ज्योतिष समाधान

Friday, 3 January 2025

गणेश जी की आरती

मैं आरती तेरी गाऊं मेरे गणराज बिहारी।
मैं तुझको रोज मनाऊं ।
तुम  गोरा घर जाए’ शिव जी के मन को भाए,
कभी मेरे घर भी आओ मेरे गणराज बिहारी,
मैं आरती तेरी गाऊं मेरे गणराज बिहारी,

कोई छप्पन भोग जी मावे कोई लड्डू बन भोग लगावे,
मैं तो दूर्वा ले आया जीमो गणराज बिहारी,
मैं आरती तेरी गाऊं मेरे गणराज बिहारी ,

तुम एकदंत गणराया मैं शरण तुम्हारी या,
या अब राखो लाज हमारी मेरे गणराज बिहारी,
मैं आरती तेरी गाऊं मेरे गणराज बिहारी ,

Saturday, 16 November 2024

भूमि पूजन सामग्री

1】हल्दीः--------------------------20ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------------01गोले
३ धूप बत्ती--------------     1पैकिट
४】कपूर---------------------   10ग्राम
5)
6)
७】यज्ञोपवीत -----------------   05नग्
८】चावल------------------------ 500ग्राम
९】अबीर-------------------------10ग्राम
१०】गुलाल, -----------------20ग्राम
11)
१२】सिंदूर --------------------20ग्राम
१३】रोली, --------------------20 ग्राम
१४】गोल सुपारी, ( बड़ी)---  50 ग्राम
१५】नारियल -----------------  3 नग्
१६】
१७】पंच मेवा------------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)--------------- 50 ग्राम
१९】शकर-----------------------100ग्रांम
२०】घृत (शुद्ध घी)---------  100 ग्राम
२१】इलायची (छोटी)--------05ग्राम
२२】लौंग -----------------05ग्राम
२३】इत्र की शीशी---------------1 नग्
२4】धुप बत्ती -------------------1पैकिट
=============
25】दूर्वा
26】पुष्प 
27】हार मोगरा के फूल के  5
28】ऋतुफल पांच प्रकार के -----1 किलो
29) पान के पत्ते ,5
29) नाग नागिन जोड़ा 1
30) कछुआ 1
31) 
32)तगाड़ी ....2
33)फडुआ ....2
34) गेंती........1
35) 

1)सफेद कपड़ा (आधा मीटर)
२】लाल कपड़ा (आधा मीटर)

घर से उप्लब्ध करने का सामान
1)आसन बैठने के लिये
2)चौकी2×2
3)थाली 2 पूजा के लिये 
4)कटोरी 5
5)हाथ पोछ्ने के लिये टाविल 
6)दूध
7)दही
8)माचिस
10)रुई
11)आटा  चोक पूरने  के लिये 100 ग्राम
12)प्रशाद  अनुमानित
13)  ईंट------ 9
14)नागफणी कील ,-----5
15)पूजा के लिये फुटकर पैसे
16) गाय का गोबर
17)आम के गुच्छे- 5 
18)गाय का मूत्र
19)गंगा जल
20)तुलसी दल 

Tuesday, 5 November 2024

*64 योगिनियों का सम्बन्ध तंत्र तथा योग विद्या से भी है आईए जानते हैं इस राज को,,*
 
चौसठ योगिनीयां की चर्चा पुराणों में है। सभी योगिनियों को आदिशक्ति मां काली का अवतार माना गया है। “घोर” नामक दैत्य के साथ युद्ध करते समय योगिनियों का अवतार हुआ था और यह सभी माता पार्वती की सखियां मानी गई हैं।

ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार ये सभी 64 योगिनी कृष्ण की नासिका के छेद से प्रकट हुई है। स्त्री के बिना पुरुष और पुरुष के बिना स्त्री अधूरी होती है और पूर्ण पुरुष 32 कलाओं से युक्त होता है। वहीं संपूर्ण स्त्री भी 32 कलाओं से युक्त होती है, इसलिए दोनों को मिलाकर 64 योगिनी शिव और शक्ति जो संपूर्ण कलाओं से युक्त हैं के मिलन से प्रकट हुई है।
यह भी कहा जाता है कि चन्द्रमा मन का प्रतीक होता है और इसकी 16 कलाएं होती है, जो हमारी आयु की चारों अवस्थाओं में भिन्न भिन्न होती है।आदि गुरु के चार मठ और हमारे चार युग सोलह संस्कारों के साक्षी है। प्रत्येक दिशा में 8 योगिनी फैली हुई है, हर योगिनी के लिए एक सहायक योगिनी है।इस प्रकार हर दिशा में 16 योगिनी है। दिशा 4 होने के कारण कुल 64 योगिनी है। सभी योगिनी तंत्र की अधिष्ठात्री देवी है। इनमें से एक भी देवी की कृपा हो जाने पर उससे संबंधित तंत्र की सिद्धि मानी जाती है।
योगिनियों की पूजा करने से ही सभी देवियों की पूजा मान्य है। इन 64 देवियों में से 10 महाविद्या और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की गई है। ये सभी आदि शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतार रूप है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि सभी योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती है।
अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न होती है। इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कार्य इन्हीं की कृपा से की जाती है। सही अर्थ में आधुनिक विज्ञान का आधार यहीं है, लेकिन दुर्भाग्य से लोगों ने इसे समझने के बजाये, इसे टोने-टोटकों से जोड़ दिया है।
*योगिनियों में आठ योगनियां अपना विशेष स्थान रखती है,,* -1.सुर-सुंदरी योगिनी 2.मनोहरा योगिनी 3.कनकवती योगिनी 4.कामेश्वरी योगिनी 5.रति सुंदरी योगिनी 6.पद्मिनी योगिनी 7.नटिनी योगिनी एवं 8.मधुमती योगिनी प्रमुख हैं। सुर-सुंदरी योगिनी के सम्बंध में कहा गया है कि ये अत्यंत सुंदर, शरीर सौष्ठव, अत्यंत दर्शनीय है। इनकी साधना एक महीने तक की जाती है। इनके प्रसन्न होने पर ही सुर-सुंदरी योगिनी सामने आती है और इन्हें माता, बहन या पत्नी कहकर संबोधन किया जाता है। इनकी सिद्धि से राज्य, स्वर्ण, दिव्यालंकार तथा दिव्य कन्याएं की प्राप्ति होती हैं। मनोहरा योगिनी अत्यंत सुंदर होती हैं और इनके शरीर से सुगंध निकलती रहती है। एक महीने साधना करने पर ये प्रसन्न होती है। इनकी सिद्धि से साधक को प्रतिदिन स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त होती है।कनकवती योगिनी रक्त वस्त्रालंकार से भूषित रहती हैं तथा सिद्धि के पश्चात ये अपनी परिचारिकाओं के साथ आकर वांछित कामना पूर्ण करती है। कामेश्वरी योगिनी का जप रात्रि में किया जाता है। पुष्पों से सज्जित देवी प्रसन्न होकर ऐश्वर्य, भोग की वस्तुएं प्रदान करती हैं। रति सुंदरी योगिनी स्वर्णाभूषण से सुसज्जित देवी हैं, महीने भर की साधना के बाद प्रसन्न होकर अभीष्ट वर प्रदान करती है और सभी ऐश्वर्य, धन एवं वस्त्रालंकार देती हैं।पद्मिनी योगिनी का वर्ण श्याम रहता है। ये देवी वस्त्रालंकार से युक्त, महीने भर साधना के बाद प्रसन्न होकर ऐश्वर्यादि प्रदान करती हैं। नटिनी योगिनी को अशोक वृक्ष के नीचे रात्रि में साधना कर के सिद्ध किया जाता है। इनकी प्रसन्नता से अपने सारे मनोरथ पूर्ण किए जाते हैं। मधुमती योगिनी शुभ्र वर्ण की होती है। योगिनी अति सुंदर, विविध प्रकार के अलंकारों से भूषित होती हैं। साधना के पश्चात सामने आकर किसी भी लोक की वस्तु प्रदान करती हैं। इनकी कृपा से पूर्ण आयु, अच्छा स्वास्थ्य तथा राज्याधिकार प्राप्त होता है। चौंसठ योगिनियों में 1.बहुरूप, 2.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26. नारसिंही, 27. बिरजा, 28. विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38.वीर कुमारी, 39.माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51. अदिति, 52.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55. मूरति, 56.गंगा, 57. धूमावती, 58. गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली योगिनियाँ है। इन 64 योगिनियों के मंदिर भारत में कई स्थानों पर है।

🕉️🪷🚩जय मां भुवनेश्वरी 🚩🪷🕉️

Sunday, 27 October 2024

#दीपावली

🌺🌺#दिनांक- 31/10/2024- #कार्तिक ,कृष्ण - पक्ष, तिथि - चतुर्दशी #तदोपरि #अमावस्या दिन गुरुवार को दिन में 3: 12 बजे के बाद 

