Tuesday, 30 September 2025

पान दशहरा

#दशहरा पर बीड़ा चबाने की #परम्परा भी है।.....
बीड़ा ताम्बूलवीटिका के घटक द्रव्य हैं सुपारी , इलायची, कत्था, कपूर।
#पूग्येलाखदिराढ्यं_तु_ताम्बूलं।
बाण ने कादम्बरी में कई बार ताम्बूलवीटिका का प्रयोग किया है। सिंहासनबत्तीसी में भी बीड़ा दिये जाने का वर्णन है।
#दे_बीरा_रघुनाथ_पठाये ...
बीड़ा पान ताम्बूल  किसी कार्य को पूरा करने का संकल्प लेना - बीड़ा उठाना ।
"सुपारी लेना" का भाव वही जो बीड़ा उठाने का.
सुपारी और पान का साथ सदा से ही है ।
देव पूजन में प्रयोग होता है ।
किसी सत्कर्म के उद्देश्य से ही पान, सुपारी का शगुन होता था । किन्तु आजकल हत्या करने जैसे जघन्य अपराध के लिये "सुपारी लेना" या देना का प्रचलन हो गया ।
#शब्दों की यही विडम्बना है , काल के साथ अर्थ एवं भाव परिवर्तन हो जाता है ।
पान सुपारी खाये जाने का चलन बहुत पुराना है,
आज भी लोग एक बटुआ में सरौता , कत्था, सुपारी, चूना रखे हुये मिल जायेंगे ।
आजकल #गुटखा के चलन ने सब दूषित और विकृत कर दिया है । तम्बाकू युक्त गुटखा पर प्रतिबन्ध होते हुये भी , तम्बाकू अलग पाउच में साथ में मिलने से निष्प्रभावी है ।
गुटखा में बहुत से हानिकारक केमिकल और पत्थर का चूरा भी मिला होता है ।

पहले #विप्रों और राजसामंतों के दाँत ताम्बूलरंजित होते थे। बल्लालकृत भोजप्रबन्ध में एक प्रसंग है। कवियों को अकूतधन देने वाले राजा भोज के दरबार में कविकर्म से रहित वेदशास्त्रज्ञाता विद्वान पहुँचे। द्वारपाल ने इन लोगों का सूक्ष्म निरीक्षण किया। दरबार में जाकर उसने उन वैदिक विद्वानों का परिचय इस प्रकार दिया -
#राजमाषनिभैर्दन्तैः_कटिविन्यस्त_पाणयः।
#द्वारतिष्ठन्ति_राजेन्द्र_छादन्साः_श्लोकशत्रावः॥ 
हे राजा ! द्वार पर राजमा के समान दाँतों वाले, श्लोकशत्रु, वेदज्ञ कमर पर हाथ रखे खड़े हैं।

एक श्लोक है -
#शुक्लदन्ताः_जिताक्षश्च_मुंडाः_काषायवाससः।
#शुद्धाधर्म_वदिष्यन्ति_शाठ्यबुद्धयोपजीविनः॥
सफेद दाँत वाले' शठबुद्धि से जीविका चलाने वाले निन्दा के पात्र हैं, वे शुद्धअधर्म की बात करते हैं |
आभास कुमार गांगुली जिन्हें गायक किशोर कुमार के नाम से जाना जाता है, पान की प्रशंसा में एक कविता रची थी
#पान सो पदारथ, सब जहान को सुधारत
गायन को बढ़ावत जामे चूना चौकसाई है
सुपारिन के साथ साथ,मसाला मिले भांत भांत
जामे कत्थे की रत्ती भर थोड़ी सी ललाई है
बैठें है सभा मांहि बात करे भांत भांत
थूकन जात बार बार जाने का बड़ाई है
कहें कवि 'किशोरदास' चतुरन की चतुराई साथ
पान में तमाखू किसी मूरख ने चलाई है.
( मूरख न बनिये )

                     🙇 #जयश्रीसीताराम 🙇

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