🔸 ️पितृपक्षादि में प्रायः लोगों द्वारा पूछे जानेवाले प्रश्न:👉------------
▪︎ १. पितृपक्ष में देव पूजा होगा या नहीं ?
▪︎ २. विवाह में आभ्युदयिक(नान्दी) श्राद्ध कर लिए हैं या कोई
शुभ कार्य किए हैं तो पिंडदान ,तर्पण होगा या नहीं?
▪︎ ३. गया श्राद्ध कर लिए हैं तो पितृपक्ष मनाएंगे या नहीं?
🔸️ इन सभी प्रश्नों के शास्त्रसम्मत समाधान हैं:👉
महालये गया श्राद्धे माता पित्रोर्मृतेहनि।
कृतोद्वाहोऽपि कुर्वीत पिंडदानं यथा विधि।
महालय गया श्राद्ध और माता-पिता का मरण दिन इनमें विवाह करके भी पिंड दान विधि पूर्वक करें ।
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तीर्थे तिथि विशेषे च गयायां प्रेत पक्षकै:।
निषिद्धेऽपि दिने कुर्यात्तिलैस्तर्पणमाचरेत्।
तीर्थ में पितृयज्ञ में और महालय में विवाह करने पर भी तिलतर्पण सदा करना चाहिए।
गया श्राद्ध करने के बाद भी पितृपक्ष में पिंड दान तर्पणादि करना चाहिए, इसका निषेध कहीं नहीं है। हां, बद्री क्षेत्र में ब्रह्म कपाली पर पिंडदान करने के बाद अन्य कहीं भी पिंडदान नहीं होता है। पितृपक्ष में देव पूजा का कहीं भी निषेध नहीं है । देव कर्म के बाद पितृकर्म होना चाहिये। पहले देव पूजा कर ले फिर तर्पण करें।तर्पण, पिंडदानादि में क्षौर कर्म एक दिन पूर्व होना चाहिए उस दिन क्षौर करवाना निषेध है जबकि प्रायः लोग उसी दिन क्षौर करवाते हैं। इसका शास्त्रों ने स्पष्ट निषेध किया है।
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कृत्वा तु मैथुनं क्षौरं यो देवांस्तर्पयेत्पितॄन् ।
रुधिरं तद्भवेत्तोयं दाता च नरकं व्रजेत् ।।
जो मनुष्य मैथुन तथा क्षौरकर्म करके देवताओं और पितरों का तर्पण करता है वह जल रक्त के समान होता है तथा दाता नरक में जाता है।
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और हां....
▪️ ध्यान दें-पितृ पक्ष के नाम पर अनेक अशास्त्रीय भ्रान्तियाँ
भी प्रचलित हैं 👉
▪︎ १. पितृ पक्ष में दैनिक पूजन अनुष्ठानादि का निषेध
▪︎ २. नवीन सामग्री क्रयविक्रयनिषेध,
▪︎ ३. हल्दी तेल मसाला निषेध। कृपया इस पाखण्ड का विरोध करें, और जो भी ऐसा कहे उससे ऐसी मान्यता का शास्त्रीय प्रमाण अवश्य मांगें।
गुरुदेव
भुवनेश्वर
9893.46810
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