ज्योतिष समाधान

Thursday, 22 October 2020

दुर्गा हवन सामग्री श्लोक संख्या सहित कौन से श्लोक पर किस ओषधि का हवन करना है केवल ब्राह्मणों के उपयोगार्थ लिंक ओपन करे हमसे सम्पर्क :9893946810


नवरात्रि हवन सामग्री श्लोक संख्या सहित कई कौन से श्लोक पर किस ओषधि का हवन करना है केवल ब्राह्मणों के उपयोगार्थ लिंक ओपन करे

श्लोक सँख्या   ///******///
1   पत्र पुष्प, फल,
2 अर्क
3 अर्क
5 अपामार्ग
6 कुशा
7 खैर
10 त्रण कुशा दूर्वा
20 पत्र पुष्प फल
26 पत्र पुष्प फल
29 पत्र पुष्प फल
35 पत्र पुष्प फल
39 पत्र पुष्प फल
46पत्र पुष्प फल
51 यव तंडुल
55 इलायची
56 शकर
59 पत्र पुष्प फल
63 पत्र पुष्प फल
66 मिश्री पुष्प
67 पीपल पत्ता कमल गट्टा
68 उडद राल समुद्र फेन
69कमल गट्टा
70 कमल गट्टा
71पत्र पुष्प फल
72 हल्दी
73पुष्प
74दूर्वा दर्भा
75 मिश्री
77 राई
78 राई
79 लाजा  पुष्प मिश्री शहदेवी
80 हवन नही
83 राई
84जाय फल  भांग
87 भांग
88पत्र पुष्प फल
89 कमल गट्टा
92 रक्त गुंजा
94 राई
96 पत्र पुष्प फल
100 कपूर
101 कमलगट्टा दर्भा
102 पत्र पुष्प फल
103 कुशा शंख  पुष्पी गूगल पान  मधु केला
104 पुष्प
महाहुति "","पान कैथ मधु कमल गट्टा गूगल गंधक्षत पुष्प लोंग इलायची सुपाड़ी
=================================

               दूसरा अध्याय

श्लोक सँख्या ///******///
1 पत्र पुष्प, फल,
2 अर्क
3 अर्क
5 अपामार्ग
6 कुशा
7 खैर
10 त्रण कुशा दूर्वा
20 पत्र पुष्प फल
26 पत्र पुष्प फल
29 पत्र पुष्प फल
35 पत्र पुष्प फल
39 पत्र पुष्प फल
46पत्र पुष्प फल
51 यव तंडुल
55 इलायची
56 शकर
59 पत्र पुष्प फल
63 पत्र पुष्प फल
66 मिश्री पुष्प
67 पीपल पत्ता कमल गट्टा
68 उडद राल समुद्र फेन
69कमल गट्टा
70 कमल गट्टा
71पत्र पुष्प फल
72 हल्दी
73पुष्प
74दूर्वा दर्भा
75 मिश्री
77 राई
78 राई
79 लाजा पुष्प मिश्री शहदेवी
80 हवन नही
83 राई
84जाय फल भांग
87 भांग
88पत्र पुष्प फल
89 कमल गट्टा
92 रक्त गुंजा
94 राई
96 पत्र पुष्प फल
100 कपूर
101 कमलगट्टा दर्भा
102 पत्र पुष्प फल
103 कुशा शंख पुष्पी गूगल पान मधु केला
104 पुष्प
महाहुति "","पान कैथ मधु कमल गट्टा गूगल गंधक्षत पुष्प लोंग इलायची सुपाड़ी
=================================

               दूसरा अध्याय

""""""""","''''''':::::::::::""""""""""''''''''**********

1 पत्र पुष्प फल
2 भैंसा गूगल
10 नीम गिलोय जाय फल
12 कपूर
14 जाटा मासी  विष्णु कांता
15आम्र फल
17 कपूर
18 रक्त चंदन
20 लोंग
21 शंख पुष्पी
22 लोंग
25 पुष्प
28 कपूर पुष्प
29 पुष्प कमल गट्टा
30 मधु
57 हरताल
60 सरसो
63 कटहल
67 दर्भा कपूर राई
69 पुष्प गूगल विल्वफल

महाहुति """"","",पान शाकल्य  कमल गट्टा  गूगल नारियल फल खंड  पुष्प  लोंग  इलायची सुपाड़ी

:::      ::::  ::::::::::;;;         ::::::::: :;: ;;;;;;;;;    ;;
     तीसरा अध्याय
1पत्र पुष्प फल
9 दर्पण कपूर
10 लोंग कागजी नीबू
12 मैनसिल
17 मैनसिल
19 लोंग
20 सरसों
25 खिरनी
27 सिंघाड़ा
29 हरताल
34 पान गुड़ दूध शहद
36 वच राजान
37 पत्र पुष्प फल
38  मधुआसव पत्र पुष्प फल
39 पत्र पुष्प फल
40 सरसो गोखुरु
42 कालीमिर्च उडद लोकी
44 पत्र पुष्प गुलाल पान सुपारी
  महा आहुति """""""पान विजोरानीबू चंदन दधि नीम गिलोय  माष (उडद दही मिलाकर ) भैसा गूगल  कमल गट्टा  लोंग इलायची सुपारी पत्र पुष्प फल

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
चौथा अध्याय :::::::
3 कदली फल
5 विष्णु कांता विल्वफल
7 विल्व फल
8 हलुआ पकवान  श्वेत चंदन
11 ब्राह्मी कपूर
12 विजोरा
14 लाल कनेर पुष्प
23 कमल गट्टा  लाल कनेर सीताफल
24 से  हवन नही होगा
27 तक हवन नही होगा
28 पत्र पुष्प फल
29 पुष्प लाल चंदन हरिद्रा सुगंधित द्रव्य
30 अष्टांग धूप गूगल
31 पत्र पुष्प फल
33 पत्र पुष्प फल
34 राई  गूगल
35 गूगल जाय फल
36 पंचमेवा खीर गुलकंद  मिश्री पुष्प फल
37 पत्र पुष्प फल 
39 पुष्प
41 भोजपत्र  रक्तनीर 
42 पुष्प आंवला  मधु  धूप
महआहुति :::::     पान शाकल्य खीर कमल गट्टा विल्वफल लोंग इलायची गूगल पुष्प सुपारी

