ज्योतिष समाधान

Tuesday, 30 May 2017

ऐसे कोन-कोन से योग होते हैं जो जातक को ऐक से अधिक साथियो के प्रति आकर्षित करते हैं !

व्यभिचारी होने का योग :-

मनुष्य ओर पशु सभी जीव मे कामभाव को बड़ा प्रबल ओर प्राकृतिक माना गया हे | जीव सृष्टि के अस्तित्व ओर व्याप के लिए इसका होना अनिवार्य हे |

समान्यतः दैहिक क्रिया से ही नवसर्जन होता है | किंतु सुध्रढ़ सुसंस्कृत सामाजिक व्यवस्था मे अंकुशित संयमीत कामभाव को ही स्वीकृति मिली हे |

प्राचीन काल मे एक पुरुष की अनेकों पत्नी या एक स्त्री के अनेकों पति या पुरुषो से संबंध प्रचलित देखे जाते थे |

आज की इस आधुनिक जीवन शैली में कुछ व्यक्तिओ को ऐक से अधिक साथी की ( केवल शारीरिक संबंध – दैहिक सुख) के लिए अनुचित जरूरत लगती हैं !

परंतु ऐसे जातको के कुंडली के ग्रहयोग ही उनको ऐक से अधिक साथियो के प्रति उन्हे आकर्षित करते हैं ! सहज रूप गुण या सौंदर्य से मोहित या आकर्षित होते रहेना ये विजातीय आकर्षण अंशतः प्रकृतिक माना जाता है |

लेकिन व्यभिचार का सहज अर्थ समझे तो सामाजिक निर्देशित बाध्य आचारों की सीमाओ का उलंगन करना | अथवा सीमित ( केवल दैहिक संसर्ग ) जेसे हिन माने जाते उद्देशों की पूर्ति हेतु नीति विरुद्ध अनेकों व्यक्तिओ से शारीरिक सबंध बनाते रहेना |

ऐसे कोन-कोन से योग होते हैं जो जातक को ऐक से अधिक साथियो के प्रति आकर्षित करते हैं !

ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को प्रेम –

प्रणय काला साहित्य रसिकता लालित्य का कारक मानते हैं| और मंगल को उत्तेजना आक्रमण आक्रोश जुनून का कारक कहा जाता हैं| जब भी प्रेम और उत्तेजना कि युति होगी तो उपरोकर अनिष्ठ कृष्ण योग का निर्माण होगा |

अधिकतर कुंडलियो में शुक्र व् मंगल की युति या द्रष्टि संबंध बने तो व्यभिचारी योग / कृष्ण योग फलित होता हैं |

या जातक एक से अधिक साथियो की प्रति आकर्षित करते हैं !

परंतु सिर्फ शुक्र व् मंगल की युति या द्रष्टि सबंध होने से कोई भी ज्योतिषी किसी जातक के चरित्र का आंकलन नहीं कर सकता !

इस योग मे हमारी कुंडली के अन्य भावो का भी योगदान रहता हैं! जेसे कि यदि शुक्र व् मंगल की युति या द्रष्टि संबंध बने तो व्यभिचारी योग /

कृष्ण योग नजदीकी मित्र के साथ बनता हैं!

यदि शुक्र या मंगल दोनों में से कोई भी गृह नवम भाव का स्वामी हो तो जातक के संबंध अपने देवर ( पति को छोटा भाई ) या साली (पत्नी कि छोटी बहेन ) के साथ संबंध बनता हैं !

परंतु इस योग क मध्य में १२ भाव का संबंध होना आवश्यक हैं तभी इस योग को फल मिलता हैं!

क्यों कि ज्योतिष शास्त्र में १२ भाव को शय्या सुख का भाव बोला जाता हैं और बिना शय्या सुख के दो जातको के मध्य में संबंध नहीं बन सकता हैं!

यदि इस योग में शनि ग्रह कि युति या द्रष्टि संबंध हो तो जातक के संबंध अपने से बड़े जातक से बनते हैं और यदि राहू /केतु कि युति या संबंध बने तो नीच लोगो के साथ संबंध बनते हैं !

यदि इस योग क मध्य में सूर्य हो तो किसी बड़े पद के जातक/जातिका से परंतु बनाते हैं!

