ज्योतिष समाधान

Monday, 15 April 2024

ब्राह्मण कोन है

शंका:~ जिसका जन्म ब्राह्मण कुल में होकर भी वह ब्राह्मणोचित संस्कार न धारण करता हो, तो क्या  उसे भी ब्राह्मण कहा जाये ?

                     
👇समाधान  😊👇🏻  
महाभारत के आदिपर्व में गरूड़जी ने भूख लगने पर माता से भोजन मांगा।      तब विनता जी ने गरूड़ जी को किरातों को खाने की आज्ञा दी, कहा---  'हे पुत्र !   इनके बीच में एक संस्कारहीन ब्राह्मण है, उसको न खाना।'  

 'इतने किरातों के बीच में उसकी पहचान कैसे हो ?'

 इसपर कहा ---   'जिसपर प्रहार करने से तुम्हारा गला आग के समान जलने लगे, उसे ब्राह्मण समझना।'

इससे संस्कारहीन भी जन्ममात्र से ब्राह्मण सिद्ध होता है।

युधिष्ठिर के प्रति भगवान् ने कहा है-----  "अविद्यो वा सविद्यो वा ब्राह्मणो मामकीतनु:"  【विद्वान् हो या मूर्ख, ब्राह्मण मेरा शरीर है।】
अतः जो ब्राह्मण के बीज से उत्पन्न है वह ब्राह्मण ही है, शूद्र नहीं।

यद्यपि संस्कारहीन ब्राह्मण सदाचारी ब्राह्मणों के बीच में पतित ही माना जाता है,न तो वह सम्मान का पात्र होता है और न ही संन्यास का अधिकारी ही , तथापि जन्म से तो वह ब्राह्मण ही है।

'ब्राह्मणी कन्या के गर्भ से ब्राह्मण द्वारा उत्पन्न पुत्र उत्तम ब्राह्मण है।' यह बात हारीत, व्यास, विष्णु स्मृतियों से सिद्ध होती है।

अब जो लोग कहते हैं कि जैसा जिसका संस्कार होता है, वैसा उसका वर्ण भी होता है। वे लोग सुनें~

अपने वर्ण की ही स्त्री से उत्पन्न पुत्र का संस्कार होता है।
यदि संस्कार मात्र से द्विजत्व प्राप्त होगा तो अन्त्यजों, चांडालों एवं मुसलमानों का भी संस्कार होकर द्विज कहा जायेगा तथा चारों वर्णों की एक ही जाति हो जायेगी, यह सर्वथा शास्त्र के विरुद्ध है।

श्रुति, स्मृति, इतिहास, पुराणों में चारों वर्ण-आश्रमों के पृथक्-पृथक् धर्म कहे गये है, यही वर्णाश्रम प्राप्त धर्म ही सनातन धर्म है, ऐसी स्थिति में इसका लोप हो जायेगा।

कभी-कभी संसार में देखा जाता है कि विद्वान् कुल में उत्पन्न होने पर भी कोई मूर्ख ही रहता है।
कोई स्वयं मूर्ख होने पर भी उसका पुत्र विद्वान् हो जाता है।  कोई सत्कुल में जन्म लेकर भी असत्कर्म करते हैं।   
कोई-कोई इन सबसे विलक्षण भी पाये जाते हैं। 
इनमें से कौन पूज्यनीय है ?  
अच्छे कुल में पैदा हुआ मूर्ख या असत् कुल में पैदा हुआ विद्वान् ?
इस सम्बंध में कहा है~

        "जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेय: संस्कारैर्द्विज उच्यते।
      वेदाभ्यासाद् भवेत विप्र त्रिविधं श्रोत्रिय लक्षणम्।।" 

【शुद्ध ब्राह्मणी के गर्भ से शुद्ध ब्राह्मण द्वारा उत्पन्न बालक जन्म से ब्राह्मण कहा गया है,  समय पर उपनयन आदि संस्कार नक्त ब्राह्मण श्रोत्रिय कहा जाता है।】

व्यास संहिता में कहा है~

        "ब्रह्मबीज समुत्पन्नो मन्त्र संस्कार वर्जित:।
       जाति मात्रोपजीवी च स भवेत् ब्राह्मण: सम:।।"

【जो ब्राह्मण पिता से उत्पन्न होकर भी संस्कारहीन है, केवल जाति मात्र से जीविका चलाता है, वह साधारण ब्राह्मण कहलाता है।】

जो गर्भधानादि संस्कारों से युक्त तथा वेदाध्ययन से युक्त है, किन्तु ब्राह्मणोचित कर्म नहीं करता, वह भी साधारण ब्राह्मण है।

🙏🙏
Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti Guna
9893946810

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