#प्रतिसंवत्सरं कुर्यात्कालिकायां महोत्सवम्।
 कार्तिके तु विशेषेण अमावस्या निशार्द्धके।
तस्यां सम्पूजयेद्देवीं भोगमोक्षप्रदायिनी ।।

#उभय दिने निशीथव्याप्तौ तत्र प्रदोषे भवेत्तदैव। तथोक्तं कुलसर्वस्वे 
#प्रदोषव्यापिनी यत्र महानिशा च सा भवेत् ।
तदैव कालिका पूज्या दक्षिणा मोक्षदायिनी।।

#यदोभयदिने तदा चतुर्दशीयुता ग्राह्या ------

#अर्द्धरात्रे महेशानि अमावस्या यदा भवेत्।
चतुर्दशीयुताग्राह्या चामुण्डा पूजने सदा।। इत्यागमात्।

🌺🌺#दिनांक - 1/11/2024- #कार्तिक,कृष्ण- पक्ष, तिथि - अमावस्या #तदोपरि प्रतिपदा ,दिन - शुक्रवार को-- #स्वातीनक्षत्र के योग में #दीपावली 

#निर्णयामृते - #ज्योतिषर्निबन्धे--- नारदोऽपि--- 

#इषासितचततुर्दश्यामिन्दुक्षयतिथावति।
 ऊर्जादौ स्वातिसंयुक्ते तदा दीपावली भवेत्।।

#निर्णयामृते - मात्स्ये (#मत्स्य पुराण) --- #दीपैर्नीराजनादत्र सैषा दीपावली स्मृता।
#अत्र विशेषो हेमाद्रौ भविष्ये  (#भविष्य पुराण) --- दिवा तत्र न भोक्तव्यमृते बालातुराज्जनात्। प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा तत: क्रमात्।। दीपवृक्षाश्च दातव्या शक्त्या देवगृहेषु च ।।

#प्रदोषसमये दीपदानम् ---- दीपान्दत्त्वा प्रदोषे तु लक्ष्मीं पूज्य यथाविधि । स्वलंकृतेन भोक्तव्यं सितवस्त्रोपशोभिता।।
#अयं प्रदोषव्यापिनी ग्राह्य:।

#धर्मसिंधसारे द्वितीयपरिच्छेदे --- अथामावास्याभ्यंगनिर्णय:

#अथाश्विनामावास्यायां प्रातरभ्यंग: प्रदोषे दीपदानलक्ष्मीपूजनादि विहितम्।

#तथा च परदिने एव दिनद्वयेऽपि वा प्रदोषव्याप्तौ परा।
 पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्तौ लक्ष्मीपूजनादौ पूर्वा । #अभ्यंगस्नानादौ परा।
#एवमुभयत्र प्रदोषव्याप्त्यभावेऽपि पुरुषार्थचिंतामणौ तु पूर्वत्रैव व्याप्तिरिति पक्षे परत्र यामत्रयाधिकव्यापिदर्शे दर्शापेक्षया प्रतिपद्वृद्धिसत्त्वे लक्ष्मीपूजादिकमपि परत्रैवेत्युक्तम्।

#एतन्मते उभयत्र प्रदोषाव्याप्तिपक्षेऽपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिकव्याप्तित्वात्परैव युक्तेति भांति।

🪔🌺#चतुर्दश्यादिदिनत्रयेऽपि दीपावलिसंज्ञके यत्रयत्राह्नि स्वातीनक्षत्रयोगस्तस्यतस्यप्राशस्त्यातिशय:।

🪔🌺#अस्यामेव निशीथोत्तरं नगरस्त्रीभि: स्वगृहांगणादलक्ष्मीनि: सरणं कार्यम्

Saturday, 26 October 2024

#दीपावली निर्णय


☀️👉व्याख्या :-
किसी भी व्रत-पर्वादि का सही निर्णय लेने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कर्मकाल का सटीक ज्ञान । जब तक कर्मकाल का ज्ञान नहीं होगा तब तक उचित निर्णय लेना असंभव है, क्योंकि शास्त्रों के वचन परस्पर विरोधाभासी प्रतीत होंगे। दीपावली निर्धारण हेतु कर्मकाल क्या है? दीपावली निर्धारण हेतु प्रदोष कर्मकाल है।

🔥भविष्य पुराण:- दिवातत्रनभोक्तव्यमृतेबा लातुराज्जनात् । प्रदोषसमयेलक्ष्मीं पूजयित्वाततः क्रमात् 
दीपवृक्षाश्चदातव्याः शक्त्या देवगृहेषु च ॥

🔥पुनः:- दीपान्दत्वा प्रदोषे तु लक्ष्मीं पूज्य यथाविधि । स्वलङ्कृतेन भोक्तव्यं सितवस्त्रोपशोभिना ॥

