प्रदोष में विवाह नक्षत्र रेवती भी विद्यमान होगा

Thursday, 16 October 2025

दीपावली निर्णय 2025

"सूर्यसिद्धान्त और दीपावली का तिथि-निर्णय: गणितीय और शास्त्रीय विश्लेषण"
 2025 में अमावस्या तिथि की गणना निम्नलिखित है:

✓•1.अमावस्या तिथि का गणितीय निर्धारण:

   - सूर्यसिद्धान्त के अनुसार, अमावस्या तब होती है जब चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° से 12° के बीच होती है।

   - मान लें कि 20 अक्टूबर 2025 को प्रातः 6:00 बजे चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° है (अमावस्या का प्रारम्भ)।

   - चन्द्रमा की सूर्य के सापेक्ष गति 12.1908° प्रति दिन है। अतः, अमावस्या तिथि की अवधि होगी:
     
अवधि= 12°/12.1908°/दिन≈ 0.984  दिन ≈23 घंटे 37  मिनट
   
   - इस आधार पर, अमावस्या 21 अक्टूबर को दोपहर बाद लगभग 4:00 बजे समाप्त होगी (6:00 AM + 23 घंटे 37 मिनट ≈ 4:37 PM)।

✓•2. सूर्यास्त और प्रदोष काल की गणना:

   - भारत में सूर्यास्त का समय सामान्यतः सायं 6:00 बजे के आसपास होता है (स्थानीय भौगोलिक स्थिति के आधार पर ±15 मिनट)।

   - प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद 2 घटी (48 मिनट) तक माना जाता है, अर्थात् लगभग 6:00 PM से 6:48 PM तक।

   - निशीथ काल मध्यरात्रि (लगभग 11:30 PM से 12:30 AM) तक माना जाता है।

   - 21 अक्टूबर को सूर्यास्त (6:00 PM) के समय अमावस्या तिथि समाप्त हो चुकी होगी, क्योंकि यह 4:00 PM के आसपास समाप्त हो रही है।

✓•3. 20 अक्टूबर की स्थिति:

   - 20 अक्टूबर को सूर्यास्त (6:00 PM), प्रदोष काल (6:00 PM से 6:48 PM), निशीथ काल (11:30 PM से 12:30 AM), और सम्पूर्ण रात्रि में अमावस्या तिथि विद्यमान होगी।

   - गणितीय रूप से, 20 अक्टूबर को प्रातः 6:00 बजे से अमावस्या तिथि प्रारम्भ होने के बाद, यह पूरे दिन और रात्रि तक प्रभावी रहेगी।

✓•निष्कर्ष: सूर्यसिद्धान्त की गणितीय गणना के आधार पर, 20 अक्टूबर 2025 को ही दीपावली मनाना शास्त्रसम्मत है, क्योंकि इस दिन सूर्यास्त, प्रदोष, और निशीथ काल में अमावस्या तिथि उपस्थित है।

✓•सूर्यसिद्धान्त बनाम दृक्-सिद्ध गणना: गणितीय तुलना: दृक्-सिद्ध गणनाएं आधुनिक वेधशालाओं और उपकरणों पर आधारित हैं, जो ग्रहों की वास्तविक स्थिति को प्रत्यक्ष अवलोकन द्वारा मापती हैं। उदाहरण के लिए, दृक्-सिद्ध गणना में अमावस्या का समय सूर्य और चन्द्रमा की वास्तविक खगोलीय स्थिति पर आधारित होता है, जो GPS और अन्य उपकरणों द्वारा मापा जाता है। सूर्यसिद्धान्त, इसके विपरीत, प्राचीन गणितीय मॉडल पर आधारित है, जो दीर्घकालिक औसत गति (mean motion) को आधार मानता है।

✓•उदाहरण:

- दृक्-सिद्ध गणना: मान लें कि 21 अक्टूबर 2025 को वेधशाला द्वारा मापी गई चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° दोपहर 2:00 बजे है। चूंकि चन्द्रमा की गति 12.1908° प्रति दिन है, अमावस्या तिथि 4:00 PM तक समाप्त हो सकती है।

- सूर्यसिद्धान्त गणना: सूर्यसिद्धान्त में दीर्घकालिक औसत गति के आधार पर तिथि की गणना की जाती है, जो 20 अक्टूबर को सूर्यास्त तक अमावस्या की उपस्थिति को सुनिश्चित करती है।

✓•निर्णयसिन्धु में स्पष्ट है:

"अदृष्ट-फल-सिध्यर्थ यथार्कगणितं कुरु।
 गणितं यदि दृष्टार्थ त‌दृष्ट्युद्भव तस्सदा।।"

✓•अर्थात्, धार्मिक कर्मों (अदृष्ट फल) के लिए सूर्यसिद्धान्त का प्रयोग करें, जबकि दृष्ट प्रयोजनों (जैसे वैज्ञानिक अनुसंधान) के लिए दृक्-सिद्ध गणना उपयुक्त है।

✓•निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु का महत्व
निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु भारतीय पञ्चाङ्गों के लिए सर्वमान्य ग्रन्थ हैं। आचार्य कमलाकर भट्ट ने निर्णयसिन्धु में दृक्-सिद्ध गणनाओं को नकारते हुए सूर्यसिद्धान्त को प्रामाणिक माना है। पण्डित सदाशिव शास्त्री ने धर्मसिन्धु की टीका में सूर्यसिद्धान्त की प्रामाणिकता को स्थापित किया। सूर्यसिद्धान्त को भ्रमजाल मानने वाले विद्वानों को निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु  का भी त्याग करना होगा, जो तार्किक रूप से असंगत है।

✓•कालिदास और ज्योतिर्विदाभरण
कालिदास ने ज्योतिर्विदाभरण में लिखा है:

"श्रीसूर्यसिद्धान्तमतोद्भवार्कात् साध्यौ तदा तावधिकक्षयौ। 
मासौ तदा संक्रमकाल एव साध्यः सदा हौरिकशास्त्रविद्भिः।।"

✓•यह स्पष्ट करता है कि अधिकमास, क्षयमास, और संक्रान्ति की गणना सूर्यसिद्धान्त के आधार पर ही की जानी चाहिए।

✓•शंकराचार्यों की भूमिका:
दीपावली जैसे पर्वों के तिथि-निर्णय में एकरूपता के लिए चारों शंकराचार्य पीठों को सूर्यसिद्धान्त के आधार पर समवेत घोषणा करनी चाहिए। यह धार्मिक एकता और परम्पराओं के संरक्षण के लिए आवश्यक है।

✓••निष्कर्ष: सूर्यसिद्धान्त की गणितीय और शास्त्रीय प्रामाणिकता प्राचीन ग्रन्थों और विद्वानों द्वारा सिद्ध है। दीपावली 2025 के लिए गणितीय गणना के आधार पर 20 अक्टूबर ही शास्त्रसम्मत है। सूर्यसिद्धान्त को भ्रमजाल मानने वाले विद्वानों को निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु‌का भी त्याग करना होगा, जो असंगत है। शंकराचार्यों को सूर्यसिद्धान्त को आधार मानकर तिथि-निर्णय में एकरूपता लानी चाहिए।

✓•सन्दर्भ:
1. स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज, कुम्भ तिथ्यादि निर्णय.
2. आचार्य कमलाकर भट्ट, निर्णयसिन्धु.
3. पण्डित सदाशिव शास्त्री मुसलगाँवकर, धर्मसिन्धु टीका.
4. कालिदास, ज्योतिर्विदाभरण.
5. स्कन्दपुराण, कलिमाहात्म्य.
#त्रिस्कन्धज्योतिर्विद्