Saturday, 22 July 2017

सनातन धर्म मे एक वर्ण व्यवस्था है। जिसमें ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , क्षुद्र ये चार वर्ण है। सभी वर्णों के कर्म व त्योहार अलग अलग है। जैसे क्षत्रिय का मुख्य त्योहार दशहरा है, वैश्य का दिवाली है , उसी तरह ब्राम्हण का "श्रावणी उपाकर्म " मुख्य त्योहार है। व


                      ||||||||||श्रावणी कर्म|||||||||

सनातन धर्म मे एक वर्ण व्यवस्था है।

जिसमें ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , क्षुद्र ये चार वर्ण है।

सभी वर्णों के कर्म व त्योहार अलग अलग है।

जैसे क्षत्रिय का मुख्य त्योहार दशहरा है,

वैश्य का दिवाली है ,

उसी तरह ब्राम्हण का "श्रावणी उपाकर्म " मुख्य त्योहार है।

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                              |||||रक्षा बन्धन||||

12साल बाद ऐसा संयोग बना है जब राखी के दिन ग्रहण लग रहा है।

इसलिए इस बार राखी के दिन सूतक का भी लगेगा

श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा  7•8•2017 सोमवार

श्रावणी उपाकर्म 
 राखी बंधन  
श्रवण पूजन  का मुहूर्त
दिन के  11•05 से दोपहर के 1•28 मिनट के बीच में करना है ।

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                          ||  चन्द्र ग्रहण । |


चंद्र ग्रहण  समय  प्रारम्भ समय 
रात्रि 10•29 से  मध्य रात्रि 12•22 तक ।
ग्रहण का कुल समय 1•53 मिनट है।

सूतक काल प्रांरभ
दोपहर 1•29 मिनट से प्रांरभ 

गर्भवती स्त्री को सूर्य एवं चन्द्रग्रहण नहीं देखना चाहिए,

क्योंकी उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन जाता है । गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है ।

इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू उसका स्पर्श न करें. ।

ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची, चाकू आदि से काटने को मना किया जाता है , और किसी वस्त्र आदि को सिलने से मना किया जाता है,

क्योंकि ऐसी धारणा है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं

ग्रहण के समय सोने से रोग पकड़ता है किसी कीमत पर नहीं सोना चाहिए।

ग्रहण के समय मल-मूत्र त्यागने से घर में दरिद्रता आती है । शौच करने से पेट में क्रमी रोग पकड़ता है ।

ये शास्त्र बातें हैं इसमें किसी का लिहाज नहीं होता। ग्रहण के समय संभोग करने से सूअर की योनी मिलती है ।

============================================= ===    भद्रा विश्लेषण। =============

पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 
6 अगस्त 2017 को  रात्रि10:28 बजे से आरंभ होगा परन्तु भद्रा काल व्याप्त रहेगी।

भद्रा रहेगी----- आखिर भद्रा में क्यों नहीं बांधी जाती राखी? ऐसा कहा जाता है कि सूपनखा मे अपने भाई रावण को भद्रा में राखी बांधी थी, जिसके कारण रावण का विनाश हो गया, यानी कि रावण का अहित हुआ। इस कारण लोग मना करते हैं भद्रा में राखी बांधने को।

भद्रायां द्वे न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी……।

अतः हिन्दू शास्त्र के अनुसार यह त्यौहार 7 अगस्त को भद्रा रहित काल में मनाया जाएगा। 
किन्तु किसी कारणवश भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को छोड़कर भद्रा पुच्छ काल में रक्षा बंधन का त्यौहार मानना श्रेष्ठ है

भद्रा पूँछ – 06:40 से 07:55 
भद्रा मुख – 07:55 से 10:01 
भद्रा अन्त समय – 11:04

श्रावणी उपाकर्म 
 राखी बंधन  
श्रवण पूजन  का मुहूर्त
दिन के  11•05 से दोपहर के 1•28 मिनट के बीच में करना है ।
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रक्षाबंधन हमारे सनातन धर्म का सबसे खास त्योहार है। भाई की सलामती के लिए सदियों से यह त्योहार वैदिक रीति से मनाया जाता रहा है।

