यह व्रत यदि कुंवारी कन्याओं द्वारा किया जाए तो उन्हें मनोनुकूल पति की प्राप्ति होती है। परन्तु इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करना बहुत जरुरी होता है।
16 सोमवारी व्रत श्रावण सोमवार व्रत से अलग होता है और कठिन भी।
16 सोमवार का व्रत कब शुरू करनी चाहिए ?
इस व्रत को श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक और मार्गशीर्ष मास में आरम्भ करना चाहिए।
उपर्युक्त मास में व्रत आरम्भ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
16 सोमवार व्रत विध
सोमवार के दिन व्रती को सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए। पूजा करने से पहले नित्य क्रिया से निवृत्य होकर स्नान करना चाहिए। स्नान के दौरान पानी में गंगा जल तथा काला तिल डालकर नहाना चाहिए तथा पहली बार शरीर पर जल डालते समय निम्न मंत्र का जप करना चाहिए।
ॐ गंगे च गोदावरीनर्मदेसिंधुकावेरी अस्मिन जलं सन्निधिं कुरु।।
प्रत्येक सोमवार को बाल धोकर अवश्य ही नहाना चाहिए।
इसके बाद स्वच्छ कपड़ा पहनना चाहिए तत्पश्चात अपनी इच्छा तथा सुविधानुसार पूजा घर में या शिवालय में जाकर पूरी विधि के साथ पूजा अर्चना करें। पूजा में निम्न वस्तुओं का प्रयोग करनी चाहिए यथा
:- सफेद चन्दन श्वेत फूल अक्षत पंचामृत पान सुपारी फल गंगा जल बेलपत्र धतूरा-फल तथा धतूरा-फूल से शिव-पार्वती तथा साथ में गणेशजी, कार्तिकेय और नंदी जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है।
यह अभिषेक गंगा जल और पवित्र नदी के जल से किया जाता है। भगवान का अभिषक दूध, दही, घी, शहद, चने की ताल, सरसों के तेल, काले तिल आदि से किया जाता है।
पूजा में “ॐ नमः शिवाय” गणेश मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः ” तथा चन्द्रमा
के बीज मन्त्र “ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः” आदि मंत्रो की कम से कम तीन माला का जप अवश्य करनी चाहिए।
पूजा अर्चना के बाद सोमवार व्रत की कथा अवश्य पढ़नी चाहिए। 16 सोमवार व्रत पूजन समय 16 सोमवार व्रत पूजन समय निश्चित होता है।
इस व्रत की पूजा दिन के तीसरे प्रहर में अर्थात साय 4 बजे के आसपास किया जाता है तथा हमेशा इसी समय ही पूजा करना चाहिए इसमें किन्तु परन्तु का समावेश नहीं होता है।
16 सोमवार व्रत में प्रसाद में क्या-क्या चढ़ाये
इस व्रत में गेहू के आटे में घी तथा शक़्कर मिलाकर उसे हल्का भून कर चूर्ण तैयार किया जाता है। इस प्रसाद को मुख्य प्रसाद माना जाता है किसी भी परिस्थिति में इस प्रसाद को छोड़ना नहीं चाहिए।
इस प्रसाद की मात्रा भी निश्चित होती है। यदि आपने प्रथम सोमवार व्रत में 250 ग्राम आटे का प्रयोग किया है तो आपको प्रत्येक सोमवार को इसी मात्रा में आटे का प्रयोग करना होगा।
इस प्रसाद का स्थान विशेष के अनुसार भिन्न-भिन्न नाम से जाना जाता है यथा कही —
गेहू के आटा का चूर्ण तो कहीं पंजीरी इत्यादि। इस व्रत में प्रसाद के रूप में चूर्ण के साथ साथ किसी भी एक फल का उपयोग कर सकते है परन्तु जिस फल को आप एक बार उपयोग करेंगे उस फल को सभी सोमवारी व्रत में उतनी ही मात्रा में उपयोग करना होगा अन्यथा आपका व्रत खंडित हो जाएगा।
16 सोमवारी व्रत का उद्द्यापन कैसे करें
16 सोमवार व्रत का उद्द्यापन 17 वें सोमवार के दिन करना चाहिए।
उद्द्यापन किसी कुशल पंडित के द्वारा ही कराना चाहिए। उद्द्यापन भी उसी समय करना चाहिए जिस समय आप प्रत्येक सोमवार को पूजा करते थे। उद्द्यापन में सवा किलो आटे का प्रसाद चढ़ाना चाहिए।
