||लग्नानुसार योगकारक ग्रह||
मेष लग्न से लेकर मीन लग्न तक कुल 12लग्न होते है।
हर एक लग्न के लिए कोई न कोई ग्रह बहुत शुभ होकर योगकारक होता है
तो कोई ग्रह बहुत ज्यादा योगकारक होकर बहुत शुभ हो जाता है।
योगकारक ग्रह
सफलता,
उन्नति,
कई तरह के सुख,
धन आदि
जैसे राजयोगकारक फल देता है
जो ग्रह जितना ज्यादा योगकारक होता वह उस कुंडली के लिए उतना ही ज्यादा शुभ होता है।कुंडली के लग्न का स्वामी सबसे ज्यादा शुभ और योगकारक होता है।।
**मेष लग्न के लिए मंगल,
सूर्य और गुरु योगकारक होते है।।
**वृष लग्न के लिए
शुक्र, बुध सामान्य और शनि प्रबल योगकारक होता है।।
**मिथुन लग्न के लिए
बुध, शनि सामान्य और
शुक्र प्रबल योगकारक होता है।।
**कर्क लग्न के लिए चंद्र लग्नेश होने से और गुरु नवमेश होने से योगकारक है,
मंगल प्रबल योगकारक और बहुत उच्च स्तर का राजयोगकरक होता है।।
**सिंह लग्न के लिए सूर्य,
गुरु और मंगल उच्च स्तर का योगकारक ग्रह होता है।।
**कन्या लग्न के लिए बुध,
शनि और शुक्र योगकारक है।।
**तुला लग्न के लिए
शुक्र, बुध सामान्य योगकारक और शनि प्रबल योगकारक होता है।।
**वृश्चिक लग्न मे
मंगल, गुरु, चंद्र और सूर्य योगकारक होते है।।
**धनु लग्न के लिए
गुरु, मंगल और सूर्य योगकारक है।।
**मकर लग्न के लिए
शनि, बुध सामान्य और शुक्र केंद्र त्रिकोण का स्वामी होकर प्रबल योगकारक होता है।।
**कुम्भ लग्न के लिए
मकर लग्न की तरह शनि, बुध सामान्य और शुक्र केंद्र त्रिकोण का स्वामी होकर प्रबल योगकारक है।
**मीन लग्न के लिए
गुरु लग्नेश होकर, चंद्र और मंगल त्रिकोण के स्वामी होकर योगकारक होते है।।
इस तरह जो ग्रह जिस लग्न के लिए योगकारक होता है
वह श्रेष्ठ फल देता है।
योगकारक ग्रह कमजोर,
पीड़ित,
अस्त,
अशुभ भाव के स्वामी ग्रहो के साथ होने से तब वह अपने शुभ फल नही दे पाता,
ऐसे कमजोर और पीड़ित योगकारक ग्रह को बलवान और शुभ करने के लिए पहला उपाय इस योगकारक ग्रह का रत्न धारण करना शुभ होता है,
ऐसे ग्रह की धातु पहनना,
मन्त्र जप,
पूजा पाठ करना और जो योगकारक ग्रहो को पीड़ित कर रहे है
उनकी शनि उन ग्रहो के मन्त्र जप, दान, पूजा पाठ से कर देनी चाहिए।।
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