"सूर्यसिद्धान्त और दीपावली का तिथि-निर्णय: गणितीय और शास्त्रीय विश्लेषण"
2025 में अमावस्या तिथि की गणना निम्नलिखित है:
✓•1.अमावस्या तिथि का गणितीय निर्धारण:
- सूर्यसिद्धान्त के अनुसार, अमावस्या तब होती है जब चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° से 12° के बीच होती है।
- मान लें कि 20 अक्टूबर 2025 को प्रातः 6:00 बजे चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° है (अमावस्या का प्रारम्भ)।
- चन्द्रमा की सूर्य के सापेक्ष गति 12.1908° प्रति दिन है। अतः, अमावस्या तिथि की अवधि होगी:
अवधि= 12°/12.1908°/दिन≈ 0.984 दिन ≈23 घंटे 37 मिनट
- इस आधार पर, अमावस्या 21 अक्टूबर को दोपहर बाद लगभग 4:00 बजे समाप्त होगी (6:00 AM + 23 घंटे 37 मिनट ≈ 4:37 PM)।
✓•2. सूर्यास्त और प्रदोष काल की गणना:
- भारत में सूर्यास्त का समय सामान्यतः सायं 6:00 बजे के आसपास होता है (स्थानीय भौगोलिक स्थिति के आधार पर ±15 मिनट)।
- प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद 2 घटी (48 मिनट) तक माना जाता है, अर्थात् लगभग 6:00 PM से 6:48 PM तक।
- निशीथ काल मध्यरात्रि (लगभग 11:30 PM से 12:30 AM) तक माना जाता है।
- 21 अक्टूबर को सूर्यास्त (6:00 PM) के समय अमावस्या तिथि समाप्त हो चुकी होगी, क्योंकि यह 4:00 PM के आसपास समाप्त हो रही है।
✓•3. 20 अक्टूबर की स्थिति:
- 20 अक्टूबर को सूर्यास्त (6:00 PM), प्रदोष काल (6:00 PM से 6:48 PM), निशीथ काल (11:30 PM से 12:30 AM), और सम्पूर्ण रात्रि में अमावस्या तिथि विद्यमान होगी।
- गणितीय रूप से, 20 अक्टूबर को प्रातः 6:00 बजे से अमावस्या तिथि प्रारम्भ होने के बाद, यह पूरे दिन और रात्रि तक प्रभावी रहेगी।
✓•निष्कर्ष: सूर्यसिद्धान्त की गणितीय गणना के आधार पर, 20 अक्टूबर 2025 को ही दीपावली मनाना शास्त्रसम्मत है, क्योंकि इस दिन सूर्यास्त, प्रदोष, और निशीथ काल में अमावस्या तिथि उपस्थित है।
✓•सूर्यसिद्धान्त बनाम दृक्-सिद्ध गणना: गणितीय तुलना: दृक्-सिद्ध गणनाएं आधुनिक वेधशालाओं और उपकरणों पर आधारित हैं, जो ग्रहों की वास्तविक स्थिति को प्रत्यक्ष अवलोकन द्वारा मापती हैं। उदाहरण के लिए, दृक्-सिद्ध गणना में अमावस्या का समय सूर्य और चन्द्रमा की वास्तविक खगोलीय स्थिति पर आधारित होता है, जो GPS और अन्य उपकरणों द्वारा मापा जाता है। सूर्यसिद्धान्त, इसके विपरीत, प्राचीन गणितीय मॉडल पर आधारित है, जो दीर्घकालिक औसत गति (mean motion) को आधार मानता है।
✓•उदाहरण:
- दृक्-सिद्ध गणना: मान लें कि 21 अक्टूबर 2025 को वेधशाला द्वारा मापी गई चन्द्रमा और सूर्य की कोणीय दूरी 0° दोपहर 2:00 बजे है। चूंकि चन्द्रमा की गति 12.1908° प्रति दिन है, अमावस्या तिथि 4:00 PM तक समाप्त हो सकती है।
- सूर्यसिद्धान्त गणना: सूर्यसिद्धान्त में दीर्घकालिक औसत गति के आधार पर तिथि की गणना की जाती है, जो 20 अक्टूबर को सूर्यास्त तक अमावस्या की उपस्थिति को सुनिश्चित करती है।
✓•निर्णयसिन्धु में स्पष्ट है:
"अदृष्ट-फल-सिध्यर्थ यथार्कगणितं कुरु।
गणितं यदि दृष्टार्थ तदृष्ट्युद्भव तस्सदा।।"
✓•अर्थात्, धार्मिक कर्मों (अदृष्ट फल) के लिए सूर्यसिद्धान्त का प्रयोग करें, जबकि दृष्ट प्रयोजनों (जैसे वैज्ञानिक अनुसंधान) के लिए दृक्-सिद्ध गणना उपयुक्त है।
✓•निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु का महत्व
निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु भारतीय पञ्चाङ्गों के लिए सर्वमान्य ग्रन्थ हैं। आचार्य कमलाकर भट्ट ने निर्णयसिन्धु में दृक्-सिद्ध गणनाओं को नकारते हुए सूर्यसिद्धान्त को प्रामाणिक माना है। पण्डित सदाशिव शास्त्री ने धर्मसिन्धु की टीका में सूर्यसिद्धान्त की प्रामाणिकता को स्थापित किया। सूर्यसिद्धान्त को भ्रमजाल मानने वाले विद्वानों को निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धु का भी त्याग करना होगा, जो तार्किक रूप से असंगत है।
✓•कालिदास और ज्योतिर्विदाभरण
कालिदास ने ज्योतिर्विदाभरण में लिखा है:
"श्रीसूर्यसिद्धान्तमतोद्भवार्कात् साध्यौ तदा तावधिकक्षयौ।
मासौ तदा संक्रमकाल एव साध्यः सदा हौरिकशास्त्रविद्भिः।।"
✓•यह स्पष्ट करता है कि अधिकमास, क्षयमास, और संक्रान्ति की गणना सूर्यसिद्धान्त के आधार पर ही की जानी चाहिए।
✓•शंकराचार्यों की भूमिका:
दीपावली जैसे पर्वों के तिथि-निर्णय में एकरूपता के लिए चारों शंकराचार्य पीठों को सूर्यसिद्धान्त के आधार पर समवेत घोषणा करनी चाहिए। यह धार्मिक एकता और परम्पराओं के संरक्षण के लिए आवश्यक है।
✓••निष्कर्ष: सूर्यसिद्धान्त की गणितीय और शास्त्रीय प्रामाणिकता प्राचीन ग्रन्थों और विद्वानों द्वारा सिद्ध है। दीपावली 2025 के लिए गणितीय गणना के आधार पर 20 अक्टूबर ही शास्त्रसम्मत है। सूर्यसिद्धान्त को भ्रमजाल मानने वाले विद्वानों को निर्णयसिन्धु और धर्मसिन्धुका भी त्याग करना होगा, जो असंगत है। शंकराचार्यों को सूर्यसिद्धान्त को आधार मानकर तिथि-निर्णय में एकरूपता लानी चाहिए।
✓•सन्दर्भ:
1. स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज, कुम्भ तिथ्यादि निर्णय.
2. आचार्य कमलाकर भट्ट, निर्णयसिन्धु.
3. पण्डित सदाशिव शास्त्री मुसलगाँवकर, धर्मसिन्धु टीका.
4. कालिदास, ज्योतिर्विदाभरण.
5. स्कन्दपुराण, कलिमाहात्म्य.
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