ज्योतिष समाधान

Sunday, 18 May 2025

#नवतपा 2025#

नौतपा में अबकी बार पड़ेगी प्रचंड गर्मी, जानें कब से कब तक लगेगा नौतपा

ज्योतिषाचार्य गुरुदेव भुननेश्वर पर्णकुटी आश्रम  ने बताया की सूर्य 15 दिनों के लिए रोहिणी नक्षत्र में रहते हैं, जिसके शुरुआती 9 दिनों को नौतपा कहा जाता है. नौतपा के 9 दिन अगर भीषण गर्मी पड़ती है तो यह बारिश होने के अच्छे संकेत होते हैं. लेकिन नौतपा के दौरान बारिश हो जाती है तो फिर यह फसलों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. 25 मई से 2025 से सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे, जिससे नौतपा की शुरुआत होगी, हर साल सूर्य देव 15 दिनों के लिए रोहिणी नक्षत्र में गोचर करते हैं और इन्हीं 15 दिन के शुरुआती नौ दिनों को नौतपा के नाम से जाना जाता है.इस बार 25 मई को प्रात:9:40से नौतपा की शुरुआत हो रही है. जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेगे. यह अवधि 15 दिनों तक चलेगी और रोहिणी नक्षत्र का समापन 8 जून प्रात:07:27 को होगा, उसके बाद सूर्य मृगशिरा नक्षत्र में प्रवेश करेगा.  अत: 25 मई से 02 जून तक नव तपा का योग बन रहा है गुरुदेव भुवनेश्वर ने बताया  रोहिणी नक्षत्र शुक्र देव का नक्षत्र होता है और शुक्र देव सूर्य देव के शत्रु नक्षत्र माने गए हैं, इसलिए जब सूर्य और शुक्र मिलते हैं तो इसी वजह से भीषण गर्मी पड़ती है.  तपा लगने के दौरान चंद्रदेव नौ नक्षत्रों में भ्रमण करते हैं इसलिए शीतलता का प्रभाव नौतपा के दौरान हट जाता है ज्योतिष शास्त्र में जब चंद्रमा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक अपनी स्थितियों में हो एवं तीव्र गर्मी पड़े, तो ये स्थिति नौतपा कहलाती है। अगर रोहिणी के दौरान अगर बारिश हो जाती है तो इसे रोहिणी नक्षत्र का गलना भी कहा जाता है।

ज्येष्ठ मासे सीत पक्षे आर्द्रादि दशतारका।
सजला निर्जला ज्ञेया निर्जला सजलास्तथा।।

 धार्मिक मान्यता है कि अगर नौतपा के इन 9 दिनों में बारिश नहीं होती, तो उस साल बारिश भी जोरदार होती है। 


अगर नो तपा न तपे तो जहरीले जीव-जंतु और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट पतंगे खत्म नहीं होंगे. 

टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे, 

बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे. 

सांप-बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे. 

लू नहीं चलने के कारण आंधियां फसलों को चौपट कर सकती है. 

यही वजह है कि नौतपा में भीषण गर्मी पड़ना अच्छा माना जाता है. घाघ भद्दरी के अनुसार 

 दो मूसा, दो कातरा, दो तीड़ी, दो ताय।

कहने का मतलब  

नौतपा के पहले 2 दिन लू न चले तो चूहे बहुत हो जाएंगे। 

अगले 2 दिन लू न चले तो कातरा (फसल को नुकसान पहुंचाने वाला कीट) नहीं मरेगा। 

. तीसरे दिन से 2 दिन लू न चली तो टिडियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे। 

चौथे दिन से 2 दिन नहीं तपा तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे। 

इसके बाद दो दिन लू न चली तो विश्वर यानी सांप-बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे। 

