गणेश जी की मूर्ति प्रतिष्ठा कोई नवाचार नहीं अपितु प्राचीन काल से है,जिसे बालगंगाधर तिलक जी ने महाराष्ट्र में पुनः प्रचार में लाया।
गणपति मूर्ति विसर्जन निर्णय -
जो कहते हैं कि गणेशजी की प्रतिमा का विसर्जन नहीं करना चाहिए, उनके लिए। संस्कृत श्लोक निम्न हैं- सम्पूर्ण हिंदी टीका हेतु चित्र देखें
ततः सुहृज्जनयुतः स्वयं भुञ्जीत सादरम्।
अपरस्मिन्दिने मूर्तिं नृयाने स्थापयेन्मुदा॥
छत्रध्वजपताकाभिश्चामरैरुपशोभिताम्।
किशोरैर्दण्डयुद्धेन युध्यद्भिश्च पुरःसरम्॥
महाजलाशयं गत्वा विसृज्य निनयेज्जले।
वाद्यगीतध्वनियुतो निजमन्दिरमाव्रजेत्॥
(गणेशपुराण, उपासनाखण्ड, अध्याय - ५०, श्लोक - ३१-३३)
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