🔥पुनः ब्रह्मपुराण से :- प्रदोषसमयेराजन् कर्तव्यादीपमालिका॥

यहां स्पष्ट रूपसे कर्मकाल का निर्धारण हो रहा है कि लक्ष्मी पूजा व दीपावली का “कर्मकाल प्रदोषकाल है”। कर्मकाल का ज्ञान होने के बाद निर्णय लेना सहज हो जाता है। जिस किसी दिन भी कर्मकाल में ग्राह्य तिथि व्याप्त हो व्रत पर्व उसी दिन होता है। यदि दो दिन कर्मकाल में तिथि व्याप्त हो (तिथिवृद्धि होने पर ऐसा होता है) तो कुछ अपवादों को छोड़कर सर्वत्र दूसरे दिन को ग्रहण करने की विधि होती है। और यदि दोनों में से एक दिन भी कर्मकाल में तिथि न मिले तो भी कुछ अपवादों के अतिरिक्त दूसरा दिन ही ग्राह्य होता है।
व्रत-पर्वादि का निर्णय करने के लिए यही मुख्य नियम है। दीपावली और लक्ष्मीपूजा का कर्मकाल प्रदोषकाल है और उपरोक्त नियमानुसार ही इसका निर्णय लेना चाहिए।

🔥तिथितत्त्वचिन्तामणौ – 
कार्तिके कृष्णपक्षे च प्रदोषे भूतदर्शयोः । 
प्रदोषसमये दीपान् दद्यान्मनोरमान् ॥ ब्रह्मविष्णुशिवादीनां भवनेषु मठेषु च । 
उल्काहस्ता नराः कुर्युः पितॄणां मार्गदर्शनम् ॥

🔥पं० राजनाथ मिश्रकृत राजमार्तण्डे – 
दण्डैकं रजनीं प्रदोषसमये दर्शे यदा संस्पृशेत् । 
कर्त्तव्या सुखरात्रिकात्र विधिना दर्शाद्यभावे तदा ॥

🔥अन्यत्र से – 
अमावस्या यदा रात्रौ दिवाभागे चतुर्द्दशी । 
पूजनीया तदा लक्ष्मीर्विज्ञेया सुखरात्रिका ॥

दीपावली अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की जीत का उत्सव है।

2024 में 31 अक्टूबर गुरुवार को चतुर्दशी 3:23 बजे दिन तक है तत्पश्चात अमावास्या अगले दिन शुक्रवार 1 नवम्बर 2024 को 5:24 बजे संध्या काल तक है। स्पष्टतः दोनों दिन प्रदोषकाल में अमावास्या प्राप्त होती है, किन्तु 
ऐसी स्थिति में दीपावली हेतु दो और विशेष नियम हैं जो मुख्य नियम का बाधक है। यहां पर एक विशेष नियम तिथितत्व में वर्णित है कि यदि दोनों दिन अमावास्या प्रदोष व्यापिनी हो तो भी अगले दिन रात में अर्थात् सूर्यास्त के पश्चात् न्यूनतम 1 दण्ड अमावास्या हो तो ही पहले दिन का त्याग और अगले दिन को ग्रहण करना जाना चाहिए । अर्थात् यदि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात् एक दण्ड से कम अमावास्या रहे तो पहले दिन करना चाहिए।

🔥ज्योतिषार्णवे :-
दंडैक रजनी योगे दर्श: स्याच्च परेहनी।
तदा विहाय पूर्वेद्यु: परेह्णी सुखरात्रिका।।

प्रदोष काल में अमावाश्या का अभाव रहे तो पितृ उल्काग्रहण नहीं करते हैं।

🔥भूताहे ये प्रकुर्वँती उल्काग्रहमचेतना:।
निराशा: पितरो यान्ति शापं दत्वा सुदारूनम।।

#दीपावली निर्णय

*1 नवंबर 2024 को होगा दीपावली पर्व ... बिरला मंदिर में विद्वत्सभा का सर्वसम्मत निर्णय*