::::: :::::::::: :::::: ::::::; :::::::: :::::::: ::::: ::::;: ::::: :::::
1 पत्र पुष्प फल
6 पत्र पुष्प फल
8 पत्रपुष्प फल
9 पत्र पुष्प फल  गूगल भोज पत्र 
10 हल्दी  आंवला
11 पुष्प
12 दूर्वा
13 दारू हल्दी
14 से 16तक  विष्णु कांता
17 से  19 तक आंवला
20 से 22 तक ब्राह्मी
23 से 25  तक हल्दी ब नीम गिलोय
29 से 31 तक सतावरी
32 से 34 तक सोंठ  जाय फल
44 से 46 तक   लाजा पुष्प
47 से 49 तक पुष्प
50 से 52 तक पुष्प
53 से 55 तक  अबीर
56 से 58 तक  मिश्री विल्वफल कमल गट्टा
59 से 61 तक शहद  पुष्प
62 से 64 तक  ब्राह्मी विजया
65 से 67 तक सहदेवी
68 से 70 तक पकवान
71 से 73 तक  केसर लाल कनेर
81 मिश्री इलायची
82 गूगल
83 पत्र पुष्प फल
84 जावित्री
85 दाल चीनी
86 भोज पत्र 
87 भोजपत्र दालचीनी
88 दारू हल्दी  पुष्प
89 आम्र फल
92 कपूर
94 पुष्प विल्व पत्र
95 गुंजा
96 पुष्प कमलगट्टा
97 भोजपत्र
99 भोजपत्र
101 पत्र पुष्प
104 मैनसिल
105 पत्र पुष्प फल
114 लाजा
115 पत्र पुष्प फल
116 वच पान भोजपत्र शमीपत्र दूर्वा
117  शमी पत्र दूर्वा फल पुष्प कनेर पुष्प
120 लाजा लोंग काजल
121 लाजा खाजा शमीपत्र  हिंगुल
122 पत्र पुष्प फल
126 जटामांसी
127 पान पुष्प फल शमीपत्र
129 ताम्बूल सुपारी गन्ना
महआहुति:::   पान शाकल्य लोंग इलायची सुपारी गूगल कमल गट्टा श्वेत चंदन पुष्प फल विजोरा

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छठवा अध्याय :::::::
1पत्र पुष्प फल
4 राई  जटामांसी गूगल
7 मसूर
10 पत्र पुष्प फल
12 पत्र पुष्प फल
13 राल विजोरा गूगल
14 उडद मसूर
17 केसर
18 केसर राई
19 केसर राई
23 राई जटामांसी
24 लोंग कनेर गन्ना
महआहुति ******पान शाकल्य गूगल कमलगट्टा  भोजपत्र कुष्मांड नारंगीफल  नारिकेल फल खंड /

**///***///////****//////*****/////*****/////***
सातवा अध्याय **///*****////***/////
1पत्र पुष्प फल
5 काली हल्दी कस्तूरी काजल
6 काली मिर्च
8 पान रक्त चंदन कुमकुम केसर
12 सरसो
14 हल्दी काली मिर्च
15 गूगल बज्र दंती
19 कपूर बज्र दंती
20 जटा मासी दर्भा सरसो कदली फल
23 विजोरा नीबू
24 गन्ना
25 पत्र पुष्प फल
26 पान पुष्प फल आम्रफल  चिरोंजी
महआहुति ****/////पान शाकल्य लोंग इलायची चिरोंजी लाजवंती पुष्प कमल गट्टा जाय फल कुष्मांड फलखंड कपूर
******///////*****/////******///////****//////आठवाँ अध्याय
1 पत्र पुष्प फल
5 राई
6 राई
8दूर्वा रक्त नीर गूगल
9 दूर्वा रक्त नीर गूगल
10 दूर्वा गूगल काली हल्दी
13 पत्र पुष्प फल
14 गुंजा
15 ब्राह्मी
16 जटामासी
17 मोर पंख
18 विष्णु कांता
19 बज्रदन्ति पत्र
20 गोखरू
21 पुष्प लोंग
28 जटामासी  विजया
29  आमी हल्दी
39 सरसों
43 रक्त गूंजा 
44 रक्त गुंजा
49 लालचन्दन
54 रक्त चंदन रक्त गुंजा
55 रक्त चंदन
57 से 61 तक रक्त चंदन
62 विजोरा नीबू
63 पुष्प
महआहुति****//////पान शाकल्य कमलगट्टा लोंग इलायची  सुपारी गूगल कुष्मांड फलखण्ड लाल चंदन मधु

*/******///////******///////******/////******//

नबम अध्याय ****///////
1पत्र पुष्प फल
2 विजोरा नीबू
4 पत्र पुष्प फल
17 कवीठ/कैथ
20 केसर
31 दूर्वा रक्त नीर
34 लोंग
35 विजोरा नीबू
36 गूगल कण इन्द्र जो
38 मोरपंखी
41 उडद कुष्मांड फलखण्ड गन्ना पान सुपारी बेलगिरी
महआहुति ****////पान शाकल्य लोंग इलायची सुपारी विजोरा कूष्मांडखण्ड इक्षुरखण्ड /गन्ना विल्वफल  मैनफल

*******///////*******////////******/////*****//

/दसवाँ अध्याय **///
1 पत्र पुष्प फल
2 केसर कस्तूरी
4 पान पुष्प फल दूर्वा शमीपत्र
5 रक्त चंदन
6 पान पुष्प फल
7 पुष्प
8 पान पुष्प फल दूर्वा शमीपत्र
9 पुष्प
10 पान पुष्प फल
27 पक्का केला
28 भोजपत्र
31 पुष्प
32 कपूर गूगल कमल गट्टा बटपत्र इन्द्र जो
महआहुति *****/////
पान शाकल्य लोंग इलायची सुपाड़ी  कस्तूरी कमलगट्टा गूगल विल्वफल  कूष्मांडखण्ड फल पुष्प मैनसिल मातुलिंग