यदि शुक्र और मंगल के साथ बुध या शनि गृह कि भी युति हो जाये तो जातक सम्लेगिक होता हैं!

यह योग शुक्र ओर केतु कि युति होने से भी फलित होता हैं ऐसा कुछ एक कुंडलियो में देखा गया हैं |

इस योग के भंग होने का योग किसी एक ग्रह का वक्री होने पर होता हैं |

परंतु वो ग्रह वक्री होकर निर्बल होना चाहिए! अब बात आती हैं कि इस योग का खुलना और छुपा – गुप्त रहने का क्या योग होगा ?

उसके कुछ योग इस प्रकार से देखे गए हैं ....

जैसे के :-

यदि शुक्र व् मंगल की युति या योग पर गुरु कि द्रष्टि हो तो यह योग छुपा –गुप्त रहता हैं |

क्यों कि गुरु हमारे सभी नवग्रहों में सब से बड़ा हैं और वह सब कुछ छुपा लेता हैं या उस के निचे सब कुछ छिप जाता हैं !

परंतु गुरु कुंडली में जिस भाव का स्वामी होगा उस भाव से सम्बंधित जीव कि जानकारी में यह योग होगा परंतु सब से छुपा हुआ ही रहेगा और यदि यह योग ४ भाव में बने तो भी छुपा हुआ रहता हैं क्यों कि चतुर्थ भाव जमीन के नीचे के भाव को भी दर्शता हैं |

यह योग क्यों गुप्त छुपा हुआ रहता हैं इस कि सामाजिक चर्चा हम फिर कभी देखेंगे |

यदि नवमांश कुंडली में शुक्र और मंगल कि युति किसी भी एक राशी में बने तो भी कृष्ण योग बनता हैं! अब कई बार हमारे मन में आता हैं कि हम सिर्फ शुक्र और मंगल से ही कृष्ण योग का निर्माण क्यों मानते हैं|

या विद्वादजनो ने शुक्र और मंगल से ही कृष्ण योग को क्यों फलित माना हैं! ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को प्रेम – प्रणय का कारक मानते हैं|

और मंगल को उत्तेजना का कारक कहा जाता हैं| जब भी प्रेम और उत्तेजना कि युति योगी तो कृष्ण योग का निर्माण होगा| यदि कुंडली में शुक्र बलि हो तो जातक का प्रेम निश्छल सात्विक होता हैं!

यदि कुंडली में ५,७,११,१२ भाव कि युति या कोई भी एक संबंध बने तो कृष्ण योग का उपयोग व्यावसायिक कार्यो में होता हैं और यदि कुंडली में ५,८,१२ भावेशो कि युति या संबंध बने तो बदनामी या लांछन का योग भी बनता हैं!

क्यों कि अष्टम भाव बदनामी का भाव होता हैं और यदि इस योग में १,५,६,८,१२ व् शनी कि युति हो जाये तो जातक किसी कोर्ट केस में उलज जाता हैं! साथ ही राहू ओर शुक्र की युवती अन्य या अधिक विजातीय पात्र के प्रति तीव्र आकर्षण ओर गुप्त संबंधों का निर्देश देते हे | राहू के साथ शुक्र के जुड़े होने से जातक चरित्र को सैयमित बनाये राख्ने मे संघर्ष करता हे |

साथ ही अन्य भाव ओर ग्रह फल का अध्ययन भी अनिवार्य बन जाता हे | लेकिन ज़्यादातर उपरोक्त ग्रह स्थिति मे जातक का चरित्र ओर विजातीय के प्रति व्यवहार संकशील तो बना ही रहेता हे | ओर ऊपर से स्वगृही शुक्र हो तो ये शुक्र के साथ राहू अनेकों पापाचर के प्रति प्रेरित तो करता ही हे |

जबरन कामपूर्ति ,आसुरीक कृत्य , बलात्कार जेसी मानसिकता ओर काम भाव के साथ साथ शारीरिक हानी हिंसा या हत्या तक के परिणाम भी देखे जाते हे |

ओर भी अनेकों योग या प्रमाण के तथ्य मिल सकते हे | बस जातक की स्पष्ट जानकारी ओर उसका सटीक अध्ययन आवकार्य होता हे |

पंडित~ Bhubneshwar
Kasturwangar parnkuti guna
०9893946810

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