आखिरी दो दिन भी लू नहीं चली तो आंधियां अधिक चलेंगी और फसलें चौपट कर देंगी।

इस वार नव तपा के दौरान आगजनी  तेज हवाएं, आंधिया और फिर बरसा के योग बनते नजर आ रहे है नौ दिन में से अंतिम 3 दिन हवाएं खूब तेज चलेगी। कहीं-कहीं मध्यम बारिश की संभावना है तो कहीं बौछारें भी हो सकती है। नौतपा का समय हमेशा गर्मी और सूर्य की प्रचंड तपिश के लिए प्रसिद्ध होता है। इस समय सूर्य देव पृथ्वी के बहुत करीब आ जाते हैं जिससे गर्मी की तीव्रता अपने चरम पर पहुंच जाती है। 

Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti
9893946810

2025 में #होलिका दहन कब है

गुरुदेव भुवनेश्वर जी महाराज ने बताया है कि होलिका दहन 13 मार्च को देर रात होगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 26 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इसी समय होलिका दहन किया जाएगा। होलिका दहन के दिन सबसे पहले गोबर की होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाकर तैयार कर लें।ओर गोबर की मलरिया की माला 
भरभोलिए (गाय के गोबर के उपले जिसमें छेद रहता है, इसमें मूंज की रस्सी डालकर माला बनाई जाती है)
तैयार कर लेवे
 उसके बाद पूजा की थाली में रोली, चावल, नारियल,, कलावा,, कच्चा सूत, ,फूल,  दूर्वा ,साबुत हल्दी, ,बताशे,,मिठाई ,,घर में बने हुए पकवान, फल पूजा के लिए जल से भरा जल कलश आदि रखें। फिर पूजा स्थल पर एक कलश में पानी भरकर रख दें। इस बात का ध्यान रखें कि पूजा के दौरान आपको अपना मुख पूर्व या उत्तर की ओर रखना है। अब नरसिंह भगवान का ध्यान करते हुए उन्हें रोली, चावल, मिठाई, फूल आदि अर्पित करें। इसके बाद होलिका दहन वाले स्थान पर जाकर होलिका की पूजा करें। फिर प्रह्लाद का नाम लेकर फूल अर्पित करें और उन्हें 5 अनाज चढ़ाएं। 
होलिका के लिए मंत्र: ओम होलिकायै नम:
भक्त प्रह्लाद के लिए मंत्र: ओम प्रह्लादाय नम:
भगवान नरसिंह के लिए मंत्र: ओम नृसिंहाय नम:
इसके बाद एक कच्चा सूत लेकर होलिका की परिक्रमा करें और आखिरी में उसमें गुलाल डालकर जल अर्पित करें।
होलिका दहन के दिन शरीर से उतारे गए उबटन को होलिका में अवश्य जलाना चाहिए-

 होलिका की आग में कपड़े, टायर आदि चीजें डाल देते हैं, जिससे ना सिर्फ होलिका की अग्नि अपवित्र होती है बल्कि प्रदूषण भी होता है. साथ ही इन चीजों का संबंध राहु और मंगल ग्रह से है, अगर आप होलिका की अग्नि में इन चीजों का डालते हैं तो कुंडली में इन ग्रहों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता 