******////////******////////******///////*******

ग्यारवा अध्याय ****/////

1 /1से 3 तक पुष्प पत्र फल
3 दूर्वा
5 विष्णु कांता विजोरा नीबू
6 भोजपत्र  मालकांगनी
10 इलायची गूगल जायफल दूर्वा पुष्प फल केसर मिश्री
12 दूर्वा पुष्प गुगल कमलगट्टा
13 कुशा ब्राह्मी
14 कपूर
15 मोरपंखी
16 शंख पुष्पी
17 बज्र दंती
18 गोखरू
19 पुष्प
20 जायफल जटामांसी
21 नीम गिलोय
22 लोंग इलायची गूगल मिश्री
23पान पुष्प
24 लालकनेर दूर्वा फल पुष्प पत्र बहेड़ा
25 बहेड़ा
26 नीम आंवला राई
28 रक्तचन्दन उडद मसूर दही
29 सरसो कालीमिर्च जायफल नीम गिलोय आंवला राई
31भोजपत्र मालकांगनी 
32 हल्दी दर्भा दुर्बा
33 पुष्प मिश्री
35 फल पुष्प
36 दुर्बा पत्र पुष्प फल शमी पत्र
37 लाजा शमीपत्र फल पुष्प फल
38 पान पुष्प फल
39 सरसों कालीमिर्च दालचीनी जायफल
40 दूर्वा पान शमीपत्र
41 सरसों
42 मक्खन
43 जायफल
44 दाड़िम/गुड़हल के पुष्प
45 आनार मजीठ
46 पुष्प पान फल नारंगी
47 इलायची कमल गट्टा
49 पालक पत्र पुष्प फल
50 दूर्वा लाल कनेर पान फल
52 रक्त गुंजा पान पुष्प फल
53 लालकनेर
54 पुष्प फल पान
55 काली मिर्च सरसो गुगल
महआहुति****///// पान लोंग इलायची कपूर  शकर पत्र पुष्प फल कमल गट्टा सुपारी  मिश्री खीर गूगल गन्ना गुड़हल पुष्प फल
******///////*******///////*******//////*****

बारहवा अध्याय ****/////
1 पान शमीपत्र पुष्प फल
2 गूगल दूर्वा आमी हल्दी  नागकेसर
3 दर्भा
4 भोजपत्र
5 गूगल मिश्री
6 हल्दी दूर्वा
8 मिश्री गूगल
9 पान पुष्प मिश्री इलायची मधु
10 गन्ना कुष्मांड खंड फल नारियल खण्ड फल पेड़ा
11 केला गन्ना कुष्मांड खंड फल
12 पान पुष्प फल मिश्री
13 पान पुष्प मिश्री हल्दी खीर फल इलायची
14 दूर्वा
15 दर्भा
17 अर्क पलास शमीपत्र खैर भोजपत्र
18 राई गुगल फूल प्रियंगु  आशापुरी धूप
20 पान पुष्प फल
21 पान पुष्प फल धूप केसर  मिश्री कपूर विजोरा नीबू  पकवान
22 खीर पकवान
23पान पुष्प फल जायफल
25 दर्भा पुष्प भोजपत्र
29 हरताल गूगल पुष्प
30 सरसों गूगल लोंग
31 पान पुष्प फल
32 वच पान पुष्प
33 सर्वोषधि
36 पान पुष्प फल
39 अनार के छिलके
41 गंध पुष्प पान फल मिश्री जाय फल  चन्दन धूप
महआहुति ****/////
अगर केसर कस्तूरी कमल गट्टा पत्र पुष्प फल जाय फल विल्वफल  मिश्री

******/////******/////////*******////////*******

तेरहँवा अध्याय

1 पत्र पुष्प फल
3 विष्णु कांता
5 पान पत्र  पुष्प फल
6 पान पत्र पुष्प फल
9 पुष्प  भोजपत्र
10 पान पुष्प गन्ध धूप फल
11 गन्ना
12 पान पुष्प फल  खोपरा बूरा गुड़
13 पान पुष्प फल दूर्वा शमीपत्र
14 पान पुष्प फल नारियल खंड फल
15 पान पुष्प फल
16 भैंसा गुगल काली मिर्च अशोक पुष्प या पत्र
18 पान पुष्प फल दूर्वा कनेर पुष्प शमीपत्र
19 कमलपुष्प अशोक पुष्प या पत्र
20 सरसो गुगल
22 अर्क कपूर
23 पुष्प फल
24 भोजपत्र
25 पुष्प फल पान
26 पुष्प फल पान
28 पुष्प फल पान
29 अर्क कपूर गंध फल पान सुपारी
महआहुति******//////पान शाकल्य लोंग इलायची सुपारी  विल्वफल गुगल कमल गट्टा फल शमीपत्र श्वेतकेसर कपूर पुष्प अर्क पुष्प  नारियल खंड फल
महआहुति///****

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”वर्ष मासो दिनं लग्नं मुहूर्तश्चेति पञ्चकम्। कालस्यांगानि मुखयानि प्रबलान्युत्तरोतरम्॥ लग्नं दिनभवं हन्ति मुहूर्तः सर्वदूषणम्। तस्मात् शुद्धि मुहूर्तस्य सर्व कार्येषु शस्यते॥” ”वर्ष का दोष श्रेष्ठ मास हर लेता है, मास का दोष श्रेष्ठ दिन हरता है, दिन का दोष श्रेष्ठ लग्न व लग्न का दोष श्रेष्ठ मुहूर्त हर लेता है, अर्थात मुहूर्त श्रेष्ठ होने पर वर्ष, मास, दिन व लग्न के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं।

Gurudev bhuvaneshvar
Par n kuti guna
9893946810
मुहूर्त के अनुसार कार्य करने से हानि की संभावना को तो कम किया ही जा सकता है।

तिथि फल - एक गुणा 
नक्षत्र फल - चार गुणा
वार फल - आठ गुणा 
करण फल - सोलह गुणा 
योग फल - बत्तीस गुणा 
तारा फल - एक सौ आठ गुणा 
चंद्र फल - सौ गुणा 
लग्न फल - एक हजार गुणा

—अथर्व वेद जैसे हमारे आदि ग्रंथों में भी शुभ काल के बारे में अनेक निर्देश प्राप्त होते हैं जो जीवन के समस्त पक्षों की शुभता सुनिश्चित करते हैं।

”वर्ष मासो दिनं लग्नं मुहूर्तश्चेति पञ्चकम्। कालस्यांगानि मुखयानि प्रबलान्युत्तरोतरम्॥
लग्नं दिनभवं हन्ति मुहूर्तः सर्वदूषणम्।
तस्मात् शुद्धि मुहूर्तस्य सर्व कार्येषु शस्यते॥”

”वर्ष का दोष श्रेष्ठ मास हर लेता है, मास का दोष श्रेष्ठ दिन हरता है, दिन का दोष श्रेष्ठ लग्न व लग्न का दोष श्रेष्ठ मुहूर्त हर लेता है, अर्थात मुहूर्त श्रेष्ठ होने पर वर्ष, मास, दिन व लग्न के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं।”