आपको यह सूचित करते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि आज 20 अक्टूबर 2024 को लक्ष्मी नारायण मंदिर,(बिरला मंदिर) दिल्ली के  परिसर में आयोजित विद्वत् धर्मसभा में डॉ अरुण बंसल जी अध्यक्ष अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ (फ्यूचर प्वाइंट) की अध्यक्षता में  आयोजित की गई, जिसमें आचार्य शुभेश शर्मन ज
दीपावली पर्व या दीपमालिका निर्णय
1. संग्रहशिरोमणिः (द्वितीयो भागः) सम्पादक आचार्य श्री कमलाकान्त शुक्ल, सम्पूर्णानन्द-संस्कृत-विश्वविद्यालयः वाराणसी।  पृष्ठ ४००-४०१ से लिए गए कुछ वाक्यांश - 
2. सूर्यास्त के बाद अधिक (घटिका) व्यापिनी अमावस्या हो तो इसे अमावस्या मानने में कोई संदेह नहीं है। इस अमावस्या में प्रातः अभ्यङ्ग, देवपूजन व अपराह्न में पार्वण श्राद्ध करके प्रदोष में दीपदान, आकाशदीप-प्रदर्शन, लक्ष्मीपूजन करके भोजन करना चाहिए।

3. दूसरे दिन या दोनों दिन प्रदोष-व्याप्ति होने पर दूसरे दिन की अमावस्या ग्राह्य है।
4. व्याप्ति के पक्ष में दूसरे दिन तीन प्रहर से अधिक हो और अमावस्या की अपेक्षा तीसरे दिन प्रतिपदा का घटिकामान अधिक हो तो, लक्ष्मीपूजन आदि कार्य दूसरे दिन ही करेंगे।  इस आधार पर दोनों दिन प्रदोष-व्याप्ति के पक्ष में परा (दूसरे दिन) अमावस्या ग्राह्य है।
5. जिस दिन स्वाती नक्षत्र का योग हो, उस दिन की शुभता विशेष है।

   निर्णयसिन्धुः

6. श्रीकमलाकरभट्ट प्रणीत, प्रकाशक – श्रीठाकुर प्रसाद पुस्तक भण्डार, वाराणसी, से लिए गए कुछ वाक्यांश 

7. पुष्कर पुराण में कहा है कि – स्वाती में स्थित सूर्य में यदि स्वाती में गया चन्द्रमा हो तो पंचत्वचा के जल से मनुष्य अभङ्गविधिकर स्नान करे और महालक्ष्मी का नीराजन करे तो लक्ष्मी को प्राप्त करता है। (पृष्ठ 405)

8. अमावस्या के प्रातःकाल में तो दही, खीर, घृत आदियों से पार्वण श्राद्ध करे। (पृष्ठ 405)

9. तिथि तत्व में ज्योति का वचन है कि – एक दण्ड (घटी) रात्रि के योग में अमावस्या दूसरे दिन हो तब पूर्वदिन को त्यागकर दूसरे दिन सुखरात्रि में करे। (पृष्ठ 406)

10. प्रदोष और अर्धरात्रिव्यापिनी मुख्य है। इस की व्याप्ति में परा ही है।  प्रदोष के मुख्यत्व होने से आधी रात में अनुष्ठान का अभाव है।

11. पूर्णिमा तिथि तथा अमावस्या तिथि सावित्री व्रत के बिना परा ग्रहण करनी चाहिए।  ब्रह्मवैवर्त पुराण का मत है कि – हे मुनिश्रेष्ठ, व्रतों में उत्तम सावित्री व्रत को छोड़कर चतुर्दशी से विद्ध अमावस्या तथा पूर्णिमा कभी भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।(पृष्ठ 89)
12. धर्मसिन्धु– प्रदोष समय दीपदान लक्ष्मीपूजन आदि के हैं।  उसमें सूर्योदय के अनन्तर घटीका तक (भी) अधिक रात्रि तक अमावस्या हो तो (परा लेने में) कुछ संदेह नहीं है।  (पृष्ठ 177)
13. पुरुषार्थचिन्तामणि।  विष्णुभट्टविरचितः पृष्ठ 306 ... तच्चोत्तरदिनेऽस्तोत्तरं घटिकाद्यवच्छेदेन विद्यते, तथा सैव ग्राह्या। (घटिका के अंश मात्र से भेद में भी लेना है)
14. मार्तण्ड पञ्चाङ्ग प्रियव्रतशर्मा – दीपावली को भले ही अमावस्या सूर्यास्त के बाद एक ही मिनट तक व्याप्त हो, शास्त्रानुसार उसे पूरे प्रदोषकाल में (सूर्यास्त के अनन्तर तीन मुहूर्त तक) व्याप्त माना जाता है, अतः इस स्थिति में भी पूरा प्रदोषकाल लक्ष्मी पूजन के लिए विहित है।

