Sunday, 12 October 2025

दीपावली निर्णय 2025

मार्तण्ड की चुप्पी भादवमाता पंचांग की लीपापोती दिवाकर आदि पंचांग द्वारा सूत्र ही गलत, एवं अन्य पंचांगकर्ताओं को चुनौती: शास्त्र विरुद्ध दीपावली निर्णय पर विमर्श

मार्तण्ड पंचांग के निर्माताओं और अन्य सभी पंचांगकर्ताओं ने 21 अक्टूबर, 2025 को दीपावली मनाने का जो निर्णय लिया है, वह शास्त्रों के विरुद्ध है। यह एक गंभीर त्रुटि है, जिसका कारण शास्त्रों वचनों का गलत विश्लेषण है।

मार्तण्ड की चुप्पी और उनके निर्णय की त्रुटियाँ👉
मार्तण्ड पंचांग के विद्वान, यद्यपि वे सम्मानित हैं, इसपर पर मौन हैं और इसका कोई शास्त्रीय उत्तर नहीं दे पा रहे हैं। उनका मौन ही उनकी स्वीकृति है कि उनके द्वारा लिया गया निर्णय शास्त्रसम्मत नहीं है। यदि वे उत्तर देंगे, तो उन्हें शास्त्रों की व्याख्या को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना पड़ेगा, क्योंकि जिस सूत्र के आधार पर उन्होंने 21 अक्टूबर को दीपावली घोषित की है, उसका खंडन स्वयं धर्मसिंधु ग्रंथकार ने किया है। 

अहंकार बनाम स्वीकार्यता: 👉गलती किसी से भी हो सकती है, और उसे स्वीकार करने से कोई छोटा नहीं हो जाता। परंतु यहाँ अहंकार आड़े आ रहा है। 

दोषपूर्ण तर्क:👉 सौ से अधिक पंचांगों ने भी 21 अक्टूबर की तिथि तय की है। उनका तर्क है कि जब इतने सारे पंचांग एक ही निर्णय पर पहुँचे हैं, तो यह सही है। यह हमारे तर्कों का उत्तर नहीं है, यह तो केवल एक-दूसरे का समर्थन करना है, एक दूसरे की पीठ खुजलाने से सिद्धान्त स्थापित नहीं होते शास्त्रीय प्रमाण से होते हैं और जो प्रमाण आप लोगों के द्वारा प्रदत्त है उसमें दोषदर्शन हम करा चुके हैं।  

भादवमाता वालों का अनुचित तर्क👉
भादवमाता वालों की स्थिति तो और भी हास्यास्पद है। वे सभी पंचांगकर्ताओं की तरह एक सूत्र का उपयोग करते हैं: "एतन्मते उभयत्र प्रदोषाव्याप्तिपक्षेऽपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिकव्यापित्वात् परैव युक्तेति भाति।" 

वे इस सूत्र का अर्थ यह लगा रहे हैं कि "यदि दोनों दिन प्रदोष व्याप्त हो, तब"। जबकि इसका सही अर्थ है: "यदि दोनों दिन प्रदोष व्याप्त न हो, तब"। यहाँ 'अव्याप्ति' पद का स्पष्ट उल्लेख है, जिसे वे संस्कृत के अज्ञान से व्याप्ति बता रहे हैं अथवा जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं। 

उनका अतार्किक बचाव हास्यास्पद है, जब उन्हें बताया गया कि उनके ही सूत्र से उनका मत खंडित हो जाता है, तो उनका अद्भुत तर्क था कि "संस्कृत कोई प्रमाण नहीं है।" उन्होंने यह भी कहा कि यदि संस्कृत को प्रमाण मानेंगे तो बौद्ध धर्म के ग्रंथ भी मानने पड़ेंगे क्योंकि वे भी संस्कृत में हैं। यह एक असाधारण और हास्यास्पद तर्क है, जो उनके ज्ञान की कमी को दर्शाता है। 

पुरुषार्थचिंतामणि और धर्मसिंधु का वास्तविक मत

अधिकांश पंचांगकर्ता पुरुषार्थचिंतामणि के सूत्र को धर्मसिंधु द्वारा सिद्धांत के रूप में ग्रहण किया हुआ मान रहे हैं, जो कि एक और भ्रम है। 

पुराणसमुच्चय का उद्धरण: पुरुषार्थचिंतामणि ने वास्तव में पुराणसमुच्चय के वचन को उद्धृत किया है: "त्रियामगा दर्शतिथिर्भवेच्चेत्सार्धत्रियामा प्रतिपद्विवृद्धौ। दीपोत्सवे ते मुनिभिः प्रदिष्टे अतोऽन्यथा पूर्वयुते विधेये॥" 

धर्मसिंधु का खंडन: धर्मसिंधु के लेखक इसी मत का खंडन करते हैं और स्पष्ट करते हैं कि पुरुषार्थचिंतामणि का मत केवल तभी लागू होता है जब दोनों दिन प्रदोष-व्याप्ति न हो👉

"एतन्मते उभयत्र प्रदोषाव्याप्तिपक्षेऽपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिकव्यापित्वात् परैव युक्तेति भाति।" 

सही अर्थ: "इस मत (पुरुषार्थचिंतामणि के मत) के अनुसार, जिस पक्ष में दोनों ही दिन प्रदोष-व्याप्ति न हो, उसमें भी यदि दूसरे दिन अमावस्या साढ़े तीन प्रहर (लगभग 10.5 घंटे) से अधिक व्याप्त हो, तो 'परा' (बाद वाली) तिथि ही उचित है, ऐसा प्रतीत होता है।" 

यह स्पष्ट है कि धर्मसिंधु ने इस मत को पूर्वपक्ष में उठाया है, सिद्धांत के रूप में नहीं। उन्होंने इसे केवल एक विशेष परिस्थिति में लागू करने की बात कही है, अन्य समय में नहीं। 

दिवकारपंचांगकार तो इस सूत्र को ही गलत उठा लेते हैं वे कहते हैं कि 👉

एतन्मते उभयत्र प्रदोषव्याप्तिपक्षेऽपि परत्र दर्शस्य सार्धयामत्रयाधिकव्यापित्वात् परैव युक्तेति भाति।

उन्होंने उभयत्र प्रदोषाव्याप्तिपक्षेऽपि को ही उभयत्र प्रदोषव्याप्तिपक्षेऽपि करके अव्याप्ति को व्याप्ति करके अपना निर्णय 21 का कर दिया।  

इसप्रकार ये सारे पंचांगकर्ता शास्त्रों के गलत अर्थ, उनके प्रकरणविरुद्ध सूत्रों के प्रयोग आदि से अपना वचन सिद्ध करने के कारण खण्डनयोग्य हैं अत: ये यदि ये पंचांगकर्ता इन स्पष्ट प्रमाणों के बावजूद अपने अहंकार के कारण निर्णय नहीं बदलते, तो वे जनता को भ्रमित करने वाले और शास्त्रों का हनन करने वाले ही सिद्ध होंगे।

और यदि ये हमारे द्वारा प्रदत्त खण्डन का खण्डन कर यह सिद्ध करे दें कि धर्मसिन्धु एवं निर्णयसिन्घुकार के निर्णय से 21 को अक्तूबर को दीपावली सिद्ध होती है तो हम सहर्ष इनके निर्णय को स्वीकार कर लेंगे।
साभार - तंत्र गुरुकुल

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