इस संसार में समय के अनुरूप प्रयत्न करने पर ही सफलता प्राप्त होती है और समय अनुकूल और शुभ होने पर सफलता शत-प्रतिशत प्राप्त होती है जबकि समय प्रतिकूल और अशुभ होने से सफलता प्राप्त होना असंभव होता है। कहते हैं किसी भी वस्तु या कार्य को प्रारंभ करने में मुहूर्त देखा जाता है, जिससे मन को बड़ा सुकून मिलता है।
हम कोई भी बंगला या भवन निर्मित करें या कोई व्यवसाय करने हेतु कोई सुंदर और भव्य इमारत बनाएं तो सर्वप्रथम हमें ‘मुहूर्त’ को प्राथमिकता देनी होगी।
शुभ तिथि, वार, माह व नक्षत्रों में कोई इमारत बनाना प्रारंभ करने से न केवल किसी भी परिवार को आर्थिक, सामाजिक, मानसिक व शारीरिक फायदे मिलते हैं वरन उस परिवार के सदस्यों में सुख-शांति व स्वास्थ्य की प्राप्ति भी होती है।
यहां शुभ वार, शुभ महीना, शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र भवन निर्मित करते समय इस प्रकार से देखे जाने चाहिए ताकि निर्विघ्न, कोई भी कार्य संपादित हो सके।

देव स्थापना के विशेष लग्न्: स्थाप्यों हिरिर्दिन करो मिथुने महैर्शो।
नारायणश्च युवतौ घटके विधाता।।
देव्यो द्विमृत्तं भवनेषु नि वेशंनीयाः।
क्षुद्राश्चरे स्थिरगृहै निलिखलाश्चः देवाः।।

मिथुन लग्न में विष्णु, महादेव तथा सूर्य की स्थापना करनी चाहिए। कन्या लग्न में कृष्ण की, कुंभ लग्न में ब्रह्मा की, द्विस्वभाव लग्नों में देवियों की स्थापना करनी चाहिए। चार लग्नों में योगिनियों की और स्थिर लग्नों में सर्व देवताओं की स्थापना करना शुभ है।

लिंग स्थापन तु कत्र्तव्यं शिशिरादावृतुत्रये। प्रावृषि स्थापित लिंग भवेद् वरयोगदम्।
हैमंते ज्ञानदं चैव शिशिरे सर्वभूतिदम्।
लक्ष्मीप्रदं वसंते च ग्रीष्मे च लिंगसयारोपणंमतम्।।
यतीनां सर्वकाले च लिंगसयारोपणंमतम्।। श्रेष्ठोत्तरे प्रतिष्ठा स्याउयनेमुक्ति मिच्छताम्।।
दक्षिणे तु मुमुक्षूणां मलमासे न सा द्वयोः।।

माघ, फाल्गुन-वैशाख-ज्येष्ठाषाढेषु पंचसु। प्रतिष्ठा शुभदाप्रोक्ता सर्वसिद्धिः प्रजायते।।

श्रावणे च नभस्ये च लिंग स्थापनमुत्तमम्।
देव्याः माघाश्विने मासेअव्युत्तमा सर्वकामदा।।
माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ तथा आषाढ़ महीनों में शिव जी की प्रतिष्ठा सब प्रकार से सिद्धि देने वाली कही गयी है।

श्रावण महीना भी शुभ है। ऋतुओं की दृष्टि से हेमंत ऋतु में शिव लिंग की स्थापना से यजमान और भक्तों को विशेष ज्ञान की प्राप्ति होती है। शिशिर में शुभ, किंतु बसंत ऋतु में शिव मंदिर की प्रतिष्ठा विशेष धनदायक साबित होती है, जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह प्रतिष्ठा शांति, शीतलता और विजयप्रदाता कही गयी है।
इस प्रकार भगवती जगदम्बा की प्रतिष्ठा माघ एवं अश्विन में सर्वश्रेष्ठ फल देने वाली उत्तम कही गयी है।

चैत्रे वा फाल्गुने मासे ज्येष्ठे वा माधवे तथा।
माघे वा सर्वदेवानां प्रतिष्ठा शुभदा सिते।
रिक्तान्य तिथिषु स्यात्सवारे भौमान्यके तथा।।

हेमाद्रि के कथनानुसार
: विष्णु प्रतिष्ठा माघे न भवति।
माघे कर्तुः विनाशः स्यात्।
फाल्गुने शुभदा सिता।।

देवी प्रतिष्ठा मुहूर्तः

सर्व देवताओं की प्रतिष्ठा चैत्र, फाल्गुन, ज्येष्ठ, वैशाख और माघ मास में करना शुभ है।
श्राविणे स्थापयेल्लिंग आश्विनै जगदंबिकाम्। मार्गशीर्ष हरि चैव, सर्वान् पौषेअपि केचन्।। -
मुहूर्तगणपति श्रावण में शंकर की स्थापना करना, आश्विन में जगदंबा की स्थापना करना, मार्गशीर्ष में विष्णु की स्थापना करना और पौष मास में किसी भी देवता की स्थापना करना शुभ है।
हस्त्र, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, रोहिणी एवं मार्गशीर्ष में सभी देवताओं की, खास कर देवी की, प्रतिष्ठा शुभ है।

यद्दिनं यस्य देवस्य तद्दिने संस्थितिः। -
वशिष्ठ संहिता जिस देव की जो तिथि हो, उस दिन उस देव की प्रतिष्ठा करनी चाहिए।

शुक्ल पक्ष की तृतीया, पंचमी, चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा

तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी एवं चतुर्दशी दैवी कार्य के लिए सब मनोरथों को देने वाली है।

शुक्ल पक्ष में और कृष्ण पक्ष की दसवीं तक प्रतिष्ठा शुभ रहती है।

इसी प्रकार, शनि, रवि और मंगल को छोड़ कर, अन्य सभी वारों में यज्ञ कार्य एवं देव प्रतिष्ठा शुभ कहे गये है।

मंदिर में प्रतिमा की प्रतिष्ठा के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-
शुभ वार- देव प्रतिष्ठा मुहूर्त के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शुभ हैं।
शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की 1, 2, 5,10, 13, 15 वीं तिथि शुभ हैं।
मतांतर से कृष्णपक्ष 1, 2, 5वीं तिथि भी शुभ मानी गई है।
शुभ नक्षत्र- पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, हस्त, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूला, श्रवण, धनिष्ठा व पुनर्वसु नक्षत्र शुभ हैं।
इसके अतिरिक्त उत्तरायण के सूर्य में गुरु, शुक्र और मंगल भी बली होना चाहिए।
लग्न शुद्धि- स्थिर व द्विस्वभाव लग्न हो केंद्र व त्रिकोण में शुभ ग्रह एवं 3,6,11वें पाप ग्रह हों।
अष्टम में कोई पाप ग्रह हो।
देवशयन, मलमास, गुरु-शुक्र अस्त व निर्बल चंद्र कदापि नहीं होना चाहिए।
शिवलिंग स्थापना के लिए शिववास भी देखना शुभ होता है।