01 नवम्बर को दीपावली निर्णय
1-11-2024 शुक्रवार शालिवाह्न शक -1946, विक्रम संवत - 2081 पंचांग
कालयुक्त संवत्सर॥ सूर्य - दक्षिणायन, दक्षिण गोलार्द्ध॥ हेमन्त ऋतु।
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष॥ अमावस्या तिथि 29:33 घटी तक॥ स्वाति नक्षत्र 52:42 घटी तक॥  दिनमान – 27:52:30 घटी॥

1 नवम्बर 2024 को सूर्यास्त के बाद 24 घटी 40 पल 30 विपल की अमावस्या और प्रदोषकाल का योग है।  इस कारण और शास्त्रों के वचन से यह स्पष्ट होता है कि दिल्ली में 01 नवम्बर 2024 को निःसंदेह दीपावली का निर्णय सही है

"सम्पूर्ण भारतवर्ष में दीपावली का महापर्व इस वर्ष 1 नवंबर 2024, शुक्रवार को मनाना शास्त्रसम्मत है एवं इसके अतिरिक्त किसी भी अन्य दिन दीपावली मनाना शास्त्रानुसार नहीं है।"

हमें विश्वास है कि इस सर्वसम्मत निर्णय के उपरांत पूरे देश में किसी भी प्रकार के भ्रम व संशय की संभावना नहीं है। सभी सनातन धर्मियों हेतु 1 नवंबर 2024 शुकवार को कार्तिकी अमावस्या लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत होगा एवं इसके अतिरिक्त किसी भी अन्य दिन दीपावली मनाना शास्त्रसम्मत नहीं होगा।

#दीपावली निर्णय

दीपावली का शास्त्रीय निर्णय :- 01 नवम्बर 2024, शुक्रवार
-------------------------
दीपावली की पुनश्च चर्चा करते है, आज बात शुरू करेंगे ईस्वी सन् 1926 से लेकर ईस्वी सन् 1989 तक। यहॉं जयपुर के सबसे पुराने पंचांग के प्रमाण आपको प्रस्तुत किये जा रहे है, जिनके आधार पर आम जनता भी यह जान पायेगी कि दीपावली का निर्णय आज भी उसी विधि से 01 नवम्बर 2024, शुक्रवार का किया गया है, जिस विधि से ईस्वी सन् 1926 से लेकर ईस्वी सन् 1989 तक के इन पंचांगों में किया गया था। उस जमाने में न तो कम्प्यूटर था, न कैलकुलेटर, न सोशल मीड़िया, बस यही पंचांग प्रमाण हुआ करते थे। अत: आप भी देखे और समझे कि किस तरह एक पुराने पंचांगकर्ता ने अपने ही परदादाजी—दादाजी—पिताजी के समय में बनाये गये पंचांगों में दिये प्रमाणों व आधार को त्यागकर कैसे जनता को भ्रमित किया और यह दीपावली का विवाद उत्पन्न किया जो कि असल में कोई विवाद हीं नहीं था।
-------------------------
उदाहरणार्थ पुराने पंचांगों का उद्धरण :-
-------------------------
01. विक्रम् संवत् 1983, ईस्वी सन् 1926, कार्तिक कृष्ण देव-पितृ अमावस्या : दीपावली का निर्णय

अ :- 04 नवम्बर 1926 (गुरुवार), चतुर्दशी तिथि समाप्त 28 घटी 58 पल, दिनमान : 27 घटी 18 पल, सूर्यास्त : 05:28

ब :- 05 नवम्बर 1926 (शुक्रवार), अमावस्या तिथि समाप्त 32 घटी 04 पल, दिनमान : 27 घटी 15 पल, सूर्यास्त : 05:27

निष्कर्ष :- दीपावली का पर्व 05 नवम्बर 1926 को मनाया गया, जो कि प्रतिपदा युक्त अमावस्या थी, जबकि पहले दिन चतुर्दशी युक्त अमावस्या पर प्रदोषकाल, सिंहलग्न, निशीथकाल आदि सभी में अमावस्या मिल रही थी, परन्तु तत्कालीन विद्वानों ने जयपुर दीपावली का निर्णय प्रतिपदा युक्त दूसरे दिन व्यापिनी अमावस्या को ही दिया, यही नियम ईस्वी सन् 2024 व 2025 में भी लागू किया गया हैं, पुराने पंचांगकर्ताओं व धर्मशास्त्रों का अनुसरण करते हुए।
-------------------------
02. विक्रम् संवत् 1984, ईस्वी सन् 1927, कार्तिक कृष्ण देव-पितृ अमावस्या : दीपावली का निर्णय

अ :- 24 अक्टूबर 1927 (सोमवार), चतुर्दशी तिथि समाप्त 27 घटी 56 पल, दिनमान : 27 घटी 53 पल, सूर्यास्त : 05:35