शास्त्रों के अनुसार, साल में तीन रात्रियां अत्यंत शुभ मानी जाती हैं- (1,)महाशिवरात्रि, (2)होलिका दहन और (3)दीपावली की अमावस्या. होली की रात का विशेष महत्व है, खासकर उन लोगों के लिए जो लंबे समय से परेशानियों का सामना कर रहे हैं. यह रात विशेष रूप से उन समस्याओं को समाप्त करने में मददगार होती है जो लंबे वक्त से परेशान कर रही हों. सही उपाय करने से व्यक्ति की बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में नई सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
घर में अगर कोई सदस्य लंबे समय से बीमार है, तो होली की रात भगवान नरसिंह का स्तोत्र पाठ करें.
एवं होलिका दहन की राख को शिवलिंग पर अर्पित करना शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इससे शनि की महादशा, साढ़ेसाती और ढैय्या के प्रभाव कम हो जाते हैं, जिससे रुके हुए कार्य बनने लगते हैं. यह उपाय राहु-केतु के नकारात्मक प्रभाव को भी कम करने में सहायक होता है और वैवाहिक जीवन में खुशियाँ लाता है होलिका दहन की राख को लाल कपड़े में रखकर उसमें तांबे का सिक्का डालकर बांध लें और इसे तिजोरी या पैसे रखने वाले स्थान पर रखें. ऐसा करने से घर में धन-संपत्ति का आगमन होता है और देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है.जो लोग बार-बार बीमार पड़ते हैं, उन्हें एक महीने तक प्रतिदिन होलिका दहन की राख को माथे पर लगाना चाहिए. ऐसा करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है और व्यक्ति पूर्णतः स्वस्थ महसूस करता है. बच्चों को बुरी नज़र से बचाने के लिए होलिका दहन की राख को उनके माथे पर तिलक के रूप में लगाएँ. यह उपाय बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है.
एक काला कपडा लें और उसमें काले तिल, 7 लौंग, 3 सुपारी, 50 ग्राम सरसों और ओर थोड़ी सी मिट्टी लेकर एक पोटली बना लें. इसे खुद पर से 7 बार उतारा कर लें और होलिका दहन में डालें.
यदि राहु के कारण परेशानी है तो एक नारियल का गोला लेकर उसमें अलसी का तेल भरें. उसी में थोड़ा सा गुड़ डालें और इस गोले को जलती हुई होलिका में डाल दें. इससे राहु का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाएगा.
बेरोजगार हैं तो होली की रात 12 बजे से पहले एक नींबू लेकर चौराहे पर जाएं और अपने सिर से सात बार घुमाकर उसके चार टुकड़े कर चारों दिशाओं में फेंक दें. वापिस घर आ जाएं किन्तु ध्यान रहे, वापस आते समय पीछे मुड़कर न देखें.
इसके अलावा होलिका दहन में पान के पत्ते का भी एक उपाय करना चाहिए। इसके लिए एक पान का पत्ता लें और इस पान के पत्ते को घी में डूबा दें, इसके बाद इश पर एक बताशा रख लें। इसके बाद इसे होलिका दहन में डाल दें, इससे भी मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है।
अगर आपको नौकरी नहीं मिल रही या पदोन्नति में अड़चनें आ रही हैं, तो होली की रात 8 नींबू लेकर उन्हें अपने ऊपर से 21 बार उल्टी दिशा में वारें और फिर जलती होलिका में डाल दें. इसके बाद होलिका की 8 परिक्रमा करें और मन ही मन अपने करियर से जुड़ी इच्छा पूरी होने की प्रार्थना करें.
होलिका दहन के दिन सरसों के दाने और काले तिल अपने ऊपर से वारकर सरसों के दानें और काले तिल डाल दें। इससे आपकी नेगेटिविट दूर होगी।

Monday, 5 May 2025

ram katha

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग   त्रेतायुग   द्वापरयुग   कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग   त्रेतायुग   द्वापरयुग   कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।

Thursday, 1 May 2025

चौषठ योगनी

चौसठ योगिनी का उल्लेख पुराणों में मिलता है जिनकी अलग अलग कहानियां है । इनको आदिशक्ति मां काली का अवतार बताया है
कहा जाता है घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने ये अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पर्वती की सखियां हैं।

ब्रह्म वैवर्त पुराण में भी इन योगिनियों का वर्णन है लेकिन इस पुराण के अनुसार ये ६४ योगिनी कृष्ण की नासिका के छेद से प्रकट हुईं हैं
चौसठ योगिनियों की पूजा करने से सभी देवियों की पूजा हो जाती है। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतार रूप हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं।