नवरात्रि मे हवन के लिये श्लोक अनुसार हवन सामग्री हमसे सम्पर्क 9893946810


 समिधा=======
 १】आक
२】 छोला
३】खैर
४】आंधी झाड़ा
५】पीपल
६】उमर(गूलर)
७】शमी
८】दूर्वा
९】कुशा
============================ नवरात्र पूजा के लिए साधारण विशेष आहुतियों के लिए
जैसे हवन सामग्रि
तीली से आधा चावल
चावल से आधा जौ
जैसे तीली 3 किलो तो':
चावल 1 किलो 500 ग्राम
जौ 7500 ग्राम
1=तिली
2=चाबल
3=जौ 
4=शकर 
5=हवन सामग्री पेकीट 
6=कूष्माण्ड खण्ड (पेठा )
7=गोल सुपारी 
8=लौंग 
9=इलायची
10=कमल गट्टे  
11=जायफल 
12=मेनफल  
13=पीली सरसो 
14=पंच मेवा 
15=सिन्दूर 
16=उड़द 
18=शहद 
19=नारियल खण्ड
20=सुखा नारियल गोला
21=गूगल
22=सराई 
23=कपूर
24=पच रंग 
25=केशर
26=लाल चंदन
27=सफेद चंदन
28=सितावर
39=कथ्था (खेर)
40=भोज पत्र 
41=काली मिर्च 
42=मिश्री
43=अनारदाना
44=शकर बूरा 
45=अगर
46=तगर
47=नागर मोथा
48=बालछड
49= छार छवीला 
50=कपूर काचरी 
52=इन्द्र जौ
53 हल्दी 
54=राल  
55=समुद्र फेन 
56=राई काली 
57= इत्र
58=अष्टांग धूप 
59=रक्त नीर 
60=दारु हल्दी
61=सताबरी 
62=लाजा 
63=अवीर 
64=सहदवी
65=जावित्रि 
66=दालचीनी
67=काली हल्दी
68=खाजा 
69=कुंकुम
70=बज्र दन्ती
71=बेल गिरी
72=कस्तूरि
73=मातुलिंग
74=माल्कान्गनी
75=बहेड़ा 
76=मजीठ
77=नाग केशर 
78=प्रियंगू 
79=आशापुरि धूप
80=हरताल
81=सर्व औषधी 
82=धूप
83=खोपरा बूरा
84=गूड़
85=विजया (भाँग)
86=रक्त गुंजा 
87=शंख पुष्पी 
88=आवला 
89= नीम गिलोय 
90= जटा माशी 
91=विष्णू कान्ता 
92=अमचूर (खडा)
93=रक्त चंदन
94=हरताल
95=सरसो पीली 
96=दर्पण
97=मेनसिल 
88=खिरनि
89=बच
90=राजान 
91=मधुआसब 
92=गोखरू
93=भेसा गूगल
94=ब्राह्मी 
============================== घरेलू सामग्री 
1=आम के पत्ते 
2=पीपल के पत्ते
3=बड़ के पत्ते 
4=अशोक के पत्ते 
5=अशोक के फूल
6=अकौआ के पत्ते 
7=शमी के पत्ते 
8=कुशा 
9=दूर्वा 
10= पान के पत्ते
11=अपामार्ग
12= पालक के पत्ते
13=गूड़ हल  के फूल
14= लाल कनेर के फूल
15= नीम गिलोय
16=गन्ना 
17=कैथ फ़ल
19= वील फ़ल
20=कुमड़ा 
21= कटहल
22= कागजी निवू
23= सिन्घाड़ा 
24=विजोरा निवू 
25=केला 
26=अनार
27= मोरपंख
28= नारंगी
29=खाजा
30=मख्खन
31=काजल 
32=आवला
33= पैठा 
34= लाल कपडा चुनरी 
=======================///
सामग्री  की मात्रा अपने हिसाब से लेवे  
×××××××××××××××××××××××××××× संपर्क -किसी भी प्रकार की पूजा जैसे - सतचण्डीपाठ , नवरात्रिपाठ , महामृत्यंजय , वास्तु पूजन, ग्रह प्रवेश , श्री मदभागवत कथा, श्री राम कथा , करवाने हेतु एबम ज्योतिष द्वारा समाधान,आदि की जानकारी के लिए ×××××××××××××××××××××××××××××× संपर्क सूत्र पंडित -परमेश्वर दयाल शास्त्री (मधुसुदनगड़) 09893397835 ============================= पंडित-भुबनेश्वर दयाल शास्त्री (पर्णकुटी गुना) 09893946810 ============================ पंडित -घनश्याम शास्त्री(parnkuti guna ) 09893983084

============================

💐💐💐💐💐विशेष संपर्क👍👍👍💐

कस्तूरवा नगर पर्णकुटी आश्रम 👍
गुना ऐ -बी रोड 👍
दा होटल सारा के सामने 👍
09893946810 ===========

अगर कोई समान छूट गया हो तो इसमें कॉमेंट बॉक्स में जरूर लिखे हमारा प्रयास प्रसिद्धि पाना नही केवल जन सहयोग की भावना है ।

होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं।

फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष अष्टमी से चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तक की अवधि को शास्त्रों में होलाष्टक कहा गया है। अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा भी कहा जा सकता है| इसी दिन से होली उत्सव के साथ—साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं। वास्तव में होली एक दिन का त्योहार न होकर पूरे नौ दिनों का त्योहार होता है। होलिकोत्सव की शुरुआत होलाष्टक से ही हो जाती है। होलाष्टक शब्द दो शब्दों होली और अष्टक का संगम है अर्थात होली के आठ दिन - यह अवधि इस साल 26 फरवरी 2015 से 5 मार्च 2015 तक अर्थात होलिका दहन तक है। शुक्लाष्टमी समारभ्य फाल्गुनस्य दिनाष्टकम् | पूर्णिमामवधिम कृत्वा त्याज्यम् बुद्धे: || शतरुद्रा विपाशायामैरावत्यां त्रिपुषकरै | होलाष्टकम् विवाहादौ तयजयमान्यत्र शोभनम् || लोक मान्यता के अनुसार कुछ तीर्थस्थान, जैसे- शतरुद्रा, विपाशा, इरावती एवं पुष्कर सरोवर के अलावा बाकी सब स्थानों पर होलाष्टक का अशुभ प्रभाव नहीं होता है, इसलिए अन्य स्थानों में विवाह इत्यादि शुभ कार्य बिना परेशानी हो सकते हैं। फिर भी शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं। माना जाता है इस दौरान शुभ कार्य करने पर अपशकुन होता है। विपाशेरवतीतीरे शुतुद्र्वाश्च त्रिपुष्करे| विवाहादीशुभे नेष्टं होलिकाप्रागादिनाष्टकम् || मुहूर्त चिंतामणि || इन दिनों गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, विवाह संबंधी वार्तालाप, सगाई, विवाह, किसी नए कार्य, नींव आदि रखने , नया व्यवसाय आरंभ करने या किसी भी मांगलिक कार्य आदि का आरंभ शुभ नहीं माना जाता। होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी घास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है जिसमें से एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडियां विशेष कर ऎसी लकडियां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेडों से टूट्कर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है | इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बडा ढेर बन जाता हैशास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता, अन्यथा अमंगल फल मिलते हैं, क्योंकि होलिका दहन की परम्परा को सनातन धर्म को मानने वाले सभी लोग मानते हैं। इसलिए होलाष्टक की अवधि में हिंदू संस्कृति के कुछ संस्कार और शुभ कार्यो की शुरुआत वर्जित है। लेकिन किसी के जन्म और और मृत्यु के पश्चात किए जाने वाले कृत्यों की मनाही नहीं की गई है। तभी तो कई स्थानों पर धुलंडी वाले दिन ही अन्नप्राशन संस्कार की परम्परा है। अत: प्रसूतिका सूतक निवारण, जातकर्म, अंत्येष्टि आदि संस्कारों की मनाही नहीं की गई है। देश के कई हिस्सों में होलाष्टक नहीं मानते। इस मान्यता के पीछे यह कारण है कि, भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिव जी ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने पर संसार में शोक की लहर फैल गयी थी। कामदेव की पत्नी रति द्वारा शिव से क्षमा याचना करने पर शिव जी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने खुशी मनायी। होलाष्टक का अंत दुलहंडी के साथ होने के पीछे एक कारण यह माना जाता है। होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य प्रतिबंधित रहने के पीछे धार्मिक मान्यता के अलावा ज्योतिषीय मान्यता भी है। ज्योतिष के अनुसार अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए हुए रहते हैं।

Wednesday, 21 October 2020

नवरात्रि दुर्गा पूर्ण हवन सामग्री

========नवग्रह समिधा=======

१】आक
२】 छोला
३】खैर
४】आंधी झाड़ा
५】पीपल
६】उमर(गूलर)
७】शमी
८】दूर्वा
९】कुशा ============================

नवरात्र पूजा के लिए  साधारण विशेष आहुतियों के लिए जैसे हवन सामग्रि

तीली से आधा चावल 
चावल से आधा जौ
जैसे तीली  3 किलो
तो': चावल 1 किलो 500 ग्राम
जौ 7500 ग्राम
शकर
घी
हवन सामग्री पैकिट

अब बाकी सामग्री का विधान तो है पर अनुमानित ही करते है ।

कूष्माण्ड (पेठा),
15 पान,
15 सुपारी,
लौंग 15 जोड़े,
छोटी इलायची 15,
कमल गट्ठे 15,
जायफल 2,
मैनफल 2,
पीली सरसों,
पंच मेवा,
सिन्दूर,
उड़द मोटा,
शहद 50 ग्राम,
ऋतु फल 5,
केले,
नारियल 1,
गोला 2,
गूगल 20 0ग्राम,
लाल कपड़ा, चुन्नी,
गिलोय,
सराईं 5,
आम के पत्ते,
सरसों का तेल,
कपूर,
पंचरंग,
केसर,
लाल चंदन,
सफेद चंदन,
सितावर, कत्था,
भोजपत्र,
काली मिर्च,
मिश्री,
अनारदाना ।
बूरा तथा सामग्री श्रद्धा के अनुसार।
अगर,
तगर,
नागर मोथा,
बालछड़,
छाड़छबीला,
कपूर कचरी,
भोजपत्र,
इन्द जौ,
सितावर,

आम या ढाक की सूखी लकड़ी 20 किलो।
नवग्रह की नौ समिधा
नवरात्र चाहे जितने भी पवित्र तरीके से क्यों न मनाए जाते हों,
लेकिन इस अवसर पर देवी की मूर्तियां बनाने में जिस खास तरह की मिट्टी का इस्तेमाल होता है, वह मिट्टी सोनागाछी से आती है।
सोनागाछी कोलकाता का रेडलाइट इलाका है।
दुर्गा मां ने अपनी भक्त वेश्या को वरदान दिया था कि तुम्हारे हाथ से दी हुई गंगा की चिकनी मिट्टी से ही प्रतिमा बनेगी।
उन्होंने उस भक्त को सामाजिक तिरस्कार से बचाने के लिए ऐसा किया।
तभी से सोनागाछी की मिट्टी से देवी की प्रतिमा बनाने की परम्परा शुरू हो गई। महालया के दिन ही दुर्गा मां की अधूरी गढ़ी प्रतिमा पर आंखें बनाई जाती हैं, जिसे चक्षु-दान कहते हैं। इस दिन लोग अपने मृत संबंधियों को तर्पण अर्पित करते हैं और उसके बाद ही शुरू हो जाता है देवी पक्ष। दुर्गा अपने पति शिव को कैलाश में ही छोड़ गणेेश, कार्तिकेय, लक्ष्मी और सरस्वती के साथ दस दिनों के लिए अपने पीहर आती है।

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संपर्क -किसी भी प्रकार की पूजा जैसे -
सतचण्डीपाठ ,
नवरात्रिपाठ ,
महामृत्यंजय ,
वास्तु पूजन, ग्रह प्रवेश ,

श्री मदभागवत कथा,
श्री राम कथा , करवाने हेतु
एबम ज्योतिष द्वारा समाधान,आदि की जानकारी के
लिए

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संपर्क सूत्र पंडित -परमेश्वर दयाल शास्त्री (मधुसुदनगड़) 09893397835 =============================

पंडित-भुबनेश्वर दयाल शास्त्री (पर्णकुटी गुना) 09893946810 ============================

पंडित -घनश्याम शास्त्री(parnkuti guna ) 09893983084 =============================

विशेष संपर्क
कस्तूरवा नगर पर्णकुटी आश्रम
गुना ऐ -बी रोड दा होटल सारा के सामने 09893946810
=================
अगर कोई समान छूट गया हो तो इसमें कॉमेंट बॉक्स में जरूर लिखे  हमारा प्रयास प्रसिद्धि पाना नही केवल जान सहयोग की भावना है ।

लग्नानुसार योग्कारक ग्रह

||लग्नानुसार योगकारक ग्रह||    
                                            मेष लग्न से लेकर मीन लग्न तक कुल 12लग्न होते है।

