Thursday, 7 August 2025

श्रावण मास की पूर्णिमा और श्रवण नक्षत्र दोनों साथ पड़ेंगे. सौभाग्य योग और सर्वार्थ सिद्धि योग इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व भद्रा से मुक्त है.

गुरुदेव भुवनेश्वर जी पर्णकुटी वालो के अनुसार इस साल श्रावण शुक्ल चतुर्दशी, शुक्रवार यानि दिनांक 08 अगस्त 2025 को पूर्णिमा  02:12 बजे प्रारंभ हो जाएगी और दूसरे दिन 09 अगस्त 2025, शनिवार को दोपहर 01:24 बजे तक रहेगी. 

इसी तरह श्रवण नक्षत्र भी दिनांक 08 अगस्त 2025, शुक्रवार को  दोपहर 02:27 बजे से प्रारंभ होकर दूसरे दिन 09 अगस्त 2025, शनिवार को दिन में 02:30 मिनट तक रहेगा. 

ऐसे में इस बार यह उत्तम संयोग बन रहा है कि श्रावण मास की पूर्णिमा और श्रवण नक्षत्र दोनों साथ पड़ेंगे. इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व भद्रा से मुक्त है.

 रक्षा बन्धन पर राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त के बारे में गुरुदेव ने बताया कि वैसे तो  यह पर्व पूरे दिन मनाया जाना चाहिए फिर भी चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार प्रातः 07:31 से प्रातः 09:09 तक शुभ का और मध्यान्ह 12:00 बजे  अभिजित मुहूर्त के साथ ही क्रमशः चर,लाभ, अमृत, का चौघड़िया सायंकाल 05:21 तक रहेगा 

मुख्य रूप से यह त्यौहार यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणों के लिये  अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। 
गये वर्ष के पुराने पापों को पुराने यज्ञोपवीत की भाँति त्याग देने और स्वच्छ नवीन यज्ञोपवीत की भाँति नया जीवन प्रारम्भ करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण 6 महीनों के लिये वेद का अध्ययन प्रारम्भ करते हैं। इस पर्व का एक नाम उपक्रमण भी है जिसका अर्थ है- नयी शुरुआत।

इस त्यौहार को श्रावणी पर्व भी कहते हैं। 
 ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि त्यौहार माना जाता है। वृत्तिवान् ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं।भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। गुरुदेव भुवनेश्वर पर्णकुटी वालो के अनुसार रक्षाबंधन पर्व का सीधा संदेश है कि जिसके प्रति रक्षा की भावना हो आप उसे राखी बांध सकती हैं. शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति रक्षित होगा, वह हमारी भी रक्षा करेगा. हालांकि रक्षाबंधन के पर्व के दिन बहन के द्वारा अपने भाई के हाथ में रक्षा पोटली बांधने की परंपरा रही है. वैदिक राखी बनाने के लिए एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें। उसमें
(१) दूर्वा
(२) अक्षत (साबूत अरुणाक्षत)
(३) केसर या हल्दी
(४) शुद्ध चंदन
(५) सरसों के साबूत दाने
इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें । फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें। सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी  आदि बांधकर भाई की कलाई में बांधा जाता रहा है. यदि आपके परिवार में कोई भी भाई नहीं है तो आपको भगवान श्रीकृष्ण को राखी बांधनी चाहिए. सनातन परंपरा में भी पहली राखी अपने आराध्य देवता को अर्पित करने का विधान बताया गया है. ऐसे में आप यदि आप पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ बांके बिहारी या फिर अपने घर में रखे हुए गणेश, शिव ,लड्डू, गोपाल को राखी बांध सकते हैं. ऐसा करने पर पूरे साल वे आपकी रक्षा करते हुए सुख-सौभाग्य प्रदान करेंगे. 

राखी बांधने का सबसे पहला अधिकार ईश्वर को माना गया है. कई बहनें सबसे पहले भगवान कृष्ण, शिव या गणेश को राखी बांधती हैं और फिर अपने भाई को. 

यदि किसी स्त्री का भाई न हो या वह बहनों के साथ ही पली-बढ़ी हो, तो वह अपनी बड़ी बहन को राखी बांध सकती है. यह बहनत्व, प्रेम और साथ निभाने का प्रतीक होता है.

कई स्थानों पर महिलाएं साधु-संतों या मंदिर के पुजारियों को राखी बांधती हैं. 

जिन लोगों की कोई बहन नहीं होती है, उनके लिए भी रक्षासूत्र बांधने का उपाय शास्त्रों में बताया गया है. यदि आपकी कोई बहन नहीं है तो आप अपने गुरु अथवा किसी मंदिर के पुजारी से 'ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः. तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल' मंत्र का उच्चारण करते हुए रक्षासूत्र बंधवा सकते हैं. 

पुरोहित और यजमान (जो पूजा करवाता है) का रिश्ता बहुत गहरा होता है। पुराने समय में रक्षाबंधन पर पंडित अपने यजमान को राखी बांधते थे और उनके कल्याण की कामना करते थे। यह परंपरा आज भी जिंदा रहनी चाहिए।रक्षाबंधन के अवसर पर बहनें भारतीय सेना, पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों को राखी भेजती हैं या स्वयं जाकर बांधती हैं. यह समाज की रक्षा करने वाले रक्षक के प्रति श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है. पर्यावरण संरक्षण की भावना को बढ़ावा देने के लिए कई लोग वृक्षों को राखी बांधते हैं. यह संकल्प होता है कि हम पेड़ों की रक्षा करेंगे और पर्यावरण को सुरक्षित रखेंगे.



रक्षा बंधन हमेशा से भाई-बहन के रिश्ते का का पर्व रहा है। पुराने समय में भी इसको लेकर यही जिक्र मिलता है। साथ ही हर पर्व-त्योहार को मनाने के धार्मिक नियम होते हैं जिसको उसी अनुरूप मनाया जाना चाहिए। इस आधार पर कहा जा सकता है कि पत्नी पति को राखी नहीं बांध सकती है। हां, वो रक्षा के लिए पति की कलाई पर कलावा जैसे पवित्र धागा को जरूर बांध सकती है।


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