ब :- 25 अक्टूबर 1927 (मंगलवार), अमावस्या तिथि समाप्त 33 घटी 02 पल, दिनमान : 27 घटी 50 पल, सूर्यास्त 05:34

निष्कर्ष :- दीपावली का पर्व 25 अक्टूबर 1927 को मनाया गया, जो कि प्रतिपदा युक्त अमावस्या थी, जबकि पहले दिन चतुर्दशी युक्त अमावस्या पर प्रदोषकाल, सिंहलग्न, निशीथकाल आदि सभी में अमावस्या मिल रही थी, परन्तु तत्कालीन विद्वानों ने जयपुर दीपावली का निर्णय प्रतिपदा युक्त दूसरे दिन व्यापिनी अमावस्या को ही दिया, यही नियम ईस्वी सन् 2024 व 2025 में भी लागू किया गया हैं, पुराने पंचांगकर्ताओं व धर्मशास्त्रों का अनुसरण करते हुए।
-------------------------
03. विक्रम् संवत् 2013, ईस्वी सन् 1956, कार्तिक कृष्ण देव-पितृ अमावस्या : दीपावली का निर्णय

अ :- 01 नवम्बर 1956 (गुरुवार), चतुर्दशी तिथि समाप्त 36 घटी 58 पल, दिनमान : 27 घटी 27 पल, सूर्यास्त 05:30

ब :- 02 नवम्बर 1956 (शुक्रवार), अमावस्या तिथि समाप्त 37 घटी 50 पल, दिनमान : 27 घटी 25 पल, सूर्यास्त 05:29

निष्कर्ष :- दीपावली का पर्व 02 नवम्बर 1956 को मनाया गया, जो कि प्रतिपदा युक्त अमावस्या थी, जबकि पहले दिन चतुर्दशी युक्त अमावस्या पर प्रदोषकाल, सिंहलग्न, निशीथकाल आदि सभी में अमावस्या मिल रही थी, परन्तु तत्कालीन विद्वानों ने जयपुर दीपावली का निर्णय प्रतिपदा युक्त दूसरे दिन व्यापिनी अमावस्या को ही दिया, यही नियम ईस्वी सन् 2024 व 2025 में भी लागू किया गया हैं, पुराने पंचांगकर्ताओं व धर्मशास्त्रों का अनुसरण करते हुए।
-------------------------
04. विक्रम् संवत् 2023, ईस्वी सन् 1966, कार्तिक कृष्ण देव-पितृ अमावस्या : दीपावली का निर्णय

अ :- 11 नवम्बर 1966 (शुक्रवार), चतुर्दशी तिथि समाप्त 37 घटी 56 पल, दिनमान : 26 घटी 56 पल, सूर्यास्त : 05:23

ब :- 12 नवम्बर 1966 (शनिवार), अमावस्या तिथि समाप्त 33 घटी 05 पल, दिनमान : 26 घटी 57 पल, सूर्यास्त : 05:22

निष्कर्ष :- दीपावली का पर्व 12 नवम्बर 1966 को मनाया गया, जो कि प्रतिपदा युक्त अमावस्या थी, जबकि पहले दिन चतुर्दशी युक्त अमावस्या पर प्रदोषकाल, सिंहलग्न, निशीथकाल आदि सभी में अमावस्या मिल रही थी, परन्तु तत्कालीन विद्वानों ने जयपुर दीपावली का निर्णय प्रतिपदा युक्त दूसरे दिन व्यापिनी अमावस्या को ही दिया, यही नियम ईस्वी सन् 2024 व 2025 में भी लागू किया गया हैं, पुराने पंचांगकर्ताओं व धर्मशास्त्रों का अनुसरण करते हुए।
-------------------------
5. विक्रम् संवत् 2032, ईस्वी सन् 1975, कार्तिक कृष्ण देव-पितृ अमावस्या : दीपावली का निर्णय

अ :- 02 नवम्बर 1975 (रविवार), चतुर्दशी तिथि समाप्त 36 घटी 17 पल, दिनमान : 27 घटी 25 पल, सूर्यास्त : 05:29

ब :- 03 नवम्बर 1975 (सोमवार), अमावस्या तिथि समाप्त 30 घटी 44 पल, दिनमान : 27 घटी 21 पल, सूर्यास्त : 05:28