हर एक लग्न के लिए कोई न कोई ग्रह बहुत शुभ होकर योगकारक होता है

तो कोई ग्रह बहुत ज्यादा योगकारक होकर बहुत शुभ हो जाता है।

योगकारक ग्रह

सफलता,

उन्नति,
कई तरह के सुख,

धन आदि

जैसे राजयोगकारक फल देता है

जो ग्रह जितना ज्यादा योगकारक होता वह उस कुंडली के लिए उतना ही ज्यादा शुभ होता है।कुंडली के लग्न का स्वामी सबसे ज्यादा शुभ और योगकारक होता है।।  
                                                                **मेष लग्न के लिए मंगल,

सूर्य और गुरु योगकारक होते है।।    
                                                                **वृष लग्न के लिए

शुक्र, बुध सामान्य और शनि प्रबल योगकारक होता है।।    

                                                                                                     **मिथुन लग्न के लिए

बुध, शनि सामान्य और

शुक्र प्रबल योगकारक होता है।।   
                                                                                                         **कर्क लग्न के लिए चंद्र लग्नेश होने से और गुरु नवमेश होने से योगकारक है,

मंगल प्रबल योगकारक और बहुत उच्च स्तर का राजयोगकरक होता है।।   

                                                                                                  **सिंह लग्न के लिए सूर्य,

गुरु और मंगल उच्च स्तर का योगकारक ग्रह होता है।।    

                                                                       **कन्या लग्न के लिए बुध,

शनि और शुक्र योगकारक है।।
    
                               **तुला लग्न के लिए

शुक्र, बुध सामान्य योगकारक और शनि प्रबल योगकारक होता है।।       

                                                                             **वृश्चिक लग्न मे

मंगल, गुरु, चंद्र और सूर्य योगकारक होते है।।  

                                                                           **धनु लग्न के लिए

गुरु, मंगल और सूर्य योगकारक है।।       

                                **मकर लग्न के लिए

शनि, बुध सामान्य और शुक्र केंद्र त्रिकोण का स्वामी होकर प्रबल योगकारक होता है।।   

                 **कुम्भ लग्न के लिए

मकर लग्न की तरह शनि, बुध सामान्य और शुक्र केंद्र त्रिकोण का स्वामी होकर प्रबल योगकारक है।     
                                                                                          **मीन लग्न के लिए

गुरु लग्नेश होकर, चंद्र और मंगल त्रिकोण के स्वामी होकर योगकारक होते है।।      

                                                                            इस तरह जो ग्रह जिस लग्न के लिए योगकारक होता है

वह श्रेष्ठ फल देता है।

योगकारक ग्रह कमजोर,

पीड़ित,

अस्त,
अशुभ भाव के स्वामी ग्रहो के साथ होने से तब वह अपने शुभ फल नही दे पाता,

ऐसे कमजोर और पीड़ित योगकारक ग्रह को बलवान और शुभ करने के लिए पहला उपाय इस योगकारक ग्रह का रत्न धारण करना शुभ होता है,

ऐसे ग्रह की धातु पहनना,

मन्त्र जप,
पूजा पाठ करना और जो योगकारक ग्रहो को पीड़ित कर रहे है

उनकी शनि उन ग्रहो के मन्त्र जप, दान, पूजा पाठ से कर देनी चाहिए।।

ज्योतिष

Sunday, 18 October 2020

दुर्गा स्तुति से कामना पूर्ति

  <<<<<<<<<<<<=1=<<<<<<<<<<<<<<<

नही मन्त्र तंत्र जानु जप योग पाठ पूजा ।
  आहबान ध्यान का भी नही ख्याल और दूजा ।।
उपचार और मुद्रा पूजा विधान मेरा ।
         बस जानता यही हूँ अनुसरण माता तेरा ।।

>>>>>>>>>>>>>>=2=>>>>>>>>>>>>>>

श्री चरण पूजने में धन शाडयता बनी हो ।
        अल्पज्ञता से सेवा विधि हीन जो बनी हो ।।
जगधारिणी शिवे माँ सब माफ करना गलती।
सुत जो कपूत होवे माता नही बदलती ।।
>>>>>>>>>>>>>=३=>>>>>>>>>>>>>>>

जग में सुयोग्य सुन्दर सत्पुत्र  माता तेरे ।
                  मुझसा कपूत पॉवर उनमे एक तेरे।।
समुचित ना त्याग मेरा सब माफ करना गलती।
सुत जो कपूत होवे माता नही बदलती।।

>>>>>>>>>>>>>=४=>>>>>>>>>>>>>>>

जगदम्ब पाँव पूजा मेने करी न तेरी ।
     धन हिन् अर्चना में त्रुटिया भई घनेरी ।।
फिर भी असीम अनुपम कर स्नेह माफ गलती।
सुत जो कपूत होवे माता नही बदलती ।।

>>>>>>>>>>>>>>=५=>>>>>>>>>>>>>>

कुल देवतार्चना का परित्याग कर दिया है ।
      यह धाम साधनो का बय ब्यर्थं खो दिया है।।
अब भी कृपा करो न तब शरण पाहि पाहि ।
जगदम्ब छोड़ तेरा अबलम्बं और नाही।।

>>>>>>>>>>>>>>=६=>>>>>>>>>>>>>>

माँ पंगु तब सहारे गिरिबर शिखर को धावे ।
        सिर छत्र धर के जग में निसंक रंक सोबे।।
यह नाम जो अपर्णा विधि वेद में बखाने ।
       बस धन्य जन्म उनका जो सार तेरा जाने ।।

>>>>>>>>>>>>>>>=७=>>>>>>>>>>>>>

तन भस्म कंठ नीला गाल मुण्ड माल धारी।
       है हार शेष जिनके सिर भूमि भार धारी।।
तुजसी पतिब्रता से भूतेश जो कहाबे।
        पाणिग्रहण की महिमा संसार में सुहाबे।।

>>>>>>>>>>>>>>=८=>>>>>>>>>>>>>>

धन मोक्ष की न इच्छा बांछाँ न ज्ञान की है।
शशी मुख सुलोचनि के सुख की न मान की है।।
हिम शैल खण्ड पर जा जप साधना तुम्हारी।
        करता रहूँ भवानी जय जय शिबा तुम्हारी।।

>>>>>>>>>>>>>>>=९=>>>>>>>>>>>>>

उपचार सैकड़ो माँ मैंने किये नही है।
          रुखा है ध्यान मेरा धन पास में नही है।।
इस दीन हीन पॉबर पर  फिर भी स्नेह है तेरा।
              श्यामे सुअम्ब माता तू मानती है मेरा।।