हर दिशा में 8 योगिनी फ़ैली हुई है, हर योगिनी के लिए एक सहायक योगिनी है, हिसाब से हर दिशा में 16 योगिनी हुई तो 4 दिशाओ में 16 × 4 = 64 योगिनी हुई । ६४ योगिनी ६४ तन्त्र की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। एक देवी की भी कृपा हो जाये तो उससे संबंधित तन्त्र की सिद्धी मानी जाती है। चौंसठ योगिनियों के नाम इस प्रकार हैं – 1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।
योगिनीस्तोत्रसारं च श्रवणाद्धारणाद् यतिः ।
अप्रकाश्यमिदं रत्नं नृणामिष्टफलप्रदम् ॥ ३१-३७॥

यस्य विज्ञानमात्रेण शिवो भवति साधकः ॥ ३१-३८॥

कङ्काली कुलपण्डिता कुलकला कालानला श्यामला ।
योगेन्द्रेन्द्रसुराज्यनाथयजिताऽन्या योगिनीं मोक्षदा ।
मामेकं कुजडं सुखास्तमधनं हीनं च दीनं खलं
यद्येवं परिपालनं करोषि नियतं त्वं त्राहि तामाश्रये ॥ ३१-३९॥

यज्ञेशी शशिशेखरा स्वमपरा हेरम्बयोगास्पदा ।
दात्री दानपरा हराहरिहराऽघोरामराशङ्करा ।
भद्रे बुद्धिविहीन देहजडितं पूजाजपावर्जितं
मामेकार्भमकिञ्चनं यदि सरत्त्वं योगिनी रक्षसि ॥ ३१-४०॥

भाव्या भावनतत्परस्य करणा सा चारणा योगिनी ।
चन्द्रस्था निजनाथदेहसुगता मन्दारमालावृता ।
योगेशी कुलयोगिनी त्वममरा धाराधराच्छादिनी
योगेन्द्रोत्सवरागयागजडिता या मातृसिद्धिस्थिता ॥ ३१-४१॥

त्वं मां पाहि परेश्वरी सुरतरी श्रीभास्करी योगगं
मायापाशविबन्धनं तव कथालापामृतावर्जितम् ।
नानाधर्मविवर्जितं कलिकुले संव्याकुलालक्षणं
मय्येके यदि दृष्टिपातकमला तत् केवलं मे बलम् ॥ ३१-४२॥

मायामयी हृदि यदा मम चित्तलग्नं
     राज्यं तदा किमु फलं फलसाधनं वा ।
इत्याशया भगवती मम शक्तिदेवी
     भाति प्रिये श्रुतिदले मुखरार्पणं ते ॥ ३१-४३॥

या योगिनी सकलयोगसुमन्त्रणाढ्या
     देवी महद्गुणमयी करुणानिधाना ।
सा मे भयं हरतु वारणमत्तचित्ता
     संहारिणी भवतु सोदरवक्षहारा ॥ ३१-४४॥

यदि पठति मनोज्ञो गोरसामीश्वरं यो
     वशयति रिपुवर्गं क्रोधपुञ्जं विहन्ति ।
भुवनपवनभक्षो भावुकः स्यात् सुसङ्गी
     रतिपतिगुणतुल्यो रामचन्द्रो यथेशः ॥ ३१-४५॥

एतत्स्तोत्रं पठेद्यस्तु स भक्तो भवति प्रियः ।
मूलपद्मे स्थिरो भूत्त्वा षट्चक्रे राज्यमाप्नुयात् ॥ ३१-४६॥

इति श्रीरुद्रयामले उत्तरतन्त्रे महातन्त्रोद्दीपने षट्चक्रप्रकाशे
सिद्धिमन्त्रप्रकरणे भैरवभैरवीसंवादे भेदिन्यादिस्तोत्रं
नाम एकत्रिंशः पटलः ॥
  महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती की तीनों की सहचरी योगिनी पृथक पृथक है और प्रत्येक में कुछ भेद है इस विषय पर चलचित्र के द्वारा अवगत करवा दिया जायेगा।।