निष्कर्ष :- दीपावली का पर्व 03 नवम्बर 1975 को मनाया गया, जो कि प्रतिपदा युक्त अमावस्या थी, जबकि पहले दिन चतुर्दशी युक्त अमावस्या पर प्रदोषकाल, सिंहलग्न, निशीथकाल आदि सभी में अमावस्या मिल रही थी, परन्तु तत्कालीन विद्वानों ने जयपुर दीपावली का निर्णय प्रतिपदा युक्त दूसरे दिन व्यापिनी अमावस्या को ही दिया, यही नियम ईस्वी सन् 2024 व 2025 में भी लागू किया गया हैं, पुराने पंचांगकर्ताओं व धर्मशास्त्रों का अनुसरण करते हुए।
-------------------------
6. विक्रम् संवत् 2041, ईस्वी सन् 1984, कार्तिक कृष्ण देव-पितृ अमावस्या : दीपावली का निर्णय

अ :- 23 अक्टूबर 1984 (मंगलवार), चतुर्दशी तिथि समाप्त 35 घटी 16 पल, दिनमान : 27 घटी 53 पल, सूर्यास्त : 05:35

ब :- 24 अक्टूबर 1984 (बुधवार), अमावस्या तिथि समाप्त 29 घटी 20 पल, दिनमान : 27 घटी 50 पल, सूर्यास्त : 05:34

निष्कर्ष :- दीपावली का पर्व 24 अक्टूबर 1984 को मनाया गया, जो कि प्रतिपदा युक्त अमावस्या थी, जबकि पहले दिन चतुर्दशी युक्त अमावस्या पर प्रदोषकाल, सिंहलग्न, निशीथकाल आदि सभी में अमावस्या मिल रही थी, परन्तु तत्कालीन विद्वानों ने जयपुर दीपावली का निर्णय प्रतिपदा युक्त दूसरे दिन व्यापिनी अमावस्या को ही दिया, यही नियम ईस्वी सन् 2024 व 2025 में भी लागू किया गया हैं, पुराने पंचांगकर्ताओं व धर्मशास्त्रों का अनुसरण करते हुए।
-------------------------
7. विक्रम् संवत् 2045, ईस्वी सन् 1988, कार्तिक कृष्ण देव-पितृ अमावस्या : दीपावली का निर्णय

अ :- 08 नवम्बर 1988 (मंगलवार), चतुर्दशी तिथि समाप्त 27 घटी 08 पल, दिनमान : 27 घटी 06 पल, सूर्यास्त : 05:25

ब :- 09 नवम्बर 1988 (बुधवार), अमावस्या तिथि समाप्त 30 घटी 06 पल, दिनमान : 27 घटी 02 पल, सूर्यास्त 05:24

निष्कर्ष :- दीपावली का पर्व 09 नवम्बर 1988 को मनाया गया, जो कि प्रतिपदा युक्त अमावस्या थी, जबकि पहले दिन चतुर्दशी युक्त अमावस्या पर प्रदोषकाल, सिंहलग्न, निशीथकाल आदि सभी में अमावस्या मिल रही थी, परन्तु तत्कालीन विद्वानों ने जयपुर दीपावली का निर्णय प्रतिपदा युक्त दूसरे दिन व्यापिनी अमावस्या को ही दिया, यही नियम ईस्वी सन् 2024 व 2025 में भी लागू किया गया हैं, पुराने पंचांगकर्ताओं व धर्मशास्त्रों का अनुसरण करते हुए।
-------------------------
8. विक्रम् संवत् 2046, ईस्वी सन् 1989, कार्तिक कृष्ण देव-पितृ अमावस्या : दीपावली का निर्णय

अ :- 28 अक्टूबर 1989 (शनिवार), चतुर्दशी तिथि समाप्त 26 घटी 07 पल, दिनमान : 27 घटी 40 पल, सूर्यास्त : 05:32

ब :- 29 अक्टूबर 1989 (रविवार), अमावस्या तिथि समाप्त 31 घटी 23 पल, दिनमान : 27 घटी 37 पल, सूर्यास्त : 05:32

निष्कर्ष :- दीपावली का पर्व 29 अक्टूबर 1989 को मनाया गया, जो कि प्रतिपदा युक्त अमावस्या थी, जबकि पहले दिन चतुर्दशी युक्त अमावस्या पर प्रदोषकाल, सिंहलग्न, निशीथकाल आदि सभी में अमावस्या मिल रही थी, परन्तु तत्कालीन विद्वानों ने जयपुर दीपावली का निर्णय प्रतिपदा युक्त दूसरे दिन व्यापिनी अमावस्या को ही दिया, यही नियम ईस्वी सन् 2024 व 2025 में भी लागू किया गया हैं, पुराने पंचांगकर्ताओं व धर्मशास्त्रों का अनुसरण करते हुए।
(साभार रवि शर्मा, जयपुर)