हालांकि वक्त के साथ इसमें बदलाव आए हैं, लेकिन वैदिक रीति का अपना खास महत्व है।

रक्षाबंधन की वैदिक विधि में सबसे अहम भूमिका रक्षा सूत्र यानी राखी की है।

आज कल बाजार में तरह-तरह की राखियां मिल जाएंगी लेकिन प्राचीन काल में वैदिक राखियां ही बनाई जाती थीं।

वैदिक राखी में जिन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है उसका अपना-अपना प्रतीकात्मक अर्थ भी है।

माना जाता है कि ये वैदिक राखी न सिर्फ आपको अपनी विरासत और परंपरा से जोड़ती है, बल्कि आपके भाई की तरक्की के रास्ते के सारे कांटे भी चुन लेती है।

तो इस बार क्यों न आप अपने भाई को अपने हाथ से बनाई वैदिक राखी ही बांधें।

भाई की कलाई पर राखी बांधते समय बहन को इस मंत्र का उच्चारण जरूर करना चाहिए--

आयुर्द्रोणसुते श्रियो दशरथे शत्रुक्षयं राघवे । 
ऐश्वर्य नहुषे गतिश्च पवने मानञ्च दुर्योधने ॥
शौर्य शान्तनवे बलं हलधरे सत्यञ्च कुन्तीसुते । 
विज्ञानं विदुरे भवन्ति भवतां कीर्तिश्च नारायणे ॥

लक्ष्मीस्ते पंकजश्री निवसतु भवने भारती कण्ठदेशे बर्द्धन्तां बन्धुवर्गा: सकलरिपुगणा यान्तु पातालदेशम् । 
देश देशे च कीर्ति: प्रसरतु भवतां कुन्दपुष्पेन्दुशुभ्रा जीव त्वं पुत्रपौत्रै: सकलसुखयुतैर्हायनानां शलैश्व ॥

स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु गोवाजीरत्न धनधान्यसमृद्धिरस्तु ।
ऐश्वर्यमस्तु वलमस्तु रिपुक्षयोSस्तु सन्तानसौख्यशततं हरिभक्तिस्तु ॥

मन्त्रार्था: सफला: सन्तु पूर्णा: सन्तु मनोरथा: । 
शत्रुंणा बुद्धिनाशोSस्तु मित्राणांमुदयस्तव ॥ 
अव्याधिना शरीरेण मनसा च निरामया । 
पूरयन्नर्थिनामाशां त्वं जीव शरदांशतम् ॥ 
भद्रमस्तु शिवंचास्तु महालक्ष्मी प्रसीदतु । 
रक्षन्तु त्वां सदां: देवा आशीष: सन्तु सर्वदा ॥ 
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। 
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल।।

कैसे बनाएं वैदिक राखी?

वैदिक राखी बनाने के लिए जो 5 वस्तुएं जरूरी होती हैं
जिसमें

दूर्वा,
अक्षत, 
केसर,
चंदन 
और सरसों के दाने प्रमुख हैं।

इन पांचों चीजों को रेशम या मलमल के कपड़े में बांधकर उसे लाल रंग के कलावे में पिरो दें और इस तरह से वैदिक राखी तैयार हो जाएगी।

वैदिक राखी में जिन पांच चीजों का सम्मिश्रण होता है उसका अपना अलग महत्व होता है।

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                              1   दूर्वा 
    
के पीछे धारणा यह है कि जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर लगाने पर वह तेजी से फैलता है और हजारों की संख्या में वृद्धि करता है,

उसी प्रकार भाई के वंश और सदगुणों में भी वृद्धि होती रहे और उसका सदाचार, मन की पवित्रता तीव्र गति से बढ़ती जाए। दूर्वा गणेश जी को प्रिय है। इसका राखी में प्रयोग करने का अर्थ यह भी है, कि हम जिसे राखी बांध रहे हैं, उनके जीवन में किसी तरह के विघ्न न आने पाए।

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                             2 अक्षत

हमारे रिश्तों के प्रति श्रद्धा भाव का प्रतीक होता है। लंबी उम्र और यशस्वी जीवन की कामना भी इन्हीं अक्षत में छुपी है।
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                           3   केसर

