Monday, 27 October 2025

एकादशी निर्णय 2025

कार्तिक शुक्ल (हरिप्रबोधिनी) एकादशी व्रत कब करें??
जानिए शास्त्रीय समाधान, 
इस वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वादशी का क्षय हुआ है। इस स्थिति में धर्मशास्त्र निर्णयानुसार स्मार्त्त (सभीगृहस्थी) लोगों को पहिली दशमीविद्धा एकादशी वाले दिन 1 नवम्बर, 2025 शनिवार को तथा वैष्णवों (संन्यासी, विधवा स्त्री, वानप्रस्थ और वैष्णव सम्प्रदाय वाले) को 2 नवम्बर, 2025 के दिन उपवास करना चाहिए। यहाँ आगे स्पष्टीकरण दे रहे हैं-'धर्मसिन्धुकार' अनुसार एकादशी तिथि मुख्यतः दो प्रकार की होती है- (i) विद्धा और (ii) शुद्धा। (i) सूर्योदयकाल में दशमी का वेध हो अथवा अरुणोदयकाल (सूर्योदय से लगभग 4 घड़ी पूर्व) में एकादशी तिथि दशमी द्वारा विद्वा हो, तो वह (एकादशी) विद्वा कहलाती है। (ii) अरुणोदयकाल में दशमी तिथि के वेध से रहित एकादशी शुद्धा मानी जाती है।
प्रायः सभी शास्त्रों में दशमी से युक्त एकादशी व्रत करने का निषेध माना गया है। परन्तु द्वादशी का क्षय हो जाने पर स्मार्तों (गृहस्थियों) को दशमीयुता एवं वैष्णव सम्प्रदाय वालों को द्वादशी-त्रयोदशीयुता एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। पद्मपुराण अनुसार भी-
एकादशी द्वादशी च रात्रिशेषे त्रयोदशी।
उपवासं न कुर्वीत पुत्रपौत्रसमन्वितः ।।' उपरोक्त प्रमाणानुसार 11, 12, 13 तिथियों से मिश्रित दिन में स्मार्तों (गृहस्थियों)
के व्रत का निषेध और वैष्णवों के व्रत का विधान है। 'वृद्धशातातप' का भी यहाँ वचन है-'दशम्यैकादशीविद्धा द्वादशी च क्षयं गता। क्षीणा सा द्वादशी ज्ञेया नक्तं तु गृहिणः स्मृतम् ।..... गृहिणः पूर्वत्रोपवासः ।।'
ध्यान दें-यहाँ धर्मशास्त्रों में सूर्योदयवेधवती दशमी के दिन स्मार्तों को व्रत करने की आज्ञा दी है, जोकि कण्वस्मृति के सामान्य नियम 'उदयोपरि विद्धा तु दशम्यैकादशी यदि। दानवेभ्यः प्रीणनार्थं दत्तवान् पाकशासनः ।।' के बिल्कुल विरुद्ध है। परन्तु शास्त्रों द्वारा स्मार्तों के लिए त्रयोदशी में पारणा भी सर्वथा वर्जित मानी गई है। यदि द्वादशी तिथि के क्षय की स्थिति में स्मार्तों (गृहस्थियों) तथा वैष्णवों का व्रत एक ही दिन कर दिया जाए तो स्मार्तों को भी व्रत की पारणा त्रयोदशी में करने की स्थिति आ पड़ेगी।
इसीलिए निर्णयसिन्ध में 'ऋष्यश्रृंग' ने अन्य विकल्प के अभाव में तथा जब स्मार्तों को त्रयोदशी में पारणा करने की नौबत आ पड़े तब दशमीमिश्रिता एकादशी में ही व्रत करने की अनुमति दी है-
'पारणाहे न लभ्येत द्वादशी कलयाऽपि चेत् ।
तदानीं दशमीविद्वाऽपि-उपोष्यै-एकादशी तिथिः ।।' 
इस प्रकार उपरोक्त शास्त्र-विवेचन से पाठक समझ गए होंगे कि इस वर्ष एकादशी-द्वादशी-त्रयोदशी-इन तिथियों का एकत्र (एक ही वार में संगम) होने के कारण स्मार्तों (गृहस्थियों) का 'देवप्रबोधिनी एकादशी व्रत' विशेष नियमानुसार 1 नवम्बर, 2025 ई. को सूर्योदय-वेधवती दशमी के दिन शनिवार को लिखा गया है, जो सर्वथा शास्त्रीय है, जबकि वैष्णवों का व्रत 2 नवम्बर, रविवार को होगा।
भीष्मपंचक प्रारम्भ/समाप्त (1 से 5 नवम्बर)
कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक का काल (अवधि) 'भीष्मपंचक' कहलाता है। शास्त्रों में भीष्मपंचक व्रत का अनुष्ठान केवल पाँच दिन (का. शु. ११ से पूर्णिमा तक) निर्दिष्ट है। इन पाँच दिनों में व्रताचरणपूर्वक पूर्वाण में विष्णुपूजा और मध्याह्न में भीष्मपितामह के लिए एकोद्दिष्ट श्राद्ध किया जाता है। यदि शुद्धा एकादशी से उदयकालिक पूर्णिमा तक की अवधि में कोई तिथि क्षय हो जाए और भीष्मपंचकों के दिनों की संख्या चार ही रह जाए, तब शास्त्रकारों ने यह परामर्श दिया है कि दशमीविद्धा एकादशी से ही यह व्रत प्रारम्भ करके शुद्ध (जिसमें चतुर्दशी का वेध न हो) उदयकालिक पूर्णिमा के दिन ही इसे समाप्त कर लेना चाहिए। इसी प्रकार, यदि इन पाँच तिथियों में से किसी एक तिथि की वृद्धि हो जाने से भीष्मपंचकों के 6 दिन बनते हो, तो शुद्ध एकादशी वाले दिन से प्रारम्भ करके चतुर्दशी-विद्धा, पूर्णिमा के दिन ही भीष्मपंचकों को समाप्त करना चाहिए। इस बारे 'धर्मसिन्धु' का वचन है-
"एकादश्यादि-दिनपंचके भीष्मपंचकव्रतमुक्तम्। तच्च शुद्धेकादश्यामारम्य चतुर्दश्यविद्वौदयिक-पौर्णमास्यां समापनीयम्। यदि शुद्धेकादश्यमारम्भे क्षयवशेन पौर्णमास्यां पंचदिनात्मकव्रतसमाप्तिर्न घटते, तदा विर्द्धकादश्यामपि आरम्भः ।।"
इस वर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष में द्वादशी का क्षय हो जाने से भीष्मपंचक के दिन केवल चार ही बच रहे हैं। अतः उपरोक्त नियमानुसार यहाँ दशमीविद्धा एकादशी (1 नवम्बर, 2025 ) से भीष्मपंचक का आरम्भ माना गया है। स्पष्ट है, इससे पूर्णिमा तक के दिन पाँच हो गए हैं।
तुलसी विवाह (2 नवम्बर, रविवार)
कार्तिक शुक्ल एकादशी (हरिप्रबोधिनी एकादशी) की पारणा वाले दिन प्रबोधोत्सव मनाया जाता है। इसी दिन अथवा इससे अग्रिम चार (द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा वाले) दिनों में किसी भी दिन विवाह-नक्षत्र में तुलसी विवाह किया जा सकता हे 
ऐसा शास्त्रविधान है-एकादश्यादि पूर्णिमान्ते यत्र क्वापि दिने कार्तिक शुक्लान्तर्गत-विवाह-नक्षत्रेषु वा विधानादनेक कालत्वं तथापि पारणाहे प्रबोधोत्सव कर्मणा सह
- परन्तु प्रबोधोत्सव के साथ एकादशी व्रत पारणा वाले दिन पूर्वरात्रि में (अर्धरात्रि से पहिले ही रात्रिकाल में) तुलसी विवाह करने की परम्परा है-ऐसा 'धर्मसिन्धुकार' का निर्देश है-
'रात्रि प्रथमभागे प्रशस्तः।' यदि पारणा के दिन पूर्वरात्रिकाल में विवाह-नक्षत्र न हो तो दिन के समय प्राप्त विवाहनक्षत्र में, यदि वहाँ भी न मिले तो उसके बिना भी पूर्वरात्रि में तुलसी-विवाह पारणा के दिन कर लेना चाहिए।
इस वर्ष 2 नवम्बर, 2025 को प्रबोधोत्सव है। इसदिन पूर्वरात्रि में विवाह-नक्षत्र उ.भा. भी है। अतः इसदिन 'तुलसी विवाह' शास्त्रविहित है।
नोट-ध्यान रहे-कुछ शास्त्रकार व्यतीपात/वैधृति योग में, द्वादशी तिथि एवं रविवार को तुलसी-दल का स्पर्श एवं तोड़ने का निषेध मानते हैं-
वैधृतौ
च व्यतीपाते भौमभार्गवभानुषु ।
पर्व द्वये च संक्रान्तौ द्वादश्यां सूतके द्वयोः ।। (निर्णयसिन्धु)
अतएव हमारे विचारानुसार श्री तुलसी विवाह उत्सव 3 नवम्बर, सोमवार को मनाना अधिक शास्त्र सम्मत होगा। क्योंकि यहाँ प्रदोष में विवाह नक्षत्र रेवती भी विद्यमान होगा

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