प्रसाद को तीन भाग में विभक्त कर देना चाहिए तथा उपर्युक्त बताये के अनुसार तीसरा भाग स्वयं खाना चाहिए।
उद्द्यापन में दशमांश जप का हवन करके सफेद वस्तुओं जैसे चावल, श्वेत वस्त्र, दूध-दही,बर्फी चांदी तथा फलों का दान करना चाहिए। इस दिन विवाहित दंपतियों को भी जिमाया जाता है।
दंपतियों का चंद्रदर्शन और विधिवत पूजन किया जाता है। लोगों को उपहार स्वरूप कुछ सामग्री भी उद्यापन के दौरान दान में दी जाती है।
इस प्रकार से देवों के देव शिवजी का व्रत पूर्ण होता है और भक्त जन को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
16 सोमवार व्रत में निम्न बातों का ध्यान जरूर रखे सोमवार व्रत पूजा से पहले पूर्ण उपवास रखा जाता है अर्थात पानी भी नहीं पीना होता है।
भोजन के रूप में सिर्फ चढ़ाये हुए प्रसाद का तीसरा हिस्सा ही ग्रहण करना होता है।
तीन हिस्सा में एक हिस्सा ब्राह्मण को देना चाहिए तथा दुसरा हिस्सा बच्चो के लिए होता है।
पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण के समय आपने जो पानी पी लिया उसके बाद पानी नही पीना होता है।
इस व्रत में किसी भी परिस्थिति में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। दिन में शयन न करें।
16 सोमवार तक जो खाद्य सामग्री ग्रहण करें उसे एक स्थान पर बैठकर ग्रहण करें, चलते फिरते नहीं।
16 सोमवार तक प्रसाद और पूजन के जो नियम और समय निर्धारित करें उसे खंडित ना होने दें।
जिस दिन से पूजा आरभ करेंगे उस दिन से लेकर उद्द्यापन तक किसी दूसरे के घर में भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिन पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे। इस दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए।
व्रत के दौरान अपना ध्यान दिन-रात शिवजी में ही लगाए रखना चाहिए। इस दिन शिवजी का कोई एक मन्त्र का चयन कर लेना चाहिए तथा मन में इसका जप करते रहना चाहिए। इस दिन मन वचन तथा कर्म से शिवमय हो जाना चाहिए।
16 सोमवार व्रत से लाभ |
सोमवार व्रत करने वाले को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। कुवारी कन्याओ को मनोनुकूल पति की प्राप्ति होती है। संतान सुख की प्राप्ति होती है। घर में अकारण होने वाले पति-पत्नी के मध्य क्लेश में कमी हो जाती है या ख़त्म ही हो जाता है। रोगो से मुक्ति मिलती है शरीर में शिव शक्ति संचार की अनुभूति होती है। अपना तथा अपने परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु का भय कम हो जाता है।
जन्मकुंडली में अशुभ ग्रह की दशा चल रही है तो अशुभता में कमी हो जाती है।
16 सोमवार व्रत तथा सोमवार व्रत में अंतर 16 सोमवार व्रत सोमवार व्रत
1 ) 16 सोमवार व्रत केवल16 सोमवार ही होता है। सोमवार व्रत आप आजीवन भी कर सकते है।
2)))इस व्रत में पूजा दिन के तीसरे प्रहर में होता है।आप पूजा कभी भी कर सकते है।
3 ) इस व्रत में जो प्रसाद प्रथम दिन चढ़ाते है वही पुरे व्रत में चढ़ाना होता है। सावन या अन्य सोमवार व्रत में ऐसा नहीं है।
4 ) किसी भी रूप में पूजा खंडित नहीं होना चाहिए।यह व्रत आप छोड़कर भी कर सकते है।
5 ) इस व्रत के दौरान केवल भोजन एक ही बार करना होता है इस व्रत में ऐसा कोई कठिन नियम नहीं है। “ॐ नमः शिवाय “ॐ नमः शिवाय “ॐ नमः शिवाय “ॐ नमः शिवाय “ॐ नमः शिवाय “
पंडित
भुबनेश्वर
कस्तूरवा नगर पर्णकुटी गुना
9893946810
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