की प्रकृति तेज होती है। हम जिसे राखी बांध रहे हैं, वह तेजस्वी हो। उनके जीवन में धर्म की तेजस्विता कभी कम न हो, इसके लिए वैदिक राखी में अक्षत का प्रयोग किया जाता है।

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                             4    चंदन

की प्रकृति शीतल होती है और यह सुंदर सुगंध देता है। भाई के जीवन में शीतलता बनी रहे और कभी मानसिक तनाव ना हो। उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे। इन गुणों की वजह से वैदिक राखी में चंदन का इस्तेमाल किया जाता है।
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                             5  सरसों
जहां तक सरसों के दाने की बात है तो इसकी प्रकृति तीक्ष्ण होती है। इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों, विध्नों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें। सरसों के दाने भाई की नजर उतारने और बुरी नजर से भाई को बचाने के लिए भी प्रयोग में लाए जाते हैं।

रक्षा बंधन : वैदिक राखी बांधने से होती है भाई की तरक्की

वामन पुराण की एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जब राजा बलि से तीन पग में उनका सब कुछ ले लिया था, तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा।

वरदान में बलि ने विष्णु भगवान को पाताल में उनके साथ निवास करने का आग्रह किया।

भगवान विष्णु को वरदान के कारण पाताल में जाना पड़ा। इससे देवी लक्ष्मी को बहुत दुखी हुईं।

लक्ष्मी जी भगवान विष्णु को वामन से मुक्त करवाने के लिए एक दिन वृद्ध महिला का वेष बनाकर पाताल पहुंची और वामन को राखी बांधकर उन्हें अपना भाई बना लिया।

वामन ने जब लक्ष्मी से कुछ मांगने के लिए कहा तो लक्ष्मी ने वामन से भगवान विष्णु को पाताल से बैकुंठ भेजने के लिए कहा।

प्रतीकात्मक फोटो बहन की बात रखने के लिए वामन ने भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ बैकुंठ भेज दिया।

भगवान विष्णु ने वामन को वरदान दिया कि चतुर्मास की अवधि में वह पाताल में आकर रहेंगे।

इसके बाद से हर साल चार महीने भगवान विष्णु पाताल में रहते हैं।

पुराणों के अनुसार एक बार दानवों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता दानवों से हारने लगे। देवराज इंद्र की पत्नी देवताओं की हो रही हार से घबरा गईं और इंद्र के प्राणों की रक्षा के तप करना शुरू कर दिया, तप से उन्हें एक रक्षासूत्र प्राप्त हुआ।

शचि ने इस रक्षासूत्र को श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई पर बांध दिया, जिससे देवताओं की शक्ति बढ़ गयी और दानवों पर जीत प्राप्त की।

किसके बांधनी चाहिए राखी

श्रावण पूर्णिमा के दिन रक्षासूत्र बांधने से इस दिन रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाने लगा। पुराणों के अनुसार आप जिसकी भी रक्षा एवं उन्नति की इच्छा रखते हैं उसे रक्षा सूत्र यानी राखी बांध सकते हैं, चाहें वह किसी भी रिश्ते में हो।

राखी के साथ क्या है जरूरी

रक्षाबंधन का त्योहार बिना राखी के पूरा नहीं होता, लेकिन राखी तभी प्रभावशाली बनती है जब उसे मंत्रों के साथ रक्षासूत्र बांधा जाए।

राखी बांधने का मंत्र ‘

येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। 
तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे! मा चल! मा चल!!’

इस मंत्र का अर्थ है कि जिस प्रकार राजा बलि ने रक्षासूत्र से बंधकर विचलित हुए बिना अपना सब कुछ दान कर दिया। उसी प्रकार हे रक्षा! आज मैं तुम्हें बांधता हूं, तू भी अपने उद्देश्य से विचलित न हो और दृढ़ बना रहे।

दिया। भगवान विष्णु ने वामन को वरदान दिया कि चतुर्मास की अवधि में वह पाताल में आकर रहेंगे। इसके बाद से हर साल चार महीने भगवान विष्णु पाताल में रहते हैं।

पंडित bhubneshwar 
कस्तूरवा नगर पर्णकुटी गुना 
9893946810

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