>>>>>>>>>>>>>=१०=>>>>>>>>>>>>>>

जब जब तनिक भी दुर्गे जग आपदा सताबे।
           सुत बतस्ले भवानी तव तव तुम्हे मनाबै।।
शठता न मान लेना दासानुदास तेरा।
           प्यासे दुर्भिक्षितो को विश्वाश एक तेरा।।

>>>>>>>>>>>>>>=११=>>>>>>>>>>>>>

करुणा मयी भुला कर त्रुटि दुःख टालती हो।
          घनघोर आपदायें झट् तोड़ डालती हो ।।
आश्चर्य क्या करू में तुमको कहा सुनानी।
      परिपूर्ण तम हो जननी तेरी अखत कहानी।।

>>>>>>>>>>>>><१२><>>>>>>>>>>>>>

पापी न मुझसा कोई तुम पाप हारिणि हो।
    सब दुःख नाशनी हो सुखशांति कारणी हो।।
तुम हो दयामयी माँ समुचित विचार करना।
देकर प्रसाद मुझको भव सिंधु पार करना।।
<<<>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
>>>>>>>>>>भैरव जी का ध्यान >>>>>>>>>
>>>>>>><<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<
कर कलित कपाला कुंडली दंड पाणि।
तरुण तिमिर नीलो व्याल यग्नोपबिती।।
क्रतु समय सापर्या विग्नविच्छेदु हेतु।
जयति जय बटुक नाथ:सिद्धिदा साधकानां।।
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>

<<<<<<<<<<<<<<विशेष<<<<<>>>>>>>><<<<>>>>>><<<<-------->>>>>>>>>>>>>

सभी प्रकार की जटिल समस्याओ का समाधान हेतु ज्योतिष द्वारा सन्तुष्टी पूर्वक उपाय जानने हेतु शीघ्र ही सम्पर्क करे ।

सभी प्रकार के धार्मिक आयोजन हेतु सम्पर्क करे

जैसे ==सतचंडी पाठ ,महामृत्युंजय अनुष्ठान , मनोकामना पूर्ण अनुष्ठान ,विबाह में अड़चन के लिए सरल उपाय ,गृह प्रवेश,आदि ।
                        एबम
संगीतमय  श्री राम कथा ,श्री मद् भागवत कथा

=============================
सम्पर्क सूत्र 
पंडित =परमेश्वर दयाल शास्त्री
09893397835

पंडित =भुबनेश्वर 
09893946810
<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>




Saturday, 17 October 2020

घट स्थापना मे सप्त धान्य से ग्रह शान्ती

नवरात्र की पूजा में सबसे महत्‍वपूर्ण कलश स्‍थापना को माना जाता है। शास्‍त्रों में कलश स्‍थापित करने को गणेशजी का स्‍वरूप माना गया है। नवरात्र के पहले दिन घटस्‍थापना इसलिए की जाती है ताकि गणेशजी की कृपा से नवरात्र के 9 दिन बिना किसी विघ्‍न बाधा के पूजा के कार्य संपन्‍न हो सकें। कलश भगवान गणेश का स्वरूप है जिसमें सभी तीर्थ, समुद्र, पवित्र नदियों, वरुण सहित अनेक देवताओं का वास होता है। वैदिक परंपरा के अनुसार कलश स्‍थापना के लिए आवश्‍यक सामग्री में 7 प्रकार के अनाजों भी शामिल किया गया है। इसे सप्‍त धान्‍य भी कहा जाता है। इन 7 प्रकार के अनाज का संबंध 7 ग्रहों से माना जाता है। कलश स्‍थापना में इसका प्रयोग करके सभी ग्रहों की शांति का आह्वान किया जाता है। आइए जानते हैं कौन से हैं ये 7 प्रकार के अनाज…
2/8पहला अनाज जौ
">
नवरात्र की पूजा में जौ का सबसे अधिक महत्‍व माना जाता है। जौ का संबंध बृहस्‍पति ग्रह से माना गया है। जौ के प्रयोग से आपका गुरु बलवान होता है और आपके गुरु के बलवान होने से करियर, रुपये-पैसे और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
3/8दूसरा अनाज सफेद तिल
">
कलश स्‍थापना के लिए प्रयोग होने वाले 7 अनाज में से सफेद तिल भी एक है। सफेद तिल को शुक्र से जोड़कर देखा जाता है। शुक्र के मजबूत होने से आपके भौतिक सुखों में वृद्धि के साथ दांपत्‍य जीवन में भी मधुरता बनी रहती है।
4/8तीसरा अनाज धान
">
कलश स्‍थापना के लिए प्रयोग होने वाले 7 अनाज में धान तीसरे स्‍थान पर है। धान का संबंध चंद्रमा से माना जाता है। हवन आदि पूजा में धान का प्रयोग करने से आपका चंद्रमा मजबूत होता है। चंद्रमा के मजबूत होने से व्‍यक्ति सर्दी, जुकाम के साथ अन्य मौसम जनित बीमारियों से दूर रहता है। वहीं चंद्रमा अपने स्‍वभाव के अनुरूप व्‍यक्ति के क्रोध को कम करता है।
5/8चौथा अनाज मूंग
">
मूंग का संबंध बुध ग्रह से माना जाता है। बुध के शुभ प्रभाव से व्‍यक्ति को रूप, गुण, बुद्धि और सौंदर्य की प्राप्ति होती है। कलश स्‍थापना में मूंग को शामिल करना जरूरी माना जाता है।
6/8पांचवां अनाज मसूर
">
कलश स्‍थापना के लिए पांचवें अनाज के रूप में मसूर का प्रयोग किया जाता है। मसूर का संबंध उग्र ग्रह माने जाने वाले मंगल से होता है। मसूर को पूजा में शामिल करने से मंगल के दुष्‍प्रभाव आपके ऊपर नहीं रहते हैं।
7/8छठवां अनाज काले चने
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कलश स्‍थापना के लिए छठवें अनाज के रूप में काले चने का प्रयोग किया जाता है। काले चने का संबंध शनि ग्रह से होता है। शनि ग्रह को कर्मों का देवता माना जाता है। शनिदेव अच्‍छे कर्मों का फल देने के साथ ही बुरे कर्मों की सजा भी देते हैं। पूजा में चने का प्रयोग करने से आप शनि की दशा से दूर रहते हैं।
8/8सातवां अनाज गेहूं
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कलश स्‍थापना के लिए सातवें अनाज के रूप में गेहूं का प्रयोग किया जाता है। गेहूं का संबंध सूर्य ग्रह से माना जाता है। पूजा में गेहूं का प्रयोग करने से आपका सूर्य ग्रह मजबूत होता है। सूर्य के मजबूत होने से आपको निरोगी काया के साथ ही दीर्घायु की भी प्राप्ति होती है।